अय्यूब के बारे में (I)

29 मई, 2018

अय्यूब परीक्षाओं से होकर कैसे गुज़रा इस बारे में जानने के बाद, तुममें से अधिकांश संभवतः स्वयं अय्यूब के बारे में और अधिक विवरण जानना चाहोगे, विशेष रूप से उस रहस्य के संबंध में जिसके द्वारा उसने परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त की थी। इसलिए आओ, आज हम अय्यूब के बारे में बात करें!

अय्यूब के दैनिक जीवन में हम उसकी पूर्णता, खरापन, परमेश्वर का भय, और बुराई से दूर रहना देखते हैं

यदि हमें अय्यूब की चर्चा करनी है, तो हमें उसके बारे में उस आँकलन से ही आरंभ करना चाहिए जो परमेश्वर के मुख से कहा गया था : "उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।"

आओ हम सबसे पहले अय्यूब की पूर्णता और खरेपन के बारे में जानें।

तुम लोग "पूर्ण" और "खरा" शब्दों से क्या समझते हो? क्या तुम मानते हो कि अय्यूब कलंक रहित था, कि वह सम्माननीय था? निस्संदेह, यह "पूर्ण" और "खरे" की शाब्दिक व्याख्या और समझ होगी। परंतु वास्तविक जीवन का परिप्रेक्ष्य अय्यूब की सच्ची समझ से अभिन्न है—वचन, किताबें, और सिद्धांत अकेले कोई उत्तर प्रदान नहीं करेंगे। हम अय्यूब के घरेलू जीवन पर नज़र डालते हुए आरंभ करेंगे, इस पर कि अपने जीवन के दौरान उसका सामान्य आचरण किस प्रकार का था। यह हमें जीवन में उसके सिद्धांतों और उद्देश्यों, और साथ ही उसके व्यक्तित्व और खोज के बारे में बताएगा। आओ अब हम अय्यूब 1:3 के अंतिम वचन पढ़ें : "पूर्वी देशों के लोगों में वह सबसे बड़ा था।" ये वचन जो कह रहे हैं वह यह है कि अय्यूब की हैसियत और प्रतिष्ठा बहुत ऊँची थी, और यद्यपि हमें कारण नहीं बताया गया है कि पूर्वी देशों के लोगों में वह अपनी प्रचुर धन-संपत्ति के कारण सबसे बड़ा था, या इसलिए कि वह पूर्ण और खरा था और परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था, कुल मिलाकर, हम इतना जानते हैं कि अय्यूब की हैसियत और प्रतिष्ठा बहुत ही मूल्यवान थी। जैसा कि बाइबल में अभिलिखित है, अय्यूब के बारे में लोगों की पहली धारणा यह थी कि अय्यूब पूर्ण था, कि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, और यह कि उसके पास बहुत धन-संपत्ति और सम्माननीय हैसियत थी। ऐसे परिवेश में और ऐसी परिस्थितियों में रह रहे साधारण व्यक्ति के लिए, अय्यूब का आहार, जीवन की गुणवत्ता, और उसके व्यक्तिगत जीवन के विभिन्न पहलू अधिकांश लोगों के ध्यान के केंद्रबिंदु होंगे; इसलिए हमें पवित्र शास्त्र आगे पढ़ना होगा : "उसके बेटे बारी-बारी से एक दूसरे के घर में खाने-पीने को जाया करते थे; और अपनी तीनों बहिनों को अपने संग खाने-पीने के लिये बुलवा भेजते थे। जब जब भोज के दिन पूरे हो जाते, तब तब अय्यूब उन्हें बुलवाकर पवित्र करता, और बड़े भोर को उठकर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता था; क्योंकि अय्यूब सोचता था, 'कदाचित् मेरे लड़कों ने पाप करके परमेश्वर को छोड़ दिया हो।' इसी रीति अय्यूब सदैव किया करता था" (अय्यूब 1:4-5)। यह अंश हमें दो बातें बताता है : पहली यह कि अय्यूब के पुत्र और पुत्रियाँ, बहुत खाने और पीने के साथ, नियमित रूप से भोज करते थे; दूसरी यह है कि अय्यूब बहुधा होमबलियाँ चढ़ाता था क्योंकि वह अपने पुत्रों और पुत्रियों के लिए प्रायः चिंतित रहता था, इस डर से कि वे पाप कर रहे थे, कि उन्होंने अपने हृदय में परमेश्वर को त्याग दिया था। इसमें दो अलग-अलग प्रकार के लोगों के जीवन का वर्णन किया गया है। पहले, अय्यूब के पुत्र और पुत्रियाँ, जो अपनी संपन्नता के कारण अक़्सर भोज करते थे, ख़र्चीला जीवन जीते थे, वे अपने मन की संतुष्टि तक दाखरस पीते और दावत करते थे, और भौतिक संपदा से उत्पन्न उच्च जीवनशैली का आनंद उठाते थे। ऐसा जीवन जीते हुए, यह अवश्यंभावी ही था कि वे अक़्सर पाप करते होंगे और परमेश्वर को नाराज़ करते होंगे—फिर भी वे अपने को पवित्र नहीं करते थे या होमबलि नहीं चढ़ाते थे। तो, तुम देखो, कि परमेश्वर का उनके हृदय में कोई स्थान नहीं था, कि उन्होंने परमेश्वर के अनुग्रहों का कोई विचार नहीं किया, न ही वे परमेश्वर को नाराज़ करने से भयभीत हुए, अपने हृदय में परमेश्वर को त्यागने से तो वे और भी भयभीत नहीं हुए थे। निस्संदेह, हमारा ध्यान अय्यूब के बच्चों पर नहीं है, बल्कि उस पर है जो अय्यूब ने ऐसी चीज़ों से सामना होने पर किया; यह अय्यूब के दैनिक जीवन और उसकी मानवता के सार से जुड़ा दूसरा मामला है, जिसका इस अंश में वर्णन किया गया है। बाइबल अय्यूब के पुत्र और पुत्रियों के भोज का उल्लेख तो करती है, किंतु अय्यूब का कोई उल्लेख नहीं है; केवल इतना कहा गया है कि उसके पुत्र और पुत्रियाँ अक़्सर एक साथ मिलकर खाते और पीते थे। दूसरे शब्दों में, उसने भोज आयोजित नहीं किए, न ही वह अपने पुत्र और पुत्रियों के साथ ख़र्चीले ढँग से खान-पान में शामिल हुआ। धनाढ्य और कई संपत्तियों और सेवकों से संपन्न होते हुए भी, अय्यूब का जीवन विलासी जीवन नहीं था। वह जीवन जीने के अपने सर्वोत्कृष्ट परिवेश से मोहित नहीं हुआ था, और उसने, अपनी संपदा के कारण, स्वयं को देह के आनंदों से ठूँस-ठूँसकर नहीं भरा या होमबलि चढ़ाना नहीं भूला, और इसके कारण अपने हृदय में परमेश्वर से धीरे-धीरे दूर तो वह और भी नहीं हुआ। तो, स्पष्ट रूप से, अय्यूब अपनी जीवनशैली में अनुशासित था, और उसे मिले परमेश्वर के आशीषों के परिणामस्वरूप वह लोभी या सुखवादी नहीं था, और वह जीवन की गुणवत्ता में तल्लीन नहीं था। इसके बजाय, वह विनम्र और शालीन था, वह ठाठ-बाट का आदी नहीं था, और परमेश्वर के सामने वह सतर्क और सावधान था। वह परमेश्वर के अनुग्रहों और आशीषों पर बहुधा विचार करता था, और परमेश्वर से निरंतर भयभीत रहता था। अपने दैनिक जीवन में, अय्यूब अपने पुत्र और पुत्रियों के हेतु होमबलि चढ़ाने के लिए प्रायः जल्दी उठ जाता था। दूसरे शब्दों में, न केवल अय्यूब स्वयं परमेश्वर का भय मानता था, बल्कि वह यह आशा भी करता था कि उसके बच्चे भी उसी प्रकार परमेश्वर का भय मानेंगे और परमेश्वर के विरुद्ध पाप नहीं करेंगे। अय्यूब की भौतिक संपदा का उसके हृदय में कोई स्थान नहीं था, न ही उसने परमेश्वर द्वारा ग्रहित स्थान लिया था; चाहे वे स्वयं अपने लिए हों या अपने बच्चों के लिए, अय्यूब के सभी दैनिक कार्यकलाप परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने से जुड़े थे। यहोवा परमेश्वर का उसका भय उसके मुँह तक ही नहीं रुका, बल्कि वह कुछ ऐसा था जिसे उसने क्रियान्वित किया था और जो उसके दैनिक जीवन के प्रत्येक और सभी भागों में प्रतिबिंबित होता था। अय्यूब का यह वास्तविक आचरण हमें दिखाता है कि वह ईमानदार था, और उस सार से युक्त था जो न्याय और उन चीज़ो से जो सकारात्मक थीं प्रेम करता था। अय्यूब अपने पुत्रों और पुत्रियों को प्रायः भेजता और पवित्र करता था, इसका अर्थ है कि उसने अपने बच्चों के व्यवहार को स्वीकृति नहीं दी थी या अनुमोदित नहीं किया था; इसके बजाय, अपने हृदय में वह उनके व्यवहार से असंतुष्ट था, और उनकी भर्त्सना करता था। उसने निष्कर्ष निकाला कि उसके पुत्र और पुत्रियों का व्यवहार यहोवा परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला नहीं था, और इसलिए वह प्रायः उनसे यहोवा परमेश्वर के सामने जाने और अपने पाप स्वीकार करने के लिए कहता था। अय्यूब के कार्यकलाप हमें उसकी मानवता का दूसरा पक्ष दिखाते हैं, वह पक्ष जिसमें वह कभी उनके साथ नहीं चलता था जो अक्सर पाप करते थे और परमेश्वर को नाराज़ करते थे, बल्कि इसके बजाय वह उनसे दूर रहता था और उनसे बचता था। यद्यपि ये लोग उसके पुत्र और पुत्रियाँ थे, फिर भी उसने अपने सिद्धांत इसलिए नहीं छोड़े कि वे उसके अपने सगे-संबंधी थे, न ही वह अपने मनोभावों के कारण उनके पापों में लिप्त हुआ। अपितु, उसने उनसे स्वीकार करने और यहोवा परमेश्वर की क्षमा प्राप्त करने का आग्रह किया, और उसने उन्हें चेताया कि वे अपने लोभी आनंद के वास्ते परमेश्वर को न तजें। दूसरों के साथ अय्यूब के व्यवहार के सिद्धांत उसके परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के सिद्धांतों से अलग नहीं किए जा सकते हैं। वह उससे प्रेम करता था जो परमेश्वर द्वारा स्वीकृत था, और उनसे घृणा करता था जो परमेश्वर के लिए घृणास्पद थे; और वह उनसे प्रेम करता था जो अपने हृदय में परमेश्वर का भय मानते थे, और उनसे घृणा करता था जो परमेश्वर के विरुद्ध बुराई या पाप करते थे। ऐसा प्रेम और ऐसी घृणा उसके दैनिक जीवन में प्रदर्शित होती थी, और यह अय्यूब का वही खरापन था जिसे परमेश्वर की नज़रों से देखा गया था। स्वाभाविक रूप से, यह उसके दिन-प्रतिदिन के जीवन में दूसरों के साथ उसके रिश्तों में अय्यूब की सच्ची मानवता की अभिव्यक्ति और जीवन यापन भी है, जिसके बारे में हमें अवश्य सीखना चाहिए।

अय्यूब की परीक्षाओं के दौरान उसकी मानवता की अभिव्यंजनाएँ (अय्यूब की परीक्षाओं के दौरान उसकी पूर्णता, खरापन, परमेश्वर का भय, और बुराई से दूर रहने को समझना)

हमने ऊपर अय्यूब की मानवता के विभिन्न पहलू बताए हैं जो उसकी परीक्षाओं से पहले उसके दैनिक जीवन में दिखलाई दिए थे। बिना किसी संदेह के, ये विभिन्न अभिव्यंजनाएँ अय्यूब के खरेपन, परमेश्वर के भय, और बुराई से दूर रहने का आरंभिक परिचय और समझ प्रदान करती हैं, और स्वाभाविक रूप से आरंभिक अभिपुष्टि प्रदान करती हैं। मैं "आरंभिक" क्यों कहता हूँ इसका कारण यह है कि अधिकांश लोगों को अब भी अय्यूब के व्यक्तित्व की और जिस सीमा तक उसने परमेश्वर का आज्ञापालन करने और भय मानने के मार्ग का अनुसरण किया था उसकी सच्ची समझ नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि अय्यूब के बारे में अधिकांश लोगों की समझ उसके संबंध में उस किंचित अनुकूल धारणा से ज़रा भी गहरे नहीं जाती है जो बाइबल में उसके वचनों से युक्त दो अंशों द्वारा प्रदान की गई है, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" और "क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" इस प्रकार, हमें यह समझने की अत्यंत आवश्यकता है कि अय्यूब ने परमेश्वर की परीक्षाओं का स्वागत करते समय अपनी मानवता को कैसे जिया; इस तरह, अय्यूब की सच्ची मानवता उसकी संपूर्णता में सभी को दिखाई जाएगी।

जब अय्यूब ने सुना कि उसकी संपत्ति चुरा ली गई है, कि उसके पुत्र और पुत्रियों ने अपने प्राण गँवा दिए हैं, और उसके सेवकों को मार दिया गया है, तब उसने नीचे लिखे अनुसार प्रतिक्रिया की : "तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुँड़ाकर भूमि पर गिरा और दण्डवत् करके कहा" (अय्यूब 1:20)। ये वचन हमें एक तथ्य बताते हैं : यह समाचार सुनने के बाद, अय्यूब घबराया नहीं, वह रोया नहीं या उन सेवकों को दोषी नहीं ठहराया जिन्होंने उसे यह समाचार दिया था, और उसने विवरणों की जाँच और सत्यापन करने तथा यह पता लगाने के लिए कि वास्तव में क्या हुआ था अपराध के दृश्य का मुआयना तो और भी नहीं किया। उसने अपनी संपत्तियों के नुक़्सान पर किसी पीड़ा या खेद का प्रदर्शन नहीं किया, न ही वह अपने बच्चों और अपने प्रियजनों को खो बैठने के कारण फूट-फूटकर रोया। इसके विपरीत, उसने अपना बागा फाड़ा, और अपना सिर मुँडाया, और भूमि पर गिर गया, और आराधना की। अय्यूब के कार्यकलाप किसी भी सामान्य मनुष्य के कार्यकलापों से भिन्न हैं। वे बहुत-से लोगों को भ्रमित करते हैं, और वे उन्हें अय्यूब की "नृशंसता" के कारण अपने हृदय में उसे धिक्कारने को विवश करते हैं। अचानक अपनी संपत्तियाँ गँवा बैठने पर, साधारण लोग हृदय विदीर्ण या हताश दिखाई देते हैं—या, कुछ लोग तो गहरे अवसाद में भी जा सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोगों के हृदय में उनकी संपत्ति जीवन भर के प्रयास की द्योतक होती है—यह वह है जिस पर उनका जीवित रहना निर्भर होता है, यह वह आशा है जो उन्हें जीवित रखती है; अपनी संपत्ति गँवा देने का अर्थ है कि उनके प्रयास व्यर्थ रहे हैं, कि वे आशा रहित है, और यहाँ तक कि उनका कोई भविष्य भी नहीं है। किसी भी सामान्य व्यक्ति की अपनी संपत्ति और उसके साथ उनका जो निकट संबंध होता है उसके प्रति यही प्रवृत्ति होती है, और यही लोगों की नज़रों में संपत्ति का महत्व भी है। ऐसे में, लोगों की बड़ी बहुसंख्या अपनी संपत्ति गँवा बैठने के प्रति उसकी उदासीन प्रवृत्ति से भ्रमित महसूस करती है। आज, हम इन सभी लोगों का भ्रम दूर करने जा रहे हैं, यह बताकर कि अय्यूब के हृदय में क्या चल रहा था।

सामान्य समझ कहती है कि परमेश्वर द्वारा इतनी प्रचुर संपत्ति दिए जाने के बाद, अय्यूब को परमेश्वर के सामने शर्मिंदा महसूस करना चाहिए, क्योंकि उसने ये संपत्तियाँ गँवा दी थीं, क्योंकि उसने उनकी देखरेख नहीं की थी या उनका ख्याल नहीं रखा था; उसने परमेश्वर द्वारा उसे दी गई संपत्तियाँ सँभालकर नहीं रखी थीं। इस प्रकार, जब उसने सुना कि उसकी संपत्ति चुरा ली गई है, तब उसकी पहली प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए थी कि वह अपराध के दृश्य पर जाता और जो गँवा बैठा था उन सब सामानों की सूची बनाता, और फिर परमेश्वर के सामने जाकर स्वीकार करता ताकि वह एक बार फिर परमेश्वर के आशीष प्राप्त कर सके। परंतु अय्यूब ने ऐसा नहीं किया, और उसके पास स्वाभाविक ही ऐसा न करने के अपने कारण थे। अपने हृदय में, अय्यूब गहराई से मानता था कि उसके पास जो कुछ भी था वह सब परमेश्वर द्वारा उसे प्रदान किया गया था, और उसके अपने श्रम की उपज नहीं था। इस प्रकार, वह इन आशीषों को कोई ऐसी चीज़ के रूप में नहीं देखता था जिसका लाभ उठाया जाए, बल्कि इसके बजाय उसने अपने जीवित रहने के सिद्धांतों का सहारा लेकर उस मार्ग को अपनी पूरी शक्ति से थामे रखा जो उसे थामना ही चाहिए था। उसने परमेश्वर की आशीषों को सँजोकर रखा और उनके लिए धन्यवाद दिया, किंतु वह आशीषों से आसक्त नहीं था, न ही उसने और अधिक आशीषों की खोज की। ऐसी थी उसकी प्रवृत्ति संपत्ति के प्रति। उसने आशीष प्राप्त करने की ख़ातिर न तो कभी कुछ किया था, न ही वह परमेश्वर के आशीषों के अभाव या हानि से चिंतित या व्यथित था; वह परमेश्वर के आशीषों के कारण न तो ख़ुशी से पागल या उन्मत्त हुआ था, न ही उसने बारंबार आनंद लिए गए इन आशीषों के कारण परमेश्वर के मार्ग की उपेक्षा की या परमेश्वर का अनुग्रह विस्मृत किया था। अपनी संपत्ति के प्रति अय्यूब की प्रवृत्ति लोगों के समक्ष उसकी सच्ची मानवता को प्रकट करती है : सबसे पहले, अय्यूब लोभी मनुष्य नहीं था, और अपने भौतिक जीवन में संकोची था। दूसरे, अय्यूब को कभी यह चिंता या डर नहीं था कि परमेश्वर उसका सब कुछ ले लेगा, जो उसके हृदय में परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की उसकी प्रवृत्ति थी; अर्थात, उसकी कोई माँगें या शिकायतें नहीं थीं कि परमेश्वर उससे कब ले अथवा ले या नहीं, और उसने कारण नहीं पूछा कि क्यों ले, बल्कि परमेश्वर की व्यवस्थाओं का पालन भर करने की चेष्टा की। तीसरे, उसने कभी यह नहीं माना कि उसकी संपत्तियाँ उसकी अपनी मेहनत से आई थीं, बल्कि यह कि वे परमेश्वर द्वारा उसे प्रदान की गई थीं। यह परमेश्वर में अय्यूब की आस्था थी, और उसके दृढ़विश्वास का संकेत है। क्या अय्यूब की मानवता और उसका प्रतिदिन सच्चा अनुसरण उसके बारे में इस तीन-सूत्रीय सारांश में स्पष्ट कर दिया गया है? अय्यूब की मानवता और अनुसरण अपनी संपत्ति गँवा बैठने का सामना करते समय उसके शांत आचरण का अभिन्न भाग थे। यह निश्चित रूप से उसके प्रतिदिन के अनुसरण के कारण ही था कि परमेश्वर की परीक्षाओं के दौरान अय्यूब में यह कहने की कद-काठी और दृढ़विश्वास था, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।" ये वचन रातों-रात प्राप्त नहीं किए गए थे, न ही वे बस यूँ ही अय्यूब के दिमाग़ में प्रकट हुए थे। ये वे थे जो उसने कई साल जीवन का अनुभव करने के दौरान देखे और अर्जित किए थे। उन सब लोगों की तुलना में जो परमेश्वर के आशीषों की तलाश भर करते हैं, और जो डरते हैं कि परमेश्वर उनसे ले लेगा, और जो इससे नफ़रत करते और इसकी शिकायत करते हैं, क्या अय्यूब की आज्ञाकारिता एकदम वास्तविक नहीं है? उन सब लोगों की तुलना में जो मानते हैं कि परमेश्वर है, किंतु जिन्होंने कभी नहीं माना कि परमेश्वर सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है, क्या अय्यूब अत्यधिक ईमानदारी और खरेपन से युक्त नहीं है?

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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