ऐसा लिखा है, "अत: अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं ..." (रोमियों 8:1)। चूँकि हम मसीह यीशु को मानते हैं, तो पहले ही ये गारंटी दे दी गई है कि हम तिरस्कृत नहीं किए जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे।
उत्तर: तुम्हें लगता है जो यीशु मसीह में विश्वास करता है, वो तो पहले ही यीशु मसीह में है। ये इंसानी धारणा है। "जो मसीह यीशु में हैं" का मतलब प्रभु यीशु में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति नहीं है प्रभु यीशु में आस्था रखने वाले अधिकतर व्यक्ति परमेश्वर की प्रशंसा नहीं पा सकते, जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा है, "बहुत बुलाए जाते हैं, पर कुछ ही चुने जाते हैं।" जिन्हें परमेश्वर ने चुना नहीं है, उनमें से अधिकतर लोग केवल अस्थायी लाभ पाने के लिये परमेश्वर में आस्था रखते हैं; कुछ को न तो सत्य से प्रेम है और न ही वे सत्य पर अमल करते हैं; कुछ लोग तो परमेश्वर के विरोध के लिये दुष्टता भी करते हैं। ख़ासतौर से अधिकतर धार्मिक नेता, फरीसियों के मार्ग पर चलते हैं और वे सब मसीह विरोधी हैं। उनमें से कुछ तो खाली नाम के लिये परमेश्वर में विश्वास करते हैं; वे लोग नास्तिक हैं। तुम्हारा कहना है कि जो लोग प्रभु यीशु में विश्वास रखते हैं, वो पहले ही मसीह यीशु में हैं; इन वचनों का कोई मतलब नहीं है। "अत: अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं।..." इसका इशारा लोगों के किस समूह की ओर है? वे लोग जो परमेश्वर का आदेश मान सकें, सत्य पर अमल कर सकें और परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकें, यानी कि वो लोग जो सत्य का पालन करते हैं और जीवन प्राप्त करते हैं, जो मसीह की बात मान सकते हैं, परमेश्वर का विरोध करने के लिये बुरे कामों से दूर रह सकते हैं और जो पूरी तरह से मसीह के अनुकूल हैं। ऐसे लोग मसीह में हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जो लोग प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं, वे मसीह यीशु में हैं। कुछ विश्वासी ऐसे भी हैं जिनकी आस्था को परमेश्वर की मंज़ूरी नहीं मिली है। मिसाल के तौर पर, प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ" (मत्ती 7:22-23)। क्या तुम कह सकते हो कि जिनका यहां उल्लेख है, जिन्होंने भविष्यवाणी की, शैतान को दर-किनार किया, और प्रभु के नाम पर अनेक अद्भुत कार्य किये, सब मसीह में हैं? क्या ये वो लोग नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर ने तिरस्कृत कर दिया था? इसलिये, "यीशु में आस्था" और "मसीह में होना" दो अलग बातें हैं। जिनकी आस्था तो प्रभु में है लेकिन जो उसकी प्रशंसा नहीं पा सकते, मसीह में नहीं हैं, क्योंकि परमेश्वर का उद्धार का कार्य उस ढंग से आगे नहीं बढ़ता, जिस ढंग से लोग सोचते हैं। जैसे ये सोचना कि परमेश्वर में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को बचाया जा सकता है। उनमें से कइयों का सफाया हो जाएगा, ख़ासतौर से उनका जो सत्य का ज्ञान पाने के बाद भी जानबूझकर पाप करते हैं। इन पापों में, भेंटें चुराना, परमेश्वर को नकारना, परमेश्वर को धोखा देना, सच्चाई पर अमल न करना, डरपोक होना या व्यभिचारी होना शामिल है। परमेश्वर ऐसे लोगों को अभी भी निंदित करेंगे और त्याग देंगे। जो लोग भयंकर बुराइयां करते हैं, उन्हें सज़ा मिलेगी। जैसा कि इब्रानियों 10:26: में कहा गया है: "क्योंकि सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं" (इब्रानियों 10:26)। इसलिये, प्रभु में विश्वास रखने वाला हर व्यक्ति मसीह में नहीं है। सत्य को प्यार करने वाले आस्थवान ही सत्य का अनुसरण कर सकते हैं, और इस तरह मसीह की आज्ञा का पालन करते हैं और वास्तव में मसीह को जानते हैं, मसीह को लेकर उनकी कोई धारणा नहीं है और उनसे विद्रोह या उनका विरोध नहीं करते हैं, मसीह के दिल को अपना दिल समझते हैं और परमेश्वर की इच्छा को पूरा कर सकते हैं वही लोग मसीह में हैं। वही लोग परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त करेंगे और उनके राज्य में प्रवेश करेंगे।
"मर्मभेदी यादें" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?