धार्मिक दुनिया के अधिकांश लोग मानते हैं कि पादरियों और प्राचीन लोगों को परमेश्वर के द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया है, और यह कि वे सभी धार्मिक कलीसियाओं में परमेश्वर की सेवा करते हैं; अगर हम पादरियों और प्राचीन लोगों का अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं, तो हम वास्तव में परमेश्वर का ही अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं। यथार्थतः मनुष्य का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या मतलब है, और वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या अर्थ है, ज्यादातर लोग सत्य के इस पहलू को नहीं समझते हैं, तो कृपया हमारे लिए यह सहभागिता करो।

12 मार्च, 2021

उत्तर: धर्म में, कुछ लोग सोचते हैं कि सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा चुने और प्रतिष्ठित किये जाते है। इसलिए लोगों को उनका आज्ञापालन करना चाहिए। क्या इस तरह की धारणा का बाइबल में कोई आधार है? क्या प्रभु के वचन में इसका कोई प्रमाण है? क्या इसमें पवित्र आत्मा की गवाही और पवित्र आत्मा के कार्य की स्वीकृति है? अगर सारे जवाब "नहीं" हैं, तो क्या बहुमत का यह विश्वास कि सभी पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा चुने और प्रतिष्ठित किए जाते हैं, लोगों की अवधारणाओं और कल्पनाओं से नहीं आया है? आइए इस बारे में विचार करें। व्यवस्था के युग में मूसा को परमेश्‍वर द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया था। क्या इसका यह मतलब है कि व्यवस्था के युग में सभी यहूदी नेताओं को परमेश्‍वर द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया था? अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु के 12 प्रेरितों को स्वयं प्रभु यीशु द्वारा चुना और अभिषिक्त किया गया था। क्या इसका यह मतलब है कि अनुग्रह के युग में सभी पादरियों और एल्डर्स को स्वयं परमेश्‍वर द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया था? बहुत से लोग निर्धारित नियमों का पालन करना पसंद करते हैं और तथ्यों के अनुसार चीजों को नहीं देखते हैं। फलस्वरूप, वे लोगों की आँखें बंद करके पूजा करते हैं और उनका अनुसरण करते हैं। यहाँ क्या समस्या है? क्यों लोग इन चीज़ों के बीच फर्क नहीं कर पाते हैं? वे इन चीज़ों का सच क्यों नहीं ढूँढ सकते हैं?

बाइबल में जो लिखा है उससे हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर कार्य के हर युग में, अपने कार्य के साथ समन्वय करने के लिए, कुछ लोगों को चुनते और अभिषिक्त करते हैं। और स्‍वयं परमेश्‍वर द्वारा नियुक्‍त किए गए लोग उनके वचन के द्वारा स्‍वीकृत होते हैं। अगर वे उनके वचन के द्वारा स्‍वीकृत न भी हों तो भी वहां कम से कम पवित्र आत्‍मा के कार्य की स्‍वीकृति होती है। जैसे कि व्यवस्था के युग के दौरान, परमेश्‍वर ने इस्‍त्राएलियो का नेतृत्व करने के लिए मूसा को अभिषिक्त किया। यह परमेश्‍वर के वचनों से साबित होता है। परमेश्‍वर यहोवा ने कहा, "इसलिये अब सुन, इस्राएलियों की चिल्‍लाहट मुझे सुनाई पड़ी है, और मिस्रियों का उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है। इसलिये आ, मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूँ कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए" (निर्गमन 3:9-10)। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने 12 प्रेरितों को कलीसियाओं का नेतृत्‍व करने के लिए अभिषिक्त किया।. ऐसा परमेश्‍वर के वचन से भी प्रमाणित हुआ है, जैसा कि प्रभु यीशु ने पतरस को अभिषिक्त करते समय कहा: "हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?" "मेरी भेड़ों को चरा" (यूहन्ना 21:17)। "मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा" (मत्ती 16:19)। हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर द्वारा नियुक्‍त किए और उपयोग में लाए गए लोग परमेश्‍वर के वचन द्वारा स्‍वीकृत किए जाते हैं, भले ही प्रमाण के रूप में परमेश्‍वर के कोई वचन न हो, कम से कम पवित्र आत्‍मा के कार्य की स्‍वीकृति तो होनी चाहिए। उनके सब कार्यों का परमेश्‍वर समर्थन करते हैं। उनके कार्य और नेतृत्व का आज्ञापालन करना परमेश्‍वर की आज्ञापालन करना है। हममें से जो कोई भी परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयुक्त व्यक्ति का विरोध करता है, वह परमेश्‍वर का विरोध कर रहा है और परमेश्‍वर द्वारा श्रापित और दण्डित किया जाएगा। ठीक जैसे कि व्यवस्था के युग में, कोरह, दातान और उनके लोगों ने मूसा का विरोध किया था। अंत में क्या हुआ? वे सीधे परमेश्‍वर द्वारा दण्डित किये गए थे। परमेश्‍वर ने धरती को खुलने और उन्हें निगल जाने के लिए प्रेरित किया। हर कोई जानता है कि यह एक सच्चाई है। व्यवस्था के युग में, प्रभु यीशु द्वारा अभिषिक्त सभी प्रेरितों को प्रभु के वचन की स्वीकृति है। परन्तु क्या आज के धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा अभिषिक्त हैं? क्या यह प्रभु के वचन द्वारा प्रमाणित है? उनमें से ज्यादातर धर्मशास्त्र के विद्यालयों द्वारा पैदा किये गए हैं, और उनके पास धर्मशास्त्र में स्नातक प्रमाणपत्र हैं, जिन पर वे पादरी बनने के लिए भरोसा करते हैं, इसलिए नहीं क्योंकि पवित्र आत्मा ने व्यक्तिगत रूप से उनकी गवाही दी या उनका उपयोग किया। क्या यह एक सच्चाई नहीं है? हममें से किसने पवित्र आत्‍मा को निजी रूप से किसी पादरी की गवाही देते या उसे अभिषिक्‍त करते देखा है? ऐसा कभी नहीं होता है। अगर वे वास्तव में प्रभु द्वारा अभिषिक्त किए जाते हैं, तो उनके पास निश्चित रूप से पवित्र आत्मा की सच्ची गवाही और गवाह के रूप में कई विश्वासी होंगे। इसलिए, सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु के द्वारा अभिषिक्त नहीं हैं। यह निश्चित है! मैंने सुना है कि ऐसे भी पादरी हैं जो नहीं मानते हैं की प्रभु यीशु पवित्र आत्मा द्वारा गर्भाधान से आये। उन्हें नहीं लगता है कि "पवित्र आत्मा द्वारा गर्भाधान" का कोई आधार है या ये विज्ञान के अनुरूप है। इसकी संभावना और भी कम है कि ये लोग मान लें कि मसीह परमेश्‍वर की अभिव्यक्ति हैं। अगर ऐसे पादरी उस दौरान होते, जिस समय प्रभु यीशु ने काम किया था, तो उन्होंने निश्चित रूप से प्रभु यीशु को स्वीकार नहीं किया होता। तो उन्होंने अंतिम दिनों के अवतरित परमेश्‍वर के प्रकटन और काम के साथ किस प्रकार से व्यवहार किया होता? वे सब यहूदी मुख्य पादरियों, लेखकों और फरीसियों जैसे होता, प्रभु यीशु को गुस्से से धिक्कार रहे होते और उनका विरोध कर रहे होते। तो क्या ऐसे पादरी और एल्डर्स वे लोग हैं जो सचमुच परमेश्‍वर की आज्ञापालन करते हैं? ये यहाँ तक कि देहधारी परमेश्‍वर में भी विश्वास नहीं करते हैं, और ऊपर से देहधारी परमेश्‍वर द्वारा अभिव्यक्त सत्य को भी स्वीकार नहीं करते हैं। क्या ये लोग यीशु विरोधी नहीं हैं? तो क्या यह मत कि "सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जाते हैं" अभी भी मान्य है? अगर हम ज़ोर देते हैं कि ये पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जाते हैं, तो क्या यह परमेश्‍वर की बदनामी और ईशनिंदा नहीं है? क्या परमेश्‍वर ऐसे नास्तिकों और यीशु विरोधियों को परमेश्‍वर के चुने लोगों का नेतृत्व करने के लिए अभिषिक्त और उपयोग करेंगे? क्या ऐसा दृष्टिकोण बहुत ही विवेकहीन, बहुत ही भ्रामक नहीं है? क्या ये तथ्यों को मरोड़ना और सही और गलत को उलझाना नहीं है?

कुछ संवाद के बाद अब हमें सारी बातें स्पष्ट हैं। परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयुक्त सभी लोगों की परमेश्‍वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से गवाही दी जाती है, और उनके पास कम से कम पवित्र आत्मा के कार्य की स्वीकृति और उसके प्रभाव होते हैं, और वे, जीवन आपूर्ति और सच्चा मार्गदर्शन पाने में, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की सहायता कर सकते हैं। क्योंकि परमेश्‍वर धर्मी हैं, पवित्र हैं, परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयोग किये गए सभी लोग निश्चित रूप से परमेश्‍वर की इच्छा के अनुकूल हैं। वे निश्चय ही पाखंडी फरीसी नहीं होंगे, और इसके अलावा सत्य-से नफरत-करने-वाले, परमेश्‍वर और यीशु विरोधी भी नहीं होंगे। तो आइये आज के धार्मिक पादरियों और एल्डर्स पर एक नजर डालते हैं। उनमें से ज्यादातर धर्मशास्त्र के विद्यालयों द्वारा पैदा किये जाते हैं, ना कि परमेश्‍वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से अभिषिक्त और प्रयोग किये जाते हैं। वे मात्र धर्मशास्त्र और बाइबल का अध्ययन करते हैं। उनके कार्य और प्रवचन केवल बाइबल के ज्ञान, सिद्धांत, या बाइबल के पात्रों और कहानियों, ऐतिहासिक पृष्ठभूमियों, इत्यादि के बारे में बात करने तक केन्द्रित होते हैं। वे जो अभ्यास करते हैं वह भी सिर्फ लोगों को धार्मिक रस्मों का अभ्यास करना और नियमों का पालन करना सिखाना है। वे परमेश्‍वर के वचन के सत्य के बारे में संवाद करने की ओर कभी ध्यान नहीं देते हैं, ना ही वे परमेश्‍वर के वचन का अभ्यास और अनुभव करने या परमेश्‍वर की आज्ञा पालन करने के लिए लोगों का नेतृत्व करते हैं। वे कभी भी चर्चा नहीं करते हैं कि किस प्रकार से स्वयं को और जीवन में प्रवेश के सच्चे अनुभवों को जाने, और इसके अलावा परमेश्‍वर के सच्चे ज्ञान के बारे में कभी भी चर्चा नही करते हैं। क्या ऐसे कार्य और उपदेश पवित्र आत्मा के कार्य को पा सकते हैं? क्या ऐसी सेवा परमेश्‍वर के इरादों को संतुष्ट कर सकती है? क्या यह हमें सच्चाई का अभ्यास करने और परमेश्‍वर में विश्वास के सही मार्ग की ओर ले जा सकता है? बाइबल को इस तरह समझा कर, क्या वे अपने ही मार्ग पर नहीं जा रहे और परमेश्‍वर का विरोध नहीं कर रहे? विशेष रूप से जब सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर सत्य को व्यक्त कर रहे हों, और अंतिम दिनों का अपना न्याय का कार्य कर रहे हों, तब ये धार्मिक अग्रणी स्पष्ट रूप से जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन सब सत्य हैं और लोगों को शुद्ध कर सकते हैं, उन्हें बचा सकते हैं, लेकिन तब भी वे न तो ढूँढ़ते हैं और न स्वीकार करते हैं। इससे भी ज़्यादा घृणास्पद यह है कि वे विश्वासियों को सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने या परमेश्‍वर की आवाज़ को सुनने नहीं देते हैं। अपने पद और जीविका को बचाने के लिए, वे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की बदनामी और निंदा करते हैं, यहाँ तक कि ईसाई मत प्रचारकों को गिरफ्तार करने और उनके ऊपर अत्याचार करने के लिए शैतानी प्रशासन, CCP के साथ समन्वय कर रहे हैं। इन पादरियों और एल्डर्स के कार्य और आचरण किस प्रकार उन फरीसियों से अलग हैं जिन्होंने प्रभु यीशु का पुराने दिनों में विरोध किया था? क्या ये सच्चाई का मार्ग अपनाने में हम लोगों के लिए बाधा नहीं हैं? ऐसे सत्‍य से नफरत करने वाले, परमेश्‍वर विरोधी लोग कैसे परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जा सकते हैं? क्या परमेश्‍वर ऐसे सत्‍य से नफरत करने वाले लोगों को, जो कि परमेश्‍वर की इच्छा में बाधा डालते हैं, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों का नेतृत्व करने के लिए अभिषिक्त करेंगे? बेशक नहीं। यही सत्य है!

धार्मिक मंडलियों में कुछ विवेकहीन लोग अक्सर नियमों को गढ़ने के लिए बाइबल के शब्दों का दुरुपयोग करते हैं। उनका दावा है कि पाखंडी फरीसी और धार्मिक पादरी सभी परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जाते हैं। क्या यह गंभीर रूप से परमेश्वर का विरोध और निंदा करना नहीं है? बहुत से लोग यह भेद करना जानते ही नहीं हैं। वे प्रभु पर विश्वास करते हैं किन्तु उनकी स्तुति नहीं करते, बल्कि उपहार, हैसियत और शक्ति की वकालत करते हैं, और पादरियों और एल्डर्स में भी अन्धवत विश्वास करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। वे भेद नहीं कर सकते हैं कि क्या किसी में पवित्र आत्मा का कार्य है और सत्य की वास्तविकता है। वे केवल सोचते हैं जब तक किसी के पास एक पादरी का प्रमाणपत्र और उपहार होते हैं और वे बाइबल का विश्लेषण कर सकते हैं, तो इसका मतलब है कि वे परमेश्वर द्वारा अनुमोदित और अभिषिक्त किये गए हैं, और उनका पालन करना चाहिए। कुछ लोग और भी विवेकहीन हैं और सोचते हैं कि पादरियों और एल्डर्स का आज्ञापालन करना परमेश्वर का आज्ञापालन करना है, और पादरियों और एल्डर्स का विरोध करना, परमेश्वर का विरोध करना है। अगर हम इस तरह के विचारों के अनुसार जीते हैं, तो यहूदियों के मुख्य पुजारी, शास्त्री और फरीसी जो सभी बाइबल से परिचित थे और अक्सर दूसरों को बाइबल समझाते थे, किन्तु प्रभु यीशु के प्रकट होने और कार्य करने पर उनका विरोध किया और निंदा की, और यहां तक कि उन्हें सूली पर भी चढ़ाया, क्या वे लोग परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयोग किए गए थे? यदि कोई प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करने में यहूदी अगुआओं का पालन करता था, क्या इसका मतलब यह है कि वो परमेश्वर का पालन कर रहा था? क्या आप लोग ये कहेंगे कि वे लोग, जिन्होंने यहूदी अगुआओं को अस्वीकार कर दिया और प्रभु यीशु का अनुसरण किया, परमेश्‍वर का विरोध कर रहे थे? इससे दिखता है कि यह राय कि "पादरियों और एल्डर्स का पालन करना परमेश्वर का पालन करना है, पादरियों और एल्डर्स का विरोध करना परमेश्वर का विरोध करना है" वास्तव में बहुत विवेकहीन और भ्रामक है! हम परमेश्वर के विश्वासियों को स्पष्ट होना चाहिए कि अगर धार्मिक पादरी और एल्डर्स परमेश्‍वर का विरोध करते हैं, और जिस मार्ग का वे नेतृत्व करते हैं वो सत्य को धोखा देता है और परमेश्वर का विरोध करता है, तो हमें परमेश्वर के पक्ष में खड़े होना चाहिए, उनका पर्दाफाश करना चाहिए और उन्हें अस्वीकार करना चाहिए। यह परमेश्‍वर के प्रति सच्ची आज्ञाकारिता है। वह प्रकाश के लिए अंधेरे को त्यागने और परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट करना है इसलिए, जब पादरियों और एल्डर्स से निपटने की बात आती है, हमें सत्य का पीछा करना चाहिए और परमेश्वर के इरादों को समझना चाहिए। अगर पादरी और एल्डर्स ऐसे लोग हैं जो सत्य से प्यार करते हैं और सत्य का पीछा करते हैं, तो उनके पास निश्चित रूप से पवित्र आत्मा का कार्य होगा और परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने, परमेश्वर का भय मानने, और बुराई से दूर रहने के लिए हमारा नेतृत्व करने में वे सक्षम होंगे। ऐसे लोगों का सम्मान करना और उनका अनुसरण करना परमेश्वर के प्रयोजन से सामंजस्य रखता है! अगर वे सत्य से प्यार नहीं करते हैं और हमसे अपनी पूजा और अनुसरण करवाने के लिए, दिखावा करने और अपनी बड़ाई करवाने के लिए अपने बाइबल ज्ञान और धार्मिक सिद्धांतों को समझाते हैं, परमेश्‍वर का गुणगान नहीं करते, परमेश्‍वर की गवाही नहीं देते, और परमेश्‍वर के वचनों का अभ्‍यास और अनुभव करने में हमारा नेतृत्‍व नहीं करते, तो वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्‍वर ने निन्दित और शापित किया है और हम परमेश्वर का विरोध करेंगे अगर हम अभी भी उनकी पूजा करते हैं, उनका अनुसरण करते हैं और उनका आज्ञापालन करते हैं। यह पूरी तरह से परमेश्वर के प्रयोजनों के खिलाफ होगा।

— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत

वास्तव में परमेश्वर का आज्ञापालन और अनुसरण करना क्या है? सत्य के इस पहलू के संबंध में, आइए हम सबसे पहले सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के एक अंश को पढ़ें: "परमेश्वर का अनुसरण करने में प्रमुख महत्व इस बात का है कि हर चीज़ आज परमेश्वर के वचनों के अनुसार होनी चाहिए: चाहे तुम जीवन प्रवेश का अनुसरण कर रहे हो या परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति, सब कुछ आज परमेश्वर के वचनों के आसपास ही केंद्रित होना चाहिए। यदि जो तुम संवाद और अनुसरण करते हो, वह आज परमेश्वर के वचनों के आसपास केंद्रित नहीं है, तो तुम परमेश्वर के वचनों के लिए एक अजनबी हो और पवित्र आत्मा के कार्य से पूरी तरह से परे हो। परमेश्वर ऐसे लोग चाहता है जो उसके पदचिह्नों का अनुसरण करें। भले ही जो तुमने पहले समझा था वह कितना ही अद्भुत और शुद्ध क्यों न हो, परमेश्वर उसे नहीं चाहता और यदि तुम ऐसी चीजों को दूर नहीं कर सकते, तो वो भविष्य में तुम्हारे प्रवेश के लिए एक भयंकर बाधा होंगी। वो सभी धन्य हैं, जो पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करने में सक्षम हैं। पिछले युगों के लोग भी परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलते थे, फिर भी वो आज तक इसका अनुसरण नहीं कर सके; यह आखिरी दिनों के लोगों के लिए आशीर्वाद है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण कर सकते हैं और जो परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में सक्षम हैं, इस तरह कि चाहे परमेश्वर उन्हें जहाँभी ले जाए वो उसका अनुसरण करते हैं—ये वो लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है और चाहे वो कितना भी काम करें या उनकी पीड़ा जितनी भी ज़्यादा हो या वो कितनी ही भागदौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। ... 'पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण' करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन करने में सक्षम होना और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल यही ऐसा है, जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा के प्रवाहमें है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने में सक्षम हैं बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं और परमेश्वर के नवीनतम कार्य से मनुष्य की अवधारणाओं और अवज्ञा को, मनुष्य की प्रकृति और सार को जान सकते हैं; इसके अलावा, वो अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं, जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं और जो सचमुच में सच्चा मार्ग पा चुके हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। परमेश्वर का अनुसरण करना मुख्य रूप से परमेश्वर के वर्तमान कार्यों का अनुसरण करने, परमेश्वर के वर्तमान वचनों के प्रति समर्पण करने और उनका अभ्यास करने, परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने में सक्षम होने, सभी मामलों में परमेश्वर की इच्छा को खोजने, परमेश्वर के वचन के अनुसार अभ्यास करने, और पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन के प्रति पूरी तरह से समर्पण करने का संकेत करता है। अंततः, यह ऐसा व्यक्ति बनने का संकेत करता है जो सच्चाई का अभ्यास करता है और परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करता है। केवल इस तरह का व्यक्ति ही परमेश्वर का अनुयायी होता है, ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर से उद्धार प्राप्त करता है। यदि अपने विश्वास में हम बाह्य रूप से बाइबल पर भरोसा करते हैं और उसका उत्कर्ष करते हैं जबकि वास्तविकता में हमारा अभ्यास और अनुभव बाइबल में परमेश्वर के वचन के प्रति समर्पण करने और उनका अभ्यास करने के बजाय बाइबल में मनुष्यों के शब्दों और शिक्षाओं के अनुसार है, यदि हम परमेश्वर के इरादों को नहीं समझते हैं और मात्र धार्मिक रस्मों और नियमों के मुताबिक चलते हैं, तो यह मनुष्य का अनुसरण करना है। यदि हम बाइबल में से लोगों के शब्दों का पालन और अभ्यास करते हैं मानो कि वे परमेश्वर के वचन हों, मगर प्रभु यीशु के वचनों की उपेक्षा करते हुए और उसकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए कुछ भी नहीं करते हुए, उसे मात्र एक कल्पित-प्रमुख मानते हैं, तो हम निश्चित रूप से प्रभु यीशु द्वारा ठीक उसी तरह से ठुकाराएँ जाएँगे और शापित होंगे जैसे पाखंडी फरीसी हुए थे। ऐसे कई लोग हैं जो प्रभु में आस्था रखते हैं, फिर भी अंधों की तरह आध्यात्मिक हस्तियों या पादरियों और एल्डरों की आराधना करते हैं—वे पाखंडी फरीसियों का आदर करते हैं। उन पर कुछ भी बीतती है तो वे लोग मार्गदर्शन पाने के लिए पादरियों और एल्डरों के पास दौड़ते हैं और जब सच्चे मार्ग की खोज करने की बात आती है तब भी वे ऐसा ही करते हैं। परिणामस्वरूप, पाखंडी फरीसियों और धार्मिक अगुवाओं द्वारा उन्हें धोखा दिया जाता है और वे परमेश्वर का विरोध करने के मार्ग पर चलना शुरू कर देते हैं—परमेश्वर के बजाय मनुष्य का अनुसरण करने के ये परिणाम और अंत हैं। परमेश्वर का वास्तव में अनुसरण करने का एकमात्र तरीका है अपनी आस्था को पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने पर आधारित करना, परमेश्वर के वर्तमान वचनों का अनुसरण करना, पवित्र आत्मा के कार्य के चरणों का अनुसरण करना, और अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अपना अधिकतम समर्पित करना। विशेष रूप से जब अंत के दिनों में परमेश्वर न्याय का अपना कार्य करता है, तो धार्मिक दुनिया पवित्र आत्मा के कार्य को गँवाकर उजाड़ हो चुकी होती है। जब हम सच्चे रास्ते की तलाश करने के लिए मजबूर होते हैं, तो हमें कलीसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचनों की तलाश करने की ओर और भी अधिक ध्यान अवश्य देना चाहिए; हमें परमेश्वर के वचनों और कथनों और पवित्र आत्मा के कार्य की खोज अवश्य करनी चाहिए। यदि हम पवित्र आत्मा के वचनों और कार्य की तलाश नहीं करते हैं, यदि हम परमेश्वर की वाणी को सुनने में असमर्थ हैं, यदि हम परमेश्वर के वर्तमान वचनों के पोषण को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, तो हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के दौरान हटा दिए जाएँगे, एक ओर कर दिए जाएँगे, अंधकार में लुढ़केंगे, रोएँगे और अपने दाँतों को पीसेंगे। जो लोग वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और उसके प्रति समर्पण करते हैं, उन्हें परमेश्वर के द्वारा कभी नहीं छोड़ा जाएगा। जो लोग धार्मिक पादरियों और एल्डरों की आराधना करते हैं वे मनुष्य के प्रति समर्पण कर रहे हैं और मनुष्य के अनुयायी हैं। इन लोगों को अंततः परमेश्वर के कार्य के द्वारा उजागर कर दिया जाएगा—उन्हें निकाल दिया जाएगा तथा एक ओर कर दिया जाएगा।

भले ही हम अपने मुँह से चीखते हैं कि हम परमेश्वर में विश्वास करते हैं, हमें केवल परमेश्वर का ही अनुसरण करना चाहिए और उसके प्रति समर्पण करना चाहिए, लेकिन वास्तविकता वैसी नहीं होती। हम इसे इस तरह से स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि अनुग्रह के युग में जैसा पतरस और यूहन्ना तथा अन्य लोगों ने व्यवहार किया था उसके विपरीत यहूदी आस्था वालों ने प्रभु यीशु के साथ व्यवहार किया। प्रभु यीशु ने अपना नया कार्य किया, सत्य का प्रसार किया, और वह पश्चाताप का मार्ग लाया, किन्तु उस समय के अधिकांश यहूदी लोग केवल मुख्य याजकों और फरीसियों की शिक्षाओं को सुनते थे। उन्होंने प्रभु यीशु के कार्य और वचनों को स्वीकार नहीं किया, और परिणामस्वरूप उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा उद्धार को गँवा दिया। वे नाममात्र के लिए, परमेश्वर में विश्वास करते थे, किन्तु वास्तविकता में वे मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों पर विश्वास करते थे। हालाँकि, पतरस, यूहन्ना, मत्ती, फिलिप्पुस, और अन्य लोगों ने देखा कि प्रभु यीशु के वचनों और कार्यों में अधिकार और सामर्थ्य है, और वे सत्य हैं। उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु के वचन और कार्य परमेश्वर से आए हैं और इसलिए उन्होंने उसका करीब से अनुसरण किया। वे फरीसियों के नियंत्रण के अधीन बिल्कुल भी नहीं थे और उन्होंने ही सच में परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन किया था। अंत के दिनों में, परमेश्वर का सच में अनुसरण करने और उसके प्रति समर्पण करने का एकमात्र तरीका सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करना और उसके प्रति समर्पण करना है, और यह उस भविष्यवाणी को पूरा करता है जो प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में दी गई है: "ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)। वर्तमान में, बाइबल में मनुष्य के शब्दों का उत्कर्ष करने का हर संभव प्रयास करते हुए धार्मिक दुनिया में अगुआ, यहूदी फरीसियों की भूमिका निभा रहे हैं, मगर वे प्रभु यीशु के वचनों के साथ विश्वासघात करते हैं। और भी अधिक बेतुकी बात यह है कि, अंत के दिनों में जो कार्य परमेश्वर करता है उसकी निंदा करने के लिए वे संदर्भ से बाहर छंद का हवाला देकर बाइबल का इस्तेमाल करते हैं—वे विश्वासियों को धोखा देने, बंधन में डालने और नियंत्रित करने के लिए ऐसा करते हैं। उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा था कि केवल "वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21) स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा। फिर भी धार्मिक दुनिया के अगुवाओं के बीच कहते हैं कि सभी को अपने विश्वास में जो करने की आवश्यकता है वह है कड़ी मेहनत करना और फिर वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है, और यह कि स्वर्ग का राज्य कुछ ऐसा है जिस पर बल द्वारा जब्त किया जा सकता है। प्रभु यीशु हमसे अपेक्षा करता था कि: "तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर" (मत्ती 4:10), मगर कुछ तथाकथित आध्यात्मिक हस्तियाँ विश्वासियों की इस बारे में अगुआई करती हैं कि कैसे परमेश्वर बनें या राजा बनने की खोज करें और सभी देशों और लोगों के ऊपर सामर्थ्य का उपयोग करें, जो पूरी तरह से उपहासपूर्ण है। धार्मिक दुनिया के अगुवा प्रभु के लिए नाममात्र के लिए कार्य करते हैं और धर्मोपदेशों के प्रवचन देते हैं, लेकिन वास्तविकता में वे केवल मनुष्य की शिक्षाओं का प्रसार कर रहे हैं, सच्चाई के रूप में अपने विचारों का प्रचार कर रहे हैं ताकि हम उनका अनुपालन करें। वे ठीक वैसे ही हैं जैसे पाखंडी फरीसी और उस अंधे की तरह हैं जो मार्ग की अगुआई करने का प्रयास कर रहा हों। वे मसीह का विरोध कर रहे हैं, समान स्तर पर उसका विरोध करने का प्रयास कर रहे हैं; वे मसीह-विरोधी हैं जो पृथक, स्वतंत्र राज्यों को बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं। एक बार जब हम विश्वासी धार्मिक दुनिया के अगुवाओं और मशहूर हस्तियों का अनुसरण करना शुरू कर देते हैं, तो हम अपने रास्ते पर चलना और प्रभु के मार्ग से भटकना शुरू कर देते हैं; यह परमेश्वर का विरोध करने और उसके साथ विश्वासघात करने का एक बहुत गंभीर उदाहरण है। यदि हम पश्चाताप नहीं करते हैं, तो हम परमेश्वर द्वारा निश्चित रूप से अलग कर दिए जाएँगे और हटा दिए जाएँगे।

— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत

पिछला: बाइबल में, पौलुस ने कहा था,"हर एक व्यक्‍ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे, क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं जो परमेश्‍वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं" (रोमियों 13:1)। "इसलिये अपनी और पूरे झुण्ड की चौकसी करो जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है, कि तुम परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली करो" (प्रेरितों 20:28)। धार्मिक दुनिया में अधिकांश लोग अपने विश्वास में पौलुस के इन शब्दों को मानते हैं कि पादरियों और एल्डर्स को परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया जाता है, और वे कलीसियाओं में प्रभु की सेवा करते हैं। उनका मानना है कि जो लोग पादरियों और एल्डर्स की बात सुनते हैं और उनका अनुपालन करते हैं, वे प्रभु का अनुपालन और अनुसरण करते हैं, और पादरियों के शब्दों को सुनना प्रभु के वचनों को सुनना है। क्या यह प्रभु की इच्छा के अनुरूप है?

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