पवित्र आत्मा के कार्य और बुरी आत्माओं के कार्य में क्या मुख्य अंतर है?

10 मार्च, 2021

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

तुम्हें यह समझना चाहिए कि वह क्या है, जो परमेश्वर से आता है और वह क्या है, जो शैतान से आता है। जो परमेश्वर से आता है, वह तुम लोगों को और ज्यादा स्पष्टता के साथ एक दूरदृष्टि देता है और तुम्हें ईश्वर के और ज्यादा निकट लाता है; तुम अपने भाइयों और बहनों के साथ सच्चा प्यार साझा करते हो, तुम परमेश्वर के दायित्व-भार को लेकर ज्यादा विचारशीलता दिखा पाते हो, और तुम्हारे पास एक परमेश्वर-प्रेमी दिल होता है, जो कभी भी मिटता नहीं है। तुम्हारे सामने चलने के लिए एक रास्ता होता है। जो कुछ शैतान से आता है, वह तुम्हारी दूरदृष्टि को खत्म कर देता है, और तुम वह सब खो बैठते हो जो तुम्हारे पास होता है; तुम परमेश्वर से विमुख हो जाते हो, तुम्हें अपने भाइयों और बहनों से भी प्यार नहीं रहता, और तुम्हारा दिल घृणा से भर जाता है। तुम बेवश हो जाते हो, तुम अब कलीसियाई जीवन को और नहीं जीना चाहते, और तुम्हारा दिल भी अब परमेश्वर-प्रेमी नहीं रहता। यह शैतान का काम होता है, और यह दुष्ट आत्माओं के काम का परिणाम होता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 22

पवित्र आत्मा का कार्य सकारात्मक उन्नति है, जबकि शैतान का कार्य है पीछे हटना, नकारात्मकता, विद्रोह, परमेश्वर के के प्रति प्रतिरोध, परमेश्वर में विश्वास की कमी, भजनों को गाने तक की अनिच्छा और अपना कर्तव्य निभाने में बहुत कमज़ोर होना। वह सब कुछ जो पवित्र आत्मा के प्रबोधन से उपजता है, वह काफ़ी स्वाभाविक होता है; यह तुम पर थोपा नहीं जाता। यदि तुम इसका अनुसरण करते हो, तो तुम्हें शांति मिलेगी; और यदि तुम ऐसा नहीं करते, फिर बाद में तुम्हें फटकारा जाएगा। पवित्र आत्मा के प्रबोधन के बाद तुम जो भी करते हो, उसमें कोई हस्तक्षेप या रोक नहीं होगी; तुम स्वतंत्र होगे, तुम्हारे कार्यों में अभ्यास का एक मार्ग होगा और तुम किन्हीं अंकुशों के अधीन नहीं होगे बल्कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करने के योग्य होगे। शैतान का कार्य तुमसे बहुत-सी बातों में व्यवधान पैदा कराता है; यह तुम्हें प्रार्थना करने से विमुख करता है, परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने में बहुत आलसी बनाता है, कलीसिया का जीवन जीने से विमुख करता है, और यह आध्यात्मिक जीवन से दूर कर देता है। पवित्र आत्मा का कार्य तुम्हारे दैनिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता और तुम्हारे सामान्य आध्यात्मिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य

पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय मार्गदर्शन और सकारात्मक प्रबोधन है। यह लोगों को निष्क्रिय नहीं बनने देता। यह उनको सांत्वना देता है, उन्हें विश्वास और संकल्प देता है और परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने का अनुसरण करने योग्य बनाता है। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग सक्रिय रूप से प्रवेश कर पाते हैं; वो निष्क्रिय या बाध्य नहीं होते, बल्कि अपनी पहल पर काम करते हैं। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग प्रसन्न और सहर्ष प्रस्तुत होते हैं, आज्ञा मानने को तैयार होते हैं और स्वयं को विनम्र रखने में प्रसन्न होते हैं। यद्यपि वे भीतर से दुखी और दुर्बल होते हैं, उनमें सहयोग करने का संकल्प होता है; वे ख़ुशी-ख़ुशी दुःख सह लेते हैं, वे आज्ञा मानने में सक्षम होते हैं और मानवीय इच्छा से कलंकित नहीं होते हैं, मनुष्य की सोच से कलंकित नहीं होते हैं और निश्चित रूप से वे मनुष्य की आकांक्षाओं और प्रेरणाओं से कलंकित नहीं होते हैं। जब लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं, तो भीतर से वे विशेष रूप से पवित्र हो जाते हैं। जो पवित्र आत्मा के कार्य के अधीन हैं, वे परमेश्वर के प्रेम और अपने भाइयों और बहनों के प्रेम को जीते हैं; वे ऐसी चीज़ों से आनंदित होते हैं, जो परमेश्वर को आनंदित करती हैं और उन चीज़ों से घृणा करते हैं, जिनसे परमेश्वर घृणा करता है। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा स्पर्श किए जाते हैं, उनमें सामान्य मानवता होती है और वे निरंतर सत्य का अनुसरण करते हैं और मानवता के अधीन होते हैं। जब पवित्र आत्मा लोगों के भीतर कार्य करता है, उनकी स्थिति और भी बेहतर हो जाती है और उनकी मानवता और अधिक सामान्य हो जाती है और यद्यपि उनका कुछ सहयोग मूर्खतापूर्ण हो सकता है, परंतु फिर भी उनकी प्रेरणाएं सही होती हैं, उनका प्रवेश सकारात्मक होता है, वे रुकावट बनने का प्रयास नहीं करते और उनमें दुर्भाव नहीं होता। पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और वास्तविक होता है, पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के अनुसार कार्य करता है और वह सामान्य लोगों के वास्तविक अनुसरण के अनुसार लोगों में प्रबोधन और मार्गदर्शन को कार्यान्वित करता है। जब पवित्र आत्मा लोगों में कार्य करता है, तो वह सामान्य लोगों की आवश्यकता के अनुसार उनका मार्गदर्शन करता और उन्हें प्रबुद्ध करता है। वह उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनकी ज़रूरतें पूरी करता है और वह सकारात्मक रूप से उनकी कमियों और अभावों के आधार पर उनका मार्गदर्शन करता है और उन्हें प्रबुद्ध करता है। पवित्र आत्मा का कार्य वास्तविक जीवन में लोगों को प्रबुद्ध करने और उनका मार्गदर्शन करने का है; अगर वे अपने वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अनुभव करते हैं, तभी वे पवित्र आत्मा का कार्य देख सकते हैं। यदि अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में लोग सकारात्मक अवस्था में हों और उनका जीवन सामान्य आध्यात्मिक हो, तो वे पवित्र आत्मा के कार्य के अधीन होते हैं। ऐसी स्थिति में, जब वे परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं, तो उनमें विश्वास आता है; जब वे प्रार्थना करते हैं, तो वे प्रेरित होते हैं, जब उनके साथ कुछ घटितहोता है, तो वे निष्क्रिय नहीं होते; और घटित होती हुई चीज़ों से सबक़ लेने में समर्थ होते हैं, जो परमेश्वर चाहता है कि वो सीखें। वे निष्क्रिय या कमज़ोर नहीं होते और यद्यपि उनके जीवन में वास्तविक कठिनाइयाँ होती हैं, वे परमेश्वर के सभी प्रबंधनों की आज्ञा मानने के लिए तैयार रहते हैं।

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शैतान की ओर से कौन-सा कार्य आता है? शैतान से आने वाले काम में, लोगों के भीतर के दृश्य अस्पष्ट होते हैं; लोगों में सामान्य मानवता नहीं होती है, उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएं गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सदैव आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं और ये दोषारोपण और विचार उनमें निरंतर व्यवधान का कारण बनते हैं, उनके जीवन के विकास को सीमित कर देते हैं और सामान्य स्थिति में परमेश्वर के समक्ष आने से रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं रह सकते। ऐसे लोगों को पता नहीं होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें—जब वे लोगों को इकट्ठा होते देखते हैं, वे भाग जाना चाहते हैं और जब दूसरे प्रार्थना करते हैं तो वे अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच का सामान्य संबंध बर्बाद कर देता है और लोगों के पिछले दर्शनों या उनके जीवन प्रवेश के पिछले मार्ग को उलट देता है; अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के क़रीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें हमेशा होती रहती हैं, जो उनमें बाधा पैदा करती हैं और उन्हें बंधन में बांध देती हैं। उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते और उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएं पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण हैं : अपने स्थान पर डटे रह पाने और गवाही दे पाने में असमर्थ होना, यह तुम्हें ऐसा व्यक्ति बना देता है जो परमेश्वर के समक्ष दोषी है और जो परमेश्वर के प्रति निष्ठा नहीं रखता। जब शैतान हस्तक्षेप करता है, तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफ़ादारी खो देते हो, तुम्हारा परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध खत्म हो जाता है, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो और निष्क्रिय बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो और पाप से घृणा नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, इसकी वजह से तुम्हारे भीतर से परमेश्वर का स्पर्श हट जाता है और तुम्हें परमेश्वर के बारे में शिकायत करने और उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो; तुम्हारे द्वारा परमेश्वर को त्याग देने का खतरा भी होता है। यह सब शैतान की ओर से आता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य

कुछ लोग कहते हैं कि पवित्र आत्मा हर समय उनमें कार्य कर रहा है। यह असंभव है। यदि वे कहते कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके साथ है, तो यह यथार्थपरक होता। यदि वे कहते कि उनकी सोच और उनका बोध हर समय सामान्य रहता है, तो यह भी यथार्थपरक होता और दिखाता कि पवित्र आत्मा उनके साथ है। यदि वे कहते हैं कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके भीतर कार्य कर रहा है, कि वे हर पल परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध और पवित्र आत्मा द्वारा द्रवित किए जाते हैं, और हर समय नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो यह किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह पूर्णत: अलौकिक है! बिना किसी संदेह के, ऐसे लोग बुरी आत्माएँ हैं! यहाँ तक कि जब परमेश्वर का आत्मा देह में आता है, तब भी ऐसे समय होते हैं जब उसे भोजन करना चाहिए और आराम करना चाहिए—मनुष्यों की तो बात ही छोड़ दो। जो लोग बुरी आत्माओं से ग्रस्त हो गए हैं, वे देह की कमजोरी से रहित प्रतीत होते हैं। वे सब-कुछ त्यागने और छोड़ने में सक्षम होते हैं, वे भावनाओं से रहित होते हैं, यातना सहने में सक्षम होते हैं और जरा-सी भी थकान महसूस नहीं करते, मानो वे देहातीत हो चुके हों। क्या यह नितांत अलौकिक नहीं है? दुष्ट आत्माओं का कार्य अलौकिक है और कोई मनुष्य ऐसी चीजें प्राप्त नहीं कर सकता। जिन लोगों में विवेक की कमी होती है, वे जब ऐसे लोगों को देखते हैं, तो ईर्ष्या करते हैं : वे कहते हैं कि परमेश्वर पर उनका विश्वास बहुत मजबूत है, उनकी आस्था बहुत बड़ी है, और वे कमज़ोरी का मामूली-सा भी चिह्न प्रदर्शित नहीं करते! वास्तव में, ये सब दुष्ट आत्मा के कार्य की अभिव्यक्तियाँ है। क्योंकि सामान्य लोगों में अनिवार्य रूप से मानवीय कमजोरियाँ होती हैं; यह उन लोगों की सामान्य अवस्था है, जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (4)

परमेश्वर सौम्य, कोमल, प्यारे और परवाह करने के तरीके से कार्य करता है, जो असाधारण रूप से नपा-तुला और उचित होता है। उसका तरीका तुम्हारे भीतर तीव्र भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न नहीं करता, जैसे कि : "परमेश्वर को मुझे यह करने देना चाहिए" या "परमेश्वर को मुझे वह करने देना चाहिए चाहिए।" परमेश्वर कभी तुम्हें उस किस्म की मानसिक या भावनात्मक तीव्रता नहीं देता, जो चीज़ों को असहनीय बना देती है। क्या ऐसा नहीं है? यहाँ तक कि जब तुम परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को स्वीकार करते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? जब तुम परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य को समझते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? क्या तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर दिव्य और अलंघनीय है? (हाँ।) क्या उस समय तुम अपने और परमेश्वर के बीच दूरी महसूस करते हो? क्या तुम्हें परमेश्वर से डर लगता है? नहीं—बल्कि तुम परमेश्वर के लिए भयपूर्ण श्रद्धा महसूस करते हो। क्या लोग ये चीज़ें परमेश्वर के कार्य के कारण महसूस नहीं करते? यदि शैतान मनुष्य पर काम करता, तो क्या तब भी उनमें ये भावनाएँ होतीं? (नहीं।) परमेश्वर अपने वचनों, अपने सत्य और अपने जीवन का प्रयोग मनुष्य की निरंतर आपूर्ति के लिए और उसे सहारा देने के लिए करता है। जब मनुष्य कमज़ोर होता है, जब मनुष्य मायूसी महसूस करता है, तब निश्चित रूप से परमेश्वर यह कहते हुए कठोरता से बात नहीं करता कि, "मायूस मत हो! इसमें मायूस होने की क्या बात है? तुम कमज़ोर क्यों हो? इसमें कमज़ोर होने का क्या कारण है? तुम हमेशा कितने कमज़ोर हो, और तुम हमेशा कितने नकारात्मक रहते हो! तुम्हारे जिंदा रहने का क्या फायदा है? मर जाओ और किस्सा खत्म करो!" क्या परमेश्वर इस तरह से कार्य करता है? (नहीं।) क्या परमेश्वर के पास इस तरह से कार्य करने का अधिकार है? (हाँ।) फिर भी परमेश्वर इस तरह से कार्य नहीं करता। परमेश्वर के इस तरह से कार्य नहीं करने की वजह है उसका सार, परमेश्वर की पवित्रता का सार। ...

... जहाँ तक मनुष्य पर शैतान के कार्य का संबंध है, तो मेरे पास दो वाक्यांश हैं, जो शैतान की दुर्भावना और दुष्ट प्रकृति की व्याख्या अच्छी तरह से कर सकते हैं, जिससे सच में तुम लोग शैतान की घृणा को जान सकते हो : मनुष्य के प्रति अपने नज़रिये में शैतान हमेशा हर मनुष्य पर इस सीमा तक बलपूर्वक कब्ज़ा करना और उस पर काबू करना चाहता है, जहाँ वह मनुष्य पर पूरा नियंत्रण हासिल कर ले और उसे कष्टप्रद तरीके से नुकसान पहुँचाए, ताकि वह अपना उद्देश्य और वहशी महत्वाकांक्षा पूरी कर सके। "बलपूर्वक कब्जा" करने का क्या अर्थ है? क्या यह तुम्हारी सहमति से होता है, या बिना तुम्हारी सहमति के? क्या यह तुम्हारी जानकारी से होता है, या बिना तुम्हारी जानकारी के? उत्तर है कि यह पूरी तरह से बिना तुम्हारी जानकारी के होता है! यह ऐसी स्थितियों में होता है, जब तुम अनजान रहते हो, संभवतः उसके तुमसे बिना कुछ कहे या तुम्हारे साथ बिना कुछ किए, बिना किसी प्रस्तावना के, बिना प्रसंग के—शैतान वहाँ होता है, तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हें घेरे हुए। वह तुम्हारा शोषण करने के लिए एक अवसर तलाशता है और फिर बलपूर्वक तुम पर कब्ज़ा कर लेता है, तुम पर काबू कर लेता है और तुम पर पूरा नियंत्रण प्राप्त करने और तुम्हें नुकसान पहुँचाने के अपने उद्देश्य को हासिल कर लेता है। मानव-जाति को परमेश्वर से छीनने की लड़ाई में शैतान का यह एक सबसे विशिष्ट इरादा और व्यवहार है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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