प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को स्वर्ग का राज्य के रहस्यों के बारे में बताया, और क्या प्रभु यीशु की वापसी के रूप में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने भी अनेक रहस्य उजागर किए हैं? क्या आप लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए कुछ रहस्यों के बारे में हमारे साथ संगति कर सकते हैं? इससे परमेश्वर की वाणी पहचानने में हमें बहुत सहायता मिलेगी।

11 मार्च, 2021

उत्तर: प्रत्येक बार जब परमेश्वर देहधारण करते हैं, वे हमारे लिए अनेक सत्यों और रहस्यों को प्रकट करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं। मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर देहधारण करते हैं, और इसलिए स्वाभाविक रूप से वे अनेक सत्यों को अभिव्यक्त करते हैं, और अनेक रहस्यों को प्रकट करते हैं। उदाहरण के लिए, अनुग्रह के युग में, देहधारी परमेश्वर, प्रभु यीशु ने उपदेश देने और अपना कार्य करने के क्रम में अनेक रहस्यों को प्रकट किया, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)। "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा: परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। इसके अतिरिक्त, प्रभु यीशु ने और भी अनेक रहस्य प्रकट किए, जिनके बारे में मैं अभी नहीं बोलूँगी। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर आए हैं और परमेश्वर के घर से आरंभ करते हुए उन्होंने न्याय का कार्य शुरू किया है, और मानवजाति की शुद्धि और उद्धार के लिए सभी सत्यों को प्रकट कर दिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने न केवल प्रभु यीशु की सभी भविष्यवाणियों को पूरा किया है, बल्कि उन्होंने हमारे सामने अतीत, वर्तमान और भविष्य के उन सभी महान रहस्यों को भी उजागर कर दिया है जिनका सम्बंध परमेश्वर की प्रबंधन योजना से है। आइए, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ें। "यह केवल अंत के दिनों के दौरान है कि जिस कार्य का मैं हज़ारों सालों से प्रबंधन करता आ रहा हूँ, वह मनुष्य के सामने पूर्णतः प्रकट कर दिया गया है। केवल अब मैंने अपने प्रबंधन का पूरा रहस्य मनुष्य पर प्रकट किया है, और मनुष्य ने मेरे कार्य का उद्देश्य जान लिया है, और इसके अतिरिक्त, उसने मेरे सभी रहस्यों को समझ लिया है। मैंने मनुष्य को पहले ही उस मंज़िल के बारे में सब-कुछ बता दिया है, जिसके बारे में वह चिंतित रहता है। मैंने पहले ही मनुष्य पर अपने सारे रहस्य उजागर कर दिए हैं, जो लगभग 5,900 सालों से अधिक समय से गुप्त थे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्य को बचाने का कार्य भी है)। "कार्य का यह चरण तुम्हारे लिए यहोवा की व्यवस्था और यीशु द्वारा छुटकारे को स्पष्ट करेगा। यह मुख्य रूप से इसलिए है ताकि तुम परमेश्वर की छह हज़ार-वर्षीय प्रबंधन योजना के पूरे कार्य को समझ सको, इस छह हज़ार-वर्षीय प्रबंधन योजना की महत्ता और सार का मूल्यांकन कर सको, और यीशु द्वारा किए गए सभी कार्यों और उसके द्वारा बोले गए वचनों के प्रयोजन और बाइबल में अपने अंधविश्वास और श्रद्धा को समझ सको। यह सब तुम्हें पूरी तरह से समझने में मदद करेगा। तुम यीशु द्वारा किए गए कार्य और परमेश्वर के आज के कार्य, दोनों को समझ जाओगे; तुम समस्त सत्य, जीवन और मार्ग को समझ लोगे और देख लोगे। ... अंत में, यह वर्तमान चरण पूरी तरह से परमेश्वर के कार्य का अंत और इसका उपसंहार करेगा। सभी लोग परमेश्वर की प्रबंधन योजना को समझ और जान लेंगे। मनुष्य की अवधारणाएँ, उसके इरादे, उसकी त्रुटिपूर्ण समझ, यहोवा और यीशु के कार्यों के प्रति उसकी अवधारणाएँ, अन्यजातियों के बारे में उसके विचार और उसके अन्य विचलन और सभी त्रुटियाँ ठीक कर दी जाएँगी। जीवन के सभी सही मार्ग, परमेश्वर द्वारा किया गया समस्त कार्य और संपूर्ण सत्य मनुष्य की समझ में आ जाएँगे। जब ऐसा होगा, तो कार्य का यह चरण समाप्त हो जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2))

सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति के उद्धार के लिए अपनी 6,000-वर्षीय प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों को प्रकट कर दिया है। और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति के प्रबंधन में परमेश्वर के लक्ष्य के बारे में हमें बताया है। उन्होंने हमें यह दिखाया है कि परमेश्वर ने मानवजाति की रक्षा के लिए कार्य के तीन चरण क्यों पूरे किए हैं, कार्य के ये तीनों चरण कदम-दर-कदम कैसे आगे बढ़े हैं, और उनके बीच आपस में क्या संबंध और अंतर हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें यह भी बताया है कि परमेश्वर के नामों का क्या महत्व है, परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय का कार्य कैसे करते हैं, और न्याय के कार्य का क्या महत्व है। उन्होंने हमारे सामने देहधारण के रहस्यों और बाइबल की अंदरूनी कथा को प्रकट किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने यह खुलासा किया है कि परमेश्वर सभी वस्तुओं के जीवन का स्रोत हैं, और यह कि परमेश्वर सभी वस्तुओं को कैसे नियंत्रित करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें परमेश्वर के अनूठे अधिकार के बारे में, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव के बारे में, उनकी पवित्रता और सर्वशक्तिमत्ता तथा बुद्धिमत्ता के बारे में बताया है। इतना ही नहीं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमारे सामने यह भी प्रकट किया है कि समस्त मानवजाति का अभी तक कैसे विकास हुआ है, और शैतान ने मानवजाति को कैसे भ्रष्ट किया है, और उन्होंने शैतान द्वारा मानवजाति के भ्रष्ट होने की सच्चाई बताई है, जो कि भ्रष्ट मानवजाति द्वारा परमेश्वर का विरोध किए जाने और उनके प्रति विश्वासघात का मूल स्रोत है, यह कि मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर कैसे कार्य करते हैं, परमेश्वर के कार्य में अवरोध और बाधा उत्पन्न करने के लिए शैतान ने कैसी धूर्ततापूर्ण योजनाओं पर काम किया है, और परमेश्वर किस तरह शैतान को पराजित करते और उसकी नियति का अंत करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें एक सच्चे जीवन का अर्थ दर्शाया है, यह कि सचमुच खुश रहने के लिए मनुष्य को कैसे कार्य करना चाहिए, साथ ही यह कि विभिन्न प्रकार के लोगों का अंत कैसे होता है, मनुष्य का सही गंतव्य क्या है, और अंत में यह कि परमेश्वर इस युग का अंत कैसे करेंगे, और मसीह का साम्राज्य कैसे स्थापित होगा, इत्यादि। ये सभी रहस्य हमारे सामने सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए हैं। प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए सत्यों और रहस्यों से हम यह देख सकते हैं कि ये सारे रहस्य परमेश्वर और स्वर्ग का राज्य से सम्बंधित हैं, साथ ही इनका संबंध परमेश्वर द्वारा भविष्य में पूरे किए जाने वाले कार्यों से भी है। ये सारे रहस्य परमेश्वर की प्रबंधन योजना से और मानवजाति के अंतिम लक्ष्य से जुड़े हुए हैं। परमेश्वर द्वारा इन रहस्यों को प्रकट किए जाने का गहरा अर्थ है। प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए सत्यों और रहस्यों से हम यह जान सकते हैं कि ये सभी शब्द परमेश्वर की वाणी हैं। क्योंकि परमेश्वर के सिवा अन्य कोई भी इन रहस्यों को नहीं जान सकता था। केवल परमेश्वर ही इसे जानते हैं। फ़रिश्ते नहीं जानते, मनुष्य तो और भी कम जानता है। और इसलिए, प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए सत्य एवं रहस्य एक ही आत्मा की अभिव्यक्ति हैं, और एक ही परमेश्वर के कार्य हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में किया गया न्याय का कार्य प्रभु यीशु द्वारा किए गए कार्य के बाद जारी रहता है। इससे प्रभु यीशु के ये वचन पूरे हो जाते हैं: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा: और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही प्रभु यीशु की वापसी हैं, यह कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक ही सच्चे परमेश्वर के प्रकटन हैं!

सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारे समक्ष उन सभी सत्यों और रहस्यों को प्रकट करते हैं जिन्हें भ्रष्ट मानवजाति को समझ लेना चाहिए और अपनी रक्षा के लिए उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। इस तरह हम परमेश्वर के प्रति अपनी आस्था में स्पष्ट, शांत और कांतिमान अनुभव करते हैं। इस तरह हम परमेश्वर के प्रति अपनी आस्था के सही मार्ग में प्रवेश करने में सक्षम होते हैं। हमें केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने और उनकी आज्ञा मानने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त किए गए सभी सत्यों में प्रवेश पाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि हम सत्य को अपने जीवन के रूप में पा सकें, अपना उद्धार कर सकें और स्वर्ग का राज्य में प्रवेश पा सकें। अब हम एक अंश सुनें जिसमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमात्मा के स्वभाव के रहस्य को उजागर किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर का स्वभाव सभी चीज़ों और जीवित प्राणियों के शासक, सारी सृष्टि के प्रभु का स्वभाव है। उसका स्वभाव सम्मान, सामर्थ, कुलीनता, महानता, और सब से बढ़कर, सर्वोच्चता को दर्शाता है। उसका स्वभाव अधिकार का प्रतीक है, उन सबका प्रतीक है जो धर्मी, सुन्दर, और अच्छा है। इस के अतिरिक्त, यह उस परमेश्वर का भी प्रतीक है जिसे अंधकार और शत्रु बल के द्वारा हराया या आक्रमण नहीं किया जा सकता है,[क] साथ ही उस परमेश्वर का प्रतीक भी है जिसे किसी भी सृजे गए प्राणी के द्वारा ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती है (न ही वह ठेस पहुंचाया जाना बर्दाश्त करेगा)।[ख] उसका स्वभाव सब से ऊँची सामर्थ का प्रतीक है। कोई भी मनुष्य या लोग उसके कार्य और उसके स्वभाव को बाधित नहीं कर सकते हैं। ... परमेश्वर का आनन्द, धार्मिकता और ज्योति की उपस्थिति और अभ्युदय के कारण है; अँधकार और बुराई के विनाश के कारण है। वह मानवजाति तक ज्योति और अच्छा जीवन पहुंचाने में आनन्दित होता है; उसका आनन्द धार्मिक आनंद है, हर सकारात्मक चीज़ के अस्तित्व में होने का प्रतीक, और सब से बढ़कर कल्याण का प्रतीक है। परमेश्वर के क्रोध का कारण मानवजाति को अन्याय की मौजूदगी और उसके हस्तक्षेप के कारण पहुँचने वाली हानि है; बुराई और अँधकार है, और ऐसी चीज़ों का अस्तित्व है जो सत्य को निकाल बाहर करती हैं, और उस से भी बढ़कर इसका कारण ऐसी चीज़ों का अस्तित्व है जो उसका विरोध करती हैं जो भला और सुन्दर है। उसका क्रोध एक चिह्न है कि वे सभी चीज़ें जो नकारात्मक हैं आगे से अस्तित्व में न रहें, और इसके अतिरिक्त यह उसकी पवित्रता का प्रतीक है। उसका दुखः मानवजाति के कारण है, जिसके लिए उसने आशा की है परन्तु वह अंधकार में गिर गई है, क्योंकि जो कार्य वह मनुष्यों पर करता है, वह उसकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता और क्योंकि वह जिस मानवजाति से प्रेम करता है वह समस्त मानवजाति ज्योति में जीवन नहीं जी सकती। वह दुखः की अनुभूति करता है अपनी निष्कपट मानवजाति के लिए, ईमानदार किन्तु अज्ञानी मनुष्य के लिए, और उस मनुष्य के लिए जो भला तो है लेकिन जिसमें खुद के विचारों की कमी है। उसका दुखः, उसकी भलाई और उसकी करूणा का चिह्न है, सुन्दरता और उदारता का चिह्न है। उसकी प्रसन्नता वास्तव में, उसके शत्रुओं को हराने और मनुष्यों के भले विश्वास को प्राप्त करने से आती है। इसके अतिरिक्त, सभी शत्रु ताकतों को भगाने और उनके विनाश से उपजती है और मनुष्यों के भले और शांतिपूर्ण जीवन को प्राप्त करने से आती है। परमेश्वर की प्रसन्नता, मनुष्य के आनंद के समान नहीं है; उसके बजाए, यह मनोहर फलों को एकत्र करने का एहसास है, एक एहसास जो आनंद से भी बढ़कर है। उसकी प्रसन्नता इस बात का चिह्न है कि मानवजाति दुखः की जंज़ीरों को तोड़कर अब आज़ाद हो गयी है, यह मानवजाति के ज्योति के संसार में प्रवेश करने का चिह्न है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमारे सामने यह प्रकट किया है कि परमेश्वर का स्वभाव किस बात को दर्शाता है, और परमेश्वर के स्वभाव का संकेत और अर्थ क्या है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के स्वभाव और मनुष्य जाति में आनन्द, क्रोध, दुख और खुशी के बीच के संबंध को भी व्यक्त किया है। स्वयं परमेश्वर के सिवा उनके स्वभाव के बारे में इतनी स्पष्टता से और कौन बता सकता है? और परमेश्वर के स्वभाव के संकेत और अर्थ को और कौन जान सकता है? प्राचीन काल से लेकर अब तक, परमेश्वर के स्वभाव के बारे में इतना सही और स्पष्ट गवाही दे सकने, और हमें पूरी तरह आश्वस्त करने में कोई भी सक्षम नहीं हो सका। परमेश्वर का आनन्द, क्रोध, दुख और प्रसन्नता मानवजाति के प्रबंधन से जुड़े उनके समस्त कार्य में परिलक्षित होते हैं। और जब हम परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं, तो हम भी यह आस्वाद पाने और समझने में समर्थ होते हैं कि परमेश्वर के स्वभाव में निहित आनन्द, क्रोध, दुख और प्रसन्नता केवल शब्द नहीं हैं बल्कि वे व्यावहारिक, वास्तविक और स्पष्ट तथ्य हैं। परमेश्वर का आनन्द, क्रोध, दुख और प्रसन्नता, ये सब परमेश्वर के जीवन के सार की अभिव्यक्ति हैं। वे सकारात्मक बातों के यथार्थ और धार्मिकता के प्रतीक हैं। परमेश्वर द्वारा मनुष्य की रक्षा के कार्य में, हम देखते हैं कि परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए आनन्द, क्रोध, दुख और प्रसन्नता, ये सब मानव जाति के अस्तित्व में बने रहने के लिए हैं। ये सब मानव जाति की रक्षा के लिए हैं ताकि मानव जाति शैतान की यातनाओं से मुक्त हो सके और ज्ञान के प्रकाश में जी सके। और फिर वे इसलिए हैं ताकि वे मानव जाति को सुन्दर गंतव्य की ओर ले जा सकें। परमेश्वर द्वारा मानव जाति का उद्धार किए जाने के क्रम में, हमने यह देखा है कि परमेश्वर वास्तव में हर वस्तु पर नियंत्रण रखते हैं, और सभी वस्तुओं पर शासन करते हैं। परमेश्वर का स्वभाव उच्चतम अधिकार का प्रतीक है। यह इस बात का प्रतीक है कि अंधकार की कोई भी शक्ति दमन नहीं कर सकती, न हानि पहुँचा सकती है, और न ही कोई शत्रुतापूर्ण शक्ति परमेश्वर को उनकी इच्छा पूरी करने से रोक सकती है। अनुग्रह के युग को याद करो: जब यीशु उपदेश दे रहे थे और अपना कार्य कर रहे थे, तब धार्मिक समुदाय के नेता लोग उन्माद में आकर प्रभु यीशु की निंदा और उनका विरोध किया करते थे। यहाँ तक कि उन्होंने रोम की सरकार से मिली-भगत करके यीशु को सूली पर भी चढ़ा दिया। फिर भी शैतान की धूर्तता भरी योजना पर परमेश्वर की बुद्धिमत्ता हावी हुई। यीशु के सूली पर चढ़ाए जाने से ही मानव जाति का उद्धार हो पाया, और इस माध्यम से प्रभु यीशु का सुसमाचार विश्व के कोने-कोने तक फैल गया, और जिन्होंने परमेश्वर के कार्य का विरोध किया और उनकी निंदा की, उन्हें परमेश्वर के दंड का भागी होना पड़ा। इस तरह, हम देखते हैं कि मनुष्य परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का उल्लंघन नहीं कर सकता! साम्राज्य का युग आ चुका है। जबसे उन्होंने चीन में न्याय का कार्य आरंभ किया है, तब से नास्तिकता के इस मजबूत गढ़ में, देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धार्मिक नेताओं ने फिर से उन्मादपूर्ण विरोध और निंदा करना शुरू कर दिया है। इसी तरह, शैतानी सीसीपी शासन द्वारा निर्दयतापूर्वक लोगों को गिरफ़्तार करने और यातनाएँ देने का दौर चल पड़ा है। इसके बावजूद, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साम्राज्य का सुसमाचार चीन के समस्त मुख्य भूभाग में फ़ैल गया है। विभिन्न समुदायों और पृष्ठभूमियों के लोग, जो सचमुच और सम्पूर्ण रूप से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष लौट आए हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त किए गए सभी सत्य भी सबके लिए ऑनलाइन उपलब्ध हैं जिन्हें दुनिया भर के देशों-प्रदेशों के लोग खोज सकते हैं, और प्राप्त कर सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में अधिकार और शक्ति है, और उन्होंने हजारों-हजार लोगों के दिलों को जीता है। खास तौर पर, वे जो सचमुच परमेश्वर में विश्वास करते हैं और जिन्हें सचमुच सच्चे मार्ग की प्रबल इच्छा है वे सब परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष वापस लौट आए हैं। और उन सबको परमेश्वर की वाणी से पोषित और अभिसिंचित होने का आनन्द प्राप्त है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सचमुच विजेताओं के एक पूरे समूह को सम्पूर्ण बनाया है और ऐसे लोगों का समूह प्राप्त किया जो परमेश्वर के साथ एकमत हैं। इस दौरान, धार्मिक समुदाय के वे लोग जो परमेश्वर के कार्य का विरोध और उसकी निंदा करते हैं, उन सबको विभिन्न अनुपातों में दंड और श्राप का भागी बनना पड़ा है। कुछ लोगों का तो यीशु-विरोधी होने के रूप में भंडाफोड़ भी हुआ है और उन्हें ऐसा दंड मिला है जो असहनीय रूप से कठोर है। उनकी मौत यहूदा से भी बुरी हुई है। इस तरह, हम देखते हैं कि परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव सचमुच मनुष्य के लिए अनापत्ति के योग्य रहा है। इसी तरह, शैतानी सीसीपी शासन, जो परमेश्वर से प्रतिस्पर्द्धा करता है और जिसने स्वयं को परमात्मा के विरुद्ध खड़ा कर रखा है, उसे भी परमेश्वर द्वारा श्रापित होना पड़ा है। उसका नष्ट हो जाना तय है, जो कि परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को पूर्णता से दर्शाता है। परमेश्वर के दो देहधारणों के कार्य के तथ्य से, हम सभी वस्तुओं को नियंत्रित करने वाले परमेश्वर के अनूठे अधिकार को देखते हैं। परमेश्वर का स्वभाव एक संकेत है जिसे अंधकार की किसी भी शक्ति द्वारा दबाया नहीं जा सकता। परमेश्वर से शत्रुता रखने वाली हर शक्ति परमेश्वर के दंड से डगमगा जाएगी और उसका अस्तित्व ही नहीं रहेगा। यह एक तथ्य है। हमने इतने वर्षों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय को वचन रूप में अनुभव किया है। हमने यह देखा है कि परमेश्वर का स्वभाव न केवल दयालु और करुणामय है बल्कि धार्मिक और महिमावान भी है। ऐसा बहुत बार हुआ है जब हमने परमेश्वर को गलत समझा है क्योंकि हम उनकी इच्छा को नहीं समझ पाते, किन्तु परमेश्वर फिर भी हमें याद दिलाते हैं, सांत्वना देते और समझाते हैं, और इस तरह हम परमेश्वर की दया और करुणा का अनुभव कर पाते हैं। लेकिन जब हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करते, तो वे कठोर न्याय करते हैं, हमारा पर्दाफाश करते और हमें अनुशासित करते हैं, इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक एवं महिमामय है और लोगों को अपराध नहीं करने देता है। अपने वास्तविक अनुभवों में, हमने देखा है कि परमेश्वर का स्वभाव कितना सच्चा, वास्तविक और सुस्पष्ट है, परमेश्वर अत्यंत पवित्र हैं, अत्यंत धार्मिक, सुहृदय और आदरणीय हैं। परमेश्वर वास्तव में और सही मायनों में लोगों के बीच अपना कार्य करने के लिए अवतरित हुए हैं और वे हमारे बिल्कुल सम्मुख हैं, व्यक्तिगत रूप से हमारा मार्गदर्शन और हमारी रक्षा करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारे प्रभु, हमारे परमेश्वर हैं, वे एकमात्र सच्चे परमेश्वर हैं जिन्होंने स्वर्गों, इस धरती और सभी वस्तुओं को बनाया है, और जो सभी वस्तुओं पर शासन करते हैं।

"प्रतीक्षारत" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

फुटनोट :

क. मूल पाठ में "यह असमर्थ होने का प्रतीक है" लिखा है।

ख. मूल पाठ में "साथ ही अपमान के अयोग्य (और अपमान सहन न करने) होने का भी प्रतीक है" लिखा है।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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