यहोवा परमेश्वर की चेतावनी नीनवे के लोगों तक पहुँचती है

29 मई, 2018

योना 1:1-2 यहोवा का यह वचन अमित्तै के पुत्र योना के पास पहुँचा: "उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उसके विरुद्ध प्रचार कर; क्योंकि उसकी बुराई मेरी दृष्‍टि में बढ़ गई है।"

योना 3 तब यहोवा का यह वचन दूसरी बार योना के पास पहुँचा: "उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और जो बात मैं तुझ से कहूँगा, उसका उस में प्रचार कर।" तब योना यहोवा के वचन के अनुसार नीनवे को गया। नीनवे एक बहुत बड़ा नगर था, वह तीन दिन की यात्रा का था। योना ने नगर में प्रवेश करके एक दिन की यात्रा पूरी की, और यह प्रचार करता गया, "अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा।" तब नीनवे के मनुष्यों ने परमेश्‍वर के वचन की प्रतीति की; और उपवास का प्रचार किया गया और बड़े से लेकर छोटे तक सभों ने टाट ओढ़ा। तब यह समाचार नीनवे के राजा के कान में पहुँचा; और उसने सिंहासन पर से उठ, अपने राजकीय वस्त्र उतारकर टाट ओढ़ लिया, और राख पर बैठ गया। राजा ने प्रधानों से सम्मति लेकर नीनवे में इस आज्ञा का ढिंढोरा पिटवाया: "क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, या अन्य पशु, कोई कुछ भी न खाए; वे न खाएँ और न पानी पीएँ। मनुष्य और पशु दोनों टाट ओढ़ें, और वे परमेश्‍वर की दोहाई चिल्‍ला-चिल्‍ला कर दें; और अपने कुमार्ग से फिरें; और उस उपद्रव से, जो वे करते हैं, पश्‍चाताप करें। सम्भव है, परमेश्‍वर दया करे और अपनी इच्छा बदल दे, और उसका भड़का हुआ कोप शान्त हो जाए और हम नष्‍ट होने से बच जाएँ।" जब परमेश्‍वर ने उनके कामों को देखा, कि वे कुमार्ग से फिर रहे हैं, तब परमेश्‍वर ने अपनी इच्छा बदल दी, और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया।

योना 4 यह बात योना को बहुत ही बुरी लगी, और उसका क्रोध भड़का। उसने यहोवा से यह कहकर प्रार्थना की, "हे यहोवा, जब मैं अपने देश में था, तब क्या मैं यही बात न कहता था? इसी कारण मैं ने तेरी आज्ञा सुनते ही तर्शीश को भाग जाने के लिये फुर्ती की; क्योंकि मैं जानता था कि तू अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्‍वर है, और विलम्ब से कोप करनेवाला करुणानिधान है, और दु:ख देने से प्रसन्न नहीं होता। इसलिये अब हे यहोवा, मेरा प्राण ले ले; क्योंकि मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही भला है।" यहोवा ने कहा, "तेरा जो क्रोध भड़का है, क्या वह उचित है?" इस पर योना उस नगर से निकलकर, उसकी पूरब ओर बैठ गया; और वहाँ एक छप्पर बनाकर उसकी छाया में बैठा हुआ यह देखने लगा कि नगर का क्या होगा? तब यहोवा परमेश्‍वर ने एक रेंड़ का पेड़ उगाकर ऐसा बढ़ाया कि योना के सिर पर छाया हो, जिससे उसका दु:ख दूर हो। योना उस रेंड़ के पेड़ के कारण बहुत ही आनन्दित हुआ। सबेरे जब पौ फटने लगी, तब परमेश्‍वर ने एक कीड़े को भेजा, जिस ने रेंड़ का पेड़ ऐसा काटा कि वह सूख गया। जब सूर्य उगा, तब परमेश्‍वर ने पुरवाई बहाकर लू चलाई, और धूप योना के सिर पर ऐसी लगी कि वह मूर्च्छित होने लगा; और उसने यह कहकर मृत्यु माँगी, "मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही अच्छा है।" परमेश्‍वर ने योना से कहा, "तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है?" उसने कहा, "हाँ, मेरा जो क्रोध भड़का है वह अच्छा ही है, वरन् क्रोध के मारे मरना भी अच्छा होता।" तब यहोवा ने कहा, "जिस रेंड़ के पेड़ के लिये तू ने कुछ परिश्रम नहीं किया, न उसको बढ़ाया, जो एक ही रात में हुआ, और एक ही रात में नष्‍ट भी हुआ; उस पर तू ने तरस खाई है। फिर यह बड़ा नगर नीनवे, जिसमें एक लाख बीस हज़ार से अधिक मनुष्य हैं जो अपने दाहिने बाएँ हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत से घरेलू पशु भी उसमें रहते हैं, तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊँ?"

नीनवे की कहानी का सारांश

यद्यपि "परमेश्वर द्वारा नीनवे के उद्धार" की कहानी बहुत छोटी है, फिर भी यह व्यक्ति को परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव के दूसरे पहलू की झलक दिखाती है। यह समझने के लिए कि उस दूसरे पहलू में वास्तव में क्या है, हमें पवित्रशास्त्र की ओर लौटना होगा और परमेश्वर के एक कृत्य की समीक्षा करनी होगी, जो उसने अपने कार्य की प्रक्रिया में किया था।

पहले हम इस कहानी की शुरुआत पर गौर करते हैं : "यहोवा का यह वचन अमित्तै के पुत्र योना के पास पहुँचा: 'उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उसके विरुद्ध प्रचार कर; क्योंकि उसकी बुराई मेरी दृष्‍टि में बढ़ गई है'" (योना 1:1-2)। पवित्रशास्त्र के इस अंश में, हम जानते हैं कि यहोवा परमेश्वर ने योना को नीनवे शहर जाने का आदेश दिया था। उसने योना को इस नगर में जाने का आदेश क्यों दिया था? बाइबल इसके विषय में बहुत स्पष्ट है : इस नगर के लोगों की दुष्टता यहोवा परमेश्वर की नज़रों में आ गई थी, और इसलिए उसने उस बात की घोषणा करने के लिए योना को उनके पास भेजा था, जो वह करना चाहता था। हालाँकि उसमें ऐसा कुछ भी दर्ज नहीं है, जो हमें यह बता सके कि योना कौन था, किंतु वास्तव में इसका संबंध परमेश्वर को जानने से नहीं है, और इसलिए तुम लोगों को इस मनुष्य, योना को समझने की आवश्यकता नहीं है। तुम लोगों को केवल यह जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर ने योना को क्या करने का आदेश दिया था और ऐसा करने के पीछे परमेश्वर के क्या कारण थे।

यहोवा परमेश्वर की चेतावनी नीनवे के लोगों तक पहुँचती है

हम दूसरे अंश, योना की पुस्तक के तीसरे अध्याय पर चलते हैं : "योना ने नगर में प्रवेश करके एक दिन की यात्रा पूरी की, और यह प्रचार करता गया, 'अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा।'" ये वे वचन हैं, जो परमेश्वर ने नीनवे के लोगों को बताने के लिए सीधे योना को दिए थे, इसलिए निस्संदेह, ये वे वचन हैं, जिन्हें यहोवा नीनवे के लोगों से कहना चाहता था। ये वचन लोगों को बताते हैं कि परमेश्वर ने नगर के लोगों से घृणा करनी शुरू कर दी थी, क्योंकि उनकी दुष्टता उसकी नज़रों में आ गई थी, और इसलिए वह इस नगर को नष्ट करना चाहता था। किंतु नगर को नष्ट करने से पहले परमेश्वर नीनवे के नागरिकों के लिए एक घोषणा करेगा, और साथ ही वह उन्हें अपनी दुष्टता के लिए पश्चात्ताप करने और नए सिरे से शुरुआत करने का एक अवसर देगा। यह अवसर चालीस दिन तक रहेगा, इससे ज्यादा नहीं। दूसरे शब्दों में, यदि नगर में रहने वाले लोगों ने चालीस दिनों के भीतर पश्चात्ताप न किया, अपने पाप स्वीकार न किए या यहोवा परमेश्वर के सामने दंडवत न किया, तो परमेश्वर इस नगर को वैसे ही नष्ट कर देगा, जैसे उसने सदोम को नष्ट किया था। यहोवा परमेश्वर यही बात नीनवे के लोगों से कहना चाहता था। साफ बात है, यह कोई सामान्य घोषणा नहीं थी। इस बात ने लोगों को न केवल यहोवा परमेश्वर के क्रोध से अवगत कराया, बल्कि इससे नीनवे के लोगों के प्रति उसका रवैया भी ज़ाहिर हो गया, और साथ ही नगर के भीतर रहने वाले लोगों के लिए एक गंभीर चेतावनी के रूप में भी काम किया। इस चेतावनी ने उन्हें बताया कि अपने बुरे कार्यों से उन्होंने यहोवा परमेश्वर की घृणा को न्योता दिया है, और उनके दुष्कर्म उन्हें शीघ्र ही तबाही के कगार पर पहुँचा देंगे। इसलिए नीनवे के हर निवासी का जीवन आसन्न संकट में था।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II

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