परमेश्वर नीनवे के लोगों के हृदय की गहराइयों में सच्चा पश्चात्ताप देखता है

29 मई, 2018

यहोवा परमेश्वर की चेतावनी के प्रति नीनवे और सदोम की प्रतिक्रिया में स्पष्ट अंतर

उखाड़ फेंकने का क्या अर्थ है? बोलचाल की भाषा में इसका अर्थ है मौजूद न रहना। लेकिन किस तरह? कौन एक पूरे नगर को उखाड़कर फेंक सकता है? निस्संदेह मनुष्य के लिए ऐसा काम करना असंभव है। नीनवे के लोग मूर्ख नहीं थे; ज्यों ही उन्होंने इस घोषणा को सुना, त्यों ही वे इसके अभिप्राय को समझ गए। वे जानते थे कि घोषणा परमेश्वर की ओर से आई है, वे जानते थे कि परमेश्वर अपना कार्य करने जा रहा है, और वे जानते थे कि उनकी दुष्टता ने यहोवा परमेश्वर को क्रोधित कर दिया है, इसीलिए उसका क्रोध उन पर बरस रहा है, जिससे वे शीघ्र ही अपने नगर के साथ नष्ट हो जाने वाले हैं। यहोवा परमेश्वर की चेतावनी सुनने के बाद नगर के लोगों ने कैसा व्यवहार किया? बाइबल राजा से लेकर आम आदमी तक, सभी लोगों की प्रतिक्रिया का बहुत विस्तार से वर्णन करती है। पवित्रशास्त्र में ये वचन दर्ज हैं : "तब नीनवे के मनुष्यों ने परमेश्‍वर के वचन की प्रतीति की; और उपवास का प्रचार किया गया और बड़े से लेकर छोटे तक सभों ने टाट ओढ़ा। तब यह समाचार नीनवे के राजा के कान में पहुँचा; और उसने सिंहासन पर से उठ, अपने राजकीय वस्त्र उतारकर टाट ओढ़ लिया, और राख पर बैठ गया। राजा ने प्रधानों से सम्मति लेकर नीनवे में इस आज्ञा का ढिंढोरा पिटवाया: 'क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, या अन्य पशु, कोई कुछ भी न खाए; वे न खाएँ और न पानी पीएँ। मनुष्य और पशु दोनों टाट ओढ़ें, और वे परमेश्‍वर की दोहाई चिल्‍ला-चिल्‍ला कर दें; और अपने कुमार्ग से फिरें; और उस उपद्रव से, जो वे करते हैं, पश्‍चाताप करें। ...'"

यहोवा परमेश्वर की घोषणा सुनने के बाद नीनवे के लोगों ने सदोम के लोगों के रवैये से ठीक विपरीत रवैया दिखाया—जहाँ सदोम के लोगों ने खुले तौर पर परमेश्वर का विरोध किया और बुरे से बुरा कार्य करते चले गए, वहीं नीनवे के लोगों ने इन वचनों को सुनने के बाद इस मामले को नज़रअंदाज़ नहीं किया, और न ही उन्होंने प्रतिरोध किया। इसके बजाय उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास किया और उपवास की घोषणा कर दी। "विश्वास किया" शब्दों का यहाँ क्या अर्थ है? ये शब्द विश्वास और समर्पण की ओर संकेत करते हैं। यदि हम इन शब्दों की व्याख्या करने के लिए नीनवे के लोगों के वास्तविक व्यवहार का उपयोग करें, तो इनका अर्थ यह है कि उन्होंने विश्वास किया कि परमेश्वर ने जैसा कहा है, वह वैसा कर सकता है और करेगा, और कि वे पश्चात्ताप करने के लिए तैयार थे। क्या नीनवे के लोग से आसन्न आपदा से डर गए? यह उनका विश्वास था, जिसने उनके हृदय में भय पैदा कर दिया था। तो नीनवे के लोगों के विश्वास और भय को प्रमाणित करने के लिए हम किस चीज़ का उपयोग कर सकते है? जैसा कि बाइबल कहती है : "और उपवास का प्रचार किया गया और बड़े से लेकर छोटे तक सभों ने टाट ओढ़ा।" कहने का तात्पर्य है कि नीनवे के लोगों ने सच में विश्वास किया, और इस विश्वास से भय उत्पन्न हुआ, जिसने तब उन्हें उपवास करने और टाट ओढ़ने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार उन्होंने दिखाया कि वे पश्चात्ताप करना शुरू कर रहे हैं। सदोम के लोगों के बिलकुल विपरीत, नीनवे के लोगों ने न केवल परमेश्वर का विरोध नहीं किया, बल्कि उन्होंने अपने व्यवहार और कार्यों के जरिये स्पष्ट रूप से अपना पश्चात्ताप भी दिखाया। निस्संदेह, ऐसा नीनवे के सभी लोगों ने किया, केवल आम लोगों ने नहीं—राजा भी इसका अपवाद नहीं था।

नीनवे के राजा का पश्चात्ताप यहोवा परमेश्वर की प्रशंसा पाता है

जब नीनवे के राजा ने यह समाचार सुना, तो वह अपने सिंहासन से उठा खड़ा हुआ, उसने अपने वस्त्र उतार डाले और टाट पहनकर राख में बैठ गया। तब उसने घोषणा की कि नगर में किसी को भी कुछ भी चखने की अनुमति नहीं दी जाएगी, और किसी भेड़, बैल या अन्य मवेशी को घास-पानी नहीं दिया जाएगा। मनुष्य और पशु दोनों को एक-समान टाट ओढ़ना था, और लोगों को बड़ी लगन से परमेश्वर से विनती करनी थी। राजा ने यह घोषणा भी की कि उनमें से प्रत्येक अपने बुरे मार्ग को छोड़ देगा और हिंसा का त्याग कर देगा। उसके द्वारा लगातार किए गए इन कार्यों को देखते हुए, नीनवे के राजा के हृदय में सच्चा पश्चात्ताप था। उसके द्वारा किए गए ये कार्य—अपने सिंहासन से उठ खड़ा होना, अपने राजकीय वस्त्र उतार देना, टाट ओढ़ना और राख में बैठ जाना—लोगों को बताता है कि नीनवे का राजा अपने शाही रुतबे को छोड़ रहा था और आम लोगों के साथ टाट ओढ़ रहा था। कहने का तात्पर्य है कि नीनवे का राजा यहोवा परमेश्वर से आई घोषणा सुनने के बाद अपने बुरे मार्ग पर चलते रहने या अपने हाथों से हिंसा जारी रखने के लिए अपने शाही पद पर जमा नहीं रहा; बल्कि उसने अपने अधिकार को दरकिनार कर यहोवा परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप किया। इस समय नीनवे का राजा एक राजा के रूप में पश्चात्ताप नहीं कर रहा था; बल्कि वह परमेश्वर की एक सामान्य प्रजा के रूप में अपने पाप स्वीकार करने और पश्चात्ताप करने के लिए परमेश्वर के सामने आया था। इतना ही नहीं, उसने पूरे शहर से भी उसी तरह यहोवा परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप करने और अपने पाप स्वीकार करने के लिए कहा, जिस तरह उसने किया था; इसके अलावा, उसके पास एक विशिष्ट योजना भी थी कि ऐसा कैसे किया जाए, जैसा कि पवित्रशास्त्र में देखने को मिलता है : "क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, या अन्य पशु, कोई कुछ भी न खाए; वे न खाएँ और न पानी पीएँ। ... और वे परमेश्‍वर की दोहाई चिल्‍ला-चिल्‍ला कर दें; और अपने कुमार्ग से फिरें; और उस उपद्रव से, जो वे करते हैं, पश्‍चाताप करें।" नगर का शासक होने के नाते, नीनवे का राजा उच्चतम हैसियत और सामर्थ्य रखता था और जो चाहता, कर सकता था। यहोवा परमेश्वर की घोषणा सामने आने पर वह उस मामले को नज़रअंदाज़ कर सकता था या बस यों ही अकेले अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता था और उन्हें स्वीकार कर सकता था; नगर के लोग पश्चात्ताप करें या न करे, वह इस मामले को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर सकता था। किंतु नीनवे के राजा ने ऐसा बिलकुल नहीं किया। उसने न केवल अपने सिंहासन से उठकर टाट ओढ़कर और रख मलकर यहोवा परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार किए और पश्चात्ताप किया, बल्कि उसने अपने नगर के सभी लोगों और पशुओं को भी ऐसा करने का आदेश दिया। यहाँ तक कि उसने लोगों को आदेश दिया कि "परमेश्वर की दोहाई चिल्ला चिल्लाकर दो।" कार्यों की इस शृंखला के जरिये नीनवे के राजा ने सच में वह किया, जो एक शासक को करना चाहिए। उसके द्वारा किए गए कार्यों की शृंखला ऐसी है, जिसे करना मानव-इतिहास में किसी भी राजा के लिए कठिन था, और निस्संदेह, कोई अन्य राजा ये कार्य नहीं कर पाया। ये कार्य मानव-इतिहास में अभूतपूर्व कहे जा सकते हैं, और ये मानवजाति द्वारा स्मरण और अनुकरण दोनों के योग्य हैं। मनुष्य की उत्पत्ति के समय से ही, प्रत्येक राजा ने परमेश्वर का प्रतिरोध और विरोध करने में अपनी प्रजा की अगुआई की है। किसी ने भी कभी अपनी दुष्टता से छुटकारा पाने, यहोवा परमेश्वर से क्षमा पाने और आने वाले दंड से बचने के लिए परमेश्वर से विनती करने हेतु अपनी प्रजा की अगुआई नहीं की। किंतु नीनवे का राजा परमेश्वर की ओर मुड़ने, कुमार्ग त्यागने और अपने हाथों के उपद्रव का त्याग करने में अपनी प्रजा की अगुआई कर पाया। इतना ही नहीं, वह अपने सिंहासन को भी छोड़ पाया, और बदले में, यहोवा परमेश्वर का मन बदल गया और उसे अफ़सोस हुआ, उसने अपना कोप त्याग दिया, नगर के लोगों को जीवित रहने दिया और उन्हें सर्वनाश से बचा लिया। राजा के कार्यों को मानव-इतिहास में केवल एक दुर्लभ चमत्कार ही कहा जा सकता है, यहाँ तक कि उन्हें भ्रष्ट मनुष्यों का आदर्श भी कहा जा सकता है, जो परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करते हैं और पश्चात्ताप करते हैं।

परमेश्वर नीनवे के लोगों के हृदय की गहराइयों में सच्चा पश्चात्ताप देखता है

परमेश्वर की घोषणा सुनने के बाद, नीनवे के राजा और उसकी प्रजा ने अनेक कार्यों को अंजाम दिया। उनके इन कार्यों और व्यवहार की प्रकृति क्या थी? दूसरे शब्दों में, उनके समग्र व्यवहार का सार क्या था? उन्होंने जो किया, वह क्यों किया? परमेश्वर की नज़रों में उन्होंने ईमानदारी से पश्चात्ताप किया था, न केवल इसलिए कि उन्होंने पूरी लगन से परमेश्वर से विनती की थी और उसके सम्मुख अपने पाप स्वीकार किए थे, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने अपना दुष्ट आचरण छोड़ दिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद वे बेहद डर गए थे और यह मानते थे कि वह वैसा ही करेगा, जैसा उसने कहा है। उपवास करके, टाट पहनकर और राख में बैठकर वे अपने तौर-तरीके सुधारने और बुराई से दूर रहने की इच्छा व्यक्त करना चाहते थे, और उन्होंने यहोवा परमेश्वर से अपना निर्णय और उन पर पड़ी विपत्ति वापस लेने के लिए विनती करते हुए अपना कोप रोकने की प्रार्थना की। यदि हम पूरे व्यवहार की जाँच करें, तो हम देख सकते हैं कि वे पहले ही समझ गए थे कि उनके पिछले बुरे काम यहोवा परमेश्वर के लिए घृणास्पद थे, और हम यह भी देख सकते हैं कि वे यह समझ गए थे कि वह किस कारण से उन्हें शीघ्र ही नष्ट कर देगा। इसीलिए वे सभी पूरा पश्चात्ताप करना, अपने बुरे मार्गों से हटना और अपने हाथों के उपद्रव को त्याग देना चाहते थे। दूसरे शब्दों में, एक बार जब वे यहोवा परमेश्वर की घोषणा से अवगत हो गए, तो उनमें से प्रत्येक ने अपने हृदय में भय महसूस किया; उन्होंने अपना बुरा आचरण बंद कर दिया और फिर वे कार्य नहीं किए, जो यहोवा परमेश्वर के लिए इतने घृणास्पद थे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यहोवा परमेश्वर से उनके पिछले पाप क्षमा करने और उनसे उनके पिछले कार्यों के अनुसार व्यवहार न करने की विनती की। वे फिर कभी दुष्टता में लिप्त न होने और यहोवा परमेश्वर के निर्देशों के अनुसार कार्य करने के लिए तैयार थे, ताकि यहोवा परमेश्वर यथासंभव फिर कभी कुपित न हो। उनका पश्चात्ताप सच्चा और संपूर्ण था। वह उनके हृदय की गहराई से आया था और वास्तविक और स्थायी था।

एक बार जब नीनवे के लोग, राजा से लेकर प्रजा तक, यह जान गए कि यहोवा परमेश्वर उनसे क्रोधित है, तो परमेश्वर उनका अगला हर कार्य, उनका समग्र आचरण, उनका हर एक निर्णय और चुनाव स्पष्ट और प्रत्यक्ष रूप से देख सकता था। परमेश्वर का हृदय उनके व्यवहार के अनुसार बदल गया। उस क्षण परमेश्वर की मनःस्थिति क्या थी? बाइबल तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर दे सकती है। पवित्रशास्त्र में ये वचन दर्ज हैं: "जब परमेश्‍वर ने उनके कामों को देखा, कि वे कुमार्ग से फिर रहे हैं, तब परमेश्‍वर ने अपनी इच्छा बदल दी, और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया।" यद्यपि परमेश्वर ने अपना मन बदल लिया था, फिर भी उसकी मनःस्थिति बिलकुल भी जटिल नहीं थी। उसने अपना क्रोध व्यक्त करने के उसे शांत किया, और फिर नीनवे शहर पर विपत्ति न लाने का निर्णय लिया। परमेश्वर का निर्णय—विपत्ति से नीनवे के लोगों को बख्श देना—इतना शीघ्र होने का कारण यह है कि परमेश्वर ने नीनवे के हर व्यक्ति के हृदय का अवलोकन कर लिया था। उसने देखा कि उनके हृदय की गहराइयों में क्या है : अपने पापों के लिए उनका सच्चा पश्चात्ताप और स्वीकृति, परमेश्वर में उनका सच्चा विश्वास, उनका गहरा बोध कि कैसे उनके बुरे कार्यों ने परमेश्वर के स्वभाव को क्रोधित कर दिया, और इस वजह से यहोवा परमेश्वर से तुरंत मिलने वाले दंड से पैदा हुआ भय। साथ ही, यहोवा परमेश्वर ने उनके हृदय की गहराइयों से निकली उनकी प्रार्थनाएँ भी सुनीं, जिनमें उससे विनती की गई थी कि वह अब उन पर क्रोधित न हो, ताकि वे इस विपत्ति से बच सकें। जब परमेश्वर ने इन सभी तथ्यों का अवलोकन किया, तो धीरे-धीरे उसका क्रोध जाता रहा। चाहे उसका क्रोध पहले कितना भी विराट क्यों न रहा हो, लेकिन जब उसने इन लोगों के हृदय की गहराइयों में सच्चा पश्चात्ताप देखा, तो उसका हृदय पिघल गया, और इसलिए वह उन पर विपत्ति लाना सहन नहीं कर पाया, और उसने उन पर क्रोध करना बंद कर दिया। इसके बजाय उसने उन्हें अपनी दया और सहनशीलता प्रदान करना जारी रखा और वह उनका मार्गदर्शन और आपूर्ति करता रहा।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II

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