परमेश्वर की प्रजा कौन होते हैं? सेवाकर्त्ता कौन होते हैं?

14 मार्च, 2021

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

"पाँच समझदार कुँआरियाँ" मेरे द्वारा सृजित मनुष्यों के बीच में से मेरे पुत्रों और मेरे लोगों को दर्शाती हैं। उन्हें "कुँवारियाँ" इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे पृथ्वी पर पैदा होने पर भी मेरे द्वारा प्राप्त किए गए हैं; उन्हें पवित्र कहा जा सकता है, इसलिए उन्हें "कुँआरियाँ" कहा जाता है। पूर्वोक्त "पाँच" मेरे पुत्रों और मेरे लोगों की संख्या को दर्शाता है, जिन्हें मैंने पूर्वनियत किया है। "पाँच मूर्ख कुँआरियाँ" सेवा करने वालों को संदर्भित करता है। वे जीवन को जरा-सा भी महत्व दिए बिना केवल बाहरी चीज़ों का अनुसरण करते हुए मेरे लिए सेवा करते हैं (क्योंकि उनमें मेरी गुणवत्ता नहीं है, चाहे वे कुछ भी क्यों न करें, वह बाहरी चीज़ ही होती है), और वे मेरे सक्षम सहायक होने में असमर्थ हैं, इसलिए उन्हें "मूर्ख कुँआरियाँ" कहा जाता है। पूर्वोक्त "पाँच" शैतान का प्रतिनिधित्व करता है, और उन्हें "कुँआरियाँ" कहे जाने के तथ्य का अर्थ है कि वे मेरे द्वारा जीते जा चुके हैं और मेरे लिए सेवा करने में सक्षम हैं, किंतु इस तरह के व्यक्ति पवित्र नहीं हैं, इसलिए उन्हें सेवा करने वाले कहा जाता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 116

स्थिति अब वह नहीं है, जो कभी थी, और मेरा कार्य एक नए आरंभ-बिंदु में प्रवेश कर चुका है। ऐसा होने के कारण एक नया दृष्टिकोण होगा : वे सब, जो मेरा वचन देखते हैं और उसे ठीक अपने जीवन के रूप में स्वीकार करते हैं, वे लोग मेरे राज्य में हैं, और मेंरे राज्य में होने के कारण वे मेरे राज्य में परमेश्वर के लोग हैं। चूँकि वे मेरे वचनों का मार्गदर्शन स्वीकार करते हैं, अत: भले ही उन्हें परमेश्वर के लोग कहा जाता है, यह उपाधि मेरे "पुत्र" कहे जाने से किसी भी रूप में कम नहीं है। परमेश्वर के लोगों में शामिल होने के बाद सभी को मेरे राज्य में अधिकतम निष्ठा के साथ सेवा करनी चाहिए और मेरे राज्य में उन्हें अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिए। जो कोई मेरे प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन करेगा, उसे मेरी सजा अवश्य मिलनी चाहिए। यह सभी के लिए मेरी सलाह है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1

केवल परमेश्वर के आगे शांत रहने वाले लोग ही जीवन को महत्व देते हैं, आत्मा में संगति को महत्व देते हैं, परमेश्वर के वचनों के प्यासे होते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं। जो कोई भी परमेश्वर के आगे शांत रहने को महत्व नहीं देता है और परमेश्वर के समक्ष शांत रहने का अभ्यास नहीं करता वह अहंकारी और अल्पज्ञ है, संसार से जुड़ा है और जीवन-रहित है; भले ही वे कहें कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे केवल दिखावटी बात करते हैं। जिन्हें परमेश्वर अंततः सिद्ध बनाता है और पूर्णता देता है, वे लोग हैं जो परमेश्वर की उपस्थिति में शांत रह सकते हैं। इसलिए जो लोग परमेश्वर के समक्ष शांत होते हैं, वे बड़े आशीषों का अनुग्रह प्राप्त करते हैं। जो लोग दिन भर में परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिए शायद ही समय निकालते हैं, जो पूरी तरह से बाहरी मामलों में लीन रहते हैं और जीवन में प्रवेश को थोड़ा ही महत्व देते हैं—वे सब ढोंगी हैं, जिनके भविष्य में विकास के कोई आसार नहीं हैं। जो लोग परमेश्वर के समक्ष शांत रह सकते हैं और जो वास्तव में परमेश्वर से संगति कर सकते हैं, वे ही परमेश्वर के लोग होते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के बारे में

अभी अधिकांश लोग (मतलब ज्येष्ठ पुत्रों को छोड़कर सभी लोग) इसी स्थिति में हैं। मैं इन चीज़ों को बहुत स्पष्ट रूप से कहता हूँ, फिर भी इन लोगों की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती और ये लोग अपने शारीरिक सुख में ही लगे रहते हैं—खाते हैं और सो जाते हैं; सोते हैं और फिर खाते हैं, मेरे वचनों पर विचार नहीं करते। जब वे उत्साहित भी होते हैं, तो ऐसा केवल थोड़ी देर के लिए होता है, और बाद में वे वैसे ही बन जाते हैं जैसे थे, पूरी तरह से अपरिवर्तित, मानो उन्होंने मुझे सुना ही नहीं। ये अजीब से, बेकार इंसान हैं जिनके पास कोई ज़िम्मेदारी नहीं है—ये साफ तौर पर बेहद मुफ़्तखोर लोग होते हैं। बाद में, मैं उन्हें एक-एक कर त्याग दूँगा। चिंता मत करो! एक-एक कर, मैं उन्हें वापस अथाह-कुंड में भेज दूँगा। पवित्र आत्मा ने ऐसे लोगों पर कभी कार्य नहीं किया, और वे जो कुछ भी करते हैं, वह उन उपहारों से आता है जो उन्होंने प्राप्त किये हैं। जब मैं उपहारों की बात करता हूँ, तो मेरा मतलब है कि ये निष्प्राण लोग हैं, जो मेरे सेवादार हैं। मैं उनमें से किसी को भी नहीं चाहता, मैं उन्हें हटा दूँगा (किन्तु फिलहाल वे थोड़े उपयोगी हैं)।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 102

और इन सेवाकर्ताओं की भूमिका क्या है? यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सेवा करना है। मुख्य रूप से, उनकी भूमिका परमेश्वर के कार्य में अपनी सेवा प्रदान करना, उसमें सहयोग करना, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की पूर्णता में समायोजन करना है। ... एक सेवाकर्ता की पहचान है, वह जोकि सेवा करता है, किन्तु परमेश्वर के लिए, वह उन चीज़ों में से एक ही है जिनकी उसने रचना की है; यह मात्र इतना ही है कि उनकी भूमिका सेवाकर्ता की है। उन दोनों के ही परमेश्वर के प्राणी होने के नाते, क्या एक सेवाकर्ता और परमेश्वर के चुने हुए व्यक्ति के बीच कोई अन्तर है? वस्तुतः, अंतर नहीं है। नाममात्र के लिए कहें तो, एक अंतर है; सार का और उनके द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका के लिहाज से एक अंतर है—किन्तु परमेश्वर लोगों के इस समूह से कोई भेदभाव नहीं करता है। तो क्यों इन लोगों को सेवाकर्ता के रूप में परिभाषित किया जाता है? तुम लोगों को इस बात की कुछ समझ तो होनी ही चाहिए! सेवाकर्ता अविश्वासियों में से आते हैं। जैसे ही हम यह उल्लेख करते हैं कि वे अविश्वासियों में से आते हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका अतीत बुरा है: वे सब नास्तिक हैं और अतीत में भी ऐसे ही थे; वे परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे, और उसके, सत्य के, और सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुतापूर्ण थे। वे परमेश्वर या उसके अस्तित्व में विश्वास नहीं करते थे। तो क्या वे परमेश्वर के वचनों को समझने में सक्षम हैं? यह कहना उचित होगा कि, काफी हद तक, वे सक्षम नहीं हैं। ठीक जैसे कि पशु मनुष्य के शब्दों को समझने में सक्षम नहीं हैं, वैसे ही सेवाकर्ता भी यह नहीं समझ सकते कि परमेश्वर क्या कह रहा है, वह क्या चाहता है या वह ऐसी माँगें क्यों करता है। वे नहीं समझते; ये बातें उनकी समझ से बाहर हैं, और वे अप्रबुद्ध रहते हैं। इस कारण से, वे लोग उस जीवन को धारण नहीं करते हैं जिसके बारे में हमने बात की थी। बिना जीवन के, क्या लोग सत्य को समझ सकते हैं? क्या वे सत्य से सुसज्जित हैं? क्या उनके पास परमेश्वर के वचनों का अनुभव और ज्ञान है? (नहीं।) सेवाकर्ताओं के उद्गम ऐसे ही हैं। किन्तु, चूँकि परमेश्वर इन लोगों को सेवाकर्ता बनाता है, इसलिए उनसे उसकी अपेक्षाओं के भी मानक हैं; वह उन्हें तुच्छ दृष्टि से नहीं देखता है, न ही वह उनके प्रति बेपरवाह है। यद्यपि वे उसके वचनों को नहीं समझते हैं, और उनके पास जीवन नहीं है, फिर भी परमेश्वर उनके प्रति दयावान है, और तब भी उनसे उसकी अपेक्षाओं के मानक हैं। तुम लोगों ने अभी-अभी इन मानकों के बारे में बोला: परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना और वह करना जो वह कहता है। अपनी सेवा में तुम्हें अवश्य वहीं सेवा करनी चाहिए जहाँ आवश्यकता है, और बिल्कुल अंत तक सेवा करनी चाहिए। यदि तुम एक निष्ठावान सेवाकर्ता बन सकते हो, बिल्कुल अंत तक सेवा करने में सक्षम हो, और परमेश्वर द्वारा तुम्हें दिए सौंपे आदेश को पूर्ण कर सकते हो, तो तुम एक मूल्यों वाला जीवन जियोगे। यदि तुम इसे कर सकते हो, तो तुम शेष रह पाओगे। यदि तुम थोड़ा अधिक प्रयास करते हो, यदि तुम थोड़ा अधिक परिश्रम से प्रयास करते हो, परमेश्वर को जानने के अपने प्रयासों को दोगुना कर पाते हो, परमेश्वर को जानने को लेकर थोड़ा भी बोल पाते हो, उसकी गवाही दे सकते हो, और इसके अतिरिक्त, यदि तुम परमेश्वर की इच्छा में से कुछ समझ सकते हो, परमेश्वर के कार्य में सहयोग कर सकते हो, और परमेश्वर के इरादों के प्रति कुछ-कुछ सचेत हो सकते हो, तब एक सेवाकर्ता के तौर पर तुम अपने भाग्य में बदलाव महसूस करोगे। और भाग्य में यह परिवर्तन क्या होगा? अब तुम शेष नहीं रह पाओगे। तुम्हारे आचरण और तुम्हारी व्यक्तिगत आकांक्षाओं और खोज के आधार पर, परमेश्वर तुम्हें चुने हुओं में से एक बनाएगा। यह तुम्हारे भाग्य में परिवर्तन होगा। सेवाकर्ताओं के लिए इसमें सर्वोत्तम बात क्या है? वह यह है कि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक बन सकते हैं। ... क्या यह अच्छा है? हाँ, है, और यह भी एक अच्छा समाचार है: इसका अर्थ है कि सेवाकर्ताओं को ढाला जा सकता है। ऐसी बात नहीं है कि सेवा करने वाले के लिए, जब परमेश्वर उसे सेवा के लिए पूर्वनिर्धारित करता है, तो वह हमेशा ऐसा ही करेगा; ऐसा होना आवश्यक नहीं है। परमेश्वर उसे उसके व्यक्तिगत आचरण के आधार पर सबसे उपयुक्त तरीके से संभालेगा और उसे उत्तर देगा।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X

संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण:

परमेश्वर के लोग कौन हैं? परमेश्वर से संबंध रखने वाले सभी लोग राज्य के युग में रह सकते हैं और बचाये जा सकते हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है और सत्य को प्राप्त किया है, वे ऐसे लोग हैं जिनके पास नया जीवन है। परमेश्वर के लोगों के पास परमेश्वर का सच्चा ज्ञान है, वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं, और अंततः कई परीक्षणों, शुद्धिकरणों, क्लेशों और आपदाओं से गुज़रने के बाद, वे पूर्ण किए जा चुके हैं। परमेश्वर के लोग वे हैं जिन्हें परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के बाद पूर्ण किया जाता है। परमेश्वर से संबंधित सभी लोगों में तीन गुण होते हैं: एक, उनके पास एक ऐसा हृदय होता है जो परमेश्वर का सम्मान करता है, यही मुख्य बात है; दो, उनकी मानवता काफी अच्छी होती है, उनकी एक अच्छी प्रतिष्ठा होती है, ज्यादातर लोग उनको स्वीकार करते हैं; तीन, वे अपना कर्तव्य वफादारी के साथ पूरा करते हैं। अगर लोगों के पास ये तीन विशेषताएँ हैं, तो वे परमेश्वर के लोग हैं। परमेश्वर के लोगों में से एक के रूप में, यह मायने नहीं रखता है कि उसकी क्षमता कितनी उच्च है; वास्तव में, उसकी क्षमता कम से कम औसत होती है, वह औसत सत्य को समझ सकता है, लेकिन मुख्य बात यह है कि उसके पास ऐसा हृदय होता है जो परमेश्वर का सम्मान करता है, उसके पास अच्छी मानवता होती है। चाहे तुम उसे कहीं भी क्यों न रखो, और चाहे तुम उसे कोई भी काम करने को क्यों न कहो, वह बहुत विश्वसनीय होता है। वह तुम्हारे सामने एक तरह का, और तुम्हारी पीठ पीछे किसी और तरह का नहीं होता है, वह दोगला नहीं होता, वह बाहर से सहमत लेकिन छुपकर विरोधी नहीं होता है। बल्कि वह ईमानदार होता है, भरोसेमंद होता है, वह दूसरों में विश्वास पैदा करता है। ऐसे लोग वे सभी हैं जिनमें काफी अच्छी मानवता होती है और जो काफी ईमानदार होते हैं; इस प्रकार के लोग राज्य के युग में परमेश्वर के लोग हैं।

— 'जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति' से उद्धृत

सेवा करने वालों ने सत्य को अपना जीवन नहीं बनाया है, वे केवल परमेश्वर के लिए सेवा करते हैं, परमेश्वर के लिए उनका हृदय ईमानदार होता है, उनमें आस्था होती है, उनमें अच्छी मानवता होती है, लेकिन वे सत्य को उतना पसंद नहीं करते हैं। वे परमेश्वर के लिए उत्साहपूर्वक स्वयं को खपाते हैं, और किसी भी कठिनाई को सहन करने के लिए तैयार होते हैं, वे बिलकुल अंत तक अनुसरण करते हैं और परमेश्वर को कभी नहीं छोड़ते हैं। इस प्रकार के लोग समर्पित सेवा करने वालों से संबंधित हैं और उन्हें बनाये रखा जाएगा। ... ऐसा क्यों कहा जाता है कि वे सेवा करने वालों की श्रेणी से संबंधित हैं? क्योंकि वे सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं! जो व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है उसके लिए ऐसे पल भी आते हैं जब उसकी भ्रष्टता प्रकट होती है, ऐसे मौके भी आते हैं जब वह पराजय में गिर पड़ता है, लेकिन एक बार जब उसे काट-छाँट दिया जाता है, या एक बार उसका निपटारा कर लिया जाता है, उसे परमेश्वर के घर से निष्कासित कर दिया जाता है, और वह कुछ विफलताओं और रुकावटों का अनुभव कर लेता है, तो उसकी समझ में आ जाता है कि, "जो सत्य के बिना है, वह बहुत दयनीय है, जो जोश पर भरोसा करता है वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता है! यदि कोई सत्य का अभ्यास नहीं कर सकता है, यदि कोई सत्य को नहीं समझता है, तो वह अपने कर्तव्य को मानक तक पूरा करने का प्रयास नहीं कर सकता है, क्या ऐसा व्यक्ति सेवा करने वाला नहीं है? मैं सत्य का अनुसरण करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता हूँ! मैं एक सेवा करने वाला नहीं बन सकता हूँ, परमेश्वर के हृदय को सान्त्वना देने और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए मुझे अवश्य अपने कर्तव्य को मानक तक पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।" वह जागता है, और सत्य का अनुसरण करना शुरू करता है, और अंत में वास्तव में कुछ सत्य प्राप्त करता है, उसके पास वास्तव में एक ऐसा हृदय विकसित होने लगता है जो परमेश्वर का सम्मान करता है। क्या इस तरह के लोग सेवा करने वाले हैं? वे परमेश्वर के लोगों से संबंधित हैं, क्योंकि उनके पास अब कुछ सत्य है, उनके पास ऐसा हृदय है जो परमेश्वर का सम्मान करता है, एक ऐसा हृदय है जो परमेश्वर से प्रेम करता है। जैसे ही वे अवज्ञाकारी और प्रतिरोधी बनते हैं, वे इसे जान लेते हैं, और वे परमेश्वर के सामने पश्चाताप करते हैं, फिर वे बदल जाते हैं; इस तरह का व्यक्ति वह है जो अपना जीवन सत्य में बिताता है।

क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर के लोगों और सेवा करने वालों के बीच बड़ा अंतर है? हालाँकि यह अंतर बहुत बड़ा नहीं है, या उतना स्पष्ट नहीं है, लेकिन सार रूप में वे एक जैसे नहीं हैं। सेवा करने वालों के पास केवल परमेश्वर के प्रति थोड़ा डर होता है, वे सिर्फ कहते हैं, "परमेश्वर का अपमान मत करो! यदि तुम परमेश्वर का अपमान करोगे तो तुम दंडित किए जाओगे!" क्या इसे परमेश्वर के प्रति एक सच्ची श्रद्धा माना जा सकता है? वे लोग जिनके पास परमेश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा वाला हृदय है, वे न केवल इस बात का विचार करते हैं कि क्या वे परमेश्वर का अपमान करेंगे या नहीं, बल्कि वे इस बात का भी विचार करते हैं कि क्या वे सत्य के विरुद्ध जा रहे हैं या नहीं, क्या वे परमेश्वर के वचनों के विरुद्ध जा रहे हैं या नहीं, क्या कुछ करना परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारिता है, क्या वह परमेश्वर के हृदय को कष्ट पहुँचा सकता है, वे परमेश्वर को कैसे संतुष्ट कर सकते हैं। वे इन सभी पहलुओं पर विचार करते हैं, यह एक ऐसा हृदय रखना है जो परमेश्वर का सम्मान करता हो। जिसके पास ऐसा हृदय है जो परमेश्वर का सम्मान करता हो और सत्य का अभ्यास करता हो, वह कम से कम बुराई से तो दूर रह सकता है, और वह उन चीजों को नहीं कर सकता है जो परमेश्वर का विरोध करती हैं। वह इस आधार-रेखा से परे जाने में सक्षम है; इसे ऐसा हृदय रखना कहा जाता है जो परमेश्वर का सम्मान करता है। परमेश्वर का सम्मान करने वाला हृदय रखने और परमेश्वर से कुछ डरने वाला हृदय रखने के बीच एक अंतर है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके पास परमेश्वर का सम्मान करने वाला हृदय है वास्तव में कुछ सच्चाइयों को समझता है, और परमेश्वर के कुछ वचनों को अभ्यास में ला सकता है, तो इस व्यक्ति के पास निश्चित रूप से जीवन है; सत्य ही जिसका जीवन है वह परमेश्वर के लोगों से संबंधित है। सेवा करने वालों के पास उनके जीवन के रूप में सत्य नहीं होता है, उन्हें सत्य पसंद नहीं होता है, और उनके पास केवल परमेश्वर पर आस्था होती है। इसके अलावा, उनके पास उत्साह होता है, उनकी मानवता कम से कम औसत होती है; वे परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने के लिए तैयार रहते हैं। चाहे घर में कितनी भी परेशानियाँ क्यों न हों, चाहे वे कैसी भी स्थिति का सामना क्यों न करें, चाहे वे कैसी भी परीक्षाओं का सामना क्यों न करें, वे परमेश्वर की सेवा करने में लगे रहते हैं, बिना पीछे हटे, बिल्कुल अंत तक समर्पित रहते हैं। ये ऐसे लोग हैं जो वफादार सेवा करने वाले बने रहेंगे। कुछ सेवा करने वाले अंत तक सेवा नहीं करते हैं; जैसे ही वे सुनते हैं कि वे आशीष प्राप्त नहीं करेंगे, वे सेवा करना बंद कर देते हैं। कुछ सेवा करने वाले, जो अच्छी तरह से सेवा करने में अक्षम होते हैं, वे किसी को भी अपने मामले में हस्तक्षेप नहीं करने देते हैं; जैसे ही कोई उनके साथ हस्तक्षेप करता है, वे कहते हैं, "मैं अब और सेवा नहीं करूँगा, मैं घर जा रहा हूँ।" कुछ सेवा करने वाले, गंभीर परिस्थितियों का सामना करने पर, उदाहरण के लिए, गिरफ्तार किए जाने पर, कायर बन जाते हैं और पीछे हट जाते हैं। कुछ सेवा करने वाले, सेवा करते हुए भी अपने परिवार के जीवन के बारे में चिंतित रहते हैं, "मेरा परिवार कैसे रहेगा? मुझे अवश्य वापस जाना चाहिए और कुछ पैसे कमाने चाहिए, मुझे अवश्य अपने पति (या पत्नी) और बच्चों की अच्छी देखभाल करनी चाहिए।" वे काम करते वक्त, परमेश्वर के प्रति निष्ठा रखे बिना, पीछे की ओर देखते हैं। इस प्रकार के सेवा करने वाले मानक के अनुसार नहीं हैं, और इसलिए हटा दिए जाएंगे।

— 'जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति' से उद्धृत

अतीत में, बहुत से लोग ऐसे थे जो यह नहीं समझते कि परमेश्वर के लोग कौन हैं। आखिरकार, परमेश्वर के लोग क्या हैं? क्या यह सच है कि परमेश्वर के लोग हम हैं, जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया है? ऐसा नहीं है कि जब तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम स्वीकार करते हो, तब तुम परमेश्वर के लोगों में से एक बन जाते हो। इसके लिए, पूर्ण किये जाने की एक प्रक्रिया है जिसका एक मानदंड है। वह मानदंड क्या है? यह तुम्हारे द्वारा अपने कर्तव्य को एक मानक तक पूरा किया जाना है, और केवल तभी तुम परमेश्वर के लोगों में से एक होगे, और जो लोग अपना कर्तव्य करने में मानदंड तक नहीं पहुंच पाएं हैं, वे परमेश्वर के लोग नहीं हैं। अगर वे परमेश्वर के लोग नहीं हैं, तो वे आखिर क्या हैं? वे सेवा कर्ता हैं। मानदंड तक पहुंचने से पहले अभ्यास के चरण में, उन्हें सेवा कर्ता कहा जाता है। जिन लोगों ने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है उन्हें सेवा कर्ता कहा जाता है। जब कोई सत्य प्राप्त कर लेता है और सिद्धांत के अनुसार मामलों को संभालने में सक्षम हो जाता है, तो इसका मतलब है कि उसने जीवन प्राप्त कर लिया है। जिन लोगों ने सत्य को अपना जीवन बनाया है, वे ही वास्तव में परमेश्वर के लोग हैं।

— 'जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति' से उद्धृत

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद: "हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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