पाँचवें दिन विविध और विभिन्न संरचनाओं का जीवन विभिन्न तरीकों से सृष्टिकर्ता के अधिकार को प्रदर्शित करता है

28 मई, 2018

पवित्र-शास्त्र कहता है, “फिर परमेश्वर ने कहा, ‘जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।’ इसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्‍टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया, और एक एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्‍टि की : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है” (उत्पत्ति 1:20-21)। पवित्रशास्त्र हमें स्पष्ट रूप से बताता है कि इस दिन परमेश्वर ने जल में रहने वाले जीव-जंतु और हवा में उड़ने वाले पक्षी बनाए, अर्थात उसने विभिन्न मछलियाँ और चिड़ियाँ सृजित कीं, और उनमें से प्रत्येक को उनकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया। इस तरह, पृथ्वी, आकाश और जल परमेश्वर की सृष्टि से समृद्ध हुए ...

जैसे ही परमेश्वर ने वचन बोले, अलग-अलग रूप में नया जीवन सृष्टिकर्ता के वचनों के बीच तुरंत जीवित हो गया। वे अपने स्थान पर पहुँचने के लिए एक-दूसरे को धक्का देते, उछलते-कूदते, खुशी से इठलाते हुए दुनिया में आए...। हर आकार-प्रकार की मछलियाँ पानी में तैरने लगीं; सभी तरह के घोंघे रेत से निकल आए; शल्क वाले, खोल वाले और बिना रीढ़ के जीव जल्दी से छोटे-बड़े, लंबे-ठिंगने अलग-अलग रूपों में विकसित हो गए। इसी तरह विभिन्न प्रकार के समुद्री शैवाल भी विभिन्न जलीय जीवन की गति से डोलते, लहराते हुए, रुके हुए समुद्र से आग्रह करते हुए तेजी से बढ़ने लगे, मानो उससे कह रहे हों : “जल्दी करो! अपने दोस्तों को लाओ! तुम फिर कभी अकेले नहीं होगे!” जिस क्षण से परमेश्वर द्वारा बनाए गए विभिन्न जीवित प्राणी पानी में प्रकट हुए, हर ताजा नया जीवन उस पानी में जीवन-शक्ति लेकर आया जो इतने लंबे समय से निश्चल था, और एक नए युग की शुरुआत की...। उस क्षण से वे एक-दूसरे से चिपटे हुए, एक-दूसरे का साथ देने लगे, और अपने बीच कोई दूरी नहीं रखी। जल अपने भीतर के प्राणियों के लिए अस्तित्व में था, अपनी गोद में पलने वाले प्रत्येक जीवन का पोषण करता था, और प्रत्येक जीवन जल के लिए, उसके पोषण के कारण अस्तित्व में था। प्रत्येक ने एक-दूसरे को जीवन प्रदान किया, और साथ ही, प्रत्येक ने, उसी तरह, सृष्टिकर्ता के सृजन के चमत्कारिकता और महानता, और सृष्टिकर्ता के अधिकार के अलंघ्य सामर्थ्य की गवाही दी ...

जैसे समुद्र अब शांत नहीं था, वैसे ही आसमान भी जीवन से भरने लगा। एक-एक करके छोटे-बड़े पक्षी जमीन से आसमान में उड़ गए। समुद्री जीवों के विपरीत उनके पंख और डैने थे, जिनसे उनके पतले और सुंदर शरीर ढके हुए थे। उन्होंने अपने पंख फड़फड़ाए, गर्व और अभिमान से अपने पंखों के भव्य आवरण और अपने विशेष कार्यों और कौशलों का प्रदर्शन किया, जो उन्हें सृष्टिकर्ता द्वारा प्रदान किए गए थे। वे आजादी से उड़ गए, और कुशलता से आकाश और पृथ्वी के बीच, घास के मैदानों और जंगलों में आवाजाही करने लगे...। वे हवा के लाड़ले थे, वे सभी चीजों के दुलारे थे। वे जल्दी ही आकाश और पृथ्वी के बीच जोड़ बनने और सभी चीजों को इसका संदेश देने वाले थे...। वे गाते थे, खुशी से गोता लगाते थे, कभी खाली रही इस दुनिया में वे प्रसन्नता, हँसी और जीवंतता लाए...। खुद को मिले जीवन के लिए उन्होंने सृष्टिकर्ता की प्रशंसा करने के लिए अपने स्पष्ट, मधुर गायन और अपने दिल में बसे शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने सृष्टिकर्ता के सृजन की पूर्णता और चमत्कारिकता प्रदर्शित करने के लिए खुशी से नृत्य किया, और सृष्टिकर्ता द्वारा प्रदान किए गए विशेष जीवन के माध्यम से उसके अधिकार की गवाही देने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया ...

ये प्रचुर जीव, चाहे पानी में हों या आसमान में, सृष्टिकर्ता की आज्ञा से जीवन के विभिन्न विन्यासों में अस्तित्व में आ गए, और सृष्टिकर्ता की आज्ञा से ही वे अपनी-अपनी प्रजाति के अनुसार एक-साथ एकत्र हो गए—और यह नियम, यह व्यवस्था किसी भी प्राणी द्वारा अपरिवर्तनीय थी। उन्होंने कभी भी सृष्टिकर्ता द्वारा उनके लिए निर्धारित सीमा से आगे जाने की हिम्मत नहीं की, न ही वे इसमें सक्षम थे। सृष्टिकर्ता के आदेशानुसार वे जीने और वंशवृद्धि करने लगे, और सृष्टिकर्ता द्वारा उनके लिए निर्धारित जीवन-क्रम और व्यवस्थाओं का सख्ती से पालन करने लगे, और सजगतापुर्वक उसकी अनकही आज्ञाओं और उसके द्वारा उन्हें दिए गए स्वर्गिक आदेशों और नियमों का पालन करने लगे और आज तक करते आ रहे हैं। उन्होंने सृष्टिकर्ता के साथ अपने विशेष तरीके से बातचीत की, सृष्टिकर्ता का आशय समझा और उसकी आज्ञाओं का पालन किया। किसी ने भी कभी सृष्टिकर्ता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया, वह अपने विचारों में ही उन पर संप्रभुता रखता और उन्हें आज्ञा देता था; कोई वचन जारी नहीं किए गए थे, लेकिन सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार ने मौन में उन सभी चीजों को नियंत्रित किया, इसमें भाषा का कोई कार्य नहीं था और यह मानव-जाति से भिन्न था। इस विशेष तरीके से उसके अधिकार के प्रयोग ने मनुष्य को सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार एक नया ज्ञान प्राप्त करने और उसकी एक नई व्याख्या करने के लिए विवश किया। यहाँ मैं तुम्हें बता दूँ कि इस नए दिन सृष्टिकर्ता के अधिकार के प्रयोग ने एक बार फिर सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता प्रदर्शित की।

इसके बाद, हम पवित्रशास्त्र के इस अंश के अंतिम वाक्य पर एक नजर डालते हैं : “परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।” तुम लोग क्या सोचते हो, इसका क्या मतलब है? इन वचनों के भीतर परमेश्वर की भावनाएँ निहित हैं। परमेश्वर ने स्वयं द्वारा सृजित सभी चीजों को अपने वचनों के कारण अस्तित्व में आते और डटे रहते देखा, जो धीरे-धीरे बदलने लगीं। इस समय, क्या परमेश्वर उन विभिन्न चीजों से संतुष्ट था जिन्हें उसने अपने वचनों से बनाया था, और उन विभिन्न कार्यों से संतुष्ट था जो उसने पूरे किए थे? इसका उत्तर है कि “परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।” तुम लोग यहाँ क्या देखते हो? “परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है” क्या दर्शाता है? यह किसका प्रतीक है? इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर ने जिस चीज की योजना बनाई और निर्धारित की थी, जो लक्ष्य उसने पूरे करने तय किए थे, उन्हें पूरा करने का सामर्थ्य और बुद्धि उसके पास थी। जब परमेश्वर ने हर काम पूरा कर लिया, तो क्या उसे खेद हुआ? जवाब अभी भी यही है कि “परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।” दूसरे शब्दों में, उसे न केवल कोई पछतावा महसूस नहीं हुआ, बल्कि वह संतुष्ट भी हुआ। इसका क्या मतलब है कि उसे कोई पछतावा महसूस नहीं हुआ? इसका मतलब है कि परमेश्वर की योजना पूर्ण है, उसका सामर्थ्य और बुद्धि पूर्ण है, और केवल उसके अधिकार से ही ऐसी पूर्णता प्राप्त की जा सकती है। जब मनुष्य कोई कार्य करता है, तो क्या वह, परमेश्वर की तरह, देख सकता है कि यह अच्छा है? क्या मनुष्य जो कुछ भी करता है, वह पूर्णता प्राप्त कर सकता है? क्या मनुष्य कोई चीज हमेशा-हमेशा के लिए पूरा कर सकता है? ठीक जैसे मनुष्य कहता है, “कुछ भी पूर्ण नहीं है, केवल बेहतर है,” मनुष्य जो कुछ भी करता है, वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता। जब परमेश्वर ने देखा कि उसने जो कुछ किया और हासिल किया वह सब अच्छा है, परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया वह उसके वचनों द्वारा निर्धारित किया गया था, अर्थात, जब “परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है,” तो उसने जो कुछ भी बनाया था उसने एक स्थायी रूप ग्रहण कर लिया, किस्म के अनुसार वर्गीकृत कर दिया गया, और उसे अनंत काल के लिए एक निश्चित स्थान, उद्देश्य और कार्य दे दिया गया। इसके अलावा, सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका, और वह यात्रा जो उसे परमेश्वर के सभी चीजों के प्रबंधन के दौरान करनी चाहिए, पहले से ही परमेश्वर द्वारा निर्धारित कर दी गई थी, और वह अपरिवर्तनीय थीं। यह सृष्टिकर्ता द्वारा सभी चीजों को दी गई स्वर्गिक व्यवस्था थी।

“परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है,” ये सरल, कम समझे गए वचन, जिन्हें अक्सर अनदेखा किया जाता है, परमेश्वर द्वारा सभी प्राणियों को दी गई स्वर्गिक व्यवस्था और स्वर्गिक आदेश के वचन हैं। ये सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक और मूर्त रूप हैं, जो ज्यादा व्यावहारिक और ज्यादा गहरा है। अपने वचनों के माध्यम से सृष्टिकर्ता न केवल वह सब प्राप्त करने में सक्षम रहा जिसे उसने प्राप्त करना निर्धारित किया था, और वह सब हासिल करने में सक्षम रहा जिसे उसने हासिल करना निर्धारित किया था, बल्कि वह अपने हाथों में वह सब-कुछ नियंत्रित कर सका जिसे उसने सृजित किया था, और उन सभी चीजों पर शासन कर सका जिन्हें उसने अपने अधिकार के तहत बनाया था, और, इसके अलावा, सब-कुछ व्यवस्थित और नियमित था। उसके वचन के द्वारा सभी चीजें बढ़ीं भी, अस्तित्व में रहीं, और नष्ट भी हो गईं और, इसके अलावा, उसके अधिकार से वे उस व्यवस्था के बीच मौजूद रहीं जिसे उसने निर्धारित किया था, और कोई भी इससे मुक्त नहीं था! यह व्यवस्था उसी क्षण शुरू हो गई, जब “परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है,” और यह परमेश्वर की प्रबंधन-योजना के लिए ठीक उस दिन तक मौजूद, जारी और कार्यरत रहेगी, जब तक इसे सृष्टिकर्ता द्वारा निरस्त न कर दिया जाए! सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार न केवल सभी चीजें सृजित कर उन्हें अस्तित्व में आने की आज्ञा देने की उसकी क्षमता में प्रकट हुआ, बल्कि सभी चीजों पर शासन करने और उन पर संप्रभुता रखने, और सभी चीजों को जीवन और जीवन-शक्ति प्रदान करने की उसकी क्षमता में प्रकट हुआ, इसके अलावा यह उसकी इस क्षमता में प्रकट हुआ कि अपनी योजना में उसने जिन चीजों को रचा, वे अनंत काल तक के लिए उसके द्वारा बनाई गई दुनिया में एक पूर्ण आकार, पूर्ण जीवन-संरचना और एक पूर्ण भूमिका में प्रकट होकर अस्तित्व में रहें। इसी तरह वह इस रूप में भी प्रकट हुआ कि सृष्टिकर्ता के विचार किसी बंधन के अधीन नहीं थे, समय, स्थान या भूगोल द्वारा सीमित नहीं थे। सृष्टिकर्ता के अधिकार की तरह उसकी अद्वितीय पहचान अनंत काल से अनंत काल तक अपरिवर्तित रहेगी। उसका अधिकार हमेशा उसकी विशिष्ट पहचान का प्रतिरूप और प्रतीक होगा, और उसका अधिकार हमेशा उसकी पहचान के साथ-साथ मौजूद रहेगा!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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