छठे दिन, सृष्टिकर्ता बोलता है और उसके दिमाग में मौजूद हर तरह का प्राणी एक के बाद एक प्रकट होता है

28 मई, 2018

अलक्षित रूप से, सृष्टिकर्ता का सभी चीजों को बनाने का कार्य पाँच दिनों तक जारी रहा, जिसके तुरंत बाद सृष्टिकर्ता ने सभी चीजों के सृजन के छठे दिन का स्वागत किया। यह दिन एक और नई शुरुआत और एक और असाधारण दिन था। तो फिर, इस नए दिन की पूर्वसंध्या पर सृष्टिकर्ता की क्या योजना थी? वह कौन-से नए जीव पैदा करने वाला था, सृजित करने वाला था? सुनो, यह है सृष्टिकर्ता की वाणी ...

“फिर परमेश्वर ने कहा, ‘पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों,’ और वैसा ही हो गया। इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वन-पशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है” (उत्पत्ति 1:24-25)। इनमें कौन से जीवित प्राणी शामिल हैं? पवित्रशास्त्र कहता है : पशु, रेंगने वाले जंतु, और पृथ्वी के जाति-जाति के पशु। कहने का तात्पर्य यह है कि, इस दिन पृथ्वी पर न केवल सभी प्रकार के जीवित प्राणी थे, बल्कि वे सभी अपनी किस्म के अनुसार वर्गीकृत भी किए गए थे, और इसी तरह, “परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।”

पिछले पाँच दिनों की ही तरह, सृष्टिकर्ता ने उसी स्वर में बोलकर उन जीवित प्राणियों के जन्म का आदेश दिया, जिन्हें वह चाहता था, और कहा कि वे अपनी-अपनी किस्म के अनुसार पृथ्वी पर प्रकट हो जाएँ। जब सृष्टिकर्ता अपने अधिकार का प्रयोग करता है, तो उसका कोई भी वचन व्यर्थ नहीं बोला जाता, और इसलिए, छठे दिन, प्रत्येक जीवित प्राणी जिसे उसने बनाने का इरादा किया था, नियत समय पर प्रकट हो गया। जैसे ही सृष्टिकर्ता ने कहा, “पृथ्वी से एक-एक जाति के प्राणी, उत्पन्न हों,” पृथ्वी तुरंत जीवन से भर गई, और भूमि पर अचानक सभी प्रकार के जीवित प्राणियों की साँस उभरी...। घास के हरे जंगल में, मोटी-ताजी गायें अपनी पूँछ इधर-उधर सरसराती हुई एक के बाद एक प्रकट हुईं, मिमियाती भेड़ों ने खुद को झुंडों में इकट्ठा कर लिया, और हिनहिनाते घोड़े सरपट दौड़ने लगे...। पल भर में खामोश विशाल चरागाहों में जीवन का विस्फोट हो गया...। इन विभिन्न पशुओं की उपस्थिति घास के शांत मैदान पर एक सुंदर नजारा था, जो असीम जीवन-शक्ति लेकर आए। ये घास के मैदानों के साथी होंगे, घास के मैदानों के स्वामी होंगे, परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर रहेंगे; इसी तरह, वे इन भूमियों के संरक्षक और रखवाले होंगे, जो उनके स्थायी निवास-स्थान होंगे, और जो उन्हें उनकी जरूरत की हर चीज प्रदान करेंगे, जो उनके अस्तित्व के लिए शाश्वत पोषण के स्रोत होंगे ...

जिस दिन ये विभिन्न पशु अस्तित्व में आए, उसी दिन, सृष्टिकर्ता के वचन के द्वारा, एक के बाद एक बहुत सारे कीड़े भी प्रकट हुए। भले ही वे सभी प्राणियों में सबसे छोटे जीवित प्राणी थे, फिर भी उनकी जीवन-शक्ति सृष्टिकर्ता की चमत्कारी रचना थी, और वे बहुत देर से नहीं पहुँचे थे...। कुछ ने अपने छोटे-छोटे पंख फड़फड़ाए, जबकि अन्य धीरे-धीरे रेंगे; कुछ उछले-कूदे, कुछ डगमगाए; कुछ तेजी से आगे बढ़े, जबकि अन्य जल्दी से पीछे हट गए; कुछ बगल में चले गए, अन्य ऊपर-नीचे कूदने लगे...। सब अपने लिए घर ढूँढ़ने की कोशिश में व्यस्त थे : कुछ ने घास में अपना रास्ता बना लिया, कुछ जमीन में बिल बनाने लगे, कोई उड़कर जंगलों में छिपे पेड़ों पर चले गए...। आकार में छोटे होते हुए भी वे खाली पेट की पीड़ा सहने को तैयार नहीं थे, और अपना घर पाकर, वे अपना पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में दौड़ पड़े। कुछ घास पर चढ़कर उसकी कोमल पत्तियाँ खाने लगे, कुछ ने झपटकर थोड़ी मिट्टी उठाई और उसे बहुत उत्साह और मजे से खाते हुए अपने पेट में निगल लिया (उनके लिए मिट्टी भी एक स्वादिष्ट भोजन है); कुछ जंगल में छिपे हुए थे, लेकिन वे आराम करने के लिए नहीं रुके, क्योंकि चमकदार गहरे हरे पत्तों के रस ने उन्हें एक रसीला भोजन प्रदान किया...। तृप्त होने के बाद भी, कीड़ों ने अपनी गतिविधि बंद नहीं की; कद में छोटे होते हुए भी उनमें जबरदस्त ऊर्जा और असीम उल्लास भरा था, और इसलिए सभी प्राणियों में वे सबसे सक्रिय और सबसे मेहनती हैं। उन्होंने कभी आलस नहीं किया, न कभी आराम किया। भूख शांत हो जाने पर भी उन्होंने अपने भविष्य के लिए कड़ी मेहनत की, अपने कल, अपने अस्तित्व के लिए खुद को व्यस्त रखा और दौड़-भाग करते रहे...। खुद को प्रेरित-प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने नजाकत से विभिन्न धुनों और लय के लोकगीत गुनगुनाए। उन्होंने घास, पेड़ और मिट्टी के कण-कण में खुशी भी जोड़ दी, हर दिन और हर साल को अनोखा बना दिया...। अपनी-अपनी भाषाओं में और अपने-अपने तरीकों से उन्होंने धरती के सभी जीवित प्राणियों तक जानकारी पहुँचा दी। अपने विशेष जीवन-क्रम का उपयोग करते हुए, उन्होंने उन सभी चीजों को चिह्नित कर दिया, जिन पर उन्होंने निशान छोड़े थे...। मिट्टी, घास और जंगलों के साथ उनका घनिष्ठ संबंध था, और वे मिट्टी, घास और जंगलों में जोश और जीवन-शक्ति लाए। वे सृष्टिकर्ता के उपदेश और अभिवादन सभी जीवित प्राणियों तक लेकर आए ...

सृष्टिकर्ता की निगाह उन सभी चीजों पर पड़ी, जिनका उसने सृजन किया था, और इस समय उसकी नजरें जंगलों और पहाड़ों पर आकर टिक गईं, उसका दिमाग सोच-विचार कर रहा था। जैसे ही उसने वचन बोले, घने जंगलों में, और पहाड़ों पर, एक प्रकार के जीव प्रकट हुए, जो पहले आए किसी भी प्राणी से भिन्न थे : वे परमेश्वर के मुख से बोले गए जंगली जानवर थे। उन चिर-प्रतीक्षित जानवरों ने अपना सिर हिलाया और पूँछ घुमाई, प्रत्येक का अपना अनूठा चेहरा था। कुछ के पास रोएँदार कोट थे, कुछ के पास कवच था, कुछ ने जहरीले दाँत दिखाए, कुछ ने मुस्कराहट ओढ़ी हुई थी, कुछ लंबी गर्दन वाले थे, कुछ छोटी पूँछ वाले थे, कुछ जंगली आँखों वाले थे, कुछ की दृष्टि कातर थी, कुछ घास खाने के लिए झुके हुए थे, कुछ के मुँह पर खून लगा था, कुछ दो पैरों पर उछल रहे थे, कुछ चार खुरों से चल रहे थे, कुछ पेड़ों के ऊपर बैठकर दूर तक निहार रहे थे, कुछ जंगलों में घात लगाए बैठे थे, कुछ आराम करने के लिए गुफाएँ तलाश रहे थे, कुछ मैदानों पर दौड़ और उछल-कूद रहे थे, कुछ जंगलों के बीच शिकार खोजते फिर रहे थे...; कुछ दहाड़ रहे थे, कुछ गरज रहे थे, कुछ भौंक रहे थे, कुछ चीख रहे थे...; कुछ ऊँचे सुर में गाने वाले थे, कुछ मध्यम सुर में गाने वाले थे, कुछ गला फाड़कर गाने वाले थे, कुछ स्पष्ट और मधुर सुर वाले थे...; कुछ कुरूप थे, कुछ सुंदर थे, कुछ घृणित थे, कुछ मनमोहक थे, कुछ भयानक थे, कुछ आकर्षक रूप से भोले थे...। एक-एक करके वे सभी सामने आए। देखो, वे कितने ऊँचे और पराक्रमी हैं, स्वतंत्र, एक-दूसरे के प्रति उदासीन, एक-दूसरे पर एक नजर डालने की परवाह तक नहीं करते...। उनमें से प्रत्येक सृष्टिकर्ता द्वारा दिया गया विशेष जीवन, अपना जंगलीपन और क्रूरता धारण किए हुए जंगलों में और पहाड़ों पर दिखाई दिया। सबसे तिरस्कारपूर्ण, इतने निरंकुश—आखिरकार वे पहाड़ों और जंगलों के सच्चे स्वामी थे। जिस क्षण से सृष्टिकर्ता ने उनके प्रकटन का आदेश दिया, उन्होंने जंगलों और पहाड़ों पर “दावा ठोंक दिया”, क्योंकि सृष्टिकर्ता ने पहले ही उनकी सीमाएँ तय कर दी थीं और उनके अस्तित्व का दायरा तय कर दिया था। केवल वे ही पहाड़ों और जंगलों के सच्चे स्वामी थे, और इसीलिए वे इतने जंगली, इतने तिरस्कारपूर्ण थे। उन्हें “जंगली जानवर” विशुद्ध रूप से इसलिए कहा जाता था, क्योंकि सभी प्राणियों में, वे ही थे जो वास्तव में जंगली, क्रूर और अदम्य थे। उन्हें वश में नहीं किया जा सकता था, इसलिए उन्हें पाला नहीं जा सकता था, और वे मानव-जाति के साथ सामंजस्यपूर्वक नहीं रह सकते थे या मानव-जाति के लिए श्रम नहीं कर सकते थे। चूँकि उन्हें पाला नहीं जा सकता था, और वे मानव-जाति के लिए काम नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्हें मानव-जाति से दूर जीना पड़ा, और मनुष्य उनसे संपर्क नहीं कर सकते थे। यह उनके मानव-जाति से दूर रहने और मनुष्य द्वारा उनसे संपर्क न किए जा सकने का ही नतीजा था, कि वे सृष्टिकर्ता द्वारा दी गई जिम्मेदारी पूरी करने में सक्षम थे : पहाड़ों और जंगलों की रक्षा करने की जिम्मेदारी। उनके जंगलीपन ने पहाड़ों की रक्षा की और जंगलों का बचाव किया, और यह उनके अस्तित्व और प्रसार का सबसे अच्छा संरक्षण और आश्वासन था। साथ ही, उनके जंगलीपन ने सभी चीजों के बीच संतुलन बनाए रखा और उसे सुनिश्चित किया। उनके आगमन से पहाड़ों और जंगलों को सहारा और आश्रय मिला; उनके आगमन ने शांत और खाली पड़े पहाड़ों और जंगलों में असीम जोश और जीवन-शक्ति का संचार किया। इस पल से पहाड़ और जंगल उनके स्थायी निवास-स्थान बन गए, और वे अपना घर कभी नहीं खोएँगे, क्योंकि पहाड़ और जंगल उन्हीं के लिए प्रकट हुए और अस्तित्व में थे; जंगली जानवर अपना कर्तव्य पूरा करेंगे और उनकी रक्षा की हर संभव कोशिश करेंगे। इसी तरह, जंगली जानवर भी अपने क्षेत्र पर पकड़ बनाए रखने के सृष्टिकर्ता के उपदेशों का सख्ती से पालन करेंगे, और सृष्टिकर्ता द्वारा स्थापित सभी चीजों का संतुलन कायम रखने के लिए अपनी पाशविक प्रकृति का उपयोग करते रहेंगे, और सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ्य प्रदर्शित करेंगे!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

कोई सृजित या गैर-सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता की पहचान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता

जब से परमेश्वर ने सभी चीजों का सृजन शुरू किया, तब से उसका सामर्थ्य व्यक्त और प्रकट होना शुरू हो गया, क्योंकि परमेश्वर ने सभी चीजें सृजित...

चौथे दिन परमेश्वर ने एक बार फिर अपने अधिकार का उपयोग किया जिससे मानव-जाति की ऋतुएँ, दिन और वर्ष अस्तित्व में आए

सृष्टिकर्ता ने अपनी योजना पूरी करने के लिए अपने वचनों का उपयोग किया, और इस तरह उसने अपनी योजना के पहले तीन दिन गुजारे। इन तीन दिनों के...

पहले दिन, परमेश्वर के अधिकार के कारण, मानव-जाति के दिन और रात उत्पन्न हुए और स्थिर बने हुए हैं

आओ, हम पहले अंश को देखें : “जब परमेश्वर ने कहा, ‘उजियाला हो,’ तो उजियाला हो गया। और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने...

दूसरे दिन परमेश्वर के अधिकार ने जल का प्रबंध किया और आसमान बनाया तथा मनुष्य के जीवित रहने के लिए सबसे बुनियादी जगह प्रकट हुई

आओ, हम बाइबल के दूसरे अंश को पढ़ें : “फिर परमेश्वर ने कहा, ‘जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।’ तब परमेश्वर ने एक अन्तर बनाकर...

Leave a Reply

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें