तीसरे दिन परमेश्वर के वचनों ने पृथ्वी और समुद्रों की उत्पत्ति की, और परमेश्वर के अधिकार ने संसार को जीवन से लबालब भर दिया

28 मई, 2018

आओ, हम उत्पत्ति 1:9–11 का पहला वाक्य पढ़ें : "फिर परमेश्‍वर ने कहा, 'आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे।'" परमेश्वर बस इतना कहने के बाद कि, "आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे।" क्या परिवर्तन हुए? और उजाले और आकाश के अलावा इस जगह पर क्या था? पवित्र शास्त्र में लिखा है : "परमेश्‍वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा: और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।" दूसरे शब्दों में, अब इस जगह में भूमि और समुद्र थे, और भूमि और समुद्र विभाजित हो गए थे। इन नई चीज़ों का प्रकटीकरण परमेश्वर के मुँह से निकली आज्ञा के अनुसरण में हुआ था, "और वैसा ही हो गया।" क्या पवित्र शास्त्र यह वर्णन करता है कि परमेश्वर जब यह सब कर रहा था, तो बहुत व्यस्त था? क्या वह उसके शारीरिक श्रम में संलग्न होने का वर्णन करता है? तो फिर परमेश्वर ने यह कैसे किया गया? परमेश्वर ने इन नई चीज़ों को कैसे उत्पन्न किया? स्वतः स्पष्ट है कि परमेश्वर ने यह सब हासिल करने के लिए, इसकी संपूर्णता सृजित करने के लिए वचनों का प्रयोग किया।

उपर्युक्त तीन अंशों में, हमने तीन बड़ी घटनाओं के घटित होने के बारे में जाना। ये तीन घटनाएँ परमेश्वर के वचनों द्वारा प्रकट हुईं और अस्तित्व में लाई गईं, और उसके वचनों के कारण एक के बाद एक ये घटनाएँ परमेश्वर की आँखों के सामने घटित हो गईं। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि "परमेश्वर कहेगा, और वह पूरा हो जाएगा; वह आज्ञा देगा, और वह बना रहेगा" खोखले वचन नहीं हैं। परमेश्वर के इस सार की पुष्टि तत्क्षण हो जाती है जब वह विचार धारण करता है, और जब परमेश्वर बोलने के लिए अपना मुँह खोलता है, तो उसका सार पूर्णत: प्रतिबिंबित हो जाता है।

आओ, हम इस अंश का अंतिम वाक्य पढ़ें : "फिर परमेश्‍वर ने कहा, 'पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक एक की जाति के अनुसार हैं, पृथ्वी पर उगें,' और वैसा ही हो गया।" जब परमेश्वर बोल रहा था, तो ये सभी चीज़ें परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करके अस्तित्व में आ गईं, और एक क्षण में ही, विभिन्न प्रकार के नाजुक छोटे जीवन-रूप डगमगाते हुए मिट्टी से अपने सिर बाहर निकालने लगे, और अपने शरीर से मिट्टी के कण झाड़ने से पहले ही वे एक-दूसरे का अभिनंदन करने लगे तथा सिर हिला-हिलाकर ससार के प्रति मुस्कराने लगे। उन्होंने सृष्टिकर्ता द्वारा स्वयं को प्रदान किए गए जीवन के लिए उसे धन्यवाद दिया, और संसार के सामने घोषणा की कि वे सभी चीज़ों का अंग हैं और उनमें से प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता के अधिकार को दर्शाने के लिए अपना जीवन समर्पित करेगा। जैसे ही परमेश्वर ने वचन कहे, भूमि हरी-भरी, हो गई, मनुष्य के काम आ सकने वाला समस्त प्रकार के साग-पात अंकुरित हो गए और जमीन फोड़कर निकल आए, और पर्वत और मैदान वृक्षों एवं जंगलों से पूरी तरह से भर गए...। यह बंजर संसार, जिसमें जीवन का कोई निशान नहीं था, तेजी से प्रचुर घास, साग-पात वृक्षों एवं उमड़ती हुई हरियाली से भर गया...। तथा घास की सुगंध और मिट्टी की महक हवा के माध्यम से फैल गई, और पौधों की कतार हवा के चक्र के साथ मिलकर साँस लेने लगी और उनके बढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई। उसी समय, परमेश्वर के वचनों के कारण और परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करके, सभी पौधों ने अपने शाश्वत जीवन-चक्र शुरू कर दिए, जिनमें वे बढ़ते हैं, खिलते हैं, फलते हैं और अपनी वंश-वृद्धि करते हैं। उन्होंने सख्ती से अपने-अपने जीवन-चक्रों का पालन करना शुरू कर दिया और सभी चीज़ों के मध्य अपनी-अपनी भूमिका निभानी प्रारंभ कर दी...। वे सब सृष्टिकर्ता के शब्दों के कारण पैदा हुए थे और जी रहे थे। वे सृष्टिकर्ता की अनंत आपूर्ति और पोषण प्राप्त करेंगे, और परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्‍य को दर्शाने के लिए हमेशा भूमि के हर कोने में दृढ़ता से जीवित रहेंगे और वे हमेशा सृष्टिकर्ता द्वारा स्वयं को प्रदान की गई जीवन-शक्ति को दर्शाते रहेंगे ...

सृष्टिकर्ता का जीवन असाधारण है, उसके विचार असाधारण हैं, और उसका अधिकार असाधारण है और इसलिए, जब उसके वचन उच्चरित हुए, तो उसका अंतिम परिणाम था "और वैसा ही हो गया।" स्पष्ट रूप से, जब परमेश्वर कार्य करता है, तो उसे अपने हाथों से काम करने की आवश्यकता नहीं होती; वह बस आज्ञा देने के लिए अपने विचारों का और आदेश देने के लिए अपने वचनों का प्रयोग करता है, और इस तरह काम पूरे हो जाते हैं। इस दिन, परमेश्वर ने जल को एक साथ एक जगह पर इकट्ठा किया और सूखी भूमि प्रकट होने दी, जिसके बाद परमेश्वर ने भूमि से घास को उगाया, और बीज उत्पन्न करने वाले पौधे साग-पात और फल देने वाले पेड़ उग गए, और परमेश्वर ने उनकि किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया तथा प्रत्येक को अपने खुद के बीज धारण करने के लिए कहा। यह सब परमेश्वर के विचारों और उसके वचनों की आज्ञा के अनुसार साकार हुआ और इस नए संसार में हर चीज़ एक के बाद एक प्रकट होती गई।

अपना काम शुरू करने से पहले ही परमेश्वर के मस्तिष्क में तस्वीर थी, जिसे वह अपने हासिल करना चाहता था, और जब परमेश्वर ने इन चीज़ों को हासिल करना शुरू किया, ऐसा तभी हुआ जब परमेश्वर ने इस तसवीर की विषयवस्तु के बारे में बोलने के लिए अपना मुँह खोला था, तो परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्‍य के कारण सभी चीज़ों में बदलाव आना प्रारंभ हो गया। इस पर ध्यान न देते हुए कि परमेश्वर ने इसे कैसे किया या किस प्रकार अपने अधिकार का इस्तेमाल किया, सब-कुछ परमेश्वर की योजना और उसके वचनों की बदौलत क्रमिक रूप से हासिल होता गया परमेश्वर के वचनों और अधिकार की बदौलत स्वर्ग और पृथ्वी में क्रमिक रूप से बदलाव आते गए। इन सभी बदलावों और घटनाओं ने सृष्टिकर्ता के अधिकार और उसकी जीवन-शक्ति की असाधारणता और महानता को दर्शाया। उसके विचार कोई मामूली विचार या खाली तसवीर नहीं हैं, बल्कि जीवन-शक्ति और असाधारण ऊर्जा से भरे हुए अधिकार हैं, वे ऐसे सामर्थ्‍य हैं जो सभी चीज़ों को परिवर्तित कर सकते हैं, पुनर्जीवित कर सकते हैं, फिर से नया बना सकते हैं और नष्ट कर सकते हैं। इसकी वजह से, उसके विचारों के कारण सभी चीज़ें कार्य करती हैं और उसके मुँह से निकले वचनों के कारण, उसी समय हासिल हो जाती हैं ...

सभी चीजों के प्रकट होने से पहले, परमेश्वर के विचारों में एक संपूर्ण योजना बहुत पहले से ही बन चुकी थी, और एक नया संसार बहुत पहले ही आकार ले चुका था। यद्यपि तीसरे दिन भूमि पर हर प्रकार के पौधे प्रकट हुए, किंतु परमेश्वर के पास इस संसार की सृष्टि के चरणों को रोकने का कोई कारण नहीं था; वह लगातार अपने वचनों को बोलने का इरादा रखता था, ताकि वह हर नई चीज़ की सृष्टि करना जारी रख सके सके। वह बोलता गया, अपनी आज्ञाएँ जारी करता गया, और अपने अधिकार का इस्तेमाल करता गया तथा अपना सामर्थ्‍य दिखाता गया, और उसने सभी चीज़ों और मानव-जाति के लिए, जिनके निर्माण का उसका इरादा था, वह सब-कुछ बनाया, जिनका निर्माण करने की उसने योजना बनाई थी ...

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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