एक सच्चे परमेश्वर को त्रिविध परमेश्वर के रूप में परिभाषित करना परमेश्वर की अवहेलना और निंदा करना है
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
मैं बताता हूँ कि वास्तव में, ब्रह्मांड में कहीं भी त्रयात्मक परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है। परमेश्वर का न पिता है और न पुत्र, और इस ख्याल का तो और भी वजूद नहीं है कि पिता और पुत्र संयुक्त तौर पर पवित्र आत्मा का उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं। यह सब बड़ा भ्रम है और संसार में इसका कोई अस्तित्व नहीं है! फिर भी इस प्रकार के भ्रम का अपना मूल है और यह पूरी तरह निराधार नहीं है, क्योंकि तुम लोगों के मन इतने साधारण नहीं हैं और तुम्हारे विचार तर्कहीन नहीं हैं। बल्कि, वे काफी उपयुक्त और चतुर हैं, इतने कि किसी शैतान द्वारा भी अभेद्य हैं। अफ़सोस यह कि ये विचार बिल्कुल भ्रामक हैं और बस इनका अस्तित्व नहीं है! तुम लोगों ने वास्तविक सत्य को देखा ही नहीं है; तुम लोग केवल अटकलें और कल्पनाएं लगा रहे हो, फिर धोखे से दूसरों का विश्वास प्राप्त करने या सबसे अधिक बुद्धिहीन या तर्कहीन लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए इस सबको कहानी में पिरो रहे हो, ताकि वे तुम लोगों की महान और प्रसिद्ध "विशेषज्ञ शिक्षाओं" पर विश्वास करें। क्या यह सच है? क्या यह जीवन का तरीका है, जो मनुष्य को प्राप्त करना चाहिए? यह सब बकवास है! एक शब्द भी उचित नहीं है! इतने सालों में, तुम लोगों के द्वारा परमेश्वर इस प्रकार विभाजित किया गया है, हर पीढ़ी द्वारा इसे इतना बारीक़ी से विभाजित किया गया है कि एक परमेश्वर को खुलकर तीन हिस्सों में बांट दिया गया है। और अब मनुष्य के लिए यह पूरी तरह असंभव है कि इन तीनों को फिर से एक परमेश्वर बना पाए, क्योंकि तुम लोगों ने उसे बहुत ही सूक्ष्मता से बांटा है! यदि मेरा कार्य सही समय पर शुरू न हुआ होता तो कहना कठिन है कि तुम लोग कब तक इसी तरह ढिठाई करते रहते! इस प्रकार से परमेश्वर को विभाजित करना जारी रखने से, वह अब तक तुम्हारा परमेश्वर कैसे रह सकता है? क्या तुम लोग अब भी परमेश्वर को पहचान सकते हो? क्या तुम अभी भी उसे अपना पिता स्वीकार करके उसके पास लौटोगे? यदि मैं थोड़ा और बाद में आता, तो हो सकता है कि तुम लोग "पिता और पुत्र", यहोवा और यीशु को इस्राएल वापस भेज चुके होते और दावा करते कि तुम लोग स्वयं ही परमेश्वर का एक भाग हो। भाग्यवश, अब ये अंत के दिन हैं। अंतत: वह दिन आ गया है, जिसकी मुझे बहुत प्रतीक्षा थी और मेरे अपने हाथों से इस चरण के कार्य को क्रियान्वित करने के बाद ही तुम लोगों द्वारा परमेश्वर स्वयं को बांटने का कार्य रुका है। यदि यह नहीं होता, तो तुम लोग और आगे बढ़ जाते, यहां तक कि अपने बीच सभी शैतानों को तुमने आराधना के लिए अपनी मेज़ों पर रख लिया होता। यह तुम लोगों की चाल है! परमेश्वर को बांटने के तुम्हारे तरीके! क्या तुम सब अभी भी ऐसा ही करोगे? मैं तुमसे पूछता हूँ: कितने परमेश्वर हैं? कौन सा परमेश्वर तुम लोगों के लिए उद्धार लाएगा? पहला परमेश्वर, दूसरा या फिर तीसरा, जिससे तुम सब हमेशा प्रार्थना करते हो? उनमें से तुम लोग हमेशा किस पर विश्वास करते हो? पिता पर? या फिर पुत्र पर? या फिर आत्मा पर? मुझे बताओ कि तुम किस पर विश्वास करते हो। हालांकि तुम्हारे हर शब्द में परमेश्वर पर विश्वास दिखता है, लेकिन तुम लोग जिस पर वास्तव में विश्वास करते हो, वह तुम्हारा दिमाग़ है। तुम लोगों के हृदय में परमेश्वर है ही नहीं! फिर भी तुम सबके दिमाग़ में इस प्रकार के कई "त्रित्व" हैं! क्या तुम लोग इससे सहमत नहीं हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?
बाइबिल के पुराने नियम में, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का उल्लेख नहीं है, केवल एक ही सच्चे परमेश्वर यहोवा का है, जो इस्राएल में अपने कार्य को क्रियान्वित कर रहा है। जैसे युग बदलता है, उसके अनुसार उसे अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है, लेकिन इससे यह साबित नहीं हो सकता कि प्रत्येक नाम एक अलग व्यक्ति का हवाला देता है। यदि ऐसा होता तो क्या परमेश्वर में असंख्य व्यक्ति न होते? पुराने नियम में जो लिखा है, वह यहोवा का कार्य है, व्यवस्था के युग की शुरुआत के लिए स्वयं परमेश्वर के कार्य का एक चरण है। यह परमेश्वर का कार्य था और जैसा उसने कहा, वैसा हुआ और जैसी उसने आज्ञा दी, वैसे स्थिर रहा। यहोवा ने कभी नहीं कहा कि वह पिता है जो कार्य क्रियान्वित करने आया है, न ही उसने कभी पुत्र के मानवजाति के छुटकारे के लिए आने की भविष्यवाणी की। जब यीशु के समय की बात आई, तो केवल यह कहा गया कि परमेश्वर समस्त मानवजाति को छुड़ाने के लिए देह बन गया था, न कि यह कि पुत्र आया था। चूंकि युग एक जैसे नहीं होते और जो कार्य परमेश्वर स्वयं करता है, वह भी अलग होता है, उसे अपने कार्य को अलग-अलग क्षेत्रों में क्रियान्वित करना होता है। इस तरह, वह पहचान भी अलग होती है, जिसका वह प्रतिनिधित्व करता है। मनुष्य का मानना है कि यहोवा यीशु का पिता है, लेकिन यह वास्तव में यीशु ने स्वीकार नहीं किया था, जिसने कहा: "हम पिता और पुत्र के रूप में कभी अलग नहीं थे; मैं और स्वर्ग में पिता एक हैं। पिता मुझ में है और मैं पिता में हूँ; जब मनुष्य पुत्र को देखता है, तो वे स्वर्गिक पिता को देख रहे हैं।" जब यह सब कहा जा चुका है, पिता हो या पुत्र, वे एक आत्मा हैं, अलग-अलग व्यक्तियों में विभाजित नहीं हैं। जब मनुष्य समझाने की कोशिश करता है, तो अलग-अलग व्यक्तियों के विचार के साथ ही मामला जटिल हो जाता है, साथ ही पिता, पुत्र और आत्मा के बीच का संबंध भी। जब मनुष्य अलग-अलग व्यक्तियों की बात करता है, तो क्या यह परमेश्वर को मूर्तरूप नहीं देता? यहां तक कि मनुष्य व्यक्तियों को पहले, दूसरे और तीसरे के रूप में स्थान भी देता है; ये सभी बस मनुष्य की कल्पनाएं हैं, संदर्भ के योग्य नहीं हैं और पूरी तरह अवास्तविक हैं!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?
परमेश्वर का ज्ञान एक ऐसा क्षेत्र है जिसका लोगों में सबसे ज़्यादा अभाव है। वे अक्सर परमेश्वर पर ऐसी कहावतों, कथनों, और वचनों को थोपते हैं जो उससे संबंधित नहीं होते, ऐसा विश्वास करते हैं कि ये वचन परमेश्वर के ज्ञान की सबसे सही परिभाषा हैं। उन्हें बहुत थोड़ा सा पता है कि ये कहावतें, जो लोगों की कल्पनाओं से आती हैं, उनके अपने तर्क, और अपने ज्ञान से आती हैं, उनका परमेश्वर के सार से ज़रा सा भी सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार, मैं तुम लोगों को बताना चाहता हूँ कि जब उस ज्ञान की बात आती है जो परमेश्वर चाहता है कि लोगों में हो, वह मात्र यह नहीं कहता कि तुम उसे और उसके वचनों को पहचानो, बल्कि यह कि परमेश्वर का तुम्हारा ज्ञान सही हो। भले ही तुम केवल एक वाक्य बोल सको, या केवल थोड़ा सा ही जानते हो, तो यह थोड़ा सा जानना सही और सच्चा हो, और स्वयं परमेश्वर के सार के अनुकूल हो। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर लोगों की अवास्तविक और अविवेकी स्तुति और सराहना से घृणा करता है। उससे भी अधिक, जब लोग उससे हवा की तरह बर्ताव करते हैं तो वह इससे घृणा करता है। जब परमेश्वर के बारे में विषयों की चर्चा के दौरान, लोग तथ्यों की परवाह न करते हुए बात करते हैं, जैसा चाहे वैसा और बेझिझक बोलते हैं, जैसा उन्हें ठीक लगे वैसा बोलते हैं तो वह इससे घृणा करता है; इसके अलावा, वह उनसे नफ़रत करता है जो यह मानते हैं कि वे परमेश्वर को जानते हैं, और उससे संबन्धित अपने ज्ञान के बारे में डींगे मारते हैं, उससे संबन्धित विषयों पर बिना किसी रुकावट या विचार किए चर्चा करते हैं।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X
कार्य के तीन चरण मानवजाति को बचाने में परमेश्वर के कार्य की संपूर्णता हैं। मनुष्य को परमेश्वर के कार्य को और उद्धार के कार्य में परमेश्वर के स्वभाव को अवश्य जानना चाहिए; इस तथ्य के बिना, परमेश्वर का तुम्हारा ज्ञान खोखले शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं है, यह सैद्धांतिक बातों का दिखावा मात्र है। इस प्रकार का ज्ञान मनुष्य को न तो यकीन दिला सकता है और न ही उसे जीत सकता है; यह वास्तविकता से बेमेल है और यह सत्य नहीं है। यह बहुत भरपूर मात्रा में, और कानों के लिए सुखद हो सकता है, परन्तु यदि यह परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव से विपरीत है, तो परमेश्वर तुम्हें नहीं बख़्शेगा। न केवल वह तुम्हारे ज्ञान की प्रशंसा नहीं करेगा बल्कि उसकी निंदा करने वाले पापी होने के कारण तुमसे प्रतिशोध लेगा। परमेश्वर को जानने के वचन हल्के में नहीं बोले जाते हैं। भले ही तुम चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले और वाक्पटु हो सकते हो, और भले ही तुम्हारे शब्द इतने चतुर हों कि तुम अपनी बहस से काले को सफेद और सफेद को काला बना सकते हो, तब भी जब परमेश्वर के ज्ञान की बात आती है तो तुम्हारी अज्ञानता सामने आ जाती है। परमेश्वर कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका तुम जल्दबाजी में आकलन कर सकते हो या जिसकी तुम यूं ही प्रशंसा कर सकते हो या जिसे तुम बेपरवाही से कलंकित कर सकते हो। तुम लोग किसी की भी और हर किसी की प्रशंसा करते हो, फिर भी परमेश्वर के सद्गुणों और अनुग्रह का वर्णन करने के लिए सही शब्द खोजने में तुम्हें संघर्ष करना पड़ता है—यही सभी हारने वालों द्वारा महसूस किया जाता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?