कहानी 2. एक बड़ा पर्वत, एक छोटी जलधारा, एक प्रचंड हवा और एक विशाल लहर

06 अगस्त, 2018

एक छोटी जलधारा थी, जो यहाँ-वहाँ घूमती हुई बहती थी और अंततः एक बड़े पर्वत के निचले सिरे पर पहुँचती थी। पर्वत उस छोटी जलधारा के मार्ग को रोक रहा था, अतः उस जलधारा ने अपनी कमज़ोर एवं धीमी आवाज़ में पर्वत से कहा, "कृपया मुझे गुज़रने दो। तुम मेरे मार्ग में खड़े हो और मेरा आगे का मार्ग रोक रहे हो।" पर्वत ने पूछा, "तुम कहाँ जा रही हो?" जलधारा ने जवाब दिया, "मैं अपना घर ढूँढ़ रही हूँ।" पर्वत ने कहा, "ठीक है, आगे बढ़ो और सीधे मेरे ऊपर से बहकर निकल जाओ!" परंतु वह नन्ही जलधारा बहुत ही कमज़ोर और छोटी थी, अत: उसके लिए उस विशाल पर्वत के ऊपर से बहना संभव नहीं था। वह केवल पर्वत के निचले सिरे पर ही बहती रह सकती थी ...

एक प्रचंड हवा रेत और कंकड़ लेकर वहाँ आई, जहाँ पहाड़ खड़ा था। हवा पर्वत के ऊपर जोर से चीखी, "मुझे जाने दो!" पर्वत ने पूछा, "तुम कहाँ जा रही हो?" जवाब में हवा चिल्लाई, "मैं पर्वत के उस पार जाना चाहती हूँ।" पर्वत ने कहा, "ठीक है, अगर तुम मेरे सीने को चीर सकती हो, तो तुम जा सकती हो!" प्रचंड हवा ज़ोर-ज़ोर से गरजने लगी, लेकिन प्रचंडता से बहने के बावजूद वह पर्वत के सीने को चीरकर नहीं निकल सकी। हवा थक गई और आराम करने के लिए रुक गई—और पर्वत के दूसरी ओर एक मंद हवा बहने लगी, जिससे वहाँ के लोग प्रसन्न हो गए। यह लोगों को पर्वत का अभिवादन था ...

समुद्र के तट पर सागर की फुहार चट्टान के किनारे आहिस्ता-आहिस्ता लुढ़कने लगी। अचानक एक विशाल लहर ऊपर आई और गरजती हुई पर्वत की ओर अपना मार्ग बनाने लगी। "हट जाओ!" विशाल लहर चिल्लाई। पर्वत ने पूछा, "तुम कहाँ जा रही हो?" अपना वेग रोकने में असमर्थ लहर गरजी, "मैं अपने क्षेत्र का विस्तार कर रही हूँ! मैं अपनी बाँहें फैलाना चाहती हूँ।" पर्वत ने कहा, "ठीक है, यदि तुम मेरी चोटी से गुज़र सकती हो, तो मैं तुम्हें रास्ता दे दूँगा।" विशाल लहर थोड़ा पीछे हटी, और दोबारा फिर से पर्वत की ओर उमड़ने लगी। लेकिन पूरी कोशिश करके भी वह पर्वत के ऊपर से नहीं जा सकी। लहर धीरे-धीरे वापस समुद्र में ही लौट सकती थी ...

हजारों साल तक छोटी जलधारा आहिस्ता-आहिस्ता पर्वत के निचले सिरे के चारों ओर रिसती रही। पर्वत के निर्देशों का पालन करते हुए अपना रास्ता बनाकर छोटी जलधारा वापस अपने घर पहुँच गई, जहाँ जाकर वह एक नदी में मिल गई, और नदी समुद्र में। पर्वत की देखरेख में छोटी जलधारा ने कभी अपना रास्ता नहीं खोया। जलधारा और पर्वत ने एक-दूसरे को पुष्ट किया और एक-दूसरे पर निर्भर रहे; उन्होंने एक-दूसरे को मजबूत बनाया, एक-दूसरे का प्रतिकार किया और एक-दूसरे के साथ मौजूद रहे।

(छवि स्त्रोत: Megapixl)

हजारों साल तक प्रचंड हवा गरजती रही, जैसी कि उसकी आदत थी। वह फिर भी हवा के झोंकों के साथ रेत के बड़े-बड़े बगूले उड़ाती हुई अकसर पर्वत से "मिलने" आती। वह पर्वत को डराती, लेकिन उसके सीने को कभी नहीं चीर पाई। हवा और पर्वत एक-दूसरे को पुष्ट करते रहे और एक-दूसरे पर निर्भर रहे; उन्होंने एक-दूसरे को मजबूत बनाया, एक-दूसरे का प्रतिकार किया और एक-दूसरे के साथ मौजूद रहे।

हजारों साल तक विशाल लहर कभी आराम करने के लिए नहीं रुकी, और लगातार अपने क्षेत्र का विस्तार करते हुए वह निर्ममता से आगे बढ़ी। वह बार-बार पर्वत की ओर गरजती और उमड़ती, लेकिन पर्वत कभी एक इंच भी नहीं हिला। पर्वत ने समुद्र की निगरानी की, और इस तरह से, समुद्री जीव कई गुना बढ़े और फले-फूले। लहर और पर्वत एक-दूसरे को पुष्ट करते रहे और एक-दूसरे पर निर्भर रहे; उन्होंने एक-दूसरे को मजबूत बनाया, एक-दूसरे का प्रतिकार किया और एक-दूसरे के साथ मौजूद रहे।

तो हमारी कहानी समाप्त होती है। पहले, मुझे बताओ, कहानी किस बारे में थी? शुरू करने के लिए, एक बड़ा पर्वत, एक छोटी जलधारा, एक प्रचंड हवा और एक विशाल लहर थी। पहले अंश में छोटी जलधारा और बड़े पर्वत के साथ क्या हुआ? मैंने एक जलधारा और एक पर्वत के बारे में बात करने के लिए क्यों चुना? (पर्वत की देखरेख में जलधारा ने कभी अपना रास्ता नहीं खोया। वे एक-दूसरे पर भरोसा करते थे।) तुम क्या कहोगे, पर्वत ने छोटी जलधारा की सुरक्षा की या उसे बाधित किया? (उसकी सुरक्षा की।) पर क्या उसने उसे बाधित नहीं किया? उसने और जलधारा ने एक-दूसरे का ध्यान रखा; पर्वत ने जलधारा की सुरक्षा की और उसे बाधित भी किया। जलधारा जब नदी में मिल गई, तो पर्वत ने उसकी सुरक्षा की, लेकिन साथ ही उसे उन जगहों पर बहने से भी रोका, जहाँ वह बह सकती थी और बाढ़ लाकर लोगों के लिए विनाशकारी हो सकती थी। क्या पहले अंश में यही सब नहीं था? जलधारा की सुरक्षा करके और उसे रोककर पर्वत ने लोगों के घरों की हिफ़ाज़त की। फिर छोटी जलधारा पर्वत के निचले सिरे पर नदी में मिल गई और बहकर समुद्र में चली गई। क्या यह जलधारा के अस्तित्व को नियंत्रित करने वाला नियम नहीं है? जलधारा को नदी और समुद्र में मिलने योग्य किसने बनाया? क्या वह पर्वत नहीं था? जलधारा ने पर्वत की सुरक्षा और बाधा पर भरोसा किया। तो क्या यह मुख्य बिंदु नहीं है? क्या तुम इसमें जल के लिए पर्वतों के महत्व को देखते हो? क्या छोटे-बड़े हर पर्वत को बनाने में परमेश्वर का कोई उद्देश्य था? (हाँ।) यह छोटा-सा अंश, जिसमें सिर्फ एक छोटी जलधारा और एक बड़ा पर्वत है, हमें परमेश्वर द्वारा उन दो चीज़ों के सृजन का मूल्य एवं महत्व दिखाता है; यह हमें उन पर उसके शासन की बुद्धिमत्ता और प्रयोजन भी दिखाता है। हम इस बात में भी उसकी बुद्धिमत्ता और उद्देश्य देख सकते हैं कि वह किस प्रकार इन दोनों चीज़ों पर शासन करता है। क्या ऐसा नहीं है?

(छवि स्त्रोत: Fotolia)

कहानी का दूसरा अंश किस बारे में था? (एक प्रचंड हवा और एक बड़े पर्वत के बारे में।) क्या हवा एक अच्छी चीज़ है? (हाँ।) यह ज़रूरी नहीं है—कभी-कभी हवा बहुत तेज होती है और आपदा का कारण बन जाती है। यदि तुम्हें प्रचंड हवा में खड़ा कर दिया जाए, तो तुम्हें कैसा लगेगा? यह उसकी ताकत पर निर्भर करता है, नहीं? अगर तीसरे या चौथे स्तर की ताकत वाली हवा होगी, तो यह सहनीय होगी। अधिक से अधिक व्यक्ति को अपनी आँखें खुली रखने में तकलीफ होगी। लेकिन अगर हवा प्रचंड हो जाए और बवंडर बन जाए, तो क्या तुम उसे झेल पाओगे? तुम नहीं झेल पाओगे। अतः लोगों का यह कहना गलत है कि हवा हमेशा अच्छी होती है, या यह कि वह हमेशा खराब होती है, क्योंकि यह उसकी ताकत पर निर्भर करता है। अब, यहाँ पर्वत का क्या काम है? क्या उसका काम हवा को शुद्ध करना नहीं है? पर्वत प्रचंड हवा को घटाकर किसमें बदल देता है? (हवा के हलके झोंके में।) अब जिस वातावरण में लोग रहते हैं, उसमें ज्यादातर लोग प्रचंड हवा महसूस करते हैं या हवा का हलका झोंका? (हवा का हलका झोंका।) क्या यह परमेश्वर के प्रयोजनों में से एक नहीं था, पहाड़ बनाने के उसके इरादों में से एक नहीं था? लोगों के लिए ऐसे वातावरण में रहना कैसा होगा, जहाँ रेत हवा में बेतरतीब ढंग से उड़ती हो, बेरोकटोक और बिना छने? क्या ऐसा हो सकता है कि जहाँ चारों तरफ रेत और पत्थर उड़ते हों, वह भूमि लोगों के रहने लायक न रह जाए? पत्थरों से लोगों को चोट लग सकती है और रेत उन्हें अंधा कर सकती है। हवा लोगों के पैर उखाड़ सकती है या उन्हें आसमान में बहाकर ले जा सकती है। घर तबाह हो सकते हैं और हर तरह की आपदाएँ आ सकती हैं। फिर भी क्या प्रचंड हवा के अस्तित्व का कोई मूल्य है? मैंने कहा यह बुरी है, तो किसी को लग सकता है कि इसका कोई मूल्य नहीं है, लेकिन क्या ऐसा ही है? हवा के हलके झोंके में बदलने के बाद क्या उसका कोई मूल्य नहीं है? जब मौसम नम या उमस से भरा होता है, तो लोगों को सबसे अधिक किस चीज़ की आवश्यकता होती है? उन्हें हवा के हलके झोंके की जरूरत होती है, जो उन पर धीरे से बहे, उन्हें तरोताजा कर दे और उनका दिमाग साफ़ कर दे, उनकी सोच तेज कर दे और उनकी मनोदशा सुधार दे। अब, उदाहरण के लिए, तुम लोग एक कमरे में बैठे हुए हो, जहाँ बहुत सारे लोग हैं और हवा घुटन भरी है—तुम्हें सबसे अधिक किस चीज़ की आवश्यकता होगी? (हवा के हलके झोंके की।) ऐसी जगह जाना, जहाँ हवा गंदी और धूल से भरी हो, आदमी की सोच धीमी कर सकता है, उसका रक्त-प्रवाह कम कर सकता है, और उसके मस्तिष्क की स्पष्टता घटा सकता है। लेकिन, थोड़ी-सी हलचल और संचरण हवा को तरोताजा कर देता है, और लोग ताजी हवा में अलग तरह से महसूस करते हैं। हालाँकि प्रचंड हवा आपदा बन सकती है, लेकिन जब तक पर्वत है, वह उस खतरे को लोगों को फायदा पहुँचाने वाली ताकत में बदल देगा। क्या ऐसा नहीं है?

कहानी का तीसरा अंश किसके बारे में था? (बड़े पर्वत और विशाल लहर के बारे में।) यह अंश पर्वत के निचले हिस्से में समुद्र-तट पर स्थित है। हम पर्वत, समुद्री फुहार और एक विशाल लहर देखते हैं। इस उदाहरण में पर्वत लहर के लिए क्या है? (एक रक्षक और एक अवरोधक।) यह एक रक्षक और अवरोधक दोनों है। एक रक्षक के रूप में यह समुद्र को अदृश्य होने से बचाता है, ताकि उसमें रहने वाले प्राणी कई गुना बढ़ सकें और फल-फूल सकें। एक अवरोधक के रूप में पर्वत समुद्री जल को उमड़कर बहने और आपदा उत्पन्न करने, लोगों के घरों को नुकसान पहुँचाने और उन्हें नष्ट करने से रोकता है। अतः हम कह सकते हैं कि पर्वत रक्षक और अवरोधक दोनों है।

यह बड़े पर्वत और छोटी जलधारा, बड़े पर्वत और प्रचंड हवा, और बड़े पर्वत और विशाल लहर के बीच अंतर्संबंध का महत्व है; यह उनके द्वारा एक-दूसरे को मजबूत बनाने, एक-दूसरे का प्रतिकार करने तथा उनके सह-अस्तित्व का महत्व है। परमेश्वर द्वारा बनाई गई ये चीज़ें अपने अस्तित्व में एक नियम और कानून द्वारा नियंत्रित होती हैं। तो, इस कहानी में तुमने परमेश्वर के कौन-से कार्य देखे? क्या परमेश्वर सभी चीज़ों को बनाने के बाद से उन्हें अनदेखा करता आ रहा है? क्या उसने सभी चीज़ों के कार्य करने के नियम और डिजाइन केवल बाद में उनकी उपेक्षा करने के लिए बनाए? क्या ऐसा हुआ है? (नहीं।) तो फिर क्या हुआ? परमेश्वर अभी भी नियंत्रण करता है। वह जल, हवा और लहरों का नियंत्रण करता है। वह उन्हें उच्छृंखल रूप से नहीं चलने देता और न वह उन्हें उन घरों को नुकसान पहुँचाने या उन्हें बरबाद करने देता है, जिनमें लोग रहते हैं। इस कारण से लोग धरती पर रह सकते हैं, कई गुना बढ़ सकते हैं और फल-फूल सकते हैं। इसका मतलब है कि जब परमेश्वर ने सभी चीजें बनाईं, तो उसने उनके अस्तित्व के लिए नियमों की योजना पहले ही बना ली थी। जब परमेश्वर ने प्रत्येक चीज़ बनाई, तो उसने सुनिश्चित किया कि वह मनुष्य को लाभ पहुँचाएगी, और उसने उस पर नियंत्रण कर लिया, ताकि वह मानव-जाति को परेशान न करे या उसे संकट में न डाले। यदि परमेश्वर का प्रबंधन न होता, तो क्या जल अनियंत्रित रूप से न बह रहा होता? क्या हवा बिना किसी नियंत्रण के न बह रही होती? क्या पानी और हवा किसी नियम का पालन करते हैं? यदि परमेश्वर ने उनका प्रबंधन न किया होता, तो कोई नियम उन्हें नियंत्रित न करता, हवा गरजा करती और जल निरंकुश होता तथा बाढ़ का कारण बनता। यदि लहर पर्वत से अधिक ऊँची होती, तो क्या समुद्र का अस्तित्व रह पाता? नहीं रह पाता। यदि पर्वत लहर के समान ही ऊँचा नहीं होता, तो समुद्र का अस्तित्व न रहता और पर्वत अपना मूल्य एवं महत्व खो देता।

(छवि स्त्रोत: Depositphotos)

क्या तुम लोग इन दो कहानियों में परमेश्वर की बुद्धिमत्ता देखते हो? परमेश्वर ने वह सब-कुछ बनाया जिसका अस्तित्व है, और वह हर उस चीज का संप्रभु है जो मौजूद है; वह इन सबका प्रबंधन करता है और इन सबके लिए आपूर्ति करता है, और सभी चीजों के भीतर वह हर मौजूद चीज के हर वचन और कार्रवाई को देखता और जाँचता है। इसी तरह परमेश्वर मानव-जीवन के हर कोने को भी देखता और जाँचता है। अतः परमेश्वर अपनी सृष्टि के अंतर्गत मौजूद हर चीज़ का हर विवरण अंतरंग रूप से जानता है; हर चीज़ की कार्यप्रणाली, उसकी प्रकृति और उसके जीवित रहने के नियमों से लेकर उसके जीवन के महत्त्व और उसके अस्तित्व के मूल्य तक, परमेश्वर को यह सब समग्र रूप से ज्ञात है। परमेश्वर ने सब चीज़ों को बनाया—तुम लोग क्या सोचते हो कि उसे उन नियमों का अध्ययन करने की ज़रूरत है, जो उन्हें नियंत्रित करते हैं? क्या उनके बारे में जानने-समझने के लिए परमेश्वर को मानवीय ज्ञान या विज्ञान को पढ़ने की ज़रूरत है? (नहीं।) क्या मनुष्यों में कोई ऐसा है, जिसके पास सभी चीज़ों को समझने की वैसी विद्वत्ता और ज्ञान है, जैसा परमेश्वर के पास है? नहीं है ना? क्या कोई खगोलशास्त्री या जीव-विज्ञानी है, जो वास्तव में उन नियमों को समझता है, जिनके द्वारा सभी चीज़ें जीवित रहती और बढ़ती हैं? क्या वे वास्तव में हर चीज़ के अस्तित्व के मूल्य को समझ सकते हैं? (नहीं, वे नहीं समझ सकते।) ऐसा इसलिए है, क्योंकि सभी चीज़ों को परमेश्वर द्वारा बनाया गया था, और मनुष्य चाहे जितना भी ज्यादा और जितनी भी गहराई से इस ज्ञान का अध्ययन कर लें, या जितने भी लंबे समय तक वे इसे जानने का प्रयास कर लें, वे कभी भी परमेश्वर के द्वारा बनाई गई सभी चीज़ों के रहस्य या उद्देश्य की थाह नहीं ले पाएँगे। क्या यह सही नहीं है? अब, हमारी अब तक की चर्चा से क्या तुम लोगों को लगता है कि तुमने "परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है" उक्ति के सही अर्थ की आंशिक समझ हासिल कर ली है? (हाँ।) मैं जानता था कि जब मैंने इस विषय—परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है—की चर्चा की थी, अनेक लोग तुरंत इस दूसरी उक्ति के बारे में सोचने लगेंगे, "परमेश्वर सत्य है, और परमेश्वर अपने वचन का प्रयोग हमारी आपूर्ति के लिए करता है," लेकिन वे इससे बढ़कर कुछ नहीं सोचेंगे। कुछ लोगों को तो यह भी लग सकता है कि परमेश्वर द्वारा मनुष्य के जीवन की आपूर्ति, प्रतिदिन के भोजन और पेय पदार्थ एवं तमाम दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति मनुष्य के लिए उसकी आपूर्ति के रूप नहीं गिनी जाती। क्या कुछ लोग ऐसे नहीं हैं, जो इस तरह से महसूस करते हैं? फिर भी, क्या परमेश्वर के सृजन में उसका अभिप्राय स्पष्ट नहीं है—कि मानव-जाति का अस्तित्व बना रहे और वह सामान्य रूप से जीवित रहे? परमेश्वर उस वातावरण को बनाए रखता है, जिसमें लोग रहते हैं और वह उनके अस्तित्व के लिए आवश्यक सभी चीज़ों की आपूर्ति करता है। इसके अतिरिक्त, वह सभी चीज़ों का प्रबंध करता है और उनके ऊपर प्रभुत्व रखता है। इस सबसे मानव-जाति सामान्य रूप से जीवित रह पाती है, फल-फूल पाती है और बढ़ पाती है; इस तरह परमेश्वर अपनी बनाई सभी चीज़ों और मानव-जाति के लिए आपूर्ति करता है। क्या यह सच नहीं है कि लोगों को इन चीज़ों को पहचानने एवं समझने की आवश्यकता है? शायद कुछ लोग कह सकते हैं, "यह विषय स्वयं सच्चे परमेश्वर के बारे में हमारे ज्ञान से बहुत दूर है, और हम इसे नहीं जानना चाहते, क्योंकि हम केवल रोटी के सहारे नहीं जीते, बल्कि परमेश्वर के वचन के सहारे जीते हैं।" क्या यह समझ सही है? (नहीं।) यह गलत क्यों है? क्या तुम लोगों को परमेश्वर की पूर्ण समझ हो सकती है, यदि तुम्हें केवल परमेश्वर की कही हुई बातों का ही ज्ञान है? यदि तुम केवल परमेश्वर के कार्य एवं उसके न्याय और ताड़ना को ही स्वीकार करते हो, तो क्या तुम्हें परमेश्वर की पूर्ण समझ हो सकती है? यदि तुम लोग परमेश्वर के स्वभाव एवं परमेश्वर के अधिकार के एक छोटे-से भाग को ही जानते हो; तो क्या तुम इसे परमेश्वर की समझ हासिल करने के लिए काफी समझोगे? (नहीं।) परमेश्वर के कार्य उसके द्वारा सभी चीजों के सृजन के साथ शुरू हुए और वे आज तक जारी हैं—परमेश्वर के कार्य हर समय और हर क्षण प्रकट हैं। अगर कोई यह विश्वास करता है कि परमेश्वर सिर्फ इसलिए अस्तित्व में है, क्योंकि उसने लोगों के एक समूह को बचाने और उस पर अपना कार्य करने के लिए चुना है, और कि किसी अन्य चीज़ का परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है, और न ही उसके अधिकार, उसकी हैसियत, और उसके क्रियाकलापों से कोई लेना-देना है, तो क्या यह समझा सकता है कि उसे परमेश्वर का सच्चा ज्ञान है? जिन लोगों को यह तथाकथित "परमेश्वर का ज्ञान" है, उन्हें केवल एकतरफा समझ है, जिसके अनुसार वे परमेश्वर के कर्मों को लोगों के एक समूह तक सीमित कर देते हैं। क्या यह परमेश्वर का सच्चा ज्ञान है? क्या इस तरह का ज्ञान रखने वाले लोग परमेश्वर द्वारा सभी चीज़ों की सृष्टि और उनके ऊपर उसके प्रभुत्व को नकारते नहीं हैं? कुछ लोग इस पर ध्यान नहीं देना चाहते, इसके बजाय वे सोचते हैं : "मैंने सभी चीज़ों के ऊपर परमेश्वर का प्रभुत्व नहीं देखा है। इसका मुझसे कोई वास्ता नहीं और मैं इसे समझने की परवाह भी नहीं करता। परमेश्वर जो कुछ चाहता है वह करता है, और इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं केवल परमेश्वर की अगुवाई और उसके वचन को स्वीकार करता हूँ ताकि मुझे परमेश्वर द्वारा बचाया और परिपूर्ण बनाया जा सके। मेरे लिए और कुछ मायने नहीं रखता। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की थी, तब जो भी नियम उसने बनाए या सभी चीज़ों एवं मानव-जाति को आपूर्ति करने के लिए जो कुछ वह करता है, उसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है।" यह कैसी बात है? क्या यह विद्रोह का कार्य नहीं है? क्या तुम लोगों में इस तरह की समझ रखने वाला कोई है? मैं जानता हूँ कि तुममें बहुत लोग ऐसे हैं, भले ही तुम लोग ऐसा न कहो। ऐसे लकीर के फकीर लोग हर चीज़ अपने स्वयं के "आध्यात्मिक" दृष्टिकोण से देखते हैं। वे परमेश्वर को बाइबल तक सीमित कर देना चाहते हैं, उसके द्वारा कहे गए वचनों तक सीमित कर देना चाहते हैं, अक्षरश: लिखित वचन से निकाले गए अर्थ तक सीमित कर देना चाहते हैं। वे परमेश्वर को और अधिक जानने की इच्छा नहीं करते और वे नहीं चाहते कि परमेश्वर अन्य कार्य करने पर ध्यान दे। इस प्रकार की सोच बचकानी है और हद से ज्यादा धार्मिक भी है। क्या इस तरह के विचार रखने वाले लोग परमेश्वर को जान सकते हैं? उनके लिए परमेश्वर को जानना बहुत कठिन होगा। आज मैंने दो कहानियाँ सुनाई हैं, प्रत्येक दो भिन्न पहलुओं की ओर ध्यान खींचती है। इनके संपर्क में अभी-अभी आने पर, तुम लोगों को लग सकता है कि ये गहन या कुछ अमूर्त हैं और इन्हें जानना-समझना कठिन है। इन्हें परमेश्वर के कार्यों और स्वयं परमेश्वर से जोड़ना कठिन हो सकता है। फिर भी, परमेश्वर के सभी कार्य और वह सब, जो उसने सभी चीज़ों एवं संपूर्ण मानव-जाति के मध्य किया है, प्रत्येक व्यक्ति को, हर उस व्यक्ति को जो परमेश्वर को जानना चाहता है, स्पष्ट एवं सटीक रूप से जानना चाहिए। यह ज्ञान तुम्हें परमेश्वर के सच्चे अस्तित्व में तुम्हारे विश्वास को निश्चित करेगा। यह तुम्हें परमेश्वर की बुद्धिमत्ता, उसके सामर्थ्य, और उसके द्वारा सभी चीज़ों के लिए आपूर्ति करने के तरीके का सटीक ज्ञान भी देगा। इससे तुम लोग परमेश्वर के सच्चे अस्तित्व को स्पष्ट रूप से समझ पाओगे और यह देख सकोगे कि उसका अस्तित्व काल्पनिक नहीं है, मिथक नहीं है, अस्पष्ट नहीं है, सिद्धांत नहीं है, और निश्चित रूप से एक तरह की आध्यात्मिक सांत्वना नहीं है, बल्कि एक वास्तविक अस्तित्व है। इसके अतिरिक्त, इससे लोग यह जान पाएँगे कि परमेश्वर ने हमेशा समस्त सृष्टि और मानव-जाति के लिए आपूर्ति की है; परमेश्वर इसे अपने तरीके से और अपनी लय के अनुसार करता है। तो, ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर ने सभी चीज़ें बनाईं और उन्हें नियम दिए कि वे सभी, उसके पूर्व-निर्धारण के अनुसार, अपने आवंटित कार्य करने, अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने, और अपनी भूमिका निभाने में सक्षम हैं; उसके पूर्व-निर्धारण में हर चीज़ का मानव-जाति की सेवा में और मनुष्य के रहने के स्थान और वातावरण में अपना उपयोग है। यदि परमेश्वर ऐसा न करता और मानव-जाति के पास अपने रहने के लिए वातावरण न होता, तो उसके लिए परमेश्वर में विश्वास करना या उसका अनुसरण करना असंभव होता; यह महज एक खोखली बात होती। क्या ऐसा नहीं है?

आओ, हम बड़े पर्वत और छोटी जलधारा की कहानी पर फिर से नज़र डालें। पर्वत का काम क्या है? जीवित चीज़ें पर्वत पर फलती-फूलती हैं, अतः इसके अस्तित्व का एक अंतर्निहित मूल्य है, और वह छोटी जलधारा को अपनी इच्छा से बहने और लोगों के लिए आपदा लाने से रोकते हुए उसे बाधित भी करता है। क्या यह सही नहीं है? पर्वत अपने तरीके से अस्तित्व में है, जिससे असंख्य जीवित चीज़ों—पेड़ और घास और अन्य सभी पौधे और जानवर—को पर्वत पर फलने-फूलने का अवसर मिलता है। वह छोटी जलधारा के प्रवाह के क्रम को भी निर्देशित करता है—पर्वत जलधारा के जल को एकत्र करता है और स्वाभाविक रूप से अपने निचले सिरे पर उसका मार्गदर्शन करता है, जहाँ वह नदी में और अंततः समुद्र में जाकर मिल सकती है। ये नियम प्राकृतिक रूप से घटित नहीं हुए, बल्कि परमेश्वर द्वारा सृष्टि के समय खास तौर से लागू किए गए थे। जहाँ तक बड़े पर्वत और प्रचंड हवा की बात है, पर्वत को भी हवा की आवश्यकता होती है। पर्वत को हवा की आवश्यकता अपने ऊपर रहने वाले जीवित प्राणियों को प्रेम से स्पर्श करवाने के साथ-साथ प्रचंड हवा के बल को रोकने के लिए भी होती है, ताकि वह अनियंत्रित रूप से न बहे। यह नियम, एक तरह से, बड़े पर्वत के कर्तव्य का प्रतीक है; तो क्या पर्वत के कर्तव्य से संबंधित इस नियम ने अपने आप ही आकार ले लिया? (नहीं।) इसे परमेश्वर द्वारा बनाया गया था। बड़े पर्वत का अपना कर्तव्य है और प्रचंड हवा का भी अपना कर्तव्य है। अब हम बड़े पर्वत और विशाल लहर की ओर मुड़ते हैं। पर्वत के न होने पर क्या जल अपने आप ही बहने की दिशा ढूँढ़ पाता? (नहीं।) पर्वत के रूप में पर्वत का अपना अस्तित्वगत मूल्य है, और समुद्र के रूप में समुद्र का अपना अस्तित्वगत मूल्य है; लेकिन जिन परिस्थितियों के अंतर्गत वे एक-साथ सामान्य रूप से मौजूद रहने में सक्षम हैं और एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करते, वे एक-दूसरे को रोकते भी हैं—बड़ा पर्वत समुद्र को रोकता है ताकि वह बाढ़ न लाए, और ऐसा करके वह लोगों के घरों की सुरक्षा करता है, और समुद्र को रोककर वह उसे अपने भीतर रहने वाले जीव-जंतुओं का पोषण करने का अवसर भी देता है। क्या इस भूदृश्य ने अपने आप ही आकार ले लिया? (नहीं।) इसे भी परमेश्वर द्वारा ही रचा गया था। इस तसवीर से हम देखते हैं कि जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों को बनाया, तो उसने पहले से ही निर्धारित कर दिया कि पर्वत कहाँ स्थित होगा, जलधारा कहाँ बहेगी, किस दिशा से प्रचंड हवा बहनी शुरू होगी और वह कहाँ जाएगी, और लहरें कितनी विशाल और ऊँची होंगी। इन सब चीज़ों में परमेश्वर के इरादे एवं उद्देश्य शामिल हैं—ये परमेश्वर के कर्म हैं। अब, क्या तुम लोग देख सकते हो कि परमेश्वर के कर्म सभी चीज़ों में मौजूद हैं? (हाँ।)

इन चीज़ों की चर्चा करने में हमारा क्या उद्देश्य है? क्या इसका उद्देश्य लोगों को उन नियमों का अध्ययन करवाना है, जिनके द्वारा उसने सभी चीज़ों की सृष्टि की? क्या इसका उद्देश्य लोगों को खगोलविज्ञान एवं भौतिकी में रुचि लेने के लिए प्रोत्साहित करना है? (नहीं।) तो फिर इसका क्या उद्देश्य है? इसका उद्देश्य लोगों को परमेश्वर के कर्म समझने के लिए प्रेरित करना है। परमेश्वर के कार्यों में लोग इस बात की पुष्टि और सत्यापन कर सकते हैं कि परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है। यदि तुम इसे समझ सको, तो तुम वाकई अपने हृदय में परमेश्वर के स्थान की पुष्टि कर सकोगे, और तुम इस बात की भी पुष्टि करने में सक्षम होगे कि परमेश्वर ही स्वयं अद्वितीय परमेश्वर है, और स्वर्ग एवं धरती तथा सभी चीज़ों का सर्जक है। तो क्या सभी चीजों के नियमों और ईश्वर के कर्मों को जानना परमेश्वर की तुम्हारी समझ के लिए उपयोगी है? (हाँ।) यह कितना उपयोगी है? सबसे पहले, जब तुम परमेश्वर के कर्मों को समझ गए हो, तो क्या तुम अब भी खगोलविज्ञान एवं भूगोल में रुचि लोगे? क्या अब भी तुम्हारे पास एक संशयात्मा का हृदय हो सकता है और तुम परमेश्वर के सभी चीज़ों का सर्जक होने पर संदेह कर सकते हो? क्या अब भी तुम्हारे पास एक शोधकर्ता का हृदय होगा और तुम परमेश्वर के सभी चीज़ों का सर्जक होने पर संदेह कर सकते हो? (नहीं।) जब तुमने इस बात की पुष्टि कर दी है कि परमेश्वर सभी चीजों का सर्जक है और तुम परमेश्वर की सृष्टि के कुछ नियम समझ गए हो, तो क्या तुम सचमुच विश्वास करोगे कि परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए आपूर्ति करता है? (हाँ।) क्या "आपूर्ति" का यहाँ कोई विशेष महत्व है, या क्या इसका प्रयोग किसी विशेष परिस्थिति के संदर्भ में किया गया है? "परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए आपूर्ति करता है" बहुत व्यापक महत्व और विस्तार वाली उक्ति है। परमेश्वर सिर्फ लोगों को उनके दैनिक भोजन एवं पेय की ही आपूर्ति नहीं करता, बल्कि वह मनुष्यों को उनकी ज़रूरत की हर चीज़ की आपूर्ति करता है, जिनमें हर वह चीज़ तो शामिल है ही, जिसे लोग देख सकते हैं, साथ ही वे चीज़ें भी शामिल हैं, जिन्हें देखा नहीं जा सकता। परमेश्वर मानव-जाति के लिए अनिवार्य इस वातावरण को कायम रखता है, इसका प्रबंध करता है और इस पर शासन करता है। दूसरे वचनों में, मानव-जाति को हर मौसम में जिस भी वातावरण की ज़रूरत होती है, परमेश्वर ने उसे तैयार किया है। परमेश्वर हवा और तापमान के प्रकार का भी प्रबंध करता है, ताकि वे मनुष्य के अस्तित्व के लिए उपयुक्त हो सकें। इन चीजों को नियंत्रित करने वाले नियम अपने आप या यों ही बिना सोचे-विचारे घटित नहीं होते; वे परमेश्वर की संप्रभुता एवं उसके कर्मों का परिणाम हैं। स्वयं परमेश्वर इन सभी नियमों का स्रोत है और सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है। भले ही तुम इस पर विश्वास करो या न करो, भले ही तुम इसे देख पाओ या न देख पाओ, या भले ही तुम इसे समझ पाओ या न समझ पाओ, यह एक स्थापित और अकाट्य सत्य है।

मैं जानता हूँ कि एक बड़ी संख्या में लोग परमेश्वर के उन्हीं वचनों और कार्यों पर विश्वास करते हैं, जो बाइबल में शामिल हैं, परमेश्वर ने अपने कर्मों को प्रकट किया है, और लोगों को उसके अस्तित्व के महत्व को जानने दिया है। उसने उन्हें उसकी हैसियत की कुछ समझ को हासिल करने दिया है और अपने अस्तित्व के तथ्य की पुष्टि की है। हालांकि, कई और लोगों को यह तथ्य अस्पष्ट एवं अनिर्दिष्ट प्रतीत होता है कि परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की और वह सभी चीज़ों का प्रबंधन और उनकी आपूर्ति करता है; यहाँ तक कि ऐसे लोग संदेह की मनोवृत्ति भी रखते हैं। इस मनोवृत्ति के कारण वे निरंतर यह मानते हैं कि प्राकृतिक संसार के नियम अनायास बने हैं, कि प्रकृति के परिवर्तन, रूपांतरण, घटनाएँ और उसे संचालित करने वाले नियम प्रकृति से ही उत्पन्न हुए हैं। लोग अपने दिलों में यह अनुमान नहीं लगा सकते कि परमेश्वर ने सभी चीज़ों को कैसे बनाया और वह कैसे उन पर शासन करता है; वे नहीं समझ सकते कि परमेश्वर सभी चीज़ों का प्रबंधन और उनके लिए आपूर्ति किस तरह करता है। इस प्रस्तावना की सीमाओं के अंतर्गत, लोग विश्वास नहीं कर सकते कि परमेश्वर ने सभी चीज़ों को बनाया, वह उन पर शासन करता है और उनके लिए आपूर्ति करता है; यहाँ तक कि विश्वासी भी व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग पर अपने विश्वास तक ही सीमित हैं, वे मानते हैं कि परमेश्वर के कर्म और मानव-जाति के लिए उसकी आपूर्ति केवल उसके चुने हुए लोगों के लिए ही हैं। यह देखकर मुझे सबसे ज्यादा अप्रसन्नता होती है, क्योंकि भले ही मनुष्य उन सभी चीज़ों का आनंद उठाते हैं, जो परमेश्वर लेकर आता है, फिर भी वे उन सभी चीज़ों को नकारते हैं, जो वह करता और उन्हें देता है। लोग यही विश्वास करते हैं कि स्वर्ग, धरती और सभी चीज़ें अपने स्वयं के प्राकृतिक नियमों और अपने स्वयं के अस्तित्व के प्राकृतिक विधानों से संचालित होते हैं, उनका प्रबंधन करने वाला कोई शासक या उन्हें आपूर्ति करने वाला और उनका पालन करने वाला कोई संप्रभु नहीं है। भले ही तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, फिर भी तुम शायद यह विश्वास नहीं करते कि ये सब उसके कर्म हैं; वास्तव में यह उन चीजों में से एक है, जिनकी परमेश्वर के हर विश्वासी, परमेश्वर के वचन को स्वीकार करने वाले हर व्यक्ति और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हर आदमी द्वारा अवहेलना की जाती है। अतः, जैसे ही मैं ऐसी किसी चीज़ के बारे में चर्चा करना शुरू करता हूँ, जो बाइबल या तथाकथित आध्यात्मिक शब्दावली से संबंधित नहीं होती, कुछ लोग ऊब जाते हैं या थक जाते हैं, यहाँ तक कि असहज हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि मेरी बातें आध्यात्मिक लोगों एवं आध्यात्मिक चीज़ों से अलग लगती हैं। यह एक भयानक बात है। जब परमेश्वर के कर्मों को जानने की बात आती है, तो हालाँकि हम खगोल विज्ञान का उल्लेख नहीं करते, न ही हम भूगोल या जीवविज्ञान पर शोध करते हैं, फिर भी हमें सभी चीज़ों पर परमेश्वर की प्रभुता को समझना चाहिए, हमें सभी चीज़ों के लिए उसकी आपूर्ति को जानना चाहिए, और यह कि वह सभी चीज़ों का स्रोत है। यह एक आवश्यक पाठ है और इसका अध्ययन अवश्य किया जाना चाहिए। मुझे विश्वास है कि तुम मेरी बात समझ गए हो!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII

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