परमेश्वर सबका सृजन, शासन और प्रबंधन पूरी तरह से मानवजाति के जीवित रहने के लिए करता है

06 अगस्त, 2018

जो दो कहानियाँ मैंने अभी सुनाईं, हालाँकि उनकी विषय-वस्तु और अभिव्यक्ति का तरीका थोड़ा असामान्य था, फिर भी मैंने उन्हें कुछ खास तरीके से सुनाया, जिसमें मेरा प्रयास सीधी भाषा एवं सरल दृष्टिकोण का इस्तेमाल करने का रहा, ताकि तुम लोग कुछ गहरी बात समझ एवं स्वीकार कर सको। यही मेरा एकमात्र लक्ष्य था। मैं चाहता था कि तुम लोग इन छोटी कहानियों और इनमें चित्रित दृश्यों से यह देखो और विश्वास करो कि परमेश्वर समस्त सृष्टि का संप्रभु है। इन कहानियों को सुनाने का लक्ष्य यही है कि तुम लोगों को कहानी के सीमित दायरे में परमेश्वर के असीमित कार्यों को देखने एवं जानने का मौका मिले। इस परिणाम को तुम लोग अपने भीतर कब पूरी तरह से महसूस और हासिल करोगे—यह तुम्हारे व्यक्तिगत अनुभवों एवं कोशिश पर निर्भर करता है। यदि तुम सत्य की तलाश करते हो और परमेश्वर को जानने की कोशिश करते हो, तो ये चीज़ें सबसे अधिक प्रबल तरीके से तुम्हें याद दिलाने का काम करेंगी; इनसे तुम्हारे अंदर एक गहरी जागरूकता पैदा होगी, तुम्हारी समझ स्पष्ट होगी, तुम धीरे-धीरे परमेश्वर के वास्तविक कर्मों के नज़दीक आते जाओगे, उस नज़दीकी में कोई दूरी और त्रुटि नहीं होगी। हालांकि, यदि तुम परमेश्वर को जानने का प्रयास करने वाले व्यक्ति नहीं हो, तो भी ये कहानियाँ तुम लोगों का कोई नुकसान नहीं कर सकतीं। बस इन्हें सच्ची कहानियाँ समझो।

क्या तुम लोगों ने इन दो कहानियों से कुछ समझ हासिल की है? पहली बात, क्या ये दो कहानियाँ मानव-जाति के लिए परमेश्वर की चिंता पर की गई हमारी पिछली चर्चा से अलग हैं? क्या इनमें कोई अंतर्निहित संबंध है? क्या यह सच है कि इन दोनों कहानियों में हम परमेश्वर के कर्मों और उस व्यापक विचार को देखते हैं, जो वह मानव-जाति के लिए बनाई गई अपनी हर योजना पर करता है? क्या यह सच है कि परमेश्वर के सारे कार्य और उसके सभी विचार मानव-जाति के अस्तित्व के लिए होते हैं? (हाँ।) क्या मानव-जाति के लिए परमेश्वर के सतर्क विचार एवं सोच बिलकुल स्पष्ट नहीं है? मानव-जाति को कुछ नहीं करना है। परमेश्वर ने लोगों के लिए हवा बनाई है—उन्हें बस उसमें साँस लेना है। जो सब्जियाँ एवं फल वे खाते हैं, वे आसानी से उपलब्ध हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक, प्रत्येक क्षेत्र के पास अपने प्राकृतिक संसाधन हैं। विभिन्न क्षेत्रीय फसलें और फल एवं सब्जियाँ, सब परमेश्वर द्वारा तैयार की गई हैं। अधिक विशाल परिवेश में परमेश्वर ने सभी चीज़ों को एक-दूसरे को सुदृढ़ करने वाली, एक दूसरे पर निर्भर, एक-दूसरे को मजबूत बनाने वाली, एक-दूसरे पर प्रतिक्रिया करने वाली और साथ मिलकर रहने वाली बनाया है। यह सभी चीज़ों के जीवन और अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उसकी पद्धति और नियम है; इस तरह, मानव-जाति इस सजीव परिवेश में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक, यहाँ तक कि आज के दिन तक कई गुना बढ़ते हुए सुरक्षित और स्थिरता से विकसित होने में सक्षम रही है। कहने का मतलब यह है कि परमेश्वर प्राकृतिक परिवेश को संतुलित करता है। यदि परमेश्वर संप्रभु एवं नियंत्रक न होता, तो परमेश्वर द्वारा सृजित किए जाने के बावजूद इस परिवेश को कायम एवं संतुलित रखना किसी के भी वश में न होता। कुछ स्थानों में हवा नहीं है, इसलिए मनुष्य वहाँ जीवित नहीं रह सकते। परमेश्वर तुम्हें वहाँ जाने की अनुमति नहीं देगा। इसलिए, उपयुक्त सीमाओं के बाहर मत जाओ। यह मानव-जाति की सुरक्षा के लिए है—इसके भीतर रहस्य हैं। इस परिवेश के हर एक पहलू, धरती की लंबाई और चौड़ाई, धरती के हर एक प्राणी—जीवित और मृत दोनों—की परमेश्वर ने अग्रिम कल्पना और तैयारी कर ली थी। यह चीज़ क्यों आवश्यक है? वह चीज़ क्यों अनावश्यक है? इस चीज़ के यहाँ होने का क्या उद्देश्य है और उस चीज़ को वहाँ क्यों होना चाहिए? परमेश्वर ने पहले ही इन सभी प्रश्नों के बारे में सोच लिया था और लोगों को इनके बारे में सोचने की कोई आवश्यकता नहीं है। कुछ मूर्ख लोग हमेशा पहाड़ों को हिलाने के विषय में सोचते रहते हैं, लेकिन ऐसा करने की अपेक्षा, वे मैदानों की ओर क्यों नहीं चले जाते? यदि तुम पहाड़ों को पसंद नहीं करते हो, तो तुम उनके पास रहते क्यों हो? क्या यह मूर्खता नहीं है? क्या होगा, अगर तुम उस पहाड़ को हटा दोगे? तूफान और विशाल लहरें आएँगी और लोगों के घर नष्ट हो जाएँगे। क्या यह मूर्खता नहीं होगी? लोग केवल नाश कर सकते हैं। लोग उस स्थान को भी बनाए नहीं रख सकते, जहाँ उन्हें रहना है, और फिर भी वे सभी चीज़ों के लिए आपूर्ति करना चाहते हैं। यह असंभव है।

परमेश्वर मनुष्य को सभी चीज़ों का प्रबंधन करने और उन पर आधिपत्य रखने की अनुमति देता है, पर क्या मनुष्य अच्छा काम करता है? मनुष्य वह सब-कुछ नष्ट कर देता है, जिसे वह नष्ट कर सकता है। वह परमेश्वर द्वारा अपने लिए बनाई हर चीज़ को उसकी मूल स्थिति में रखने में एकदम असमर्थ है—उसने इसका उलटा किया है और परमेश्वर द्वारा बनाई गई चीज़ों को नष्ट कर दिया है। मनुष्य ने पर्वतों को हटा दिया है, समुद्रों को पाटकर जमीन में तब्दील कर दिया है, और मैदानों को रेगिस्तानों में बदल दिया है, जहाँ कोई मनुष्य नहीं रह सकता। फिर भी रेगिस्तानों में मनुष्य ने उद्योग स्थापित कर दिए हैं और परमाणु ठिकाने बनाकर हर तरफ विनाश के बीज बो दिए हैं। नदियाँ अब नदियाँ नहीं रहीं, समुद्र अब समुद्र नहीं रहे...। एक बार जब मानव-जाति ने प्राकृतिक परिवेश के संतुलन और उसके नियमों को तोड़ दिया है, तो उसके विनाश एवं मृत्यु का दिन अधिक दूर नहीं है; यह अवश्यंभावी है। जब विनाश आएगा, तब मनुष्य को पता चलेगा कि परमेश्वर द्वारा उसके लिए बनाई गई हर चीज़ कितनी बहुमूल्य है और मानव-जाति के लिए वह कितनी महत्वपूर्ण है। मनुष्य का ऐसे परिवेश में रहना, जिसमें हवा और बारिश अपने समय पर आती है, स्वर्ग में रहने जैसा है। लोगों को एहसास नहीं है कि यह एक आशीष है, परंतु जिस क्षण वे यह सब खो देंगे, तब वे समझेंगे कि यह कितना दुर्लभ और कीमती है। और एक बार यह चला गया, तो कोई इसे कैसे वापस पाएगा? यदि परमेश्वर इसे फिर से बनाने के लिए तैयार न हुआ, तो लोग क्या कर सकेंगे? क्या तुम लोग कुछ कर सकते हो? (नहीं, कुछ नहीं कर सकते।) वास्तव में, तुम लोग कुछ तो कर सकते हो। यह बहुत सरल है—जब मैं तुम लोगों को बताऊँगा कि वह क्या है, तो तुम लोग तुरंत जान जाओगे कि यह संभव है। मनुष्य ने स्वयं को अपने अस्तित्व की वर्तमान स्थिति में कैसे पाया है? क्या यह उसके लालच और विनाश के कारण है? यदि मनुष्य इस विनाश का अंत कर दे, तो क्या यह सजीव परिवेश अपने आप ही धीरे-धीरे ठीक नहीं हो जाएगा? यदि परमेश्वर कुछ नहीं करता, यदि परमेश्वर आगे से मानव-जाति के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं होता—कहने का मतलब कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करता—तो इस विनाश को रोकने और सजीव परिवेश को पुनः उसकी प्राकृतिक स्थिति में वापस लाने के लिए मानव-जाति के पास सर्वोत्तम तरीका यही होगा कि वह समस्त विनाश को रोक दे। समस्त विनाश को रोकने का अर्थ है उन चीज़ों की लूट एवं बरबादी को रोकना, जिन्हें परमेश्वर ने रचा है। ऐसा करने से वह परिवेश धीरे-धीरे सुधरने लगेगा जिसमें मनुष्य रहता है, जबकि इसमें असफल होने का परिणाम जीवन के लिए और अधिक प्रतिकूल परिवेश के रूप में सामने आएगा, जिसका विनाश समय के साथ और तेज होता जाएगा। क्या मेरा समाधान सरल है? यह सरल एवं संभव है, है न? वास्तव में यह सरल है, और कुछ लोगों के लिए संभव भी है—परंतु क्या यह धरती के अधिकतर लोगों के लिए संभव है? (नहीं है।) कम से कम, क्या तुम लोगों के लिए यह संभव है? (हाँ।) तुम्हारे "हाँ" कहने का क्या कारण है? क्या यह कहा जा सकता है कि यह परमेश्वर के कर्मों को समझने की बुनियाद से आती है? क्या यह कहा जा सकता है कि इसकी शर्त परमेश्वर की संप्रभुता एवं योजना का पालन करना है? (हाँ।) चीज़ों को बदलने का एक तरीका है, परंतु वह हमारी इस चर्चा का विषय नहीं है। परमेश्वर प्रत्येक मनुष्य के जीवन के लिए ज़िम्मेदार है और वह बिलकुल अंत तक ज़िम्मेदार है। परमेश्वर तुम्हारे लिए आपूर्ति करता है, यहाँ तक कि अगर शैतान द्वारा नष्ट किए गए इस परिवेश में तुम बीमार या प्रदूषित या संकटग्रस्त हो जाते हो, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; परमेश्वर तुम्हारे लिए आपूर्ति करेगा और तुम्हें जीवित रखेगा। क्या तुम्हें इस पर विश्वास है? (हाँ।) परमेश्वर मनुष्य को ऐसे ही मरने नहीं देता।

क्या तुम लोग अब परमेश्वर को समस्त चीज़ों के लिये जीवन के स्रोत के रूप में पहचानने के महत्व को महसूस करने लगे हो? (हाँ, बिल्कुल।) तुम लोगों की क्या भावनाएँ हैं? मुझे बताओ। (अतीत में हमने कभी पर्वतों, समुद्रों एवं झीलों को परमेश्वर के कार्यों के साथ जोड़ने के बारे में नहीं सोचा था। आज परमेश्वर की संगति सुनने से पहले तक हम नहीं समझे थे कि इन चीज़ों के भीतर परमेश्वर के कर्म और बुद्धिमत्ता है; हम देखते हैं कि जब परमेश्वर ने सभी चीज़ें बनानी शुरू की थीं, तो उसने हर चीज़ में उसकी नियति और अपना सद्भाव पहले ही शामिल कर दिया था। सभी चीज़ें एक-दूसरे को सुदृढ़ बनाने वाली और एक दूसरे पर निर्भर हैं और मानव-जाति उनकी अंतिम लाभार्थी है। आज हमने जो कुछ सुना, वह बिलकुल ताज़ा और नया महसूस होता है—हमने महसूस किया है कि परमेश्वर के कार्य कितने वास्तविक हैं। वास्तविक दुनिया में, हमारे दैनिक जीवन में, और सभी चीज़ों के साथ अपने संपर्क में हम देखते हैं कि ऐसा ही है।) तुमने सच में देखा है, है ना? परमेश्वर मानव-जाति के लिए मजबूत बुनियाद के बिना आपूर्ति नहीं करता; उसकी आपूर्ति कुछ संक्षिप्त वचन मात्र नहीं है। परमेश्वर ने इतना सब कुछ किया है, यहाँ तक कि वे सब चीज़ें भी तुम्हारे लाभ के लिए हैं, जिन्हें तुम नहीं देखते। मनुष्य इस परिवेश में उन सब चीज़ों के बीच रहता है, जो परमेश्वर ने उसके लिए बनाई हैं, जहाँ लोग एवं सभी चीज़ें एक-दूसरे पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, पौधे ऐसी गैसें छोड़ते हैं, जो हवा को शुद्ध करती हैं और लोग उस शुद्ध हवा में साँस लेते हैं और उससे लाभान्वित होते हैं; फिर भी, कुछ पौधे लोगों के लिए जहरीले होते हैं, जबकि अन्य पौधे उन जहरीले पौधों का प्रतिकार करते हैं। यह परमेश्वर की सृष्टि का एक आश्चर्य है! लेकिन आज अभी हम इस विषय को छोड़ दें; आज हमारी चर्चा मुख्य रूप से मनुष्य और शेष सृष्टि के सह-अस्तित्व के बारे में थी, जिसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। परमेश्वर द्वारा सभी चीज़ों के सृजन का क्या महत्व है? मनुष्य अन्य चीज़ों के बिना नहीं रह सकता, जैसे कि मनुष्य को जीने के लिए हवा की ज़रूरत होती है—यदि तुम्हें निर्वात में रख दिया जाए, तो तुम जल्दी ही मर जाओगे। यह एक बहुत ही सरल सिद्धांत है, जो दिखाता है कि मनुष्य शेष सृष्टि से अलग नहीं रह सकता। तो, मनुष्य को सभी चीजों के प्रति कैसा रवैया रखना चाहिए? एक जो उन्हें सँजोकर रखता है, उनकी रक्षा करता है, उनका कुशल उपयोग करता है, उन्हें नष्ट नहीं करता, उन्हें बरबाद नहीं करता, और उन्हें एक सनक में नहीं बदलता, क्योंकि सभी चीजें परमेश्वर से आयी हैं, सभी चीजें मानव-जाति के लिए उसकी आपूर्ति हैं, और मानव-जाति को उनके साथ निष्ठा से व्यवहार करना चाहिए।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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