मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें
किसी की प्रकृति को कैसे जानें? किसी व्यक्ति की प्रकृति किन चीजों से मिलकर बनती है? तुम केवल मनुष्य की कमियों, दोषों, इरादों, धारणाओं, नकारात्मकता और विद्रोहीपन के बारे में जानते हो, लेकिन तुम मनुष्य की प्रकृति के भीतर की चीज़ों को नहीं जान पाते। उसके उद्भव को जानने में समर्थ हुए बिना तुम केवल उसकी बाहरी परत को जानते हो, और इससे मनुष्य की प्रकृति का ज्ञान नहीं होता। कुछ लोग अपनी कमियाँ और नकारात्मकताएँ स्वीकारते हैं और कहते हैं, “मैं अपनी प्रकृति समझता हूँ। देखो, मैं अपने अहंकार को स्वीकारता हूँ। क्या यह मेरा अपनी प्रकृति को जानना नहीं है?” अहंकार मनुष्य की प्रकृति का एक अंग है; यह सत्य है। लेकिन इसे केवल सैद्धांतिक अर्थ में स्वीकारना पर्याप्त नहीं है। अपने स्वयं के स्वभाव को समझना क्या है? इसे कैसे जाना जा सकता है? किन पहलुओं से इसे जाना जा सकता है? एक व्यक्ति जिन चीज़ों को प्रकट करता है, उसके माध्यम से किसी की प्रकृति को विशिष्ट रूप से कैसे देखा जाना चाहिए? सबसे पहले, तुम व्यक्ति की प्रकृति को उसकी रुचियों के माध्यम से देख सकते हो। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों में मशहूर और विशिष्ट लोगों के लिए विशेष श्रद्धा होती है, कुछ लोगों को विशेष रूप से गायक या फ़िल्मी सितारे पसंद हैं, कुछ लोगों को गेम खेलने का विशेष शौक होता है। इन रुचियों से हम देख सकते हैं कि इन लोगों की प्रकृति क्या है। एक सरल उदाहरण है : कुछ लोग किसी गायक को आदर्श मान सकते हैं। वे किस हद तक उन्हें आदर्श मानते हैं? इस हद तक कि वे उस गायक की हर हरकत, मुस्कान और शब्द के प्रति आसक्त हो जाते हैं। वे उस गायक पर फिदा हो जाते हैं, यहाँ तक कि हर उस चीज़ की तस्वीर खींचते हैं जो वह पहनता है, और उसकी नक़ल करते हैं। इस स्तर का आदर्शीकरण इस व्यक्ति के बारे में किस समस्या को दर्शाता है? यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्ति के हृदय में केवल गैर-विश्वासी चीज़ें हैं, उसमें सत्य नहीं है, उसमें सकारात्मक चीजें नहीं है, और परमेश्वर तो उसके हृदय में बिल्कुल नहीं है। वे सभी चीजें, जिनके बारे में यह व्यक्ति सोचता है, जिनसे प्यार करता है और जिन्हें खोजता है, शैतान की होती हैं। ये चीजें इस व्यक्ति के हृदय पर कब्ज़ा कर लेती हैं, जो उन चीज़ों को अर्पित कर दिया जाता है। क्या तुम लोग बता सकते हो कि उसका प्रकृति सार क्या है? अगर किसी चीज़ को चरम सीमा तक प्रेम किया जाता है, तो वह चीज़ किसी का जीवन बन सकती है और उसके हृदय पर कब्ज़ा कर सकती है, पूरी तरह से यह साबित करती है कि वह व्यक्ति एक मूर्ति पूजक है जो परमेश्वर को नहीं चाहता है और उसके बजाय शैतान से प्यार करता है। इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति की प्रकृति शैतान से प्रेम और उसकी आराधना करने वाली होती है, जो सत्य से प्रेम नहीं करती और परमेश्वर को नहीं चाहती। क्या यह किसी व्यक्ति की प्रकृति को देखने का सही तरीका नहीं है? यह पूरी तरह सही है। मनुष्य की प्रकृति का विश्लेषण इसी तरह किया जाता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग विशेष रूप से पौलुस को आदर्श मानते हैं। उन्हें बाहर जाकर भाषण देना और कार्य करना पसंद होता है, उन्हें सभाओं में भाग लेना और प्रचार करना पसंद होता है; उन्हें अच्छा लगता है कि लोग उन्हें सुनें, उनकी आराधना करें और उनके चारों ओर घूमें। उन्हें पसंद होता है कि दूसरों के दिलों में उनकी एक जगह हो, और जब दूसरे उनके द्वारा प्रदर्शित छवि को महत्व देते हैं, तो वे उसकी सराहना करते हैं। आओ हम इन व्यवहारों से उनकी प्रकृति का विश्लेषण करें। उनकी प्रकृति कैसी है? यदि वे वास्तव में इस तरह से व्यवहार करते हैं, तो यह ये दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि वे अहंकारी और दंभी हैं। वे परमेश्वर की आराधना तो बिल्कुल नहीं करते हैं; वे ऊँची हैसियत की तलाश में रहते हैं और दूसरों पर अधिकार रखना चाहते हैं, उन पर अपना कब्ज़ा रखना चाहते हैं, उनके दिलों में एक जगह रखना चाहते हैं। यह शैतान की विशेष छवि है। उनकी प्रकृति के पहलू जो अलग से दिखाई देते हैं, वे हैं उनका अहंकार और दंभ, परेमश्वर की आराधना करने की अनिच्छा, और दूसरों के द्वारा आराधना किए जाने की इच्छा। ऐसे व्यवहारों से तुम उनकी प्रकृति को स्पष्ट रूप से देख सकते हो। उदाहरण के लिए, कुछ लोग वाकई दूसरों की कीमत पर चीजों का अनुचित लाभ उठाना पसंद करते हैं और वे सभी मामलों में अपना ही हित साधना चाहते हैं। वे जो कुछ भी करें उससे उन्हें लाभ मिलना चाहिए, वरना वे उसे नहीं करेंगे। जब तक उन्हें किसी चीज में लाभ न मिलता हो, वे उस पर ध्यान नहीं देते हैं, और उनके कार्यों के पीछे हमेशा गुप्त उद्देश्य होते हैं। जो व्यक्ति उन्हें लाभ पहुँचाता है, वे उसकी प्रशंसा करते हैं, और जो कोई उनकी चापलूसी करता है, उसे वे बढ़ावा देते हैं। यहाँ तक कि अगर उनके पसंदीदा लोगों को समस्याएँ भी हों, तो भी वे कहेंगे कि वे लोग सही हैं, और उनका बचाव करने और उन पर पर्दा डालने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। इस तरह के व्यक्तियों का क्या स्वभाव होता है? तुम उनकी प्रकृति को इन व्यवहारों से साफ देख सकते हो। वे अपने कार्यों के माध्यम से अनुचित लाभ लेने का प्रयास करते हैं और हर स्थिति में लेन-देन के व्यवहार में संलग्न रहते हैं, इसलिए तुम यह निश्चित रूप से कह सकते हो कि उनका स्वभाव लाभ के लिए ललचाते रहना है। वे हर चीज में स्वयं के बारे में सोचते हैं। अगर उन्हें कोई लाभ नहीं होगा, तो वे जल्दी नहीं उठेंगे। वे लोगों में सबसे स्वार्थी होते हैं, और वे बेहद लालची होते हैं। उनकी प्रकृति धन से उनके प्रेम और सत्य से प्रेम के अभाव के जरिये प्रदर्शित होती है। कुछ लोग महिलाओं से मोहित रहते हैं, जहाँ कहीं वे जाती हैं उनके साथ घूमते-फिरते रहते हैं। सुंदर महिलाएं ऐसे व्यक्तियों की चाहत का लक्ष्य होती हैं और उनके दिल में उनके लिए अत्यधिक सम्मान होता है। वे सुंदर महिलाओं के लिए अपना जीवन देने और सब कुछ त्यागने के लिए तैयार रहते हैं। केवल महिलाएं ही उनके दिल में रहती हैं। ऐसे पुरुषों का क्या स्वभाव होता है? उनका स्वभाव है सुंदर महिलाओं से प्रेम करना, उनकी पूजा करना और दुष्टता से प्रेम करना। वे दुष्ट, लालची प्रकृति वाले अय्याश व्यक्ति होते हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि यह प्रकृति है? उनके कृत्य एक लालची स्वभाव प्रकट करते हैं। ये व्यवहार केवल कभी-कभी किए जाने वाले अपराध नहीं होते, न ही ऐसे लोग केवल सामान्य लोगों से थोड़े ज्यादा बुरे होते हैं, बल्कि उनका दिल पहले से ही इन चीजों से पूरी तरह से भरा होता है, जो उनका स्वभाव, उनका सार बन जाती हैं। इस प्रकार, ये चीजें उनकी प्रकृति का प्रकटन बन गई हैं। व्यक्ति की प्रकृति के घटक लगातार प्रकट होते रहते हैं। कोई व्यक्ति चाहे कुछ भी करे, उससे उस व्यक्ति का स्वभाव प्रकट हो सकता है। लोगों के कुछ भी करने के अपने मंतव्य और उद्देश्य होते हैं, चाहे वह आतिथ्य प्रदान करना हो, सुसमाचार का प्रचार करना हो, या किसी भी अन्य तरह का कार्य हो, वे अनजाने में अपने स्वभाव के कुछ हिस्सों को प्रकट कर सकते हैं, क्योंकि व्यक्ति की प्रकृति उसका जीवन होती है, और लोग जब तक जीवित रहते हैं, तब तक अपने स्वभाव से नियंत्रित होते रहते हैं। व्यक्ति की प्रकृति केवल कुछ अवसरों पर या संयोग से प्रकट नहीं होती; बल्कि, यह पूरी तरह से व्यक्ति के सार का प्रतिनिधित्व कर सकता है। जो भी व्यक्ति की हड्डियों और रक्त के भीतर से बहता है, वह उसकी प्रकृति और जीवन का द्योतक होता है। कुछ लोगों को सुंदर महिलाएं पसंद होती हैं। कुछ लोग पैसे से प्रेम करते हैं। कुछ लोगों को हैसियत से विशेष प्रेम होता है। कुछ विशेष रूप से प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत छवि को मूल्यवान समझते हैं। कुछ विशेष रूप से अपने आदर्श नायक-नायिकाओं से प्रेम करते हैं या उनकी आराधना करते हैं। और कुछ लोग, विशेष रूप से अहंकारी और दंभी होते हैं, वे अपने दिल में किसी को स्थान नहीं देते और ऊँची हैसियत प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, वे दूसरों से अलग दिखना चाहते हैं और उन पर अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं। विभिन्न प्रकार की प्रकृतियाँ होती हैं। वे लोगों में भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, लेकिन उनके साझे तत्व परमेश्वर का प्रतिरोध और उससे विश्वासघात है। इस मामले में वे सभी समान हैं।
जहाँ तक यह बात है कि यह कैसे जानें कि व्यक्ति की प्रकृति क्या है, आओ कुछ और उदाहरण देखते हैं। मसलन, स्वार्थ को लो। स्वार्थ मनुष्य की प्रकृति का एक तत्व कहा जा सकता है। यह तत्व सबके भीतर होता है। कुछ लोग घोर स्वार्थी, चरम सीमा तक स्वार्थी होते हैं, और सभी चीजों में वे केवल अपने बारे में सोचते हैं, व्यक्तिगत लाभ के अलावा और कुछ नहीं चाहते, और उन्हें दूसरों का जरा-सा भी खयाल नहीं होता। यह स्वार्थ उनकी प्रकृति दर्शाता है। हर कोई कुछ हद तक स्वार्थी होता है, लेकिन एक अंतर होता है। दूसरों के साथ मेलजोल करते हुए, कुछ लोग दूसरों की देखरेख और देखभाल कर सकते हैं, वे दूसरों के बारे में चिंता कर सकते हैं, और जो कुछ भी वे करते हैं उसमें दूसरों का विचार कर सकते हैं। जबकि कुछ अन्य लोग ऐसे नहीं होते। भाई-बहनों की मेजबानी करते समय ये लोग विशेष रूप से स्वार्थी और हमेशा क्षुद्र होते हैं। वे अपने परिवार को सबसे ज्यादा मात्रा में सबसे अच्छा भोजन देते हैं और भाई-बहनों को कम मात्रा में कम स्वादिष्ट भोजन ही देते हैं। जब उनके रिश्तेदार आते हैं, तो वे उनके लिए बहुत आरामदायक व्यवस्था करते हैं। लेकिन जब भाई-बहन आते हैं, तो उन्हें जमीन पर सुलाया जाता है। उन्हें लगता है कि भाई-बहनों के आने पर उन्हें ठहरने देना ही काफी अच्छा है। जब भाई-बहन बीमार पड़ते हैं या किसी दूसरी मुसीबत में होते हैं, तो ऐसा व्यक्ति उनके बारे में सोचता तक नहीं, और ऐसा व्यवहार करता है जैसे उसे पता तक न हो। ऐसे लोग दूसरों की बिल्कुल भी परवाह या चिंता नहीं करते। वे केवल अपनी और अपने रिश्तेदारों की परवाह करते हैं। उनकी यह स्वार्थी प्रकृति ही दूसरों की देखभाल करने की उनकी अनिच्छा निर्धारित करती है। उन्हें लगता है कि दूसरों की देखभाल करने में नुकसान उठाना पड़ता है और बहुत परेशानी होती है। कुछ लोग कह सकते हैं, “स्वार्थी व्यक्ति नहीं जानता कि दूसरों का ध्यान कैसे रखा जाए।” यह गलत है। अगर वे नहीं जानते कि दूसरों का ध्यान कैसे रखा जाए, तो फिर स्वार्थी लोग अपने रिश्तेदारों के प्रति इतने अच्छे कैसे होते हैं और उनकी जरूरतों का पूरा ध्यान क्यों रखते हैं? वे क्यों जानते हैं कि उनमें क्या कमी है और किसी निश्चित समय पर क्या पहनना या खाना उपयुक्त है? वे दूसरों के लिए ऐसे क्यों नहीं हो पाते? वास्तव में, वे सब समझते हैं, लेकिन वे स्वार्थी और नीच होते हैं। यह उनकी प्रकृति से निर्धारित होता है। जो लोग स्वार्थी होते हैं, वे दूसरों के साथ उचित व्यवहार करने में अक्षम होते हैं। साथ ही दुष्टता का पहलू भी है। परमेश्वर के घर ने निर्धारित किया है कि जो लोग लगातार व्यभिचार करते हैं, उन सबको बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह सिर्फ एक क्षणिक अपराध था। क्या उनसे भी लगातार व्यभिचार करने वालों की ही तरह निपटा जाना चाहिए? यह सिद्धांत का मामला है। जिन लोगों ने कदाचित यदा-कदा व्यभिचार किया हो, उन्हें दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति नहीं माना जा सकता। अगर कोई जहाँ भी जाए वहाँ विपरीत-लिंगी के साथ, लगातार यूँ ही घूमा करता है, बेशर्म है और मानवीय संबंधों के मामले में कोई नैतिकता नहीं रखता, तो वह एक दुष्ट व्यक्ति है, और उसकी प्रकृति दुष्टता की है। ऐसा व्यक्ति चाहे जो भी क्रियाकलाप करे या जो भी कार्य करे, अपनी प्रकृति प्रकट करेगा। उसकी प्रकृति अदम्य होती है और उसका दिल इन गंदी चीजों से भरा होता है। वह जहाँ भी जाता है, विपरीत-लिंगी व्यक्ति के साथ समय गँवाता है, और अगर वह कुछ समय के लिए रुकता भी है, तो इसलिए रुकता है क्योंकि परिवेश इसकी अनुमति नहीं देता या कोई उपयुक्त साथी नहीं होता। किसी व्यक्ति की प्रकृति की चीजें किसी भी समय और किसी भी स्थान पर प्रकट हो सकती हैं; कुछ भी उन्हें सीमित नहीं कर सकता। कुछ लोग विशेष रूप से कपड़ों, सुंदरता और अभिमान के बहकावे में आ जाते हैं; वे बहुत घमंडी होते हैं। वे दिन में कई बार अपने कपड़े बदलते हैं। वे यह देखते हैं कि कौन अच्छे कपड़े पहनता है और कौन शानदार ढंग से कपड़े पहनता है, और अगर वे ये चीजें प्राप्त नहीं कर पाते, तो वे सो नहीं पाते, और ये चीजें प्राप्त करने के लिए वे पैसे उधार लेंगे या कोई भी कीमत चुकाएँगे। अगर वे ये चीजें प्राप्त न कर सकें, तो हो सकता है वे परमेश्वर में विश्वास में पूरी तरह से रुचि खो दें, सभाओं में भाग न लेना चाहें, और परमेश्वर के वचन पढ़ने में ध्यान न लगा पाएँ। उनके दिमाग में बस यही सब चीजें घर कर जाती हैं। वे और कुछ नहीं सोच सकते। ऐसे लोग विशेष रूप से घमंडी होते हैं, औसत व्यक्ति से कहीं अधिक। यह ऐसी चीज है जो उनकी प्रकृति और सत्व में समाई होती है। उनकी प्रकृति ही घमंडी होती है। व्यक्ति की प्रकृति में जो चीजें होती हैं, वे कमजोरी के किसी क्षण से प्रकट नहीं होतीं, बल्कि, वे सतत अभिव्यक्तियाँ होती हैं। लोग चाहे कुछ भी करें, वे अपनी प्रकृति के तत्त्व साथ लेकर चलते हैं। भले ही बाहर से स्पष्ट न दिखें, फिर भी भीतर अशुद्धियाँ होती हैं। अगर कोई धोखेबाज व्यक्ति ईमानदारी से बोलता है, तो भी वास्तव में उसके शब्दों के पीछे एक छिपा हुआ अर्थ होता है। उसकी बातें अभी भी धोखे से दूषित होती हैं। धोखेबाज व्यक्ति सबके साथ धोखा करता है, यहाँ तक कि अपने रिश्तेदारों और बाल-बच्चों से भी। तुम उसके साथ कितने भी निष्कपट होओ, वह तुम्हारे साथ धोखा ही करेगा। यही उनका असली चेहरा है, ठीक यही उनकी प्रकृति है, इसे बदलना आसान नहीं, और यह हमेशा ऐसी ही रहेगी। ईमानदार व्यक्ति कभी-कभी टेढ़ी-मेढ़ी और धोखे वाली बातें बोलता है, लेकिन वह आम तौर पर ईमानदार होता है, सापेक्ष ईमानदारी के साथ कार्य करता है, दूसरों के साथ बातचीत करते समय उनका लाभ नहीं उठाता, और दूसरों से बात करते समय उसका इरादा उनकी परीक्षा लेने का नहीं होता। वह दूसरों के साथ खुलकर दिल से संगति कर सकता है, और बाकी सभी कहते हैं कि वह निष्कपट है। जब वह कभी-कभी धोखेबाजी की बातें बोलता है, तो यह केवल उसके भ्रष्ट स्वभाव का प्रकट होना है। यह उसकी प्रकृति नहीं दर्शाता, क्योंकि वह धोखेबाज व्यक्ति नहीं होता। इसलिए, जब किसी व्यक्ति की प्रकृति की बात आती है, तो तुम्हें यह समझना चाहिए कि उस प्रकृति के तत्त्व क्या हैं और भ्रष्ट स्वभाव क्या है। तुम्हें दोनों के बीच स्पष्ट रूप से अंतर करने में सक्षम होना चाहिए। अब, जब लोगों से अपनी ही प्रकृति का विश्लेषण करने के लिए कहा जाता है, तो कुछ लोग कहेंगे, “कभी-कभी मैं कठोरता से बोलता हूँ” या “मैं असभ्य हूँ और नहीं जानता कि सही तरीके से कैसे पेश आऊँ” या “कभी-कभी जब मैं अपने कर्तव्य निभाता हूँ, तो अशुद्धियाँ हो जाती हैं,” लेकिन वे इस बारे में बात नहीं करते कि उनकी प्रकृति कैसी है या उनकी मानवता अच्छी है या नहीं। वे हमेशा इस तरह की चीजों से बचते हैं, और संभवतः वे वास्तव में खुद को नहीं जान पाते। हमेशा खुद को छिपाए रखना और इज्जत खोने से डरना स्वीकार्य नहीं है। जो तुम्हारी प्रकृति में है, उसे खोद कर निकालना चाहिए। अगर उसे खोद कर बाहर नहीं निकाला जा सकता, तो उसे समझा नहीं जा सकता, और अगर उसे समझा नहीं जा सकता, तो उसे बदला नहीं जा सकता। जब खुद को जानने की बात आए, तो तुम्हें बहुत सख्त होना चाहिए। तुम्हें खुद को धोखा नहीं देना चाहिए, और इसके संबंध में, तुम लापरवाही से पेश नहीं आ सकते।
अपने स्वभाव को समझना मुख्य रूप से यह समझना है कि तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो। तुम जिस तरह के व्यक्ति हो उससे पता चलता है कि तुम्हारा किस प्रकार का स्वभाव है। उदाहरण के लिए, यह कहना कि व्यक्ति ऐसा-ऐसा है, उसकी प्रकृति के बारे में सबसे ज्यादा बताता है। व्यक्ति की प्रकृति निर्धारित करती है कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है। व्यक्ति की प्रकृति उसका जीवन होती है। तुम यह कैसे देख सकते हो कि व्यक्ति की प्रकृति कैसी है? तुम्हें अक्सर उसके संपर्क में आना चाहिए और यह देखने में समय बिताना चाहिए कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है। जो कुछ भी उसके बारे में सबसे स्पष्ट दिखाई दे और उसका सार और विशेषताएँ दर्शाए, उसे उसका प्रकृति सार कहा जा सकता है। उसके सार के वे तत्व उसकी प्रकृति बनाते हैं। जब यह देखने की बात आती है कि व्यक्ति वास्तव में किस तरह का है, तो यह तरीका ज्यादा सटीक होता है। जैसा व्यक्ति का सार होता है, वैसी ही उसकी प्रकृति होती है। व्यक्ति की प्रकृति निर्धारत करती है कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है। उदाहरण के लिए, अगर व्यक्ति विशेष रूप से पैसों से प्रेम करता है, तो उसकी प्रकृति का सारांश इन कुछ शब्दों में बनाया जा सकता है : वह धन का प्रेमी होता है। यदि किसी व्यक्ति की सबसे प्रमुख विशेषता महिलाओं से प्रेम करना है और वह हमेशा औरतबाजी में लिप्त रहता है, तो यह व्यक्ति दुष्टता से प्रेम करता है और दुष्ट प्रकृति का है। कुछ लोगों को खाना-पीना सबसे अधिक पसंद होता है। यदि तुम ऐसे व्यक्ति को थोड़ी मदिरा और कुछ मांस दे दो, तो वह तुम्हारे पक्ष में काम करेगा। इसलिए यह दर्शाता है कि यह व्यक्ति सुअर की तरह पेटू प्रकृति का है। हर व्यक्ति का भ्रष्ट स्वभाव और एक घातक दोष होता है, और भ्रष्ट स्वभाव उसे उसके वास्तविक जीवन में नियंत्रित करता है। वह इस भ्रष्ट स्वभाव से जीता है और यह उसकी प्रकृति दर्शाता है। उसकी प्रकृति उसका यानी उसके घातक दोष का हिस्सा कही जा सकती है—उसका घातक दोष उसकी प्रकृति होता है। कुछ लोगों में संतोषजनक मानवता होती है और वे ऊपर से कोई बड़ी खामी नहीं दिखाते, लेकिन उनकी सबसे बड़ी कमजोरी उनकी क्षण-भंगुरता होती है। उनके जीवन के कोई लक्ष्य या आकांक्षाएं नहीं होतीं, वे जैसे-तैसे जीते हैं, थोड़े-से आघात से ही गिर जाते हैं और चीजें कठिन होने पर नकारात्मक हो जाते हैं। अगर वे अंततः धारणाएँ पाल लेते हैं, इस हद तक कि वे अब आस्था भी नहीं रखना चाहते, तो उनकी सबसे बड़ी कमजोरी उनकी क्षण-भंगुरता होती है, उनकी प्रकृति क्षण-भंगुर होती है, वे बेकार होते हैं और उनकी मदद नहीं की जा सकती। कुछ लोग बेहद भावुक होते हैं। रोजाना वे जो कुछ भी कहते हैं और जिस भी तरह से दूसरों के प्रति व्यवहार करते हैं, उसमें वे अपनी भावनाओं से जीते हैं। वे इस या उस व्यक्ति के प्रति स्नेह महसूस करते हैं और स्नेह की बारीकियों में संलग्न रहते हुए दिन बिताते हैं। अपने सामने आने वाली सभी चीजों में वे भावनाओं के दायरे में रहते हैं। जब ऐसे व्यक्ति का कोई अविश्वासी रिश्तेदार मरता है, तो वह तीन दिनों तक रोता है और शरीर को दफनाने नहीं देता। उसके मन में अभी भी मृतक के लिए भावनाएं होती हैं, और उसकी भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं। तुम कह सकते हो कि भावनाएं इस व्यक्ति का घातक दोष है। वह सभी मामलों में अपनी भावनाओं से विवश होता है, वह सत्य का अभ्यास करने या सिद्धांत के अनुसार कार्य करने में अक्षम होता है, और उसमें अक्सर परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करने की प्रवृत्ति होती है। भावनाएँ उसकी सबसे बड़ी कमजोरी, उसका घातक दोष होती हैं, और उसकी भावनाएँ उसे तबाहो-बरबाद करने में पूरी तरह से सक्षम होती हैं। जो लोग अत्यधिक भावुक होते हैं, वे सत्य को अभ्यास में लाने या परमेश्वर के प्रति समर्पित होने में असमर्थ होते हैं। वे देह-सुख में लिप्त रहते हैं, और मूर्ख और भ्रमित होते हैं। इस तरह के व्यक्ति की प्रकृति अत्यधिक भावुक होने की होती है और वह भावनाओं से जीता है। इसलिए यदि तुम अपने स्वभाव में बदलाव लाना चाहते हो, तो तुम्हें अपनी प्रकृति जाननी होगी। “कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती।” यह मत सोचो कि प्रकृति बदली जा सकती है। अगर व्यक्ति की प्रकृति बहुत बुरी है, तो वह कभी नहीं बदलेगा और परमेश्वर उसे नहीं बचाएगा। स्वभाव में परिवर्तन का क्या अर्थ है? यह तब होता है, जब सत्य से प्रेम करने वाला व्यक्ति, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए, उसके वचनों के न्याय और उसकी ताड़ना को स्वीकार करता है, और सभी तरह की पीड़ाओं और शोधन का अनुभव करता है। इस तरह का व्यक्ति अपने भीतर के शैतानी विषों से शुद्ध हो जाता है और अपने भ्रष्ट स्वभावों को पूरी तरह से त्याग देता है, ताकि वह परमेश्वर के वचनों, उसके सारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो सके और कभी परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह या उसका प्रतिरोध न करे। यह स्वभाव में परिवर्तन है। अगर व्यक्ति की प्रकृति बहुत बुरी है और अगर वह एक बुरा व्यक्ति है, तो परमेश्वर उसे नहीं बचाएगा और पवित्र आत्मा उसके भीतर काम नहीं करेगा। एक अलग तरीके से कहा जाए, तो यह किसी चिकित्सक के रोगी का इलाज करने जैसा है : जिस व्यक्ति को सूजन है, उसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन जिस व्यक्ति को कैंसर हो गया है, उसे नहीं बचाया जा सकता। स्वभाव में परिवर्तन का मतलब है कि व्यक्ति, सत्य से प्रेम करने और उसे स्वीकार सकने के कारण, अंततः अपनी प्रकृति जान जाता है जोकि परमेश्वर के प्रति विद्रोही और उसके विरोध में है। वह समझता है कि मनुष्य गहराई से भ्रष्ट हैं, वह मनुष्य के बेतुकेपन और धोखाधड़ी को, और मनुष्य की खराब और दयनीय स्थिति को समझता है, और अंततः वह मानवजाति का प्रकृति सार समझ जाता है। यह सब जानकर वह स्वयं को पूरी तरह नकारने और अपने विरुद्ध विद्रोह करने, परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीने और सभी चीजों में सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हो जाता है। यह ऐसा व्यक्ति होता है, जो परमेश्वर को जानता है और ऐसा व्यक्ति, जिसका स्वभाव बदल चुका है।
सारी मानवजाति शैतान द्वारा भ्रष्ट की जा चुकी है, और परमेश्वर के साथ विश्वासघात करना मनुष्य का स्वभाव है। किंतु, शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए सभी मनुष्यों में कुछ ऐसे भी हैं, जो परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित हो सकते हैं और सत्य स्वीकार कर सकते हैं। ये वे लोग हैं जो सत्य प्राप्त कर सकते हैं और अपने स्वभाव में परिवर्तन कर सकते हैं। कुछ लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, बस बहाव में बहते रहते हैं। वे तुम्हारी आज्ञा मानेंगे और जो कुछ भी करने को कहोगे, वे करेंगे, वे चीजें त्याग सकते हैं और खुद को खपा सकते हैं, और वे हर तरह की पीड़ा सह सकते हैं। ऐसे लोगों में थोड़ा जमीर और विवेक होता है, और उन्हें बचाए जाने और जीवित रहने की आशा होती है, लेकिन उनका स्वभाव नहीं बदल सकता क्योंकि वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और वे केवल सिद्धांत समझने से ही संतुष्ट रहते हैं। वे जमीर का उल्लंघन करने वाली बातें नहीं कहते या करते, वे ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं, और किसी भी समस्या के बारे में सत्य पर संगति स्वीकार सकते हैं। लेकिन वे सत्य खोजने के गंभीर प्रयास नहीं करते, उनका दिमाग भ्रमित होता है और वे कभी भी सत्य के सार को नहीं समझ सकते। उनके स्वभाव को बदलना असंभव होता है। अगर तुम भ्रष्टता से स्वच्छ होना चाहते हो और अपने जीवन-स्वभाव में बदलाव से गुजरते हो, तो तुममें सत्य के लिए प्रेम करने और सत्य को स्वीकार करने की योग्यता होनी चाहिए। सत्य स्वीकार करने का क्या अर्थ है? सत्य स्वीकारने का यह अर्थ है कि चाहे तुममें किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचारी स्वभाव हो या बड़े लाल अजगर के जो विष—शैतान के विष—तुम्हारी प्रकृति में हों, जब परमेश्वर के वचन इन चीजों को उजागर कर दें, तो तुम्हें उन्हें स्वीकारना और उनके प्रति समर्पित होना चाहिए, तुम कोई और विकल्प नहीं चुन सकते, तुम्हें परमेश्वर के वचनों के अनुसार खुद को जानना चाहिए। इसका मतलब है परमेश्वर के वचनों और सत्य को स्वीकारने में सक्षम होना। चाहे परमेश्वर कुछ भी कहे, चाहे उसके कथन कितने भी कठोर हों, चाहे वह किन्हीं भी वचनों का उपयोग करे, तुम इन्हें तब तक स्वीकार कर सकते हो जब तक कि वह जो भी कहता है वह सत्य है, और तुम इन्हें तब तक स्वीकार कर सकते हो जब तक कि वे वास्तविकता के अनुरूप हैं। इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम परमेश्वर के वचनों को कितनी गहराई से समझते हो, तुम इनके प्रति समर्पित हो सकते हो, तुम उस रोशनी को स्वीकार कर सकते हो और उसके प्रति समर्पित हो सकते हो जो पवित्र आत्मा द्वारा प्रकट की गयी है और जिसकी तुम्हारे भाई-बहनों द्वारा सहभागिता की गयी है। जब ऐसा व्यक्ति सत्य का अनुसरण एक निश्चित बिंदु तक कर लेता है, तो वह सत्य को प्राप्त कर सकता है और अपने स्वभाव के रूपान्तरण को प्राप्त कर सकता है। अगर सत्य से प्रेम न करने वाले लोगों में थोड़ी-बहुत इंसानियत है, वे नेक कार्य कर सकते हैं, देह-सुख त्यागकर परमेश्वर के लिए खुद को खपा सकते हैं, पर वे सत्य को लेकर भ्रमित हैं और उसे गंभीरता से नहीं लेते, तो उनका स्वभाव कभी नहीं बदलता। तुम देख सकते हो कि पतरस में भी अन्य शिष्यों जैसी ही इंसानियत थी, लेकिन सत्य के अपने उत्कट अनुसरण में वह दूसरों से अलग था। यीशु ने चाहे जो भी कहा, उसने उस पर गंभीरता से चिंतन किया। यीशु ने पूछा, “हे शमौन, योना के पुत्र, क्या तुम मुझसे प्रेम करते हो?” पतरस ने ईमानदारी से उत्तर दिया, “मैं केवल उस पिता से प्रेम करता हूँ जो स्वर्ग में है, अभी तक मैंने पृथ्वी के प्रभु से प्रेम नहीं किया है।” बाद में उसने समझा, यह सोचते हुए, “यह सही नहीं है, पृथ्वी का परमेश्वर स्वर्ग का परमेश्वर है। क्या स्वर्ग और पृथ्वी दोनों का परमेश्वर एक ही नहीं है? अगर मैं केवल स्वर्ग के परमेश्वर से प्रेम करता हूँ, तो मेरा प्रेम व्यावहारिक नहीं है। मुझे पृथ्वी के परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए, क्योंकि तभी मेरा प्रेम व्यावहारिक होगा।” इस प्रकार, पतरस ने यीशु के वचनों से परमेश्वर के वचनों का सच्चा अर्थ जाना। परमेश्वर से प्रेम करने के लिए, और इस प्रेम के वास्तविक होने के लिए, व्यक्ति को पृथ्वी पर देहधारी परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए। किसी अज्ञात और अदृश्य परमेश्वर से प्रेम करना न तो यथार्थपरक है और न ही व्यावहारिक, जबकि व्यावहारिक, दृश्यमान परमेश्वर से प्रेम करना सत्य है। यीशु के वचनों से पतरस ने सत्य को हासिल किया और परमेश्वर के इरादे की समझ प्राप्त की। स्पष्टतः, पतरस का परमेश्वर में विश्वास केवल सत्य की तलाश पर केंद्रित था। अंततः, उसने व्यावहारिक परमेश्वर का प्रेम प्राप्त किया—पृथ्वी के परमेश्वर का। सत्य की तलाश में पतरस विशेष रूप से ईमानदार था। जब भी यीशु ने उसे सलाह दी, उसने उत्साहपूर्वक यीशु के वचनों पर चिंतन किया। शायद पवित्र आत्मा द्वारा उसे प्रबुद्ध किए जाने और उससे परमेश्वर के वचनों का सार समझ पाने से पहले उसने महीनों, एक वर्ष, यहाँ तक कि वर्षों तक चिंतन किया। इस तरह, पतरस ने सत्य में प्रवेश किया, और जब उसने ऐसा किया, तो उसके जीवन के स्वभाव का रूपांतरण और नवीनीकरण हुआ। अगर कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण नहीं करता, तो वह इसे कभी नहीं समझेगा। तुम शब्दों और धर्म-सिद्धांतों पर दस हजार बार बोल सकते हो, लेकिन वे फिर भी केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत ही रहेंगे। कुछ लोग बस यही कहते हैं, “मसीह सत्य, मार्ग और जीवन है।” अगर तुम इन शब्दों को दस हजार बार भी दोहराते हो, तो भी यह व्यर्थ होगा; तुम्हें उसके अर्थ की कोई समझ नहीं है। ऐसा क्यों कहा जाता है कि मसीह सत्य, मार्ग और जीवन है? क्या तुम इसके बारे में अनुभव से प्राप्त ज्ञान को साफ़-साफ़ बता सकते हो? क्या तुमने सत्य, मार्ग और जीवन की वास्तविकता में प्रवेश किया है? परमेश्वर ने अपने वचन इसलिए बोले हैं, ताकि तुम उन्हें अनुभव कर सको और ज्ञान प्राप्त कर सको। केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों पर बोलना बेकार है। परमेश्वर के वचनों को समझने और उनमें प्रवेश करने के बाद ही तुम स्वयं को जान सकते हो। यदि तुम परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते, तो तुम स्वयं को नहीं जान सकते। तुम केवल तभी विवेक प्राप्त सकते हो जब तुम सत्य समझते हो। सत्य समझे बिना तुम परखने में असमर्थ रहते हो। तुम मामलों को पूरी तरह से तभी समझ सकते हो, जब तुम्हें सत्य की समझ हो। सत्य समझे बिना तुम मामलों को साफ तौर पर नहीं समझ सकते। सत्य की समझ होने पर ही तुम स्वयं को जान सकते हो। सत्य समझे बिना तुम स्वयं को नहीं जान सकते। सत्य की समझ होने पर ही तुम्हारा स्वभाव बदल सकता है। सत्य के बिना तुम्हारा स्वभाव नहीं बदल सकता। तुम्हारे पास सत्य होने पर ही तुम परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कर सकते हो। सत्य प्राप्त किए बिना तुम परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा नहीं कर सकते। सत्य की समझ होने पर ही तुम परमेश्वर की आराधना कर सकते हो। सत्य समझे बिना, भले ही तुम उसकी आराधना करो, तुम्हारी आराधना धार्मिक कर्म-कांडों के आयोजन से ज्यादा कुछ नहीं होगी। सत्य के बिना तुम्हारा किया कोई भी काम वास्तविकता नहीं होता। सत्य प्राप्त करने से, तुम्हारे किए सभी कार्यों में वास्तविकता होती है। ये सभी चीज़ें परमेश्वर के वचनों से सत्य प्राप्त करने पर निर्भर हैं। कुछ लोग पूछेंगे, “परमेश्वर के वचनों से सत्य प्राप्त करने का ठीक-ठीक क्या अर्थ है?” क्या वाकई यह पूछने की कोई जरूरत है? समस्त सत्य परमेश्वर द्वारा व्यक्त कर दिया गया है और वह सब परमेश्वर के वचनों के भीतर है। परमेश्वर के वचनों के बाहर कोई सत्य नहीं है। बहुत-से लोग हैं, जो मानते हैं कि शब्दों और धर्मसिद्धांतों पर बोलने में सक्षम होना ही सत्य जानना है, और यह निरर्थक है। तुम सिर्फ धर्मसिद्धांत बता कर सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। मात्र परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ पर संगति करने का क्या उपयोग है? तुम्हें परमेश्वर के वचनों का अर्थ, परमेश्वर के वचनों का स्रोत और उनके द्वारा जो प्रभाव प्राप्त किए जाने का आशय है, उसे समझने की आवश्यकता है। परमेश्वर के वचनों में सत्य, जीवन, प्रकाश, सिद्धांत और मार्ग हैं। परमेश्वर के प्रत्येक वचन में बहुत-सी चीजें समाहित हैं; सिर्फ यह बता देना काफी नहीं है कि उनका शाब्दिक अर्थ क्या है। मैं तुम्हें एक उदाहरण देता हूँ। परमेश्वर ने कहा, “ईमानदार व्यक्ति बनो, धोखेबाज व्यक्ति नहीं।” इस कथन का क्या अर्थ है? कुछ लोग कहते हैं, “यह लोगों को यह बताने के बारे में है कि ईमानदार बनो, धोखेबाज नहीं, है न?” अगर तुम उनसे पूछो कि इसका और क्या मतलब है, तो वे कहेंगे, “इसका मतलब है कि तुम्हें ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए, धोखेबाज व्यक्ति नहीं होना चाहिए। यह सिर्फ यही दो चीजें कहता है।” तब तुम पूछ सकते हो, “ईमानदार व्यक्ति होने का वास्तव में क्या अर्थ है? किस प्रकार के व्यक्ति को ईमानदार व्यक्ति माना जाता है? ईमानदार व्यक्ति के व्यवहार कैसे होते हैं? धोखेबाज व्यक्ति के व्यवहार कैसे होते हैं?” वे जवाब देंगे, “ईमानदार व्यक्ति वह है जो ईमानदारी से बोलता है, अपने शब्दों में असत्य का मिश्रण नहीं करता और झूठ नहीं बोलता। धोखेबाज व्यक्ति वह है, जो घुमा-फिरा कर बातें करता है, सच नहीं बोलता, अपनी बातों में हमेशा अशुद्ध होता है और झूठ बोलना पसंद करता है।” वे बस इतना ही कह सकते हैं। मनुष्य की सोच बहुत सरल है। क्या तुम ईमानदार लोगों को इतनी सरलता से समझाकर कभी सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हो? ईमानदार लोगों के बारे में परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं? पहला, ईमानदार लोग दूसरों के बारे में कोई संदेह नहीं रखते, और दूसरा, ईमानदार लोग सत्य स्वीकार सकते हैं। ये दो मुख्य लक्षण हैं। इससे परमेश्वर का क्या तात्पर्य है? परमेश्वर ऐसा क्यों कहता है? परमेश्वर के वचनों से तुम इस बात की गहरी महत्ता समझ सकते हो कि ईमानदार व्यक्ति होने का क्या अर्थ है, वह किसे संदर्भित करता है, और ईमानदार व्यक्ति की सटीक परिभाषा क्या है। जब तुम इस परिभाषा को सही ढंग से समझ लेते हो, तो परमेश्वर के वचनों में तुम देख सकते हो कि ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं, धोखेबाज लोग क्या होते हैं और धोखेबाज व्यक्ति की अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं। फिर अगर तुम इन अभिव्यक्तियों का मूल्यांकन करो, तो तुम ठीक-ठीक समझ पाओगे कि ईमानदार व्यक्ति क्या होता है और धोखेबाज व्यक्ति क्या होता है, साथ ही धोखेबाज लोग परमेश्वर के वचनों के साथ कैसे पेश आते हैं, परमेश्वर के साथ कैसे पेश आते हैं और अन्य लोगों के साथ कैसे पेश आते हैं। इस तरह तुम परमेश्वर के वचनों को सच में समझ पाओगे और जान जाओगे कि ईमानदार लोगों और धोखेबाज लोगों के बारे में लोगों की संकल्पना उससे कितनी अलग है, जो परमेश्वर के वचन कहते हैं। जब परमेश्वर के वचन तुमसे कहते हैं, “ईमानदार व्यक्ति बनो, धोखेबाज व्यक्ति मत बनो,” तो यहाँ कई विवरण हैं। जब तुम वचनों का अर्थ सच में समझ लोगे, तो जान जाओगे कि ईमानदार व्यक्ति क्या होता है और धोखेबाज व्यक्ति क्या होता है। जब तुम अभ्यास करोगे, तो जान जाओगे कि कैसे उस तरीके से अभ्यास किया जाए जो निश्चित रूप से ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यक्तियाँ दर्शाएगा, और तुम स्पष्ट रूप से देखोगे कि ईमानदार व्यक्ति होने के लिए अभ्यास का मार्ग और अभ्यास के सिद्धांत कौन-से हैं, जो गारंटी देगा कि तुम परमेश्वर द्वारा संतोषजनक समझे जाओ। अगर तुम वास्तव में इन वचनों को समझते और अभ्यास में लाते हो, तो तुम परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने में सक्षम होगे। लेकिन अगर तुम इन वचनों को नहीं समझते, तो तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं होगे और कभी भी परमेश्वर की स्वीकृति नहीं पाओगे। परमेश्वर के वचनों की सच्ची समझ पाना कोई सरल बात नहीं है। इस तरह मत सोच : “मैं परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ की व्याख्या कर सकता हूँ, और हर कोई मेरी व्याख्या को अच्छा कहता है और मुझे शाबाशी देता है, तो इसका अर्थ है कि मैं परमेश्वर के वचनों को समझता हूँ।” यह परमेश्वर के वचनों को समझने के समान नहीं है। यदि तूने परमेश्वर के कथनों के भीतर से कुछ प्रकाश प्राप्त किया है और तूने उसके वचनों के वास्तविक अर्थ को महसूस किया है, यदि तू उसके वचनों के पीछे के इरादे को और वे अंततः जो प्रभाव प्राप्त करेंगे, उसको व्यक्त कर सकता है, अगर तुम्हें इन सब बातों की स्पष्ट समझ हो, तो यह माना जा सकता है कि तुम्हारे पास कुछ अंश तक परमेश्वर के वचनों की समझ है। इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों को समझना इतना आसान नहीं है। सिर्फ इसलिए कि तू परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ की एक लच्छेदार व्याख्या दे सकता है, इसका यह अर्थ नहीं है कि तू इन्हें समझता है। तू चाहे उनके शाब्दिक अर्थ की व्याख्या कर पाये, तेरी व्याख्या तब भी मनुष्य की कल्पना और मनुष्य के सोचने के तरीके पर आधारित होगी। यह बेकार है! तुम परमेश्वर के वचनों को कैसे समझ सकते हो? मुख्य बात है उनके भीतर से सत्य खोजना। केवल इसी तरह तुम परमेश्वर के वचनों को सच में समझ सकते हो। परमेश्वर कभी भी खोखले शब्द नहीं बोलता। उसके द्वारा कथित प्रत्येक वाक्य में ऐसे विवरण निहित होते हैं जो उसके वचनों में निश्चित रूप से और अधिक उजागर किए जाने हैं, और वे अलग तरीके से व्यक्त किये जा सकते हैं। जिस तरीके से परमेश्वर सत्य को अभिव्यक्त करता है मनुष्य आसानी से उसकी थाह नहीं पा सकता। परमेश्वर के कथन बहुत गहरे हैं और उन्हें मनुष्य की सोच से आसानी से नहीं समझा जा सकता। अगर लोग प्रयास करें, तो वे सत्य के हर पहलू का लगभग पूरा अर्थ जान सकते हैं। शेष बचे विवरण उनके बाद के अनुभव के दौरान, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता द्वारा भरे जाने हैं। एक हिस्सा है परमेश्वर के वचनों पर चिंतन कर उन्हें समझना, उन्हें पढ़कर उनकी विशिष्ट विषयवस्तु खोजना। दूसरा हिस्सा अनुभव करके और पवित्र आत्मा से प्रबोधन प्राप्त करके परमेश्वर के वचनों के अर्थ को समझना है। इन दो पहलुओं में निरंतर प्रगति से, तुम परमेश्वर के वचनों को समझ सकते हो। यदि तुम इनका शाब्दिक अर्थ निकालोगे या अपनी सोच और कल्पनाओं से व्याख्या करोगे, तो आलंकारिक रूप से और वाक्पटुता से व्याख्या करने पर भी, तुम सत्य नहीं समझते, और यह अब भी मानवीय सोच और कल्पनाओं पर ही आधारित होगा। यह पवित्र आत्मा के प्रबोधन से प्राप्त नहीं हुआ है। लोग अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के वचनों की व्याख्या करने की ओर प्रवृत्त रहते हैं, वे परमेश्वर के वचनों की गलत व्याख्या भी कर सकते हैं, जिससे उनके परमेश्वर को गलत समझकर उसकी आलोचना करने की संभावना होती है, और यह कष्टप्रद है। इसलिए, सत्य मुख्यतः परमेश्वर के वचनों को समझने और पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध किए जाने से प्राप्त होता है। परमेश्वर के वचनों का शाब्दिक अर्थ समझकर उसकी व्याख्या कर पाने का मतलब यह नहीं कि तुमने सत्य प्राप्त कर लिया है। अगर परमेश्वर के वचनों का शाब्दिक अर्थ समझने का मतलब यह हो कि तुमने सत्य समझ लिया है, तो तुम्हारे लिए केवल थोड़ी-बहुत शिक्षा और ज्ञान ही काफी है, फिर तुम्हें पवित्र आत्मा के प्रबोधन की क्या आवश्यकता है? क्या परमेश्वर के कार्य को इंसानी दिमाग समझ सकता है? इसलिए, सत्य समझना मानवीय धारणाओं या कल्पनाओं पर आधारित नहीं है। वास्तविक अनुभव और ज्ञान प्राप्त करने के लिए तुम्हें पवित्र आत्मा के प्रबोधन, प्रकाशन और मार्गदर्शन की आवश्यकता है। यह सत्य समझने और प्राप्त करने की प्रक्रिया है और यह एक आवश्यक शर्त भी है।
मनुष्य की प्रकृति को कैसे पहचानते हैं? सबसे महत्वपूर्ण बात इसे मनुष्य की विश्वदृष्टि, जीवन के दृष्टिकोण और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य से सूक्ष्मता से पहचानना है। जो लोग शैतान के हैं वे स्वयं के लिए जीते हैं। उनके जीवन के दृष्टिकोण और सिद्धांत मुख्यतः शैतान की कहावतों से आते हैं, जैसे कि “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “मनुष्य धन के लिए मरता है, जैसे पक्षी भोजन के लिए मरते हैं,” और ऐसी अन्य भ्रांतियाँ। उन पिशाच राजाओं, महान लोगों और दार्शनिकों द्वारा बोले गए ये सभी वचन मनुष्य का जीवन बन गए हैं। विशेष रूप से, कन्फ़्यूशियस, जिसे चीनी लोगों द्वारा “ऋषि” के रूप में प्रचारित किया जाता है, के अधिकांश वचन, मनुष्य का जीवन बन गए हैं। बौद्ध धर्म और ताओवाद की मशहूर कहावतें, और प्रसिद्ध व्यक्तियों की अक्सर उद्धृत की गई विशेष कहावते हैं। ये सभी शैतान के फ़लसफों और शैतान की प्रकृति के जोड़ हैं। वे शैतान की प्रकृति के सबसे अच्छे उदाहरण और स्पष्टीकरण भी हैं। ये विष, जिन्हें मनुष्य के हृदय में डाल दिया गया है, सब शैतान से आते हैं, और उनमें से छोटा-सा अंश भी परमेश्वर से नहीं आता है। ये शैतानी वचन भी परमेश्वर के वचन के बिल्कुल विरुद्ध हैं। यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि सभी सकारात्मक चीज़ों की वास्तविकता परमेश्वर से आती है, और सभी नकारात्मक चीजें जो मनुष्य में विष भरती हैं, वे शैतान से आती हैं। इसलिए, तुम किसी व्यक्ति की प्रकृति को और वह किससे संबंधित है इस बात को उसके जीवन के दृष्टिकोण और मूल्यों को देखकर जान सकते हो। शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन और प्रकृति बन गए हैं। “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। सांसारिक आचरण के फलसफों के लिए कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश के लोगों को शिक्षित करने, गुमराह करने और भ्रष्ट करने के लिए की पारंपरिक संस्कृति का इस्तेमाल करता है, और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में, परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। कुछ लोग समाज में कई वर्षों से लोक अधिकारी रहे हैं। उनसे यह प्रश्न पूछने की कल्पना करो : “तुमने इस पद पर रहते हुए इतना अच्छा काम किया है, ऐसी कौन-सी मुख्य प्रसिद्ध कहावतें हैं जिनके अनुसार तुम लोग जीते हो?” शायद वे कहें, “मैंने एक चीज जो समझी है, वह है कि ‘अधिकारी उपहार देने वालों के लिए मुश्किलें खड़ी नहीं करते, और जो चापलूसी नहीं करते हैं वे कुछ भी हासिल नहीं करते हैं।’” उनका करियर इसी शैतानी दर्शन पर आधारित है। क्या ये शब्द ऐसे लोगों की प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं? पद पाने के लिए अनैतिक साधनों का इस्तेमाल करना उसकी प्रकृति बन गयी है, अफसरशाही और करियर में सफलता उसके लक्ष्य हैं। अभी भी लोगों के जीवन, आचरण और व्यवहार में कई शैतानी विष उपस्थित हैं। उदाहरण के लिए, सांसारिक आचरण के उनके फलसफे, काम करने के उनके तरीके, और उनकी सभी कहावतें बड़े लाल अजगर के विषों से भरी हैं, और ये सभी शैतान से आते हैं। इस प्रकार, लोगों की हड्डियों और रक्त से बहने वाली सभी चीजें शैतान की हैं। उन सभी अधिकारियों, सत्ताधारियों और प्रवीण लोगों के सफलता पाने के अपने ही मार्ग और रहस्य होते हैं, तो क्या ऐसे रहस्य उनकी प्रकृति का उत्तम रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं? वे दुनिया में कई बड़ी चीज़ें कर चुके हैं और उनके पीछे उनकी जो चालें और षड्यंत्र हैं उन्हें कोई समझ नहीं पाता है। यह दिखाता है कि उनकी प्रकृति आखिर कितनी कपटी और विषैली है। शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति भ्रष्ट, दुष्ट, प्रतिरोधात्मक और परमेश्वर के विरोध में है, शैतान के दर्शन और विषों से भरी हुई और उनमें डूबी हुई है। यह पूरी तरह शैतान का प्रकृति-सार बन गया है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं। अगर इस तरह मनुष्य की प्रकृति का विश्लेषण किया जा सके, तो वह आसानी से खुद को जान सकता है।
जब लोगों को परमेश्वर के स्वभाव की वास्तविक समझ होती है, जब वे देख पाते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव वास्तविक है, कि वह वास्तव में पवित्र है, और वास्तव में धार्मिक है, और जब वे परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता की अपने हृदय से स्तुति कर पाते हैं, तब वे वास्तव में परमेश्वर को जान गए होते हैं, और उन्होंने सत्य प्राप्त कर लिया होता है। जब लोग परमेश्वर को जानते हैं, तभी वे प्रकाश में रहते हैं। परमेश्वर को सच में जानने का सीधा परिणाम है परमेश्वर से सचमुच प्रेम करना और उसके प्रति समर्पित होने में सक्षम होना। जो लोग वास्तव में परमेश्वर को जानते हैं, सत्य समझते हैं, और सत्य प्राप्त करते हैं, उनके वैश्विक नजरिए और जीवन के प्रति नजरिये में वास्तविक परिवर्तन होता है, जिसके बाद उनके जीवन-स्वभाव में भी वास्तविक परिवर्तन होता है। जब लोगों के सही जीवन-लक्ष्य होते हैं, जब वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं, और सत्य के अनुसार आचरण करते हैं, जब वे पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं और उसके वचनों के अनुसार जीते हैं, जब वे अपने दिल की गहराई तक शांति और रोशनी महसूस करते हैं, जब उनके दिल अँधेरे से मुक्त होते हैं, और जब वे पूरी तरह से स्वतंत्र और बाधामुक्त होकर परमेश्वर की उपस्थिति में जीते हैं, केवल तभी वे एक सच्चा मानव-जीवन व्यतीत करते हैं और केवल तभी वे ऐसे लोग बन पाते हैं जिनमें सत्य और मानवता होती है। इसके अलावा, जो भी सत्य तुमने समझे और प्राप्त किए हैं, वे सभी परमेश्वर के वचनों से और स्वयं परमेश्वर से आए हैं। जब तुम सर्वोच्च परमेश्वर—सृष्टिकर्ता—का अनुमोदन प्राप्त करते हो, और वह कहता है कि तुम एक योग्य सृजित प्राणी हो जो इंसान की तरह जीता है, तभी तुम्हारा जीवन सबसे अधिक सार्थक होगा। परमेश्वर का अनुमोदन पाने का अर्थ है कि तुमने सत्य पा लिया है, और तुम्हारे पास सत्य और इंसानियत है। आज के शैतान द्वारा नियंत्रित विश्व में, और मानव-इतिहास के कम से कम हजारों वर्षों में, कौन है जिसने एक सच्चा मानवीय जीवन प्राप्त किया है? कोई भी नहीं। चूँकि लोग शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट किए जा चुके हैं और वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं, और जो कुछ भी वे करते हैं वह परमेश्वर के प्रतिकूल होता है, और उनका हर कथन और सिद्धांत शैतान की भ्रष्टता से पैदा होता है और परमेश्वर के वचनों के सीधे विरोध में होता है, इसलिए वे ठीक उस तरह के लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। अगर वे परमेश्वर का उद्धार नहीं स्वीकारते, तो वे नरक और विनाश में डूब जाएँगे, उनके पास कोई कहने लायक जीवन होगा ही नहीं। वे शोहरत और लाभ के पीछे दौड़ते हैं, महान या प्रसिद्ध व्यक्ति बनने की कोशिश करते हैं, और उम्मीद करते हैं कि उनके नाम “पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते चले जाएँगे,” और “पूरे इतिहास में प्रसिद्ध” होंगे। ये शैतानी शब्द हैं और पूरी तरह से असमर्थनीय हैं। हर महान या प्रसिद्ध व्यक्ति, दरअसल शैतान का है, और सजा के लिए लंबे समय से नरक के अठारहवें स्तर में गिर चुका है, जिसका कभी पुनर्जन्म नहीं होगा। जब भ्रष्ट मानवजाति इन लोगों की आराधना करती है और उनकी शैतानी बातों और भ्रांतियों को स्वीकारती है, तो भ्रष्ट मानवजाति दानवों और शैतान की शिकार बन जाती है। सृजित प्राणियों को सृष्टिकर्ता की आराधना करनी चाहिए। यह पूरी तरह स्वाभाविक और न्यायोचित है, क्योंकि सिर्फ परमेश्वर ही सत्य है। परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी और हर चीज नियंत्रित करता है और सभी पर शासन करता है। परमेश्वर पर विश्वास न करने और परमेश्वर के प्रति समर्पित न होने का अर्थ है सत्य प्राप्त न कर पाना। यदि तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीते हो, तो तुम अपने दिल की गहराई में प्रकाशवान और सहज महसूस करोगे और तुम अतुलनीय मिठास का आनंद लोगे। जब ऐसा होगा, तो तुम वास्तव में जीवन प्राप्त कर लोगे। दुनिया के वैज्ञानिकों की उपलब्धियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, जब वे मौत के करीब आते हैं तो उन्हें अपना हाथ खाली महसूस होता है; उन्होंने कुछ नहीं प्राप्त किया होता है। यहां तक कि आइंस्टाइन और न्यूटन जैसे उच्च बुद्धिजीवियों ने भी खालीपन महसूस किया। ऐसा इसलिए था, क्योंकि उनके पास सत्य नहीं था, और इसलिए भी कि उन्हें परमेश्वर की सच्ची समझ नहीं थी। हालांकि वे परमेश्वर में विश्वास करते थे, पर वे सिर्फ उसके अस्तित्व में विश्वास करते थे, उन्होंने सत्य नहीं खोजा। वे यह खोजने और साबित करने के लिए कि परमेश्वर है, सिर्फ विज्ञान और शोध पर भरोसा करना चाहते थे। नतीजतन, उनमें से प्रत्येक ने बिना कुछ हासिल किए जीवन भर शोध किया, और हालाँकि उन्होंने जीवन भर परमेश्वर में विश्वास रखा, पर उन्होंने कभी सत्य प्राप्त नहीं किया। उन्होंने केवल वैज्ञानिक ज्ञान की खोज की, पर उन्होंने परमेश्वर को जानने की कोशिश नहीं की। वे सत्य नहीं प्राप्त कर पाए, और न ही वे सच्चा जीवन प्राप्त कर पाए। जिस मार्ग पर तुम लोग आज चल रहे हो, वह उनका रास्ता नहीं है। तुम परमेश्वर की खोज में हो, और इसकी खोज में हो कि स्वयं को परमेश्वर को कैसे अर्पित करना है, कैसे परमेश्वर की आराधना करनी है, कैसे एक सार्थक जीवन जीना है। यह उससे पूरी तरह अलग है, जिसकी वे खोज कर रहे थे। हालाँकि वे परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग थे, फिर भी उन्होंने सत्य प्राप्त नहीं किया। अब, देहधारी परमेश्वर ने तुम लोगों को सत्य के हर पहलू के बारे में बताया है और तुम लोगों को सत्य और जीवन का मार्ग प्रदान किया है। सत्य न खोजना तुम लोगों के लिए मूर्खतापूर्ण होगा।
अब, सत्य के बारे में तुम लोगों की समझ अपर्याप्त है। तुम सिर्फ खोखला सिद्धांत बोल सकते हो। तुम अभी भी अपने हाथ में लिए गए किसी भी कार्य को लेकर खुद को कमतर और अनिश्चित महसूस करते हो। यह दर्शाता है कि तुम्हारा जीवन-प्रवेश बहुत ही सतही रहा है और तुमने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है। जब तुम वास्तव में सत्य को समझोगे और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करोगे, तो तुममें ऊर्जा होगी, एक अक्षय ऊर्जा, जो तुम्हारे शरीर को भर देगी। उस समय तुम अपने भीतर सदा से ज्यादा उज्ज्वल महसूस करोगे, और मार्ग उतना ही ज्यादा उज्ज्वल होता जाएगा, जितना ज्यादा तुम उस पर चलोगे। इन दिनों, परमेश्वर में विश्वास रखने वाले अधिकांश लोग अभी तक सही रास्ते पर नहीं चले हैं और सत्य नहीं समझ पाए हैं, इसलिए वे अभी भी अंदर से खालीपन महसूस करते हैं, और यह भी कि जीवन कष्टमय है और उनमें अपने कर्तव्य निभाने की ऊर्जा नहीं है। अपने हृदय में दृष्टि होने तक परमेश्वर के विश्वासी ऐसे ही होते हैं। लोगों ने सत्य प्राप्त नहीं किया है और वे अभी तक परमेश्वर को नहीं जानते, इसलिए वे अभी भी ज्यादा आनंद महसूस नहीं करते। तुम सबने, विशेष रूप से, उत्पीड़न सहा है और घर लौटने में कठिनाई का सामना किया है। जब तुम कष्ट उठाते हो, तुममें मृत्यु के विचार और जीने की अनिच्छा भी होती है। ये देह की कमजोरियाँ हैं। कुछ लोग यह तक सोचते हैं : “परमेश्वर में विश्वास करना सुखद होना चाहिए। अनुग्रह के युग में पवित्र आत्मा ने लोगों को शांति और आनंद दिया। अब बहुत कम शांति और आनंद है, और अनुग्रह के युग जैसी प्रसन्नता विद्यमान नहीं है। आज परमेश्वर में विश्वास करना अत्यंत कष्टप्रद है।” तुम केवल यह जानते हो कि देह का सुख ही सब कुछ है। तुम नहीं जानते कि आज परमेश्वर क्या कार्य कर रहा है। परमेश्वर को तुम सब की देह को कष्ट उठाने की अनुमति देनी पड़ती है ताकि तुम्हारे स्वभाव को बदल सके। भले ही तुम्हारी देह कष्ट उठाती है, पर तुम्हारे पास परमेश्वर का वचन है और तुम्हारे पास परमेश्वर का आशीर्वाद है। अगर तुम चाहो तो भी तुम मर नहीं सकते। क्या तुम परमेश्वर को न जानने और सत्य प्राप्त न करने से संतोष कर सकते हो? अब, अधिकांशतः, बस इतना है कि लोगों ने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है और उनके पास जीवन नहीं है। वे उद्धार की खोज के बीच में हैं, इसलिए उन्हें इस प्रक्रिया में थोड़ा कष्ट उठाना होगा। आज दुनिया में हर व्यक्ति परीक्षण से गुजर रहा है, यहाँ तक कि परमेश्वर भी कष्ट उठा रहा है, इसलिए क्या तुम्हारा कष्ट न उठाना उचित है? बड़ी आपदाओं के माध्यम से शोधन के बिना सच्ची आस्था नहीं हो सकती और सत्य और जीवन प्राप्त नहीं किया जा सकता। परीक्षण और शोधन न होने से काम नहीं चलेगा। पतरस को ही देखो—आखिरकार वह सात सालों के परीक्षणों से गुजरा (जब वह तिरेपन वर्ष का था)। उन सात सालों के दौरान उसने सैकड़ों परीक्षणों का अनुभव किया। उसे हर कुछ दिनों में इन परीक्षणों में से एक से गुजरना पड़ता था, और तमाम तरह के परीक्षणों से गुजरने के बाद ही उसे जीवन प्राप्त हुआ और उसने अपने स्वभाव में परिवर्तन अनुभव किया। जब तुम वास्तव में सत्य प्राप्त कर लेते हो और परमेश्वर को जान जाते हो, तब तुम महसूस करते हो कि तुम्हें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर के लिए नहीं जीते, तो तुम्हें अफसोस होगा; तुम अपने बाकी दिन भारी खेद और घोर पछतावे में बिताओगे। तुम अभी मर नहीं सकते। तुम्हें अपनी मुट्ठियाँ भींचकर संकल्प के साथ जीते रहना होगा। तुम्हें परमेश्वर के लिए जीवन जीना चाहिए। जब लोगों के भीतर सत्य होता है, तब उनमें यह संकल्प होता है और वे फिर कभी मरने की इच्छा नहीं करते। जब मृत्यु तुम्हें डराएगी, तो तुम कहोगे, “हे परमेश्वर, मैं मरने का इच्छुक नहीं हूँ; मैं अभी भी तुझे नहीं जानता। मैंने अभी तक तेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं दिया है। मैं तब तक नहीं मर सकता, जब तक मैं तुझे अच्छी तरह से नहीं जान लेता।” क्या तुम लोग अब इस मुकाम पर हो? अभी तक नहीं, है न? कुछ लोग परिवार की पीड़ा झेलते हैं, कुछ विवाह की पीड़ा झेलते हैं और कुछ उत्पीड़न सहते हैं, यहाँ तक कि उनके रहने के लिए जगह की भी कमी होती है। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वह किसी और का ही घर होता है, और वे अपने दिल में दर्द महसूस करते हैं। जो पीड़ा तुम लोग अभी अनुभव कर रहे हो, क्या यह वही पीड़ा नहीं है जो परमेश्वर ने झेली है? तुम लोग परमेश्वर के साथ पीड़ित हो रहे हो और परमेश्वर मनुष्यों के दुख में उसके साथ है। आज मसीह के क्लेश, राज्य और सहनशीलता में तुम सभी लोगों का हिस्सा है, और तुम अंत में महिमा प्राप्त करोगे! यह पीड़ा सार्थक है। क्या ऐसा ही नहीं है? तुम इस इच्छा से रहित नहीं हो सकते। तुम्हें आज पीड़ा का अर्थ समझना चाहिए और इस बात का भी कि तुम इतनी पीड़ा क्यों झेलते हो। तुम्हें सत्य खोजना चाहिए और परमेश्वर के इरादे की समझ हासिल करनी चाहिए, तब तुममें पीड़ा सहने की इच्छा होगी। अगर तुम परमेश्वर का इरादा नहीं समझते, और सिर्फ पीड़ा के बारे में सोचते हो, तो जितना अधिक तुम इसके बारे में सोचते हो, यह उतनी ही असुविधाजनक हो जाती है और तुम उतने ही निराश महसूस करते हो, मानो तुम्हारे जीवन का मार्ग समाप्त हो रहा हो। तुम मृत्यु की पीड़ा भोगने लगोगे। अगर तुम अपना हृदय और समस्त प्रयास सत्य में लगाओ और सत्य को समझने में सक्षम हो जाओ, तो तुम्हारा हृदय उज्ज्वल हो जाएगा, और तुम आनंद का अनुभव करोगे। तुम जीवन में अपने दिल के भीतर शांति और आनंद पाओगे, और जब बीमारी आए या मौत मँडराए, तो तुम कहोगे, “मैंने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है, इसलिए मैं मर नहीं सकता। मुझे परमेश्वर के लिए अच्छी तरह खपना चाहिए, अच्छी तरह से परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, और परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाना चाहिए। मैं अंत में कैसे मरता हूँ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैंने एक संतोषजनक जीवन जी लिया होगा। चाहे कुछ भी हो, मैं अभी मर नहीं सकता। मुझे बने रहना चाहिए और जीते रहना चाहिए।” अब तुम्हारे मन में इस मामले में स्पष्टता होनी चाहिए, और तुम्हें इन चीजों से सत्य को समझना चाहिए। जब लोगों के पास सत्य होता है, तो उनके पास ताकत होती है। जब उनके पास सत्य होता है, तो उनके पास एक अक्षय ऊर्जा होती है जो उनके शरीर को भर देती है। जब उनके पास सत्य होता है, तो उनमें दृढ़ संकल्प होता है। सत्य के बिना लोग सड़ी हुई सब्जियों की तरह नर्म होते हैं; जब उनके पास सत्य होता है, तो वे फौलाद की तरह सख्त हो जाते हैं। चीजें चाहे जितनी भी कड़वी हों, उन्हें जरा भी कड़वी नहीं लगेंगी। तुम्हें क्या लगता है, तुम लोगों की छोटी-सी पीड़ा कितनी बड़ी है? देहधारी परमेश्वर अभी भी पीड़ा झेल रहा है! तुम ऐसे लोग हो, जिन्हें शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है और जिनकी प्रकृति परमेश्वर को धोखा देना है। तुमने अनजाने ही परमेश्वर के प्रति विद्रोह और उसका विरोध करने वाले कई काम किए हैं और तुम न्याय और ताड़ना के पात्र हो। जिस तरह बीमार लोगों को ठीक करना होता है, उसी तरह क्या उनके लिए पीड़ा से डरना उचित है? तुम लोगों में भ्रष्ट स्वभाव हैं, तो क्या तुम्हें लगता है कि तुम बिना किसी पीड़ा के अपना स्वभाव बदल कर जीवन प्राप्त कर सकते हो? तुम लोगों की पीड़ा तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों के कारण है। तुम इसके योग्य हो, और इसे सहन किया जाना चाहिए। यह न तो बिना किसी अपराध के दी गई है और न ही परमेश्वर द्वारा थोपी गई है। तुम लोग वर्तमान में जो पीड़ा सह रहे हो, वह अपने कर्तव्य में तुम्हारी भाग-दौड़ और कड़ी मेहनत करने से थोड़ी ज्यादा है। कभी-कभी तुम पाते हो कि तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव बिल्कुल नहीं बदला है, इसलिए तुम कुछ शोधन से गुजरते हो। कभी-कभी तुम परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते हो या उन्हें पढ़ना पीड़ादायक होता है, इसलिए तुम परमेश्वर के वचनों के शोधन से थोड़ा पीड़ित होते हो। या, शायद, तुम अपना वास्तविक कार्य बुरे ढंग से करते हो और अपने कर्तव्य में गलतियाँ करते रहते हो, तुम अपना काम न कर पाने के लिए अपराध-बोध और आत्म-घृणा अनुभव करते हो, और इससे तुम्हें कुछ पीड़ा होती है। शायद तुम दूसरों को प्रगति करते हुए देखते हो और महसूस करते हो कि तुम्हारी प्रगति बहुत धीमी है, कि तुम्हें परमेश्वर के वचन समझने में प्रगति करने में बहुत अधिक समय लगता है, कि प्रकाश बहुत कम है, और ये मामले तुम्हारे लिए कुछ पीड़ा का कारण बनते हैं। कभी-कभी तुम बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तारी और उत्पीड़न के कारण अपने शत्रुतापूर्ण परिवेश से खतरा महसूस करते हो, इसलिए तुम हमेशा डरे हुए, बेचैन और भयभीत रहते हो, और इससे तुम्हें कुछ पीड़ा होती है। इस पीड़ा के अलावा, तुमने और कौन-सी पीड़ा अनुभव की है? तुम लोग भारी शारीरिक श्रम करने के लिए नहीं बने हो, न ही तुम्हारे कोई वरिष्ठ या बॉस हैं जो तुम लोगों को पीटते और डाँटते हों, और कोई तुम लोगों से गुलामों जैसे पेश नहीं आता। तुम्हें ऐसी कोई कठिनाई नहीं होती। वास्तव में, जो कठिनाइयाँ तुम लोग झेलते हो, वे वास्तव में कठिनाइयाँ नहीं हैं। इस बारे में सोचो। क्या यही मामला नहीं है? तुम लोगों को समझना चाहिए कि परमेश्वर के वास्ते खपने के लिए अपने परिवार को त्यागने का क्या महत्व है, और तुम ऐसा क्यों कर रहे हो। अगर तुम इसे सत्य और जीवन का अनुसरण करने के लिए और साथ ही अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए करते हो, तो यह पूरी तरह से उचित है। यह एक सकारात्मक चीज है, यह पूरी तरह स्वाभाविक और न्यायसंगत है, और तुम्हें इसका कभी पछतावा नहीं होगा। तुम्हारे परिवार के साथ चाहे कुछ भी हो जाए, तुम उसे जाने दे सकते हो। अगर तुम इस महत्ता को स्पष्ट रूप से समझते हो, तो तुम्हें कोई पछतावा नहीं होगा, और तुम नकारात्मक नहीं होगे। अगर तुम परमेश्वर के लिए खुद को सचमुच नहीं खपा रहे हो, और सिर्फ आशीष प्राप्त करने के लिए परिश्रम कर रहे हो, तो यह अर्थहीन है। जब तुम इस मामले पर गौर कर लेते हो, तो समस्या का समाधान हो जाता है, और तुम्हें अपने परिवार के बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है। अब तक तुम सभी लोगों ने कुछ परीक्षणों का अनुभव कर लिया है। कुछ लोगों ने कुछ सत्य प्राप्त किए हैं, लेकिन कुछ लोगों ने सिर्फ कुछ धर्मसिद्धांत समझे हैं, कोई सत्य प्राप्त नहीं किया है। कुछ लोगों में अच्छी काबिलियत होती है और इसलिए उनमें अपेक्षाकृत गहरी समझ होती है, और जिन कुछ लोगों की काबिलियत कम होती है, उनकी समझ अपेक्षाकृत उथली होती है। चाहे तुम्हारी समझ गहरी हो या उथली, अगर तुम कुछ सत्य समझते हो और किसी परीक्षण के जरिये पीड़ा झेलते समय अपनी गवाही में अडिग रह पाते हो, तो तुम्हारी पीड़ा का अर्थ और मूल्य होता है। अगर तुम परमेश्वर से चीजें स्वीकार नहीं कर पाते, और चीजों को हमेशा मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के साथ देखते हो, तो चाहे तुम कितनी भी पीड़ा सहो, तुम्हारे पास कभी सच्ची अनुभवात्मक गवाही नहीं होगी। तुम्हारी पीड़ा का कोई मूल्य नहीं होगा, क्योंकि तुमने सत्य प्राप्त नहीं किया है।
तुम्हें हर चीज में परमेश्वर के इरादों की खोज करनी चाहिए और तुम्हें हर चीज में सत्य की तलाश करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, तुम जीवन में खाने, पहनने और निजी बातों जैसे मामलों में सत्य कैसे खोजते हो? क्या इन चीजों में तलाश करने के लिए सत्य है? कुछ लोग कहते हैं, “चाहे तुम परमेश्वर में विश्वास रखो या न रखो, भरपेट खाना और अच्छे कपड़े पहनना ही खुशी है। उसके बिना सब दुख है।” क्या यह सत्य के अनुरूप है? ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो अच्छे भोजन और वस्त्रों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं, जो दैहिक सुखों के लोभी हैं। वे आसानी से सत्य नहीं स्वीकारते या उसे अभ्यास में नहीं लाते, परमेश्वर के लिए खुद को खपाने के लिए सब-कुछ छोड़ देना तो दूर की बात है। इस तरह के व्यक्ति को परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं होगी, और अंततः, वह रोते और दाँत पीसते हुए आपदाओं में डूब जाएगा। क्या ऐसे व्यक्ति के पास कोई कहने लायक खुशी हो सकती है? बहुत सारे लोग मजदूरों या किसानों के परिवारों में पैदा हो कर बचपन से ही काफी कुछ झेल चुके हैं। अगर वे सत्य समझने में सक्षम हैं, तो हो सकता है कि वे उसे स्वीकार कर अभ्यास में लाएँ, और वे पीड़ा से डरे बिना परमेश्वर के लिए चीजों का त्याग कर पाएँ और खुद को खपा पाएँ। वे परमेश्वर की आज्ञा के प्रति अपनी वफादारी पूरी करने में सक्षम होते हैं, और कुछ तो परमेश्वर के लिए अपने प्राण भी दे देने की हद तक चले जाते हैं। परमेश्वर के घर में ऐसा व्यक्ति सराहा जाता है। बहुत-से लोग दैहिक सुखों पर बहुत ध्यान देते हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि अच्छा खाना और कपड़े होना वास्तव में महत्वपूर्ण है? बिलकुल नहीं। अगर व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर को जानने और सत्य प्राप्त करने में सक्षम है, तो वह जो कुछ भी करता है, उसमें वह परमेश्वर की गवाही देता है और परमेश्वर को संतुष्ट करता है। चाहे ऐसा व्यक्ति कितना भी खराब खाता या पहनता हो, उसके जीवन में फिर भी मूल्य होता है, और वह परमेश्वर की मंजूरी प्राप्त कर सकता है। क्या यह सबसे सार्थक चीज नहीं है? न तो अच्छा खाना और न ही अच्छे कपड़े पहनना इस बात की गारंटी है कि तुम धन्य होगे। अगर तुम परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करोगे या गलत मार्ग पर जाओगे, तो तुम फिर भी शापित होगे, जबकि वह व्यक्ति, जो मैले-कुचैले कपड़े पहनता है और रूखा-सूखा खाता है लेकिन जिसके पास सत्य है, हर हांल में परमेश्वर के आशीष प्राप्त करेगा। इसलिए, यह जानने के लिए कि तुम्हें खाने और पहनने के बारे में किस तरह सोचना चाहिए, तुम्हें सत्य की खोज करनी होगी, और अपने कर्तव्य के प्रदर्शन को तुम्हें कैसे लेना चाहिए, यह जानने के लिए और भी अधिक सत्य की खोज की जरूरत है। तुम परमेश्वर के आदेशों को कैसे लेते हो, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। परमेश्वर ने जो लोगों को सौंपा है, यदि तुम उसे पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उसकी उपस्थिति में जीने के योग्य नहीं हो और तुम्हें दंडित किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है कि मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले सभी आदेश पूरे करने चाहिए। यह मनुष्य का सर्वोच्च दायित्व है, और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनका जीवन है। यदि तुम परमेश्वर के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके साथ सबसे कष्टदायक तरीक़े से विश्वासघात कर रहे हो। इसमें, तुम यहूदा से भी अधिक शोचनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए। परमेश्वर के सौंपे हुए कार्य को कैसे लिया जाए, लोगों को इसकी पूरी समझ हासिल करनी चाहिए, और उन्हें कम से कम यह समझना चाहिए कि वह मानवजाति को जो आदेश देता है, वे परमेश्वर से मिले उत्कर्ष और विशेष कृपाएँ हैं, और वे सबसे शानदार चीजें हैं। अन्य सब-कुछ छोड़ा जा सकता है। यहाँ तक कि अगर किसी को अपना जीवन भी बलिदान करना पड़े, तो भी उसे परमेश्वर का आदेश पूरा करना चाहिए। देखो, क्या यहाँ सत्य नहीं खोजा जाना चाहिए? अपने स्वभाव में बदलाव लाना सत्य की खोज से बहुत घनिष्ठता से जुड़ा है! यदि तुम्हें यह सत्य समझ में आ जाए कि लोग क्यों जीते हैं और तुम्हें जीवन को कैसे देखना चाहिए, तो क्या जीवन के विषय में तुम्हारा दृष्टिकोण बदल नहीं जाएगा? यहाँ और भी ज्यादा सत्य खोजा जाना चाहिए। परमेश्वर से प्रेम करने में क्या सत्य पाया जा सकता है? क्यों मनुष्य को परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए? परमेश्वर से प्रेम करने का क्या महत्व है? यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर से प्रेम करने के सत्य के बारे में स्पष्ट है और वह उसे अपने दिल की गहराइयों से प्रेम कर सकता है और उसका दिल थोड़ा परमेश्वर प्रेमी है, तो उसके पास वास्तविक जीवन है और वह सबसे धन्य लोगों में से है। जो लोग हर चीज में सत्य खोजते हैं, वे जीवन में सबसे तेज प्रगति करते हैं और अपने स्वभाव में परिवर्तन ला सकते हैं। बिल्कुल वही लोग जो हर चीज में सत्य की तलाश करते हैं, परमेश्वर को प्रिय होते हैं। अगर कोई व्यक्ति धारणाओं और धर्म-सिद्धांतों पर निर्भर रहता है या सभी चीज़ों में विनियमों का पालन करता है, तो वह प्रगति नहीं करेगा। वह कभी सत्य प्राप्त नहीं करेगा और देर-सवेर उसे हटा दिया जाएगा। परमेश्वर ऐसे व्यक्ति से सबसे ज्यादा घृणा करता है।
बसंत ऋतु 1999