अध्याय 16
लोगों के लिए, परमेश्वर बहुत महान, बहुत असीम, बहुत अद्भुत और बहुत अथाह है; उनकी नज़र में, परमेश्वर के वचनों का उदय ऊँचाई पर होता है और वे दुनिया की एक महान कृति के रूप में प्रकट होते हैं। लेकिन चूँकि लोगों की असफलताएँ बहुत ज्यादा हैं, और उनके मन बहुत सरल हैं, इसके अलावा, क्योंकि स्वीकार करने की उनकी क्षमताएँ बहुत कम हैं, फिर चाहे परमेश्वर अपने वचनों को कितना ही स्पष्ट रूप से व्यक्त क्यों न करे, वे बैठे और अचल रह जाते हैं, मानो मानसिक बीमारी से पीड़ित हों। जब वे भूखे होते हैं, तो उनकी समझ में नहीं आता है कि उन्हें खाना चाहिए; जब वे प्यासे होते हैं, तो उनकी समझ में नहीं आता है कि उन्हें पीना चाहिए; वे केवल चीखते-चिल्लाते रहते हैं, मानो उनकी आत्मा की गहराई में अवर्णनीय कठिनाई हो, फिर भी वे इस बारे में बात नहीं कर पाते। जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसका अभिप्राय था कि मनुष्य सामान्य मानवता में रहे और अपनी सहज-प्रवृत्ति के अनुसार परमेश्वर के वचनों को स्वीकार करे। लेकिन क्योंकि, बिल्कुल शुरुआत में ही, मनुष्य शैतान के प्रलोभन में आ गया था, इसलिए आज वह स्वयं को बाहर निकालने में असमर्थ पाता है, और हजारों वर्षों से शैतान द्वारा चलाए जा रहे कपटपूर्ण कुचक्रों को पहचानने में अभी भी समर्थ नहीं है। इसके अलावा, उसमें परमेश्वर के वचनों को पूरी तरह से जानने की योग्यताओं का भी अभाव है—यह सब वर्तमान स्थिति में परिणत हुआ है। आज जिस तरह से चीजें हैं, लोग अभी भी शैतान के प्रलोभन के खतरे में रहते हैं, और इसलिए परमेश्वर के वचनों की सही व्याख्या नहीं कर पाते। सामान्य लोगों के स्वभाव में कोई कुटिलता या धोखेबाज़ी नहीं होती, लोगों का एक-दूसरे के साथ एक सामान्य संबंध होता है, वे अकेले नहीं खड़े होते, और उनका जीवन न तो साधारण होता है और न ही पतनोन्मुख। इसलिए भी, परमेश्वर सभी के बीच ऊँचा है, उसके वचन मनुष्यों के बीच व्याप्त हैं, लोग एक-दूसरे के साथ शांति से, परमेश्वर की देखभाल और संरक्षण में रहते हैं, पृथ्वी, शैतान के विघ्न के बिना, सद्भाव से भरी है, और मनुष्यों के बीच परमेश्वर की महिमा बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे लोग स्वर्गदूतों की तरह हैं : शुद्ध, जोशपूर्ण, परमेश्वर के बारे में कभी भी शिकायत नहीं करने वाले, और पृथ्वी पर पूरी तरह से परमेश्वर की महिमा के लिए अपने सभी प्रयास समर्पित करने वाले। अब अँधेरी रात का समय है—सभी इधर-उधर टटोल रहे हैं, खोज रहे हैं, घोर अँधेरी रात उनके रोंगटे खड़े कर देती है, और वे काँपने लगते हैं; करीब से सुनने पर, निरंतर प्रचंड झोंके के साथ चीखती-बहती उत्तर-पश्चिमी हवा, मनुष्य की शोकाकुल सिसकियों की संगति में बहती-सी लगती है। लोग अपने भाग्य से दुःखी होते और रोते हैं। वे परमेश्वर के वचनों को पढ़ते तो हैं लेकिन उन्हें समझ क्यों नहीं पाते? ऐसा लगता है मानो उनकी जिंदगी निराशा की कगार पर खड़ी हो, मानो मृत्यु आने ही वाली हो, मानो उनका अंतिम दिन उनकी आँखों के सामने हो। ऐसी दयनीय परिस्थितियाँ ही वे पल होती हैं जब सुकुमार स्वर्गदूत, एक के बाद एक शोकाकुल क्रंदन के साथ अपनी कठिनाई के बारे में बताते हुए, परमेश्वर को पुकारते हैं। यही कारण है कि परमेश्वर के पुत्रों और लोगों के बीच कार्य करने वाले स्वर्गदूत, फिर कभी मनुष्य के बीच नहीं उतरेंगे; यह उन्हें देह में रहते हुए शैतान द्वारा छलकपट से पकड़े जाने से बचाने के लिए है, क्योंकि वे खुद को बाहर नहीं निकाल पाते, इसलिए वे केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में कार्य करते हैं जो मनुष्य के लिए अदृश्य है। इस प्रकार, जब परमेश्वर कहता है, “जब मैं मनुष्य के हृदय में सिंहासन पर चढ़ूँगा तो उस पल मेरे पुत्र और लोग पृथ्वी पर शासन करेंगे,” यहाँ वह उस समय का उल्लेख कर रहा है कि जब पृथ्वी पर स्वर्गदूत स्वर्ग में परमेश्वर की सेवा के आशीष का आनंद लेंगे। क्योंकि मनुष्य स्वर्गदूतों की आत्माओं की अभिव्यक्ति है, परमेश्वर कहता है कि मनुष्य के लिए, पृथ्वी पर होना स्वर्ग में होने जैसा है, उसका पृथ्वी पर परमेश्वर की सेवा करना स्वर्गदूतों का स्वर्ग में सीधे परमेश्वर की सेवा करने जैसा है—और इस प्रकार, पृथ्वी पर अपने दिनों के दौरान, मनुष्य तीसरे स्वर्ग के आशीषों का आनंद लेता है। दरअसल यही इन वचनों में कहा जा रहा है।
परमेश्वर के वचनों में बहुत अधिक अर्थ छुपा हुआ है। “जब दिन आएगा, लोग अपने हृदय की गहराइयों से मुझे जान जाएँगे और अपने विचारों में मुझे स्मरण करेंगे।” ये वचन मनुष्य की आत्मा के लिए हैं। स्वर्गदूतों की निर्बलता के कारण, वे हर चीज़ में परमेश्वर पर ही निर्भर रहते हैं, हमेशा परमेश्वर से जुड़े रहे हैं और उन्होंने परमेश्वर की ही पूजा की है। किन्तु शैतान के उपद्रव की वजह से, वे अपनी सहायता और अपने आपको नियंत्रित नहीं कर पाते; वे परमेश्वर से प्यार करना चाहते हैं किन्तु अपने संपूर्ण हृदय से उसे प्यार करने में अक्षम हैं, और इसलिए वे पीड़ा सहते हैं। जब परमेश्वर का कार्य एक निश्चित मुकाम तक पहुँच जाता है तभी इन बेचारे स्वर्गदूतों की परमेश्वर से प्रेम करने की इच्छा पूरी हो पाती है, यही कारण है कि परमेश्वर ने वे वचन बोले। स्वर्गदूतों की प्रकृति परमेश्वर से प्रेम करना, उसे सँजोना और उसके प्रति समर्पित होना है, फिर भी वे पृथ्वी पर इसे प्राप्त नहीं कर पाते, और उनके पास वर्तमान समय तक संयम रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। तुम लोग शायद आज की दुनिया को देखो : सभी लोगों के हृदय में परमेश्वर है, फिर भी वे यह अंतर नहीं कर पाते कि उनके हृदय में जो परमेश्वर है, वह सच्चा परमेश्वर है या झूठा परमेश्वर, हालाँकि वे अपने इस परमेश्वर को प्यार करते हैं, लेकिन फिर भी वे परमेश्वर से सचमुच प्यार नहीं कर पाते, जिसका अर्थ है कि अपने आप पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। परमेश्वर द्वारा प्रकट किया गया मनुष्य का कुरूप चेहरा आत्मिक क्षेत्र में शैतान का असली चेहरा है। मनुष्य मूल रूप से निर्दोष और पाप से रहित था, इसलिए मनुष्य के सभी भ्रष्ट, कुरूप आचरण आध्यात्मिक क्षेत्र में शैतान के कार्य हैं, और आध्यात्मिक क्षेत्र की घटनाओं के विश्वसनीय अभिलेख हैं। “आज, लोगों में योग्यताएँ हैं और मानते हैं कि वे मेरे सामने अकड़कर चल सकते हैं, और जरा भी निषेध के बिना मेरे साथ हँसी-मज़ाक कर सकते हैं, और मुझे समकक्ष के रूप में संबोधित कर सकते हैं। फिर भी मनुष्य मुझे जानता नहीं है, फिर भी वह मानता है कि हम प्रकृति में एक समान हैं, कि हम दोनों हाड़-माँस के हैं, और दोनों मानव जगत में वास करते हैं।” शैतान ने मनुष्यों के हृदय में यही किया है। परमेश्वर का विरोध करने के लिए शैतान मनुष्य की अवधारणाओं और खुली आँखों का उपयोग करता है, फिर भी बिना किसी वाक्छल के परमेश्वर मनुष्य को इन घटनाओं के बारे में बताता है ताकि मनुष्य यहाँ विनाश से बच सके। सभी लोगों की नश्वर दुर्बलता यह है कि वे केवल “हाड़-माँस का एक शरीर भर देखते हैं, और परमेश्वर के आत्मा का बोध नहीं करते हैं।” यह शैतान द्वारा मनुष्य को लालच देने के एक पहलू का आधार है। लोग मानते हैं कि केवल इसी देह में पवित्रात्मा को परमेश्वर कहा जा सकता है। कोई नहीं मानता है कि आज, पवित्रात्मा देह बन गया है और उनकी आँखों के सामने वास्तव में उपस्थित हुआ है; लोग परमेश्वर को दो हिस्सों में देखते हैं—“आवरण और देह”—के रूप में, परमेश्वर को कोई पवित्रात्मा के देहधारण के रूप में नहीं देखता, यह कोई नहीं देखता कि देह का सार परमेश्वर का स्वभाव है। लोगों की कल्पना में, परमेश्वर सामान्य है, लेकिन क्या वे नहीं जानते कि इस सामान्यता में परमेश्वर के गहन अर्थ का एक पहलू छुपा है?
जब परमेश्वर ने सारी दुनिया को आवृत करना आरंभ किया, तो घोर अँधेरा छा गया, और जैसे ही लोग सोए, तो परमेश्वर ने मनुष्य के बीच अवतरित होने के लिए इस अवसर का लाभ उठाया, और आधिकारिक रूप से, पृथ्वी के सभी कोनों में पवित्रात्मा को भेजकर मानवजाति को बचाने का कार्य आरंभ कर दिया। यह कहा जा सकता है कि जब परमेश्वर ने देह की छवि को अपनाना आरंभ किया, तो उसने पृथ्वी पर निजी तौर पर कार्य किया। फिर पवित्रात्मा का कार्य आरंभ हुआ, और आधिकारिक रूप से पृथ्वी पर सभी कार्य शुरू हुए। दो हज़ार वर्षों तक, परमेश्वर के आत्मा ने पूरे विश्व में कार्य किया है। लोगों को इसके बारे में न तो पता है और न ही कोई समझ है, किन्तु अंत के दिनों के दौरान, ऐसे समय में जब शीघ्र ही इस युग का समापन होना है, तो परमेश्वर पृथ्वी पर स्वयं कार्य करने के लिए आया है। यह उन लोगों के लिए आशीष है जो अंत के दिनों में पैदा हुए, जो देहधारी परमेश्वर की छवि को खुद देख सकते हैं। “जब महासागर का समूचा चेहरा धुँधला था, तब मनुष्यों के बीच मैंने संसार की कटुता का स्वाद लेना आरंभ किया। मेरा आत्मा संसार भर की यात्रा करता है और सभी लोगों के हृदय ध्यान से देखता है, तो भी, मैं अपनी देहधारी देह में मनुष्यजाति पर विजय भी प्राप्त करता हूँ।” स्वर्ग के परमेश्वर और पृथ्वी के परमेश्वर के बीच ऐसा सामंजस्यपूर्ण सहयोग है। अंततः, लोगों को विश्वास होगा कि पृथ्वी का परमेश्वर ही स्वर्ग का परमेश्वर है, स्वर्ग और पृथ्वी और उनमें मौजूद सभी चीजें पृथ्वी के परमेश्वर ने ही बनायी हैं, मनुष्य पृथ्वी के परमेश्वर द्वारा नियंत्रित होता है, पृथ्वी का परमेश्वर पृथ्वी पर रहकर स्वर्ग का कार्य करता है, और स्वर्ग का परमेश्वर ही देह में प्रकट हुआ है। पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य का यह अंतिम उद्देश्य है, इसलिए, यह चरण देह की अवधि में किए गए कार्य का सर्वोच्च स्तर है; यह दिव्यता में किया जाता है और सभी लोगों को पूरी ईमानदारी से आश्वस्त कर देता है। लोग अपनी अवधारणाओं में जितना अधिक परमेश्वर की खोज करते हैं, उन्हें उतना ही अधिक यह लगता है कि पृथ्वी का परमेश्वर व्यावहारिक नहीं है। इसलिए परमेश्वर कहता है कि लोग खोखले वचनों और सिद्धांतों में परमेश्वर की खोज करते हैं। लोग जितना अधिक परमेश्वर को अपनी अवधारणाओं में जानेंगे, वे इन वचनों और सिद्धांतों को बोलने में उतने ही अधिक निपुण और सराहनीय होंगे; लोग वचनों और सिद्धांतों को जितना अधिक बोलेंगे, वे परमेश्वर से उतना दूर होते जाएँगे, वे मनुष्य के सार को जानने में उतने ही अधिक अक्षम होते जाएँगे, वे उतना ही अधिक परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करेंगे, और परमेश्वर की अपेक्षाओं से उतने ही दूर चले जाएँगे। मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाएँ उतनी अलौकिक नहीं हैं जितनी लोग सोचते हैं, फिर भी कभी कोई परमेश्वर की इच्छा को समझ नहीं पाया, इसलिए परमेश्वर कहता है, “लोग केवल असीम आकाश में या लहरदार समुद्र के ऊपर, या शांत झील के ऊपर, या खोखले शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बीच मुझे खोजते हैं।” परमेश्वर मनुष्य से जितनी अधिक अपेक्षाएँ करता है, लोगों को उतना ही अधिक लगता है कि परमेश्वर अगम्य है, और उन्हें उतना ही अधिक विश्वास होता जाता है कि परमेश्वर महान है। इस प्रकार, उनकी चेतना में, परमेश्वर के मुख से बोले गए सभी वचन मनुष्य के द्वारा अप्राप्य हैं, जिसकी वजह से परमेश्वर को स्वयं कार्य करना पड़ता है; और परमेश्वर के साथ सहयोग करने के प्रति मनुष्य का झुकाव थोड़ा भी नहीं होता, वह तो बस विनम्र और आज्ञाकारी होने का प्रयास करते हुए, मात्र सिर झुकाए अपने पापों को स्वीकार करने में लगा रहता है। इस तरह, इस बात का एहसास किए बिना, लोग किसी नए धर्म में, धार्मिक समारोह में प्रवेश करते हैं जो धार्मिक कलीसियाओं की अपेक्षा और अधिक कठोर होते हैं। यह आवश्यक है कि लोग अपनी नकारात्मक अवस्था को सकारात्मक अवस्था में रूपांतरित करते हुए ऐसी अवस्था में आएँ जो सामान्य है; यदि इंसान ऐसा नहीं करेगा, तो वह और भी अधिक गहरा फँसता जाएगा।
परमेश्वर अपने इतने सारे कथनों में पहाड़ों और समुद्र का वर्णन क्यों करता है? क्या इन वचनों के प्रतीकात्मक अर्थ हैं? परमेश्वर न केवल अपने देह में इंसान को अपने कर्म दिखाता है, बल्कि इंसान को नभमण्डल में अपने सामर्थ्य को भी समझने देता है। इस तरह, इस विश्वास के साथ कि यह देह में परमेश्वर ही है, लोगों को व्यावहारिक परमेश्वर के कर्मों का भी पता चल जाता है, और इस तरह पृथ्वी के परमेश्वर को स्वर्ग में भेज दिया जाता है, और स्वर्ग के परमेश्वर को नीचे पृथ्वी पर लाया जाता है, उसके बाद ही लोग पूरी तरह परमेश्वर के स्वरूप का और परमेश्वर के सर्वसामर्थ्य का और अधिक ज्ञान प्राप्त कर पाते हैं। जितना अधिक देह में परमेश्वर मानवजाति को जीतने में समर्थ होता है और पूरे ब्रह्मांड के ऊपर और सर्वत्र यात्रा करने के लिए देह से पार जा सकता है, लोग उतना ही अधिक व्यावहारिक परमेश्वर का अवलोकन करने के आधार पर परमेश्वर के कर्मों को देख पाते हैं, और इस प्रकार पूरे विश्व में परमेश्वर के कार्य की सत्यता को जान जाते हैं कि यह नकली नहीं असली है, और उन्हें पता चल जाता है कि आज का व्यावहारिक परमेश्वर पवित्रात्मा का मूर्तरूप है, न कि मनुष्य के समान शरीर वाला है। परमेश्वर कहता है, “परंतु जब मैं अपने कोप का बाँध खोलता हूँ, पहाड़ तत्काल टूटकर तितर-बितर हो जाते हैं, धरती तत्काल कंपकंपाने लगती है, पानी तत्काल सूख जाता है, और मनुष्य तत्काल आपदा से घिर जाता है।” जब लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, तो वे उन्हें परमेश्वर के देह से जोड़ते हैं, इस प्रकार, आध्यात्मिक क्षेत्र का कार्य और वचन प्रत्यक्ष रूप से देहधारी परमेश्वर की ओर संकेत करते हैं, इससे और भी प्रभावकारी परिणाम प्राप्त होते हैं। जब परमेश्वर बोलता है तो ऐसा प्रायः स्वर्ग से पृथ्वी तक होता है, और फिर एक बार और धरती से स्वर्ग तक होता है, और लोग परमेश्वर के वचनों की प्रेरणा एवं उत्पत्ति को समझ नहीं पाते हैं, “जब मैं आसमानों के बीच होता हूँ, तब मेरी उपस्थिति ने कभी तारों में खलबली नहीं मचाई है। इसके बजाय, वे अपने हृदय मेरे लिए अपने कार्य में लगाते हैं।” स्वर्ग की ऐसी ही स्थिति है। परमेश्वर तीसरे स्वर्ग में सब कुछ व्यवस्थित तरीके से करता है, जहाँ परमेश्वर की सेवा करने वाले सभी सेवक परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं। उन्होंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया जो परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह होता, इसलिए वे उस भय से आतंकित नहीं होते जिसकी चर्चा परमेश्वर ने की है, बल्कि दिल लगाकर अपना काम करते हैं, वहाँ कभी कोई अव्यवस्था नहीं होती, इस प्रकार सभी स्वर्गदूत परमेश्वर के प्रकाश में रहते हैं। जबकि अपनी विद्रोहशीलता और परमेश्वर को न जानने के कारण, पृथ्वी के लोग अंधकार में रहते हैं, वे परमेश्वर का जितना अधिक विरोध करते हैं, वे उतने ही अधिक अंधकार में रहते हैं। जब परमेश्वर कहता है, “आसमान जितने अधिक प्रकाशमान होते हैं, नीचे का संसार उतना ही अधिक अंधकारमय होता है” तो उसका अर्थ होता है कि किस प्रकार परमेश्वर का दिन इंसान के करीब आता जा रहा है। इस प्रकार, तीसरे स्वर्ग में परमेश्वर की 6,000 वर्षों की व्यस्तता जल्द ही समाप्त हो जाएगी। पृथ्वी की सभी चीज़ें अंतिम अध्याय में प्रवेश कर चुकी हैं, और जल्दी ही हर चीज़ परमेश्वर के हाथ से अलग हो जाएगी। लोग अंत के दिनों के समय से जितना दूर जाते हैं, वे इंसानी दुनिया की भ्रष्टता का अनुभव उतना ही अधिक कर पाते हैं; और वे अंत के दिनों के समय में जितना दूर जाते हैं, उतना ही अधिक वे अपनी देह के प्रति आसक्त होते जाते हैं; ऐसे अनेक लोग हैं जो दुनिया की दयनीय स्थिति को बदलना चाहते हैं, लेकिन उनकी आहें परमेश्वर के कर्मों की वजह से गुम हो जाती है। इस प्रकार, जब लोगों को वसंत की गर्माहट का एहसास होता है, तो परमेश्वर उनकी आँखों को ढक देता है, और इस तरह वे उठती-गिरती तरंगों पर तैरने लगते हैं, उनमें से एक भी सुदूर में मौजूद जीवन-रक्षक नौका तक नहीं पहुँच पाते। चूँकि लोग जन्मजात निर्बल होते हैं, इसलिए परमेश्वर कहता है कि ऐसा कोई नहीं है जो चीजों की कायापलट कर सके। जब लोग आशा खो देते हैं, तो परमेश्वर पूरी दुनिया से बात करने लगता है। वह पूरी मानवजाति को बचाना शुरू कर देता है, और इसके बाद ही लोग उस नई जिंदगी का आनंद ले पाते हैं जो चीजों की कायापलट होने के बाद ही आती हैं। आज के लोग आत्म-प्रवंचना के चरण में हैं। क्योंकि उनके सामने का मार्ग बहुत उजाड़ और अस्पष्ट है, उनका भविष्य “अपरिमित” और “असीमित” है, इस युग के लोगों में युद्ध करने की ओर कोई झुकाव नहीं है, वे अपना समय हानहाओ पक्षी[क] की तरह ही गुज़ार सकते हैं। ऐसा कोई नहीं हुआ है जिसने अपने जीवन और मानव-जीवन के ज्ञान को कभी गंभीरता से लिया हो; वे तो बस उस दिन की प्रतीक्षा करते हैं जब स्वर्ग से उद्धारकर्ता दुनिया की दयनीय स्थिति को बदलने के लिए अचानक आएगा, और तभी वे तत्परता से जीने का प्रयास करेंगे। हर इंसान की वास्तविक स्थिति और मानसिकता ऐसी ही है।
आज, परमेश्वर मनुष्य की वर्तमान मानसिकता के प्रकाश में उसके भविष्य के नये जीवन की भविष्यवाणी कर रहा है। यह आने वाले उस प्रकाश की चमक है, जिसके बारे में परमेश्वर बोलता है। परमेश्वर जो भविष्यवाणी कर रहा है आखिरकार वह उसे पूरा करेगा, और यह शैतान पर परमेश्वर की विजय का फल है। “मैं सभी मनुष्यों से ऊपर चलता हूँ और हर कहीं देख रहा हूँ। कुछ भी कभी पुराना दिखाई नहीं देता है, और कोई भी व्यक्ति वैसा नहीं है जैसा वह हुआ करता था। मैं सिंहासन पर विश्राम करता हूँ, मैं संपूर्ण ब्रह्माण्ड के ऊपर आराम से पीठ टिकाता हूँ...।” यह परमेश्वर के वर्तमान कार्य का परिणाम है। परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग अपने मूल स्वरूप में वापस आ जाते हैं, जिसके कारण वे स्वर्गदूत, जिन्होंने इतने वर्षों तक कष्ट झेला है, मुक्त हो जाते हैं, जैसा कि परमेश्वर कहता है “उनके चेहरे मनुष्य के हृदय के भीतर एक पवित्र जन जैसे हैं।” चूँकि स्वर्गदूत पृथ्वी पर कार्य करते हैं और पृथ्वी पर परमेश्वर की सेवा करते हैं, और परमेश्वर की महिमा दुनिया भर में फैलती है, इसलिए स्वर्ग को पृथ्वी पर लाया जाता है, और पृथ्वी को स्वर्ग तक उठाया जाता है। इसलिए, मनुष्य वह कड़ी है जो स्वर्ग और पृथ्वी को जोड़ती है; स्वर्ग और पृथ्वी अब दूर-दूर नहीं हैं, अलग नहीं हैं, बल्कि जुड़कर एक हो गए हैं। दुनिया भर में, केवल परमेश्वर और मनुष्य हैं। कोई गुबार या गंदगी नहीं है, सब कुछ नया हो गया है, जैसे कि आकाश के नीचे हरे-भरे चरागाह में लेटा हुआ भेड़ का कोई छोटा-सा बच्चा, परमेश्वर के सभी अनुग्रहों का आनंद ले रहा हो। हरियाली के आगमन की वजह से जीवन की साँस दमकने लगती है, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के साथ सदा-सर्वदा रहने के लिए दुनिया में आता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे परमेश्वर के मुख से कहा गया था कि “मैं एक बार फिर से सिय्योन के भीतर शांतिपूर्वक निवास कर सकता हूँ।” यह शैतान की हार का प्रतीक है, यह परमेश्वर के विश्राम का दिन है, और सभी लोग इस दिन की प्रशंसा और घोषणा करेंगे और स्मरणोत्सव मनाया जाएगा। जब परमेश्वर सिंहासन पर आराम करता है तभी वह पृथ्वी पर अपना कार्य भी समाप्त कर लेता है, और इसी क्षण इंसान को परमेश्वर के रहस्य भी दिखाए जाते हैं; परमेश्वर और मनुष्य हमेशा सामंजस्य में रहेंगे, कभी अलग नहीं होंगे—ऐसे हैं राज्य के सुंदर दृश्य!
रहस्यों में रहस्य छुपे हुए हैं; परमेश्वर के वचन वास्तव में गहन और अथाह हैं!
फुटनोट :
क. हानहाओ पक्षी की कहानी ईसप की चींटी और टिड्डी की नीति-कथा से काफ़ी मिलती-जुलती है। जब मौसम गर्म होता है, तब हानहाओ पक्षी अपने पड़ोसी नीलकंठ द्वारा बार-बार चेताए जाने के बावजूद घोंसला बनाने के बजाय सोना पसंद करता है। जब सर्दी आती है, तो हानहाओ ठिठुरकर मर जाता है।