121  काश, मैं सदा तुम्हारे साथ रह पाऊँ

1 तुम जल्द ही सिय्योन लौट जाओगे, और मेरा दिल बहुत उदास है। मेरे दिल में कितनी ही बातें हैं, जो मैं तुमसे कहना चाहती हूँ—मगर जानती नहीं, कहाँ से शुरू करूँ। कितने ही कर्ज हैं जो चुकाने हैं। मैं अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने में असमर्थ रहा और मैं खेद से भरा हूँ। किसे खबर थी कि वक्त यूँ गुजर जाएगा? पछतावे के आँसू थमने का नाम नहीं लेते। तुम्हारे प्रेम का मैंने बहुत आनंद लिया है, और मेरा दिल दुखी है क्योंकि मैं उसका प्रतिदान नहीं कर पाया। हे परमेश्वर, तुम जा रहे हो—मैं तुम्हारा जाना कैसे सह सकती हूँ?

2 अतीत की घटनाएँ कौन भुला सकता है? पुरानी भावनाओं के लगाव से कौन बच सकता है? इन कई बरसों में अकसर तुम हमारे साथ इकट्ठे हुए हो, तुम्हारे वचनों ने हमारा सिंचन और पोषण किया है। हमने अहंकार, कठोरता और विद्रोह प्रकट किया है; तुमने हमारी काट-छाँट की है, हमसे निपटे हो, हमें दंडित और अनुशासित किया है। कितनी ही बार तुमने हमारा न्याय किया है, हमें कठोर ताड़ना दी है। केवल इसी तरह हमारी भ्रष्टता शुद्ध होती है। तुमने हमारी खातिर अपने दिल का बहुत सारा खून दिया है। केवल इसी प्रकार से हम अब बदल सकते हैं, जैसे हम हैं। मैं सत्य का अनुसरण करूँगा और अपना कर्तव्य अच्छे से पूरा करूँगा। मैं खुद को तुम्हारे प्रति समर्पित करूँगा, ताकि मैं कम से कम एक बार तुम्हें संतुष्ट कर सकूँ।

3 मेरे गालों पर खामोश आँसू बह रहे हैं, मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि मैं तुम्हें रुकने के लिए राजी नहीं कर सकती। मेरे दिल में कभी पूरे न हुए पछतावे हैं। मेरा दिल दर्द और पश्चात्ताप से भरा है। हालाँकि जो वक्त हमने साथ में गुजारा है वह कम है, लेकिन तुम्हारी वाणी की ध्वनि और तुम्हारे मुसकराते चेहरे का नजारा मेरे दिल पर अंकित हैं। मैं तुम्हारी वाणी के बारे में सोच रही हूँ, तुम्हारे प्रेम के लिए तरस रही हूँ। इंसान के लिए तुम्हारा प्रेम गहरा और मज़बूत है। ख़ूबसूरत अतीत एक याद बन गया है। वह मुझे याद क्यों नहीं आएगा? तुम्हारी ईमानदार शिक्षाओं को मैं कैसे भूल सकती हूँ? तुम्हारे लिए अपनी तड़प को मैं अपने दिल में दफन कर लूँगी। न जाने हम फिर कब मिल पाएँगे। काश, मैं सदा तुम्हारे साथ रह पाऊँ।

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