120  ओह, परमेश्वर! मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता

1

यह तुम्हारी वाणी ही है, जो तुम्हारी उपस्थिति में आने में मेरा मार्गदर्शन करती है।

ये तुम्हारे वचन हैं, जो मेरा दिल जीत लेते हैं।

यह तुम्हारा कोमल प्रेम, जीवन से भरे तुम्हारे वचन हैं,

जो मेरे दिल को कसकर थामे रहते हैं और आगे तुमसे प्रेम करने में मुझे सक्षम बनाते हैं।

तुम हमेशा मेरे खयालों में हो। ओह, तुम हमेशा मेरे खयालों में हो।


2

तुम्हारे वचनों ने मुझे तुम्हारे प्रेम में गहरे डुबो दिया है।

तुम्हारा सुंदर चेहरा तुमसे प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है।

तुम्हारे वचन न्याय करते हैं, उजागर करते हैं, सांत्वना देते हैं और प्रोत्साहित करते हैं; तुम्हारे दयालु वचन इंसान के दिल को अपनी ओर खींच लेते हैं।

काट-छाँट, निपटना और प्रबुद्धता मुझे तुम्हारे प्रेम का आस्वादन कराते हैं।

तुम्हारे प्रेम से मेरा दिल भर जाता है। ओह, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।


3

तुम्हारा स्वभाव धार्मिक, पवित्र और बहुत मनभावन है।

तुम्हारी बुद्धि और अद्भुतता मनोहर हैं।

हालाँकि आज मेरी परीक्षा ली जा रही है, और पीड़ा मेरे दिल को शुद्ध करती है,

किंतु तुम्हारे वचन हमेशा मेरे साथ हैं। मैं बस तुमसे जितनी भी अच्छी तरह से हो सके, प्रेम करना चाहता हूँ।

तुम्हारे आयोजनों के बीच मुझे कोई शिकायत नहीं है। ओह, तुम्हारे आयोजनों के बीच मुझे कोई शिकायत नहीं है।


4

मानवजाति के लिए तुम्हारा प्रेम बहुत सच्चा, बहुत वास्तविक है।

तुम्हें संतुष्ट करने के लिए मैं जो कर सकता हूँ, खुशी से करता हूँ।

यद्यपि परीक्षण और शोधन कठोर हैं, किंतु मेरे पास तुम्हारे वचनों का मार्गदर्शन है।

मुझे तुम पर पूरी आस्था है। जब तक मैं तुमसे प्रेम कर सकूँ और तुम्हारी गवाही दे सकूँ,

तब तक मैं किसी भी कठिनाई से गुजरने के लिए तैयार हूँ, चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो। ओह, तुम्हारे लिए मेरा प्रेम कभी नहीं बदलेगा।

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