203 तुम हमेशा मेरे दिल में रहो
तुम वसंत और पतझड़ में मेरे साथ रहते हो, सर्दी और गर्मी में मेरे साथ चलते हो।
तुम्हारा एकाकी मुखमंडल देखकर मेरा दिल उदासी से भर जाता है।
कभी तुम्हारे एकाकीपन पर सोचा नहीं, न ही तुम्हारे दुख को सांत्वना दी।
अड़ियल होकर पश्चात्ताप न करने में,
मैं बार-बार तुम्हारे हृदय से निकले उपदेशों का सामना करती हूँ।
मैं हमेशा तुम्हें ठेस पहुँचाती हूँ और तुम्हें निराश करती हूँ
और तुम्हारी ताड़ना के बाद ही मुझे थोड़ी सी जागरूकता मिलती है।
मैं तुम्हारे इतना करीब रहकर भी तुम्हारा बोझ उठाने में असमर्थ हूँ;
जिसके पास कोई समझ नहीं, वो तुम्हारे कष्ट कैसे जान सकता है?
अपनी इच्छाओं के लिए, देह के लिए, मैं सत्य, नैतिकता और न्याय भूल गई।
जब मैं दुख से अभिभूत हुई हूँ मैंने तुम्हारा हृदय तोड़ा है।
तुम दुखी होते हो, फिर भी कोई इसे नहीं समझता।
भ्रष्टता के बीच दर्द से कराहते हुए मैं लालच में तुमसे माँगें करती हूँ।
किसके पास अंतरात्मा और विवेक है जो तुम्हारी कुछ चिंताएँ साझा कर सके?
तुम्हारे अनमोल प्रेम और सच्ची भावना के साथ, तुम्हारा दिल बेहद दयालु है।
तुमसे ज्यादा सुंदर कौन हो सकता है, तुमसे ज्यादा सम्माननीय कौन हो सकता है?
मैं हमेशा तुम्हारी संगति में रहूँगी और तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूँगी।
तुम्हारे चेहरे पर खुशी दिखे और तुम हमेशा मेरे दिल में रहो।