83. मेरा कर्तव्य या मेरा करियर?

चेन सी, चीन

बचपन से ही मैं अखबारों और टीवी पर महिला उद्यमियों व सभी क्षेत्रों की सशक्त महिलाओं को प्रसिद्धि और उन्नति हासिल करते देखती थी। वे इतनी आकर्षक थीं कि मैं उनसे बहुत ही प्रेरित थी। मुझे उम्मीद थी कि एक दिन मैं भी एक सफल महिला उद्यमी बनूँगी ताकि मेरे दोस्त और रिश्तेदार मेरी प्रशंसा करें, मेरे बारे में ऊँचा सोचें। वह कितना शानदार, सुखी जीवन होगा! अपना सपना जल्दी साकार करने के लिए मैंने और मेरे पति ने 1997 में अपनी फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और एक नए साहसिक कार्य की शुरुआत की, कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया। आर्थिक सुधार और खुलेपन की लहर के चलते हमने जल्द ही कुछ पैसा कमाया और धीरे-धीरे हमारा कारोबार जम गया। हमारे दोस्त और रिश्तेदार सभी हमारे बारे में बहुत ऊँचा सोचते थे और हमारा पक्ष लेते थे। मैंने और मेरे पति ने पाया कि हम अपने परिवार में अचानक लोकप्रिय हो गए हैं। मैं बहुत खुश थी। लेकिन मैं संतुष्ट नहीं थी और व्यवसाय को और भी बढ़ाना चाहती थी, समय आने पर व्यवसाय की दुनिया में अपना स्थान बनाना चाहती थी। बाद में हम एक व्यापारी के साथ थोक कारोबार में लग गए, लेकिन हमें उम्मीद नहीं थी कि वह धोखेबाज है और नतीजतन हमने अपनी सारी बचत गँवा दी। हमारे पास अपनी दुकान बेचने और अपने गृहनगर वापस जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मैं निराश हो गई। लेकिन मैंने उद्यमी बनने का अपना सपना कभी नहीं छोड़ा। मैंने पैसे उधार लेने और वापसी करने की योजना बनाई। मैंने कभी यह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि हमारे रिश्तेदार हमें बुरी स्थिति में देखकर इस बात से डर जाएँगे कि हम उनका पैसा नहीं लौटा पाएँगे, इसलिए उन्होंने हमारी मदद करने से इनकार कर दिया। मैं बहुत दुखी और असहाय महसूस कर रही थी। मुझे इतनी निराश देखकर मेरे पति ने मुझे दिलासा देते हुए कहा, “उदास मत हो। अक्सर कहा जाता है ‘जब तुम शहर में गरीब होते हो तो कोई तुम्हारी परवाह नहीं करता, लेकिन जब तुम पहाड़ों में अमीर होते हो तो तुम्हें ऐसे रिश्तेदार मिलते हैं जिनके बारे में तुम्हें कभी पता नहीं होता।’ यह समाज ऐसा ही कठोर है—अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो तुम्हारे माता-पिता भी तुमसे तिरस्कार करते हैं। हमारे मित्र और रिश्तेदार तभी हमारे बारे में ऊँचा सोचेंगे जब हम अमीर बनेंगे!” जब मैंने यह याद किया कि पहले चीजें कितनी शानदार थीं और अब हमें दोस्तों और रिश्तेदारों द्वारा नकारे जाने पर कैसी शर्मिंदगी महसूस होती है तो मैंने खुद से वादा किया कि मैं वापसी करूँगी! मैंने शहर से बाहर के दोस्तों से पैसा उधार लिया, कुछ पैसा इधर से लिया, कुछ उधर से और एक ब्रांड फ्रैंचाइजी व्यवसाय शुरू किया। मेरे कुशल प्रबंधन के चलते व्यवसाय धीरे-धीरे फलने-फूलने लगा। कुछ साल बाद मेरे पास एक कार, एक घर और बचत थी। मेरे अमीर ग्राहक मेरे साथ बहुत उत्साह से पेश आते थे और मेरा पति मेरी हर बात मानता था क्योंकि मैं पैसे कमाने में सक्षम थी। दोस्त और रिश्तेदार फिर से मेरी चापलूसी करने लगे, मुझे बुद्धिमान, योग्य और मजबूत महिला बताकर मेरी तारीफ करने लगे। भले ही मुझे पता था कि यह झूठी चापलूसी है, फिर भी मुझे यह देखकर वाकई मजा आता था कि वे किस तरह मेरी चापलूसी कर रहे हैं। अब जब मेरे पास पैसे थे तो चीजें अलग थीं और इतने सारे लोगों से सराहना पाने से मेरा मिथ्याभिमान बहुत संतुष्ट होता था। मुझे लगा कि इन सभी वर्षों की कड़ी मेहनत सार्थक थी।

बाद में मेरे साथियों ने देखा कि मैं ब्रांड के उत्पाद बेचकर अमीर बन रही हूँ, इसलिए उन्होंने भी ब्रांड बेचना शुरू कर दिए। मुझे अचानक संकट मँडराता महसूस हुआ। अपने प्रतिस्पर्धियों को हराने के लिए मुझे न केवल उन पर नजर रखनी थी और उनसे सावधान रहना था, बल्कि मुझे अपने ग्राहकों के साथ हर तरह से घुलना-मिलना भी था, हर दिन उन्हें फोन करके उनके बारे में पूछना था और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई तरह के प्रचार-प्रसार करने थे। मैं हर दिन दिखावा करती थी, अपने साथियों और मीठी-मीठी बातें करने वाले ग्राहकों के साथ खुलेआम और गुप्त रूप से प्रतिस्पर्धा करती थी। अंदर से मैं बहुत थकान और दबाव महसूस करती थी। दिन खत्म होने तक मैं इतनी थक जाती थी कि मेरी पीठ में दर्द होने लगता था। जब मैं घर आती थी तो मैं बात भी नहीं करना चाहती थी और बस रात को अच्छी नींद लेना चाहती थी। लेकिन जब मैं बिस्तर पर लेटती थी तो मैं बस करवटें बदलती रहती थी और सो नहीं पाती थी, सोचती रहती थी कि मेरे प्रतिस्पर्धी मेरे खिलाफ गुप्त रूप से क्या योजना बना रहे होंगे और मैं उन्हें हराने के लिए प्रचार-प्रसार का कौन सा कार्यक्रम चला सकती हूँ। मेरा सिर हिसाब-किताब और संघर्षों से भरा रहता था और मैं तनाव में थी। मैं अक्सर अत्यधिक काम के कारण अनिद्रा से पीड़ित रहती थी। मैंने बहुत सारे शांतिदायक और मस्तिष्क-वर्धक पोषक उत्पाद लिए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कभी-कभी मैं आखिरकार सो तो जाती, लेकिन बुरे सपने आने पर डरकर उठ जाती थी। मुझे अक्सर अजीब खालीपन और बेचैनी महसूस होती थी। मुझे चिंता थी कि अगर मैंने थोड़ी भी ढिलाई बरती तो मेरे प्रतिस्पर्धी जीत जाएँगे और मैं अपनी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिलाकर बाजार से बाहर हो जाऊँगी। मैं बाहर से सफल दिखती थी, लेकिन सिर्फ मैं ही जानती थी कि मैं अंदर से कितनी पीड़ित हूँ। आधी रात को मैं अक्सर सोचती थी, “क्या यही वो खुशहाल जिंदगी है जिसके लिए मैं इतने साल से तरस रही थी?” मैं उलझन में थी। लेकिन मैं अभी भी दूसरों द्वारा नीची नजरों से देखे जाने वाला एक साधारण जीवन नहीं जीना चाहती थी। इसलिए भले ही मैं शारीरिक और मानसिक रूप से थक गई थी, फिर भी मैंने थोड़ा भी आराम करने की हिम्मत नहीं की। मैं बस अपना व्यवसाय बढ़ाना चाहती थी। कुछ सालों तक श्रमसाध्य प्रबंधन करने के बाद मैंने जिस ब्रांड को सँभाल रही थी वह स्थानीय क्षेत्र में लोकप्रिय हो गया। सम्मान समारोहों में मुख्यालय ने मुझे अपने सफल अनुभव साझा करने के लिए भाषण देने के लिए भी आमंत्रित किया। जब मैं वक्ता के मंच पर खड़ी थी, तालियों की गड़गड़ाहट सुनकर और दूसरों की आँखों में सराहना देखकर मुझे लगा कि मेरा सपना आखिरकार सच हो गया है। मैं बहुत उत्साहित और खुश थी। यह एक सेलिब्रिटी होने का स्वाद चखने जैसा था, मैं सातवें आसमान पर थी और मुझे लगा कि इतने साल के कष्ट और कड़ी मेहनत सार्थक थी। लेकिन किसी को नहीं पता था कि इस सफलता के पीछे मुझे कितनी थकान और पीड़ा झेलनी पड़ी। अत्यधिक काम के कारण मेरी नजर कमजोर हो गई। डॉक्टर ने कहा कि मेरा विट्रियस धुंधला है और मुझे गंभीर मोतियाबिंद है, मुझे अंधी होने से बचने के लिए ऑपरेशन करवाना पड़ा। यूँ तो मैंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से सराहना हासिल कर ली थी, लेकिन मुझे उस दर्द और खालीपन से कोई राहत नहीं मिली जो मैं अंदर से महसूस करती थी। क्योंकि प्रतिस्पर्धा का दबाव बहुत अधिक था, मैं अक्सर बहुत परेशान रहती थी। लेकिन मैं और मेरे साथी एक-दूसरे को मुस्कुराहट के साथ बधाई देते थे, लेकिन सतह के नीचे साजिशें चलती रहती थीं और हम सभी एक-दूसरे के प्रति बहुत सतर्क रहते थे। इसलिए भले ही हमारा उद्योग बहुत बड़ा था, मेरे पास एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जिस पर मैं भरोसा कर सकूँ। मैं हर दिन भेष बदलकर जीती थी और मेरा दिल उस दिन का इंतजार कर रहा था जब मैं एक सुकून भरी, खुशहाल जिंदगी जी सकूँ।

2007 में एक बहन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत दिनों के कार्य की गवाही दी। परमेश्वर के वचन पढ़ने के माध्यम से मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु यीशु है। मुझे यह भी एहसास हुआ कि परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए न्याय का कार्य करने हेतु अंत के दिनों में देहधारण किया है, केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय और शुद्धिकरण स्वीकारने और अपने भ्रष्ट स्वभाव को छोड़कर हम परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं और उसके राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक भजन सुना जिसने मुझे वाकई प्रभावित किया।

परमेश्वर तुम्हारे हृदय और रूह को खोज रहा

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2  सर्वशक्तिमान ने बुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से विमुख महसूस करता है जिनमें जरा-सी भी चेतना नहीं है, क्योंकि उसे लोगों से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ता है। वह खोजना चाहता है, तुम्हारे दिल और तुम्हारी आत्मा को खोजना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना चाहता है, ताकि तुम जाग जाओ और अब तुम भूखे या प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया के बेरंगपन का कुछ-कुछ एहसास होने लगे, तो तुम दिशाहीन मत महसूस करना, रोना मत। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, प्रहरी, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा।

3  वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है। वह तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है, उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे : जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो और किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुम्हारा एक “पिता” था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है।

4  वह बेतहाशा तड़पता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नजर रखना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना अनिश्चितकालीन है, या शायद इसका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह

मैं परमेश्वर के वचनों से बहुत प्रभावित हुई और मैंने इतने वर्षों तक व्यवसाय चलाने की अपनी कठिन यात्रा के बारे में सोचा। भले ही मेरे पास एक कार और घर था, मैंने अपनी इच्छाएँ पूरी कर ली थीं, फिर भी मैं असहज महसूस करती थी। हर दिन ज्यादा पैसे कमाने के लिए मैं अपने ग्राहकों की चापलूसी और खुशामद करती थी और मैं और मेरे साथी मुनाफे के लिए एक-दूसरे के खिलाफ साजिशें रचते थे और एक-दूसरे को धोखा देते थे; मैं मानसिक और शारीरिक रूप से थक चुकी थी। मैं अपनी एक शानदार छवि पेश करती थी, लेकिन मैं अंदर से बहुत पीड़ा सह रही थी। अब जब मैं परमेश्वर की वाणी सुन चुकी थी मुझे लगा मानो मैं बहुत साल से भटक रही एक अनाथ लड़की हूँ जो आखिरकार अपनी माँ के स्नेहपूर्ण आलिंगन में लौट आई है और फिर कभी अकेली या असहाय महसूस नहीं करेगी। सभाओं में भाई-बहन सरल और खुले थे, परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ के बारे में संगति करते थे, एक-दूसरे के साथ स्पष्ट और ईमानदार थे। व्यापार जगत में पाई जाने वाली कोई भी साजिश यहाँ नहीं थी, कोई भी ईर्ष्या और कलह नहीं थी। जब मैं मुश्किलों का सामना करती थी तो भाई-बहन मेरे साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति करते थे, मेरे दिल में रोशनी लाते थे और मुझे अभ्यास का मार्ग देते थे, वे मुझे बहुत ही आराम और मुक्त महसूस कराते थे। मैंने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था। परमेश्वर में विश्वास रखना अद्भुत है!

बाद में मैंने भक्ति के दौरान परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “यदि तुम्हारे पास वास्तव में विवेक है, तो तुम्हारे पास बोझ और उत्तरदायित्व की भावना अवश्य होनी चाहिए। तुम्हें कहना चाहिए : ‘चाहे मुझे जीता जाए या पूर्ण बनाया जाए, मुझे गवाही देने का यह चरण सही ढंग से पूरा करना चाहिए।’ एक सृजित प्राणी के रूप में व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा सर्वथा जीता जा सकता है, और अंततः वह परमेश्वर-प्रेमी हृदय से परमेश्वर के प्रेम को चुकाते हुए और पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हुए, परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम हो जाता है। यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है, यह वह कर्तव्य है जिसे मनुष्य को अवश्य करना चाहिए, और यह वह बोझ है जिसे मनुष्य द्वारा अवश्य वहन किया जाना चाहिए, और मनुष्य को यह आदेश पूरा करना चाहिए। केवल तभी वह वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करता है। आज, तुम कलीसिया में जो करते हो, क्या वह तुम्हारे उत्तरदायित्व की पूर्ति है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम पर बोझ है या नहीं, और यह तुम्हारे अपने ज्ञान पर निर्भर करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (3))। मैंने बार-बार परमेश्वर के वचन पढ़े और आत्म-ग्लानि महसूस की। परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारने के बाद मैंने हर दिन परमेश्वर के वचनों के प्रावधान का आनंद लिया। जब चीजें मुश्किल हो जाती थीं तो भाई-बहन मेरी मदद करने के लिए मेरे साथ परमेश्वर के वचनों की संगति करते। यह परमेश्वर का प्रेम था। मैं खाली बैठे और अपना कर्तव्य निभाए बिना परमेश्वर के प्रावधान का आनंद नहीं ले सकती थी। ऐसा करना अंतरात्मा रहित होता। एक सृजित प्राणी के रूप में मुझे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, यह मेरी जिम्मेदारी और दायित्व है। परमेश्वर के वचनों से प्रभावित होकर मैं अपना कर्तव्य यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से करने लगी।

दो साल बाद मुझे सिंचन दल का अगुआ चुना गया और मैं हर दिन नवागंतुकों का सिंचन करने और उन्हें सहारा देने में व्यस्त रहती थी। क्योंकि मेरे पास इतनी ऊर्जा नहीं थी, इसलिए मैंने दुकान के कर्मचारियों को व्यवसाय सँभालने दिया। कभी-कभी बिक्री कम हो जाती थी और मेरा पति मुझसे बहस करते हुए कहता था, “तुम्हारे दुकान से दूर रहने से देर-सवेर व्यापार चौपट हो जाएगा और फिर तुम्हें कोई क्या सोचेगा?” उसकी बातों ने मुझे बहुत चोट पहुँचाई। मुझे याद आया कि जब मैं निराश और परेशान थी तो रिश्तेदार और दोस्त मुझे किस तरह नीची नजरों से देखते थे। व्यवसाय में मैंने जो कुछ हासिल किया था वैसा करना बहुत कठिन था; मुझे इसे ठीक से चलाते रहने था। लेकिन फिर मैंने सोचा कि कैसे अपना कर्तव्य निभाना मेरी जिम्मेदारी और दायित्व है। ऐसा नहीं हो सकता था कि मैं अंतरात्मा विहीन हो जाऊँ और अपना कर्तव्य न निभाऊँ। मैं अंदर से टूट गई थी। मैंने सोचा, “अगर मेरी बिक्री में गिरावट जारी रही, दुकान वाकई बंद होने की नौबत आ जाए तो मुझे क्या करना चाहिए? फिर कौन मेरा किसी तरह का सम्मान करेगा? नहीं, मुझे अपनी प्राथमिकता के रूप में बिक्री बढ़ाने का कोई तरीका सोचना होगा।” उसके बाद मैंने अपना कर्तव्य करने में इतना प्रयास नहीं किया। जब भी मैं किसी भाई या बहन के बारे में सुना करती थी कि वह नकारात्मक और कमजोर महसूस कर रहा है तो मैं उसे मदद और सहारा देने के लिए दौड़ पड़ती थी। लेकिन अब मैं बस दुकान की ओर भागना चाहती थी। दुकान पर बहुत ही व्यस्तता होने और मेरे छोड़कर न जा पाने के कारण कभी-कभी मैं सभाओं में देर से पहुँचती थी। मुझे थोड़ा-बहुत अपराध बोध होता था, लेकिन मैं अपने कारोबार को दरकिनार नहीं कर सकती थी। चूँकि मैं नकारात्मक और कमजोर भाई-बहनों का समय रहते सिंचन नहीं कर रही थी और उन्हें सहारा नहीं दे रही थी, इसलिए एक बहन ने पैसा कमाने पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित कर दिया और सभाओं में आना बंद कर दिया और अन्य भाई-बहनों ने नियमित रूप से सभाओं में जाना बंद कर दिया। जब मुझे इन चीजों के बारे में पता चला तो मैं बहुत परेशान हो गई। लेकिन अपना व्यवसाय सँभालने न जा पाने के कारण जब कभी कर्तव्य और व्यवसाय के बीच टकराव होता था तो मैं अंदर से थोड़ा-बहुत कमजोर महसूस करती थी और खुद को एक हल्का काम करने के लिए इच्छुक पाती थी। लेकिन फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम्हें परमेश्वर के आदेशों से कैसे पेश आना चाहिए, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। परमेश्वर ने जो तुम्हें सौंपा है, यदि तुम उसे पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उसकी उपस्थिति में जीने के योग्य नहीं हो और तुम्हें अपना दंड स्वीकारना चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है कि मनुष्य परमेश्वर द्वारा सौंपे जाने वाले आदेशों को पूरा करे। यह मनुष्य का सर्वोच्च दायित्व है और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उसका जीवन है। यदि तुम परमेश्वर के आदेशों के साथ हल्के में पेश आते हो, तो यह परमेश्वर के साथ अत्यन्त भयंकर विश्वासघात है। इस मामले में तुम यहूदा से भी अधिक निंदनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए। लोगों को इसकी पूरी समझ हासिल करनी चाहिए कि परमेश्वर के आदेशों के साथ कैसे पेश आएँ, और उन्हें कम से कम यह समझ होनी चाहिए : परमेश्वर द्वारा मनुष्य को आदेश सौंपना उसके द्वारा मनुष्य का उत्कर्ष है, उसके द्वारा मनुष्य के प्रति दिखाया गया विशेष अनुग्रह है और यह सबसे महिमापूर्ण बात है। अन्य सब कुछ छोड़ा जा सकता है, यहाँ तक कि अपना जीवन भी, लेकिन परमेश्वर के आदेशों को जरूर पूरा किया जाना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य की प्रकृति को कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे कर्तव्य का विशेष अर्थ महसूस कराया। किसी का कर्तव्य परमेश्वर द्वारा दिया गया आदेश है और सृजित प्राणी होने के नाते हमें अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से करना चाहिए—यह हमारी जिम्मेदारी है। नए लोगों के सिंचन का प्रशिक्षण देने का अवसर देकर परमेश्वर मुझ पर अनुग्रह कर रहा था। लेकिन मैंने उनका सिंचन नहीं किया या उन्हें सहारा नहीं दिया और सिर्फ अपने व्यवसाय पर ध्यान दिया। कुछ भाई-बहनों को वह सिंचन नहीं मिला जिसकी उन्हें जरूरत थी और इसलिए वे पीछे हट गए। क्या मैं उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा रही थी? मैं अपने कर्तव्य के साथ हल्केपन से और गैर-जिम्मेदार ढंग से पेश आई। मैंने परमेश्वर से विश्वासघात किया! जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही अधिक अपराध बोध और पछतावा हुआ, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, मैं पश्चात्ताप करने और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने की इच्छुक थी। बाद में मैं सक्रिय होकर नवागंतुकों का सिंचन करने लगी और उन्हें सहारा देने लगी। सभाओं में भाग लेना बंद कर चुके कुछ भाई-बहन फिर से नियमित रूप से सभाओं में आने लगे। अंत में मुझे अपने दिल में सुकून मिलने लगा।

2013 में मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया। मुझे पता था कि परमेश्वर मुझे ऊपर उठा रहा है, लेकिन मैं फिर से अंदर से टूट गई थी : चाहे मैं सिंचन टीम अगुआ के रूप में कितनी भी व्यस्त क्यों न रहूँ, मैं अपना व्यवसाय चलाने के लिए हमेशा समय निकाल लेती थी। एक कलीसिया अगुआ के रूप में मैं कलीसिया के समग्र कार्य के लिए जिम्मेदार होती और मेरे पास अपने व्यवसाय की देखभाल करने के लिए कोई समय नहीं बचता। समय बीतने के साथ क्या मेरे पुराने ग्राहक कहीं और चले जाएँगे? क्या मैं यूँ ही पीछे हटकर अपने उन ग्राहकों को बेवजह दूसरों को सौंप नहीं रही होती, जिन्हें मैंने इतने साल की मेहनत से जोड़े रखा था? मैंने सोचा कि कैसे मेरा पति मेरा ख्याल रखता था, दोस्त और रिश्तेदार इतने साल तक मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत करते थे, सिर्फ इसलिए कि मैं पैसे कमा सकती थी। अगर अब आगे मेरा कोई करियर न रहा तो कौन मेरे बारे में ऊँचा सोचेगा? जब मैंने संभावित रूप से वह सब कुछ गँवाने का ख्याल किया जिसे मैंने कड़ी मेहनत से सँभाला था तो मुझे अत्यंत तकलीफ हुई। लेकिन अगर मैंने यह कर्तव्य स्वीकार न किया तो मेरी अंतरात्मा को सुकून नहीं मिलेगा और मैं परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करूँगी। रात में मैं करवटें बदलती रही, सो नहीं सकी। मैंने इन पिछले वर्षों में परमेश्वर में अपनी आस्था के बारे में सोचा और यह भी सोचा कि कैसे मैंने हर दिन परमेश्वर के वचनों को खाया, पिया और उनका आनंद लिया है और परमेश्वर के कितने ही अनुग्रहों और आशीषों का आनंद लिया है। जब मैं दुनिया में भटक रही थी, खुद को एकाकी और असहाय महसूस कर रही थी, तब परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को गर्माहट दी और वे मुझे परमेश्वर के घर ले आए, उसके बाद ही मेरे दिल को सहारा मिला। जब मैं बस पैसे के लिए भाग-दौड़ कर रही थी और व्यस्त थी और तन-मन से थककर चूर थी, तब परमेश्वर के वचनों ने वे कर्तव्य और दायित्व समझने में मेरी मदद की जो मुझे एक सृजित प्राणी के रूप में अच्छे से निभाने चाहिए और मुझे आचरण का तरीका मिल गया। जब मैं पैसे के पीछे भाग रही थी और अपने कर्तव्य में अनमनी थी, परमेश्वर के वचनों के न्याय और उजागर करने से मुझे यह देखने को मिला कि अपने कर्तव्य के प्रति मेरा रवैया परमेश्वर के साथ विश्वासघात का था और मेरा सुन्न, अड़ियल दिल जाग उठा। यह परमेश्वर का मुझे प्रेम करना और बचाना था। मैं फिर से अपने कर्तव्य से पहले अपने व्यवसाय को कैसे रख सकती थी और परमेश्वर के दिल को चोट कैसे पहुँचा सकती थी? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और सही चयन करने के लिए उससे आस्था और शक्ति माँगी।

अगली सुबह मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, तुम सभी ऐसा ही चुनाव करोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहता। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और गलत के बीच डगमगाए हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद, परिवार और परमेश्वर, संतानों और परमेश्वर, सौहार्द और बिगाड़, धन और गरीबी, रुतबा और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और ठुकरा दिए जाने इत्यादि के बीच सभी संघर्ष के दौरान तुम लोगों ने जो विकल्प चुने हैं उनके बारे में तुम लोग निश्चित ही अनजान नहीं हो! एक सौहार्दपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच तुमने पहले को चुना और तुमने ऐसा बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच तुमने पहले को चुना; अपने बच्चों, पत्नियों और पतियों या मेरे बीच तुमने पहले को चुना; और धारणाओं और सत्य के बीच तुमने अब भी पहले को चुना। तुम लोगों के तरह-तरह के बुरे कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास तुम पर से बिल्कुल उठ गया है, मैं बिल्कुल स्तब्ध हूँ। तुम्हारे हृदय अप्रत्याशित रूप से इतने कठोर हैं कि उन्हें कोमल नहीं बनाया जा सकता। सालों तक मैंने अपने हृदय का जो खून खपाया है, उससे मुझे आश्चर्यजनक रूप से तुम्हारे परित्याग और विवशता से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी अब तुम लोग अंधेरी और बुरी चीजों का पीछा कर रहे हो और उनसे अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और दर्दनाक शोक ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में जरा-सी भी गर्मजोशी होगी? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मुझे चुभन और व्यथा महसूस हुई। जब से मैंने परमेश्वर पर विश्वास रखना शुरू किया, मैं संघर्ष करती आ रही थी और अपने करियर और कर्तव्य के बीच इधर-उधर झूल रही थी, मैं उस करियर को छोड़ने की इच्छुक नहीं थी जो मैंने इतने श्रमसाध्य ढंग से सँभाला था, लेकिन मैं सत्य को छोड़ने की भी इच्छुक नहीं थी। इसलिए जब मेरे कर्तव्य ने मेरे करियर को प्रभावित किया, मैं प्रतिरोधी हो गई और यहाँ तक कि अपने कर्तव्य से इनकार करना चाहती थी। केवल परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर होने के बाद ही मैंने देखा कि भले ही मैं परमेश्वर में विश्वास और उसका अनुसरण करती हूँ, फिर भी मेरे दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं है और मैं जिस चीज को सँजोती हूँ वह सत्य या परमेश्वर का उद्धार नहीं है, बल्कि अपना करियर, पैसा और रुतबा है। यह परमेश्वर में आस्था नहीं थी, यह मेरा शैतान का अनुसरण करना और परमेश्वर से विश्वासघात करना था। परमेश्वर एक ऐसा परमेश्वर है जो बुराई से अत्यंत घृणा करता है। धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागते हुए और देह का आनंद लेते हुए परमेश्वर का उद्धार चाहने का मतलब है कि मुझे परमेश्वर द्वारा बचाया जाना असंभव था। अंत के दिनों में परमेश्वर का देहधारण करना और मानवजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त करना ही हमारे लिए बचाए जाने का एकमात्र अवसर है। अगर मैं आँख मूँदकर पैसे के पीछे भागती रही और मैंने सत्य का अनुसरण न करती रही, मैंने जीवन में एक बार मिलने वाले इस अवसर को खो दिया तो क्या मैं अपने ही जीवन को नष्ट नहीं कर रही हूँगी? मुझे बाकी जिंदगी भर इसका पछतावा रहेगा! अब अपना कर्तव्य करने और सत्य का अनुसरण करने का अवसर मिलना परमेश्वर का प्रेम और अनुग्रह था, मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। मैंने परमेश्वर के वचनों को खाया-पिया और परमेश्वर के अनुग्रह व प्रावधान का आनंद लिया, लेकिन अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से करने के बारे में नहीं सोचा, हमेशा व्यापार करना और पैसा कमाना चाहा, प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे का पीछा करना चाहा। मैं इतनी अंतरात्मा और विवेक विहीन थी! मैं अब देह का अनुसरण नहीं कर सकती थी और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह नहीं कर सकती थी। परमेश्वर मुझसे सही चयन करने की उम्मीद कर रहा था। मुझे सत्य का अनुसरण करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपना करियर छोड़ना था और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना था। फिर मैंने अपना पूरा व्यवसाय दुकान के कर्मचारियों को सौंप दिया और अपना सारा समय अपने कर्तव्य करने में लगाना शुरू कर दिया। हालाँकि मैं हर दिन व्यस्त रहती थी, फिर भी मुझे अपने दिल में सुकून मिलता था। जब मैंने कलीसिया में कुछ ऐसे भाई-बहनों को देखा जो मेरे जैसे ही हुआ करते थे—सुबह से शाम तक काम करते थे, भाग-दौड़ करते थे, बेतहाशा पैसे कमाते थे, शैतान के धोखे और नुकसान के बीच दर्द और उलझन में रहते थे—तो मैंने परमेश्वर का आश्रय लिया और उनके साथ उसके वचनों की संगति की। परमेश्वर के इरादे समझने के बाद वे पैसे के बंधन त्यागने, सक्रिय होकर अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने और पहले की तुलना में कहीं अधिक आराम और मुक्त जीवन जीने में सक्षम थे। उस क्षण मुझे लोगों को बचाने के परमेश्वर के श्रमसाध्य इरादे की गहरी समझ हुई और मैं गहराई से प्रभावित हो गई। अगर परमेश्वर सत्य व्यक्त न करे और लोगों को न बचाए तो हम सब शैतान द्वारा मूर्ख बनाए जाएँगे और चोट सहेंगे और हमारे पास बचने का कोई उपाय नहीं होगा। कलीसिया में अपना कर्तव्य कर पाना दुनिया में व्यवसाय चलाने से कहीं ज्यादा सार्थक है क्योंकि सुसमाचार का प्रचार करना लोगों को बचाने का काम है, यह सबसे मूल्यवान और सार्थक चीज है। अतीत में अपने स्वार्थों की खातिर मैं दुनिया में प्रसिद्धि और लाभ के लिए लोगों से होड़ करती थी, उनके खिलाफ साजिश रचती थी, दुर्भावनापूर्ण और धोखेबाज बन जाती थी और लेशमात्र भी मनुष्य के समान नहीं जीती थी। अब कलीसिया में सार्थक काम करने में सक्षम होने के साथ-साथ परमेश्वर के वचन खाने-पीने, सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य करते हुए अपने भ्रष्ट स्वभाव को बदलने के साथ मुझे लगा कि जीने का यही एकमात्र सार्थक तरीका है। मैंने पूरे दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया।

दो साल बाद एक दिन जब मैं घर पहुँची ही थी तो मेरे पति ने मुझे लगातार मनाने की कोशिश की, कहने लगा “तुमने सम्मानित बॉस होना छोड़ दिया है। यह सब ‘परमेश्वर’ क्या बकवास है? मैं तो बस इतना जानता हूँ कि पैसा कमाना ही सबसे व्यावहारिक है। पैसे से तुम अच्छा खा सकती हो, अच्छा खेल सकती हो, जीवन का आनंद ले सकती हो और दूसरे लोग तुम्हारे बारे में ऊँचा सोचते हैं। अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं होंगे तो कौन तुम्हारे बारे में कुछ सोचेगा? तुम दुकान पर नहीं होती हो, बिक्री आधे से ज्यादा गिर गई है और यह चलता नहीं रह सकता। अगर तुम इसे नहीं सँभालोगी तो यह बंद हो जाएगी। तुम जड़ होकर देख रही हो कि तुम कैसे पीछे हट रही हो और हमारा कारोबार दूसरों को सौंप रही हो। तुम बेवकूफ बन रही हो!” मुझे डर था कि मैं फिर से शैतान के प्रलोभन में पड़ जाऊँगी, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना की। मैंने सोचा कि कैसे मेरे अविश्वासी पति ने पैसे, शोहरत और लाभ के पीछे भागते हुए शैतान का अनुसरण किया जबकि मैंने परमेश्वर का अनुसरण करने, सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने के मार्ग पर चलना चुना है। वह मुझसे कह रहा था कि मैं अपना कर्तव्य करना छोड़ दूँ और शैतान के खेमे में वापस चली जाऊँ। वह मुझे नुकसान पहुँचाने और बर्बाद करने की कोशिश कर रहा था। मैं उसे यह छूट नहीं दे सकती थी कि वह मुझे बाधित करे। यह देखकर कि मैं नहीं मानूँगी, उसने मेरी चाची और ससुर को बुलाया। वे सब मुझे मनाने की कोशिश करने लगे, “हम परमेश्वर में तुम्हारी आस्था का विरोध नहीं करते, लेकिन तुम्हें अपना व्यवसाय चलाना है! जब हमारे पास पैसे नहीं थे, तब हमारे परिवार के बारे में कौन सोचता था? अब हमारे रिश्तेदार और दोस्त सब हमारी चापलूसी कर रहे हैं—क्या इसलिए नहीं कि हमारा व्यवसाय फल-फूल रहा है? तुम्हें पता है कितने लोग हमसे जलते हैं और हमारे कारोबार के नाकाम होने का इंतजार कर रहे हैं? हमारी दुकान पुरानी है और इसकी प्रतिष्ठा पहले ही फैल चुकी है। बहुत से लोग तुम्हारी योग्यता और कौशल के लिए तुम्हारी प्रशंसा करते हैं। अगर तुम व्यवसाय की देखभाल नहीं करती हो तो हमारा पूरा परिवार गरीब हो जाएगा और कोई भी हमारा आदर नहीं करेगा। क्या तुम ऐसे ही जीना चाहती हो?” मैंने उस व्यवसाय को शुरू करने में आईं मुश्किलों और इसके अब तक के विकास के बारे में सोचा। दस साल से अधिक समय तक खून, पसीना और आँसू बहाकर मैं जहाँ थी, वहाँ पहुँचना बहुत मुश्किल था। अगर मुझे वाकई इसे छोड़ना पड़े तो मैं अभी भी ऐसा करने में थोड़ी सी सकुचाऊँगी। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं शैतान के प्रलोभन में पड़ गई हूँ और मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने पहले पढ़ा था : “फिर भी अब तुम लोग अंधेरी और बुरी चीजों का पीछा कर रहे हो और उनसे अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और दर्दनाक शोक ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में जरा-सी भी गर्मजोशी होगी? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के प्रश्न मेरे दिल को खटखटा रहे थे। जब से मैंने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया था, मैं परमेश्वर के बहुत सारे वचन पढ़ चुकी थी और कुछ सत्य समझ चुकी थी। मुझे पता था कि लोगों को कैसे जीना चाहिए और कैसे आचरण करना चाहिए। यूँ तो मैं पिछले दो साल के दौरान धन, प्रसिद्धि और लाभ त्याग चुकी थी, लेकिन मुझे जो शांति और खुशी महसूस हुई, उसे ऐसी चीजों से नहीं मापा जा सकता था। मुझे परमेश्वर की वाणी सुनने और उसका उद्धार पाने का सौभाग्य मिला था; मैं शैतान के खेमे में वापस नहीं जा सकती थी। इसलिए मैंने शांति से उनसे कहा, “मैंने अपना करियर त्यागने, परमेश्वर में विश्वास करने का चयन करने और अपना कर्तव्य निभाने के बारे में बहुत ज्यादा सोच-विचार किया है। परमेश्वर अंत के दिनों में सत्य व्यक्त कर रहा है और लोगों को बचा रहा है ताकि हम शैतान के नुकसान से बच सकें और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकें, यह जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर है। अब मैं बस इतना करना चाहती हूँ कि पूरे दिल से परमेश्वर में विश्वास रखूँ, प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ करने वाला जीवन न जीऊँ। मुझे आशा है कि तुम भी परमेश्वर के वचन अधिक पढ़ सकोगे और उसका उद्धार स्वीकार सकोगे।” मैं हैरान रह गई जैसे ही मैंने कहा, मेरी चाची और ससुर ने तुरंत अपने हाथ और सिर हिला दिए। मेरे पति ने गुस्से में कहा, “हम परमेश्वर में विश्वास नहीं करेंगे! तुम्हें आज ही चुनाव करना होगा। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करती रहना चाहते हो तो कभी वापस मत आना। इस परिवार से तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं होगा। तुम अपने रास्ते जाओ और मैं अपने! हम अलग-अलग रास्ते पर चलेंगे!” उसे इतना निर्दयी देखकर मैंने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए और मैं परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए दृढ़ हूँ।” एक बार जब मैंने अपनी पसंद चुन ली तो मेरे पति ने मेरी बात मान ली और मुझ पर अब और ध्यान नहीं दिया।

कभी-कभी मैं सोचती थी, “जब भी मेरे कर्तव्य और मेरे व्यवसाय के बीच संघर्ष होता था, मैं हमेशा दुविधा में पड़ जाती थी। मैं अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर को संतुष्ट करने का बेहिचक चयन क्यों नहीं कर पाती हूँ? इस समस्या का स्रोत दरअसल क्या है?” जब मैं इसका उत्तर खोज रही थी तो मैंने पढ़ा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “शैतान मनुष्य को मजबूती से अपने नियंत्रण में रखने के लिए किसका उपयोग करता है? (प्रसिद्धि और लाभ का।) तो, शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग करता है ताकि लोग और कुछ नहीं बस इन दो ही चीजों के बारे में सोचें। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते और भारी बोझ उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों पर अदृश्य बेड़ियाँ डाल देता है और इन बेड़ियों में बंधे रहकर, उनमें उन्हें तोड़ देने की न तो ताकत होती है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते रहते हैं और बड़ी ही कठिनाई से घिसटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ की खातिर मानवजाति भटककर परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इस तरह, एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। जब मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया तो मेरे दिल को रोशनी दिखाई दी। पता चला कि प्रसिद्धि और लाभ ऐसे साधन हैं जिनका इस्तेमाल शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए करता है। शैतान प्रसिद्धि और लाभ का इस्तेमाल हमारे सोचने के तरीके को नियंत्रित करने के लिए करता है ताकि हम प्रसिद्धि और लाभ के अनुसरण में अपना दिमाग मथें, अपमान सहें और भारी बोझ सहें, जब तक कि हम आखिरकार परमेश्वर को त्याग न दें, उसे धोखा न दे दें और शैतान हमें उठाकर नरक में न ले जाए। मैंने सोचा कि कैसे मैं वर्षों से केवल प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भाग रही थी। शैतान के इन जहरों ने मुझमें गहरी जड़ें जमा ली थीं कि “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है” और “भीड़ से ऊपर उठो और अपने पूर्वजों का नाम करो।” छुटपन से ही मैं महिला उद्यमियों और सशक्त महिलाओं की सराहना करती आई थी और उम्मीद लगाए थी कि एक दिन मैं प्रसिद्धि और लाभ दोनों के साथ एक बड़ा नाम बनूँगी। मैंने पैसे, प्रसिद्धि और लाभ को अपने जीवन की दिशा और लक्ष्य मान लिया था। इन सारे वर्षों में मैंने पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत की थी, मैं अपने साथियों के साथ खुलकर और गुप्त रूप से प्रतिस्पर्धा कर रही थी, हम एक-दूसरे के खिलाफ साजिश रच रहे थे, एक-दूसरे को कमजोर कर रहे थे और एक दूसरे के खिलाफ दाँव चल रहे थे हमेशा एक-दूसरे को गिराने की कोशिश कर रहे थे और मेरा स्वभाव अधिकाधिक कपटपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण होता गया। भले ही मैं शरीर और दिमाग से थक चुकी थी, फिर भी मैं प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागना बंद नहीं कर सकी, क्योंकि प्रसिद्धि और लाभ ही मेरे जीवन की सारी आशा थे और उन्हें खोना जीवन का अर्थ गँवाना था। इसलिए बिक्री में गिरावट देखना अपना जीवन गँवाने जैसा था और इससे मैं भयभीत हो गई। क्योंकि मुझे डर था कि दुकान बंद करनी पड़ेगी और मैं लोगों से प्रशंसा खो दूँगी, मैं प्रतिरोधी और अनमने ढंग से अपना कर्तव्य करने से खुद को रोक नहीं सकी। मैंने अपने कर्तव्य से बचने और शैतान के खेमे में वापस जाने के बहाने के रूप में लगभग अपने व्यवसाय का इस्तेमाल तक किया। प्रसिद्धि और लाभ जंजीरों की तरह थे जो मुझे बहुत कसकर जकड़े हुए थे। वे मेरे सत्य के अनुसरण में बाधाएँ बन गए और उन्होंने मुझे अपना कर्तव्य करने से रोका और बार-बार परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कराया। शैतान सत्य का अनुसरण करने के मेरे संकल्प को क्षीण और छिन्न-भिन्न करने के लिए ठीक प्रसिद्धि और लाभ का इस्तेमाल कर रहा था, मुझे अपना कर्तव्य करने से रोक रहा था और बचाए जाने का अपना मौका गँवाने दे रहा था, जब तक कि आखिरकार मैं परमेश्वर की प्रतिरोधी नहीं हो जाती और इसके साथ ही परमेश्वर द्वारा नष्ट नहीं कर दी जाती। लोगों को भ्रष्ट करने के लिए शैतान जिन साधनों का इस्तेमाल करता है वे इतने कपटी और दुर्भावनापूर्ण होते हैं! मैंने उन सभी लोगों के बारे में सोचा जिन्होंने प्रसिद्धि और लाभ प्राप्त किया, फिर भी खालीपन और दर्द महसूस किया, जिन्होंने अंत में इससे बचने के लिए खुद को मार डाला। प्रसिद्धि और लाभ केवल अस्थायी दैहिक आनंद लाते हैं। वे किसी के दिल का खालीपन नहीं भर सकते; वे लोगों को बचा नहीं सकते, उन्हें सुंदर गंतव्य तो बिल्कुल भी नहीं दे सकते। यदि लोग परमेश्वर के सामने नहीं आते हैं और उसका उद्धार नहीं स्वीकारते हैं तो चाहे उनकी प्रतिष्ठा कितनी भी ऊँची हो या उनके पास कितनी भी संपत्ति हो, यह सब पूरी तरह से निरर्थक है।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “जब लोगों को परमेश्वर के स्वभाव की वास्तविक समझ होती है, जब वे देख पाते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव वास्तविक है, वह वास्तव में पवित्र है, वास्तव में धार्मिक है और जब वे परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता की अपने हृदय से प्रशंसा कर पाते हैं, तब वे वास्तव में परमेश्वर को जान लेंगे और उन्होंने सत्य प्राप्त कर लिया होगा। जो लोग परमेश्वर को जानते हैं, वे ही प्रकाश में रहते हैं। परमेश्वर को सच में जानने का सीधा प्रभाव है परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने और उसके प्रति समर्पित होने में सक्षम होना। जब लोग वास्तव में परमेश्वर को जान जाते हैं, सत्य समझते हैं और सत्य प्राप्त करते हैं, उनका जीवन के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण और नजरिया वास्तविक बदलाव से गुजरता है, जिसके बाद उनके जीवन स्वभाव में भी वास्तविक परिवर्तन होता है। जब लोगों के सही जीवन-लक्ष्य होते हैं, जब वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं और सत्य के अनुसार आचरण करते हैं, जब वे पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं और उसके वचनों के अनुसार जीते हैं, जब वे अपने दिल की गहराई तक स्थिर और रोशन महसूस करते हैं, जब उनके दिल अँधेरे से मुक्त होते हैं और वे पूरी तरह से स्वतंत्र और मुक्त होकर परमेश्वर की उपस्थिति में जीते हैं, तभी उन्हें एक सच्चा मानव-जीवन प्राप्त होता है और तभी वे ऐसे लोग बन पाते हैं जिनमें सत्य और मानवता होती है। इसके अलावा, जो भी सत्य तुमने समझे और प्राप्त किए हैं, वे सभी परमेश्वर के वचनों से और स्वयं परमेश्वर से आए हैं। जब तुम सर्वोच्च परमेश्वर—सृष्टिकर्ता—का अनुमोदन प्राप्त करते हो और वह कहता है कि तुम एक मानक स्तर के सृजित प्राणी हो और तुम मानव के समान जीते हो, तब तुम्हारा जीवन सबसे अधिक सार्थक होगा। परमेश्वर का अनुमोदन पाने का अर्थ है कि तुमने सत्य पा लिया है और तुम्हारे पास सत्य और मानवता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य की प्रकृति को कैसे जानें)। मैंने परमेश्वर के वचनों से समझा कि सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर को जानने में सक्षम होना, स्वभावगत परिवर्तन प्राप्त करना, शैतान के नुकसान के अधीन न होना और स्वतंत्र रूप से परमेश्वर की आराधना करने में सक्षम होना ही एकमात्र ऐसा जीवन है, जो मूल्यवान और सार्थक है और यह जीवन परमेश्वर द्वारा प्रशंसित और धन्य है। अब महामारी और सभी प्रकार की आपदाएँ अक्सर हो रही हैं। अविश्वासी लोग घबराहट और बेचैनी की मनोदशा में जीते हैं, उन्हें लगता है कि भविष्य अंधकारमय है। जब महामारी और आपदाएँ आती हैं तो वे निराश हो जाते हैं और फँसे हुए महसूस करते हैं। लेकिन हमारे जैसे विश्वासी हर दिन परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हैं, परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन के तहत हम शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने के तरीकों और उसका दुष्ट सार समझने और भेद पहचानने में सक्षम होते हैं, हम शैतान को नकारने और परमेश्वर का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं, हमारे दिलों में सच्ची शांति और आनंद होता है, हम सक्रियता से अपने कर्तव्य करते हैं और हर दिन सत्य का अनुसरण करते हैं, परमेश्वर के वचनों का प्रचार करते हैं, उसके कार्य की गवाही देते हैं, उसकी देखभाल और सुरक्षा में रहते हैं। यह हमें सबसे अधिक धन्य बनाता है, यह एक ऐसी चीज है जिसकी अदला-बदली हम किसी भौतिक चीज के लिए नहीं कर सकते। मुझे और अधिक अनुभव हुआ कि जीवन में केवल दो ही रास्ते हैं : एक शैतान का अनुसरण करना, धन, पद, रुतबे और लाभ का पीछा करना और देह की संतुष्टि करना, विनाश के मार्ग पर चलना; एक परमेश्वर का अनुसरण करना, सत्य का अनुसरण करना, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना, अपने भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकना और उद्धार के मार्ग पर चलना। दोनों के बीच कोई रास्ता नहीं है। समय कम है और महा विनाश पहले से ही हमारे ऊपर हैं। अभी भी इतना अधिक सत्य है जिसे मैं नहीं समझती नहीं हूँ। अब सबसे महत्वपूर्ण बात हर दिन को सँजोना, गंभीरता से सत्य का अनुसरण करना, अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना और एक सच्चे मानव के समान जीना है।

अब मैं अपना सारा समय कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाते हुए, भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के वचन खाते-पीते हुए बिताती हूँ मेरा दिल मिठास और खुशी से भरा हुआ है। कभी-कभी मैं अपना कर्तव्य निभाते हुए कुछ मुश्किलों का सामना करती हूँ और भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करती हूँ, लेकिन परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन, भाई-बहनों की संगति और सहायता से मुझे अपने भ्रष्ट स्वभावों की कुछ समझ आ गई है और मैं उन्हें बदलने का प्रयास कर रही हूँ। मुझे लगता है कि यह सबसे सार्थक है। यूँ तो मैंने अपना करियर छोड़ दिया, लेकिन मैं कुछ सत्य को समझने लगी हूँ और थोड़ा सा मानव के समान जीने लगी हूँ। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ। मैं यह विकल्प चुनने के लिए कभी नहीं पछताऊँगी!

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