40. एक अलग प्रकार का उद्धार

हुआंग ली, चीन

मैं करिश्माई ईसाई धर्म की एक साधारण विश्वासी हुआ करती थी। जब से मैंने प्रभु में विश्वास करना शुरू किया, तब से मैंने हर एक सेवा समारोह में भाग लिया है। मैं ऐसा खास तौर पर इसलिए करती थी क्योंकि मैं जानती थी कि हम अंत के दिनों में हैं और बाइबल में प्रभु की वापसी के बारे में भविष्यवाणियाँ मूल रूप से पूरी हो चुकी हैं; प्रभु जल्द ही लौटेंगे, इसलिए उत्सुकता से उनकी वापसी का इंतजार करते हुए, मैंने और भी उत्साह से सेवा समारोहों में भाग लिया, जिससे कहीं ऐसा न हो कि मैं प्रभु से मिलने का मौका चूक जाऊँ।

एक दिन, मेरी छोटी बहन आई और मुझसे खुशी से बोली, "सुनिए, मैं आज आपको बेहतरीन खबर बताने आयी हूँ—प्रभु यीशु लौट आए हैं! और तो और, वह देह में लौट आए हैं; वे सत्य व्यक्त कर रहे हैं और मनुष्य का न्याय करने और उसे शुद्ध करने के लिए अंतिम दिनों का अपना कार्य कर रहे हैं, जिससे बाइबल की यह भविष्यवाणी पूरी होती है: 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)। समय बर्बाद मत कीजिये—परमेश्वर के नए काम का अनुसरण कीजिये!" जब मैंने यह खबर सुनी कि प्रभु लौट आए हैं, तो मैं हैरान थी साथ ही मेरे मन में शक भी था। मैंने कहा, "प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में कहा गया है, 'देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी' (प्रकाशितवाक्य 1:7)। पादरी और एल्डर अक्सर हमें बताते हैं कि जब प्रभु वापस आएंगे, तो वह एक सफेद बादल पर सवार होकर हमारे पास आएंगे। तुम कह रही हो हो कि प्रभु लौट आए हैं और वह देह में आए हैं। यह कैसे मुमकिन है?" मेरी बहन ने दृढ़तापूर्वक कहा, "आप कहती हैं कि प्रभु यीशु बादलों के साथ लौटेंगे, लेकिन क्या आप इसके बारे में निश्चित हैं? बाइबल में भी भविष्यद्वाणी की गयी है: 'देख, मैं चोर के समान आता हूँ' (प्रकाशितवाक्य 16:15)। और 'आधी रात को धूम मची: "देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो"' (मत्ती 25:6)। क्या आप यह कहने की हिम्मत करती हैं कि प्रभु संभवतः गुप्त रूप से आ ही नहीं सकते? प्रभु की वापसी में एक रहस्य है, इसलिए हमें खुले दिमाग से तलाश करनी चाहिए! यदि हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहे, तो फिर हम प्रभु की वापसी का स्वागत कैसे कर सकते हैं?" लेकिन उसकी किसी संगति का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ, इसके बजाय मैं यही मानती रही कि प्रभु एक सफेद बादल पर लौटेंगे और उनका देह में आना संभव नहीं हो सकता है। बाद में, उसने परिवार के बाकी सदस्यों को सुसमाचार सुनाया। उसके कई बार अपनी संगति साझा करने के बाद, मेरे पति, मेरे छोटे बेटे और उसकी पत्नी (जो सभी अविश्वासी थे) ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया। फिर भी मैं अपनी धारणाओं से चिपकी रही और उसे स्वीकार करने से इनकार करती रही।

उसके बाद, मैंने अपनी पुरानी कलीसिया में सेवा समारोहों में भाग लेना जारी रखा, जबकि मेरे पति, मेरा छोटा बेटा और उसकी पत्नी, सभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में भाग लेते थे। हर बार जब मैं सेवा समारोह से घर लौटती, तो मुझे कोई उत्साह महसूस नहीं होता था। लगता था कि सब कुछ बंधे-बंधाये ढंग से होता है; मेरा दिल खाली था और मुझे कुछ नहीं प्राप्त हो रहा था। दूसरी ओर, जब वे लोग एक सभा से लौटते थे, तो हमेशा बहुत खुश होते थे, और वे अक्सर एक साथ संगति और कुछ बातों पर विचार किया करते थे जैसे कि समस्याओं का सामना करने पर वे किन भ्रष्ट स्वभावों को प्रकट करते हैं, उन्हें परमेश्वर की इच्छा की तलाश कैसे करनी चाहिए, स्वयं को कैसे जानना है और स्वयं पर मनन कैसे करना चाहिए। वे इस बात पर भी चर्चा करते थे कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है, परमेश्वर के वचनों के अनुसार कैसे जीना है, अपने भ्रष्ट स्वभावों को कैसे हटाना है, शुद्ध कैसे होना है, इत्यादि। उन्हें इन बातों पर चर्चा करते हुए सुनकर मुझे बड़ी हैरानी होती थी, और मैं सोचती थी: "उन्हें विश्वास करते हुए थोड़ा ही समय तो हुआ है; यह कैसे है कि वे जानते हैं कि समस्याओं का सामना करने पर उन्हें परमेश्वर की इच्छा की तलाश करने की ज़रूरत है, वे अभ्यास का मार्ग खोजने में सक्षम हैं, और वे जो कुछ भी कहते हैं वह बहुत ही उचित होता है? मैंने इतने वर्षों से प्रभु यीशु पर विश्वास किया है; मैंने प्रार्थना की, सेवा समारोह में भाग लिया और नियम से बाइबल पढ़ी है, तो जब मेरे साथ कुछ होता है तो मैं प्रभु की इच्छा को कभी क्यों नहीं समझ पाती? यह बस मेरे साथ नहीं होता, मेरी कलीसिया में मेरे सभी भाई-बहन ऐसे ही हैं। हम तमाम पापों से बंधे हैं और स्वयं को मुक्त नहीं कर पाते हैं; हमारी आत्माएं मुरझा गई हैं, काली और आशाहीन हो गयी हैं, हमें लगता है कि हम प्रभु से और दूर होते जा रहे हैं। आखिर हो क्या रहा है?" जिन विषयों पर वे चर्चा करते थे, वे इतने ताज़ा और नए थे, वे बात करते थे कि वे किस तरह के भ्रष्ट स्वभावों को प्रकट करते हैं, कैसे मनन-चिंतन करना है और स्वयं को जानना है, कैसे शुद्ध होना है, इत्यादि। मैंने इतने सालों तक प्रभु पर विश्वास किया, लेकिन अपनी कलीसिया में पादरियों या एल्डरों को इन बातों पर उपदेश देते कभी नहीं सुना था, और मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि वे इतना सब कैसे समझ गए! मैं बड़ी उलझन में थी।

पलक झपकते ही फसल की कटाई का समय आ गया। मेरे दो बेटों ने अपनी मकई की फसल काटी और घर ले आए। बीते कई सालों से, मकई निकालने में मैं हमेशा पहले अपने बड़े बेटे की मदद करती थी, फिर अपने छोटे बेटे की, लेकिन इस साल मेरे छोटे बेटे और उसके परिवार ने अकेले ही सारा काम किया। मैंने मन में सोचा: "मैंने इस बार अपने छोटे बेटे के परिवार को उनके काम में मदद नहीं की, इसलिए उसकी पत्नी मुझसे ज़रूर नाराज़ होगी। वह कहेगी कि मैं पक्षपात कर रही हूँ।" लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह न केवल नाराज़ नहीं थी, बल्कि उसने मुझसे प्रसन्नता से कहा, "माँ, आपकी और पिताजी की उम्र हो रही है। हमारे काम में हमारी मदद करने के बारे में अब और चिंता न करें। बस अपनी सेहत का ख्याल रखिए!" उसे यह कहते सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। यह सच में पहली बार था जब उसने हमसे इतनी विचारशील बातें की थीं। उसने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं कहा था! बाद में फिर से ऐसा ही हुआ। मैंने अपने बेटों और उनकी पत्नियों से कहा, "तुम लोगों के बच्चे मिडिल स्कूल शुरू करने वाले हैं, इसलिए मैं उनमें से प्रत्येक के लिए एक साइकिल खरीदूँगी।" मैंने अपने बड़े बेटे के बच्चे के लिए एक साइकिल खरीदी। लेकिन फिर कुछ बातें हो गईं और मेरे पास जो भी पैसे बचे थे, वे खर्च हो गए। मैं अब अपने छोटे बेटे के बच्चे के लिए साइकिल नहीं खरीद सकती थी। अंत में मेरी बहू की माँ ने उसके लिए एक साइकिल खरीदी। मुझे बुरा लगा और मैंने सोचा: "मेरी बहू ज़रूर मुझसे नाराज होगी और वह कहेगी कि मैं जो कहती हूँ, उस पर अमल नहीं करती।" लेकिन मुझे हैरत हुई कि न केवल वह नाराज़ नहीं थी, बल्कि उसने मुझे यह कहकर सांत्वना भी दी, "माँ, मेरे बच्चे के लिए साइकिल न खरीद पाने पर अफसोस मत कीजिये। आप और पिताजी अब से अपने पैसे संभालकर रखिए और इसे अपने ऊपर खर्च कीजिये। हमारे बारे में चिंता मत कीजिये!" मैं इन दोनों घटनाओं से बहुत ही हैरान थी। जबसे मेरी बहू ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया था, तबसे वह मेरे साथ चीजों को लेकर झगड़ती नहीं थी, बल्कि हमारा ख्याल करती थी, ध्यान रखती थी—वह वास्तव में बदल गई थी। मेरे पति का गुस्सा भी हर वक्त नाक पर होता था—ज़रा सी बात पर वो आपा खो बैठते थे। लेकिन अब वह मुझसे बात करते हुए हमेशा मुस्कुराते रहते थे, यहाँ तक कि कभी-कभी जब मैं उनसे गुस्सा हो जाती, तो भी वह उसे धैर्यपूर्वक सहन कर लेते और मुझसे शांति से कहते, "हम एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं। देह से हमारा संबंध पति-पत्नी का है, लेकिन आध्यात्मिक रूप से हम भाई-बहन हैं। हमें एक-दूसरे से प्यार करना चाहिए, एक-दूसरे को समझना और क्षमा करना चाहिए, परमेश्वर के वचन अनुसार जीना चाहिए। क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता? पहले मेरा गुस्सा बहुत बुरा हुआ करता था और मैं आसानी से आपा खो देता था। यह मेरे शैतानी भ्रष्ट स्वभाव का परिणाम था। मैं बहुत घमंडी और दंभी था, उचित मानवता से रहित था। अब, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत सारे वचन पढ़ लिए हैं, मुझे समझ में आ गया है कि परमेश्वर का अंतिम दिनों का कार्य, वचनों को व्यक्त करके मानवजाति को बचाना है। परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करने की कोशिश करते हुए, लोगों को परमेश्वर के वचनों को वास्तविक जीवन में व्यवहार में लाने और हर मामले को सत्य के सिद्धांतों के अनुसार संभालने की ज़रूरत है। मुझे अपने देह-सुख को त्यागना है, परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना है और उचित मानव के समान जीना है।" अपने पति, बेटे और उसकी पत्नी को देखते हुए, मैं अपने दिल में विचार करती रही: "उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को मात्र दो साल पहले ही स्वीकार किया है, तो वे लोग इतने कैसे बदल गए हैं? मैं इसका कायल होने को मजबूर हूँ। मैंने इतने वर्षों तक प्रभु में विश्वास किया है, मैं बाइबल पढ़ती हूँ और हर एक दिन प्रार्थना करती हूँ, तो इस पूरे समय मैं थोड़ा भी क्यों नहीं बदली? जब भी मेरे साथ कुछ घटित होता है, तो मैं हमेशा इस कदर पाप में क्यों डूब जाती हूँ कि खुद को निकाल नहीं पाती? केवल परमेश्वर में लोगों को बदलने की शक्ति है। क्या ऐसा हो सकता है कि जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर वे विश्वास करते हैं, वह लौटे हुए प्रभु यीशु हैं? अगर यह वास्तव में सत्य है और मैं इसे स्वीकार करने से इंकार करती हूँ, तो क्या प्रभु मुझे छोड़ नहीं देंगे? इतना महान उद्धार सामने होने पर भी अगर मैं इसे पाने में असफल रहूँ तो क्या मैं मूर्ख नहीं हूँ?" यह सोचकर, मैं चिंतित हुए बिना नहीं रह सकी। मैं इसकी तलाश और जाँच करना चाहती थी, लेकिन मैं अपने परिवार से इस बारे में बात करने से झेंप रही थी।

एक दिन जब मेरे पति बाहर थे, मैंने चुपके से वह किताब निकाल ली जो वे हमेशा पढ़ते रहते थे। जब मैंने आवरण को देखा, बड़े अक्षरों में लिखे चमकते हुए छ्ह सुनहरे शब्द "वचन देह में प्रकट होता है" मुझे दिखाई दिए। मैंने सोचा: "इस पुस्तक में आखिर क्या रहस्य है? यह लोगों को इतना बदल सकती है—मुझे इसे ध्यान से पढ़ना होगा।" सतर्कता से, मैंने किताब खोली और वहाँ लिखे इन वचनों को देखा: "यह देहधारण परमेश्वर का दूसरा देहधारण है, जो यीशु का कार्य पूरा होने के बाद हुआ है। निस्संदेह, यह देहधारण स्वतंत्र रूप से घटित नहीं होता; व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के बाद यह कार्य का तीसरा चरण है। हर बार जब परमेश्वर कार्य का नया चरण आरंभ करता है, तो हमेशा एक नई शुरुआत होती है और वह हमेशा एक नया युग लाता है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव, उसके कार्य करने के तरीके, उसके कार्य के स्थल, और उसके नाम में भी परिवर्तन होते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के लिए नए युग में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना कठिन होता है। परंतु इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य द्वारा उसका कितना विरोध किया जाता है, परमेश्वर सदैव अपना कार्य करता रहता है, और सदैव समस्त मानवजाति का प्रगति के पथ पर मार्गदर्शन करता रहता है। जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। इसे पढ़ने के बाद, मैंने विचार किया: यदि परमेश्वर के दूसरे देहधारण ने अनुग्रह के युग को समाप्त कर दिया है, तो क्या यह हो सकता है कि परमेश्वर अब अनुग्रह के युग की कलीसियाओं में काम नहीं कर रहे हैं? क्या अब हम राज्य के युग में प्रवेश कर चुके हैं? यहाँ कहा गया है: "उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे।" जबसे मेरे पति, मेरे बेटे और उसकी पत्नी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया है, तबसे वे वास्तव में बहुत बदल गए हैं। क्या यह संभव हो सकता है कि जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर में वो विश्वास रखते हैं, वह सच में लौट हुए प्रभु यीशु हों? क्या वे वास्तव में परमेश्वर के पदचिह्नों पर चल रहे हैं और परमेश्वर के व्यक्तिगत मार्गदर्शन को स्वीकार कर रहे हैं? अन्यथा, वे इतने सारे सत्य कैसे समझ सकते हैं और वे इतना कैसे बदल सकते हैं? यह पवित्र आत्मा के कार्य का परिणाम ही होगा—यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे वे पवित्र आत्मा के कार्य के बिना अपने दम पर प्राप्त कर सकते हैं। मेरे मन में यह विचार आया ही था कि मैंने अचानक देखा कि मेरे पति घर आ रहे थे। मैंने जल्दी से वह पुस्तक जगह पर वापस रख दी, और सोचा: उन्हें नहीं पता चलना चाहिए कि मैं उनकी किताब पढ़ रही हूँ, नहीं तो वह मुझ पर हँसेंगे।

अगले दिन जब मेरे पति एक सभा में भाग लेने के लिए बाहर गए, तो मैंने एक बार फिर उस किताब को निकाला और पढ़ना शुरू किया। मैंने इस अंश को पढ़ा: "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। मैंने इस अंश पर बहुत सोच-विचार किया। प्रभु यीशु ने सारी मानवजाति को सूली पर चढ़कर छुटकारा दिलाया, लेकिन उन्होंने मनुष्य के भ्रष्ट स्वभावों को समाप्त नहीं किया। मनुष्य के भीतर एक पापी प्रकृति बनी हुई है—यह बिलकुल सच है। हम प्रभु में विश्वास करने वाले अक्सर प्रभु की शिक्षाओं का पालन करने में असफल रहते हैं; हम झूठ बोलते और धोखा देते हैं, हर दिन हम पाप करते हैं फिर कबूल करते हैं, लगातार पाप में लिप्त रहते हैं और खुद को पाप के बंधनों से मुक्त करने में असमर्थ हैं। यह एक निर्विवाद तथ्य है। तभी बाइबल में दर्ज परमेश्वर के इन वचनों का ध्यान आया: "इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:45)। परमेश्वर चाहते हैं कि हम पवित्रता प्राप्त करें, और फिर भी हम अक्सर पाप करते हैं और प्रभु को नाराज करते हैं—यह पवित्र कैसे हो सकता है? परमेश्वर पवित्र हैं, उनके राज्य को कलंकित नहीं किया जा सकता है। तो हम, जो अक्सर पाप करते हैं, स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकते हैं? इस विचार ने मुझे थोड़ा निराश कर दिया, और मैंने इस अंश को फिर से पढ़ा: "मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी।" क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों का कार्य लौट कर आए प्रभु यीशु द्वारा किया गया एक और भी बड़ा कार्य है? क्या ऐसा है कि हम केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय को स्वीकारने और अनुभव करने के माध्यम से ही खुद को पाप से छुटकारा दिला सकते हैं, शुद्ध और रूपांतरित हो सकते हैं? क्या यह संभव है कि मेरे पति और मेरी बहू में आए बदलाव, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के काम के उनके अनुभवों से आए हैं? मेरे पति, मेरे बेटे और उसकी पत्नी ने इतने कम समय के लिए परमेश्वर पर विश्वास किया है और फिर भी कुछ सत्य समझ चुके हैं, साथ ही वे अपने स्वयं के भ्रष्ट स्वभावों के बारे में अपनी समझ को स्पष्ट रूप से बता सकते हैं, उनके साथ जब कोई घटना हो जाती है तब वे परमेश्वर की इच्छा तलाश सकते हैं, अभ्यास का मार्ग खोज सकते हैं। जबकि, दूसरी ओर, मैंने कई वर्षों तक प्रभु पर विश्वास किया है, फिर भी अगर कोई मुझसे पूछे कि परमेश्वर में विश्वास वास्तव में क्या होता है या वास्तव में परमेश्वर की इच्छा क्या है, तो सच कहूँ, मेरा तो मुँह भी नहीं खुलेगा, अपने स्वभाव में किसी भी परिवर्तन की बात करना तो दूर की बात है। उन लोगों से तुलना करने पर मुझे वाकई शर्म महसूस हुई! ऐसा लग रहा था कि मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य की गंभीरता से जांच करनी ही होगी।

उसके बाद से, हर दिन मैं अपने पति की पीठ पीछे "वचन देह में प्रकट होता है", इस किताब को चुपके से पढ़ती थी। जितना अधिक मैं इसे पढ़ती, उतना ही अपने दिल के भीतर उज्जवल महसूस करती थी और उतना ही अधिक मुझे इसे पढ़ने में आनंद आता था। कभी-कभी मैं अपनी कलीसिया के सेवा समारोह में भी शामिल नहीं होना चाहती थी, बस घर पर रहकर इस पुस्तक को पढ़ती रहती थी। एक बार, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा: "मैं निश्चित रूप से उन सभी को प्रकाशित और प्रबुद्ध कर दूँगा जो धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे हैं और जो सच्ची निष्ठा से खोज करते हैं। मैं तुम सभी को आध्यात्मिक दुनिया के रहस्य और आगे का मार्ग दिखाऊँगा, जिससे तुम जितनी जल्दी हो सके अपने पुराने भ्रष्ट स्वभाव को दूर कर सको, ताकि तुम जीवन की परिपक्वता को प्राप्त कर सको और मेरे उपयुक्त बन सको, और सुसमाचार का काम तेज़ी से और बिना किसी बाधा के आगे बढ़ सके। तभी मेरी इच्छा संतुष्ट होगी, तभी परमेश्वर की छः हजार साल की प्रबंधन योजना, कम से कम समय में पूरी होगी। परमेश्वर राज्य को हासिल करेगा और नीचे पृथ्वी पर आ जाएगा, और हम एक साथ महिमा में प्रवेश करेंगे!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 8)। तब मुझे प्रभु यीशु के ये वचन याद आ गए: "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्‍त किए जाएँगे" (मत्ती 5:6)। जितना मैंने पढ़ा, उतना ही मुझे लगता कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु के वचनों का स्रोत एक ही है। उन दोनों के वचनों में अधिकार और शक्ति है, और इसलिए मुझे इसकी बहुत संभावना लगने लगी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटे हुए प्रभु यीशु हैं! इस विचार से मैं स्तब्ध रह गयी: मुझे पता था कि अगर यह सच था तो मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार करने की जल्दी करनी चाहिए क्योंकि अगर मैं इसे स्वीकार करने से इनकार करती रही तो मैं वास्तव में परमेश्वर के कार्य द्वारा पीछे छोड़ दी जाऊंगी! लेकिन मैं अपने परिवार को कैसे बता सकती थी? उन्होंने अतीत में मेरे साथ काफी सुसमाचार साझा किए थे, लेकिन मैंने इसे स्वीकार करने से हमेशा इनकार कर दिया था। अगर मैंने अब कहा कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार करने को तैयार हूँ, तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? जब मैं दुविधा के बीच डोल रही थी, परमेश्वर ने मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया।

एक दिन, मेरी बहू और एक अन्य बहन मेरे साथ फिर से सुसमाचार साझा करने आईं। तब मैं जानती थी कि यह एक परमेश्वर द्वारा दिया गया अवसर था, इसलिए मैंने उन्हें ईमानदारी से बताया: "वास्तव में, मैं चुपके-चुपके सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत से वचनों को पढ़ती रही हूँ और मुझे लगता है कि ये वचन परमेश्वर से आते हैं। ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई इंसान ऐसे वचनों को कहे, जो इस तरह के अधिकार और शक्ति को धारण किए हुए हों।" मेरी बहू मुझे यह कहते हुए सुनकर चकित थी, उसने दूसरी बहन की तरफ देखा और खुशी से हँस पड़ी। मैंने आगे कहा: "लेकिन कुछ ऐसा है जो मैं अभी भी ठीक से समझ नहीं पायी हूँ। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की है: 'तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्थ्य और बड़ी महिमा के साथ बादल पर आते देखेंगे' (लूका 21:27)। हम सभी विश्वासी प्रभु यीशु की वापसी के लिए, उनके सफेद बादल पर सवार होकर हमारे बीच आने के लिए लालायित हैं। लेकिन तुम लोग कहते हो कि प्रभु पहले ही लौट चुके हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटे कर आए प्रभु यीशु हैं। तो हमने प्रभु को सफेद बादल पर आते हुए क्यों नहीं देखा? कृपया इस पर मेरे साथ संगति करो।"

बहन ने गंभीरता से जवाब दिया, "परमेश्वर का धन्यवाद! जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बाइबल में ऐसे कई पद हैं जो प्रभु की वापसी की भविष्यवाणी करते हैं। लेकिन अगर हम ध्यान से देखें, तो हम देखेंगे कि प्रभु की वापसी की भविष्यवाणी दो अलग-अलग तरीकों से की गई है: एक यह है कि प्रभु एक बादल पर खुलकर आएंगे और हर कोई उन्हें देखेगा, जैसे कि लूका 21:27 में कहा गया है: 'तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्थ्य और बड़ी महिमा के साथ बादल पर आते देखेंगे।' दूसरा यह है कि प्रभु गुप्त रूप से आएंगे, एक चोर की तरह और किसी को पता नहीं होगा, जैसा कि मत्ती 24:36 में कहा गया है: 'उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता।' हम देख सकते हैं कि प्रभु का आगमन दो चरणों में होगा: पहला, वह गुप्त रूप से आएंगे, और अपने काम का एक चरण करने के बाद, उनके आगमन को जाहिर किया जाएगा। आप जिस बारे में बात कर रही हैं, वह प्रभु के खुलकर आने की भविष्यवाणी है, जबकि हम वर्तमान में उस चरण में हैं जहाँ उनके गुप्त आगमन की भविष्यवाणी पूरी की जा रही है। यह वह चरण है जिसमें परमेश्वर अपना कार्य करने और मानवजाति को बचाने के लिए देह बनते हैं। एक बार जब परमेश्वर का देह में काम खत्म हो जाएगा, तो वह खुलकर आएंगे ताकि सभी उन्हें देख सकें...।"

इस संगति को सुनने से मेरा दिल रोशन हो गया, और मैंने सोचा: "तो बात यह है, बाइबल में भविष्यवाणी की गई है कि प्रभु दो अलग-अलग तरीकों से आएंगे। सबसे पहले, वह गुप्त रूप से आएंगे, और बाद में वह खुलकर आएंगे—यह वास्तव में एक रहस्य है! मैं इतने सालों से बाइबल पढ़ रही हूँ, मुझे कभी इसका पता क्यों नहीं चला? लेकिन अब जब मैं इसके बारे में सोचती हूँ, तो मुझे यकीन है कि बात यही है!"

मेरी बहू ने मुझसे कहा, "माँ, वह समय जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर वचनों से मनुष्य का न्याय करने और से शुद्ध करने के लिए देह में अपना काम करते हैं, वो चरण है जिसमें परमेश्वर गुप्त रूप से आते हैं और इसी समय परमेश्वर लोगों को उजागर करते हैं और हमें हमारे प्रकार के अनुसार अलग करते हैं। आइए सत्य के इस पहलू को बेहतर ढंग से समझने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ें।" फिर उसने पढ़ा: "बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि 'ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है' अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन का सच्चा मार्ग बताता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)

बहन ने अपनी संगति जारी रखी। "परमेश्वर के वचनों से, हम देख सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर गुप्त रूप से अपना कार्य कर रहे हैं। वह केवल वचनों द्वारा लोगों का न्याय करने और उनकी ताड़ना करने का कार्य करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें जीवन में जो कुछ भी चाहिए, उसे हमें प्रदान करने के लिए वे सारे सत्य व्यक्त करते हैं। वे सभी जो परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार करते हैं, जो परमेश्वर के वचनों की ताड़ना और न्याय का अनुभव करते हैं, जो सत्य को समझ जाते हैं, परमेश्वर को जान जाते हैं, जिनके जीवन स्वभाव बदल जाते हैं, वे विजेता हैं जो आपदाओं से पहले परमेश्वर द्वारा बनाए जाएंगे। एक बार जब ये विजेता बन जाएंगे, तो परमेश्वर का महान कार्य सफलतापूर्वक पूरा हो जाएगा, और जो कार्य वह गुप्त रूप से करते हैं, वह भी समाप्त हो जाएगा। उसके बाद है कि परमेश्वर बादलों पर सवार होकर आएंगे और सभी देशों और लोगों के सामने खुले तौर पर दिखाई देंगे। कुछ लोग अपनी-अपनी धारणाओं से आंख मूंदकर चिपके रहते हैं, वे केवल प्रभु यीशु के बादलों पर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, गुप्त रूप से कार्य कर रहे परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए किसी भी सत्य को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। ये सभी ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करते हैं, उनकी अवहेलना करते हैं। यदि वे परमेश्वर की ओर मुड़कर परमेश्वर के अंतिम दिनों के उद्धार को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वे बड़ी आपदाओं के बीच में अपने दाँत पीसेंगे और विलाप करेंगे। प्रकाशितवाक्य 1: 7 में भविष्यवाणी की गयी है: 'देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे। हाँ। आमीन' (प्रकाशितवाक्य 1:7)। इसके बारे में सोचिए: जब प्रभु बादलों पर आएंगे, तो हर कोई उन्हें देखेगा, तब वे बड़े उल्लास के साथ उनका स्वागत करने के अलावा और क्या करेंगे? तो फिर सभी लोग विलाप क्यों करेंगे? इसका कारण यह है कि, जब परमेश्वर खुलेआम आएंगे, तो वे देखेंगे कि जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उन्होंने विरोध किया, वह वास्तव में लौट हुए प्रभु यीशु हैं, तो वे अपनी छाती पीटे बिना, विलाप किए और अपने दाँतों को पीसे बिना कैसे रह सकते हैं?"

मैं सहमति से सिर हिलाते हुए बहन की संगति सूनती रही, फिर मैंने कहा, "ओह, मैंने पहले कभी इस पद को नहीं समझा था। मैंने अपनी कलीसिया में पादरी से पूछा था, लेकिन उन्होंने इसे स्पष्ट रूप से नहीं समझाया। तो अब समझ आया कि यह पद उन सभी के बारे में है जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के उद्धार को स्वीकार करने से मना कर देते हैं और जो उसका विरोध करते हैं।" उस क्षण, मैं उस समय के बारे में सोचे बिना न रह सकी जब मेरे परिवार ने मेरे साथ बार-बार सुसमाचार साझा किया था लेकिन मैंने प्रतिरोध किया और उसे स्वीकारने से इंकार किया। मैं बहुत व्यथित महसूस कर रही थी। पश्चताप से भरकर मैंने बहन से कहा, "अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन न पढ़ा होता, अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल के दरवाजे को न खोला होता और मुझे एक तलाश करने वाला दिल रखने न दिया होता, तो मुझे डर है कि मैं अभी भी तुम लोगों की संगतियों को नहीं सुनती बल्कि प्रभु यीशु के बादल पर सवार होकर सभी लोगों के सामने खुलकर आने की प्रतीक्षा करने पर ही आसक्त रहती। मैं सच में बहुत अज्ञानी और मूर्ख हूँ! अब जाकर मुझे पता चला कि परमेश्वर के गुप्त कार्य का चरण वास्तव में हमारे लिए परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकारने का, अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्यागने का अद्भुत अवसर है ताकि हम पूर्ण उद्धार पा सकें! जब परमेश्वर बादलों पर सवार होकर लोगों के सामने खुलकर प्रकट होंगे, तब उनका उद्धार का कार्य पहले ही पूरा हो चुका होगा और वे भले को पुरस्कार देना और बुरे को दंड देना शुरू करेंगे। और जब वो होने लगेगा, तब भले ही मैं पश्चाताप में पूरी तरह डूब ही क्यों न जाऊँ, बहुत देर हो चुकी होगी। मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि उन्होंने मुझे नहीं त्यागा और मुझे उद्धार का यह अवसर प्रदान किया। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार करना चाहती हूँ!"

बाद में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में शामिल होने की पहल की और अपने पति, पुत्र और बहू की तरह मैं हर दिन परमेश्वर के वचनों को पढ़ती और सत्य पर संगति करती हूँ। मैं परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, शुद्धि और उद्धार का अनुभव कर रही हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बड़े परिवार में, मैं एक सच्चा कलीसियाई जीवन जी रही हूँ, और मेरी आत्मा शांति और आनंद से भरी है। मैं वास्तव में महसूस करती हूँ कि मेरे लिए परमेश्वर का प्यार कितना महान है; बस मैं ही बहुत संवेदनहीन थी जो मैंने परमेश्वर को इतनी देर इंतजार करवाया। मैं परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ कि मुझे हर कदम पर मार्गदर्शन देते और राह दिखाते हुए परमेश्वर के परिवार में वापस लाने के लिए उन्होंने सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को इतनी मेहनत से व्यवस्थित किया—मुझ तक एक अलग तरह का उद्धार लाने के लिए मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ!

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