158 मानवता में परमेश्वर के कार्य का तरीक़ा और सिद्धांत
1
जब परमेश्वर देहधारी न था, तो उसके वचन इंसान समझ न पाता था,
क्योंकि उसकी दिव्यता से आये थे वचन।
न समझ पाता था वो उनका प्रसंग या दृष्टिकोण।
वे आए थे आत्मिक जगत से,
जिसे कोई देख नहीं सकता, न जिससे गुज़र सकता है।
जब परमेश्वर देहधारी हुआ, इंसानी ज़ुबान में वो बोला,
इंसान जो देखता, कल्पना करता उसके ज़रिये,
उसे समझ आए ऐसी भाषाओं, तरीकों के ज़रिये,
ईश्वर ने अपनी दिव्य इच्छा और स्वभाव को दिखाया।
तब इंसान जान पाया परमेश्वर को, समझा उसके मानकों-इरादों को।
यह था मानवता में काम करने का परमेश्वर का सिद्धान्त व तरीका।
2
जब काम किया ईश्वर ने मानवता में, उसने व्यक्त किए कई सत्य,
काम की कई विधियाँ, इंसानी तरीके से।
उसका स्वभाव, इच्छा और जो है उसके पास,
सब व्यक्त किए गए ताकि इंसान उन्हें जाने।
जाना उसने परमेश्वर का सार और स्वरूप,
जो स्वयं परमेश्वर की मूल पहचान और पद को दर्शाए।
जब परमेश्वर देहधारी हुआ, इंसानी ज़ुबान में वो बोला,
इंसान जो देखता, कल्पना करता उसके ज़रिये,
उसे समझ आए ऐसी भाषाओं, तरीकों के ज़रिये,
ईश्वर ने अपनी दिव्य इच्छा और स्वभाव को दिखाया।
तब इंसान जान पाया परमेश्वर को, समझा उसके मानकों-इरादों को।
यह था मानवता में काम करने का परमेश्वर का सिद्धान्त व तरीका।
मानव-पुत्र ने देह में साफ़ तौर पर परमेश्वर के स्वभाव, सार को व्यक्त किया।
उसकी मानवता इंसान और ईश्वर के बीच न थी बाधा,
बल्कि था इकलौता तरीका जिससे इंसान ईश्वर से जुड़ पाता।
जब परमेश्वर देहधारी हुआ, इंसानी ज़ुबान में वो बोला,
इंसान जो देखता, कल्पना करता उसके ज़रिये,
उसे समझ आए ऐसी भाषाओं, तरीकों के ज़रिये,
ईश्वर ने अपनी दिव्य इच्छा और स्वभाव को दिखाया।
तब इंसान जान पाया परमेश्वर को, समझा उसके मानकों और इरादों को।
यह था मानवता में काम करने का परमेश्वर का सिद्धान्त व तरीका।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित