11. मेरा प्रभु के साथ पुनर्मिलन हुआ है
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : "अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। वे लोग जो नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का शाश्वत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास, सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल की बजाय, बस मैला पानी ही है जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। ... परमेश्वर के कार्य के चरण उमड़ती लहरों और गरजते तूफानों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते हो। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? तुम अपने हाथों में जो थामे हो वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। तुम जो शास्त्र पढ़ते हो वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और ये बुद्धिमत्ता के वचन नहीं हैं जो मानव जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती है? क्या तुम परमेश्वर से अकेले में मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग को सौंप देने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के इस अंश ने मुझे अपने पहले वाले विश्वास के बारे में सोचने पर मजूबर कर दिया। चूंकि मैं धार्मिक धारणाओं और बाइबल के वचनों से चिपकी हुई थी, मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार के दरवाज़े बंद कर दिए। परमेश्वर ने अद्भुत तरीकों का प्रयोग किया ताकि प्रभु के लौटने पर मुझे उसकी वाणी सुनने और प्रभु का स्वागत करने का सौभाग्य मिल सके।
कुछ साल पहले, एक सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गई और बगल में रखी बाइबल को खोला। मैंने प्रभु यीशु के फ़रीसियों को फटकारने के बारे में पढ़ा: "यीशु ने परमेश्वर के मन्दिर में जाकर उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया, और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं; और उनसे कहा, 'लिखा है, "मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा"; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो'" (मत्ती 21:12-13)। उस वक़्त मैं थोड़ी उदास थी। मुझे लगने लगा कि आज की कलीसिया की हालत भी व्यवस्था के युग के अंत के मंदिर जैसी ही है। कलीसिया के पादरी और एल्डर हमेशा कहते थे कि विश्वासियों को एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए, लेकिन उनके बीच जलन की वजह से हमेशा विवाद हुआ करते थे, और भेंटों को लेकर बहस करते थे। यहां तक कि वे विश्वासियों के लिए प्रार्थना करने के लिए रिश्वत लेते थे, और कभी-कभी तो प्रार्थना में लगाए गए समय को इस बुनियाद पर तय किया जाता था कि उन्हें कितनी भेंट मिली है। कलीसिया के ज़्यादातर सदस्य नकारात्मक और कमज़ोर थे, और सभाओं में लोगों की गिनती हर दिन कम होती जा रही थी। पादरी और एल्डर दिल से धर्मोपदेश नहीं देते थे और वे प्रभु के समुदाय को अच्छे से रास्ता दिखाने का तरीका नहीं खोजते थे, लेकिन फिर भी विश्वासियों की शादियाँ करवाने में उन्हें कोई थकान नहीं होती थी। कलीसिया आराधना की जगह होनी चाहिए, लेकिन वो विवाह-स्थल बन चुकी थी। मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकी, "पादरी और एल्डर प्रभु की राह से भटक गए हैं। कलीसिया की भावना बिल्कुल धर्मनिरपेक्ष है। यह व्यवस्था के युग के अंत की तरह है, जब मंदिर खाली पड़ा रहता था और वहाँ चोरों ने अड्डा बना लिया था। क्या वापस आने पर प्रभु ऐसी कलीसिया में आएगा?"
मैं ऐसा सोच ही रही थी कि मेरे फ़ोन का अलार्म बज उठा, और जब मैंने इसे बंद किया, तो मैंने एक यूट्यूब वीडियो का सुझाव देखा जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से था। मैं हैरान थी। मैंने कभी भी इस कलीसिया के चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया, तो मुझे यह सूचना क्यों दिखाई जा रही थी? फिर मुझे याद आया कि एक महीना पहले, मेरी सहेली मुझे वहाँ एक धर्मोपदेश सुनाने के लिए लेकर गई थी, और वहाँ मैंने जो कुछ भी सुना वो नया और ज्ञानवर्धक था। मैंने सच में उससे कुछ हासिल किया था। मैं उसके बारे में और जानना चाहती थी, लेकिन ये गवाही दे रहे थे कि प्रभु यीशु वापस आ चुका है, और वह अंत के दिनों में न्याय का काम कर रहा है और कई सत्यों को व्यक्त कर रहा है, और "वचन देह में प्रकट होता है" नाम की किताब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के व्यक्त वचनों से भरी हुई है। उनका कहना था कि वो लोग सभाओं में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और उन पर संगति करते हैं। मुझे तो यह बात बिल्कुल समझ नहीं आई। पादरी और एल्डर हमेशा हमसे कहते आ रहे हैं कि परमेश्वर के सभी वचन और काम बाइबल में हैं, और इसके बाहर परमेश्वर के वचन और काम मौजूद नहीं हैं। तो ये लोग ऐसी गवाही कैसे दे सकते हैं कि प्रभु ने नए वचन व्यक्त किए हैं? मामला चाहे कोई भी हो, विश्वासियों की कई पीढ़ियों ने बाइबल पर अपने विश्वास की बुनियाद रखी है, इसलिए बाइबल में विश्वास का मतलब है प्रभु में विश्वास रखना करना। कोई और चीज़ प्रभु में विश्वास कैसे हो सकती है? जब भी मेरी सहेली कहती थी कि मैं कलीसिया में कुछ और धर्मोपदेश सुनने उसके साथ चलूँ, तो मैं मना कर देती। तो, जब मैंने सर्वशिक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का लिंक अपने फ़ोन पर देखा, तो मैंने उस पर टैप नहीं किया।
लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उसके बाद कई दिनों तक मुझे यूट्यूब सुझावों में कलीसिया के चैनल की फ़िल्में और स्तुति गीत दिखाई देते रहे। मैंने सोचा, "मैंने इस चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है, लेकिन मुझे ये सुझाव मिलते रहते हैं। क्या प्रभु मुझे इस तरफ़ ले जा रहे हैं? क्या प्रभु की इच्छा है कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का चैनल देखूँ?" यह सोचकर मैंने प्रभु से प्रार्थना करनी शुरू की: "हे प्रभु! ये वीडियो मेरे फ़ोन पर बार-बार क्यों दिखाई दे रहे हैं? इन लोगों का कहना है कि तुम वापस आ चुके हो। क्या यह सच है? क्या मुझे ये वीडियो देखने चाहिए? प्रभु, मुझे रास्ता दिखाओ।" प्रार्थना करने के बाद, प्रभु यीशु के ये वचन मेरे दिमाग में आए: "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:3)। प्रभु का आना बहुत बड़ी बात है, तो मैंने सोचा, अगर मैंने इस बारे में सुना है, तो मुझे विनम्रता के साथ इसके बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए, पता करना चाहिए, और ध्यान से विचार करना चाहिए कि प्रभु यीशु क्या सचमुच सर्वशक्तिमान परमेश्वर बनकर वापस आया है। अगर मैंने इसकी खोज या जाँच-पड़ताल नहीं की, और प्रभु सच में वापस आया है, तो क्या मैं उसकी वापसी पर उसका स्वागत करने का मौका नहीं गँवा दूँगी? यह सोचकर, मैंने कलीसिया के कुछ वीडियो देखने का फ़ैसला किया। जब मैंने उसकी वेबसाइट देखी, तो पाया कि वहाँ काफ़ी कुछ मौजूद था, जैसे फ़िल्में, भजन वीडियो, विशेष समूहगान, और अनुभवों एवं गवाहियों पर लेख। एक भजन का वीडियो, "मेरे प्रिय, इंतज़ार करो मेरा", उसके बोलों ने मुझे हिलाकर रख दिया। मुझे याद आने लगी उस वक़्त की जो मैंने एक वीरान कलीसिया में बिताए थे, एक ऐसी कलीसिया की तलाश में जहाँ पवित्र आत्मा का काम हो। मैंने जितना उस साइट को देखा, मुझे उतना ही पोषण हासिल हुआ। मुझे लगने लगा कि मुझे कलीसिया को ज़्यादा समझना और ज़्यादा जानना चाहिए, तो मैंने उनकी वेबसाइट पर और फ़िल्में देखीं।
एक दिन मैंने एक सुसमाचार फ़िल्म देखी जिसमें परमेश्वर और बाइबल के रिश्ते के बारे में बताया गया था। उसमें परमेश्वर के वचनों का एक अंश था, जो मैं कभी भी भूल नहीं सकती: "बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो। ... अधिकतर लोग साधारणत: यह नहीं समझते कि उन्हें परमेश्वर पर विश्वास क्यों करना चाहिए, और न ही वे यह समझते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास कैसे किया जाए, और वे बाइबल के अध्यायों का गूढ़ार्थ निकालने के लिए आँख बंद करके सुराग ढूँढ़ने के अलावा कुछ नहीं करते। लोगों ने कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा का अनुसरण नहीं किया है; शुरुआत से ही उन्होंने हताशापूर्वक बाइबल का अध्ययन और अन्वेषण करने के अलावा और कुछ नहीं किया है, और किसी ने कभी बाइबल के बाहर पवित्र आत्मा का नवीनतम कार्य नहीं पाया है। कोई कभी बाइबल से दूर नहीं गया है, न ही उसने कभी ऐसा करने की हिम्मत की है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। इस भाग को देखने के बाद, मैंने सोचा, "मेरा भी बाइबल के बारे में यहीं रवैया है। मुझे लगता है कि यह प्रभु का प्रतिनिधित्व करता है, और प्रभु में विश्वास रखने का मतलब है बाइबल में विश्वास रखना, और इन दोनों को अलग नहीं किया जा सकता। लेकिन मुझे यह बात नहीं समझ आई : बाइबल प्रभु की गवाही है और हमारे विश्वास की बुनियाद है। ईसाई होने के नाते, हमने दो हज़ार सालों से बाइबल में विश्वास रखा है, तो क्या ऐसा हो सकता है कि यह प्रभु की इच्छा के मुताबिक न हो? आख़िर यहाँ हो क्या रहा है?"
मैंने फ़िल्म देखना जारी रखा इस उत्सुकता के साथ कि मुझे इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे। सुसमाचार पढ़ने वाले किरदार ने परमेश्वर के वचनों से एक और अंश पढ़ा: "वे मेरा अस्तित्व मात्र बाइबल के दायरे में ही सीमित मानते हैं, और वे मेरी बराबरी बाइबल से करते हैं; बाइबल के बिना मैं नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापोंपर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत सेलोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, इस हद कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूँ, वे उसे मापने और मेरी निंदा करने के लिए बाइबल के छंदों का उपयोग करते हैं। वे मेरे साथ अनुकूलता का मार्ग या सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग नहीं खोजते, बल्कि बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजते हैं, औरविश्वास करते हैं कि कोई भी चीज़ जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यपरायण वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के साथ अनुकूल होने की कोशिश नहीं की, बल्कि कर्मठतापूर्वक व्यवस्था का इस हद तक अक्षरशः पालन किया कि—यीशु पर पुराने विधान की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए—निर्दोष यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उनका सार क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के साथ अनुकूलता के मार्ग की खोज नहीं की? उनके दिमाग़ में पवित्रशास्त्र का एक-एक वचन घर कर गया था, जबकि मेरी इच्छा और मेरे कार्य के चरणों और विधियों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। वे सत्य की खोज करने वाले लोग नहीं, बल्कि सख्तीसे पवित्रशास्त्र के वचनों से चिपकने वाले लोग थे; वे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग नहीं, बल्कि बाइबल में विश्वास करने वाले लोग थे। दरअसल वे बाइबल की रखवाली करने वाले कुत्ते थे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ने के बाद, उन्होंने अपनी संगति जारी रखी। वे कहने लगे कि विश्वासी ये सोचते हैं कि प्रभु में विश्वास का मतलब है बाइबल में विश्वास रखना, और अगर ऐसा नहीं है तो इसे प्रभु में विश्वास रखना नहीं कह सकते हैं, लेकिन ऐसा सोचना गलत है। उन्होंने ये भी कहा, "जब प्रभु यीशु उपदेश दे रहा था और काम कर रहा था, तो उसके अनुनायियों ने धर्मग्रंथों से हटकर प्रभु के काम और वचन को स्वीकार किया, तो क्या हम ऐसा कह सकते हैं कि वे लोग प्रभु के सच्चे विश्वासी नहीं थे? यहूदी धर्म के फरीसी धर्मग्रंथों से चिपके रहे लेकिन उन्होंने सत्य व्यक्त करने वाले और छुटकारे का काम करने वाले प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया। तो वहाँ क्या समस्या थी? अगर कोई इंसान धर्मग्रंथों से चिपका रहता है, तो क्या इसका मतलब है कि वह प्रभु को जानता है? क्या इसका मतलब है कि वो इंसान परमेश्वर के बताए रास्ते पर चलता है, उसका आदर करता है और उसके सामने समर्पित है? परमेश्वर सृष्टि का प्रभु है, सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है, जबकि बाइबल परमेश्वर के पिछले काम और वचनों का सिर्फ़ एक अभिलेख है। उसे परमेश्वर के बराबर कैसे समझा जा सकता है? प्रभु में विश्वास रखने वाले बिना समझे बाइबल में विश्वास रखते हैं, उसकी आराधना करते हैं, और उसे परमेश्वर के बराबर मानते हैं, यहाँ तक कि वो प्रभु और उसके काम की जगह बाइबल को रख देते हैं। क्या ये प्रभु के मूल्य को कम करना और ईश-निंदा करना नहीं है? क्या हम बाइबल से चिपक कर रहने वाले इंसान को, जो प्रभु के प्रकटन और काम को खोजने की कोशिश नहीं करता, उसे सचमुच विश्वासी या प्रभु का अनुयायी मान सकते हैं? फरीसियों को प्रभु यीशु ने ये कहा: 'तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते' (यूहन्ना 5:39-40)। उसने ये भी कहा: 'मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता' (यूहन्ना 14:6)। प्रभु यीशु परमेश्वर और धर्मग्रंथों के बीच के संबंध के बारे में बिल्कुल साफ़ था। धर्मग्रंथ सिर्फ़ परमेश्वर की गवाही देते हैं—वे प्रभु का प्रतिनिधित्व नहीं करते, और न ही वे उसके उद्धार के काम की जगह ले सकते हैं। सिर्फ़ बाइबल से चिपके रहने से हमें अनंत जीवन नहीं मिल सकता। सिर्फ़ मसीह ही मार्ग, सत्य और जीवन है। ज़िंदगी हासिल करने के लिए, हमें प्रभु की तलाश करनी होगी!"
फिल्म देखकर मैं बहुत प्रेरित हुआ। मुझे लगा कि इसमें बताई गई हर बात सही है और प्रभु यीशु के वचनों के मुताबिक है। मैं समझ गई कि बाइबल वाकई प्रभु का प्रतिनिधित्व नहीं करती। हमें ज़िंदगी प्रभु देता है, बाइबल नहीं। बाइबल में विश्वास रखने को हम प्रभु में विश्वास रखना, उसका अनुसरण करने के बराबर नहीं मान सकते! लेकिन मैं हमेशा यही सोचती थी कि बाइबल उसका प्रतिनिधित्व करती है। क्या मैं बाइबल को प्रभु से ऊँचा दर्जा नहीं देती थी? मैंने जितना इस बारे में सोचा, उतना मुझे लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में सच्चाई है, ये मेरी असमंजस की स्थिति को दूर कर सकते हैं। मैं जानती थी कि मुझे संजीदगी से खोज और जाँच-पड़ताल करनी चाहिए ताकि प्रभु का स्वागत करने का मौका मेरे हाथ से न निकले। इसके बाद, मैंने अपनी सहेली के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में वापस जाने का फ़ैसला किया। जब हम कलीसिया में पहुँचे, तो भाइयों और बहनों ने हमारा स्वागत बहुत ही प्रेम से किया और सब्र के साथ हमसे सहभागिता की। मैंने उन्हें अपने असमंजस के बारे में बताया, और कहा, "पादरी और एल्डर सभाओं में हमेशा यह कहते हैं कि परमेश्वर का सारा काम और वचन बाइबल में है, इसलिए इससे बाहर कोई भी चीज़ उसका काम या वचन नहीं है। लेकिन आप गवाही दे रहे हैं कि प्रभु यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर बनकर वापस आया है और वह अंत के दिनों में नया काम कर रहा है, नए वचन व्यक्त कर रहा है। आख़िर हो क्या रहा है?"
जवाब में बहन झोउ ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर सुनाए। "बहुत से लोग मानते हैं कि बाइबल को समझना और उसकी व्याख्या कर पाना सच्चे मार्ग की खोज करने के समान है—परन्तु वास्तव में, क्या बात इतनी सरल है? बाइबल की इस वास्तविकता को कोई नहीं जानता कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख और उसके कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और इससे तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ हासिल नहीं होती। बाइबल पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। पुराने नियम सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के युग के अंत तक इस्राएल के इतिहास और यहोवा के कार्य को लिपिबद्ध करता है। पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और पौलुस के कार्य नए नियम में दर्ज किए गए हैं; क्या ये ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं?" "बाइबिल में दर्ज की गई चीज़ें सीमित हैं; वे परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं। सुसमाचार की चारों पुस्तकों में कुल मिलाकर एक सौ से भी कम अध्याय हैं, जिनमें एक सीमित संख्या में घटनाएँ लिखी हैं, जैसे यीशु का अंजीर के वृक्ष को शाप देना, पतरस का तीन बार प्रभु को नकारना, सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान के बाद यीशु का चेलों को दर्शन देना, उपवास के बारे में शिक्षा, प्रार्थना के बारे में शिक्षा, तलाक के बारे में शिक्षा, यीशु का जन्म और वंशावली, यीशु द्वारा चेलों की नियुक्ति, इत्यादि। फिर भी मनुष्य इन्हें ख़ज़ाने जैसा महत्व देता है, यहाँ तक कि उनसे आज के काम की जाँच तक करता है। यहाँ तक कि वे यह भी विश्वास करते हैं कि यीशु ने अपने जीवनकाल में सिर्फ इतना ही कार्य किया, मानो परमेश्वर केवल इतना ही कर सकता है, इससे अधिक नहीं। क्या यह बेतुका नहीं है?" "उस समय, यीशु ने अनुग्रह के युग में अपने अनुयायियों को इन विषयों पर बस उपदेशों की एक श्रृंखला दी, जैसे कि कैसे अभ्यास करें, कैसे एक साथ इकट्ठा हों, प्रार्थना में कैसे याचना करें, दूसरों से कैसा व्यवहार करें इत्यादि। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और उसने केवल यह प्रतिपादित किया कि शिष्य और वे लोग जो उसका अनुसरण करते हैं, कैसे अभ्यास करें। उसने केवल अनुग्रह के युग का ही कार्य किया और अंत के दिनों का कोई कार्य नहीं किया। ... प्रत्येक युग में परमेश्वर के कार्य की स्पष्ट सीमाएँ हैं; वह केवल वर्तमान युग का कार्य करता है और कभी भी कार्य का आगामी चरण पहले से नहीं करता। केवल इस तरह से उसका प्रत्येक युग का प्रतिनिधि कार्य सामने लाया जा सकता है। यीशु ने केवल अंत के दिनों के चिह्नों के बारे में बात की, इस बारे में बात की कि किस प्रकार से धैर्यवान बनें, कैसे बचाए जाएँ, कैसे पश्चाताप करें, कैसे अपने पापों को स्वीकार करें, सलीब को कैसे धारण करें और कैसे पीड़ा सहन करें; उसने कभी इस पर कुछ नहीं कहा कि अंत के दिनों में मनुष्य को किस प्रकार प्रवेश हासिल करना चाहिए या उसे परमेश्वर की इच्छा को किस प्रकार से संतुष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए। वैसे, क्या अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को बाइबल के अंदर खोजना हास्यास्पद नहीं है? महज़ बाइबल को हाथों में पकड़कर तुम क्या देख सकते हो? चाहे बाइबल का व्याख्याता हो या उपदेशक, आज के कार्य को कौन पहले से देख सकता था?" "यदि तुम व्यवस्था के युग के कार्य को देखना चाहते हो, और यह देखना चाहते हो कि इस्राएली किस प्रकार यहोवा के मार्ग का अनुसरण करते थे, तो तुम्हें पुराना विधान पढ़ना चाहिए; यदि तुम अनुग्रह के युग के कार्य को समझना चाहते हो, तो तुम्हें नया विधान पढ़ना चाहिए। पर तुम अंतिम दिनों के कार्य को किस प्रकार देखते हो? तुम्हें आज के परमेश्वर की अगुआई स्वीकार करनी चाहिए, और आज के कार्य में प्रवेश करना चाहिए, क्योंकि यह नया कार्य है, और किसी ने पूर्व में इसे बाइबल में दर्ज नहीं किया है। ... आज का कार्य वह मार्ग है जिस पर मनुष्य कभी नहीं चला, और ऐसा तरीका है जिसे किसी ने कभी नहीं देखा। यह वह कार्य है, जिसे पहले कभी नहीं किया गया—यह पृथ्वी पर परमेश्वर का नवीनतम कार्य है। ... कौन आज के कार्य के प्रत्येक अंश को, बिना किसी चूक के, अग्रिम रूप से दर्ज कर सकता है? कौन इस अति पराक्रमी, अति बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य को, जो परंपरा के विरुद्ध जाता है, इस पुरानी घिसी-पिटी पुस्तक में दर्ज कर सकता है? आज का कार्य इतिहास नहीं है, और इसलिए, यदि तुम आज के नए पथ पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें बाइबल से विदा लेनी चाहिए, तुम्हें बाइबल की भविष्यवाणियों या इतिहास की पुस्तकों के परे जाना चाहिए। केवल तभी तुम नए मार्ग पर उचित तरीके से चल पाओगे, और केवल तभी तुम एक नए राज्य और नए कार्य में प्रवेश कर पाओगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, बहन झोउ ने अपनी सहभागिता जारी रखी। वे बोलीं, "जो भी बाइबल से परिचित है, उसे पता है कि पुराने और नए नियम, व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के काम के दो चरणों के अभिलेख हैं। वे परमेश्वर के काम की गवाही हैं। जब भी परमेश्वर ने काम का कोई चरण पूरा किया, तो उसका अनुभव करने वाले लोगों ने उसके काम और वचन को दर्ज कर लिया, और फिर इन अभिलेखों को बाइबल में संकलित कर लिया गया। लेकिन इन दोनों युगों में परमेश्वर के काम और वचन को बाइबल में पूरी तरह दर्ज नहीं किया गया। बाइबल में प्रभु यीशु के कुछ ही वचन दिए गए हैं। जैसा कि यूहन्ना के सुसमाचार में कहा गया है: 'और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं' (यूहन्ना 21:25)। व्यवस्था के युग में कुछ नबियों की भविष्यवाणियों को धर्मग्रंथों में दर्ज नहीं किया गया था। ये सामान्य बात है। तो जब पादरी और एल्डर कहते हैं कि परमेश्वर के वचन बाइबल में हैं, और उसका कोई भी काम और वचन उसके बाहर नहीं है, तो क्या वे तथ्यों को झुठला नहीं रहे? क्या वे झूठ नहीं कह रहे, धोखा नहीं दे रहे? परमेश्वर सृष्टि का प्रभु है। वह इतना महान और प्रचुर है, उसके काम और वचन बाइबल जैसी एक पुस्तक में पूरी तरह से कैसे समा सकते हैं?" फिर उन्होंने प्रकाशितवाक्य की किताब से पढ़कर सुनाया: "जो सिंहासन पर बैठा था, मैं ने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी" (प्रकाशितवाक्य 5:1)। "इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझ से कहा, 'मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है।'" (प्रकाशितवाक्य 5:5)। उन्होंने सहभागिता की, "यहाँ यह कहा गया है कि इस किताब के अंदर भी और बाहर भी लिखा गया है, अंतर केवल इतना है कि इसे सात मुहरों से सील किया गया है, और सिर्फ़ लौटकर आया अंत के दिनों का प्रभु ही इस किताब को खोल सकता है और सातों मुहरों को खोल सकता है। किताब के अंदर क्या लिखा है, इसे देखने का यही एक तरीका है। प्रकाशितवाक्य में कई बार यह भविष्यवाणी भी की गई है: 'जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है' (प्रकाशितवाक्य अध्याय 2-3)। बाइबल की ये भविष्यवाणियाँ साबित करती हैं कि लौटने पर प्रभु और भी वचन कहेगा। तो क्या लौटेकर आए प्रभु के काम और वचन सच में बाइबल में पहले से दर्ज किए जा सकते हैं? क्या बाइबल में दिए गए परमेश्वर के वचन अंत के दिनों में पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियों को कही गई बातों की जगह ले सकते हैं? क्या वे मेमने की खोली गई किताब की जगह ले सकते हैं? क्या वे अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के काम की जगह ले सकते हैं?" यह सुनकर, मैंने सोचा, "मैंने इन छंदों को काफ़ी बार पढ़ा है। ये सवाल मेरे मन में कभी क्यों नहीं उठे?" बहन ने अपनी सहभागिता जारी रखी: "बाइबल में परमेश्वर का पिछला काम दर्ज है। पुराने नियम के बनने के बहुत सालों बाद, प्रभु यीशु आया और अनुग्रह के युग के लिए छुटकारे का काम किया। तो क्या उसका काम और उसके वचन अपने आप धर्मग्रंथों में शामिल हो गए? परमेश्वर के काम और उसके वचनों का संकलन करके बाइबल बनाई गई होगी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आया है और उसने मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए सभी सत्यों को व्यक्त किया है। क्या ये सत्य अपने आप बाइबल में शामिल हो सकते हैं? तो यह दावा करना कि परमेश्वर के सभी काम और वचन बाइबल में दर्ज हैं, और उसके बाहर कुछ नहीं हो सकता है, एक गलत, बेतुकी राय है, और यह पूरी तरह से इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं का नतीजा है।"
बहन झोउ की सहभागिता सुनना मेरे लिए सच में ज्ञानवर्धक था। मुझे लगा कि उन्होंने सहभागिता की है, वो सब तथ्यों के मुताबिक है। बाइबल सिर्फ़ परमेश्वर के दो चरणों का रिकॉर्ड है: व्यवस्था का युग और अनुग्रह का युग। यह उसके काम की गवाही है, लेकिन वह प्रभु का या अंत के दिनों में उसके काम और वचनों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। प्रभु यीशु के पूरे काम और वचनों को भी बाइबल में दर्ज नहीं किया गया, तो अंत के दिनों में परमेश्वर के काम और वचनों को समय से पहले बाइबल में कैसे दर्ज किया जा सकता था? मैं पादरियों और एल्डरों के शब्दों पर चलती रही, और परमेश्वर के काम और वचनों को बाइबल के लिखे अनुसार सीमित करती रही, और मानती रही कि उसके बाहर की कोई भी चीज़ परमेश्वर से नहीं आ सकती। क्या मैं खुली आँखों से बेकार की बातें नहीं कर रही थी? क्या मैं प्रभु का सीमांकन और उसका तिरस्कार नहीं कर रही थी? मुझे यह सोचकर बहुत अफ़सोस हुआ। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पहले क्यों नहीं पढ़ा? मुझे अंध-श्रद्धा के साथ पादरियों और एल्डरों की बातों पर नहीं चलना चाहिए था, धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के काम का सीमांकन नहीं करना चाहिए था। ये सोच बहुत नुकसानदायक है!
फिर, बहन झोउ ने चर्चा के लिए एक और मुद्दे को उठाया: ऐसा क्यों है कि अंत के दिनों में परमेश्वर के काम और वचनों को स्वीकार किए बिना बाइबल पर क़ायम रहने का मतलब है कि लोग परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते और अनंत जीवन हासिल नहीं कर सकते? उन्होंने कहा, "बाइबल परमेश्वर के काम के दो चरणों का अभिलेख है। वह अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा इंसान के न्याय और शुद्धिकरण के काम की जगह नहीं ले सकती है। व्यवस्था के युग में, परमेश्वर का मुख्य काम था व्यवस्था और पृथ्वी पर लोगों के जीवन की रहनुमाई करने की व्यवस्था और आज्ञाओं की घोषणा करना। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने छुटकारे का काम किया। वह शैतान के कब्ज़े से मानवजाति को छुड़ाने, हमारे पापों से हमें छुटकारा दिलाने, और हमें परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने के योग्य बनाने के लिए क्रूस पर चढ़ गया, ताकि हम परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद ले सकें। लेकिन हमारी पापी प्रकृति और हमारे पाप के मूल को दूर नहीं किया गया। इसी वजह से हम अभी भी झूठ बोलते हैं, पाप करते हैं, परमेश्वर के विरुद्ध बग़ावत करते हैं, उसका विरोध करते हैं, और हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लायक नहीं हैं। इसलिए, प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वो अंत के दिनों में इंसान का न्याय करने और उसे पूरी तरह बचाने के वास्ते सत्य व्यक्त करने के लिए लौटेगा। यूहन्ना के सुसमाचार में कहा गया है, 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। इसमें ये भी कहा गया है, 'जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:48)। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आना, सत्य व्यक्त करना और न्याय का काम करना प्रभु यीशु की भविष्यवाणी के मुताबिक है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन व्यक्त किए हैं और इन वचनों में हर चीज़ के बार में चर्चा की गई है। बाइबल के रहस्यों का खुलासा किया गया है, राज्य के भविष्य के लिए भविष्यवाणियाँ मौजूद हैं, कुछ मानवजाति की मंज़िल पर चर्चा करते हैं, और कुछ मानवजाति के परमेश्वर-विरोध के मूल की वजह का विश्लेषण करते हैं। परमेश्वर ने साफ़ तौर पर उन सत्यों का खुलासा भी किया है जो लोगों के उद्धार के लिए ज़रूरी हैं। इसमें शामिल हैं इंसान को बचाने के लिए परमेश्वर के काम के तीन चरणों की अंदर की कहानी, अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के रहस्य, और परमेश्वर के देहधारण के रहस्य। परमेश्वर खुलासा करता है कि शैतान कैसे मानवजाति को भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर इंसान को बचाने के लिए काम करता है, शैतान द्वारा इंसान की भ्रष्टता का सार और सत्य क्या है, सच्चा विश्वास, समर्पण और परमेश्वर के लिए प्रेम क्या है, सार्थक जीवन कैसे जी सकते हैं, और बहुत कुछ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के व्यक्त सत्य हमें उस अनंत जीवन की ओर ले जाते हैं जो परमेश्वर हमें अंत के दिनों में देता है। अगर हम अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार किए बिना बाइबल से चिपके रहेंगे, तो हम कभी भी सत्य हासिल नहीं कर पाएंगे, पाप का त्याग नहीं कर पाएंगे, पूरी तरह बचाए नहीं जाएंगे, और स्वर्ग के राज्य के अंदर नहीं जा पाएंगे।"
सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाइयों और बहनों के साथ मेरी सहभागिता की मदद से मुझे समझ आया कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय का काम बाइबल की भविष्यावाणियों को पूरी तरह से साकार करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, ये परमेश्वर की वाणी हैं, और ये शाश्वत जीवन का मार्ग है जो परमेश्वर हमें अंत के दिनों में देता है! मैं सोचती थी कि परमेश्वर का काम और वचन बाइबल तक सीमित हैं क्योंकि मैं पादरियों और एल्डरों की बात को मानती थी, और मैं इन धारणाओं से चिपकी हुई थी। मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर को स्वीकार करने या ढूंढने से इनकार कर दिया। मैं परमेश्वर के वर्तमान वचनों का पोषण हासिल नहीं कर पाई और अंधकार में डूब गई। अगर मुझे परमेश्वर की कृपा और उद्धार से यूट्यूब पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के वीडियो देखने और परमेश्वर की वाणी को सुनने का सौभाग्य न मिला होता तो मैं अभी भी पादरियों और एल्डरों के पीछे चल रही होती, और मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर के काम को ढूंढा नहीं होता या उसकी जाँच-पड़ताल न की होती। अगर ऐसा होता, तो मैं सौ वर्षों तक बाइबल पढ़ कर भी प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं कर पाती। मैं समझती हूँ कि अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार हासिल करना पूरी तरह उसकी रहनुमाई की वजह से है। ये परमेश्वर का अद्भुत उद्धार है!