45. खोया फिर पाया

लेखिका: शियेली, अमेरिका

मैं एक खुशनुमा शानदार जीवन-स्तर की तलाश में अमेरिका आया। शुरू के कुछ सालों में तो काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन वक्त के साथ-साथ मैंने अपनी कम्पनी शुरू कर दी, मेरी अपनी कार और अपना घर वगैरह हो गया। मैं वैसा ही "खुशनुमा" जीवन जीने लगा जिसका मैंने सपना देखा था। इस दौरान, मेरे कुछ दोस्त बन गए; अपने खाली समय में हम लोग बाहर जाते, खाते-पीते, और कुछ मौज-मस्ती करते। हम लोगों की आपस में काफी अच्छी पटती थी, और मुझे लगा कि मुझे अच्छे इंसानों का साथ मिल गया है। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि ये सब पीने-पिलाने वाले साथी हैं जिनके पास कहने को कुछ ठोस बातें नहीं हैं। जब कभी मुझे कोई चिंता होती, तो उनमें से एक भी ऐसा नहीं था जिससे मैं अपनी परेशानी कह पाता। इसके अलावा, वे लोग मुझे ठगने के षडयंत्र भी रचते रहते थे: एक ने मुझसे झूठ बोला कि चीन में उसकी माँ बहुत बीमार है और जब मैंने उसे पैसा दिया तो वो लेकर नौ-दो ग्यारह हो गया। दूसरे ने, जो कि मेरे होमटाउन से ही था, मुझसे झूठ बोला कि उसे अपने प्रॉजेक्ट के लिए पैसे की ज़रूरत है और वो भी मुझसे पैसे ठग कर ले गया। और जो मेरी सबसे नज़दीकी और प्यारी गर्लफ्रेंड थी, उसने मुझे धोखा देकर मुझसे बड़ी रकम हड़प ली। उस पैसे को इकट्ठा करने में मेरे बरसों का खून-पसीना और आँसू मिले हुए थे। इन लोगों की संगदिली और समाज की उदासीनता से मैं खिन्न हो गया और मेरा दिल टूट गया। कुछ समय के लिए तो जीने का आत्म-विश्वास ही चला गया; मेरा दिल सूना था, मैं दर्द और बेबसी का शिकार हो गया। उसके बाद, मैंने अपना खालीपन भरने के लिए बाहर खाना, शराब पीना और मौज-मस्ती करना शुरू कर दिया। लेकिन मैं जानता था कि ये अस्थायी दैहिक-सुख मेरी आध्यात्मिक पीड़ा का समाधान नहीं कर सकते।

2015 की शरद ऋतु में, तकदीर से, मेरी मुलाकात एक महिला से हुई जो आज मेरी पत्नी है। उस समय तक वो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर चुकी थी। जब उसने मुझे राज्य का सुसमाचार सुनाया, तो मुझे आस्था रखने वाली बात बहुत अच्छी लगी, लेकिन चूँकि मैं अपने काम में काफी व्यस्त रहता था, इसलिए मैंने कहा: "मेरे पास परमेश्वर में आस्था रखने का समय नहीं है, लेकिन अगर तुम रखना चाहो, तो रख सकती हो। मेरे लिए इतना ही काफी है कि परमेश्वर का अस्तित्व है।" छह महीनों के बाद एक दिन, मेरी पत्नी ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की एक वीडियो दिखायी—नूह का समय आ चुका है। वीडियो में मैंने जो कुछ देखा उससे मैं चौंक गया: आपदाओं के सामने इंसान बौना और कमज़ोर साबित होता है, वह ज़रा-सा भी आघात नहीं सह पाता। अचानक मुझे एहसास हुआ कि इंसान के पास कितना भी पैसा हो, वह कितनी ही विलासिता का जीवन जी रहा हो या उसकी हैसियत कितनी भी कम या ज़्यादा हो, सब व्यर्थ है। आपदा के वक्त, जब मौत हमारे सामने हो, तो सारी चीज़ें निरर्थक और बेकार साबित होती हैं। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा है: "हालांकि मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि नूह के दिनों में लोग इस हद तक खाते और पीते थे, विवाहों में लगे रहते थे, कि यह सब देखना परमेश्वर के लिए असहनीय हो गया था, इसलिए उसने समस्त मानवजाति के विनाश के लिये एक बहुत बड़ी बाढ़ भेजी और बस नूह के परिवार के आठ सदस्यों, और सभी प्रकार के पशु-पक्षियों को बचाया। हालाँकि अंत के दिनों में जिन्हें परमेश्वर ने जीवित बचाकर रखा, ये वे लोग हैं जो अंत तक परमेश्वर के स्वामिभक्त रहे हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम जानते थे? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक महान काम किया है)। "अब वर्तमान युग को देखो : नूह जैसे धर्मी मनुष्य, जो परमेश्वर की आराधना कर सके और बुराई से दूर रह सके, होने बंद हो गए हैं। फिर भी परमेश्वर इस मानवजाति के प्रति दयालु है, और इस अंतिम युग में अभी भी उन्हें दोषमुक्त करता है। परमेश्वर उनकी खोज कर रहा है, जो उसके प्रकट होने की लालसा करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके वचनों को सुनने में सक्षम हैं, जो उसके आदेश को नहीं भूले और अपना तन-मन उसे समर्पित करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके सामने बच्चों के समान आज्ञाकारी हैं, और उसका विरोध नहीं करते" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। इन वचनों में मैं इंसान को बचाने की परमेश्वर के इरादे की जल्दबाज़ी को महसूस कर सका। मैंने इस पर विचार किया कि आजकल कोई भी सकारात्मक चीज़ों को पसंद करता हुआ या परमेश्वर की वापसी के लिए तरसता हुआ नज़र नहीं आता। लोगों के दिलों में स्वार्थ, अहंकार और कपट भरा हुआ है। दौलत और शोहरत के लिए इंसान एक-दूसरे के खिलाफ साज़िश करता है, एक-दूसरे को धोखा देता है, यहाँ तक कि एक-दूसरे की हत्या कर देता है। लोग अपने इंद्रिय-सुख के गुलाम हैं, अपनी नैतिकता और सदाचार को ताक पर रखकर, अपनी अंतरात्मा को दफ्न कर देते हैं। लोगों ने इंसानियत पूरी तरह गँवा दी है...। अंत के दिनों में इंसान की भ्रष्टता का स्तर नूह के युग की तुलना में सचमुच बहुत ज़्यादा है। लेकिन परमेश्वर ने इंसान को उसकी दुष्टता और भ्रष्टता के कारण पूरी तरह से नष्ट नहीं किया है, बल्कि वह तरह-तरह की आपदाओं के द्वारा इंसान को चेता रहा है और हमें परमेश्वर की ओर मुड़ने का एक अवसर दे रहा है। जब मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, तो परमेश्वर के प्रेम से मेरा दिल बेहद द्रवित हो गया। मैंने यह भी सोचा कि किस तरह दुनिया दिनों-दिन दुष्ट और भ्रष्ट होती जा रही है, आपदाएँ भी और ज़्यादा भयंकर होती जा रही हैं, और परमेश्वर किस तरह दुष्ट दुनिया पर अपना गुस्सा निकालता है, इंसान को नष्ट करता है। मैं जिस दौलत और ओहदे के पीछे भाग रहा था, वे भी मुझे बचा नहीं पाएँगे। परमेश्वर के सामने आकर और सत्य की खोज करके ही इंसान सुरक्षा पा सकता है। इन सारी बातों पर विचार करते हुए, मुझे लगा जैसे मैं सपने से जागा हूँ—मेरे अंतर्ज्ञान ने मुझे बताया कि मुझे परमेश्वर के सामने आकर उसके उद्धार को स्वीकारना चाहिये, क्योंकि बचाए जाने का यही एकमात्र रास्ता है। अगर मुझे अस्थायी देह-सुखों की खातिर उद्धार का अवसर गँवाना पड़ा, तो मुझे आजीवन पश्चात्ताप रहेगा! फलस्वरूप, मई 2016 में, मैंने परमेश्वर में आस्था रखनी शुरू कर दी और मैं कलीसिया की सभाओं में जाने लगा।

आस्था रखने के कुछ ही समय बाद, मैं इंटरनेट पर नज़र डाल रहा था कि मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा और तिरस्कार करने वाला नकारात्मक दुष्प्रचार दिखायी दिया। उसको पढ़कर पल भर के लिए तो मैं स्तब्ध रह गया। यह क्या सामग्री है—"लोगों से दान में पैसे लेती है, मर्द और औरत की मर्यादाओं का सम्मान नहीं करती?" पढ़कर ये बात मुझे तर्कपूर्ण लगीं, मेरे लिए सही और गलत में, तथ्यों और कल्पना में अंतर करना मुश्किल हो गया। मैं दुविधा में हिचकोले खाने लगा, नकारात्मक बातें पढ़कर परमेश्वर में मेरी आस्था की जलती अग्नि तुरंत बुझ गयी। उसी समय, मैंने अपनी सास को अपनी पत्नी से फोन पर कलीसिया को पैसे दान करने वाली बात करते सुन लिया, इससे मुझे ऑनलाइन पढ़ी हुई बात पर और ज़्यादा यकीन हो गया। उसके बाद, मैंने अपनी सास को पैसे दान करने से मना कर दिया और पत्नी से भी आग्रह किया कि वो अपनी आस्था छोड़ दे ताकि हम झाँसे में न आएँ। लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे साफ-साफ कह दिया: "आपने ऑनलाइन जो कुछ पढ़ा है उसमें कोई सच्चाई नहीं है। वे सारी अफवाहें हैं, सारी झूठी गवाहियाँ हैं! ..." फिर वो मुझसे सहभागिता करने के लिए परमेश्वर के वचनों की पुस्तक ले आयी, लेकिन उन अफवाहों के कारण मेरी आँखों पर पहले ही परदा पड़ चुका था और मैंने उसकी कोई बात नहीं सुनी। थोड़े ही समय बाद, कुछ भा‌ई-बहन हमारे घर आए, लेकिन मैंने उनकी बातों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। इन दिनों, मैं पूरी तरह से अंधेरे में जी रहा था, इस बात को लेकर चिंतित रहता था कि मेरी पत्नी और सास ठगे जा रहे हैं। मैं लगातार बेचैन रहता था, न खा पाता था, न रात को ठीक से सो पाता था, मैं मानसिक रूप से टूट गया था। मुझे दुखी देखकर, मेरी पत्नी ने मेरे साथ फिर से सहभागिता करने की कोशिश की। उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की एक पुस्तक खोली और चुनकर मुझे यह अंश दिखाया: "मुझे लोगों की धारणाएँ या विचार नहीं चाहिए, मुझे तुम्हारा धन या संपत्ति तो बिलकुल भी नहीं चाहिए। मुझे बस तुम्हारा दिल चाहिए। समझे? यह मेरी इच्छा है; और इतना ही नहीं, मैं बस यही प्राप्त करना चाहता हूँ" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 61)। उसने मुझे कलीसियाई जीवन का प्रबंधन करने वाले कुछ सिद्धांत पढ़कर सुनाए: "कलीसिया प्रवचनों में किसी को भी दान माँगने की अनुमति नहीं देती, न ही किसी और कारण से दान माँगने की अनुमति दी जाती है।" (कार्य व्यवस्था में कलीसिया की स्थापना और कलीसियाई जीवन के प्रबंधन के सिद्धांत)। उसने सहभागिता में मुझसे ये बातें साझा कीं: "सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में कलीसियाई जीवन के हर पहलू के लिए कठोर अपेक्षित मानक और सिद्धांत हैं। जहाँ तक पैसा दान करने की बात है, तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन साफ तौर पर कहते हैं कि परमेश्वर को इंसान का पैसा और भौतिक चीज़ें नहीं चाहिए। कलीसिया के कार्य सिद्धांत भी साफ तौर पर उल्लेख करते हैं कि कलीसिया किसी को भी पैसे दान करने का उपदेश देने की अनुमति नहीं देता और न ही लोगों को प्रोत्साहित करता है कि वे किसी भी कारण से धन दें। चूँकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करती आ रही हूँ, इसलिए कलीसिया ने कभी मुझे एक पैसा भी दान करने लिए नहीं कहा। कलीसिया लोगों को पैसा दान करने के लिए कहने के बजाय, उल्टे भाई-बहनों को जो सच्चे विश्वासी हैं, उन्हें हर तरह की पुस्तकें, सीडी और अन्य चीज़ें मुफ्त में देती है। अब, जो भाई-बहन परेशानी से गुज़र रहे हैं, उनकी मदद के लिए मेरी माँ कुछ अंशदान देना चाहती हैं। वे यह अपनी इच्छा से कर रही हैं; उन्हें इसके लिए कोई मजबूर नहीं कर रहा। खैर, ज़रूरत के वक्त लोगों की मदद करना नेक काम है, इसलिए इसमें निंदा करने का कोई कारण नहीं है, है न?"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने और अपनी पत्नी की सहभागिता सुनने के बाद, मुझे अचानक वो बात याद आ गयी जो एक बहन ने अपनी सहभागिता में मुझसे साझा की थी: सर्वशक्तिमान परमेश्वर नए सदस्यों से पैसों का दान स्वीकार नहीं करता, अगर कोई पैसा दान करना चाहता है, तो पहले उसे प्रार्थनाओं के कई दौर से गुज़रना पड़ता है ताकि उन्हें इस बात का यकीन हो जाए कि वह व्यक्ति ऐसा अपनी इच्छा से करना चाहता है, और दान देने के बाद उस व्यक्ति को पछतावा नहीं होगा। अगर दान देने वाला पूरी तरह से इच्छुक नहीं है, तो कलीसिया उसके दान को स्वीकार नहीं करेगी। जब यह बात मुझे याद आयी, तो मेरी कुछ चिंताएँ और सरोकार थोड़े-बहुत कम हो गये, लेकिन मेरे मन में जो बात बैठ चुकी थी, वो पूरी तरह से अभी निकली नहीं थी। मेरी पत्नी ने मेरी तनी हुई भवों को देखकर और मेरे मन को पढ़कर कहा: "आप उन अफवाहों पर विश्वास न करें। लोगों को बचाने के परमेश्वर के कार्य को बाधित करने और हमें परमेश्वर के सामने आकर उसके उद्धार को स्वीकारने से रोकने के लिए, शैतान हर तरह की बेहूदा बातें करेगा और हर तरह की झूठी गवाहियाँ देगा। परमेश्वर पवित्र है और वह इंसान की बुराई से घृणा करता है। जिन लोगों का नाम खराब है और जो लोग साथी महिला सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर कभी स्वीकार नहीं करता। इस बारे में सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत ही साफ-साफ कह दिया है।" उसके बाद मेरी पत्नी ने परमेश्वर के वचन खोले और उन्हें पढ़कर सुनाया: "गर्जन के सात शब्‍द गूँजने की वजह से कई लोग दया और माफी के लिए घुटने टेकेंगे। किंतु यह अनुग्रह का युग अब और नहीं रहेगा : यह कोप का समय होगा। जहाँ तक उन सभी लोगों की बात है जो बुराई करते हैं (जो व्यभिचार करते हैं या काले धन में सौदा करते हैं या जिनमें पुरुषों और महिलाओं के बीच अस्पष्ट सीमाएँ हैं या जो मेरे प्रबंधन को बाधित करते हैं या नुकसान पहुँचाते हैं या जो आध्यात्मिक मामले नहीं समझते या जो दुष्ट आत्माओं के कब्ज़े में हैं, इत्यादि—मेरे चुने हुओं के अलावा सभी), उनमें से किसी को भी नहीं छोड़ा जाएगा, न ही माफ़ किया जाएगा, बल्कि सभी को नरक के कुंड में उतार दिया जाएगा और वे हमेशा के लिए नष्ट हो जाएँगे!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 94)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में प्रताप और रोष होता है ताकि वे लोगों के मन में भय और श्रद्धा पैदा करें; इससे मुझे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का पता चला जो इंसान द्वारा अपमान को सहन नहीं करता। कामुकता में लिप्त लोगों से परमेश्वर को बहुत चिढ़ होती है,और ऐसे लोग को आगे चलकर परमेश्वर की धार्मिकता से दंड भुगतना पड़ता है। मेरी चिंता कुछ कम हो गयी। उसके बाद मेरी पत्नी ने निम्न बातें साझा कीं: परमेश्वर जब व्यवस्था के युग का कार्य कर रहा था, तो उस समय कामुकतापूर्ण व्यवहार करने वालों को पत्थर मार-मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था। इससे परमेश्वर का धार्मिक, प्रतापी और रोषपूर्ण स्वभाव पूरी तरह से प्रकट होता है। राज्य के युग में, एक-दूसरे के संग मेल-जोल रखने वाले स्त्री-पुरुषों के संबंध में परमेश्वर के प्रशासन के अंतर्गत उसके नियम और भी अधिक कठोर थे। जैसा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं: "मनुष्य का स्वभाव भ्रष्ट है और इसके अतिरिक्त, उसमें भावनाएँ हैं। इसलिए, परमेश्वर की सेवा के समय विपरीत लिंग के दो सदस्यों को अकेले एक साथ मिलकर काम करना पूरी तरह निषिद्ध है। जो भी ऐसा करते पाए जाते हैं, उन्हें बिना किसी अपवाद के निष्कासित कर दिया जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए)

जब मेरी पत्नी ने मुझे यह पढ़कर सुनाया, तो मुझे 2016 की शरद ऋतु में घटी एक घटना याद आ गयी। उस समय, मैंने सही ढंग से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जाँच-पड़ताल नहीं की थी। मैं अपनी पत्नी और कलीसिया की एक बहन के साथ कार में किसी दूसरे राज्य में जा रहा था। रास्ते में मेरी पत्नी को कुछ काम था, तो मैंने कार रोक दी। मेरी पत्नी के साथ वो बहन भी उतर गयी। बाहर बहुत ठंड थी और तेज़ हवा चल रही थी, वो बहन गरमाहट पाने के लिए कार के पास खड़ी होकर पैर पटकने लगी। मैंने उसे कार के अंदर आने के लिए कहा लेकिन वो बोली: "नहीं, ठीक है। मैं थोड़ी देर बाहर ही खड़ी रहना चाहती हूँ।" मेरी पत्नी काफी देर के बाद लौटी, तब जा कर वो बहन कार के अंदर बैठी। उसे ठिठुरता देख, मेरी पत्नी ने पूछा: "बाहर इतनी ठंड है, तुम कार के अंदर क्यों नहीं बैठी रही?" उसने जवाब दिया: "हमारी कलीसिया का नियम है कि स्त्री-पुरुष एक साथ अकेले या एक-दूसरे के शारीरिक संपर्क में नहीं रह सकते। अपने चुने हुए लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाओं में से एक यह भी है, और हमें इसका सख्ती से पालन करना होता है।" यह सुनकर मुझे लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोग वाकई दुनिया के दूसरे लोगों से अलग हैं। ये लोग इतनी छोटी-छोटी बातों का भी पालन करते हैं। यह सोचकर, मन ही मन मैंने अपने आपको धिक्कारा कि ठीक से तथ्यों की जाँच-पड़ताल किए बिना ही मैंने आँख मूँदकर उन ऑनलाइन अफवाहों पर भरोसा कर लिया। मैंने जब उन सारी बातों पर विचार किया कि किस तरह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों के साथ मैंने चर्चा की थी, तो देखा था कि स्त्री और पुरुषों के बीच कितनी स्पष्ट रेखा खींची गयी है, वे लोग अपनी बातचीत और काम में कितने सही और अच्छे हैं, लोगों से मिलने-जुलने या किसी काम को करने में वे सिद्धांतों का कितना पालन करते हैं,तो यह बात स्पष्ट हो गयी कि ऑनलाइन अफवाहों में कोई दम नहीं है। उस पल मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई—यह बात एकदम साफ हो गयी कि ऑनलाइन अफवाहें सब मनगढ़ंत हैं, बदनाम करने वाली हैं, और एकदम तोड़ी-मरोड़ी गयी हैं—फिर भी मैंने उन पर आँख मूँदकर यकीन कर लिया और सर्वशक्तिमान परमेश्वर व सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर शक किया। मैं इतना उलझन से भरा मूर्ख था! मेरी पत्नी की सहभागिता जारी रही: "अंत के दिनों में, परमेश्वर का देहधारण करना और लोगों का न्याय और उनका शुद्धिकरण करने के लिए सत्य व्यक्त करना इंसान को शैतान के कब्ज़े से बचाने और हमें हमारे भ्रष्ट स्वभावों—हमारा अहंकार, धूर्तता, कपट, स्वार्थ, दुष्टता, बुराई और मलिनता—से मुक्त कराने के लिए है और जीवन स्वभाव में बदलाव लाने की खातिर हमारी मदद करने के लिए है ताकि हम एक सच्चे इंसान की तरह जी सकें। परमेश्वर जानता है कि इंसान शैतान के हाथों बुरी तरह से भ्रष्ट हो चुका है और उसके अंदर पापों पर विजय पाने की क्षमता नहीं है; तो इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कि परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करते समय लोग परमेश्वर के स्वभाव का अपमान न करें और फलस्वरूप हटाए न जाएँ और दंडित न किए जाएँ, विश्वासियों को नियंत्रण में रखने के लिए परमेश्वर ने राज्य के युग में प्रशासनिक नियम बनाए हैं। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले को दंडित किया जाएगा, और गंभीर अपराधियों को कलीसिया से निकाल दिया जाएगा और वे उद्धार का अवसर गँवा देंगे। कलीसिया के लिए इन आदेशों को बनाकर परमेश्वर चाहता है कि हमें परमेश्वर के अपमान न किए जा सकने योग्य धार्मिक स्वभाव का असली ज्ञान हो, और हमें नियंत्रण में रखने के लिए नियम भी हों। इस तरह, हमारे हर व्यवहार में एक मर्यादा होगी जिसका उल्लंघन नहीं जा सकता, और अगर हम इन मर्यादाओं का पालन करेंगे, तो शैतान के प्रलोभनों से बच सकते हैं। हमारी रक्षा करने का परमेश्वर का यह एक तरीका है, इसके अलावा, यह परमेश्वर का हमारे लिए सच्चा प्रेम भी है!" पत्नी की सहभागिता सुनकर अनजाने में ही मेरी गर्दन हाँ में हिलती रही, मेरे मन की गाँठ पूरी तरह से खुल गयी और मेरे दिल को पीड़ा देने वाली घुटन से मुझे राहत मिल गयी। उसके बाद से, मैंने कलीसिया की सभाओं में फिर से भाग लेना शुरू कर दिया।

मैं जब भी उस अनुभव को याद करता हूँ, तो मेरे दिल में एक भय व्याप्त रहता है। मैंने देखा कि ये अफवाहें कितनी नुकसानदेह हैं; मैंने करीब-करीब उन अफवाहों के झाँसे में आकर परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार को लगभग गँवा ही दिया था। अनुग्रह के युग में, इस्राएलियों ने भी झूठी अफवाहों के बहकावे में आकर, प्रभु यीशु को मसीह का आगमन मानने से इंकार कर दिया था। उन्होंने प्रभु यीशु को नकार दिया था और इस तरह प्रभु के उद्धार को गँवा दिया था। इस बात से मुझे एहसास हुआ कि सच्ची आस्था के मार्ग पर कितनी भयंकर बाधाएँ आती हैं! लेकिन एक बात जो मुझे अभी भी समझ में नहीं आयी वो यह कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को लेकर इंटरनेट पर इतनी सारी अफवाहें और इतने झूठे आरोप क्यों हैं, जबकि यह साफ तौर पर एक अच्छी कलीसिया है। तो, मैंने कलीसिया की एक सभा में भाई‌-बहनों के सामने यह सवाल उठाया ताकि हम लोग इस पर खुलकर सहभागिता कर सकें। उन्होंने मेरे लिए कलीसिया के सुसमाचार की एक फिल्म तोड़ डालो अफ़वाहों की ज़ंजीरें लगा दी। इस फिल्म ने मेरी उलझन दूर कर दी। भाई‌-बहनों के साथ थोड़ी और सहभागिता करके मुझे कुछ और स्पष्टता हासिल हुई। शैतान की लगातार यही चाल रही है कि वो अफवाहों के ज़रिए परमेश्वर के कार्य को बाधित करे और उसे नष्ट करे। प्रभु यीशु जब अपना कार्य करने आया, तो याजक, धर्मशास्त्री और फ़रीसी यही चाहते थे कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर उनका कब्ज़ा बना रहे, और इसके लिए उन्होंने प्रभु यीशु के बारे में अनेक झूठी अफवाहें गढ़ लीं। उन्होंने यह कहकर प्रभु यीशु की निंदा की कि वो शैतानी ताकत के भरोसे दुष्टात्माओं को भगाता है। उन्होंने प्रभु यीशु पर यह भी झूठा आरोप लगाया कि वो लोगों से कहता है कि वे सीज़र को कर न चुकाएँ। उन्होंने यह कहकर झूठी गवाही दी कि प्रभु यीशु का पुनरुत्थान नहीं हुआ था, बल्कि उसके भौतिक शरीर को उसके अनुयायियों ने चुरा लिया था। मुझे यकीन है अगर उस ज़माने में इंटरनेट होता, तो प्रभु यीशु की निंदा करने, उस पर आक्रमण करने और प्रभु यीशु का तिरस्कार करने के लिए धार्मिक अगुवाओं ने अफवाहों और झूठी गवाहियों को इंटरनेट पर डाल दिया होता। आजकल, राज्य के युग में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर इंसान का न्याय और उसका शुद्धिकरण करने के लिए वचनों का कार्य कर रहा है; चीनी सरकार, धार्मिक जगत के पादरी और एल्डर शैतान के औज़ारों की तरह काम कर रहे हैं। लोगों को नियंत्रित करने और फँसाने के अपने मकसद को पूरा करने के लिए, ये लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और तिरस्कार कर रहे हैं, बेरहमी से अफवाहें और झूठी गवाहियाँ गढ़ रहे हैं, लोगों को गुमराह करने और उन्हें अंधेरे में रखने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को कलंकित कर रहे हैं। अपने अहंकार में, ये सोचते हैं कि ये लोगों से परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार-कार्य को छुड़वाकर परमेश्वर का विरोध करने के लिए उन्हें अपने साथ मिला सकते हैं। शैतान सचमुच बेहद दुष्ट और घृणित है!

भाई-बहनों ने मुझे परमेश्वर के वचनों के दो और अंश पढ़कर सुनाए: "पृथ्वी पर, सब प्रकार की दुष्ट आत्माएँ हमेशा लुकछिपकर किसी विश्राम-स्थल की तलाश में लगी रहती हैं, और निरंतर मानव शवों की खोज करती रहती हैं, ताकि उनका उपभोग किया जा सके" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 10)। "शैतान हमेशा उपस्थित रहकर उस ज्ञान का भक्षण कर रहा है, जो मेरे बारे में लोगों के हृदयों में है, दाँतों को पीसते और अपने पंजों को खोलते-बंद करते हुए अपनी मृत्यु के अंतिम समय के संघर्ष में लगा हुआ है। क्या तुम लोग इस समय उसकी कपटपूर्ण युक्तियों में फंसना चाहते हो? क्या तुम लोग ऐसे वक्त में अपने जीवन को बर्बाद कर लेना चाहते हो जब मेरा कार्य अंतत: पूरा हो गया है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 6)। उन्होंने मेरे साथ यह सहभागिता भी साझा की कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें आध्यात्मिक युद्ध के बारे में बताते हैं, वो यह है कि लोगों को परमेश्वर के सामने आने से रोकने के लिए और उन्हें निगल जाने के लिए, शैतान हर तरह की चाल चलता है। उसमें इंटरनेट पर फैलायी जाने वाली अफवाहों और झूठी गवाहियों का कपट, धार्मिक अगुवाओं के द्वारा विश्वासियों को परेशान करवाना और धमकी दिलवाना, परिजनों के द्वारा उन्हें और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण न करने के लिए बाध्य करवाना और उन्हें रुकवाना भी शामिल है। संक्षेप में, ऐसा कोई भी काम जिससे हमें शक हो, जिससे हम परमेश्वर को नकारें या उससे दूर हो जाएँ, वो सब शैतान से आता है। अगर हम सत्य की खोज करने में असमर्थ रहे, तो फिर हम कभी भी शैतान की चालों नहीं समझ पाएँगे, परमेश्वर के उद्धार को पाने के अवसर को गँवा देंगे, और शैतान के साथ हम भी आपदा में डूब जाएँगे। धन्य हो परमेश्वर की अगुवाई जिसकी वजह से मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सुसमाचार फिल्म देखकर और भाई-बहनों की सहभागिता सुनकर, शैतान के दुष्ट और घृणित सार को और उसके षडयंत्रों को साफ तौर पर जान पाया।

जब से मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना शुरू किया है, तब से मैंने सच्ची मुक्ति और आज़ादी पा ली है। अब, मैं जब भी किसी मुश्किल में होता हूँ, तो मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़कर परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे अभ्यास का मार्ग ढूँढ़ने में मेरी मदद करे। कलीसिया के सभी भाई-बहन परमेश्वर की अपेक्षाओं का पालन करते हैं और ईमानदार इंसान बनने का प्रयास करते हैं। उनके आपसी संबंध बहुत ही सहज और सरल हैं; वे एक-दूसरे की मदद करते हैं। किसी को इस बात की चिंता नहीं रहती कि कोई मुझे नीचा दिखाएगा, धोखा देगा या ठग लेगा। मैं सचमुच आनंदित और संतुष्ट हूँ और मैंने हमेशा इसी तरह के जीवन की कामना की थी।

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