655 परमेश्वर मनुष्य से सच्चे पश्चात्ताप की आशा करता है
1 परमेश्वर नीनवे के लोगों से चाहे जितना भी क्रोधित रहा हो, लेकिन जैसे ही वे राख मलकर और टाट ओढ़कर उपवास पर बैठ गए, उसका हृदय धीरे-धीरे नरम पड़ने लगा और उसने अपना मन बदलना शुरू कर दिया। उनसे यह घोषणा करने के एक क्षण पहले कि वह उनके नगर को नष्ट कर देगा—उनके द्वारा अपने पाप स्वीकार करने और पश्चात्ताप करने से पहले के क्षण तक भी—परमेश्वर उनसे क्रोधित था। लेकिन जब वो लोग लगातार पश्चात्ताप के कार्य करते रहे, तो नीनवे के लोगों के प्रति परमेश्वर का कोप धीरे-धीरे उनके प्रति दया और सहनशीलता में बदल गया।
2 एक ही घटना में परमेश्वर के स्वभाव के इन दो पहलुओं के एक-साथ प्रकाशन में कोई विरोध नहीं है। नीनवे के लोगों द्वारा पहले और बाद में पश्चात्ताप करने पर परमेश्वर ने ये दो एकदम विपरीत सार व्यक्त और प्रकाशित किए, जिससे लोगों ने परमेश्वर के सार की वास्तविकता देखी और यह देखा कि इसका अपमान नहीं किया जा सकता। परमेश्वर ने लोगों को निम्नलिखित बातें बताने के लिए अपने रवैये का उपयोग किया : ऐसा नहीं है कि परमेश्वर लोगों को बरदाश्त नहीं करता, या वह उन पर दया नहीं दिखाना चाहता; बल्कि बात यह है कि लोग शायद ही कभी परमेश्वर से सचमुच प्रायश्चित करते और ऐसा शायद ही होता है कि लोग खुद के बुरे तरीके छोड़कर अपने हाथों से हिंसा त्यागते हैं।
3 जब परमेश्वर मनुष्य से क्रोधित होता है, तो वह आशा करता है कि मनुष्य सच में पश्चात्ताप करेगा, और वह मनुष्य का सच्चा पश्चात्ताप देखने की आशा करता है, और उस दशा में वह मनुष्य पर उदारता से अपनी दया और सहनशीलता बरसाता रहेगा। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य के बुरे कर्म परमेश्वर के कोप को जन्म देते हैं, जबकि परमेश्वर की दया और सहनशीलता उन लोगों पर बरसती है जो परमेश्वर को सुनते हैं और उसके सम्मुख वास्तव में पश्चात्ताप करते हैं और अपने बुरे तरीके छोड़कर अपने हाथों से हिंसा त्याग देते हैं। नीनवे के लोगों के प्रति परमेश्वर के व्यवहार में उसका रवैया बहुत साफ तौर पर प्रकट हुआ था : परमेश्वर की दया और सहनशीलता पाना कठिन नहीं है; और वह इंसान से सच्चा पश्चात्ताप चाहता है। जब तक लोग अपने बुरे तरीकों से दूर रहते हैं और हिंसा छोड़ देते हैं तो परमेश्वर उनके प्रति अपना हृदय और रवैया बदल लेता है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II