119 चीन में परमेश्वर के विजय-कार्य का अर्थ
आरंभ में, यहोवा ने दुनिया बनाई।
इस्राएल में सवेरा हुआ नए युग का,
पर काम का यह चरण करे अब युग का अंत,
और किया जाता सबसे अशुद्ध देश में।
1
सबसे अंधेरी जगह के लोग जब जीत लिए जाएंगे,
सच्चे ईश्वर को जब वे स्वीकार लेंगे,
जब सब आश्वस्त हो जाएंगे तो ईश्वर इससे ब्रह्मांड को जीतेगा।
कार्य का ये चरण प्रतीकात्मक है :
इस युग का काम एक बार ख़त्म हो जाये,
तो 6,000 साल के प्रबंधन का काम पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा।
जब सबसे अंधेरी जगह जीत ली जाएगी,
तो फिर ये सभी जगह होगा।
इसलिए सिर्फ चीन में विजय-कार्य का ही प्रतीकात्मक अर्थ है।
2
चीन सभी अंधेरी ताकतों का रूप है।
इसके लोग लहू और देह के हैं, शैतान के हैं,
बड़े लाल अजगर ने इन्हें सबसे अधिक भ्रष्ट किया है,
वे अशुद्ध हैं, ईश्वर का सबसे ज़्यादा विरोध करते हैं।
वे भ्रष्टता के आदिरूप हैं।
इसलिए चीनियों को मिसाल बनाया जा रहा है।
जीत लिए जाने के बाद वे आदर्श होंगे, दूसरों के लिए संदर्भ होंगे।
जब सबसे अंधेरी जगह जीत ली जाएगी,
तो फिर ये सभी जगह होगा।
इसलिए सिर्फ चीन में विजय-कार्य का ही प्रतीकात्मक अर्थ है।
3
ईश्वर ने हमेशा क्यों कहा कि तुम सहायक हो उसकी प्रबंधन योजना में?
क्योंकि चीनियों में भ्रष्टता, अधार्मिकता,
और विद्रोह पूरी तरह प्रकट होता है।
उनकी क्षमता अच्छी नहीं।
उनके जीवन और सोच पिछड़े हैं।
उनकी आदतें, सामाजिक परिवेश, परिवार और हैसियत तुच्छ हैं।
यहाँ काम प्रतीकात्मक है।
जब ये काम पूरा हो जाएगा,
ईश्वर का अगला काम ज्यादा आसान होगा।
जब काम का ये चरण पूरा हो जाएगा,
कायनात में उसका विजय-कार्य भी पूरी तरह समाप्त हो जाएगा।
जब सबसे अंधेरी जगह जीत ली जाएगी,
तो फिर ये सभी जगह होगा।
इसलिए सिर्फ चीन में विजय-कार्य का ही प्रतीकात्मक अर्थ है।
इसलिए सिर्फ चीन में विजय-कार्य का ही प्रतीकात्मक अर्थ है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2) से रूपांतरित