663 जब परीक्षण आ पड़ें तो तुम्हें परमेश्वर की ओर खड़े होना चाहिए
1
तुम्हारी असफलता और कमजोरी का समय
ईश्वर का परीक्षण माना जा सके।
क्योंकि सभी चीज़ें आती हैं ईश्वर से,
सभी चीज़ें और घटनाएँ हैं उसके काबू में।
अगर तुम असफल होते, कमजोर होकर गिर पड़ते,
ये ईश्वर पर निर्भर करे, उसके हाथ में है।
ईश्वर की नज़र में, ये तुम्हारा परीक्षण है।
अगर तुम ये नहीं देख पाते, तो ये प्रलोभन बन जाए।
लोगों को दो दशाएँ जाननी चाहिए:
एक आत्मा से आती, दूसरी शैतान से।
2
एक में पवित्र आत्मा प्रकाश डाले,
जिससे तुम खुद को जान पाते,
खुद से घृणा करते, पछताते,
ईश्वर के लिए सच्चा प्रेम पैदा होता,
और तुम्हारा दिल उसे खुश करने की ठान लेता।
दूसरी दशा में, तुम खुद को जान पाते हो,
पर तुम कमजोर और नकारात्मक हो जाते हो।
ये हो सकता ईश्वर का परीक्षण
या हो सकता है शैतान का प्रलोभन।
अगर तुम समझ जाओ कि ये ईश्वर का तुम्हें बचाना है,
अगर खुद को उसका ऋणी पाते,
अब से उसका प्रतिदान देने की कोशिश करो
अगर अब से भ्रष्टता में न पड़ो,
उसके वचन खाने-पीने का प्रयास करो,
हमेशा अपनी कमियाँ देख पाओ,
तुम्हारे दिल में तड़प हो, तो ये ईश्वर का परीक्षण है।
3
जब कष्ट खत्म हो जाते,
और तुम एक बार फिर आगे बढ़ते,
ईश्वर तुम्हें राह दिखाता, रोशन करता,
तुम्हें प्रबुद्ध और पोषित करता।
पर अगर तुम इसे पहचान नहीं पाते,
बस नकारात्मक होते हो
और निराशा में डूब जाते हो,
अगर इस तरह सोचते हो
तो ये शैतान का प्रलोभन है।
जब अय्यूब अपनी परीक्षा से गुज़रा था,
ईश्वर और शैतान में एक शर्त लगी थी,
ईश्वर ने शैतान को अय्यूब को कष्ट देने दिया।
भले ही ईश्वर अय्यूब की परीक्षा ले रहा था,
पर ये शैतान था जो उसे कष्ट दे रहा था।
शैतान अय्यूब को प्रलोभन दे रहा था,
पर अय्यूब ईश्वर की ओर था,
वरना वो प्रलोभन में पड़ जाता।
जब लोग प्रलोभन में पड़ते, वे खतरे में पड़ जाते हैं।
शोधन से गुज़रना ईश्वर द्वारा
परीक्षण माना जा सकता है,
लेकिन तुम्हारी दशा अच्छी न हो तो
इसे शैतान का प्रलोभन माना जा सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा से रूपांतरित