एक आध्यात्मिक युद्ध

31 अक्टूबर, 2020

यांग झी, अमेरिका

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जबसे लोगों ने परमेश्वर पर विश्वास करना शुरू किया है, उन्होंने कई ग़लत इरादों को प्रश्रय दिया है। जब तुम सत्य को अभ्यास में नहीं ला रहे होते हो, तो तुम ऐसा महसूस करते हो कि तुम्हारे सभी इरादे सही हैं, किंतु जब तुम्हारे साथ कुछ घटित होता है, तो तुम देखोगे कि तुम्हारे भीतर बहुत-से गलत इरादे हैं। इसलिए, जब परमेश्वर लोगों को पूर्ण बनाता है, तो वह उन्हें महसूस करवाता है कि उनके भीतर कई ऐसी धारणाएँ हैं, जो परमेश्वर के बारे में उनके ज्ञान को अवरुद्ध कर रही हैं। जब तुम पहचान लेते हो कि तुम्हारे इरादे ग़लत हैं, तब यदि तुम अपनी धारणाओं और इरादों के अनुसार अभ्यास करना छोड़ पाते हो, और परमेश्वर के लिए गवाही दे पाते हो और अपने साथ घटित होने वाली हर बात में अपनी स्थिति पर डटे रहते हो, तो यह साबित करता है कि तुमने देह के विरुद्ध विद्रोह कर दिया है। जब तुम देह के विरुद्ध विद्रोह करते हो, तो तुम्हारे भीतर अपरिहार्य रूप से एक संघर्ष होगा। शैतान लोगों से अपना अनुसरण करवाने की कोशिश करेगा, उनसे देह की धारणाओं का अनुसरण करवाने की कोशिश करेगा और देह के हितों को बनाए रखेगा—किंतु परमेश्वर के वचन भीतर से लोगों को प्रबुद्ध करेंगे और उन्हें रोशनी प्रदान करेंगे, और उस समय यह तुम पर निर्भर करेगा कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो या शैतान का। परमेश्वर लोगों से मुख्य रूप से उनके भीतर की चीज़ों से, उनके उन विचारों और धारणाओं से, जो परमेश्वर के मनोनुकूल नहीं हैं, निपटने के लिए सत्य को अभ्यास में लाने के लिए कहता है। पवित्र आत्मा लोगों के हृदय में स्पर्श करता है और उन्हें प्रबुद्ध और रोशन करता है। इसलिए जो कुछ होता है, उस सब के पीछे एक संघर्ष होता है : हर बार जब लोग सत्य को अभ्यास में लाते हैं या परमेश्वर के लिए प्रेम को अभ्यास में लाते हैं, तो एक बड़ा संघर्ष होता है, और यद्यपि अपने देह से सभी अच्छे दिखाई दे सकते हैं, किंतु वास्तव में, उनके हृदय की गहराई में जीवन और मृत्यु का संघर्ष चल रहा होता है—और केवल इस घमासान संघर्ष के बाद ही, अत्यधिक चिंतन के बाद ही, जीत या हार तय की जा सकती है। कोई यह नहीं जानता कि रोया जाए या हँसा जाए। क्योंकि मनुष्यों के भीतर के अनेक इरादे ग़लत हैं, या फिर चूँकि परमेश्वर का अधिकांश कार्य उनकी धारणाओं के विपरीत होता है, इसलिए जब लोग सत्य को अभ्यास में लाते हैं, तो पर्दे के पीछे एक बड़ा संघर्ष छिड़ जाता है। इस सत्य को अभ्यास में लाकर, पर्दे के पीछे लोग अंततः परमेश्वर को संतुष्ट करने का मन बनाने से पहले उदासी के असंख्य आँसू बहा चुके होंगे। यह इसी संघर्ष के कारण है कि लोग दुःख और शोधन सहते हैं; यही असली कष्ट सहना है। जब संघर्ष तुम्हारे ऊपर पड़ता है, तब यदि तुम सचमुच परमेश्वर की ओर खड़े रहने में समर्थ होते हो, तो तुम परमेश्वर को संतुष्ट कर पाओगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, मुझे गहराई से महसूस हुआ कि सत्य का अभ्यास करना कोई आसान काम नहीं है, और एक आध्यात्मिक युद्ध ज़रूरी है। कई बरस पहले, पता चला कि मेरी साली कुकर्मी है। कलीसिया उसे निकालना चाहती थी, लेकिन मैं अपनी भावनाओं से मजबूर होकर, सत्य पर अमल नहीं कर पा रहा था। मेरे दिल में एक संघर्ष चल रहा था और मेरी हालत खराब हो रही थी। अंतत:, परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के ज़रिए, मैंने भावनाओं के वशीभूत होकर काम करने के खतरे और नतीजे साफ तौर पर देख लिए। तब जाकर मैं अपने देह-सुख का त्याग कर पाया, अपनी भावनाओं से ऊपर उठकर, कुकर्मी को उजागर और अस्वीकृत कर पाया, और आखिरकार सत्य पर अमल करके मुझे शांति और सुरक्षा मिली।

2017 में, मैं अपनी स्थानीय कलीसिया में अगुआ का कामकाज संभालने के लिए लौट आया। एक सभा में, मेरे भाई-बहनों ने मुझसे कहा कि कलीसिया में अगुआ के तौर पर अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान, मेरी साली, हान बिंग, सभाओं में संगति करते हुए, सतही शब्दों और सिद्धांतों के ज़रिए दिखावा करने की कोशिश करती थी। वह जहाँ भी गयी, उसने लोगों को बताया कि उसने क्या-क्या काम किए और किस तरह से कष्ट सहे ताकि वह लोगों से अपनी पूजा करवा सके और बात मनवा सके। जब भाई-बहनों ने उससे अपनी कुछ समस्याओं के बारे में बात की, तो उन समस्याओं को सुलझाने के लिए उसने सत्य पर संगति करने से इंकार कर दिया, और उनका तिरस्कार करते हुए एक भाषण झाड़ दिया। उसके भाषण का नतीजा यह हुआ कि कुछ भाई-बहन निराशा में चले गए और अपने कामकाज में उनकी रुचि समाप्त हो गयी। बाद में, हान बिंग को हटा दिया गया। उसके बाद, उसने आत्म-चिंतन करने और खुद को समझने से इंकार कर दिया, उसने भाई-बहनों को भड़काकर, उनमें कलह पैदा करके, कलीसियाई जीवन को बाधित करने की भी कोशिश की। कलीसिया के अगुआओं ने कई बार उसके साथ संगति की, उसका निपटारा किया और उसकी आलोचना भी की, लेकिन उसने इनमें से किसी भी बात को स्वीकार नहीं किया। वो अवज्ञाकारी और असंतुष्ट ही बनी रही, और नकारात्मकता फैलाकर, कलीसियाई जीवन को बाधित करती रही। ... जब मैंने सुना कि हान बिंग इस तरह का व्यवहार कर रही है, तो मुझे गुस्सा आ गया, मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया : "जो लोग कलीसिया के भीतर विषैली, दुर्भावनापूर्ण बातों का गुबार निकालते हैं, भाइयों और बहनों के बीच अफवाहें व अशांति फैलाते हैं और गुटबाजी करते हैं, तो ऐसे सभी लोगों को कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए था। अब चूँकि यह परमेश्वर के कार्य का एक भिन्न युग है, इसलिए ऐसे लोग नियंत्रित हैं, क्योंकि उन पर बाहर निकाले जाने का खतरा मंडरा रहा है। शैतान द्वारा भ्रष्ट ऐसे सभी लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं। कुछ के स्वभाव पूरी तरह से भ्रष्ट हैं, जबकि अन्य लोग इनसे भिन्न हैं : न केवल उनके स्वभाव शैतानी हैं, बल्कि उनकी प्रकृति भी बेहद विद्वेषपूर्ण है। उनके शब्द और कृत्य न केवल उनके भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव को प्रकट करते हैं, बल्कि ये लोग असली पैशाचिक शैतान हैं। उनके आचरण से परमेश्वर के कार्य में बाधा पहुंचती है; उनके सभी कृत्य भाई-बहनों को अपने जीवन में प्रवेश करने में व्यवधान उपस्थित करते हैं और कलीसिया के सामान्य कार्यकलापों को क्षति पहुंचाते हैं। आज नहीं तो कल, भेड़ की खाल में छिपे इन भेड़ियों का सफाया किया जाना चाहिए, और शैतान के इन अनुचरों के प्रति एक सख्त और अस्वीकृति का रवैया अपनाया जाना चाहिए। केवल ऐसा करना ही परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना है; और जो ऐसा करने में विफल हैं वे शैतान के साथ कीचड़ में लोट रहे हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। जब मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया, तो मैं अच्छी तरह समझ गया कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार आकलन करने पर, हान बिंग का सार और प्रकृति वाकई एक कुकर्मी की है। कलीसिया के अगुआओं और सहकर्मियों ने परमेश्वर के वचनों के आधार पर उसके बर्ताव का विश्लेषण किया और कहा कि हालाँकि अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान, वो त्याग कर सकती है, खुद को खपा सकती है, कष्ट उठाकर कीमत भी चुका सकती है, लेकिन वो अहंकारी और दंभी है, सत्य को बिल्कुल स्वीकार नहीं करती, स्वेच्छाचारी और जल्दबाज़ है, उसने कलीसियाई जीवन को बाधित किया है, और समझाने के बावजूद, उसने अपनी गलतियों को सुधारने से इंकार कर दिया है। उसकी इन हरकतों ने उसे कुकर्मी बना दिया। परमेश्वर के घर के कार्य-प्रबंधन के नियमों के अनुसार, ऐसे लोगों को निश्चित तौर पर निकाल दिया जाना चाहिए। बहुत सारे भाई-बहनों को यह कहते सुनने के बाद कि उसे कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए, मेरे अंदर एक द्वंद्व शुरू हो गया: उसके व्यवहार को देखते हुए, मैं समझ गया कि वो वाकई कुकर्मी है और उसे निकाल दिया जाना चाहिए, लेकिन वो मेरी पत्नी की छोटी बहन थी, मेरे सास-ससुर मेरे साथ अच्छा व्यवहार करते थे और मेरे परिवार का बहुत ख्याल रखते थे। अगर उन्हें पता चल गया कि मैंने हान बिंग को निकालने के पक्ष में मत दिया है, तो क्या उन्हें यह नहीं लगेगा कि मैं निर्दयी, एहसान-फरामोश हूँ और परिवार को पसंद नहीं करता? ऐसा काम करके मैं अपने सास-ससुर से नज़रें कैसे मिला पाँऊगा? लेकिन कलीसिया के अगुआ होने के नाते, अगर मैंने सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं किया, यह अच्छी तरह जानते हुए कि कलीसिया में एक कुकर्मी है और फिर भी उसे निकाला नहीं गया है, और अगर मैं इस कुकर्मी को कलीसियाई जीवन में रुकावट डालने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाने देता रहूँ, तो क्या इससे मैं खुद भी कुकर्मी का साथी और परमेश्वर का शत्रु नहीं बन जाऊँगा? मैं आगे सोचने से भी डर गया। उस समय, लगा मैं कुएँ और खाई के बीच फँस गया हूँ। समझ में नहीं आया कि क्या करूँ। बहन झोउ ने देखा कि मैं परेशान हूँ, तो उसने मुझसे कहा, "भाई यांग, हान बिंग ने कलीसियाई जीवन को बार-बार बाधित किया है, और उसमें ज़रा-सा भी पश्चाताप का भाव नज़र नहीं आता। सैद्धांतिक आधार पर तो उसे कलीसिया से निकाल ही दिया जाना चाहिए। ऐसा करना कलीसिया के काम को बचाना है। यह सबसे ज़रूरी चीज़ है! हमें अपनी भावनाओं और निजी जज़्बात के बजाय परमेश्वर की इच्छा का ख्याल रखना होगा।" उसकी बात सुनकर, मैं और भी उलझ गया।

तभी, कुछ भाई-बहनों ने मुझे सलाह दी, "हान बिंग बरसों से परमेश्वर में आस्था रखती रही है, उसने अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए अपने परिवार और करियर का भी त्याग कर दिया और उसने बहुत कष्ट उठाए हैं। हमें लगता है कि उसे प्रायश्चित का एक मौका और मिलना चाहिए।" जब मैंने यह बात सुनी, तो मुझे अच्छी तरह पता था कि इन भाई-बहनों ने यह बात सिर्फ इसलिए कही है क्योंकि ये लोग हान बिंग के नेक काम करने के बाहरी रूप से धोखा खा गए हैं, मुझे हान बिंग के बर्ताव का विश्लेषण करने के लिए उनके साथ सत्य पर संगति करनी चाहिए, ताकि वे लोग उसकी प्रकृति और सार को पहचान सकें। फिर मैंने सोचा, हान बिंग मेरे सास-ससुर की सबसे प्यारी बेटी है, मेरी सास परमेश्वर में अपनी आस्था को लेकर भ्रमित है, उसमें कोई समझ नहीं है और मेरी पत्नी कुछ ज़्यादा ही भावुक है। अगर मैंने हान बिंग को निकालने का निर्णय ले लिया और भाई-बहनों के सामने उसके बुरे बर्ताव को उजागर करके उसका विश्लेषण किया, तो क्या यह साफ तौर अपनी पत्नी के परिवार को अपमानित करना नहीं होगा? अगर मैं भाई-बहनों के सामने हान बिंग के बारे में दो शब्द अच्छे बोल दिए, और फिर उसके साथ संगति करके उसे पश्चाताप करने और आगे किसी तरह की कोई गड़बड़ी न करने की हिदायत दूँ, तो शायद उसे कलीसिया से निकालने की नौबत न आए, इस तरह, मैं अपनी पत्नी के परिवार को अपमानित करने से भी बच जाऊँगा। इस विचार के आते ही मेरी बेचैनी और मेरा मन थोड़ा हलका हुआ, मैंने अपने भाई-बहनों से कहा, "हान बिंग ने वाकई बुरे काम और अपराध किए हैं, लेकिन परमेश्वर की इच्छा है कि जहाँ तक संभव हो, लोगों को बचाया जाए, इसलिए हमें उसे पश्चाताप का एक और अवसर देना चाहिए। अगर उसने फिर से बुरे काम किए, तो हम उसे निकालने में ज़रा भी देरी नहीं करेंगे, और हम यह बात उससे पूरे दिल से स्वीकार भी करवा लेंगे।" जब बहन झोउ ने मेरे ये आकर्षक लगने वाले शब्द सुने, तो लगा वो कुछ कहना चाहती है, लेकिन वो चुप रही। किसी और ने भी कुछ नहीं कहा, मुझे लगा मेरे दिल की बेचनी थोड़ी कम हुई है। मैंने सोचा, चलो आखिरकार, मुझे अपने सास-ससुर को नाराज़ करने की नौबत नहीं आई। लेकिन दो दिन के बाद, अचानक मेरे मुँह में तीन जगह छाले हो गए। लगा जैसे मुँह में आग लग गयी है; भयंकर जलन होने लगी। कभी-कभी तो इतना दर्द होता कि न तो मैं बोला पाता, न खा पाता, भयंकर पीड़ा से रात को आँख भी खुल जाती। ऐसी पीड़ा में, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मैं जानता हूँ, ऐसी यंत्रणा देने वाले छालों का मुँह और जीभ पर होना मात्र संयोग नहीं है; ये मेरे लिए तेरी ताड़ना और अनुशासन है। हे परमेश्वर! मैं तेरे आगे प्रायश्चित करना चाहता हूँ।"

बाद में, भक्ति के समय, मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश देखा : "जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, परमेश्वर उनके हृदय में बसता है और उनके भीतर हमेशा परमेश्वर का आदर करने वाला और उसे प्रेम करने वाला हृदय होता है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें सावधानी और समझदारी से कार्य करना चाहिए, और वे जो कुछ भी करें वह परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप होना चाहिये, उसके हृदय को संतुष्ट करने में सक्षम होना चाहिए। उन्हें मनमाने ढंग से कुछ भी करते हुए दुराग्रही नहीं होना चाहिए; ऐसा करना संतों की शिष्टता के अनुकूल नहीं होता। छल-प्रपंच में लिप्त चारों तरफ अपनी अकड़ में चलते हुए, सभी जगह परमेश्वर का ध्वज लहराते हुए लोग उन्मत्त होकर हिंसा पर उतारू न हों; यह बहुत ही विद्रोही प्रकार का आचरण है। परिवारों के अपने नियम होते हैं और राष्ट्रों के अपने कानून; क्या परमेश्वर के परिवार में यह बात और भी अधिक लागू नहीं होती? क्या यहां मानक और भी अधिक सख़्त नहीं हैं? क्या यहां प्रशासनिक आदेश और भी ज्यादा नहीं हैं? लोग जो चाहें वह करने के लिए स्वतंत्र हैं, परन्तु परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों को इच्छानुसार नहीं बदला जा सकता। परमेश्वर आखिर परमेश्वर है जो मानव के अपराध को सहन नहीं करता; वह परमेश्वर है जो लोगों को मौत की सजा देता है। क्या लोग यह सब पहले से ही नहीं जानते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। परमेश्वर के वचनों से भय के मारे मेरी कंपकंपी छूट गयी। मैंने जाना कि उसका स्वभाव पवित्र, धार्मिक है और वो कोई अपमान बर्दाश्त नहीं करता। परमेश्वर के घर में, मसीह और सत्य का ही अधिकार है। परमेश्वर को उन कुकर्मियों से घृणा और चिढ़ है जो कलीसिया के काम में रुकावट डालते हैं और गड़बड़ी फैलाते हैं। और जिन लोगों में विवेक तो है, लेकिन जो लगातार कुकर्मियों के साथ खड़े रहकर उनके पक्ष में बोलते हैं, उनसे तो परमेश्वर को भयंकर चिढ़ और नाराज़गी है। हान बिंग एक ऐसी इंसान थी जिसने सत्य के अभ्यास को नकार दिया था, जिसने लोगों को उकसाया और उनमें कलह पैदा की, कलीसिया के काम में रुकावट डाली और गड़बड़ी पैदा की, वह सही मायनों में ऐसी कुकर्मी थी जो परमेश्वर के कार्य द्वारा उजागर हो चुकी थी। लेकिन मैंने अपनी पत्नी के परिवार से अपने संबंधों की रक्षा के लिए, सत्य के सिद्धांतों को ताक पर रखकर, सरासर अपने ज़मीर के खिलाफ चला गया। मैंने कुकर्मी का बचाव किया और उसके लिए बहानेबाज़ी की। मैं कुकर्मी के साथ खड़ा हो गया और उसे बचाने का काम किया। क्या मेरी इस हरकत ने मुझे भी एक कुकर्मी का साझीदार नहीं बना दिया? परमेश्वर ने मुझे एक अगुआ के तौर पर कर्तव्य का निर्वहन करने का सम्मान दिया, लेकिन मैंने उसके प्रति कोई आदर नहीं दिखाया। मैं सत्य को साफ तौर पर समझता था, फिर भी मैंने उस पर अमल नहीं किया, बल्कि उस कुकर्मी को कलीसिया में रखने के लिए जानबूझकर कपट का सहारा लिया, जहाँ उसने कलीसियाई जीवन में रुकावट डाली और भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाया। मैं जानबूझकर परमेश्वर के स्वभाव का अपमान कर रहा था! मेरी हरकतें लोगों को तो धोखा दे सकती थीं, लेकिन परमेश्वर को नहीं। परमेश्वर को पता है कि हमारे दिल में क्या है। वो मेरे जैसे इंसान को कैसे बर्दाश्त कर सकता है, जिसने मनमानी हड़बड़ी दिखायी? मैं पहले ही अपराध कर चुका था और जानता था कि अगर मैंने प्रायश्चित नहीं किया, तो परमेश्वर मुझे हटा देगा। इसलिए मैंने प्रायश्चित करने के लिए तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की। कई भाई-बहनों से बात करके, हमने हान बिंग के दुष्कर्मों की एक सूची बनायी और उसे कलीसिया से निकालने का आवेदन कर दिया। जब मैंने देखा कि परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप कार्य हुआ है, तो मेरे मुँह के छाले रहस्यमय ढंग से ठीक हो गए।

दो दिनों के बाद, मैं किसी काम से अपनी ससुराल गया, वहाँ हान बिंग भी थी। उसने मुझे कड़ी नज़रों से देखा और मुँह फेर लिया। मेरी सास मुझसे गुस्से से बोली, "तुम्हारी साली बरसों से परमेश्वर में आस्था रखती आयी है, उसने इतने कष्ट सहे हैं और सुसमाचार का प्रचार किया है। कौन इंसान ऐसा है जिसका स्वभाव भ्रष्ट नहीं है? अगर कलीसिया उसे निकाल दे, तो क्या वह परमेश्वर से उद्धार पाने का अवसर नहीं गँवा देगी? तुम उसके प्रति इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हो!" मेरी पत्नी ने भी हान बिंग के पक्ष में अपने सुर मिला दिए। उन्हें भावुक होता देखकर और यह जानकर कि उन्हें हान बिंग के बारे में कुछ भी पता नहीं है, मैंने उनके साथ उसके दुष्टतापूर्ण बर्ताव के बारे में संगति की। लेकिन मेरी सास ने मेरी एक नहीं सुनी। बल्कि वो गुस्से में ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाती रही और रोती रही। उनका गुस्सा देखकर, मेरी पत्नी भी खड़ी होकर मुझे डपटने लगी। ये सब देखकर, मैंने खुद को इतना कमज़ोर और दुखी महसूस किया कि मैं खाना भी नहीं खा सका। उस रात, मैं बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा, मैंने पूरी कोशिश की लेकिन मुझे नींद नहीं आयी। एक तरफ तो, मुझे कलीसिया के काम की रक्षा के लिए कुकर्मी को निकालना था, लेकिन दूसरी तरफ, मेरी पत्नी और सास के आरोप थे। मैं क्या करता? अगर मैंने साली को निकाल दिया, तो मेरी सास का पूरा परिवार मुझसे नाराज़ हो जाएगा, जिसका असर मेरे और मेरी पत्नी के संबंधों पर पड़ सकता था, और शायद खुद मेरा परिवार ही टूट जाता। लेकिन कुकर्मी को कलीसिया में रखने से कलीसियाई जीवन को खतरा हो सकता था, और भाई-बहनों की ज़िंदगी को नुकसान पहुँच सकता था। ये सब सोच-सोचकर मेरी हालत खराब हो रही थी और अंदर एक द्वंद्व चल रहा था। मैं बस सच्चे मन से परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता था : "हे परमेश्वर, मैं बड़ा कमज़ोर महसूस कर रहा हूँ। हान बिंग को निकलने के बारे में, मैं तुझे नाराज़ नहीं करना चाहता, लेकिन मैं अपनी भावनाओं से मजबूर हूँ और सत्य पर अमल करने में कठिनाई महसूस कर रहा हूँ। मेरी गुज़ारिश है कि तू मुझे शक्ति दे और अंधेरी ताकतों पर विजय पाने में मेरा मार्गदर्शन कर, ताकि मैं अडिग रहकर तेरे लिए गवाही दे सकूँ।"

प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। "तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम में शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरी इच्छा को स्वयं में पूरा होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों के हर निंदात्मक सवाल ने मेरे दिल को दुख और पीड़ा से चीर दिया। मुझे उनमें परमेश्वर की इच्छा और अपेक्षाओं की आग्रहयुक्त सच्चाई महसूस हुई। परमेश्वर को उम्मीद थी कि मैं कुकर्मी को निकालने के मामले का निर्णय अपने जज़्बात और निजी भावनाओं से मुक्त होकर लूँगा, और उसकी इच्छा की संतुष्टि के लिए दृढ़ता से परमेश्वर के पक्ष में खड़े होकर सत्य पर अमल करूँगा। मुझे अय्यूब और उसके परीक्षण का ख्याल आया, कि किस तरह, जब ज़ाहिर तौर पर उसकी सारी दौलत छीन ली गयी, उसके बच्चे मर गए, उसके नौकर मर गए, उसकी पत्नी और तीन दोस्तों ने उस पर हमला कर दिया, लेकिन इन तमाम घटनाओं के पीछे परमेश्वर के साथ शैतान की बाज़ी लगी थी। वे अय्यूब के लिए शैतान के प्रलोभन थे। आखिरकार, परमेश्वर के प्रति आस्था और श्रद्धा के कारण अय्यूब परमेश्वर के पक्ष में खड़ा रह पाया। उसने शैतान को पूरी तरह से अपमानित और नाकाम कर दिया, उसने परमेश्वर के लिए मज़बूत और शानदार गवाही दी। जो चीज़ देखने पर मेरी सास का अतिरिक्त दबाव लग रही थी, दरअसल, वह एक आध्यात्मिक युद्ध था। यह शैतान की चाल थी। वो मेरे भावनात्मक संबंधों का फायदा उठाकर मुझे सत्य पर अमल करने से रोकने की कोशिश कर रहा था, ताकि कुकर्मी कलीसिया में रहकर वहाँ के काम में रुकावट डालता रहे और नुकसान पहुँचाता रहे। लेकिन परमेश्वर भी इस मामले का इस्तेमाल मेरा इम्तहान लेने के लिए कर रहा था, यह देखने के लिए कि मैं कहीं अपनी पत्नी और सास के बंधनों के कारण शैतान के आगे हार तो नहीं मान लूँगा, या क्या मैं धार्मिकता को कायम रखूँगा, सत्य पर अमल करूँगा और सिद्धांतों के अनुसार कार्रवाई करूँगा। अगर मैं देह की संतुष्टि के लिए शैतान के साथ खड़ा हुआ, तो क्या इसका अर्थ यह नहीं होगा कि मैं शैतान की चालों में आ गया? अगर मैंने ऐसा किया, तो मैं परमेश्वर की उपस्थिति में गवाही का मौका गँवा दूँगा।

जब मैंने उन सारी बातों पर सोचा, तो मैं आत्म-चिंतन करने लगा। इस पूरी अवधि में, विकल्पों की दुविधा के बीच, मैंने खुद को कुएँ और खाई के बीच फँसा हुआ क्यों महसूस किया और इसे इतना तकलीफदेह क्यों पाया? मैं कलीसिया के कार्य की रक्षा की आवश्यकता को अच्छी तरह से समझ गया, लेकिन फिर भी मैं अपनी भावनाओं के अनुरूप काम क्यों करता रहा, मुझे सत्य पर अमल करना और सिद्धांतों के अनुसार काम करना मुश्किल क्यों लगा? बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : "ऐसी गन्दी जगह में जन्म लेकर, मनुष्य समाज के द्वारा बुरी तरह संक्रमित किया गया है, वह सामंती नैतिकता से प्रभावित किया गया है, और उसे 'उच्च शिक्षा के संस्थानों' में सिखाया गया है। पिछड़ी सोच, भ्रष्ट नैतिकता, जीवन पर मतलबी दृष्टिकोण, जीने के लिए तिरस्कार-योग्य दर्शन, बिल्कुल बेकार अस्तित्व, पतित जीवन शैली और रिवाज—इन सभी चीज़ों ने मनुष्य के हृदय में गंभीर रूप से घुसपैठ कर ली है, और उसकी अंतरात्मा को बुरी तरह खोखला कर दिया है और उस पर गंभीर प्रहार किया है। फलस्वरूप, मनुष्य परमेश्वर से और अधिक दूर हो गया है, और परमेश्वर का और अधिक विरोधी हो गया है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य का स्वभाव और अधिक शातिर बन रहा है, और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के लिए कुछ भी त्याग करे, एक भी व्यक्ति नहीं जो स्वेच्छा से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करे, इसके अलावा, न ही एक भी व्यक्ति ऐसा है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के प्रकटन की खोज करे। इसकी बजाय, इंसान शैतान की प्रभुता में रहकर, कीचड़ की धरती पर बस सुख-सुविधा में लगा रहता है और खुद को देह के भ्रष्टाचार को सौंप देता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है)। परमेश्वर के वचनों से, मुझे समझ में आ गया कि मैं भावनाओं में बहकर, सत्य पर अमल नहीं कर पा रहा था, परमेश्वर के प्रति विद्रोह और विरोध की स्थिति में जी रहा था, और इसकी वजह शैतान के हाथों मेरा भ्रष्ट होना था। हैवानों के सरदार, शैतान ने इन फ़लसफ़ों को मेरे दिमाग में भरने की कोशिश की, "हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये," "पानी की तुलना में खून अधिक गाढ़ा होता है," और "मनुष्य निर्जीव नहीं है; वह भावनाओं से मुक्त कैसे हो सकता है?" ये वही सामाजिक धारणाएं और शिक्षाएं हैं जिन्हें मैंने अपनी स्कूली-शिक्षा में सीखा था, शैतान चाहता था कि मैं दूसरों के लिए अपनी भावनाओं को जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानूँ, मैं यह सोचूँ कि संबंधों की हिफाज़त करना और लोगों के प्रति संवदनशील होना सामान्य बात है, मैं यह विश्वास कर लूँ कि अगर आप ऐसा नहीं करते, तो आप निर्दयी और आस्थाहीन हैं और आपको दोषी ठहराया जाएगा। मैंने इन शैतानी फलसफों को सकारात्मक चीज़ें और जीने के सिद्धांत माना, और इन शैतानी फलसफों और व्यवस्थाओं के अनुसार जी कर, मैं सिद्धांतहीन बन गया और सही-गलत के बीच उलझकर, बेहद स्वार्थी, घिनौना, धूर्त और कपटी बन गया। हान बिंग को निकालने के मामले में, मुझे डर था कि मेरे रिश्तेदार मुझे कृतघ्न और हृदयहीन कहेंगे और इससे मेरा परिवार टूट जाएगा; इसके कारण मैंने कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन की उपेक्षा कर दी। मैं वाकई स्वार्थी और घिनौना था। इस तरह का व्यवहार करके, मैं सचमुच कृतघ्न और हृदयहीन बन गया! अगर हम इस बारे में सोचें कि यह समाज इतना बुरा और अंधकारमय क्यों है, यहाँ निष्पक्षता और न्याय क्यों नहीं है, तो इसकी वजह यह है कि लोग अपना जीवन इन शैतानी फलसफों और व्यवस्थाओं के अनुसार जीते हैं। किसी भी समूह में, लोगों को सिर्फ दैहिक भावनात्मक संबंधों से ही सरोकार होता है। लोग उन्हीं लोगों के पक्ष में बोलते हैं जिनके वे सबसे निकट होते हैं। अगर वे कोई गैर-कानूनी काम करें या कोई अपराध करें, तो भी लोग उन्हें बचाने और उनकी मदद करने के तरीके सोचते हैं, और उनके पक्ष में खड़े होने के लिए सही और गलत को उलझा देते हैं। तब जाकर मुझे अच्छी तरह से समझ में आया कि ये शैतानी फलसफे और व्यवस्थाएँ विवेकपूर्ण, नैतिक और इंसानी धारणाओं के अनुरूप प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में वे बेतुकी भ्रांतियाँ हैं जिन्हें शैतान लोगों को धोखा देने और उन्हें भ्रष्ट करने के लिए इस्तेमाल करता है। वे सत्य और परमेश्वर की दुश्मन हैं। जब हम इन चीज़ों के सहारे जीते हैं, तो हम सिर्फ परमेश्वर से विद्रोह और उसका विरोध ही करते हैं, लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं और हैवानों की प्रकृति में जीते हैं। पहले, मैं ऐसे ही शैतानी फलसफों और व्यवस्थाओं के अनुसार जीता था, कुकर्मी को बचाता था, और उसके गलत कामों में साझीदार था। लेकिन परमेश्वर ने मेरे पिछले अपराधों पर ध्यान नहीं दिया, फिर भी मुझे प्रायश्चित का अवसर दिया, उसके लिए मैं परमेश्वर का बहुत आभारी हूँ। इसलिए, मैंने मौन रहकर परमेश्वर से प्रार्थना की और शपथ ली : हे परमेश्वर, अब मैं अपनी भावनाओं के अनुरूप कोई काम नहीं करना चाहता। मैं तेरे वचनों के अनुसार उसी से प्रेम करना चाहता हूँ जिससे तू प्रेम करे, उसी से घृणा करना चाहता हूँ, जिससे तू घृणा करे, ताकि मैं सत्य के सिद्धांतों को कायम रखूँ और कुकर्मियों को तुरंत ही कलीसिया से निकाल दूँ।

अगले दिन, सहकर्मियों की सभा में, मैंने किसी सहकर्मी को कहते सुना कि हान बिंग अभी भी न तो खुद समझ पायी है और न ही उसने कोई पश्चाताप किया है, और वो अभी भी लोगों को उकसा रही है, असंतोष पैदा कर रही है और गुट बनाने का प्रयास कर रही है। मैंने जब यह सुना, तो खुद को और भी ज़्यादा दोषी ठहराया। भावनाओं में बहकर काम करने, समय रहते उसे न निकालने और कलीसियाई जीवन को बाधित करने की छूट देने के कारण, मुझे खुद से नफरत हो गयी। बाद में, अगली सभा के दौरान, हान बिंग के हर दुष्ट बर्ताव का विश्लेषण करने और पहचाने के लिए, मैं कर्तव्यनिष्ठा से परमेश्वर के वचनों का इस्तेमाल करने लगा, और संगति के ज़रिए, जो भाई-बहन उसके द्वारा छले गए थे, वे भी उसे पहचान गए और उसे नकारने लगे। सत्य की समझ हासिल करने पर, मेरी पत्नी ने भी हान बिंग की प्रकृति और सार को पहचान लिया, उसने फिर कभी बहस नहीं की कि उसकी बहन के साथ अनुचित व्यवहार किया गया है। कलीसिया से हान बिंग को निकाले जाने के बाद, फिर कभी किसी कुकर्मी ने वहाँ के काम में रुकावट नहीं डाली, अब भाई-बहन फिर से सभा में भाग लेने लगे और सामान्य ढंग से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने लगे। हम सभी परमेश्वर की धार्मिकता का गुणगान करते हैं! इस घटना से मैंने समझा कि परमेश्वर के घर में, उसके वचनों और सत्य का ही बोलबाला है, सभी काम सत्य के सिद्धांतों के अनुसार ही किए जाते हैं, परमेश्वर के घर में नास्तिक, कुकर्मी और मसीह-विरोधी नहीं टिक सकते। मैंने निजी तौर पर यह भी अनुभव किया कि शैतानी फलसफों और व्यवस्थाओं के सहारे जीने से सिर्फ दुख ही मिलते हैं। इससे न तो हमें लाभ होता है और न ही किसी और को। केवल परमेश्वर के वचनों के सहारे जी कर ही हम सदा सुरक्षित और शांति का अनुभव कर सकते हैं। आज मैं शैतानी फलसफों और व्यवस्थाओं के सहारे नहीं जीता, और मैंने अपने भावनात्मक बंधनों से भी छुटकारा पा लिया है, अब मैं थोड़े-बहुत सत्य का अभ्यास कर पाता हूँ और थोड़ी-बहुत धार्मिकता के साथ जी पाता हूँ—ये सब परमेश्वर के उद्धार की बदौलत है, और पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का प्रभाव है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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