सच्ची रिपोर्ट दबाने की पीड़ा सहना

20 मार्च, 2022

ली मिंग, जर्मनी

जब मैं सिंचन का काम संभाल रही थी, तो फैंग पिंग मेरे काम की प्रभारी अगुआ थीं। उनसे बातचीत के दौरान मुझे एहसास हुआ कि वो मन लगाकर काम नहीं करतीं, वो सिर्फ बड़बड़ करती हैं और वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं कर पातीं। काम के दौरान आने वाली समस्याओं पर फीडबैक प्रस्तुत करने में वो हमारी अगुआई नहीं करती थीं, न परमेश्वर के वचनों पर संगति करती थीं, न ही अभ्यास का कोई मार्ग बताती थीं, बस हमें डाँटती रहती थीं। वो भाई-बहनों के सुझाव भी खारिज कर देती थीं। इन व्यवहारों से मुझे लगा कि वो एक झूठी अगुआ हैं, इसलिए इस बारे में मैं उनकी वरिष्ठ, लियु युन से बात करना चाहती थी। पर मुझे याद आया कि फैंग पिंग सभाओं में हमेशा उनके साथ ही रहती हैं, उन्होंने एक-साथ बहुत काम किया है। मुझे लगा, जो समस्याएँ मैंने देखी हैं, उन्हें लियु युन भी देख लेंगी, और फैंग पिंग पर कई समूहों के काम का दायित्व है, वो एक दर्जन से अधिक समूह-अगुआओं का निरीक्षण करती हैं। क्या उन्होंने उनकी समस्याएँ नहीं देखीं? जब उनमें से किसी ने रिपोर्ट नहीं की, तो मैं क्यों बोलूँ? अगर मैंने चीजों को गलत समझा हो और लियु युन ने कहा कि मैं फैंग पिंग के प्रति पूर्वाग्रह रखती हूँ, उनकी गलतियाँ ढूँढ़ती हूँ, तो? मैं बिल्ली के गले में घंटी बाँधकर मुसीबत मोल लेना नहीं चाहती थी। लेकिन फिर याद आया कि झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी मुझे कितनी चोट पहुँचा चुके हैं। इसकी वजह सही समय पर उनकी रिपोर्ट न करना था। मसीह-विरोधियों ने कई कलीसियाओं के काम में गड़बड़ी की, और भाई-बहनों के जीवन पर बुरा असर डाला। समस्याओं की तुरंत रिपोर्ट न करना परमेश्वर के घर के हितों को कायम रखना नहीं है। इस विचार से मुझे थोड़ी बेचैनी हुई और मैं सोचने लगी कि मुझे अन्य भाई-बहनों से बात करके उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाहिए। इसलिए मैं भाई लियु से बात करने गई, उन्होंने कहा कि उन्हें भी लगता है कि फैंग पिंग व्यावहारिक मुद्दे नहीं सँभाल पातीं, वो काम की प्रगति के बारे में पूछताछ नहीं करतीं, वो सिद्धांतों में प्रवेश करने वालों के लिए शिक्षाप्रद या सहायक नहीं हैं। वो निरंकुश और अव्यवस्थित भी हैं, और कार्यों की प्राथमिकता तय नहीं कर पातीं। इससे उनकी कार्यकुशलता पर बुरा असर पड़ा है और काम में रुकावट आई है, साथ ही उन्होंने भाई-बहनों की चेतावनियाँ भी अनदेखी की हैं। सभाओं में उन्होंने शायद ही कभी आत्मचिंतन पर संगति की होगी कि कैसे खुद को जाना, या समस्याएँ आने पर कैसे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास किया। उन्होंने सिर्फ सिद्धांत बताए, भली लगने वाली बातें कीं, लेकिन कोई व्यावहारिक काम नहीं किया। जब मैंने पाया कि भाई लियू ने भी मेरी तरह वो समस्या देखी है, तो मुझे यकीन हो गया कि फैंग पिंग झूठी अगुआ हैं जिन्होंने वास्तविक काम नहीं किया, और उनका अगुआ बने रहना परमेश्वर के घर के काम को हानि पहुँचाएगा। मुझे लगा, फैंग पिंग की समस्या गंभीर है, मुझे इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए। लेकिन फिर लगा कि मेरा काम सीधे उन पर निर्भर करता है, इसलिए अगर मेरे बोलने के बाद भी उन्हें नहीं निकाला गया और उन्हें पता चल गया, तो मेरे लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी, हो सकता है वो मुझे बरखास्त कर दें। अगर मैंने इतनी जल्दी अपना पद गँवा दिया, तो यह बड़ा अपमानजनक होगा। फिर क्या मुझे काम का दूसरा अवसर मिलेगा? कहावत है कि, "कील जो सबसे बाहर निकली होती है वही हथौड़ी से ठोकी जाती है," इसलिए मुझे पहल नहीं करनी चाहिए। मैं भाई लियु से बात करना चाहती थी, कि वो इस मुद्दे को उठाएँ और फिर मैं उनका समर्थन करूँ। ऐसा करने से मेरी गर्दन नहीं फँसेगी। लेकिन यह बात जबान पर आते-आते रह गई। मैं इंतजार करना और देखना चाहती थी कि आगे क्या होता है। लेकिन परमेश्वर हमारा दिल और दिमाग देखता है, और मुझे यह सब ठीक नहीं लगा। मेरे मन में एक अपराध-बोध था। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मुझे प्रबुद्ध करो, ताकि मैं खुद को समझ सकूँ।

फिर मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े, जो मेरी स्थिति पर प्रकाश डालते थे। परमेश्वर कहते हैं, "ज़्यादातर लोग सत्य का अनुसरण और अभ्यास करना चाहते हैं, लेकिन अधिकतर समय उनके पास ऐसा करने का केवल संकल्प और इच्छा ही होती है; सत्य उनका जीवन नहीं बना है। इसके परिणाम स्वरूप, जब लोगों का बुरी शक्तियों से वास्ता पड़ता है या ऐसे दुष्ट या बुरे लोगों से उनका सामना होता है जो बुरे कामों को अंजाम देते हैं, या जब ऐसे झूठे अगुआओं और मसीह विरोधियों से उनका सामना होता है जो अपना काम इस तरह से करते हैं जिससे सिद्धांतों का उल्लंघन होता है—इस तरह परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा पड़ती है, और परमेश्वर के चुने गए लोगों को हानि पहुँचती है—वे डटे रहने और खुलकर बोलने का साहस खो देते हैं। जब तुम्हारे अंदर कोई साहस नहीं होता, इसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ यह है कि तुम डरपोक हो या कुछ भी बोल पाने में अक्षम हो? या फ़िर यह कि तुम अच्छी तरह नहीं समझते और इसलिए तुम में अपनी बात रखने का आत्मविश्वास नहीं है? इनमें से तो कोई नहीं; बात यह है कि तुम कई प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों द्वारा नियंत्रित किये जा रहे हो। इन सभी स्वभावों में से एक है, कुटिलता। तुम यह मानते हुए सबसे पहले अपने बारे में सोचते हो, 'अगर मैंने अपनी बात बोली, तो इससे मुझे क्या फ़ायदा होगा? अगर मैंने अपनी बात बोल कर किसी को नाराज कर दिया, तो हम भविष्य में एक साथ कैसे काम कर सकेंगे?' यह एक कुटिल मानसिकता है, है न? क्या यह एक कुटिल स्वभाव का परिणाम नहीं है? एक अन्‍य स्‍वार्थी और कृपण स्‍वभाव होता है। तुम सोचते हो, 'परमेश्‍वर के घर के हित का नुकसान होता है तो मुझे इससे क्‍या लेना-देना है? मैं क्‍यों परवाह करूँ? इससे मेरा कोई ताल्‍लुक नहीं है। अगर मैं इसे होते देखता और सुनता भी हूँ, तो भी मुझे कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। यह मेरी ज़ि‍म्‍मेदारी नहीं है—मैं कोई अगुआ नहीं हूँ।' इस तरह के विचार और शब्द कोई ऐसी चीजें नहीं हैं जो तुम जान-बूझकर सोचते हो, बल्कि वे तुम्हारे अवचेतन द्वारा उत्पन्न होते हैं—जो कि लोगों द्वारा किसी समस्या का सामना करने पर प्रकट होने वाला शैतानी स्‍वभाव है। ... तुम जो भी कहते और सोचते हो वह सब तुम्हारे दिमाग में पूर्व-संपादित होना चाहिए। तुम्हारी हर बात मिथ्या, खोखली और झूठ होती है, तथ्यों के विपरीत होती है, वह सब तुम्हारे झूठे बचाव में, तुम्हारे फायदे के लिए होता है; तुमने लोगों को धोखा दिया है जिससे वे तुम्हारे बारे में ऊँचा सोचते हैं, उस स्थिति में तुम अपने शब्दों के पीछे की मंशा और मकसद हासिल कर लेते हो। तुम्हारे दिल में यही है, ये तुम्हारे स्वभाव हैं। तुम पूरी तरह से अपने शैतानी स्वभावों के नियंत्रण में हो। अपनी कथनी-करनी पर तुम्हारा कोई जोर नहीं चलता। तुम चाहकर भी सच नहीं बोल पाते या यह नहीं बता पाते कि तुम वास्तव में क्या सोचते हो; चाहकर भी सत्य का अभ्यास नहीं कर पाते; चाहकर भी अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर पाते। तुम जो भी कहते, करते और अभ्यास में लाते हो, वह सब झूठ है, और तुम सिर्फ आलसी और बेपरवाह हो। तुम अपने शैतानी स्वभाव से पूरी तरह बंधे हुए हो और उसके काबू में हो। हो सकता है, तुम सत्य को स्वीकार करना और उसके लिए प्रयास करना चाहो, लेकिन यह तुम पर नहीं है : तुम वही कहते और करते हो, जो तुम्हारा शैतानी स्वभाव तुमसे कहता है। तुम भ्रष्ट देह की एक कठपुतली के सिवाय कुछ नहीं हो, तुम शैतान के साधन बन गए हो। ... तुम कभी सत्य की खोज नहीं करते, सत्य का अभ्यास तो तुम और भी कम करते हो। तुम बस प्रार्थना करते रहते हो, अपना निश्चय दृढ़ करते हो, संकल्प करते हो और शपथ लेते हो। यह सब करके तुम्हें क्या मिला है? तुम अब भी हर बात का समर्थन करने वाले व्यक्ति ही हो; तुम किसी को नहीं उकसाते और न ही किसी को नाराज करते हो। अगर कोई बात तुम्हारे मतलब की नहीं है, तो तुम उससे दूर ही रहते हो, और सोचते हो : 'मैं उन चीजों के बारे में कुछ नहीं कहूँगा जिनका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है, इनमें कोई अपवाद नहीं है। अगर कोई चीज़ मेरे हितों, मेरे रुतबे या मेरे आत्म-सम्मान के लिए हानिकारक है, मैं उस पर कोई ध्यान नहीं दूँगा, इन सब चीज़ों पर सावधानी बरतूंगा; मुझे बिना सोचे-समझे काम नहीं करना चाहिए। जो कील बाहर निकली होती है, सबसे पहली चोट उसी पर की जाती है और मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ!' तुम पूरी तरह से दुष्टता, कपट, कठोरता और सत्य से नफ़रत करने वाले अपने भ्रष्ट स्वभावों के नियंत्रण में हो। वे तुम पर पूरी तरह काबू कर रहे हैं, उन्हें सहना तुम्हारे लिए बर्दाश्त से बाहर हो गया है। भ्रष्ट स्वभाव के नियंत्रण में रहना हद से ज़्यादा थकाऊ और कष्टदायी है!" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'जो सत्य का अभ्यास करते हैं केवल वही परमेश्वर का भय मानने वाले होते हैं')। परमेश्वर के वचनों ने मेरा स्वार्थी, चालाक और भ्रष्ट स्वभाव प्रकट कर दिया। मैं काम में फैंग पिंग की लापरवाही देख चुकी थी। वो समस्याओं का समाधान या व्यावहारिक कार्य नहीं कर पाती थीं। न ही वो सत्य स्वीकार पाती थीं। वो निरंकुश थीं, हर काम अपने तरीके से करना चाहती थीं। इससे भाई-बहनों को नुकसान ही नहीं हो रहा था, बल्कि उनका विकास भी बाधित हो रहा था। ये सब झूठे अगुआ होने के संकेत थे, अगर इसी तरह चलता रहता, तो कलीसिया के काम पर बुरा असर पड़ सकता था। मैं दिल में जानती थी कि तुरंत इसकी रिपोर्ट करना जरूरी है, लेकिन मुझे डर था कि उन्हें नाराज किया तो मुझे पछताना पड़ सकता है, मुझे निकाला भी जा सकता है। अपने हितों की रक्षा के लिए मैंने उनकी रिपोर्ट करने के बजाय कलीसिया के काम का नुकसान होने दिया। अपनी गर्दन फँसाने के बजाय मैंने धूर्ततापूर्वक तय किया कि—जो चल रहा है, चलने दो। मैंने सोचा, अगर समस्याएँ होती हैं, तो बात मुझ पर नहीं आएगी, और किसी समस्या की जिम्मेदारी मेरे सिर नहीं होगी। मैं "हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये," और "कील जो सबसे बाहर निकली होती है वही हथौड़ी से ठोकी जाती है" जैसे शैतानी फलसफों के सहारे जी रही थी। मुझे केवल अपने हितों की पड़ी थी, मुझे परमेश्वर के घर के हितों या भाई-बहनों के जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की चिंता नहीं थी। मैं कितनी स्वार्थी थी! मुझे लगता था कि मुझमें धार्मिकता का भाव है और मैं परमेश्वर के घर के हित कायम रख सकती हूँ, लेकिन इस अनुभव ने दिखा दिया कि मैं शातिर और स्वार्थी इंसान हूँ मैं हवा का रुख देखकर चलती हूँ। मैं शैतानी फलसफों के सहारे जी रही थी, और एक झूठे अगुआ की रिपोर्ट करने में नाकाम रही। मैं परमेश्वर के घर और भाई-बहनों को चोट पहुँचा रही थी। मैं एक झूठे अगुआ की अनुचर थी। मुझे महसूस हुआ, मुझे कायर बनकर नहीं रहना चाहिए, कोई समस्या दिखने पर उसकी रिपोर्ट करनी चाहिए।

मैं रिपोर्ट करने की सोच ही रही थी कि एक अगुआ ने हमें फैंग पिंग और उनके साथी का मूल्यांकन लिखने के लिए कहा। मुझे बहुत खुशी हुई, इसका मतलब था कि अगुआ ने फैंग पिंग से जुड़ी समस्याएँ पहचान ली हैं। मैंने उनके तमाम व्यवहार पर विस्तार से लिख दिया। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उनके बजाय उनके साथी को हटा दिया गया, जबकि फैंग पिंग अपने पद पर बनी रहीं। कुछ दिनों बाद, फैंग पिंग संगति करते समय रोने लगी, बोलीं, "मैंने कोई व्यावहारिक काम या भाई-बहनों का मार्गदर्शन नहीं किया है, मैं एक झूठी अगुआ हूँ। मैं लोगों की समस्याएँ दूर नहीं करती, बल्कि अपनी बातों से लोगों को दबाती हूँ। अब कोई मुझे सुझाव देने की हिम्मत नहीं करता। परमेश्वर ने मुझे ऊँचा उठाकर ये कर्तव्य दिया, लेकिन मैं गैर-जिम्मेदार रही। मैं परमेश्वर की ऋणी हूँ। मैंने बहुत बुराई की है। मैं इंसान नहीं हूँ। परमेश्वर का घर मुझे उस काम को करते रहने का मौका दे रहा है, इसलिए मुझे पश्चात्ताप करना चाहिए। अगर आपमें से किसी को मुझमें कोई समस्या दिखे, तो मुझे जरूर बताएँ, मैं उसे खुशी से स्वीकारूँगी।" मैंने उन्हें फूट-फूटकर रोते देखा, बात करते-करते उनकी आँखों में आँसू आ गए, मुझे वो बहुत सच्ची लगीं। मुझे लगा, कहीं मैं ही तो गलत नहीं थी, शायद वो सत्य स्वीकार सकती हैं, शायद मैं ही ज्यादा अपेक्षा कर रही थी। अगर वो प्रायश्चित करने को तैयार हैं, तो वो अच्छा काम कर सकती हैं। मुझे सब भूल जाना चाहिए, और उनके साथ काम अच्छे से काम करना चाहिए। फिर मैंने उन्हें एक संदेश भेजा, "हम आपके संघर्षों को समझ नहीं पाए। आइए, अब से हम मिलकर और अच्छा काम करें।" उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें मेरी और मदद और सुझाव चाहिए। मैं बहुत रोमांचित थी, मैंने सोचा कि अगर वो सत्य स्वीकार कर चीजें बदल सकती हैं, तो वो अच्छी अगुआ साबित हो सकती हैं। लेकिन मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि उनमें कोई बदलाव नहीं आया। सभाओं में वो वैसी ही लापरवाही दिखा रही थीं, असली समस्याओं से नहीं निपट रही थीं। कलीसिया के सामान्य मामलों में कुछ समस्याएँ आने पर भी वो सभाओं के दौरान बाहरी मामलों पर बात करती रहीं। वो उस तरह के परिवेश में सत्य खोजने पर बात नहीं कर रही थीं। इससे सब बेचैन हो गए, और कलीसिया के जीवन पर इतना बुरा असर पड़ा कि कोई भी शांति से अपना काम नहीं कर सका। यह सब देखकर मैंने उनसे बात की। उन्होंने कहा, "समस्या सिर्फ आपमें है, आपके अलावा सभी लोग मेरी बात मानते हैं। आप ही बाधा डाल रही हैं।" उनकी यह बात सुनकर मुझे बुरा लगा। मुझे समझ में नहीं आया कि काम कैसे करूँ, मैं बहुत तनाव में थी। मैंने उन्हें टोका, तो वे मुझसे निपटेंगी, और अगर उनकी बात मानी, तो मेरे कारण भाई-बहनों को परेशानी होगी। मैं बहुत लाचार हो गई, लगा जैसे मेरा दम घुट रहा हो। मैंने इसके बारे में सोचा। लेकिन फिर मुझे याद आया कि मैं उन्हें इस बारे में पहले भी बता चुकी हूँ और उन्होंने फैंग पिंग के मामले में कुछ नहीं किया था, बल्कि उनकी जगह दूसरे अगुआ को बरखास्त कर दिया था। अगर मैंने उनसे रिपोर्ट की, तो वे यह तो नहीं कहेंगे कि मैं बात का बतंगड़ बना रही हूँ और समस्या मुझमें है? अगर उन्होंने मुझ पर दोष लगाकर मुझे ही हटा दिया तो? ऐसी अवस्था में, मैंने खुद को आध्यात्मिक अँधेरे में पाया, जैसे परमेश्वर मेरे साथ न हो। रिपोर्ट करने के बाद मुझे अपने भविष्य और निजी हितों की चिंता लगी रहेगी।

जल्दी ही परमेश्वर के घर ने एक कार्य-व्यवस्था जारी की कि अगर कलीसिया में कोई कुकर्मी या मसीह-विरोधी पाया जाए, या कोई झूठा अगुआ असली काम न करता हो, तो परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा के लिए तुरंत उसकी सूचना दी जाए। यह परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों की जिम्मेदारी थी। रिपोर्ट किए जाने पर अगर कोई अगुआ किसी भाई-बहन को डाँटता-फटकारता है, तो वो मसीह-विरोधी है। अगुआओं को भी इस गारंटी पर हस्ताक्षर करने थे कि वे इस तरह डाँटें-फटकारेंगे नहीं। चीजों को संभालने का क्या शानदार तरीका है। परमेश्वर जानता है कि मुझमें विश्वास की कमी है और मैं अपने बारे में बहुत सोचती हूँ, कि मुझे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा के लिए जूझना पड़ता है। इस व्यवस्था को देखकर मुझे खुशी भी हुई और ग्लानि भी। मुझे खुशी हुई कि परमेश्वर जानता है कि हमारा आध्यात्मिक कद कितना छोटा है, वो हमें झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था। मैंने दोषी महसूस किया, क्योंकि मैं जानती थी कि कलीसिया में झूठे अगुआ हैं, लेकिन मैंने सताए और रोके जाने के डर से उनकी रिपोर्ट नहीं की। मैं परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक होने योग्य नहीं थी। फिर, मैंने फैंग पिंग के व्यवहार के बारे में समूह के कुछ अगुआओं से बात की, वे मुझसे सहमत थे। फिर हमने मिलकर झूठे अगुआओं को समझने के सिद्धांतों की समीक्षा की और इस नतीजे पर पहुँचे कि वो निस्संदेह झूठी अगुआ हैं। हमें ये भी लगा कि लियु युन और बाकी वरिष्ठ अगुआ फैंग पिंग को बचा रहे थे, तो समस्या उनमें भी थी। हमने तय किया कि हम उनकी भी रिपोर्ट करेंगे।

पर जब मैंने फैंग पिंग के बारे में अपना मूल्यांकन लिख लिया, तो दो समूह-अगुआओं ने मुझसे अपना मूल्यांकन पहले भेज देने के लिए कहा। मुझे फिर चिंता होने लगी कि अगर फैंग पिंग को मेरी रिपोर्ट के बारे में पता चला, तो वो मेरे लिए परेशानी खड़ी कर सकती हैं। मुझे जो लग रहा था, उस बारे में मैंने प्रार्थना की, और मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला। परमेश्वर कहते हैं, "तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरी इच्छा को स्वयं में पूरा होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के ये प्रश्न पढ़कर मैं अवाक रह गई। यह अंश बहुत ही मार्मिक था। मैं हमेशा परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखने और कलीसिया का काम बनाए रखने की बातें किया करती थी। लेकिन जब मुझे साफ तौर पर दिख गया कि फैंग पिंग असली काम नहीं कर रहीं, सिद्धांत के नाम पर लोगों को गुमराह कर रही हैं, निरंकुश और मनमाने ढंग से काम करती हैं, और कलीसियाई जीवन को बुरी तरह बाधित कर रही हैं, तो भी मैंने कायरता दिखाई। खुद को बचाने की खातिर उनकी रिपोर्ट नहीं की, दुष्ट ताकतों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं की। परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के बजाय मैं शैतान का प्यादा बन गई। मैं परमेश्वर को क्या मुँह दिखाऊँगी? परमेश्वर का हर वचन मेरे कठोर हृदय के लिए एक चेतावनी था, आखिर मैंने अपना बचाव न करने का संकल्प लिया। भले ही मुझे धमकाया जाए, मैं उन्हें उजागर कर उनकी रिपोर्ट करूँगी। मैंने फैंग पिंग और अन्य दो वरिष्ठ अगुआओं के बारे में रिपोर्ट लिखकर भेज दी।

कुछ दिनों बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं की सभा में फैंग पिंग ने फिर से आँखों में आँसू भरकर खुद को समझने का नाटक किया। उन्होंने कहा, "मैं दिन-रात खप रही हूँ, लेकिन कोई मेरी मदद नहीं करता, ऊपर से मेरी रिपोर्ट कर दी गई है। यह मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम है, जानती हूँ मुझे रुककर आत्म-चिंतन करना चाहिए। भाई-बहनों की रिपोर्ट मेरे लिए सहायक है, मैंने शपथ ली है कि अपनी रिपोर्ट करने वाले को मैं कभी नहीं दबाऊँगी...।" बाद में वो मेरे पास आकर पूछने लगीं कि मुझे कोई परेशानी तो नहीं, मेरा काम कैसा चल रहा है, वो पहले की तरह अशिष्ट नहीं लग रही थीं। वो मेरे लिए कुछ खाना भी लाईं। पहले तो मुझे यकीन नहीं हुआ, लगा उन्हें वाकई पछतावा हुआ है। लेकिन जब दूसरे नजरिए से सोचा, तो मैं उनकी शिष्टता के झाँसे में नहीं आई—मैंने सोचा, मुझे इंतजार करना चाहिए। पिछली बार भी रोने का नाटक कर उन्होंने खुद को समझने का दिखावा किया था, लेकिन कुछ नहीं बदला था। उन्हें पता था कि मैंने उनकी रिपोर्ट की है, शायद इसीलिए मेरी खुशामद कर रही थीं। ताकि जब रिपोर्ट की जाँच की जाए, तो मैं कहूँ कि वो बदल गई हैं? मुझे लगा वो मुझे धोखा दे रही हैं, मैं शैतान के जाल में फँसकर फिर से धोखा नहीं खा सकती। अपने हृदय की रक्षा करने के लिए मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, ताकि मैं पिछली बार की तरह उनके आँसुओं में न बह जाऊँ। मैं किसी के आँसुओं से तय नहीं कर सकती कि उसने पश्चात्ताप किया है, न ही उसकी बातों से तय कर सकती हूँ, मुझे उसके कार्य-कलापों का निरीक्षण करना चाहिए। मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि वो इतनी जल्दी अपना असली चेहरा दिखा देंगी।

कुछ ही दिन बाद, हम लोगों को पहचानने के सत्यों पर चर्चा कर रहे थे, तब मौका लपकते हुए उन्होंने कहा, "हमें केवल खुद को ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी पहचानना सीखना होगा। हाल ही में हमें लोगों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था, और उस रिपोर्ट-लेखन के जरिए कुछ कुकर्मी सतह पर आ गए। हमें उन कुकर्मियों और उनकी चापलूसी करने वाले पिछलग्गुओं को भी उजागर करना चाहिए। हमें हर एक दुष्ट और मसीह-विरोधी को दंडित करना चाहिए।" वो पीड़ित व्यक्ति पर उँगली उठा रही थीं! उनकी यह बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं समझ गई कि उनका तथाकथित आत्म-ज्ञान नकली था। उनमें वैसा कुछ नहीं था, वो खुद पर विचार करने के बजाय रिपोर्ट करने वाले पर ही उँगली उठा रही थीं। इससे मुझे परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश याद आ गए। "मसीह-विरोधी पश्‍चात्ताप नहीं करते। उनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती; वे शातिर और दुष्ट स्वभाव के होते हैं, और वे सत्य से अत्यंत घृणा करते हैं। क्या सत्य से इतनी घृणा करने वाला कोई व्यक्ति उसे व्यवहार में ला सकता है, या पश्‍चात्ताप कर सकता है? यह असंभव होगा" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे दूसरों से केवल अपना आज्ञापालन करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर का नहीं (भाग एक)')। "क्या मसीह-विरोधियों जैसे लोग काट-छाँट किए जाने या निपटे जाने को स्वीकार करते हैं? क्या वे स्वीकार करेंगे कि उनका स्वभाव भ्रष्ट है? (वे ऐसा नहीं करेंगे।) वे यह स्वीकार नहीं करते कि उनका स्वभाव भ्रष्ट है। जब उन्हें निपटान और काट-छाँट से गुजरना पड़ता है, तो वे ज्यादा लोगों की उपस्थिति में खुद को जानने का दिखावा करते हैं; वे खुद को दानव, शैतान कहते हैं, और कहते हैं कि उनमें मानवता नहीं है, कि वे खराब क्षमता के हैं, कि उन्होंने अपने कार्यकलापों पर ठीक से सोचा नहीं है, कि वे उस कर्तव्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं जो परमेश्वर के घर ने उन्हें दिया है। वे यह कहकर बात खत्म कर देते हैं कि यह परमेश्वर का शोधन है, उसके द्वारा उनका उद्धार है, ताकि दूसरे यह देख सकें कि निपटे जाने और काट-छाँट किए जाने के प्रति वे कितने ग्रहणशील और सत्य के प्रति कितना समर्पण करते हैं। महत्वपूर्ण रूप से, वे यह नहीं कहते कि उन्हें काट-छाँट और निपटान का सामना क्यों करना पड़ा है, न यह कि काट-छाँट और निपटान उचित या लायक थे या नहीं। वे इन विषयों पर कुछ भी कहने से बचते हैं, और दूसरे गलत ढंग से यह भी मान लेते हैं कि परमेश्वर के घर द्वारा उनकी काट-छाँट और निपटान अकारण थे, कि उनके साथ ये सब गलत हुआ और अनुचित था। जब उन्हें निपटान और काट-छाँट से गुजरना पड़ता है, तो वे यही संगति देते हैं; वे अपने द्वारा की गई कोई भी गलती, गलत काम, रुकावट और गड़बड़ी या दुष्कर्म उजागर नहीं करते। तो फिर, अपनी उस संगति में वे क्या कहते हैं, जिसमें वे अपना भ्रष्ट स्वभाव होना स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि वे सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और निपटान और काट-छाँट स्वीकार करने में सक्षम हैं? क्या वे शब्द दिल से आए होते हैं? निश्चित रूप से नहीं। वे झूठ होते हैं, वह सब—गुमराह करने और धोखा देने के लिए कहे गए झूठों का पुलिंदा होता है। बेशक, वे एक दिखावा भी होते हैं, जो मुख्य रूप से गुमराह करने और धोखा देने के लिए होते हैं। मसीह-विरोधी दूसरों को धोखा देकर क्या हासिल करना चाहते हैं? (वे चाहते हैं कि दूसरे उनका अनुसरण करें।) हाँ—वे उन्हें गुमराह करते और धोखा देते हैं, ताकि वे लोग उनकी असलियत न देख लें या उन पर दुष्ट व्यक्ति होने का ठप्पा न लगाएँ, बल्कि उन्हें ऐसा व्यक्ति समझें जो सत्य को स्वीकार करता है, जो निपटा जाना और काट-छाँट किया जाना स्वीकार करता है, जो पश्चात्ताप करने में सक्षम है। अच्छा, वे स्वयं द्वारा की गई बुराई या परमेश्वर के घर को पहुँचाए गए नुकसान के बारे में खुलकर संगति क्यों नहीं करते? (अगर वे ऐसा करेंगे, तो लोग उन्हें पहचान लेंगे।) जब लोग उन्हें पहचान लेते हैं और उनकी असलियत देख पाते हैं, और उनकी मानवता, स्वभाव और सार को उनके वास्तविक रूपों में देख लेते हैं, तो वे उनका त्याग कर देंगे। क्या वे लोग अभी भी उनकी चालों में फँसेंगे या उनके धोखे में आएँगे? क्या वे अभी भी उनका अत्यधिक सम्मान करेंगे? क्या वे अभी भी उनकी चापलूसी करेंगे? क्या वे अभी भी उनकी आराधना करेंगे? वे इनमें से कुछ भी नहीं करेंगे। जब मसीह-विरोधी अपने आत्म-ज्ञान की बात करते हैं या अपने साथ निपटे जाने और अपनी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने की बात करते हैं, तो वे लोगों से अपनी आराधना करवाने के लिए उन्हें गुमराह करने और धोखा देने के लिए वाक्छल करते हैं। यह बहुत बुरा तरीका है, है न? और कुछ लोग वास्तव में इसमें फँस जाते हैं। सच में वे बहुत अधिक प्रेरित हो जाते हैं, और जब शैतान उन्हें बहका देता है, तो वे कहते हैं, 'उसने अद्भुत ढंग से बातें कीं। मैं इतना प्रेरित हुआ कि मैं कई बार रोया, और जब ऐसा हो रहा था, तो मैंने उसे विशेष प्रशंसा और सम्मान का पात्र समझा। मुझे नहीं पता था कि वह एक मसीह-विरोधी है।' गुमराह किए जाने और धोखा दिए जाने पर ऐसा ही होता है" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'प्रकरण पाँच : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव के सार का सारांश (भाग दो)')। मैंने परमेश्वर के वचनों में देखा कि मसीह-विरोधी प्रकृति से बहुत अभिमानी होते हैं, वे कभी सत्य स्वीकार नहीं करते। उन्हें सत्य से घृणा होती है। भयंकर असफलताएँ झेलने के बावजूद वे न तो पश्चात्ताप करते हैं और न ही बदलना चाहते हैं। वे धूर्त बनकर लोगों को धोखा देना और भ्रमित करना पसंद करते हैं। मैंने अब फैंग पिंग को अच्छी तरह पहचान लिया था। रिपोर्ट करने पर वो रोईं और आत्म-ज्ञान की बातें करने लगीं, कहने लगीं कि रिपोर्ट तो परमेश्वर का प्रेम है और वो आत्म-चिंतन करेंगी, उनमें इंसानियत नहीं है, वो परमेश्वर की ऋणी हैं और पश्चात्ताप जरूर करेंगी। यहाँ तक कि उन्होंने और भी फीडबैक माँगा। उन्होंने हमें धोखा देने के लिए यह सब नाटक किया, ताकि हमें लगे कि वो काट-छाँट और निपटारे को स्वीकारने और सत्य के प्रति समर्पित होने को तैयार हैं। लेकिन जहाँ तक एक झूठे अगुआ के रूप में उनके व्यवहार की बात है, उन्होंने असली काम नहीं किया, वो मनमानी करती रहीं, उन्होंने परमेश्वर के घर के काम को नुकसान पहुँचाया, उन्होंने उनमें से किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने इंसानियत की कमी के बारे में बस थोड़ी-बहुत बातें कीं, लेकिन खुद में इंसानियत न होने का विश्लेषण कभी नहीं किया। उनकी संगति किसी भी तरह से सच्चा आत्मज्ञान नहीं थी, उन्होंने कभी अपनी भ्रष्टता के बारे में ज्यादा नहीं बताया, न ही परमेश्वर की धार्मिकता की गवाही दी। लोग उनका सम्मान करते थे और उनसे सहानुभूति रखते थे। उन्हें लगता था कि उनका ऊँचा आध्यात्मिक कद है, तभी वो रिपोर्ट करने वाले से विनम्र व्यवहार करती हैं। वो लोगों को गुमराह करके उनका समर्थन हासिल करना चाहती थीं, ताकि उनका पद बना रहे। लेकिन वो मुखौटा थोड़े समय के लिए ही था। मौका मिलते ही उन्होंने अपने तेवर बदल दिए, उनके पाखंड और रोने-धोने की कलई खुल गई, रिपोर्ट करने वाले के लिए उनकी घृणा बाहर आ गई। वो हमारी निंदा करके हमसे बदला ले रही थीं। उन्हें सत्य से घृणा थी और उनकी शातिर प्रकृति उजागर हो रही थी। वो बेहद अहंकारी थीं और किसी के सामने नहीं झुकती थीं। वो हमेशा यही चाहती थीं कि सब उनकी बात मानें, और हर मामले में उनकी राय अंतिम हो, वो कभी किसी से सलाह नहीं लेती थीं। वो न तो लोगों के सुझाव मानती थीं, न ही कभी सत्य स्वीकारती थीं। रिपोर्ट होने पर रोने-धोने का नाटक करके लोगों को धोखा देती थीं, लेकिन पश्चात्ताप करने के बजाय वो और भी दुष्ट हो गई थीं। वो एक दुष्ट व्यक्ति थीं, जिसकी प्रकृति और सार सत्य से घृणा करने का था। वो सिर्फ एक झूठी अगुआ ही नहीं थीं, बल्कि उनका पूरा सार ही मसीह-विरोधी था। उनके आडंबर ने सच में सभी को उनका असली चेहरा दिखा दिया। मुझे हैरानी हुई कि इसके बाद भी उसने बहुत-से बुरे काम किए, जिससे मुझे विश्वास हो गया कि वह परमेश्वर के कार्य से उजागर हुई एक मसीह-विरोधी थी।

मुझे पता चला कि वह और उसके साथी निकालने का काम कर रहे थे। वे अनेक सुझाव देने वाले भाई लियू को कलीसिया से निकालना चाहते थे। एक दूसरी अगुआ ने कहा कि भाई लियू निकाले जाने के मानदंड में नहीं बैठते, तो उसे भी झूठी अगुआ बताकर निकाल दिया। उनकी रिपोर्ट करने वाले दो समूह-अगुआओं को बर्खास्त करने के भी बहाने ढूँढ़ लिए। वोटिंग हुई थी, भाई-बहनों ने मुझे अपनी जगह बने रहने देने का फैसला किया। इसके ठीक बाद कलीसिया में वार्षिक चुनाव संपन्न हुए, और जिन लोगों के बारे में रिपोर्ट की गई थी, वे फिर से चुन लिए गए। वे जिन लोगों के करीब थे और फैंग पिंग की छोटी बहन, सभी को अगुआई का काम मिल गया। मुझे तो बिल्कुल समझ नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है। उन लोगों ने कलीसिया के कार्य को बिगाड़ कर रख दिया था, तो उन्हें फिर से अगुआ कैसे चुन लिया गया? मुझे यह शक भी होने लगा कि कलीसिया भी बाकी दुनिया जैसी ही है, बस रिश्तों और सत्ता का खेल है। यह सब सोचकर मेरे दिल में अंधेरा छा गया, काम करने का जोश ख़त्म हो गया। मैं बस कलीसिया छोड़कर, कोने में छिपना चाहती थी, जहां मुझे कोई न देख सके। मेरे मन में परमेश्वर की धार्मिकता को लेकर भी शंका होने लगी। मैंने सभाओं में बोलना, राय देना लगभग बंद ही कर दिया। मैं चौकन्ना रहते हुए बस एक रोबोट की तरह अपना काम निपटाती। कभी-कभी सोचती कि क्या मुझे भी उनकी चापलूसी करनी चाहिए, माफी माँगनी चाहिए, गलती मानकर अच्छे रिश्ते बना लेने चाहिए, ताकि वे रिपोर्ट करने का मामला आगे न बढ़ाएं। फिर वे लोग मुझे कम-से-कम कलीसिया से नहीं निकालेंगे।

एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचनों का पाठ देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मैं उन लोगों में प्रसन्नता अनुभव करता हूँ जो दूसरों पर शक नहीं करते, और मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच को तत्परता से स्वीकार कर लेते हैं; इन दो प्रकार के लोगों की मैं बहुत परवाह करता हूँ, क्योंकि मेरी नज़र में ये ईमानदार लोग हैं। यदि तुम धोखेबाज हो, तो तुम सभी लोगों और मामलों के प्रति सतर्क और शंकित रहोगे, और इस प्रकार मुझमें तुम्हारा विश्वास संदेह की नींव पर निर्मित होगा। मैं इस तरह के विश्वास को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। सच्चे विश्वास के अभाव में तुम सच्चे प्यार से और भी अधिक वंचित हो। और यदि तुम परमेश्वर पर इच्छानुसार संदेह करने और उसके बारे में अनुमान लगाने के आदी हो, तो तुम यकीनन सभी लोगों में सबसे अधिक धोखेबाज हो। तुम अनुमान लगाते हो कि क्या परमेश्वर मनुष्य जैसा हो सकता है : अक्षम्य रूप से पापी, क्षुद्र चरित्र का, निष्पक्षता और विवेक से विहीन, न्याय की भावना से रहित, शातिर चालबाज़ियों में प्रवृत्त, विश्वासघाती और चालाक, बुराई और अँधेरे से प्रसन्न रहने वाला, आदि-आदि। क्या लोगों के ऐसे विचारों का कारण यह नहीं है कि उन्हें परमेश्वर का थोड़ा-सा भी ज्ञान नहीं है? ऐसा विश्वास पाप से कम नहीं है! कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मानते हैं कि जो लोग मुझे खुश करते हैं, वे बिल्कुल ऐसे लोग हैं जो चापलूसी और खुशामद करते हैं, और जिनमें ऐसे हुनर नहीं होंगे, वे परमेश्वर के घर में अवांछनीय होंगे और वे वहाँ अपना स्थान खो देंगे। क्या तुम लोगों ने इतने बरसों में बस यही ज्ञान हासिल किया है? क्या तुम लोगों ने यही प्राप्त किया है? और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा। कार्य के कई वर्षों के दौरान तुम लोगों ने कई सत्य देखे हैं, किंतु क्या तुम लोग जानते हो कि मेरे कानों ने क्या सुना है? तुम में से कितने लोग सत्य को स्वीकारने के लिए तैयार हैं? तुम सब लोग विश्वास करते हो कि तुम सत्य के लिए कीमत चुकाने को तैयार हो, किंतु तुम लोगों में से कितनों ने वास्तव में सत्य के लिए दुःख झेला है? तुम लोगों के हृदय में अधार्मिकता के सिवाय कुछ नहीं है, जिससे तुम लोगों को लगता है कि हर कोई, चाहे वह कोई भी हो, धोखेबाज और कुटिल है—यहाँ तक कि तुम यह भी विश्वास करते हो कि देहधारी परमेश्वर, किसी सामान्य मनुष्य की तरह, दयालु हृदय या कृपालु प्रेम से रहित हो सकता है। इससे भी अधिक, तुम लोग विश्वास करते हो कि कुलीन चरित्र और दयालु, कृपालु प्रकृति केवल स्वर्ग के परमेश्वर में ही होती है। तुम लोग विश्वास करते हो कि ऐसा कोई संत नहीं होता, कि केवल अंधकार एवं दुष्टता ही पृथ्वी पर राज करते हैं, जबकि परमेश्वर एक ऐसी चीज़ है, जिसे लोग अच्छाई और सुंदरता के लिए अपने मनोरथ सौंपते हैं, वह उनके द्वारा गढ़ी गई एक किंवदंती है। ... तुम लोग मसीह के सभी कर्मों पर अधार्मिकता के दृष्टिकोण से विचार करते हो और उसके सभी कार्यों और साथ ही उसकी पहचान और सार का मूल्यांकन दुष्ट के परिप्रेक्ष्य से करते हो। तुम लोगों ने बहुत गंभीर गलती की है और ऐसा काम किया है, जो तुमसे पहले के लोगों ने कभी नहीं किया। अर्थात्, तुम लोग केवल अपने सिर पर मुकुट धारण करने वाले स्वर्ग के उत्कृष्ट परमेश्वर की सेवा करते हो और उस परमेश्वर की सेवा कभी नहीं करते, जिसे तुम इतना महत्वहीन समझते हो, मानो वह तुम लोगों को दिखाई तक न देता हो। क्या यह तुम लोगों का पाप नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध तुम लोगों के अपराध का विशिष्ट उदाहरण नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें)। परमेश्वर का न्याय सुनकर मुझे शर्मिंदगी हुई, लगा जैसे छिपने को कोई जगह नहीं है। मेरी पसंद के उलट चीज़ें हुईं तो भी मैंने सत्य नहीं खोजा, बल्कि परमेश्वर की धार्मिकता पर शक किया। शक किया कि ताकतवर लोग एक-दूसरे को बचाते हैं, परमेश्वर के घर में अंधकार का राज है। क्या ये ऐसा सोचना नहीं था कि परमेश्वर को दुराचार और अंधकार से प्रेम है? यह एक बेतुका नजरिया था। परमेश्वर पवित्र और धार्मिक है, इसलिए उसके घर में पवित्रता और धार्मिकता का राज होता है। झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी कलीसिया में थोड़ी देर तक अपनी चला सकते हैं, कुछ लोगों को गुमराह कर उन पर काबू कर सकते हैं, लेकिन वे कभी पाँव नहीं जमा सकते—अंत में परमेश्वर उन्हें उजागर कर हटा देगा। वह ऐसे लोगों को कलीसिया में आने की इजाजत इसलिए देता है, ताकि उसके चुने हुए लोगों में सच्चा विवेक जगे, और मसीह-विरोधियों और दुराचारियों का दुष्ट, शैतानी और परमेश्वर-विरोधी चेहरा देख सकें, फिर उन्हें ठुकराकर उनके कपट और नियंत्रण से मुक्त हो सकें। यही परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता है। लेकिन जब मैंने कलीसिया को ऐसे लोगों के नियंत्रण में देखा, उन्हें दूसरों को सताते देखा, तो मैं इस डर से चौकन्ना रहने लगी कि वे मुझे भी फटकारेंगे। मैं भाई-बहनों से ज्यादा कुछ कहने और कुछ गलत कहने से डरती थी, कि अगर मसीह-विरोधियों को मेरे खिलाफ कुछ मिल गया तो मुझे बर्खास्त कर निकाल दिया जाएगा। अपनी सुरक्षा के लिए, मैंने उनसे सुलह करने की एक दुनियावी चाल चलने की भी सोची। मुझे एहसास हुआ कि मैं सचमुच कायर हूँ, मुझमें कोई दम है ही नहीं। परमेश्वर की धार्मिकता को नकार, मैंने ये मानने से इनकार किया कि उसके घर में सत्य और मसीह की सत्ता है। परमेश्वर के ये वचन दिल को छू गए: "और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें)। फिर मुझे बहुत डर लगा। मैं बेतुकी धारणाओं से परमेश्वर की निंदा कर उसे बदनाम कर रही थी। मैं समझ गई कि मुझे परमेश्वर की कोई वास्तविक समझ नहीं थी। मसीह-विरोधियों द्वारा दबाए जाने के बाद, मैंने सत्य नहीं खोजा, विवेक हासिल नहीं किया, मसीह-विरोधी ताकतों के खिलाफ खड़ी नहीं हुई, बल्कि परमेश्वर के घर की धार्मिकता पर शक किया। यह मेरी दुष्टता थी! झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी कलीसिया में सिर्फ परमेश्वर की इजाजत से प्रकट होते हैं। वह हमारे लिए एक व्यावहारिक सबक तय करता है, इसलिए मुझे उस माहौल में सत्य खोजकर अपना सबक सीखना था। यह एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर के सामने घुटने टेककर प्रार्थना की। मैंने कहा, "हे परमेश्वर, मैं प्रायश्चित करना चाहती हूँ। मुझे आस्था दो। अब से मेरे सामने जो आएगा, मैं उससे पार पाने के लिए आप पर भरोसा करूँगी।" प्रार्थना करने के बाद मुझे राहत मिली।

एक दिन, फैंग पिंग की बहन मेरे साथ सभा में जाने वाली थी, उसने कहा कि कुछ भाई-बहनों ने मेरी रिपोर्ट की है, तो मुझे अपना काम रोकना पड़ेगा। क्या रिपोर्ट की है, ये नहीं बताया बस इतना कहा कि मैं आत्मचिंतन करूँ। और बोली कि अगर कोई मेरी बर्खास्तगी का कारण पूछे तो मैं कुछ न कहूँ। मेरे साथ यह सब बहुत अचानक हुआ, मुझे कुछ समझ नहीं आया क्या करूँ—दिमाग सुन्न पड़ गया। मैं घर जाकर स्तब्ध-सी बैठी रही, सोच में डूबी रही। क्या ये लोग मुझे कलीसिया से निकाल देंगे? जब इन लोगों ने भाई लियू को निकाल दिया, पहले तो उनकी बड़ी उम्र का बहाना बनाया, फिर उसे निकालने के दस्तावेज बना दिए। मैं बहुत डरी हुई थी। अगर इन लोगों ने मेरे साथ भी ऐसी ही चाल चली, तो क्या करूँगी। कभी आशा करते हुए सोचती, कि शायद किसी ने सच में मेरी रिपोर्ट की हो, और जाँच के बाद, वे मुझे सभाओं में जाने और कोई काम करने देंगे। मैं इस बारे में आशा और निराशा के बीच झूल रही थी। मुझे लगा मेरा सिर फटनेवाला है। मैं दुखी थी, मानो कोई भारी पत्थर मेरे दिल पर रखा हो। समझ नहीं आया कि उस हालत से कैसे उबरूं, फिर से परमेश्वर के शासन पर शक करने लगी। मैं तुरंत प्रार्थना की, परमेश्वर से मेरी देखभाल करने की विनती की ताकि मैं आस्था खोकर उसके कार्य पर शक न करूँ। मैं जानती थी कि परमेश्वर मेरे साथ ऐसा होने दे रहा था, यह मेरे जीवन के लिए लाभकारी है। मैं शांत होकर सच में सत्य खोजना चाहती थी। इसके बाद, मैंने परमेश्वर के शासन और परीक्षणों से गुजरने की समझ पर उसके बहुत-से वचन पढ़े, फिर एहसास हुआ कि सब परमेश्वर ही होने दे रहा था। उसकी इजाजत के बिना, शैतान या मसीह-विरोधी जितने भी क्रूर हों, मुझे छू नहीं सकते। पता नहीं वो झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी क्या करने वाले थे, लेकिन मैं प्रतीक्षा करना और खोजना सीख सकती थी, कम-से-कम परमेश्वर को दोष न देकर, शैतान की हंसी का पात्र बनने से बच सकती थी। अगर इन लोगों ने मुझे बाहर निकाल भी दिया, तो भी मैं अपनी आस्था नहीं छोड़ूँगी, सुसमाचार साझा करके काम करती रहूँगी। ये सब सोचकर मेरी कमजोरी और डर दोनों कम हो गए।

दो-चार हफ्ते बाद, फैंग पिंग की छोटी बहन ने मुझसे बहन झांग का आकलन मांगा। वह बहन जिसने मेरे साथ मिलकर रिपोर्ट लिखी थी। मुझे लगा शायद ये उसे कलीसिया निकालने के लिए कागज तैयार कर रहे हैं, तो मैंने मन-ही-मन फैंग पिंग की तमाम करतूतों सहित जो हुआ उस के बारे में विस्तार से सोचा। मुझे लगा कि अब मैं उन्हें बेहतर ढंग से जानती हूँ। मैंने कुछ वचन पढ़े। परमेश्वर कहते हैं, "जब कोई मसीह-विरोधी किसी विरोधी पर आक्रमण करके उसे निकाल देता है, तो उसका मुख्य उद्देश्य क्या होता है? वे लोग कलीसिया में एक ऐसी स्थिति पैदा करने का प्रयास करते हैं जहाँ उनकी आवाज के विरोध में कोई आवाज न उठे, जहाँ उनकी सत्ता, उनका शासन और उनके शब्द ही सर्वोपरि हों। हर कोई उन्हीं की बात माने और अगर किसी की राय अलग हो, तो उसे वे अपने पास ही रखें और वहीं खत्म कर दें। यह एक तकनीक है जिसे अपनी हैसियत को मजबूत करने के लिए वे लोग इस्तेमाल करते हैं जो विरोधियों पर हमला करते और उन्हें बहिष्कृत करते हैं। वे कहते हैं, 'तुम्हारी राय मुझसे अलग हो सकती है, लेकिन तुम उसके बारे में मनचाही बातें नहीं बना सकते, मेरी सत्ता और हैसियत को जोखिम में तो बिल्कुल नहीं डाल सकते। अगर कुछ कहना है, तो मुझसे अकेले में कह सकते हो। यदि तुम सबके सामने कहकर मुझे शर्मिंदा करोगे, तो डाँट खाओगे, और मुझे तुम्हारा ध्यान रखना पड़ेगा।' यह किस प्रकार का स्वभाव है? मसीह-विरोधी दूसरों को खुलकर नहीं बोलने देते। अगर उनकी कोई राय होती है—फिर वह चाहे मसीह-विरोधी के बारे में हो या किसी और चीज के बारे में—उन्हें उसे अपने तक ही सीमित रखना चाहिए; उन्हें मसीह-विरोधी के चेहरे के भावों का ख्याल रखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया, तो मसीह-विरोधी उन्हें शत्रु घोषित कर देगा, और उन पर आक्रमण कर उन्हें बाहर कर देगा। यह किस तरह की प्रकृति है? यह एक मसीह विरोधी की प्रकृति है। और वे ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि वे लोगों के मन में अपनी सत्ता और हैसियत को लगातार मजबूत करते रहना चाहते हैं और अपनी सत्ता और हैसियत को दृढ़ और अडिग बनाए रखना चाहते हैं। वे ऐसी कोई चीज बरदाश्त नहीं कर सकते, जो एक अगुआ के रूप में उनके गौरव, प्रतिष्ठा या हैसियत और मूल्य के लिए खतरा बने या उस पर असर डाले। क्या यह मसीह-विरोधी की दुष्ट प्रकृति की अभिव्यक्ति नहीं है? वे पहले से मौजूद अपनी ताकत से संतुष्ट नहीं होते, वे उसे भी मजबूत और सुरक्षित बनाकर पूर्ण सत्ता चाहते हैं। वे केवल लोगों के व्यवहार को ही नियंत्रित नहीं करना चाहते, बल्कि उनके दिलों को भी नियंत्रित करना चाहते हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं')। मैं परमेश्वर के वचनों से समझ गई कि मसीह-विरोधी बस कलीसिया में अपनी सत्ता और ओहदे को मजबूत करना चाहते हैं, इसलिए वे उस व्यक्ति का दमन कर उसे फटकार सकते हैं, जिसका मत अलग हो या जो उनकी रिपोर्ट करना चाहता हो। क्या फैंग पिंग और उसके साथी ठीक वैसे नहीं थे, जैसा वर्णन परमेश्वर ने मसीह-विरोधियों का किया था? कुछ लोगों ने उनका असली चेहरा देखा और रिपोर्ट की, तो वे उन्हें बर्खास्त करने का मौका मिलते ही झपट पड़े। उनके द्वारा दंडित सभी भाई-बहन उनके पर्यवेक्षण के दायरे में थे, जैसे ही लोग उनकी असलियत दिखाने की कोशिश करते, वे उन्हें बर्खास्त करने के कागज तैयार करने की तैयारी में जुट जाते। जो उन्हें जान गए उन अगुआओं और कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया, उनके पदों पर अपनी पसंद के पिट्ठुओं को बैठा दिया। वे अपना एक गुट बनाने के लिए एकजुट हो चुके थे। रिपोर्ट करने के बाद हालत और भी बदतर हो गई, अब यह मसीह-विरोधियों का पक्का गिरोह बन गया। अगर मैंने उनके दुराचार की रिपोर्ट नहीं की, तो न सिर्फ परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचेगा, बल्कि भाई-बहनों के लिए भी भयानक होगा। लेकिन फिर से उनकी रिपोर्ट करने के विचार से मैं सिहर उठी। वे सभी अगुआ के पद पर थे, और मैं बर्खास्त हो चुकी थी, सभाओं से निलंबित थी। फिर अगर मैंने उनकी रिपोर्ट की, तो क्या दूसरे लोग मेरा विश्वास करेंगे? अगर पहले की तरह मेरी रिपोर्ट उस गिरोह के हाथ लग गयी, तो न सिर्फ उस पर कोई कार्यवाही नहीं होगी, बल्कि वे मुझे कलीसिया से भी बाहर निकाल देंगे। यह मेरा अंत होगा। निकाल दिए जाने के ख्याल से मुझमें ऐसा डर समा गया कि बयान नहीं कर सकती। लेकिन फिर मैंने सोचा कि वे पहले ही कलीसिया के कार्य को गंभीर रूप से बाधित कर चुके हैं, अभी भी लोगों पर प्रहार कर तांडव किए जा रहे हैं। अगर मैं उनकी रिपोर्ट करने से इतनी डरूंगी और उन्हें तांडव करने दूँगी, तो कौन जाने कितने भाई-बहनों का नुकसान होगा। यह परमेश्वर के सामने एक गंभीर अपराध होगा, शायद वह मुझे त्याग दे। कुछ दिन तक मैं न खा पाई, न सो पाई। फिर भाई झाओ ने मुझे फोन करके पूछा कि मैंने पहले रिपोर्ट में क्या लिखा था और अब मैं क्या सोचती हूँ। मैंने कहा, "थोड़ी प्रतीक्षा करें।" उन्होंने कहा, "अगर आपने अभी रिपोर्ट न की, तो भी क्या फैंग पिंग आपको छोड़ देगी? यह कोई निजी मामला नहीं, बल्कि कलीसिया के कार्य से जुड़ा है। थोड़ा गौर कीजिए।" उनसे फोन पर बात पूरी होने के बाद मैं बहुत परेशान रही। उनकी बात बार-बार मन में कौंध रही थी। मैं बहुत बेचैन थी, समझ नहीं आया क्या करूँ। कभी कि उसकी बात मानकर एक और रिपोर्ट लिख डालूँ। तो कभी अपने भविष्य और नियति के बारे में सोचने लगती, निकाल दिए जाने और आस्था के जीवन के ख़त्म होने से डर जाती। मेरे भीतर हलचल मची हुई थी। फिर परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा। परमेश्वर कहते हैं, "जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को प्राप्त नहीं कर लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। वह प्रकृति विशिष्ट रूप से किस चीज़ को अपरिहार्य बनाती है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीज़ों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीज़ें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीज़ें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकारकर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि वे शैतान के जहर से युक्त हैं। तो शैतान का जहर क्या है—इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, 'लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?' तो लोग जवाब देंगे, 'हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये।' यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा लोगों का जीवन बन गया है। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे उसे बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। 'हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये'—यही मनुष्य का जीवन और फ़लसफ़ा है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति, भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर बन गए हैं, और यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है; कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'पतरस के मार्ग पर कैसे चलें')। इस बारे में सोचकर, मैं समझ गई कि अपनी रक्षा करना, हर कदम पर फैंग पिंग की रिपोर्ट करने से डरना, ऐसे शैतानी जहर वाला जीवन जीना था, जैसे, "सबसे बाहर निकली कील ही हथौड़ी से ठोकी जाती है," "खुद को बचाओ, केवल आरोप से बचने का रास्ता सोचो," "हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये।" यह जहर मेरे रग-रग में गहराई तक समा चुके थे, इसलिए मैं अपनी कथनी और करनी में स्वार्थी और कपटी थी, सिर्फ अपने बारे में सोचती थी। विश्वासी बनने से पहले, अपने कामकाज और निजी जिंदगी में, किसी के साथ कोई समस्या दिखने पर भी मैं नहीं बताती कि कहीं उसका दिल न दुखे। कलीसिया में शामिल होने के बाद भी, मैं सत्य पर अमल करने के बजाय, इन्हीं फलसफों पर चलती रही। मुझे पता था कि फैंग पिंग और अन्य मसीह-विरोधियों का एक गिरोह हैं, मुझे परमेश्वर के साथ खड़े होकर उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए, मगर मैं सिर्फ अपने भविष्य के बारे में सोचती रही, परमेश्वर के घर के कार्य और दूसरों के जीवन-प्रवेश का ध्यान नहीं रखा। यह सचमुच स्वार्थी और नीच काम था!

फिर मैंने सोचा कि आखिर मैं उन लोगों से क्यों डरती थी। क्या वे मेरी नियति तय कर सकते हैं? क्या मेरा भविष्य और नियति पूरी तरह से परमेश्वर के हाथ में नहीं है? दुष्ट मसीह-विरोधी ताकतों से इस तरह डरना क्या मेरी बेवकूफी नहीं थी? इससे मुझे परमेश्वर के वचन याद आए। परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर के कोप की अभिव्यक्ति इस बात की प्रतीक है कि समस्त बुरी ताकतें अस्तित्व में नहीं रहेंगी, और यह इस बात की प्रतीक है कि सभी विरोधी शक्तियाँ नष्ट कर दी जाएँगी। यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और उसके कोप की अद्वितीयता है। जब परमेश्वर की गरिमा और पवित्रता को चुनौती दी जाती है, जब मनुष्य द्वारा न्याय की ताकतों को रोका जाता है और उनकी अनदेखी की जाती है, तब परमेश्वर अपने कोप को भेजता है। परमेश्वर के सार के कारण पृथ्वी की वे सारी ताकतें, जो परमेश्वर का मुकाबला करती हैं, उसका विरोध करती हैं और उसके साथ संघर्ष करती हैं, बुरी, भ्रष्ट और अन्यायी हैं; वे शैतान से आती हैं और उसी से संबंधित हैं। चूँकि परमेश्वर न्यायी है, प्रकाशमय है, दोषरहित और पवित्र है, इसलिए समस्त बुरी, भ्रष्ट और शैतान से संबंध रखने वाली चीज़ें परमेश्वर का कोप प्रकट होने पर नष्ट हो जाएँगी" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II)। परमेश्वर का घर इस दुनिया की तरह नहीं है—यहाँ उसी की सत्ता है। वह सत्य है, धार्मिक है, सारे प्रकाश और अच्छाइयों का प्रतीक है। सारे मसीह-विरोधी और दुराचारी लोग, ये काली शैतानी ताकतें, यहाँ अपने पाँव नहीं जमा सकतीं, वे परमेश्वर द्वारा दंडित और शापित होंगी। मुझे इस तरह परेशान होने की जरूरत नहीं। झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी भी परमेश्वर के हाथ में होते हैं। अगर उन्होंने मुझे निकाल भी दिया, तो इसमें मेरे लिए एक सबक होगा। मैं जान गई कि अब मुझे उनसे डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि मुझे सत्य पर अमल करना होगा, दृढ़ता से उनकी रिपोर्ट करनी होगी। इसलिए मैंने रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए बहन झांग को फोन किया, मैं उनकी यह बात सुनकर हैरानी हो गई कि फैंग पिंग का गिरोह मुझे निकालने के कागज तैयार कर रहा था। मुझे पहले ही पता था कि वे मुझे निकाल देने का कोई तरीका ढूँढ़ ही लेंगे, लेकिन यह खबर बहुत चौंकाने वाली थी, मेरा पसीना छूट गया। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। परमेश्वर कहते हैं, "यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही दे सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे 'मृत्यु दफ़्न करना' कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को बहिष्कृत करना। यदि किसी कलीसिया में कई स्थानीय गुण्डे हैं, और कुछ छोटी-मोटी 'मक्खियों' द्वारा उनका अनुसरण किया जाता है जिनमें विवेक का पूर्णतः अभाव है, और यदि समागम के सदस्य, सच्चाई जान लेने के बाद भी, इन गुण्डों की जकड़न और तिकड़म को नकार नहीं पाते, तो उन सभी मूर्खों का अंत में सफाया कर दिया जायेगा। भले ही इन छोटी-छोटी मक्खियों ने कुछ खौफ़नाक न किया हो, लेकिन ये और भी धूर्त, ज़्यादा मक्कार और कपटी होती हैं, इस तरह के सभी लोगों को हटा दिया जाएगा। एक भी नहीं बचेगा! जो शैतान से जुड़े हैं, उन्हें शैतान के पास भेज दिया जाएगा, जबकि जो परमेश्वर से संबंधित हैं, वे निश्चित रूप से सत्य की खोज में चले जाएँगे; यह उनकी प्रकृति के अनुसार तय होता है। उन सभी को नष्ट हो जाने दो जो शैतान का अनुसरण करते हैं! इन लोगों के प्रति कोई दया-भाव नहीं दिखाया जायेगा। जो सत्य के खोजी हैं उनका भरण-पोषण होने दो और वे अपने हृदय के तृप्त होने तक परमेश्वर के वचनों में आनंद प्राप्त करें। परमेश्वर धार्मिक है; वह किसी से पक्षपात नहीं करता। यदि तुम शैतान हो, तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते; और यदि तुम सत्य की खोज करने वाले हो, तो यह निश्चित है कि तुम शैतान के बंदी नहीं बनोगे—इसमें कोई संदेह नहीं है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं उसके अपमान न सहने वाले पवित्र, धार्मिक स्वभाव को सचमुच अनुभव कर पाई। वह झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को अपने कार्य को बाधित नहीं करने देगा, या अपने चुने हुए लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाने देगा। परमेश्वर उनसे भी घृणा करता है जो झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के प्रकट होने पर, सत्य पर अमल कर कलीसिया के हितों का मान नहीं रखते। अगर वे प्रायश्चित न करें, तो वे सभी हटा दिए जाएँगे और दंडित होंगे। फैंग पिंग और उसके गिरोह के सामने, अगर मैं सत्य पर अमल करके दृढ़ता से रिपोर्ट न कर सकी, तो क्या यह शैतान का साथ देना, उन लोगों को परमेश्वर के घर में उधम मचाने देना नहीं है? मैं उनके दुराचार में हाथ बंटा रही थी। मैं परमेश्वर द्वारा दिए गए सत्य का आनंद ले रही थी, उसकी चीजें खा-पी रही थी, लेकिन जब मसीह-विरोधी उसके घर के कार्य को बाधित कर रहे थे, तो मैं उसके घर के हितों का मान नहीं रख पाई। यह परमेश्वर के साथ बहुत बड़ा धोखा था, वह इसकी निंदा करता है। जैसा कि परमेश्वर ने कहा, "उन सभी को नष्ट हो जाने दो जो शैतान का अनुसरण करते हैं!" यह बात याद आते ही मैं सच में डर गई। मुझे मालूम था कि अगर मैंने प्रायश्चित नहीं किया, तो वे मुझे न भी निकालें, तो भी मैं झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के साथ दंडित करके हटा दी जाऊँगी। फिर मैं प्रार्थना के लिए परमेश्वर के सामने आई, मैंने विनती की, "हे परमेश्वर, मैं प्रायश्चित करना चाहती हूँ। मुझे खुद की रक्षा पर इतना ध्यान नहीं देना चाहिए। मुझे शक्ति दो, ताकि मैं सत्य पर अमल कर सकूँ, शैतान की काली ताकतों के सामने पीछे न हटूं, कलीसिया के कार्य के लिए दृढ़ता से खड़ी रहूँ। वे चाहे मुझे निकाल भी दें, तो भी मैं वह सब लिखूँगी जो मैं जानती हूँ।" इसके बाद, एक बहन की मदद से, मैंने अपनी रिपोर्ट एक उच्च अगुआ को सीधे पहुँचा दी। जाँच हुई, और तय किया गया कि वे मसीह-विरोधी हैं। लेकिन काम से निलंबित होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। वे लड़ाई लड़ने के लिए चोरी-छिपे अपने दोस्तों का इस्तेमाल कर रहे थे, भाई-बहनों को धोखा देकर उनसे अपने दुष्कर्मों के सबूत छिपाने को कहा। उन्होंने उन बहनों का भी निरीक्षण किया जो रिपोर्ट जाँचने के लिए आई थीं। अंत में, मसीह-विरोधियों के उस पूरे गिरोह को कलीसिया से निकाल दिया गया, जिन भाई-बहनों का दमन हुआ था, वे फिर से कलीसिया का सामान्य जीवन जीते हुए अपना काम कर सके।

इस पूरे दौरान मैंने सही मायनों में परमेश्वर के धार्मिक, अपमान सहन न करने वाले स्वभाव को देखा, और समझा कि परमेश्वर के घर में सत्य, परमेश्वर और धार्मिकता का शासन होता है। शैतान जितना भी खूंखार क्यों न हो, जितना भी ताकतवर क्यों न दिखे, वह सिर्फ एक औजार है जिससे परमेश्वर अपने चुने लोगों को पूर्ण करता है। मुझे एक अंश याद आ रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "हम हमेशा बोलते हैं कि शैतान कितना शातिर, दुष्ट और द्वेषपूर्ण है, कि वह सत्य का तिरस्कार करता है और उससे घृणा करता है। क्या तुम इसे देख सकते हो? क्या तुम देख सकते हो कि शैतान आध्यात्मिक दुनिया में क्या करता है? वह कैसे बोलता और कार्य करता है, सत्य और परमेश्वर के प्रति उसका क्या दृष्टिकोण है, उसकी बुराई कहाँ है—तुम इनमें से कुछ नहीं देख सकते। इसलिए, कोई कितना भी कहे कि शैतान दुष्ट है, वह परमेश्वर का प्रतिरोध करता है और सत्य से घृणा करता है, लेकिन तुम्हारे दिमाग में यह केवल एक कथन होता है। इसकी कोई सच्ची छवि नहीं होती। यह बहुत खोखला और अव्यावहारिक होता है; यह एक व्यावहारिक संदर्भ नहीं हो सकता। लेकिन जब कोई किसी मसीह-विरोधी के संपर्क में आता है, तो वह शैतान का बुरा, शातिर स्वभाव और उसका सत्य से घृणा करने वाला सार थोड़ा और अधिक स्पष्ट रूप से देख लेता है, और शैतान के बारे में उसकी समझ थोड़ी और अधिक तीक्ष्ण और व्यावहारिक हो जाती है। इन वास्तविक उदाहरणों और घटनाओं के संपर्क में आए बिना और इन्हें देखे बिना लोगों द्वारा समझे जाने वाले सत्य अस्पष्ट, खोखले और अव्यावहारिक होंगे। लेकिन जब लोग इन मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों के वास्तविक संपर्क में आते हैं, तो वे देख सकते हैं कि वे किस प्रकार बुराई और परमेश्वर का विरोध करते हैं, और वे शैतान के स्वभाव और सार की पहचान कर सकते हैं। वे देखते हैं कि ये दुष्ट लोग और मसीह-विरोधी देहधारी शैतान हैं—कि वे जीवित शैतान, जीवित दानव हैं। मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों के संपर्क का ऐसा प्रभाव हो सकता है। जब शैतान एक दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी के रूप में देहधारण करता है, तो उसके दैहिक शरीर की क्षमताएँ केवल इतनी ही होती हैं, फिर भी वह बहुत सारे बुरे काम कर सकता है, बहुत उत्पात मचा सकता है, और आचरण और कर्म में बहुत दुष्ट और कपटी हो सकता है। तो फिर, आध्यात्मिक शैतान का क्या? वह जो बुराई करता है, वह सभी दुष्ट लोगों, मसीह-विरोधियों और देह में रहने वाले दानवों द्वारा की जाने वाली बुराई के कुल योग से सौ या हजार गुना अधिक होती है। इसलिए, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के संपर्क में आने से लोग जो सबक सीखते हैं, वे विवेक विकसित करने और शैतान का चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में बहुत मददगार होते हैं। वे लोगों को यह जानने में सक्षम बनाते हैं कि कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी नकारात्मक, परमेश्वर किससे घृणा करता है और किससे प्रसन्न होता है, सत्य क्या है और बेहूदगी क्या है, धार्मिक क्या है और दुष्टता क्या है, परमेश्वर वास्तव में किससे नफरत करता है और किससे प्रेम करता है, और परमेश्वर किन लोगों को ठुकराता और हटाता है और किनकी प्रशंसा करता है और किन्हें प्राप्त करता है। इन प्रश्नों को केवल सिद्धांत से समझने का प्रयास करना व्यर्थ है। व्यक्ति को बहुत-सी चीजों का अनुभव करना चाहिए, विशेष रूप से दुष्ट लोगों और मसीह-विरोधियों के धोखे और गड़बड़ी का। सच्ची समझ के बिना व्यक्ति ये अनेक सत्य नहीं समझ सकता और इस बात की गहरी और अधिक व्यावहारिक समझ प्राप्त नहीं कर सकता कि परमेश्वर की अपेक्षा क्या है और वह क्या हासिल करना चाहता है। क्या इससे परमेश्वर की इच्छा की अधिक समझ पैदा होती है? (हाँ।) क्या यह तुम्हें अधिक आश्वस्त कर सकता है कि परमेश्वर सत्य है और वह सबसे प्यारा है? (हाँ।) परमेश्वर ने लोगों को चीजों का अनुभव करने के दौरान सबक सिखाए हैं और उनका विवेक विकसित किया है, और वह निश्चित रूप से लोगों को प्रशिक्षण भी दे रहा है, साथ ही प्रत्येक प्रकार के लोगों को प्रकट भी कर रहा है। जब कुछ लोगों का सामना किसी दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी से होता है, तो वे उसे बेनकाब करने या पहचानने की हिम्मत नहीं करते, और उसके संपर्क में आने का साहस नहीं करते। वे डरते हैं, केवल उससे बचने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, मानो उन्होंने कोई जहरीला साँप देख लिया हो। ऐसे लोग सबक सीखने के मामले में बहुत डरपोक होते हैं, और उनमें विवेक विकसित नहीं हो पाता। कुछ लोग किसी दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी से सामना होने पर अंतर करना सीखने की जहमत नहीं उठाते; वे अपने गर्म लहू को उनके प्रति अपने व्यवहार को निर्देशित करने देते हैं, और जब किसी मसीह-विरोधी को बेनकाब करने और पहचानने का समय आता है, तो वे किसी काम के नहीं हो सकते या कुछ व्यावहारिक नहीं कर सकते। कुछ लोग किसी मसीह-विरोधी को बहुत बुराई करते देखते हैं और वे इससे दिल से घृणा करते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे इस बारे में कुछ नहीं कर सकते, कि उनके हाथ बँधे हैं। मसीह-विरोधी अपनी इच्छानुसार उनके साथ खिलवाड़ करते हैं, जिनके प्रति वे नम्रता से समर्पित रहते हैं। वे इसे सहते हैं और खुद को काबू में रखते हैं, और मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी उपद्रव करे, वे उसकी रिपोर्ट नहीं करते या उसे बेनकाब नहीं करते। मनुष्य के नाते अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य निभाने में वे विफल रहते हैं। संक्षेप में, जब दुष्ट लोग और मसीह-विरोधी कहर बरपाते हैं और मनमानी करते हैं, तो यह सभी प्रकार के लोगों को उजागर करता है, और निश्चित रूप से, यह उन लोगों को प्रशिक्षित करने का काम भी करता है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और धार्मिकता की भावना रखते हैं, ताकि उनका विवेक और अंतर्दृष्टि बढ़ सके, और वे कुछ सीख सकें और परमेश्वर की इच्छा समझ सकें। वे परमेश्वर की इच्छा के बारे में क्या समझते हैं? उन्हें यह समझाया जाता है कि परमेश्वर मसीह-विरोधी जैसे लोगों को नहीं बचाता, बल्कि जब तक वे अपनी सेवा पूरी नहीं कर लेते, तब तक बस उनका उपयोग करता है, फिर उन्हें उजागर कर हटा देता है, और अंततः उन्हें दंडित करता है, क्योंकि वे बुरे लोग हैं और शैतान के हैं। जिन्हें परमेश्वर बचाता है, वे लोगों का एक समूह है, जो अपने भ्रष्ट स्वभाव के बावजूद, सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, और यह पहचानते हैं कि परमेश्वर सत्य है, और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होते हैं, और कोई अपराध करने के बावजूद अभी भी पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं। ये लोग निपटा जाना, काट-छाँट और न्याय किया जाना और ताड़ना दिया जाना स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, जो लोग उस कार्य को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं, और उससे कुछ सीख सकते हैं—वे ही ऐसे लोगों का समूह हैं, जो वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उसके कार्य का अनुभव करते हैं, और उसके द्वारा प्राप्त किए जाते हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग आठ)')। उन मसीह-विरोधियों की यातना और दमन सहकर, मैं बारीकी से देख सकी कि उनका सार कितना दुष्ट और क्रूर है। जो उनकी बात नहीं सुनता, उनकी रिपोर्ट करता या उनके पद के लिए खतरा है उसे वो निंदित कर निकाल देंगे। यही नहीं, उनमें जरा भी जमीर या समझ नहीं है। वे चाहे जितना भी दुराचार करें या जितने भी लोगों का दमन करें, उनका जितनी भी बार निपटान किया जाए, उन्हें जरा भी पछतावा या पश्चाताप नहीं होता। मैं समझ सकी कि सत्य से घृणा करना मसीह-विरोधियों का सार है। वे परमेश्वर के दुश्मन हैं, पृथ्वी पर फिर से जन्मे दानव हैं। मैंने निजी तौर पर भी अनुभव किया कि अगर आप मसीह-विरोधी सत्ता से डर कर उसे उजागर करने या उसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत न करें, तो वैसे भी आप कुचल दिए जाएँगे। आपको परमेश्वर के साथ खड़े रहकर, उसके वचनों और सत्य द्वारा उनसे लड़ना होगा। उन्हें कलीसिया से निकालने के लिए आपको उनकी रिपोर्ट कर उन्हें ठुकराना होगा। उनकी सत्ता और नियंत्रण से बचने, शैतान पर विजय पाने का यही एक रास्ता है। मुझे यह सब जानने-सीखने का मौका पूरी तरह से परमेश्वर के कार्य के कारण मिला! परमेश्वर का धन्यवाद!

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