मैंने अपने झूठ बोलने का समाधान कैसे किया

16 दिसम्बर, 2025

शाओ कोंग, चीन

दिसंबर 2023 में मैं सिंचन कर्तव्य कर रहा था और कई कलीसियाओं के सिंचन कार्य के लिए जिम्मेदार था। उस समय मैं अपने कर्तव्य में बहुत सक्रिय था और नए विश्वासियों की स्थितियों की बुनियादी समझ रखता था। मार्च 2024 तक जिआंगलिन कलीसिया में नए विश्वासियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी और पर्यवेक्षक ने मुझे इस कलीसिया के सिंचन कार्य की जिम्मेदारी लेने के लिए व्यवस्थित कर दिया। चूँकि यह कलीसिया उन दूसरी कलीसियाओं से काफी दूर थी, जिनके लिए मैं जिम्मेदार था और सामान्य स्थिति भी अच्छी नहीं थी, पर्यवेक्षक ने मुझे चेताया कि अगर मैं समय पर नए विश्वासियों से नहीं मिल पाऊँ तो मुझे सिंचनकर्ताओं को अधिक पत्र लिखने चाहिए ताकि मैं यह समझ सकूँ कि नए विश्वासी कैसा कर रहे हैं। उस समय मैंने बिना किसी झिझक के सहमति दे दी।

एक सप्ताह बाद पर्यवेक्षक ने पत्र लिखकर नए विश्वासियों की हाल की अवस्थाओं और मुश्किलों के बारे में पूछा, साथ ही यह भी पूछा कि ये नए विश्वासी किस प्रकार के कर्तव्यों के लिए उपयुक्त हैं। ये प्रश्न देखकर मैंने मन ही मन सोचा, “मैंने अभी-अभी जिआंगलिन कलीसिया के सिंचन कार्य की जिम्मेदारी सँभाली है और मुझे नए विश्वासियों की स्थितियों की केवल सामान्य जानकारी है, खास विवरण नहीं है। मैंने पर्यवेक्षक से वादा किया था कि मैं नए विश्वासियों की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करूँगा, लेकिन अभी तक मैंने वाकई उनका सही ढंग से जायजा नहीं लिया है। अगर मैं सच्चाई से उत्तर दूँ तो पर्यवेक्षक मेरे बारे में क्या सोचेगा? क्या वह सोचेगा कि मैं अनमना हो रहा हूँ और वास्तविक कार्य नहीं कर रहा हूँ? क्या वह सोचेगा कि मैं इतने समय से सिंचन कार्य कर रहा हूँ, फिर भी मुझे यह तक नहीं आता कि कार्य का जायजा कैसे लिया जाता है और मेरी काबिलियत भी खराब है? क्या वह मुझे नीची नजरों से देखेगा?” यह सोचकर मैं उसे उत्तर नहीं देना चाहता था, लेकिन मैं उत्तर दिए बिना भी नहीं रह सकता था। मैं सचमुच दुविधा में पड़ गया था। अगर जवाब देता तो भी मुश्किल, नहीं देता तो भी। उसी समय मुझे एक विचार आया, “अगर मैं अभी जिआंगलिन कलीसिया के सिंचनकर्ताओं को पत्र लिख दूँ और पर्यवेक्षक को उत्तर देने से पहले चीजें स्पष्ट कर दूँ तो पर्यवेक्षक को यह नहीं लगेगा कि मेरी कार्यक्षमता खराब है, मैं अनमना हो रहा हूँ और वास्तविक कार्य नहीं कर रहा हूँ।” इसलिए मैंने जल्दी से जिआंगलिन कलीसिया के सिंचनकर्ताओं को पत्र लिखा। पत्र पूरा करने के बाद भी मुझे बेचैनी महसूस हो रही थी। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर सिंचनकर्ताओं ने उत्तर देने में देर की और इंतजार करने की वजह से मैं पर्यवेक्षक को समय पर उत्तर नहीं दे पाया तो पर्यवेक्षक के सामने मेरी छवि खराब हो जाएगी। इस स्थिति में यह उजागर हो जाएगा कि मैंने कार्य का ठीक से जायजा नहीं लिया है। इस तरह न सिर्फ मेरा अभिमान और रुतबा बरकरार नहीं रह पाएगा, बल्कि मैं फिर से दुविधा में भी फँस जाऊँगा और अगर पर्यवेक्षक बाद में इसका कारण पूछता है तो मेरे पास अच्छा स्पष्टीकरण नहीं होगा। मुझे पहले पर्यवेक्षक को उत्तर दे देना चाहिए। लेकिन मैं ऐसा क्या कहूँ जिससे पर्यवेक्षक को लगे कि देर से जवाब देने के पीछे कोई जायज वजह है? पर्यवेक्षक ने बहुत सारे प्रश्न पूछे हैं और अगर मैं कहूँ कि मैंने इन सभी मुद्दों का जायजा लिया है तो यह व्यावहारिक नहीं होगा। इसलिए मैं बस इतना कहूँगा कि मैंने एक मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया है और मैं इसका जायजा लेने के लिए पत्र लिख रहा हूँ और उत्तर मिलने के बाद मैं समग्र रूप से प्रतिक्रिया दूँगा। इस तरह पर्यवेक्षक मेरे बारे में कुछ नहीं कहेगा। आखिरकार लोग हर मुद्दे के बारे में विस्तार से नहीं सोचते—एक-दो बातों को छोड़ देना सामान्य है।” इसलिए मैंने पर्यवेक्षक को इस तरह उत्तर दे दिया। कुछ दिनों बाद जिआंगलिन कलीसिया के सिंचनकर्ताओं ने नए विश्वासियों की स्थितियों का विवरण भेजा और मैंने उन बातों को पर्यवेक्षक को बिंदुवार बताया। पर्यवेक्षक ने कुछ नहीं कहा और मुझे राहत महसूस हुई, मैंने सोचा, “शुक्र है मैंने स्थिति की सच्चाई के साथ रिपोर्ट नहीं की; वरना पर्यवेक्षक पक्का सोचता कि मेरी सोच सीमित है और वह मेरी कार्यक्षमता पर सवाल उठाता या वह सोचता कि मैं अनमना हो रहा हूँ और वास्तविक कार्य नहीं कर रहा हूँ। अगर ऐसा होता तो मैं उसकी नजर में अपनी अच्छी छवि कायम नहीं रख पाता।”

एक दिन एक सभा के दौरान मैंने परमेश्वर के नवीनतम वचनों में पढ़ा कि जो लोग दानव वर्ग के होते हैं, वे आदतन झूठ बोलने वाले होते हैं। मुझे याद आया कि मैंने पर्यवेक्षक को पत्र में क्या उत्तर दिया था। मैंने स्पष्ट रूप से नए विश्वासियों की स्थिति का जायजा नहीं लिया था, फिर भी मैंने यह दावा किया कि सिर्फ एक मुद्दा छूट गया है। मेरे कार्यकलाप भी झूठ बोलने और कपट करने के थे और मैं खुलकर अपनी कपटपूर्ण अवस्था के बारे में बात करना चाहता था। लेकिन फिर मैंने दोबारा विचार किया, “मैंने पहले झूठ बोलने की हद कर दी थी। क्या यह सब सिर्फ इसलिए नहीं था कि पर्यवेक्षक की नजरों में अपनी अच्छी छवि बनाए रख सकूँ? अगर मैं अब खुलकर बता दूँ तो क्या मेरी पिछली सारी ‘मेहनत’ व्यर्थ नहीं हो जाएगी? इज्जत और रुतबा खोना तो दूर की बात है, पर्यवेक्षक मुझे वाकई चालबाज और कपटी भी समझेगा। छोड़ो, अगर मैं कुछ नहीं कहूँगा तो किसी को कुछ पता नहीं चलेगा।” इसलिए मैंने मन की बात नहीं कही। सभा के बाद मैंने यह विचार किया कि परमेश्वर ने कहा कि जो लोग आदतन झूठ बोलते हैं, वे अपने निजी हितों को अत्यधिक महत्व देते हैं और जब भी उनके अभिमान और रुतबे का सवाल आता है, वे झूठ बोलने और धोखेबाजी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। क्या मैं भी ऐसा ही नहीं था? मैंने अपने कर्तव्य का जायजा लेने के बारे में झूठ इसलिए बोला था ताकि अपना अभिमान और रुतबा बनाए रख सकूँ। क्या यह एक दानव जैसा व्यवहार नहीं था? इसका एहसास होने पर मैं बहुत बेचैन और भयभीत हो गया। इसलिए मैंने इस मामले में अपने पर्यवेक्षक के सामने खुलकर बात की।

इसके बाद मैंने अपनी इस अवस्था के बारे में परमेश्वर के वचन खोजे ताकि मैं सत्य में प्रवेश कर सकूँ। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “धोखेबाज लोगों के इरादे ईमानदार लोगों के मुकाबले काफी पेचीदा होते हैं। उनके ध्यान देने योग्य विचार बहुत ज्यादा बहुआयामी होते हैं : उन्हें अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे के साथ ही अपनी प्रतिष्ठा और इज्जत का विचार करना होता है; और उन्हें अपने हितों की रक्षा करनी होती है—और ये सब लोगों को खामियाँ दिखाए बिना या खेल का खुलासा किए बिना, इसलिए उन्हें झूठ तैयार करने के लिए अपना दिमाग लगाना पड़ता है। इसके अलावा धोखेबाज लोगों की बहुत बड़ी और अत्यधिक आकांक्षाएँ और कई माँगें होती हैं। उन्हें अपने लक्ष्य पाने के लिए तरीके ईजाद करने होते हैं, इसलिए उन्हें झूठ बोलते और ठगते रहना पड़ता है, और वे जितने ज्यादा झूठ बोलते हैं, उतने ज्यादा झूठ उन्हें छिपाने पड़ते हैं। इसीलिए धोखेबाज व्यक्ति का जीवन ईमानदार व्यक्ति के जीवन की अपेक्षा बहुत ज्यादा थकाऊ और पीड़ादायक होता है। कुछ लोग अपेक्षाकृत ईमानदार होते हैं। उन्होंने चाहे जो भी झूठ बोले हों, अगर वे इसकी परवाह किए बिना सत्य का अनुसरण कर आत्मचिंतन कर सकते हैं, जिस चालबाजी में वे शामिल हैं उसे पहचान सकते हैं, चाहे वह जो भी हो, उसका गहन-विश्लेषण करने, समझने और फिर उसे बदलने के लिए परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में उसे देख सकते हैं, तो फिर वे कुछ ही वर्षों में अपने झूठ और चालबाजी से काफी हद तक छुटकारा पा सकेंगे। फिर वे वैसे व्यक्ति बन चुके होंगे जो बुनियादी तौर पर ईमानदार हैं। इस तरह जीना उन्हें न सिर्फ अधिक पीड़ा और थकान से मुक्त कर देता है, इससे उन्हें शांति और खुशी भी मिलती है। कई मामलों में वे शोहरत, लाभ, रुतबे, अभिमान और गौरव के बंधनों से स्वतंत्र रह कर स्वाभाविक रूप से आजाद और मुक्त जीवन जिएँगे। लेकिन हालाँकि धोखेबाज लोगों की बातों और कृत्यों के पीछे हमेशा गुप्त मंसूबे होते हैं। वे लोगों को गुमराह करने और चालबाजी करने के लिए तरह-तरह के झूठ बनाते हैं और उजागर होते ही वे अपने झूठों को छिपाने के तरीके सोचने लगते हैं। तरह-तरह से उत्पीड़ित होकर उन्हें भी लगता है कि उनका जीवन थकाऊ है। उनके लिए हर स्थिति में इतने सारे झूठ बोलना बहुत थकाऊ होता है, और फिर उन झूठों को छिपाना और भी ज्यादा थकाऊ होता है। उनकी हर बात कोई लक्ष्य साधने के लिए होती है, इसलिए वे अपने प्रत्येक शब्द पर बहुत ज्यादा मानसिक ऊर्जा खपाते हैं। और जब उनकी बात खत्म हो जाती है तो वे डर जाते हैं कि तुमने उनके भीतर झाँक लिया है, तो उन्हें अपने झूठ छिपाने के लिए अपना दिमाग लगाना पड़ता है, तुम्हें दृढ़ निश्चय से चीजें समझानी पड़ती हैं, तुम्हें यकीन दिलाने की कोशिश करनी पड़ती है कि वे झूठ नहीं बोल रहे हैं, धोखा नहीं दे रहे हैं, और वे एक नेक इंसान हैं। धोखेबाज लोग ऐसे काम करने में तत्पर होते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि धोखेबाज स्वभाव वाले लोग मुद्दों पर बहुत जटिल तरीके से विचार करते हैं। वे अपने अभिमान और रुतबे की रक्षा करने का प्रयास करते हैं, साथ ही यह भी सुनिश्चित करते हैं कि दूसरों को उनकी कोई खामी नजर न आए। अगर कोई चीज उनके अभिमान और रुतबे के लिए खतरा बनती है तो वे झूठ बोलने और अपना झूठ छिपाने के लिए अपने दिमाग पर बहुत जोर डालते हैं। जब पर्यवेक्षक ने नए विश्वासियों की स्थिति का जायजा लेने के लिए पत्र लिखा, मुझे बस यह जवाब देना था कि किन पहलुओं का जायजा लिया गया है और किन का नहीं। यह बहुत ही साधारण मामला था। लेकिन मैंने इसे बहुत जटिल बना दिया। मुझे चिंता थी कि अगर मैंने सच्चाई के साथ जवाब दिया तो इससे मेरे कर्तव्य में मेरी कमियाँ उजागर हो जाएँगी और पर्यवेक्षक मेरी कार्यक्षमता पर शक कर सकता है और मुझे नीची नजरों से देख सकता है। इसलिए मैंने सोचा कि पहले नए विश्वासियों की स्थिति के बारे में स्पष्ट हो जाऊँ और फिर जवाब दूँ। इस तरह मैं इस तथ्य को छिपा सकता था कि मैं जो जायजा ले रहा था, वह अपर्याप्त था। लेकिन मुझे यह भी चिंता थी कि अगर मैंने जवाब देने से पहले स्थिति को स्पष्ट रूप से समझने तक इंतजार किया तो पर्यवेक्षक सोचेगा कि मैं जवाब देने में टालमटोल कर रहा हूँ, उस स्थिति में यह उजागर हो सकता है कि मैं नए विश्वासियों का जायजा लेने में अपर्याप्त रहा था और एक मेहनती, जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में मेरी छवि प्रभावित होती। इसलिए मैंने पर्यवेक्षक से झूठ बोला कि सिर्फ एक ही मुद्दा है जिसका मैंने जायजा नहीं लिया है। उसी समय मैंने नए विश्वासियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए तुरंत सिंचनकर्ताओं को लिखा और फिर मैंने जो जानकारी इकट्ठी की थी, उसकी रिपोर्ट पर्यवेक्षक को की, दिखावा किया कि मैं वाकई वास्तविक कार्य कर रहा था। मैंने अपने अभिमान और रुतबे की रक्षा के लिए वाकई कोई कसर नहीं छोड़ी, चालबाजी और तिकड़मबाजी का सहारा लिया। मैं पूरी तरह से धोखेबाज था! असल में परमेश्वर इंसान के दिल की गहराइयों की पड़ताल करता है। मैं जो कुछ भी करता था, उसे सब पता था। मैं लोगों को धोखा दे सकता था, लेकिन मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकता था, क्योंकि वह सब कुछ देखता है। अगर मैंने अभी पश्चात्ताप नहीं किया और खुद को नहीं बदला तो मुझे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हटा दिया जाएगा। मुझे तत्काल सत्य खोजना था और अपने धोखेबाज स्वभाव को बदलना था।

मैंने बाद में “मैंने ईमानदार होने का आनंद अनुभव किया” शीर्षक वाला एक अनुभवजन्य गवाही वीडियो देखा। उसमें परमेश्वर के वचनों का एक अंश था जिसने मुझे उस रास्ते के बारे में कुछ समझ दी जिस पर मैं चल रहा था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “अगर तुम लोग अगुआ या कार्यकर्ता हो, तो क्या तुम परमेश्वर के घर द्वारा अपने काम के बारे में पूछताछ किए जाने और उसका निरीक्षण किए जाने से डरते हो? क्या तुम डरते हो कि परमेश्वर का घर तुम लोगों के कार्य में खामियों और विचलनों का पता लगा लेगा और तुम लोगों की काट-छाँट करेगा? क्या तुम डरते हो कि जब ऊपरवाले को तुम लोगों की वास्तविक क्षमता और आध्यात्मिक कद का पता चलेगा, तो वह तुम लोगों को अलग तरह से देखेगा और तुम्हें प्रोन्नति के लायक नहीं समझेगा? अगर तुममें यह डर है, तो यह साबित करता है कि तुम्हारी अभिप्रेरणाएँ कलीसिया के काम के लिए नहीं हैं, तुम प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए काम कर रहे हो, जिससे साबित होता है कि तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है। अगर तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है, तो तुम्हारे मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने और मसीह-विरोधियों द्वारा गढ़ी गई तमाम बुराइयाँ करने की संभावना है। अगर, तुम्हारे दिल में, परमेश्वर के घर द्वारा तुम्हारे काम की निगरानी करने का डर नहीं है, और तुम बिना कुछ छिपाए ऊपरवाले के सवालों और पूछताछ के वास्तविक उत्तर देने में सक्षम हो, और जितना तुम जानते हो उतना कह सकते हो, तो फिर चाहे तुम जो कहते हो वह सही हो या गलत, चाहे तुम जितनी भी भ्रष्टता प्रकट करो—भले ही तुम एक मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट करो—तुम्हें बिल्कुल भी एक मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं किया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या तुम मसीह-विरोधी के अपने स्वभाव को जानने में सक्षम हो, और क्या तुम यह समस्या हल करने के लिए सत्य खोजने में सक्षम हो। अगर तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य स्वीकारता है, तो मसीह-विरोधी वाला तुम्हारा स्वभाव ठीक किया जा सकता है। अगर तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुममें एक मसीह-विरोधी स्वभाव है और फिर भी उसे हल करने के लिए सत्य नहीं खोजते, अगर तुम सामने आने वाली समस्याओं को छिपाने या उनके बारे में झूठ बोलने की कोशिश करते हो और जिम्मेदारी से जी चुराते हो, और अगर तुम काट-छाँट किए जाने पर सत्य नहीं स्वीकारते, तो यह एक गंभीर समस्या है, और तुम मसीह-विरोधी से अलग नहीं हो। यह जानते हुए भी कि तुम्हारा स्वभाव मसीह-विरोधी है, तुम उसका सामना करने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम उससे खुलकर क्यों नहीं निपट पाते, ‘अगर ऊपरवाला मेरे काम के बारे में पूछताछ करता है, तो मैं वह सब बताऊँगा जो मैं जानता हूँ, और भले ही मेरे द्वारा किए गए बुरे काम प्रकाश में आ जाएँ, और पता चलने पर ऊपरवाला अब मेरा उपयोग न करे, और मेरा रुतबा खो जाए, मैं फिर भी स्पष्ट रूप से वही कहूँगा जो मुझे कहना है’? परमेश्वर के घर द्वारा तुम्हारे काम का निरीक्षण और उसके बारे में पूछताछ किए जाने का तुम्हारा डर यह साबित करता है कि तुम सत्य से ज्यादा अपने रुतबे को सँजोते हो। क्या यह मसीह-विरोधी वाला स्वभाव नहीं है? रुतबे को सबसे अधिक सँजोना मसीह-विरोधी का स्वभाव है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों से मुझे यह समझ में आया कि जब अगुआ और कार्यकर्ता कार्य के बारे में पूछताछ और पर्यवेक्षण करते हैं तो मामलों की सच्चाई से रिपोर्ट करने की हिम्मत न करने और यहाँ तक कि प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर सच्चाई को छिपाने का मतलब है कि तुम मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले व्यक्ति हो और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलते हो। इसकी तुलना अपनी अवस्था से करूँ तो जब पर्यवेक्षक ने उन नए विश्वासियों के बारे में पूछा जिनके लिए मैं जिम्मेदार था, बहुत से ऐसे मुद्दे थे जिनकी मुझे स्पष्ट समझ नहीं थी, लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने सच्चाई से रिपोर्ट की और पर्यवेक्षक ने देखा कि मैंने मामलों का ठीक से जायजा नहीं लिया है तो वह सोचेगा कि मैं अनमना हो रहा हूँ या यहाँ तक कि मेरी कार्यक्षमता पर भी सवाल उठाएगा, जिससे मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे पर असर पड़ेगा। इसलिए मैंने झूठ बोला और धोखेबाजी का सहारा लिया। क्या यह मसीह-विरोधी के स्वभाव जैसा ही नहीं था? असल में पर्यवेक्षक द्वारा काम का जायजा लेना एक तरह से मुझे यह याद दिलाना था कि सिंचन कार्य का ठीक से जायजा लेकर उसे कार्यान्वित किया गया है या नहीं ताकि अगर इसे ठीक से कार्यान्वित नहीं किया गया हो तो मैं तुरंत ऐसा कर सकूँ, इस प्रकार क्षणिक चूक के कारण सिंचन कार्य की प्रगति में देरी से बच सकूँ। यह मुझे याद दिलाने और मेरी मदद करने के लिए था। इतना ही नहीं, नए विश्वासियों की स्थिति के बारे में पर्यवेक्षक की पूछताछ में अगर सिंचन कार्य में कोई विचलन निकलता तो इसके बारे में तुरंत चर्चा की जा सकती थी और उसे दूर किया जा सकता था। इसमें पर्यवेक्षक कलीसिया के हितों की रक्षा कर रहा था। मुझे ईमानदारी से रिपोर्ट करनी चाहिए थी, जितना मैं जानता था उतना ही बताना चाहिए था और जहाँ तक उन बातों का सवाल है जिनका मैंने ठीक से जायजा नहीं लिया तो ठीक होता अगर मैं उन्हें कार्यान्वित करने और उनका जायजा लेने में जल्दी कर देता। लेकिन मैंने अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बहुत अधिक महत्व दिया और जब पर्यवेक्षक के निरीक्षण का सामना करना पड़ा तो मैंने यह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं की कि मैंने अपना कार्य अच्छी तरह से नहीं किया था। इसके बजाय मैंने झूठ बोला और पर्यवेक्षक को धोखा दिया। इससे ऐसे विचलन आ सकते थे जिन्हें समय नहीं पर सुधारा जा सकता था, जिससे नए विश्वासियों के जीवन प्रवेश में देरी होती। मैंने वाकई प्रतिष्ठा और रुतबे को सबसे ऊपर रखा। अपने कर्तव्य में मैं हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करने की कोशिश कर रहा था, साजिशें रचता रहा और तिकड़मबाजी करता रहा। मुझमें किस तरह से कोई ईमानदारी या वफादारी थी?

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर का लोगों से ईमानदार बनने की माँग करना यह साबित करता है कि वह धोखेबाज लोगों से सचमुच नफरत करता है और उन्हें नापसंद करता है। धोखेबाज लोगों के प्रति परमेश्वर की नापसंदगी उनके काम करने के तरीके, उनके स्वभावों, उनके इरादों और उनकी धोखेबाजी के साधनों के प्रति नापसंदगी है; परमेश्वर को ये सब बातें नापसंद हैं। यदि धोखेबाज लोग सत्य स्वीकार कर लें, अपने धोखेबाज स्वभाव को मान लें और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने को तैयार हो जाएँ, तो उनके बचने की उम्मीद भी बँध जाती है, क्योंकि परमेश्वर किसी के प्रति पक्षपात नहीं करता है और न ही सत्य ऐसा करता है। और इसलिए, यदि हम परमेश्वर को प्रसन्न रखने वाले लोग बनना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले अपने आचरण के सिद्धांतों को बदलना होगा, शैतानी फलसफों के अनुसार जीना बंद करना होगा, अपनी जिंदगी जीने के लिए झूठ बोलने और धोखा देने पर निर्भर रहना बंद करना होगा और हमें अपने सारे झूठ त्याग कर ईमानदार लोग बनने की कोशिश करनी होगी। तब हमारे प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण बदलेगा। पहले लोग दूसरों के बीच रहते हुए हमेशा झूठ, ढोंग और धोखेबाजी पर निर्भर रहते थे और अपने आचरण में शैतानी फलसफों को अपने अस्तित्व का आधार, अपने जीवन का आधार और अपनी नींव का आधार मानते थे। इससे परमेश्वर को घृणा थी। गैर-विश्वासियों के बीच यदि तुम सच बोलते हो और ईमानदार व्यक्ति होने की कोशिश करते हो तो तुम्हें बदनाम किया जाएगा, तुम्हारी आलोचना की जाएगी और तुम्हें ठुकरा दिया जाएगा। इसलिए तुम सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हो और शैतानी फलसफों के अनुसार जीते हो; तुम झूठ बोलने में अधिकाधिक कुशल होते जाते हो और अधिक से अधिक धोखेबाज होते जाते हो। तुम अपने लक्ष्य पूरे करने के लिए धूर्त साधनों का उपयोग भी करते हो और इस प्रकार अपनी सुरक्षा करते हो। तुम शैतान की दुनिया में अधिकाधिक समृद्ध होते चले जाते हो और परिणामस्वरूप तुम पाप में अधिक से अधिक गहरे गिरते जाते हो और उसमें से खुद को निकाल नहीं सकते हो। परमेश्वर के घर में चीजें ठीक इसके विपरीत होती हैं। तुम झूठ बोलने और धोखेबाज होने में जितना अधिक कुशल होते हो, परमेश्वर के चुने हुए लोग तुमसे उतने ही अधिक विमुख होंगे और तुम्हें ठुकरा देंगे। यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करते, अब भी शैतानी फलसफों और तर्क से चिपके रहते हो, अपना भेस बदलने और मुखौटे लगाने के लिए साजिशों, चालों और परिष्कृत तरकीबों का भी इस्तेमाल करते हो तो बहुत संभव है कि तुम्हारा खुलासा कर दिया जाएगा और तुम्हें हटा दिया जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर धोखेबाज लोगों से घृणा करता है। परमेश्वर के घर में केवल ईमानदार लोग समृद्ध हो सकते हैं और सभी धोखेबाज लोगों को अंततः ठुकराकर हटा दिया जाता है। यह सब परमेश्वर ने बहुत पहले पूर्वनियत कर दिया है। ईमानदार लोग ही स्वर्ग के राज्य में साझेदार हो सकते हैं। यदि तुम ईमानदार व्यक्ति बनने की कोशिश नहीं करोगे, सत्य का अनुसरण करने की दिशा में अनुभव प्राप्त नहीं करोगे और अभ्यास नहीं करोगे, यदि अपना भद्दापन उजागर नहीं करोगे और यदि खुद को खोलकर पेश नहीं करोगे, तो तुम कभी भी पवित्र आत्मा का कार्य और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर पाओगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है और धोखेबाज लोगों का तिरस्कार करता है, क्योंकि धोखेबाज लोग चाहे किसी भी स्थिति का सामना करें, हमेशा झूठ बोलते और धोखाबाजी करते हैं और अपने अस्तित्व की नींव के रूप में शैतानी फलसफे को अपनाते हैं और सत्य का बिल्कुल भी अभ्यास नहीं करते। अपनी धोखेबाजी की जड़ पर चिंतन करते हुए मैंने देखा कि मैं इन कहावतों के अनुसार जीता था, “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है” और “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है।” मैं इन शैतानी जहरों के सहारे जीता था, अपने अभिमान, रुतबे और निजी हितों को बहुत महत्व देता था। मैंने चाहे किसी भी चीज का सामना किया हो, एक बार जब मेरा अभिमान और रुतबा दाँव पर लग जाता, मैं अपने दिमाग पर जोर डालता और सच्चाई को छिपाने के लिए जो कुछ भी करना पड़ता, वह करता। ऐसा करने के बाद मैं यह भी सोचता कि होशियार लोग ऐसे ही काम करते हैं, सिर्फ मूर्ख और बेवकूफ लोग ही सच बोलते हैं। मुझे याद है जब मैं स्कूल में था, एक बार मैंने होमवर्क में गड़बड़ कर दी और एक हिस्सा अधूरा छोड़ दिया। मुझे शिक्षक की नजरों में एक अच्छे छात्र के रूप में अपनी छवि खराब होने की चिंता थी, इसलिए मैंने शिक्षक से झूठ बोला, कहा कि मैं अपना होमवर्क घर पर भूल आया हूँ और दोपहर में वापस जाकर ले आऊँगा। फिर मैंने जल्दी से वह काम पूरा किया और उसी दोपहर को जमा कर दिया। अब जब मैंने परमेश्वर को पा लिया था, तब भी मैं शैतानी विचारों और दर्शन के अनुसार जी रहा था। पर्यवेक्षक की नजरों में अपनी छवि कायम रखने और अपनी समस्याओं और कमियों को छिपाने के लिए मैंने सच्चाई को छिपाने की खातिर चालबाजी और धोखेबाजी का सहारा लिया। यहाँ तक कि जब मुझे बाद में एहसास हुआ कि मुझे एक ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए और खुलकर संगति करनी चाहिए, मुझे चिंता हुई कि अगर मैं खुलकर बोलूँगा तो मेरे पिछले सारे प्रयास व्यर्थ हो जाएँगे और पर्यवेक्षक मुझे पूरी तरह से तिकड़मबाज और धोखेबाज समझेगा। इसलिए मैं ईमानदारी से नहीं बोलना चाहता था। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है, क्योंकि ईमानदार लोगों में समस्याओं का सामना करने पर जिम्मेदारी लेने का साहस होता है, जब उनकी कमियाँ प्रकट होती हैं तो उनमें उनका सामना करने का साहस होता है, और बाद में वे सत्य की खोज कर इन बातों का समाधान कर सकते हैं। ऐसे लोग जितना अधिक अपने कर्तव्य निभाते हैं, उतना ही वे सिद्धांतों को समझते हैं और उनके नतीजे उतने ही बेहतर होते हैं। लेकिन मैंने इनमें से कोई भी व्यवहार नहीं दिखाया। मैंने हमेशा अपनी खामियों को छिपाने और ढकने की कोशिश की और यहाँ तक कि मैंने अपने भाई-बहनों को भी धोखा देने की कोशिश की। मुझमें एक ईमानदार व्यक्ति जैसा कोई रूप किस तरह से था? मैं जिस तरह से जी रहा था वह एक कुटिल और धोखेबाज शैतानी छवि थी। अगर मैं पश्चात्ताप न करता तो निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा ठुकरा दिया जाता और उद्धार का अपना मौका खो देता।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े और मुझे अभ्यास का एक मार्ग मिला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “लोग सोचते हैं कि अपने हितों के बिना—अगर उन्‍हें अपने हित छोड़ने पड़े—तो वे जीवित नहीं रह पाएँगे, मानो उनका अस्तित्व उनके हितों से अविभाज्य हो, इसलिए ज्यादातर लोग अपने हितों के अतिरिक्त सभी चीजों के प्रति अंधे होते हैं। वे अपने हितों को किसी भी चीज से ऊपर समझते हैं, वे अपने हितों के लिए जीते हैं, और उनसे उनके हित छुड़वाना उनसे अपना जीवन छोड़ने के लिए कहने जैसा है। तो ऐसी परिस्थितियों में क्‍या किया जाना चाहिए? लोगों को सत्य स्वीकारना चाहिए। सत्य समझकर ही वे अपने हितों के सार की सच्चाई देख सकते हैं; तभी वे उन्हें छोड़ना और उनके प्रति विद्रोह करना शुरू कर सकते हैं, उनसे अलग होने की पीड़ा को सहन करने योग्य हो सकते हैं जो उन्हें प्रिय है। और जब तुम ऐसा कर सकते हो, और अपने हितों को त्याग सकते हो, तो तुम अपने मन में शांति और सुकून की अधिक अनुभूति करोगे और ऐसा करने से तुम अपनी देह पर जीत पा लोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। “ईमानदार व्यक्ति होने के लिए तुम्हें पहले अपना दिल खोलकर रखना चाहिए ताकि सभी उसके भीतर झाँक सकें, तुम्हारी सोच और तुम्हारा असली चेहरा देख सकें। तुम्हें भेस बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, या खुद को छिपाना नहीं चाहिए। तभी दूसरे तुम पर भरोसा करेंगे, और तुम्हें ईमानदार व्यक्ति मानेंगे। यह सबसे बुनियादी अभ्यास है, और ईमानदार व्यक्ति बनने की पहली शर्त है। ... अगर तुम ईमानदार बनना चाहते हो, तो तुम चाहे परमेश्वर के सामने रहो या दूसरे लोगों के सामने, तुम्हें अपनी भीतरी दशा और अपने दिल की बातों का शुद्ध और खुला हिसाब पेश करने में समर्थ होना चाहिए। क्या ऐसा कर पाना आसान है? इसके लिए कुछ समय तक प्रशिक्षण और परमेश्वर से अक्सर प्रार्थना कर उस पर भरोसा करने की जरूरत है। तुम्हें हर विषय पर अपने दिल की बात को सरल ढंग से खुलकर बोलने के लिए खुद को प्रशिक्षित करना होगा। ऐसे प्रशिक्षण से तुम तरक्की कर सकोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों ने अभ्यास का मार्ग स्पष्ट कर दिया। धोखेबाज अवस्था का समाधान करने के लिए, व्यक्ति को निजी हितों को त्यागना होगा, व्यक्तिगत अभिमान या रुतबे पर विचार नहीं करना होगा और सभी बातों में परमेश्वर के सामने खुलकर बोलना होगा। अपने कर्तव्यों में मुझे किसी भी मुद्दे या व्यक्तिगत कमियों की तुरंत रिपोर्ट करनी चाहिए, अपने अभिमान या रुतबे पर विचार नहीं करना चाहिए और मुझे परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए। यहाँ तक कि अगर सच बोलने से भाई-बहनें मेरे कर्तव्यों में मेरे मुद्दों और कमियों को देखें और फिर मुझे नीची नजरों से देखें, तब भी मुझे इसे सही तरीके से लेना चाहिए। सिर्फ खुलकर अभ्यास करने और दिल से बोलने से ही मैं एक ईमानदार व्यक्ति बन सकता हूँ। इसलिए मैंने पक्का निर्णय लिया कि भविष्य में जब मैं अपने कर्तव्यों में फिर से मुश्किलों और समस्याओं का सामना करूँ, चाहे मेरे भाई-बहनें मुझे कैसे भी देखें, मुझे उनके सामने अपने विचारों और कार्यकलापों के बारे में खुलकर बोलना और प्रकट करना है और परमेश्वर की नजरों में एक ईमानदार व्यक्ति बनना है।

एक सभा के दौरान मेरी जिम्मेदारी वाले एक नए विश्वासी शिआओ या ने मुझसे सुसमाचार का प्रचार करने के बारे में एक सवाल पूछा और उस समय मैंने संक्षेप में थोड़ी संगति की, लेकिन बाद में मैंने पाया कि मेरी समझ में विचलन था और इससे शिआओ या के मुद्दे का बिल्कुल भी समाधान नहीं हो सका। बाद में पर्यवेक्षक ने मुझसे शिआओ या के साथ मेरी सभा के बारे में पूछा और मैंने मन में सोचा, “अगर मैं शिआओ या के साथ अपनी संगति को सच्चाई से लिखता हूँ तो पर्यवेक्षक निश्चित रूप से सोचेगा कि एक सिंचनकर्ता के रूप में मैं इतने छोटे से मुद्दे पर भी स्पष्ट रूप से संगति नहीं कर सकता और यह कि मैं वास्तविक कार्य नहीं कर सकता। शायद मैं इसे बस सरसरी तौर पर बता दूँगा और जो वाकई हुआ उसे नहीं लिखूँगा।” जब मैंने इस पर विचार किया तो मुझे लगा कि यह गलत है। क्या यह धोखेबाज होना नहीं था? भले ही दूसरे नहीं जानते होंगे कि मैंने क्या किया है, परमेश्वर मेरे दिल की पड़ताल कर रहा था। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है और मुझे ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए और सच बोलना चाहिए। अंत में मैंने इसे सच्चाई से लिखा। और जब मैंने ऐसा किया तो मेरे दिल का बोझ आखिरकार हट गया और मुझे बहुत राहत महसूस हुई। बाद में मैंने सही समय पर शिआओ या के साथ संगति की और अपने विचलनों को ठीक किया। बाद में जब मैंने जीवन में भाई-बहनों के साथ बातचीत की और अपने कर्तव्य किए, मैंने एक ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास किया और भले ही कभी-कभी जब मेरे हित शामिल होते थे, मैं धोखेबाजी से पेश आने के लिए लालायित होता था, परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में मैं भाई-बहनों के साथ सच बोलने लगा। जब भी मैंने अपने सहभागी भाई-बहनों या पर्यवेक्षक को सच्चाई से रिपोर्ट की, उन्होंने कभी भी खराब प्रदर्शन के लिए मेरी आलोचना नहीं की। इसके विपरीत उन्होंने मुझे याद दिलाया और मेरी मदद की और मेरे साथ सत्य सिद्धांतों पर संगति की। अपने दिल में मैंने सहज और मुक्त महसूस किया और अब मैं पहले की तरह थका हुआ नहीं था। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अपने धोखेबाज स्वभाव को पहचानने में मदद की और यह एहसास दिलाया कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना, सच और खुलकर बोलने की हिम्मत करना कोई शर्मनाक बात नहीं है। दरअसल मैं जितना अधिक खुलकर बोलता हूँ, उतना ही अधिक अडिग और मुक्त महसूस करता हूँ। मुझे ये लाभ पहुँचाने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद!

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