दुष्कर्मी के निष्कासन से मिली सीख

04 फ़रवरी, 2022

केटलिन, नीदरलैंड

मार्च 2021 में मैंने एक कलीसिया में अगुआई का काम किया। जब मैं काम के बारे में जानने के लिए सिंचन निरीक्षक से मिली, तो मुझे पता चला कि कुछ समूह-अगुआ भाई-बहनों पर रौब झाड़ते और उनसे अपना कर्तव्य करने को कहते थे, जबकि वे खुद मक्खी मारते रहते थे और नए आने वालों का सिंचन नहीं करते थे। वे भाई-बहनों द्वारा अपने कर्तव्यों के दौरान झेली जा रही कठिनाइयों को समझने का प्रयास नहीं करते थे, इसलिए काम को लेकर उनका मार्गदर्शन व्यावहारिक मार्ग के बजाय बस नियमों का पालन करवाना और खोखले भाषण देना होता था। निरीक्षक और मैंने उनके साथ संगति की कि अगुआई करना सिर्फ लोगों को यह बताना नहीं है कि वे क्या करें, बल्कि उन्हें नए आए हुए लोगों को व्यावहारिक सिंचन भी प्रदान करना है ताकि वे काम में आ रही समस्याओं और कठिनाइयों को भी खोज सकें। लेकिन संगति के कुछ दिन बाद भी, उन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। मैंने इस पर गौर किया तो पता चला कि टीम अगुआ किंसले व्यवधान पैदा कर रही थी और चीजों में बाधा पहुँचा रही थी। वह खुद अभ्यास नहीं करती थी, फिर भी दूसरे टीम अगुआओं को यह कहकर उकसाती थी, “कलीसिया की अगुआ और निरीक्षक हमसे नए आए हुए लोगों का सिंचन करवाती हैं, जिससे मेरे पास अपनी टीम के कामकाज को जाँचने का समय ही नहीं बचता, तो इसका अर्थ यह है कि हमें उनसे यह काम करने की जरूरत नहीं है। तो फिर टीम के अगुआ का काम क्या है?” फिर उसने कहा, “क्या तुम्हें पता है, यह निरीक्षक अनुभवहीन है? एक अनुभवहीन पेशेवरों से कैसे ठीक से काम करा सकता है?” जब निरीक्षक ने टीम के अगुआओं के काम की जांच की और उसमें समस्याएं पाईं, और उसने कड़ाई से बात की, और तब किंसले ने माना कि निरीक्षक उन्हें रौब में आकर डांट रही थी और उसने यह बात भाइ-बहनों के बीच फैला दी। बिना समझ के उसने वरिष्ठ अगुआओं की यह कहकर आलोचना की कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति को चुना है जो सिद्धांत के मुताबिक नहीं हैं। लेकिन दरअसल, निरीक्षक ने सिद्धांत के अनुसार लोगों को पदोन्नत किया और आगे बढ़ाया था। हालाँकि उन्हें नए आए लोगों के सिंचन का ज्यादा अनुभव नहीं था, उनकी काबिलियत अच्छी थी, वे सक्षम थीं, और जिम्मेदारी से कर्तव्य करती थीं, और उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता था। वे समस्याएँ भी पकड़ पाती थीं और काम का मार्गदर्शन कर सकती थीं, और कुछ समय नए आए लोगों के सिंचन करने के बाद उन्होंने तरक्की की थी। लेकिन किंसले “अनुभवहीन पेशेवरों को नहीं पढ़ा सकते” की आड़ में निरीक्षक पर हमला करती रही और अड़ी रही कि वे पद के योग्य नहीं हैं। उसने अफवाहें फैलाईं कि वरिष्ठ अगुआओं ने सिद्धांतों के बिना लोगों को नियुक्त किया था, जिसके कारण भाई-बहनों ने अगुआओं और निरीक्षक के खिलाफ धारणाएं बना लीं और वे काम करने से इनकार करने लगे। इससे उन अगुआओं, कर्मियों के कर्तव्यों और कलीसिया के काम में बाधा पैदा हो गई। न केवल यह, किंसले ने सभाओं में संगति का इस्तेमाल नाममात्र की समझ के आधार पर, कपटपूर्ण ढंग से नीचा दिखाने और अगुआओं और निरीक्षक पर हमले के लिए किया। उदाहरण के लिए, उसने कहा कि उसने वरिष्ठ अगुआओं और निरीक्षक को सुझाव दिए थे पर उन्होंने काम को नहीं समझा और उसके सुझाव नहीं लिए। किंसले ने कहा कि वह अड़ना नहीं चाहती थी, पर पता चला कि आखिर उसकी सलाह सही थी। असल में, उसने जो कहा वह सच नहीं था। उसने जानबूझकर अस्पष्ट संगति की, जिससे ऐसा लगे कि अगुआ काम को न समझ सकने के कारण उसे रोक रहे थे, उसकी सलाह नहीं मान रहे थे, और कलीसिया के हितों का मान रखने के कारण उसे दबाया जा रहा था, ताकि सब उस पर तरस खाएं, और उसका साथ दें।

किंसले ने हमेशा अगुआओं और कर्मियों को नीचा माना, इस बारे में और भाइयों-बहनों ने कई बार इस बारे में ध्यान दिलाया और उससे संगति की थी, मगर उसने इसके लिए कभी भी प्रायश्चित नहीं किया था। यह थोड़ी-सी क्षणिक भ्रष्टता का मामला नहीं है, यह उसके प्रकृति सार की समस्या है। ऐसे व्यक्ति को उजागर करने के बारे में परमेश्वर के वचनों को मैंने याद किया। परमेश्वर कहते हैं : “हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा करने का मामला एक ऐसा मुद्दा है, जो कलीसियाई जीवन में अक्सर उठता है और यह ऐसी चीज है, जिसका दिखना असामान्य नहीं है। हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा करने के अभ्यास में कौन-सी दशाएँ, व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ शामिल हैं? हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा करने की किन अभिव्यक्तियों को परमेश्वर के कार्य और कलीसियाओं की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालने के मुद्दे का हिस्सा कहा जा सकता है? चाहे हम जिस भी अनुच्छेद या श्रेणी पर संगति करें, वह ‘परमेश्वर के काम और कलीसियाओं की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें,’ इसके संबंध में अनुच्छेद बारह में कही गई बात से जुड़ी होनी चाहिए। संगति और विश्लेषण के लायक होने के लिए उसे विघ्न-बाधा की हद तक पहुँचना चाहिए और इस प्रकृति से संबंधित होना चाहिए। हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा करने की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ प्रकृति में परमेश्वर के घर के काम में विघ्न-बाधा डालने से जुड़ी हैं? सबसे आम है कलीसिया के अगुआओं के साथ उनकी हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा करना, जो मुख्य रूप से अगुआओं के दोष और त्रुटियाँ पकड़कर उन्हें बदनाम करने और उनकी निंदा करने में प्रकट होता है, और जानबूझकर उनकी भ्रष्टता का प्रकाशन और उनकी मानवता और क्षमता की विफलताएँ और कमियाँ उजागर करने में प्रकट होता है, खासकर जब बात उनके द्वारा अपने काम में या लोगों से निपटते समय की गई चूकों और गलतियों की हो। यह हैसियत के लिए कलीसिया के अगुआओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने की सबसे आम तौर पर दिखने वाली और सबसे मुखर अभिव्यक्ति है। इसके अलावा, कलीसिया के अगुआ अपना काम कितनी अच्छी तरह से करते हैं, वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हैं या नहीं, या उनकी मानवता के साथ कोई समस्या है या नहीं, वे इन चीजों की परवाह नहीं करते; वे कलीसिया के अगुआओं का आज्ञापालन करते ही नहीं हैं। वे उनका आज्ञापालन क्यों नहीं करते? क्योंकि वे भी कलीसिया-अगुआ बनना चाहते हैं, यह उनकी महत्वाकांक्षा, उनकी इच्छा है, इसलिए वे आज्ञापालन करने से इनकार कर देते हैं। चाहे कलीसिया-अगुआ कैसे भी काम करता हो या कैसे भी समस्याएँ सँभालता हो, वे हमेशा उनकी खामियाँ पकड़ते हैं, उनकी आलोचना और निंदा करते हैं, यहाँ तक कि चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने, तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने और बात का बतंगड़ बना देने की हद तक चले जाते हैं। वे उन मानकों का उपयोग नहीं करते, जिनकी अपेक्षा परमेश्वर का घर अगुआओं और कार्यकर्ताओं से यह मापने के लिए करता है कि क्या यह अगुआ जो करता है वह सिद्धांत के अनुसार है, क्या यह सही व्यक्ति है, क्या यह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति है, क्या इसमें जमीर और समझ है। वे इन सिद्धांतों के अनुसार निर्णय नहीं लेते। इसके बजाय, अपने खुद के इरादों और लक्ष्यों के अनुरूप, वे लगातार मीन-मेख और बाल की खाल निकालते हैं, अगुआओं या कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए चीजें ढूँढ़ते हैं, उनकी पीठ पीछे उनके द्वारा की गई उन चीजों के बारे में जानकारी फैलाते हैं जो सत्य के अनुरूप नहीं होतीं, या उनकी कमियाँ सामने लाते हैं। उदाहरण के लिए, वे कह सकते हैं कि ‘अमुक अगुआ ने एक बार यह गलती की थी और ऊपर वाले ने उसकी काट-छाँट की थी, जिसके बारे में तुममें से कोई नहीं जानता—दिखावा करने में वह इतना अच्छा है।’ वे इस बात को नजरअंदाज और अनदेखा कर देते हैं कि क्या इस अगुआ या कार्यकर्ता को परमेश्वर के घर द्वारा प्रशिक्षित किया जा रहा है, और क्या वह एक योग्य अगुआ या कार्यकर्ता है, वे बस उसकी आलोचना करते रहते हैं, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते रहते हैं और उसकी पीठ पीछे उसके खिलाफ साजिश रचते रहते हैं। और वे ये चीजें किस उद्देश्य से करते हैं? वह इसलिए, क्योंकि वे हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, है न? वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, उसका एक उद्देश्य होता है। वे कलीसिया के काम के बारे में नहीं सोचते, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बारे में उनका मूल्यांकन परमेश्वर के वचनों या सत्य पर आधारित नहीं होता, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं या उन सिद्धांतों पर तो बिल्कुल आधारित नहीं होता जिनकी अपेक्षा परमेश्वर को मनुष्य से होतीहै, बल्कि यह उनके अपने इरादों और लक्ष्यों पर आधारित होता है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (14))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि अगर कोई इस पर गौर नहीं करता कि अगुआ और कर्मी सही लोग हैं या नहीं, कि वे लोगों को आगे बढ़ाने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप हैं या नहीं, इसके बजाय बस उनकी खामियां ढूँढ़ते और उनके बारे में गलत राय बनाते, और पीठ पीछे जानबूझकर उन्हें आंकते और उनकी आलोचना करते, भाई-बहनों को उन पर हमले और निंदा के लिए उकसाते हैं, तो वे कलीसिया के कार्य को बाधित कर रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को उजागर करके उन्हें काबू में करना चाहिए, और गंभीर मामलों में, उन्हें कलीसिया से हटा देना चाहिए। किंसले के व्यवहार को देखें तो, तो उसने ये नहीं देखा कि निरीक्षक अपने कर्तव्य में कामयाब हैं या नहीं, उनका काम कलीसिया को फायदा पहुँचा रहा है या नहीं, या वे आगे बढ़ाए जाने लायक हैं या नहीं। किंसले ने बस इस तथ्य को पकड़ लिया कि निरीक्षक का कौशल उससे कमतर था, और इस आधार पर यह फैलाया कि अनुभवहीन पेशेवरों का मार्गदर्शन नहीं कर सकते। उसने लोगों की आलोचना की, हमला किया, और उनमें कलह के बीज बोए, और भाई-बहनों को अगुआओं और कर्मियों के खिलाफ पूर्वाग्रह विकसित करने दिए, और हमारे द्वारा व्यवस्थित कार्य को कार्यान्वित करने से इनकार किया। इससे हमारे सिंचन कार्य की प्रगति में रुकावट पैदा हो गई। किंसले क्षणिक भ्रष्टता नहीं दिखा रही थी, उसका व्यवहार निरंतर ऐसा ही था। उसने पहले ही कलीसियाई जीवन को गंभीर रूप से बाधित कर रखा था और अपने कर्तव्य के लायक नहीं थी। सिद्धांत के अनुसार मुझे उसे तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए था। अगर वह फिर भी प्रायश्चित नहीं करती तो उसे कलीसिया से स्वच्छ कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन जब मैंने किंसले को निकालने के बारे में विचार किया तो यह सोचकर झिझक गई कि वह थोड़े समय टीम की अगुआ है, और एक अच्छी अभिनेत्री है। भाई-बहनों को उसकी अच्छी समझ नहीं थी, और कुछ उसकी मदद लेते थे। उन्हें लगता कि वह अपना कर्तव्य जिम्मेदारी से करती है, वह प्रेमपूर्ण है और उसमें न्याय की भावना है। कलीसिया में शामिल होते ही अगर मैंने उसे बर्खास्त कर दिया, तो क्या भाई-बहन यह नहीं सोचेंगे कि मैं निर्दयी और क्रूर हूँ? उसे दंडित कर रही हूँ? क्या इसके बाद वे मेरी अगुआई स्वीकार करेंगे? और तो और, किंसले की मानवता वास्तव में खराब थी, और उसके पास भड़काने के कई तरीके थे और वह परदे के पीछे मतभेद पैदा करने में तेज़ थी। अगर मैंने उसे नाराज़ किया, और उसने मुझ पर उंगली उठाकर भाई-बहनों के साथ मेरी भी आलोचना की, उनके साथ मेरे रिश्ते की बात छेड़ दी, तो मेरे लिए अपना काम करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। मुझे लगा कि मुझे उसे बर्खास्त करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। बल्कि पहले उसकी काट-छाँट करनी चाहिए, उसकी करतूतों के सार और परिणामों को उजागर कर उनका विश्लेषण करना चाहिए। अगर उसने इसे स्वीकार किया और बदलाव किया, तो उसके पास अभी भी एक मौका होगा। अगर वह नहीं मानी और अगुआओं और कर्मचारियों की आलोचना करती रही, तो उसे हटाने में देर नहीं की जाएगी।

बाद में, हमारी वरिष्ठ अगुआ जूलिएट और मैंने, किंसले और समूह के कई अगुआओं से बात की, और उनके साथ परमेश्वर के घर में चयन करने के सिद्धांतों, और निरीक्षक की पदोन्नति की पृष्ठभूमि के बारे में संगति की। इस अवधि में उनके व्यवहार के बारे में मैंने उजागर किया और उनका विश्लेषण किया कि उनके काम मूल रूप से एक गुट बना रहे थे, अगुआओं और कर्मियों को आंक रहे थे और उन पर हमला कर रहे थे और कलीसिया के काम को बाधित कर रहे थे। अगर वे नहीं बदले, और अफवाहें फैलाते रहे और काम बाधित करते रहे, तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। कुछ टीम अगुआओं ने अपनी गलतियाँ मानीं, और आत्मचिंतन किया और कहा कि वे निरीक्षक के साथ सहयोग करना चाहते हैं और साथ मिलकर काम पूरा करना चाहते हैं। सिर्फ किंसले ने कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया। मुझे ताज्जुब हुआ कि कुछ दिन बाद, किंसले ने एक दूसरी बहन से कहा कि निरीक्षक अनुभवहीन है जो पेशेवरों की अगुआई कर रही है, और लोगों का चयन करने में वरिष्ठ अगुआओं को समस्या थी। वह बहन उसके फेर में नहीं पड़ी, बल्कि उसने कुछ सिद्धांतों के बारे में उसके साथ संगति की। यह देखकर कि बहन उसका साथ नहीं दे रही है, किंसले ने बात वहीं रोक दी। इसके बाद, उसने कुछ दूसरे टीम अगुआओं को इसमें घसीटने और गुमराह करने के लिए यह संदेश भेजा, “उस दिन अगुआओं की संगति के बाद निकाले जाने के डर से मैं बच-बचकर रहने लगी हूँ। क्या आप सबको भी ऐसा ही लगता है? अब मैं एक भी शब्द बोलने की हिम्मत नहीं करती। लगता है अब हम सुझाव भी नहीं दे सकते, अलग राय नहीं रख सकते, अगर हम बोले तो हमें बर्खास्त कर कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाएगा। अब भला सुझाव देने की हिम्मत कौन करेगा?” फिर उसने कहा कि काम की खराब तरक्की अगुआओं से जुड़ी है, वे सिद्धांतों के अनुसार लोगों की नियुक्ति नहीं कर रहे हैं। यही नहीं, सिद्धांतों को खोजने के बहाने से वह काम के लिए जिम्मेदार एक भाई के पास गई और यह विचार फैलाया कि मौजूदा निरीक्षक योग्य नहीं है। उस भाई ने परमेश्वर के घर में लोगों के चयन के सिद्धांतों और निरीक्षक की स्थिति के बारे में उससे संगति की। इस संगति के बाद उसने कहा कि वह समझ गई है और अब वह निरीक्षक के खिलाफ नहीं है और अब वह निरीक्षक के साथ सद्भाव से कर्तव्य करेगी, और उसने ऐसा करने की कसम खाई। लेकिन बाद में उसने चुपचाप अगुआओं और कर्मियों के खिलाफ यह तर्क देते हुए असंतोष फैलाया कि “तथ्य यह है कि सभी भाई-बहनों ने निरीक्षक के लिए बात की थी क्योंकि वरिष्ठ अगुआ जूलिएट ने उन्हें आम सहमति को मजबूर किया कि जूलिएट के पास ताकत है, और दूसरे उससे डरते हैं। मुझे चिंता है कि अगर मैंने निरीक्षक की समस्या की रिपोर्ट करना जारी रखा, तो वह मेरे साथ एक मसीह-विरोधी की तरह व्यवहार कर सकती है।” इसका असल में मतलब यह था कि जूलिएट कलीसिया में दूसरों से सत्य छिपा रही थी और समस्याओं की खबरों को दबा रही थी। किंसले की इन अभिव्यक्तियों को सुनकर मैं स्तब्ध रह गई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह इतनी कुटिल और चालाक थी। बहुत-से लोगों ने उसके साथ सिद्धांतों के बारे में संगति की, लेकिन उसने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। अगुआओं और कर्मचारियों की आलोचना के व्यवहार के लिए उसे जरा भी समझ या पछतावा नहीं था, इसके बजाय, उसने लोगों को धोखा देने और अगुआओं और कर्मियों पर अंधाधुंध हमला करने के प्रयास तेज कर दिए थे। उसने भाई-बहनों और अगुआओं के बीच दुर्भावना उकसाई, कलीसिया के कार्य को लगातार बाधित किया। क्या वह शैतान की गुलाम की तरह काम नहीं कर रही थी? मुझे पछतावा हुआ। मैंने उसे पहले ही क्यों नहीं बर्खास्त कर दिया? मैं इतने दिन क्यों झिझकती रही और उसे लोगों को बेवकूफ बनाने के और मौके दिए? मुझे पता था कि किंसले ने हमेशा अगुआओं और कर्मियों को नीची नजर से देखा था और आलोचना की थी, और उनके कर्तव्यों को बाधित किया था, इसलिए मुझे उसे तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए था। लेकिन मुझे डर था कि दूसरे मेरे बारे में क्या सोचेंगे, इसलिए मैं पहले सत्य के बारे में संगति करना और फिर उसकी काट-छाँट करना चाहती थी और अगर वह फिर भी प्रायश्चित न करे, तो उसे बर्खास्त कर देती। यह पूरी तरह न्यायपूर्ण होता और इस तरह भाई-बहन भी मुझसे सहमत होते और मेरे बारे में बुरा नहीं सोचते। अपनी शोहरत और रुतबे के लिए मैंने किंसले को न केवल काबू में नहीं रखा, बल्कि कलीसिया के कार्य को लगातार बाधित करने की खुली छूट दी। क्या उसकी दुष्टता में मैं भी भागीदार नहीं थी? अपनी करनी के बारे में सोचना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मुझे लगा मैंने एक अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है, या कलीसिया के हितों की रक्षा नहीं की है। परमेश्वर को इससे घृणा थी। इसलिए मैंने प्रार्थना की, परमेश्वर से आत्मचिंतन करने और खुद को जानने में मेरा मार्गदर्शन करने की विनती की।

अगले दिन अपनी भक्ति में मैंने मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचन पढ़े, जिससे मैं खुद को बेहतर समझ सकी। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “मसीह-विरोधी इस बात पर गंभीरता से विचार करते हैं कि सत्य सिद्धांतों, परमेश्वर के आदेशों और परमेश्वर के घर के कार्य से किस ढंग से पेश आया जाए या उनके सामने जो चीजें आती हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। वे इन बातों पर विचार नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी की जाए, परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने से कैसे बचा जाए, परमेश्वर को कैसे संतुष्ट किया जाए या भाई-बहनों को कैसे लाभ पहुँचाया जाए; वे लोग इन बातों पर विचार नहीं करते। मसीह-विरोधी किस बात पर विचार करते हैं? वे सोचते हैं कि कहीं उनके अपने रुतबे और प्रतिष्ठा पर तो आँच नहीं आएगी, कहीं उनकी प्रतिष्ठा तो कम नहीं हो जाएगी। अगर सत्य सिद्धांतों के अनुसार कुछ करने से कलीसिया के काम और भाई-बहनों को लाभ पहुँचता है, लेकिन इससे उनकी अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान होता है और लोगों को उनके वास्तविक कद का एहसास हो जाता है और पता चल जाता है कि उनका प्रकृति सार कैसा है, तो वे निश्चित रूप से सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेंगे। यदि व्यावहारिक काम करने से और ज्यादा लोग उनके बारे में अच्छी राय बना लेते हैं, उनका सम्मान और प्रशंसा करते हैं, उन्हें और ज्यादा प्रतिष्ठा प्राप्त करने देते हैं, या उनकी बातों में अधिकार आ जाता है जिससे और अधिक लोग उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं, तो फिर वे काम को उस प्रकार करना चाहेंगे; अन्यथा, वे परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के हितों पर ध्यान देने के लिए अपने हितों की अवहेलना करने का चुनाव कभी नहीं करेंगे। यह मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है। क्या यह स्वार्थ और नीचता नहीं है?(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी शोहरत और रुतबे की बड़ी चाहत रखते हैं, और उनका हर काम इसी के लिए होता है। वे सिर्फ वही काम करते हैं, जो उनके नाम और रुतबे के लिए फायदेमंद होता है, अगर उन्हें लगा कि उनके हितों को नुकसान होगा, तो वे समस्याओं को अनदेखा कर देंगे। वे अपने हितों की रक्षा के लिए कलीसिया के हितों को नुकसान होते देख लेंगे। क्या मेरा व्यवहार ठीक मसीह-विरोधियों जैसा नहीं था? मैं अच्छी तरह जानती थी कि परमेश्वर के घर की अपेक्षा यह थी कि कलीसिया को स्वच्छ किया जाए, और परमेश्वर ने कई बार कहा है कि जब एक दुष्ट व्यक्ति कलीसिया को बाधित करे, तो अगुआओं और कर्मियों को चाहिए कि उससे तुरंत निपटें, उसे उजागर करें, सीमा में रखें या बाहर निकालें। किंसले का बर्ताव पहले ही कलीसिया के कार्य के लिए रोड़ा बन चुका था, तो मुझे इसे तुरंत संभालना चाहिए था। लेकिन मुझे फिक्र थी कि भाई-बहन मुझे अच्छा नहीं समझेंगे, और अगुआ के रूप में मेरा समर्थन नहीं करेंगे। अपने नाम और रुतबे की रक्षा के लिए मैंने बस उसकी काट-छाँट की थी और उसे उजागर किया था। मुझे पता था कि उसने इसे स्वीकार नहीं किया है, मगर मैंने उसे सीमा में नहीं बांधा या बर्खास्त नहीं किया, इसलिए वह दुर्भावना के बीज बोती रही, और कलीसिया के कार्य को बाधित करती रही। अपने लिए मैं कलीसिया के हितों की बलि देने को तैयार थी। मैं बहुत कपटी, स्वार्थी और घिनौनी थी! मैं सिद्धांतों के अनुसार किंसले से नहीं निपटी, न ही भाई-बहनों को सत्य समझने और विवेक विकसित करने का रास्ता दिखाया। नतीजा यह हुआ कि उसने कुछ लोगों को गुमराह करके अपने साथ कर लिया, जिससे कलीसिया का कार्य बाधित हुआ और रुक गया। मैंने बहुत दोषी महसूस किया और मैं पछतावे से भर गई। मुझे महसूस हुआ कि मैं बिल्कुल भी अगुआ बनने लायक नहीं हूँ। मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, एक बाधा डालने वाला दुष्कर्मी कलीसिया में सामने आया, लेकिन मैंने कलीसिया के हितों के बजाय अपने नाम और रुतबे की रक्षा की। मैं बहुत स्वार्थी हूँ! मैं ऐसी नीच बनकर जीते नहीं रहना चाहती। मैं सचमुच तुम्हारे सामने प्रायश्चित करना चाहती हूँ।”

फिर मैं किंसले के पूरे बर्ताव के बारे में ज्यादा जानने के लिए उससे परिचित कुछ भाई-बहनों से मिली। इसकी जांच करते समय मैंने देखा कि कुछ लोगों को उसके बारे में सही समझ नहीं है, वे सोचते थे कि उसमें न्याय की भावना है और वह कलीसिया की रक्षा कर सकती थी। कुछ लोगों को उसके गलत तरीकों की जानकारी थी, मगर उन्होंने सोचा कि ये बस इसलिए था कि वह सत्य सिद्धांतों को नहीं समझती थी। मैंने उन लोगों के साथ न्याय की भावना, अहंकार और आत्मतुष्टता से जुड़े सत्यों को लेकर संगति की, और एक तरफ क्षणिक अपराध और दूसरी ओर किसी का प्रकृति सार के बीच फर्क के बारे में संगति की। इससे उन्हें किंसले के बारे में और ज्यादा समझ हासिल करने में मदद मिली, और वे उसे उजागर करने के लिए डटकर खड़े होने को तैयार हो गए। लेकिन जब मैंने ब्रैंडन से किंसले के बर्ताव का जिक्र किया, तो उसने जोरदार ढंग से उसका बचाव किया और उल्टे मुझसे पूछने लगे कि, “आप उसके बारे में जांच क्यों करना चाहती हैं? उसने बस कुछ सुझाव दिए थे। आप सब उसकी निंदा क्यों कर रही हैं? आप सभी अगुआ और कर्मी किसी नए विचार वाले को इस तरह दबाकर उन्हें मुश्किल में कैसे डाल सकते हैं? कोई सुझाव देने की हिम्मत कैसे करेगा? आपकी इस जाँच-पड़ताल से मुझे कभी भी अपनी राय रखने में डर लगेगा। आप लोग मसीह-विरोधी जैसे ही लगते हैं, वे अलग राय की इजाजत नहीं देते।” ये सब सुनकर मैं हैरान हो गई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि उसकी प्रतिक्रिया इतनी तीखी होगी और वो कहेगा हम उसके साथ गलत कर रहे हैं। शुरुआत के लिए मैंने धैर्य रखकर उसके साथ संगति की, पर वह सुनने को तैयार नहीं था और अभी भी किंसले पर यकीन कर रहा था कि समस्या अगुआओं में है। फिर मैंने सच में यहीं छोड़ देना चाहा। मुझे लगा कि सत्य की मेरी समझ सतही है, और मुझे ऐसे मामलों से निपटने का अनुभव नहीं है। अगर मैं यह मामला संभालती रही, तो शायद दूसरे मेरे प्रति पूर्वाग्रह पाल लेंगे। फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से अपने हितों का ही ध्यान रख रही हूँ, इसलिए मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे आस्था और ताकत मांगी। मुझे उसके वचनों का यह अंश याद आया : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर की इच्छा का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन मेंतुम अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम निष्‍ठावान रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीज़ों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा। अगर तुम्‍हारे पास ज्यादा काबिलियत नहीं है, अगर तुम्‍हारा अनुभव उथला है, या अगर तुम अपने पेशेवर कार्य में दक्ष नहीं हो, तब तुम्‍हारेतुम्‍हारे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, हो सकता है कि तुम्‍हें अच्‍छे परिणाम न मिलें—पर तब तुमने अपना सर्वश्रेष्‍ठ दिया होगा। तुमतुम अपनी स्‍वार्थपूर्णइच्छाएँ या प्राथमिकताएँ पूरी नहीं करते। इसके बजाय, तुम लगातार कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हो। भले ही तुम्‍हें अपने कर्तव्‍य में अच्छे परिणाम प्राप्त न हों, फिर भी तुम्‍हारा दिल निष्‍कपट हो गया होगा; अगर इसके अलावा, इसके ऊपर से, तुम अपने कर्तव्य में आई समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य खोज सकते हो, तब तुम अपना कर्तव्‍य निर्वहन मानक स्तर का कर पाओगे और साथ ही, तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाओगे। किसी के पास गवाही होने का यही अर्थ है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है) परमेश्वर के वचनों से मैं समझ पाई कि हम अपने कर्तव्य में अपने रुतबे या निजी लाभ का विचार नहीं कर सकते। हमें कलीसिया के हितों को आगे रखना होगा, परमेश्वर की जाँच को स्वीकार कर पूरी लगन से समर्पण करना होगा। यही एकमात्र तरीका है, जिससे हमारे कर्तव्य को परमेश्वर की स्वीकृति मिलती है। दूसरों को नाराज़ करने के डर से या उनके पूर्वाग्रह का ख्याल करके मैं सत्य का अभ्यास नहीं कर पाई। मैंने ऐसा मामला पहले कभी नहीं संभाला था, मगर मुझे कम-से-कम अपने कर्तव्य के प्रति सच्चा बने रहना होगा, भाई-बहनों के साथ समझ को लेकर संगति करने की भरसक कोशिश करनी होगी। किंसले ने ब्रैंडन को गुमराह कर उलझा दिया था, और वह उसकी तरफ से बोल रहा था, क्योंकि उसने विभिन्न अवधारणाओं से उन्हें भ्रमित किया था और मनमाने ढंग से निर्णय लेने और झूठ के प्रसार को “सच बोलने” में बदल दिया था। उसने अगुआओं के खुलासे और उसके झूठ के खंडन, और लोगों को न्याय और निंदा करने से रोकने के लिए “गंदे सुझावों और अलग-अलग राय” के रूप में लिया था। सच लगने वाले ये झूठ सच में गुमराह करने वाले हो सकते हैं। किंसले ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया था और पर्दे के पीछे से यह निर्णय लिया था कि अगुआ बिना सिद्धांतों के लोगों का चयन कर रहे हैं। अगुआओं और कर्मियों और भाई-बहनों ने लोगों के चयन के सिद्धांतों पर उनके साथ संगति की थी—उसने न केवल इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया, वह तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर कहती रही कि अगुआ उसे दबा रहे हैं, उसे सुझाव देने की अनुमति नहीं दे रहे, और सभी अलग राय को बेकार बता रहे हैं। क्या यह सच्चाई को उलटना और दूसरों को फँसाना नहीं हैं? उसने कहा, “मुझे डर कि मुझे कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाएगा। और कौन फिर सुझाव देने की हिम्मत करेगा?” ये शब्द दिल से निकले हुए-से और ईमानदार लगते हैं, लेकिन वे उसके बुरे इरादों, उसके हमलों और फैसलों को छिपा रहे थे। वह भाई-बहनों को भ्रमित करना चाहती थी और उन्हें अगुआओं के साथ टकराव में अपने पक्ष में खड़ा करना चाहती थी, और अगुआओं और कर्मियों के काम में सहयोग से इनकार कर रही थी। वह कलीसिया के कार्य को बाधित कर रही थी। ब्रैंडन को बिल्कुल समझ नहीं थी और वे किंसले की बातों से धोखा खा गए। मुझे उन्हें स्नेहपूर्ण मदद और समर्थन देना चाहिए था। संगति के जरिए बाद में उन्होंने उसके बारे में समझ हासिल की। उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने सत्य को नहीं खोजा था और उनमें समझ नहीं थी, इसलिए वे किंसले को बचा रहे थे और एक दुष्कर्मी की ओर खड़े होकर उसकी ओर से बोल रहे थे। उन्होंने यह भी जाना कि सत्य की समझ के बिना वे कितने अधम हैं, और कितनी जल्दी दुष्कर्म कर सकते हैं। उनकी सोच बदलते देख मुझे बहुत खुशी हुई।

बाद में, कुछ सहकर्मियों के साथ मैंने सभा की और दुष्कर्मियों को पहचानने के बारे में भाई-बहनों के साथ संगति की, और हमने किंसले के पूरे बर्ताव का विश्लेषण किया। सभी लोग उसकी असलियत समझ पाए, और हम लोगों ने लगभग एकमत से उसे कलीसिया से निकालने के लिए मत दिया। मतदान के दौरान, उन्होंने अपनी सीखी हुई कुछ बातें बताईं। उन्होंने ऐसी बातें बताईं जैसे कि, “किंसले विशेष रूप से झूठ गढ़ने और सत्य को उलटने में माहिर थी, और कलीसिया के हितों की रक्षा करने की आड़ में उसने हर जगह अगुआओं और कर्मियों के खिलाफ पूर्वाग्रह फैलाया। इससे कलीसिया का कार्य बहुत गड़बड़ हो गया। अगुआ उसे किसी भी तरह से उजागर करें और उसकी काट-छाँट करें, उसने जरा-सा भी खेद या प्रायश्चित नहीं किया। उसका सार दुष्ट है।” दूसरों ने कहा, “किंसले बड़ी भद्र महिला लगती थी, लेकिन उसकी बातें गुमराह करने वाली, कपटी और दुष्टतापूर्ण थीं। अगर यह संगति और विश्लेषण न होता तो मुझमें अभी भी उसकी समझ न आती। मैंने देख लिया है कि सत्य समझने और विवेक हासिल करने का कितना महत्व है।” कुछ लोगों ने कहा कि उसने उन्हें पहले भी गुमराह किया था, उन्हें लगा कि वह कलीसिया की रक्षा कर रही है, उन्हें पता नहीं था कि वह गुप्त रूप से खूब दुष्टता कर रही थी, इसलिए उन्होंने उसका साथ दिया और ऐसी बातें बोलीं जो सत्य के अनुरूप नहीं थीं। उन्हें आत्मचिंतन और प्रायश्चित करने की जरूरत थी। उन्होंने यह भी देखा कि परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कोई अपमान सहन नहीं करता। वो दुष्कर्मी जो कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं, उन्हें देर-सबेर उजागर किया जाएगा और निकाल दिया जाएगा। मेरे भाई-बहनों की संगति सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई।

इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि जब कलीसिया में कोई दुष्कर्मी आता है, कलीसिया के कार्य में रुकावट डालता और उसे बाधित करता है, यदि अगुआ और कर्मी सत्य का अभ्यास नहीं करते और उन्हें सिद्धांतों के अनुसार नहीं संभालते, इसके बजाय अपने निजी हितों की रक्षा करते हैं, तो यह दरअसल शैतान को कलीसिया के कार्य में सेंध लगाने देना है, उसके गुलाम की तरह काम करके दुष्कर्म करना और परमेश्वर का विरोध करना है। दुष्कर्मियों को तभी कलीसिया से बाहर करके, और सत्य जानने और विवेक हासिल करने में भाई-बहनों की अगुआई करके ही कलीसिया के कार्य की रक्षा की जा सकती है, और एक अगुआ या कर्मी की जिम्मेदारी को पूरा किया जा सकता है।

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