मैं हमेशा भावनाओं में बहकर काम क्यों करती हूँ?
कुछ समय पहले, मेरे निरीक्षक ने बहन शियांग झेन को हमारे साथ वीडियो बनाने का काम सौंपा। शियांग झेन काफी मिलनसार है, जब हम पहली बार मिले थे तभी से मैंने उसके साथ एक निकटता महसूस की। वह उम्र में मुझसे थोड़ी बड़ी थी और एक बड़ी बहन की तरह ही मेरा ख्याल रखती थी। जब कभी वह मेरे अंदर भ्रष्टता देखती, तो उस बारे में बता कर मेरी मदद करती। उस समय, अपनी साथी बहन डिंग यी के साथ मेरा कुछ मनमुटाव चल रहा था। मुझे लगा डिंग यी थोड़ी दबंग और मुँहफट है। कभी-कभी उसकी बातों से मैं आहत हो जाती। उसकी साथी रहते हुए, मुझे लगता जैसे मेरा कोई अस्तित्व नहीं, कोई कीमत नहीं। लेकिन शियांग झेन के साथ काम करने में बहुत अच्छा लगता था। वह कभी चुभने वाली बातें न कहती और मेरी समस्या उजागर भी करती, तो ऐसे बताती कि मैं स्वीकार कर लेती। अगर कभी शियांग झेन को कोई समस्या आती, तो वह तुरंत मेरे पास चली आती, वह अपनी हर तरह की स्थिति के बारे में मुझे बताती। इससे मुझे लगता कि मेरी भी कोई अहमियत और कीमत है। एक बार, डिंग यी ने जब मुझे गलत समझ लिया, तो शियांग झेन ने बातों को स्पष्ट करने में मदद की। उसके बाद तो मुझे और भी लगने लगा कि वह समझदार और विवेकी है। मैं हर बात उससे साझा करती और इस तरह हम करीब आते गए। लेकिन महीने भर से अधिक काम करके भी, शियांग झेन के काम में कोई ज्यादा सुधार नहीं आया। हमारे अगुआओं ने उसे और अधिक मेहनत करने की सलाह दी, फिर डिंग यी और मुझसे कहा कि हम उसके बनाए वीडियो का निरीक्षण करें और संपादन के बाद ही उसे प्रस्तुत करें। उसके वीडियो का संपादन करने में हमारा पूरा दिन निकल गया। हमें उसके वीडियो में ढेरों बदलाव करने पड़े, इससे मुझे हैरानी हुई : “अगर अगुआ को उसके काम में इतनी समस्याएं दिखीं, तो कहीं वे यह सोचकर उसे कोई दूसरा काम न सौंप दें कि शियांग झेन आगे बढ़ाने लायक नहीं है? जब से शियांग झेन आई है, वह खुशी-खुशी मेरी मदद करती है, चाहे बात जीवन प्रवेश की हो या सामान्य जीवन की। मुझे उसके साथ अच्छा लगता है। अगर वह चली गई, तो मेरे भरोसे का एक कम व्यक्ति कम हो जाएगा। और फिर, अगर करीब दो महीने में ही उसे कोई और काम दे दिया जाता है, तो क्या वह बेचैन नहीं हो जाएगी? बेहतर यही होगा कि मैं अगुआओं को उसका बनाया वीडियो न भेजूँ।” लेकिन डिंग यी को यह बात पता चला गई और मुझसे बोली : “हमें शियांग झेन का बनाया वीडियो अगुआओं को भेज देना चाहिए। इससे उन्हें पता रहेगा कि वह कैसा काम कर रही है।” उसकी बात से मुझे थोड़ी ग्लानि हुई और सोचने लगी : “अगर उसकी जगह कोई और होता, तो मैं बेझिझक बिना संपादन वाला वीडियो अगुआओं को भेज देती। लेकिन शियांग झेन की बात अलग थी। क्या मैं उसका बचाव कर उसका पक्ष नहीं ले रही थी? यह तो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है।” मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “तुम जो कुछ भी करते या कहते हो, उसमें अपने हृदय को सही बनाने और अपने कार्यों में नेक होने में सक्षम बनो, और अपनी भावनाओं से संचालित मत होओ, न अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करो। ये वे सिद्धांत हैं, जिनके अनुसार परमेश्वर के विश्वासियों को आचरण करना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?)। परमेश्वर चाहता है कि हम अपनी बातों और कार्यों में सही इरादे रखें, भावनाओं में बहकर किसी का बचाव न करें या पक्ष न लें। किसी भी विश्वासी को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए। अगर मैं अपने अगुआओं के प्रति ईमानदार न होकर, कलीसिया में लोगों को प्रश्रय देकर उनका बचाव करने लगूँ, तो यह एक गंभीर समस्या है। इसका एहसास होने पर मैं थोड़ा डर गई। मैं भावुक होकर काम नहीं कर सकती, जिन लोगों के साथ मेरी अच्छी बनती है, उन्हें प्रश्रय देकर मुझे उनका बचाव नहीं करना चाहिए। मुझे वह करना चाहिए जो आवश्यक है। इसलिए, मैंने शियांग झेन वाला वीडियो अगुआओं को भेज दिया। लेकिन बाद में आत्म-चिंतन करके मैंने खुद को नहीं जाना, चूँकि मैं अपनी समस्या के मूल को नहीं पहचान पाई, वही गलती दोहरा बैठी।
इसके फौरन बाद, अगुआओं ने हमसे शियांग झेन के कार्य का मूल्यांकन लिखने को कहा। वे जानना चाहते थे कि क्या वह वीडियो बनाने के काम के लिए सही है और क्या उसे आगे बढ़ाया जा सकता है। मुझे थोड़ी उलझन हुई : शियांग झेन ने वाकई कोई खास प्रगति नहीं की थी, लेकिन अगर मैंने ईमानदारी से मूल्यांकन किया, तो उसे कोई और काम सौंपा जा सकता है। यह उसके लिए वाकई परेशान करने वाली बात होगी। अगर मैंने इस अहम वक्त में उसकी मदद नहीं की, तो हम साथ काम नहीं कर पाएंगे। मैं यह सब सोच ही रही थी कि डिंग यी बोली : “शियांग झेन वाकई काबिल नहीं है, उसके बनाये वीडियो अच्छे नहीं हैं। अगर वह काबिल होती, तो पिछले महीने दो महीने में कुछ तो प्रगति करती...।” यह सब सुनकर मुझे गुस्सा आ गया : “तुम हर वक्त शियांग झेन की कमियों का शोर क्यों मचाती रहती हो? तुम्हें लगता है कि उसे प्रशिक्षित करना एक मुश्किल काम है, इसलिए अच्छा हो कि उसे कोई और काम सौंप दिया जाए?” मैंने चिढ़कर कहा : “तुमने कुछ भी गलत नहीं कहा, लेकिन तुमने उसकी किसी भी खूबी का जिक्र नहीं किया। हमें उसका तटस्थ और निष्पक्ष मूल्यांकन करना चाहिए। हम सिर्फ उसकी कमजोरियों का जिक्र नहीं कर सकते। हो सकता है शियांग झेन में काबिलियत न हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि उसने कोई प्रगति ही नहीं की, जैसा तुमने कहा। अगर तुम उसे उसकी छोटी-मोटी समस्याएँ बताओगी, तो वह अब भी खुद को सुधार सकती है।” मुझे थोड़ा उखड़ते देखकर, डिंग यी ने चुप्पी साध ली। एक अजीब-सा माहौल बन गया था। मैं तमतमा गई थी, इस बात से मुझे थोड़ी ग्लानि हुई : “मेरे साथ परेशानी क्या है? जब डिंग यी ने शियांग झेन के मुद्दे उठाए, तो मैं इतनी उखड़ क्यों गई? डिंग यी ने जो मुद्दे उठाए थे, वे सही थे—उसने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा नहीं था। फिर मेरी बेचैनी की वजह क्या है? क्या मैं भावनाओं में बह रही हूँ?” मैं शांत हो गई और डिंग यी को बोलने दिया। थोड़ी-बहुत बातचीत के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि शियांग झेन अभी भी कुछ सिद्धांतों से परिचित नहीं है, हमने सिफारिश की कि उसे थोड़े समय प्रशिक्षण जारी रखने दिया जाए। हालाँकि शियांग झेन पर हमारी बातचीत खत्म हो चुकी थी, लेकिन डिंग यी के सामने मैंने जो गुस्सा दिखाया था, उसे लेकर अभी भी मेरे मन में एक टीस थी। मैंने मन में सोचा : “जैसे ही उसने शियांग झेन के बारे में कुछ बुरा कहा, मैं बेचैन हो गई थी। क्या मैं उसे प्रश्रय देकर उसका बचाव कर रही हूँ? पिछली बार, मेरे कामों पर मेरी भावनाएँ हावी हो गई थीं, मैं नहीं चाहती थी कि उसका वीडियो अगुआओं को दिया जाए। मैं फिर से उसी दिशा में बढ़ रही हूँ। मुझे इस मुद्दे के समाधान के लिए सत्य खोजना चाहिए।”
अपनी खोज के दौरान, मुझे ये अंश मिले। “सार में, भावनाएँ क्या होती हैं? वे एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव हैं। भावनाओं की अभिव्यक्तियाँ कई शब्दों का उपयोग करके वर्णित की जा सकती हैं : पक्षपात, अत्यधिक रक्षा करने की प्रवृत्ति, भौतिक संबंध बनाए रखना, भेदभाव; ये ही हैं भावनाएँ” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य की वास्तविकता क्या है?)। “क्या तुम उन लोगों के प्रति भावुक हो, जो तुम्हारे करीब हैं या जिनके हित समान हैं? क्या उनके कार्यों और व्यवहार के प्रति तुम्हारा मूल्यांकन, परिभाषा और प्रतिक्रिया निष्पक्ष और तटस्थ होगी? और अगर सिद्धांत के तकाजे से कलीसिया तुमसे भावनात्मक रूप से संबंधित किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई कदम उठाए और वे कदम तुम्हारी धारणाओं के विपरीत हों, तो तुम कैसे प्रतिक्रिया करोगे? क्या तुम आज्ञापालन करोगे? क्या तुम उनके साथ गुप्त रूप से संपर्क बनाए रखोगे, क्या तुम अभी भी उनके द्वारा फुसलाए जाते रहोगे, क्या तुम अभी भी उनके लिए बहाने बनाने, उन्हें सही ठहराने और उनका बचाव करने के लिए तैयार हो जाओगे? क्या तुम उनके दोष अपने सिर लेकर उनकी मदद करोगे, जिन्होंने तुम पर दया दिखाई है, जो सत्य के सिद्धांतों से बेखबर हैं और परमेश्वर के घर के हितों की परवाह नहीं करते? ये सारे भावनात्मक मुद्दे हैं, है न?” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। “अगर लोगों में परमेश्वर के प्रति श्रद्धा का अभाव है, और अगर उनके हृदयों में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं है, तो वे चाहे जिन भी कर्तव्यों का पालन क्यों न कर रहे हों, या कितनी भी समस्याओं से क्यों न निपट रहे हों, वे कभी भी सिद्धान्त के अनुरूप आचरण नहीं कर सकते। अपने प्रयोजनों और स्वार्थपूर्ण आकांक्षाओं के भीतर जीवन जी रहे लोग सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने में अक्षम होते हैं। इस कारण, अगर कभी उनका सामना किसी समस्या से होता है और वे अपने प्रयोजनों पर आलोचनात्मक निगाह नहीं डालते और इस बात को पहचान नहीं पाते कि उनके प्रयोजनों में कहाँ पर खोट है, बल्कि अपने पक्ष में झूठ और बहाने गढ़ने के लिए तमाम तरह के औचित्यों का इस्तेमाल करते हैं, तो अंत में क्या होता है? वे अपने हितों, प्रतिष्ठा, और अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों की रक्षा के लिए काफी अच्छा उद्यम करते हैं, लेकिन उन्होंने परमेश्वर के साथ अपना सामान्य संबंध खो दिया होता है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के प्रति जो प्रवृत्ति होनी चाहिए मनुष्य की)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि पक्षपात करना और संबंध बनाए रखना, मोह और भ्रष्ट स्वभाव के परिणाम हैं। रही बात मेरे व्यवहार की, तो मैंने शियांग झेन का पक्ष लिया क्योंकि वह मेरा ख्याल रखती और देखभाल करती थी और जब भी कोई मसला होता, वह पहले मेरे पास ही आती, इससे मेरे अहम को सुकून मिलता था। इसलिए उसके वीडियो में ढेरों समस्याएं होने के बावजूद, मैं अगुआओं को सूचित नहीं करना चाहती थी। यही वजह थी, जब डिंग यी ने शियांग झेन की कमियाँ उजागर कीं, तो मैंने उन्हें स्वीकार नहीं किया, बल्कि गुस्से में शियांग झेन का बचाव किया और उसकी कमियों को ढंकने की कोशिश की। क्या यहाँ मेरी भावनाएँ मेरे काम पर हावी नहीं हो रही थीं? यह जानते हुए भी कि शियांग झेन ने कोई प्रगति नहीं की है, मैंने डिंग यी को सच नहीं बोलने दिया और उससे इस बात पर बहस की कि उसने कोई प्रगति नहीं की है। असल में, लोगों को आगे बढ़ाने पर कलीसिया का सिद्धांत इस बात के मूल्यांकन पर टिका है कि क्या उनमें काबिलियत, प्रतिभा या क्षमता है और क्या वे किसी कार्य-विशेष को संभाल सकते हैं। यह कहना कि शियांग झेन ने थोड़ी प्रगति की है, असल में कोई मायने नहीं रखता। मैं तो यह बात महज उसकी कमियों को ढंकने और लोगों के निर्णय को कमजोर करने के लिए कह रही थी। हाल ही में शियांग झेन को लेकर जो कुछ बातचीत हुई थी, उसमें मेरी कथनी और करनी के पीछे एक ही मकसद था—मैं शियांग झेन को रोकना चाहती थी, ताकि वह मेरी देखभाल करती रहे, मेरे अहम और रुतबे को संतुष्टि मिलती रहे। उसकी ओर से बोलना सिद्धांत खोजने या परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने पर आधारित नहीं था। मैंने इस बात पर विचार ही नहीं किया कि कलीसिया के काम के लिए कौन-सी कार्य-योजना सबसे अच्छी रहेगी, बल्कि मैंने अपने स्वार्थी, घिनौने इरादों को अपनी कथनी और करनी पर हावी होने दिया। अगर मेरे गलत मार्गदर्शन के कारण कलीसिया ने किसी गलत व्यक्ति को रख लिया, तो क्या उससे कलीसिया के काम में रुकावट नहीं आएगी? मैंने सत्य के सिद्धांतों और कलीसिया के कार्य पर अपनी निजी भावनाओं को प्राथमिकता दी। मानो परमेश्वर के लिए मेरे हृदय में कोई स्थान ही न हो।
फिर मुझे परमेश्वर के ये वचन मिले : “परमेश्वर बीच-बचाव नहीं करता; वह मानुषिक विचारों से बेदाग़ है। उसके लिए एक का मतलब एक है और दो का मतलब दो है; सही का मतलब सही है और ग़लत का मतलब ग़लत है। कोई दुविधा नहीं है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सच्ची आज्ञाकारिता से ही व्यक्ति में सच्ची आस्था हो सकती है)। “यद्यपि परमेश्वर लोगों से प्यार करता है, फिर भी वह उन्हें लाड़-प्यार से बिगाड़ता नहीं। वह लोगों को अपना प्यार, अपनी दया एवं अपनी सहनशीलता देता है, लेकिन वह कभी उनसे लाड़ नहीं करता; परमेश्वर के अपने सिद्धांत और सीमाएँ हैं” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और धार्मिक है। परमेश्वर सिद्धांत के अनुसार लोगों से व्यवहार करता है, वह किसी के प्रति भावुक नहीं होता। मिसाल के तौर पर, इस्राएल के राजा दाऊद को ही लो। उसकी सबसे बड़ी इच्छा एक मंदिर बनाने की थी जिसमें लोग परमेश्वर की पूजा कर सकें। दाऊद परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान देने वाला इंसान था, लेकिन जब उसने व्यभिचार किया, तो परमेश्वर ने उस पर अनुग्रह नहीं किया और न ही उसे शरण दी। परमेश्वर ने उसे अनुशासित कर दण्ड दिया और कहा कि अब से उसके घर में हमेशा खून-खराबा होता रहेगा। इससे हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर सभी लोगों के साथ उचित और न्यायपूर्ण व्यवहार करता है, जबकि मैंने लोगों के साथ भावनाओं और प्राथमिकताओं के आधार पर व्यवहार किया। जिससे भी मेरी अच्छी निभती, मैं उसका पक्ष लेती, उसे प्रश्रय देती और अपने हित साधती। जिन्हें मैं पसंद करती उनसे ज्यादा मेलजोल करने की इच्छुक रहती, बल्कि बिना सिद्धांत के उनका बचाव करती। जब डिंग यी ने सिद्धांत के आधार पर शियांग झेन का मूल्यांकन किया, तो मैं इतनी बेचैन हो गई कि उसे आगे बोलने में झिझक होने लगी। परमेश्वर ऐसे व्यवहार से घृणा करता है! सांसारिक दुनिया में सब-कुछ संबंधों पर टिका होता है, लेकिन परमेश्वर के घर की बात अलग है—परमेश्वर हमसे सिद्धांत के आधार पर लोगों के साथ उचित व्यवहार करने और सच को सच कहने की अपेक्षा करता है। इस तरह से कार्य करना स्पष्टवादी और ईमानदार होना है जिससे मन को सुकून मिलता है।
बाद में, जब मैंने विचार किया कि मेरी कथनी और करनी पर मेरी भावनाएँ क्यों हावी हो जाती हैं, तो मुझे ये अंश मिले। “अपने दैनिक जीवन में, हम अकसर परमेश्वर और उसके घर के हितों पर जोर देते हैं। हालाँकि, कुछ लोगों की अकसर परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करने के बजाय सभी चीजों में अपने ही हित सबसे ऊपर रखने की प्रवृत्ति होती है। ये लोग विशेष रूप से स्वार्थी होते हैं। इसके अलावा, अपने मामले सँभालने में, वे अपने हितों की रक्षा अकसर परमेश्वर के घर के हितों को इस हद तक नुकसान पहुँचाकर करते हैं कि वे अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए परमेश्वर के घर से परोक्ष अनुरोध भी करते हैं। यहाँ मुख्य शब्द क्या है? मुख्य रूप से किसके बारे में बात की जा रही है? (हितों के बारे में।) ‘हितों’ का क्या अर्थ है? इस शब्द में क्या शामिल है? लोग किन्हें मनुष्य के हित मानते हैं? मनुष्य के हितों में क्या शामिल है? हैसियत, प्रतिष्ठा, और भौतिक हितों से संबंधित चीजें। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति दूसरों से अपनी प्रशंसा और आराधना करवाने के लिए उन्हें गुमराह करता है, तो वे अपने मनोवैज्ञानिक हितों का अनुसरण करते हैं; भौतिक हित भी होते हैं, जिनका अनुसरण लोग दूसरों का फायदा उठाकर, अपने लिए लाभ बटोरकर या परमेश्वर के घर की संपत्ति चुराकर करते हैं, ये कुछ उदाहरण हैं। मसीह-विरोधी हमेशा अपना लाभ पहले रखते हैं। चाहे वे मनोवैज्ञानिक हितों का अनुसरण कर रहे हों या भौतिक हितों का, मसीह-विरोधी लालची होते हैं, उन्हें तृप्त नहीं किया जा सकता, और वे अपने लिए ये सभी चीजें लेने की कोशिश करते हैं। व्यक्ति के हितों से संबंधित मामले उसे सबसे ज्यादा प्रकट करते हैं। हित प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं, और व्यक्ति रोजाना जिस भी चीज के संपर्क में आता है, वह उसके हित से जुड़ा होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक))। “अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग प्रतिष्ठा और हैसियत जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक वाहक बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव परेशान करने और बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक))। शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद, हमारी प्रकृति स्वार्थी और घिनौनी हो गई है। हमारी कथनी और करनी के पीछे एक स्वार्थपूर्ण मंशा होती है—यह सब हम निजी हितों को साधने के लिए करते हैं। जब हम स्वार्थपूर्ण मंशाओं से बोलते और कार्य करते हैं, तो अनजाने में शैतान के अनुचर की तरह काम करते हैं, कलीसिया के कार्य में रुकावट डालते और उसे बिगाड़ते हैं। आत्म-चिंतन करने पर मैंने जाना, चूँकि शियांग झेन अक्सर मेरी चिंता और देखभाल करती थी, उससे मुझे सुख की अनुभूति होती और रुतबे की मेरी इच्छा पूरी होती थी। अगर वह चली गई, तो मैं ये सारे लाभ गँवा बैठूँगी, इसलिए मैं नहीं चाहती थी कि अगुआ उसे किसी और काम में लगाए। मैंने उसके साथ सिद्धांत के अनुसार व्यवहार नहीं किया, बल्कि पहले मैंने निजी हितों पर विचार किया। अगुआओं ने हमें शियांग झेन का मूल्यांकन लिखने को कहा ताकि तय किया जा सके कि कलीसिया की कार्यकुशलता में सुधार के लिए उसे सिद्धांत के अनुसार कोई और काम तो नहीं देना चाहिए, जिससे कि हर सदस्य से अधिकतम लाभ उठाया जा सके। लेकिन मैंने कलीसिया के काम पर विचार नहीं किया, केवल रुतबा पाने की अपनी इच्छा को संतुष्ट करने के बारे में ही सोचती रही। मैंने कलीसिया के काम की रक्षा नहीं की, मैं धोखेबाज थी, मैंने कोशिश की कि अगुआओं को शियांग झेन की वास्तविक स्थिति के बारे में पता न लगे। सच तो यह है कि शियांग झेन वीडियो बनाने के काम के लिए सही नहीं थी, लेकिन अगर मैं उसे बनाए रखने पर जोर देती, तो वह कोई परिणाम न दे पाती, बल्कि हमें ही उसके वीडियो संपादन में अधिक समय देना पड़ता—लाभ से ज्यादा नुकसान होता। मुझे सिद्धांत के अनुसार कार्य करने के महत्व का एहसास हुआ, जैसा कि परमेश्वर अपेक्षा करता है—यह कलीसिया के सदस्यों और कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद था। अगर हम अपनी भावनाओं को अपने काम पर हावी होने देंगे, तो इससे कलीसिया का काम बिगड़ता और बाधित होता है। मैं अपनी भावनाओं के आधार पर काम करती नहीं रह सकती थी।
इसके फौरन बाद, शियांग झेन ने एक और वीडियो बनाया। मैंने उसका वीडियो देखा तो हैरान रह गई कि दो महीने के प्रशिक्षण के बाद भी, उसके बनाये वीडियो में कई दिक्कतें थीं। अब जबकि अगुआ शियांग झेन पर नजर रख रहे थे कि क्या वह इस भूमिका के लिए सही है, अगर मैं उसकी सभी गलतियां बता देती, तो उसे काम से हटाया जा सकता था। मैंने सोचा कि मैं उसकी थोड़ी-बहुत गलतियां बता देती हूँ। लेकिन फिर विचार किया कि मैं पहले भी उसके साथ भावनाओं में बहकर व्यवहार कर चुकी हूँ, मुझे फिर उसी रास्ते पर नहीं जाना चाहिए। मुझे उसकी सभी समस्याओं को निष्पक्ष रहकर तथ्यों के आधार पर उठाना चाहिए, ताकि अगुआ तय कर सकें कि वह सिद्धांत के आधार पर उस काम के लायक है या नहीं। तभी, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आ गया : “और परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना क्या है? उदाहरण के लिए, जब तुम किसी का मूल्यांकन करते हो—यह परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने से संबंधित है। तुम उनका मूल्यांकन कैसे करते हो? (हमें ईमानदार, न्यायपूर्ण और निष्पक्ष होना चाहिए और हमारे शब्द भावनाओं पर आधारित नहीं होने चाहिए।) जब तुम ठीक वही कहते हो जो तुम सोचते हो, और ठीक वही कहते हो जो तुमने देखा है, तो तुम ईमानदार होते हो। और सबसे बढ़कर, ईमानदार होने के अभ्यास का अर्थ है परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करना। परमेश्वर लोगों को यही सिखाता है; यह परमेश्वर का मार्ग है। ... यदि तुमने सच नहीं बोला, तो क्या तुम्हारे इस बात पर जोर देने का कोई मतलब है कि तुम परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण कर उसे संतुष्ट कर रहे हो? क्या तुम्हारे चिल्लाने पर परमेश्वर ध्यान देगा? क्या परमेश्वर इस बात पर ध्यान देगा कि तुम कैसे चिल्लाते हो, कितना जोर से चिल्लाते हो या तुम्हारी इच्छा कितनी प्रबल है? क्या वह इस बात पर ध्यान देगा कि तुम कितनी बार चिल्लाते हो? नहीं देगा। परमेश्वर यह देखता है कि कुछ होने पर तुम सत्य का अभ्यास करते हो या नहीं, जब तुम्हारे साथ कोई घटना हो जाती है तो तुम क्या चुनते हो और कैसे सत्य का अभ्यास करते हो। यदि तुम संबंध बनाए रखना पसंद करते हो, अपने हित और छवि बनाए रखना पसंद करते हो और केवल खुद को बचाए रखते हो, तो परमेश्वर देखेगा कि कोई बात होने पर यह तुम्हारा दृष्टिकोण और रवैया होता है, तो वह तुम्हारा मूल्यांकन करेगा : वह कहेगा कि तुम उसके मार्ग का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं हो” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर चाहता है कि हम उसका भय मानें, बुराई से दूर रहें और हर छोटी-बड़ी परेशानी का सामना ईमानदारी से करें। किसी का मूल्यांकन करना भले ही कोई बड़ी बात न लगे, लेकिन इससे पता चल जाता है कि किसी के मन में परमेश्वर के प्रति श्रद्धा है या नहीं, कोई ईमानदार और भरोसेमंद है या नहीं। भले ही मुझमें परमेश्वर के प्रति श्रद्धा नहीं थी, लेकिन मैं उसके वचनों का अभ्यास करने, अपनी कथनी और करनी में भरोसेमंद बनने को तैयार थी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मैं अब भावनाओं में बहकर काम नहीं करना चाहती, मैं अपने मन में तेरे प्रति श्रद्धा रखकर कार्य करना चाहती हूँ।” मैंने शियांग झेन के वीडियो में मिली सभी गलतियों को उजागर कर दिया। कुछ ही दिनों बाद, उसे दूसरा काम सौंप दिया गया। हालांकि मैं थोड़ी बेचैन थी, लेकिन जब यह सोचा कि इससे कलीसिया के काम को और खुद शियान झेन को काफी लाभ होगा, तो मुझे थोड़ा सुकून मिला।
पहले, मुझे लगता था कि मेरा मोह केवल क्षणिक विचार या भावनाएँ हैं और अगर मैं साफ तौर पर सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती या कलीसिया के काम को नुकसान नहीं पहुँचाती, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है और इसके समाधान के लिए सत्य खोजने की आवश्यकता नहीं है। असल में, मेरी यह सोच ही गलत थी। दिखाने को तो मैं नियमों का पालन करती और कोई पाप नहीं कर रही थी, लेकिन अंदर से मैं अपने विचारों, मान्यताओं और शैतानी स्वभाव को दबा नहीं पा रही थी। अगर मैं सत्य खोजकर इस समस्या का समाधान न करती, तो मैं अवश्य ही विध्न पैदा करती। मेरे लिए अपने विचारों और भ्रष्टता को पहचानना, सत्य खोजना और आत्म-चिंतन करना बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्वभावगत बदलाव का मार्ग है।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?