मार्ग ... (7)
हम अपने व्यवहारिक अनुभव में देखते हैं कि बहुत बार परमेश्वर ने निजी तौर पर हमारे लिए एक मार्ग खोला है, ताकि हमारे पैरों के नीचे मार्ग अधिक दृढ़ और अधिक वास्तविक हो। क्योंकि यह वह मार्ग है जो परमेश्वर ने हमारे लिए अनंतकाल से खोलकर रखा है, और जिसे हज़ारों वर्षों के बाद हमारी पीढ़ी को सौंपा गया है। इस तरह हमने अपने पूर्वजों के मार्ग को अपनाया है, जो इस पर अंत तक नहीं चले। परमेश्वर ने हमें इसके अंतिम चरण तक चलने के लिए चुना है। और इसलिए, परमेश्वर ने विशेष रूप से हमारे लिए इस मार्ग को तैयार किया था, हम चाहे आशीषित हों या हम पर कोई विपत्ति आए, अन्य कोई इस मार्ग पर नहीं चल सकता। मैं इसमें अपनी अंतर्दृष्टि भी जोड़ दूँ : कहीं और भागने का या कोई दूसरा मार्ग तलाशने का प्रयास न करना, और ओहदे का लालच मत करना, या अपना राज्य स्थापित करने का प्रयास न करना—ये कोरी कल्पनाएँ हैं। हो सकता है कि मेरे वचनों के बारे में तुम्हारे कोई पूर्वनिर्धारित विचार हों, अगर ऐसा है तो मेरा सुझाव है कि तुम इतना भ्रमित होना बंद कर दो। इस पर और अधिक विचार करना तुम्हारे लिए बेहतर है; चालाक बनने की कोशिश न करो, अच्छाई और बुराई को लेकर उलझन में मत फँसो। परमेश्वर की योजना पूरी हो जाने के बाद तुम पछताओगे। मेरा कहना यह है कि जब परमेश्वर का राज्य आएगा, तो धरती के सभी राष्ट्र टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाएँगे। उस समय तुम देखोगे कि तुम्हारी अपनी योजनाएँ भी नष्ट हो गयी हैं, और जिन्हें ताड़ना दी गयी है, वे भी नष्ट हो जाएँगे, और इसमें परमेश्वर अपने स्वभाव को पूरी तरह से अभिव्यक्त करेगा। मेरा ख्याल है, चूँकि ये बातें मेरे सामने एकदम स्पष्ट हैं, इसलिए मुझे ये बातें तुम्हें बता देनी चाहिए, ताकि बाद में तुम मुझे दोष न दो। हमारा आज तक इस मार्ग पर चल पाना परमेश्वर द्वारा निर्धारित किया गया था, इसलिए अपने आपको न तो कोई विशेष व्यक्ति समझो, न ही बदकिस्मत इंसान—परमेश्वर के वर्तमान कार्य के बारे में कोई भी निश्चयात्मक कथन नहीं कह सकता है, कहीं ऐसा न हो कि तुम मिटा दिए जाओ। मैं परमेश्वर के कार्य से प्रबुद्ध हुआ हूँ : चाहे कुछ भी हो जाए, परमेश्वर लोगों के इस समूह को पूरा करेगा, उसका कार्य फिर कभी नहीं बदलेगा, और वह लोगों के इस समूह को मार्ग के अंत तक ले जाएगा, और धरती पर अपने कार्य को समाप्त करेगा। हम सबको इस बात को समझना चाहिए। अधिकतर लोग “आगे देखना” पसंद करते हैं, और उनकी भूख का कोई अंत नहीं होता। उनमें से कोई भी परमेश्वर की आज की अत्यावश्यक इच्छा को नहीं समझता, इसलिए वे बच निकलने की सोचते हैं। वे बेलगाम घोड़ों की तरह होते हैं जो केवल उजाड़ जंगल में घूमते रहना चाहते हैं; कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो कनान की नेक धरती पर इंसानी जीवन की राह की खोज करने के लिए बसना चाहते ते हैं। अगर दूध और शहद की बहती धरती पर आकर भी लोग खुश न हों, तो उन्हें और क्या चाहिए? सच कहा जाए तो, कनान की नेक धरती के परे केवल उजाड़ जंगल है। विश्राम के स्थान में प्रवेश करके भी, लोग अपना कर्तव्य नहीं निभा पाते; क्या वे लोग वेश्या नहीं हैं? अगर तुम यहाँ परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के अवसर को गँवा दोगे, तो तुम अपने बाकी बचे दिनों में पछताते रह जाओगे, तुम्हारा पश्चाताप अनंतकाल तक रहेगा। तुम मूसा की तरह होगे, जो कनान की धरती को देखता तो रहा, लेकिन उसका आनंद न ले सका, उसकी मुट्ठियाँ भिंची हुई, उसकी मौत पछतावे से भरी हुई—क्या यह तुम्हें निंदनीय नहीं लगता? क्या तुम इसे शर्मनाक नहीं मानते, जिसका कि लोग उपहास करें? क्या तुम लोगों द्वारा अपमानित होने के लिए तैयार हो? क्या तुम अपने लिए अच्छा नहीं करना चाहते? क्या तुम ऐसे सम्माननीय और सच्चे इंसान नहीं बनना चाहते जिसे परमेश्वर द्वारा पूर्ण किया जाए? क्या वाकई तुम्हारी कोई अभिलाषा नहीं है? तुम अन्य मार्ग नहीं अपनाना चाहते; क्या तुम वह मार्ग भी नहीं अपनाना चाहते जिसे परमेश्वर ने तुम्हारे लिए नियत किया है? क्या तुम स्वर्ग की इच्छा के विरुद्ध जाने का साहस कर रहे हो? तुम्हारा “कौशल” कितना भी बड़ा हो, क्या तुम सचमुच स्वर्ग का अपमान कर सकते हो? मेरा मानना है कि हमें अपने आपको बेहतर ढंग से जानने का प्रयास करना चाहिए। परमेश्वर की ओर से एक वचन स्वर्ग और धरती को बदल सकता है, तो परमेश्वर की नज़र में एक कमज़ोर तुच्छ इंसान की औकात ही क्या है?
अपने अनुभव में मैंने देखा है कि तुम परमेश्वर का जितना ज़्यादा विरोध करोगे, परमेश्वर उतना ही ज़्यादा अपना प्रतापी स्वभाव दिखाएगा, और वह ताड़ना उतनी ही अधिक कठोर होगी जो वह तुम्हें “देता” है; तुम जितना अधिक उसके आगे समर्पण करोगे, वह तुम्हें उतना ही अधिक प्रेम करेगा और तुम्हारी सुरक्षा करेगा। परमेश्वर का स्वभाव किसी दंड के उपकरण की तरह है : अगर तुम समर्पण करोगे तो तुम सही-सलामत रहोगे; जब तुम समर्पण नहीं करते हो—जब तुम हमेशा दिखावा करने का प्रयास करते हो, चालें चलते हो—तो परमेश्वर का स्वभाव तुरंत बदल जाता है। वह बादलों से घिरे दिन में सूर्य की तरह है, वह तुमसे छुप जाएगा और तुम्हें अपना कोप दिखाएगा। वैसा ही उसका स्वभाव भी है, जून महीने के मौसम की तरह है, जब मीलों तक आसमान साफ होता है और लहरें भी पानी की सतह पर तब तक तरंगित होती हैं, जब तक कि जल-प्रवाह अचानक तेज़ गति से बहकर तूफान का रूप नहीं ले लेता। क्या परमेश्वर के ऐसे स्वभाव के आगे लापरवाह होने की तुम्हारी हिम्मत है? तुम में से अधिकतर भाई-बहनों ने अपने अनुभवों में देखा है कि जब पवित्र आत्मा दिन के उजाले में कार्य करता है, तो तुम्हारे अंदर पूरी आस्था होती है—लेकिन फिर अचानक परमेश्वर का आत्मा तुम्हारा त्याग कर देता है और तुम इतने पीड़ित हो जाते हो कि तुम्हारी रातों की निंद उड़ जाती है, तुम उस दिशा को खोजते हो जिस ओर पवित्र आत्मा गायब हुआ है। तुम कुछ भी कर लो, लेकिन तुम नहीं ढूँढ़ नहीं सकते कि पवित्र आत्मा कहाँ गया—लेकिन अचानक वह तुम्हारे सामने फिर से प्रकट हो जाता है, तुम उसी तरह भावविभोर हो जाते हो, जिस तरह पतरस अचानक एक बार फिर प्रभु यीशु के दर्शन करके हो गया था, तुम इतने भावविभोर हो जाते हो कि रोने लगते हो। क्या तुम इतनी बार अनुभव करके भी यह बात वास्तव में भूल गए हो? प्रभु यीशु, जिसने देहधारण किया, जिसे सूली पर चढ़ाया गया, और फिर उसका पुनरुत्थान हुआ और वह स्वर्ग में चला गया, वह हमेशा थोड़े समय के लिए तुमसे छुपा रहता है, और थोड़े समय के लिए वह फिर तुम्हारे सामने प्रकट हो जाता है। वह तुम्हारी धार्मिकता के कारण तुम्हारे सामने स्वयं को प्रकट करता है और तुम्हारे पापों के कारण वह तुमसे नाराज़ होकर चला जाता है, तो तुम उससे और अधिक प्रार्थना क्यों नहीं करते? क्या तुम्हें पता नहीं था कि पिंतेकुस्त के बाद, प्रभु यीशु का धरती पर एक और कार्यभार था? तुम्हें केवल इतना तथ्य पता है कि प्रभु यीशु मसीह ने देहधारण किया, वह धरती पर आया और उसे सूली पर चढ़ाया गया। तुम्हें कभी इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि जिस यीशु में तुम्हारा पहले विश्वास था, उसने बहुत पहले ही अपना कार्य किसी और को सौंप दिया है और वह कार्य बहुत पहले ही पूरा हो चुका है, इसलिए प्रभु यीशु फिर से धरती पर देहधारण कर अपने कार्य के अन्य भाग को करने के लिए आया है। मैं यहाँ कुछ जोड़ना चाहूँगा—इस तथ्य के बावजूद कि तुम लोग फिलहाल इस धारा में हो, मैं इस बात को कहने का साहस कर रहा हूँ कि तुम लोगों में से कुछ ही लोग इस व्यक्ति को प्रभु यीशु मसीह द्वारा तुम लोगों के लिए भेजा गया व्यक्ति मानते हैं। तुम लोग केवल उसका आनंद लेना जानते हो; तुम लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते कि परमेश्वर का आत्मा एक बार फिर धरती पर आया है, और तुम लोग इस बात को भी नहीं मानते कि आज का परमेश्वर हज़ारों साल पहले का प्रभु यीशु ही है। इसलिए मैं कहता हूँ कि तुम सभी लोग आँखें बंद करके चल रहे हो—तुम बस वही स्वीकर कर लेते हो जहाँ-कहीं पहुँचते हो—तुम इस बारे में ज़रा भी गंभीर नहीं हो। इस तरह तुम लोग प्रभु यीशु के वचनों में तो विश्वास रखते हो, लेकिन जिसकी आज परमेश्वर गवाही देता है, उसे साफ-साफ नकार देते हो। क्या तुम बेवकूफ नहीं हो? आज का परमेश्वर तुम्हारी गलतियों की परवाह नहीं करता, वह तुम्हारी निंदा नहीं करता। तुम कहते हो कि तुम यीशु में विश्वास रखते हो, तो क्या तुम्हारा प्रभु यीशु मसीह तुम्हें छोड़ सकता है? क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर कोई ऐसा स्थान है जहाँ तुम अपनी भड़ास निकाल सकते हो और झूठ बोल सकते और धोखा दे सकते हो? जब तुम्हारा प्रभु यीशु मसीह एक बार फिर से स्वयं को तुम्हारे सामने प्रकट करेगा, तो वह तुम्हारे अब के व्यवहार के आधार पर यह निर्धारित करेगा कि क्या तुम धार्मिक हो या क्या तुम दुष्ट हो। अधिकतर लोग उनके बारे में धारणाएँ बना लेते हैं जिनका मैं “मेरे भाई-बहन” के रूप में ज़िक्र करता हूँ, और मानते हैं कि परमेश्वर के कार्य करने के साधन बदलेंगे। क्या ऐसे लोग मौत को बुलावा नहीं दे रहे हैं? क्या परमेश्वर स्वयं शैतान की परमेश्वर के रूप में गवाही दे सकता है? इसमें, क्या तुम परमेश्वर की निंदा नहीं कर रहे हो? क्या तुम ऐसा मानते हो कि कोई भी स्वयं परमेश्वर बन सकता है? अगर तुम सचमुच इस बात को जानते, तो तुम कोई धारणाएँ नहीं बनाते। बाइबल में यह अंश है : सारी चीज़ें उसी के लिए हैं और और सारी चीज़ें उसी से हैं। वह बहुत-से पुत्रों को महिमा में लाएगा और वह हमारा कप्तान है...। इस तरह हमें भाई कहने में उसे कोई शर्म नहीं है। तुम इन वचनों को आसानी से रटकर बोल सकते हो, लेकिन तुम्हें उनके वास्तविक मायने पता नहीं हैं। क्या तुम आँखें बंद करके परमेश्वर में विश्वास नहीं रख रहे हो?
मैं मानता हूँ कि हमारी पीढ़ी पिछली पीढ़ियों के अधूरे मार्ग पर चल पाने और कई हज़ार साल पहले के परमेश्वर के पुनर्प्रकटन को देख पाने के लिए धन्य है—एक ऐसे परमेश्वर को जो हमारे बीच है और हर चीज़ में परिपूर्ण है। तुम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि तुम इस मार्ग पर चलोगे—क्या तुम इसके काबिल हो? इस राह का मार्गदर्शन सीधे पवित्र आत्मा द्वारा किया जाता है, इसका मार्गदर्शन प्रभु यीशु मसीह के सात गुना तीव्र आत्मा द्वारा किया जाता है, और यह वह मार्ग है जिसे आज के परमेश्वर ने तुम्हारे लिए खोला है। तुम कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि हज़ारों साल पहले का यीशु एक बार फिर तुम्हारे सामने प्रकट होगा। क्या तुम्हें संतोष महसूस नहीं होता? परमेश्वर के रूबरू आने के योग्य कौन है? मैं अक्सर प्रार्थना करता हूँ कि हमारे समूह को परमेश्वर से अधिक आशीषें मिलें, हम परमेश्वर की स्वीकृति पाएँ और उसे प्राप्त हों, लेकिन ऐसे भी अनगिनत अवसर आए हैं जब मैंने हमारे लिए बहुत आँसू बहाए हैं, प्रार्थना की है कि परमेश्वर हमें प्रबुद्ध करे, ताकि हम अधिक प्रकाशन देख पाएँ। जब मैं ऐसे लोगों को देखता हूँ जो परमेश्वर के साथ लापरवाह ढंग से पेश आने का प्रयास करते हैं और कभी किसी चीज़ की आकांक्षा नहीं रखते, या फिर जो देह के प्रति सजग रहते हैं, या जो स्वयं को महत्वपूर्ण बनाने के लिए अपने हितों या प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष करते हैं, तो मैं अपने दिल में भयंकर पीड़ा कैसे न महसूस करूँ? लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं? क्या मेरे कार्य का सचमुच कोई प्रभाव नहीं हुआ? अगर तुम्हारे बच्चे विद्रोही हों या तुम्हारे प्रति संतानोचित न हों, अगर उनमें विवेक का अभाव हो, अगर वे केवल अपनी परवाह करें और तुम्हारी भावनाओं के बारे में कभी भी विचारशील न हों, और बड़े होकर तुम्हें घर से निकाल दें, तो उस समय तुम्हें कैसा महसूस होगा? उन्हें बड़ा करने में तुमने जो खून-पसीना बहाया, त्याग किया, क्या उन लम्हों को याद करके तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं आ जाएँगे? इस तरह मैंने अनेक बार परमेश्वर से प्रार्थना करके कहा है, “प्यारे परमेश्वर! केवल तू ही जानता है कि मैं तेरे काम के लिए भार वहन करता हूँ या नहीं। जहाँ-कहीं मेरे काम तेरी इच्छा के अनुरूप नहीं होते, वहाँ तू मुझे अनुशासित करता है, पूर्ण करता है और मुझे जागरुक करता है। मेरी तुझसे बस एक ही प्रार्थना है कि तू इन लोगों को और अधिक प्रेरित कर ताकि तू जल्दी ही महिमा पाए और वे लोग तुझे प्राप्त हों, ताकि तेरा कार्य तेरी इच्छा को पूरा करे, और तेरी योजना शीघ्र ही पूरी हो।” परमेश्वर ताड़ना के ज़रिए लोगों पर विजय प्राप्त नहीं करना चाहता, वह हमेशा लोगों की नाक में नकेल डालकर उनका मार्गदर्शन नहीं करना चाहता। वह चाहता है कि लोग उसके वचनों के प्रति समर्पण करें और अनुशासित तरीके से काम करें, और इसके ज़रिए उसकी इच्छा को संतुष्ट करें। लेकिन लोगों में कोई शर्म नहीं है और वे लगातार उसके विरुद्ध विद्रोह करते रहते हैं। मेरा मानना है कि हमारे लिए सबसे अच्छा यही है कि हम उसे संतुष्ट करने के लिए सबसे आसान तरीका ढूँढें, यानी उसकी सारी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करें। अगर तुम वाकई इसे प्राप्त कर सको, तो तुम्हें पूर्ण बनाया जाएगा। क्या यह आसान और आनंददायक बात नहीं है? उस मार्ग पर चलो जिस पर तुम्हें चलना चाहिए; दूसरों की बातों पर ध्यान मत दो, और बहुत अधिक मत सोचो। क्या तुम्हारा भविष्य और तुम्हारी नियति तुम्हारे अपने हाथों में है? तुम हमेशा बच निकलने का प्रयास करते हो, सांसारिक मार्ग अपनाना चाहते हो—लेकिन तुम निकल क्यों नहीं पाते? तुम बरसों से चौराहे पर आकर डगमगा क्यों जाते हो और एक बार फिर उसी मार्ग को चुन लेते हो? बरसों तक भटकने के बाद, न चाहते हुए भी तुम इसी घर में क्यों लौट आए? क्या यह तुम पर निर्भर है? जो इस प्रवाह में हैं उनके लिए, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास न हो, तो यह सुनो : अगर तुम छोड़ने की योजना बना रहे हो, तो देखो क्या परमेश्वर तुम्हें छोड़ने देता है, देखो कि पवित्र आत्मा तुम्हें किस तरह प्रेरित करता है—इसे तुम स्वयं अनुभव करो। साफ कहूँ तो, अगर तुम पर कोई विपत्ति भी आए, तो भी तुम्हें उसे इसी प्रवाह में झेल लेना चाहिए, और अगर कोई कष्ट है, तो तुम्हें उसे आज यहीं सह लेना चाहिए; तुम कहीं और नहीं जा सकते। क्या यह बात तुम्हें स्पष्ट हो गयी? तुम कहाँ जाओगे? यह परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञा है। क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर द्वारा इस समूह के लोगों का चयन कोई मायने नहीं रखता? परमेश्वर आज अपने काम में, आसानी से नाराज़ नहीं होता, लेकिन अगर लोग उसके काम में व्यवधान डालने की कोशिश करें, तो उसका चेहरा तुरंत बदल जाता है, चमकदार से अंधकारमय हो जाता है। तो तुम्हें मेरी सलाह है कि तुम शांत होकर परमेश्वर को अपने लिए आयोजन करने दो और उसे तुम्हें पूर्ण करने दो। ऐसा करने वाले लोग ही कुशाग्र होते हैं।