514 सत्य की खोज का मार्ग

1

जानो कि सत्य का कौन सा हिस्सा सम्बंधित है उनसे जिनका है,

सामना तुमने किया।

यदि तुम ढूंढों ईश्वर की इच्छा सत्य को जाने बग़ैर,

तो ये व्यर्थ है, न प्राप्त होगा कुछ भी।

क्या सच को समझने में तुम्हारी अवस्था भूमिका निभाती है?

क्या तुम सामनाओं में सोचते हो कौन सा सच यथार्थ है?


2

तुम्हारे सभी सामनाओं में, ढूंढों सच के उन हिस्सों को,

ईश्वर के वचन में जो इसके समान है।

और फिर उस राह की खोज करो तुम्हारे लिए हो जो सही,

करेगा ये मदद तुम्हारी, मदद तुम्हारी जानने को ईश्वर की इच्छा।

क्या सच को समझने में तुम्हारी अवस्था भूमिका निभाती है?

क्या तुम सामनाओं में सोचते हो कौन सा सच यथार्थ है?

तो फिर ढूंढों इन सच्चाइयों को तुम पाओगे

क्या है ईश्वर की इच्छा तुम्हारे लिए।


3

सत्य की खोज और उसका अभ्यास,

सूत्र और सिद्धांत से बस जुड़े रहना जैसा बिलकुल भी नहीं है।

सच कोई समीकरण या कानून नहीं। ये जीवन है और ये जीवित है!

ये एक नियम है जिसे करना चाहिए पालन,

जीवन में जिसकी तुमको ज़रुरत है।

इस विचार का पालन करो अनुभव के माध्यम से।

क्या सच को समझने में तुम्हारी अवस्था भूमिका निभाती है?

क्या तुम सामनाओं में सोचते हो कौन सा सच यथार्थ है?

क्या सच को समझने में तुम्हारी अवस्था भूमिका निभाती है?

क्या तुम सामनाओं में सोचते हो कौन सा सच यथार्थ है?

तो फिर ढूंढों इन सच्चाइयों को तुम पाओगे क्या

है ईश्वर की इच्छा तुम्हारे लिए।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित

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