338 परमेश्वर के प्रति तुम्हारी वफ़ादारी की अभिव्यक्ति कहाँ है?
1
तुमने बरसों किया है ईश्वर का अनुसरण मगर वफ़ा नहीं थोड़ी भी।
उन्हीं लोगों, चीज़ों के इर्द-गिर्द घूमते रहे हो जिनसे तुम लोग ख़ुश होते।
उन्हें अपने दिल के करीब रखते हो, उन्हें कभी छोड़ा नहीं तुमने।
जब किसी प्रिय चीज़ को लेकर बेचैन या जुनूनी हो जाते हो,
ऐसा तब होता जब ईश्वर का अनुसरण करते हो,
या उसके वचन सुनते हो तुम लोग।
इसलिए ईश्वर कहे जो वफ़ा मैं चाहूँ तुमसे उसे तुम अपने "पालतुओं" को देते।
तुम ईश्वर के लिए एक-दो चीज़ें ही त्यागते हो पर इतना करना काफ़ी नहीं।
इससे उसके लिए तुम्हारी वफ़ा ज़ाहिर नहीं होती।
जिन चीज़ों के लिए तुममें जोश है उनके लिए
ईश्वर और उसके वचनों को भुला देते हो।
उन्हें अंतिम स्थान ही देना विकल्प है तुम्हारे पास।
अंतिम स्थान को भी किसी अनजान चीज़ के प्रति
वफ़ादार बनकर, बचा कर रखते हैं कुछ लोग।
उनके दिल में ईश्वर का कोई स्थान नहीं होता।
2
जिन कामों में तुम्हारा जुनून है उनमें लिप्त हो जाते हो तुम लोग।
कुछ वफ़ादार हैं बेटे-बेटियों के प्रति,
कुछ पति-पत्नी, काम, धन-दौलत के प्रति
या स्त्री, बड़े लोगों या रुतबे के प्रति।
जिन चीज़ों के प्रति वफ़ादार हो,
उनमें थकते या नाराज़ नहीं होते कभी।
बल्कि बेचैन हो जाते हो कि तुम्हें ये और मिले,
इसकी बेहतर किस्म मिले और कभी हार नहीं मानते हो।
इसलिए ईश्वर कहे जो वफ़ा मैं चाहूँ तुमसे उसे तुम अपने "पालतुओं" को देते।
तुम ईश्वर के लिए एक-दो चीज़ें ही त्यागते हो पर इतना करना काफ़ी नहीं।
इससे उसके लिए तुम्हारी वफ़ा ज़ाहिर नहीं होती।
जिन चीज़ों के लिए तुममें जोश है उनके लिए
ईश्वर और उसके वचनों को भुला देते हो।
उन्हें अंतिम स्थान ही देना विकल्प है तुम्हारे पास।
अंतिम स्थान को भी किसी अनजान चीज़ के प्रति
वफ़ादार बनकर, बचा कर रखते हैं कुछ लोग।
उनके दिल में ईश्वर का कोई स्थान नहीं होता।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो? से रूपांतरित