231 सत्य का अनुसरण किए बिना विफलता निश्चित है

1 हालांकि मैंने बैठकों में भाग लिया और परमेश्वर के वचनों को पढ़ा, लेकिन मैंने सत्य का अभ्यास करने पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब मैं कुछ कर्तव्य निभा पाया, तो मुझे लगा कि मेरे पास सत्य की वास्तविकता है। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता था, लेकिन परमेश्वर के साथ मेरा कोई वास्तविक संवाद नहीं था। अपने कर्तव्यों में कुछ परिणाम प्राप्त करके, मुझे लगता था कि मैंने कुछ योग्यता हासिल कर ली है। मैं अपने आपसे इतना प्रसन्न था कि मुझे लगता था कि परमेश्वर मुझे निश्चित रूप से कोई इनाम देगा। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव करके, मैं एकाएक जाग गया। मैंने परमेश्वर को जाने बिना बरसों उसमें विश्वास रखा, फिर भी मैंने उसके साथ सौदेबाज़ी की। अंत में मैंने देखा कि सत्य का अनुसरण किए बगैर, मेरी भ्रष्टता के शुद्ध होने का कोई तरीका नहीं था।

2 परमेश्वर इंसान को शुद्ध करने और बचाने के लिए ही सभी सत्य व्यक्त करता है, लेकिन मैंने उसके नेक इरादे को जरा भी नहीं समझा। मैंने अपना कर्तव्य निभाने के अवसर का उपयोग रुतबे और प्रतिष्ठा के पीछे भागने के लिए किया। काम हो या उपदेश, मैं अक्सर व्यर्थ में अभिमान करता था और दिखावा करता था। मैं आध्यात्मिक सिद्धांत पर उपदेश देने की अपनी योग्यता को सत्य की वास्तविकता के रूप में देखता था। काम करने के लिए मुझे बस अपने उत्साह पर भरोसा था, लेकिन मैं सत्य का अभ्यास नहीं करता था, मैं अपने ही तरीके से काम करता था। मैं फरीसियों की तरह पाखंडी था, लेकिन मुझे लगता था कि मैं आध्यात्मिक हूँ। अगर परमेश्वर का न्याय न होता, तो पता नहीं मैं किस स्तर तक गर्त में धंस गया होता।

3 परमेश्वर के बार-बार के न्याय और परीक्षणों के बाद, अंतत: मुझे यह बात में समझ में आ गई है कि बिना सत्य के मात्र उत्साहित होकर काम करने का अर्थ है सारी मेहनत व्यर्थ करना। मैं वाणीऔर कर्म में कुटिलता से भरा था और मैं एक ईमानदार व्यक्ति नहीं था। मेरा व्यवहार कितना भी अच्छा क्यों न रहा हो, यह स्वभाव में आए बदलाव के समान नहीं है। परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और आज्ञाकारिता के बगैर, मैं अभी भी उसका प्रतिरोध करूँगा। परमेश्वर का राज्य पवित्र है—यह भ्रष्ट लोगों को प्रवेश करने की अनुमति कैसे दे सकता है? पाखंड परमेश्वर का विरोध करने के सच को नहीं छिपा सकता। मैं परमेश्वर कीउपस्थिति में रहने लायक नहीं हूँ। मैं परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करने के लिए सत्य और जीवन का अनुसरण करनेके अपने संकल्प को और दृढ़ करता हूँ।

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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