कार्य और प्रवेश (8)

मैंने कई बार कहा है कि परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा को परिवर्तित करने, उसकी रूह को बदलने के लिए इस प्रकार किया जाता है कि बहुत बड़ा आघात सह चुके उसके दिल को बेहतर बनाया जा सके और इस प्रकार उसकी उस आत्मा को बचाया जा सके जिसे पाप द्वारा अत्यंत गंभीर रूप से हानि पहुंचाई गई है; इसका उद्देश्य लोगों की आत्मा को जगाना है, उनके उदासीन दिलों को पिघलाना है और उनका कायाकल्प होने देना है। यही परमेश्वर की सबसे बड़ी इच्छा है। मनुष्य का जीवन और उसके अनुभव कितने ऊँचे या गहरे हैं, इसकी बात करना छोड़ दो; जब लोगों के हृदय जाग्रत कर दिए जाएँगे, जब उन्हें उनके सपनों से जगा दिया जाएगा और वे बड़े लाल अजगर द्वारा पहुँचाई गई हानि से पूरी तरह से अवगत हो जाएँगे, तो परमेश्वर की सेवकाई का काम पूरा हो जाएगा। परमेश्वर का कार्य पूरा होने का दिन वह दिन भी है जब मनुष्य आधिकारिक तौर पर परमेश्वर पर विश्वास की सही राह पर चलना शुरू करेगा। इस समय, परमेश्वर की सेवकाई समाप्त हो चुकी होगी : देहधारी परमेश्वर का कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका होगा, और मनुष्य आधिकारिक तौर पर उस कर्तव्य को निभाना शुरू कर देगा, जो उसे निभाना चाहिए—वह अपनी सेवकाई का कार्य करेगा। ये परमेश्वर के कार्य के कदम हैं। इस प्रकार, तुम लोगों को इन बातों की जानकारी की नींव पर अपने प्रवेश का मार्ग खोजना चाहिए। यह सब तुम लोगों को समझना चाहिए। मनुष्य के प्रवेश में तभी सुधार आएगा, जब परिवर्तन उसके दिल की गहराई में होंगे, क्योंकि परमेश्वर का कार्य राक्षसों के एकत्र होने के इस स्थान से मनुष्य का पूर्ण उद्धार करना है—जिसे छुड़ा लिया गया है, जो अभी भी अंधकार की शक्तियों के अधीन रहता है, और जो कभी जागा नहीं है; ऐसा इसलिए ताकि मनुष्य हज़ारों साल के पापों से मुक्त होकर परमेश्वर का चहेता बन सके, बड़े लाल अजगर को मारकर परमेश्वर का राज्य स्थापित करे और जल्दी ही परमेश्वर के दिल को आराम पहुँचाए; ऐसा इसलिये है ताकि तुम अपने सीने में भरी घृणा को बिना अड़चन के निकाल सको, उन फफूंदग्रस्त रोगाणुओं का उन्मूलन कर सको, तुम लोग इस जीवन को छोड़ सको जो एक बैल या घोड़े के जीवन से कुछ अलग नहीं है, अब दास बनकर न रहो, बड़े लाल अजगर द्वारा आसानी से कुचले न जाओ या उसके द्वारा तुम्हें आज्ञा न दी जाए; तुम लोग अब इस असफल राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहोगे, तुम अब घृणित बड़े लाल अजगर के नहीं रहोगे, और तुम अब उसके दास नहीं रहोगे। परमेश्वर द्वारा निश्चित रूप से राक्षसों के घरौंदों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँगे, तुम लोग परमेश्वर के साथ खड़े होंगे—तुम लोग परमेश्वर के हो, दासों के इस साम्राज्य के नहीं हो। परमेश्वर लंबे समय से इस अंधेरे समाज से अत्यधिक घृणा करता आया है। वह इस दुष्ट, घिनौने बूढ़े सर्प पर अपने पैर रखने के लिए अपने दांत पीसता है, ताकि वह फिर से कभी उठ न पाए और फिर कभी मनुष्य के साथ दुर्व्यवहार न कर पाए; वह उसके अतीत के दुष्कर्मों को क्षमा नहीं करेगा, वह उसके द्वारा मनुष्य को दिए गए धोखे को बर्दाश्त नहीं करेगा और वह विभिन्न युगों में उसके द्वारा किए गए हर पाप का हिसाब चुकता करेगा। परमेश्वर समस्त बुराइयों के सरगना[1] को जरा भी नहीं छोड़ेगा, वह इसे पूरी तरह से इसे नष्ट कर देगा।

हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए,[2] क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी[3] है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हजारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीकी से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्कट इच्छा को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! किसने परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया है? किसने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित किया है या रक्त बहाया है? पीढ़ी-दर-पीढ़ी, माता-पिता से लेकर बच्चों तक, गुलाम बनाए गए मनुष्य ने परमेश्वर को बड़ी बेरुखी से गुलाम बना लिया है—ऐसा कैसे हो सकता है कि यह रोष न भड़काए? दिल में हजारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, हजारों साल का पाप दिल पर अंकित है—इससे कैसे न घृणा पैदा होगी? परमेश्वर का बदला लो, उसके शत्रु को पूरी तरह से समाप्त कर दो, उसे अब और बेकाबू न दौड़ने दो, और उसे अत्याचारी के रूप में शासन मत करने दो! यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दुष्ट के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट बूढ़े शैतान से विद्रोह करने दे। परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहाँ है? लोगों की स्वागत की भावना कहाँ है? परमेश्वर में ऐसी तड़प क्यों पैदा की जाए? परमेवर को बार-बार पुकारने पर मजबूर क्यों किया जाए? परमेश्वर को अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करने पर मजबूर क्यों किया जाए? इस अंधकारपूर्ण समाज में इसके घटिया रक्षक कुत्ते परमेश्वर को उसकी बनायी दुनिया में स्वतंत्रता से आने-जाने क्यों नहीं देते? दुख-दर्द में रहने वाला इंसान यह सब क्यों नहीं समझता? तुम लोगों के लिए परमेश्वर ने बहुत यातना सही है, और अत्यंत पीड़ा के साथ अपना प्यारा पुत्र, अपना देह और रक्त तुम लोगों को सौंपा है—तो फिर तुम लोग अभी भी उससे नजरें क्यों फेर लेते हो? हर किसी के सामने तुम लोग परमेश्वर के आगमन को अस्वीकार कर देते हो, और परमेश्वर की दोस्ती को नकार देते हो। तुम लोग इतने निर्लज्ज क्यों हो? क्या तुम लोग ऐसे अंधकारपूर्ण समाज में अन्याय सहन करना चाहते हो? तुम अपने आपको हजारों साल की शत्रुता से भरने के बजाय शैतानों के सरदार के “मल” से भर लेते हो?

परमेश्वर के कार्य की बाधाएं कितनी बड़ी हैं? क्या कभी किसी ने जाना है? गहरे जमे अंधविश्वासों द्वारा बंदी बनाए लोगों में से कौन परमेश्वर के सच्चे चेहरे को जानने में सक्षम है? इतने उथले और बेतुके पिछड़े सांस्कृतिक ज्ञान के साथ वे कैसे परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों को पूरी तरह से समझ सकते हैं? यहां तक कि आमने-सामने बोलने और अच्छी तरह से बोलकर समझाने पर भी वे कैसे समझ सकते हैं? कभी-कभी ऐसा लगता है, मानो परमेश्वर के वचन बहरे कानों में पड़े हों : लोगों की थोड़ी-सी भी प्रतिक्रिया नहीं होती, वे बस अपना सिर हिलाते हैं और समझते कुछ नहीं। यह चिंताजनक कैसे न हो? इस “दूरस्थ,[4] प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास और सांस्कृतिक ज्ञान” ने लोगों के ऐसे नाकाबिल समूह को पोषित किया है। यह प्राचीन संस्कृति—बहुमूल्य विरासत—कबाड़ का ढेर है! यह बहुत पहले ही एक चिरस्थायी शर्मिंदगी बन गई, और उल्लेख करने लायक भी नहीं है! इसने लोगों को परमेश्वर का विरोध करने की चालें और तकनीकें सिखा दी हैं, और राष्ट्रीय शिक्षा के “सुव्यवस्थित, सौम्य मार्गदर्शन”[5] ने लोगों को परमेश्वर के प्रति और भी अधिक विद्रोही बना दिया है। परमेश्वर के कार्य का हर हिस्सा अत्यंत कठिन है, और पृथ्वी पर अपने कार्य का हर कदम परमेश्वर के लिए परेशान करने वाला रहा है। पृथ्वी पर उसका कार्य कितना कठिन है! पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य के कदम बहुत कष्टसाध्य हैं : मनुष्य की कमजोरियों, कमियों, बचपने, अज्ञानता और मनुष्य की हर चीज़ के लिए परमेश्वर सूक्ष्म योजनाएँ बनाता है और ध्यानपूर्वक विचार करता है। मनुष्य एक कागज़ी बाघ की तरह है, जिसे कोई छेड़ने या भड़काने की हिम्मत नहीं करता; हल्के-से स्पर्श से ही वह पलटकर काट लेता है, या फिर नीचे गिर जाता है और अपना रास्ता भूल जाता है, और ऐसा लगता है, मानो एकाग्रता की थोड़ी-सी कमी होने पर वह पुनः वापस चला जाता है, या फिर परमेश्वर की उपेक्षा करता है, या अपने शरीर की अशुद्ध चीज़ों में लिप्त होने के लिए अपने सूअरों और कुत्तों जैसे माता-पिताओं की ओर भागता है। यह कितनी बड़ी बाधा है! व्यावहारिक रूप से परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक कदम पर उसे प्रलोभन दिया जाता है, और लगभग हर कदम पर परमेश्वर को बड़े खतरे का जोखिम होता है। उसके वचन निष्कपट, ईमानदार और द्वेषरहित हैं, फिर भी कौन उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार है? कौन पूरी तरह से आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार है? इससे परमेश्वर का दिल टूट जाता है। वह मनुष्य के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करता है, वह मनुष्य के जीवन के लिए चिंता से घिरा रहता है, और वह मनुष्य की कमज़ोरी के साथ सहानुभूति रखता है। उसने अपने द्वारा बोले गए सभी वचनों के लिए अपने कार्य के प्रत्येक चरण में कई उतार-चढ़ावों का सामना किया है; वह हमेशा आगे कुआं और पीछे खाई वाली परिस्थिति में फंसा रहता है, और दिन-रात बार-बार मनुष्य की कमज़ोरी, विद्रोहीपन, बचकानेपन, नाजुकपन ... के बारे में सोचता है। इसे किसने कभी भी जाना है? वह किस पर विश्वास कर सकता है? कौन समझ पाएगा? वह हमेशा मनुष्य के पापों, हिम्मत की कमी और दुर्बलता से घृणा करता है, और वह हमेशा मनुष्य की भेद्यता के बारे में चिंता करता है, और वह मनुष्य के आगे के मार्ग के बारे में विचार करता है। हमेशा, जब वह मनुष्य के वचनों और कर्मों को देखता है, तो वह दया और क्रोध से भर जाता है, और हमेशा इन चीज़ों को देखने से उसके दिल में दर्द पैदा होता है। निर्दोष, आखिरकार, सुन्न हो चुके हैं; परमेश्वर क्यों हमेशा उनके लिए चीज़ों को मुश्किल करे? कमज़ोर मनुष्य में दृढ़ता की बहुत कमी होती है; परमेश्वर क्यों हमेशा उसके लिए अदम्य क्रोध रखे? कमज़ोर और निर्बल मनुष्य में थोड़ा-सा भी जीवट नहीं है; परमेश्वर क्यों हमेशा उसके विद्रोहीपन के लिए उसे झिड़के? स्वर्ग में परमेश्वर की धमकियों का कौन सामना कर सकता है? आखिरकार, मनुष्य नाज़ुक है, और हताशा की स्थितियों में है, परमेश्वर ने अपना क्रोध अपने दिल की गहराई में धकेल दिया है, ताकि मनुष्य धीरे-धीरे आत्म-चिंतन कर सके। फिर भी मनुष्य, जो गंभीर संकट में है, परमेश्वर की इच्छा की थोड़ी-सी भी कद्र नहीं करता; मनुष्य को शैतानों के बूढ़े सम्राट द्वारा अपने पैरों तले कुचल दिया गया है, फिर भी वह पूरी तरह से अनजान है, वह हमेशा स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध रखता है, या फिर वह न तो उसके प्रति उत्साहित है, न उदासीन। परमेश्वर ने कई वचन कहे हैं, फिर भी किसने उन्हें कभी भी गंभीरता से लिया है? मनुष्य परमेश्वर के वचनों को नहीं समझता, फिर भी वह बेफ़िक्र और उत्कंठा-रहित रहता है, और उसने वास्तव में कभी भी बूढ़े शैतान का सार नहीं जाना है। लोग रसातल में, नरक में रहते हैं, लेकिन मानते हैं कि वे समुद्र-तल के महल में रहते हैं; उन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा सताया जाता है, पर वे स्वयं को देश के “कृपापात्र”[6] समझते हैं; शैतान द्वारा उनका उपहास किया जाता है, पर उन्हें लगता है कि वे देह के उत्कृष्ट कला-कौशल का आनंद ले रहे हैं। कैसा मलिन, नीच अभागों का समूह है यह! मनुष्य का दुर्भाग्य से पाला पड़ चुका है, लेकिन उसे इसका पता नहीं है, और इस अंधेरे समाज में वह एक के बाद एक दुर्घटनाओं का सामना करता है,[7] फिर भी वह इसके प्रति जागृत नहीं हुआ है। कब वह आत्म-दया और दासता के स्वभाव से छुटकारा पाएगा? क्यों वह परमेश्वर के दिल के प्रति इतना लापरवाह है? क्या वह चुपचाप इस दमन और कठिनाई को माफ़ कर देता है? क्या वह उस दिन की कामना नहीं करता, जब वह अंधेरे को प्रकाश में बदल सके? क्या वह एक बार फिर न्याय और सत्य को लेकर हो रहीं शिकायतों को दूर नहीं करना चाहता? क्या वह लोगों द्वारा सत्य का त्याग किए जाने और तथ्यों को तोड़े-मरोड़े जाने को देखते रहने और कुछ न करने का इच्छुक है? क्या वह इस दुर्व्यवहार को सहते रहने में खुश है? क्या वह गुलाम होने के लिए तैयार है? क्या वह इस असफल राज्य के गुलामों के साथ परमेश्वर के हाथों नष्ट होने को तैयार है? कहां है तुम्हारा संकल्प? कहां है तुम्हारी महत्वाकांक्षा? कहां है तुम्हारी गरिमा? कहां है तुम्हारी सत्यनिष्ठा? कहां है तुम्हारी स्वतंत्रता? क्या तुम शैतानों के सम्राट, बड़े लाल अजगर को अपना पूरा जीवन अर्पित करना[8] चाहते हो? क्या तुम ख़ुश हो कि वह तुम्हें यातना देते-देते मौत के घाट उतार दे? गहराई का चेहरा अराजक और काला है, जबकि सामान्य लोग ऐसे दुखों का सामना करते हुए स्वर्ग की ओर देखकर रोते हैं और पृथ्वी से शिकायत करते हैं। मनुष्य कब अपने सिर को ऊँचा रख पाएगा? मनुष्य दुर्बल और क्षीण है, वह इस क्रूर और अत्याचारी शैतान से कैसे मुकाबला कर सकता है? वह क्यों नहीं जितनी जल्दी हो सके, परमेश्वर को अपना जीवन सौंप देता? वह क्यों अभी भी डगमगाता है? वह कब परमेश्वर का कार्य समाप्त कर सकता है? इस प्रकार निरुद्देश्य ढंग से तंग और प्रताड़ित किए जाते हुए उसका पूरा जीवन अंततः व्यर्थ ही व्यतीत हो जाएगा; उसे आने और विदा होने की इतनी जल्दी क्यों है? वह परमेश्वर को देने के लिए कोई अनमोल चीज़ क्यों नहीं रखता? क्या वह घृणा की सहस्राब्दियों को भूल गया है?

शायद, बहुत-से लोग परमेश्वर के कुछ वचनों से घृणा करते हैं, या शायद वे न तो उनसे घृणा करते हैं और न ही उनमें कोई रुचि रखते हैं। चाहे कुछ भी हो, तथ्य बेतुके तर्क नहीं बन सकते; कोई ऐसे वचन नहीं बोल सकता, जो तथ्यों का उल्लंघन करते हों। इस बार परमेश्वर इस तरह का कार्य करने के लिए देहधारी बना है, उस कार्य को पूरा करने के लिए जो उसने अभी पूरा नहीं किया है, इस युग को समाप्ति की ओर ले जाने के लिए, इस युग का न्याय करने के लिए, अत्यंत पापियों को दुख के सागर की दुनिया से बचाने और उन्हें पूरी तरह से बदलने के लिए। यहूदियों ने परमेश्वर को क्रूस पर चढ़ा दिया, और इस प्रकार यहूदिया में परमेश्वर की यात्रा समाप्त कर दी। उसके कुछ ही समय बाद, परमेश्वर एक बार फिर व्यक्तिगत रूप से मनुष्य के बीच आया, चुपचाप बड़े लाल अजगर के देश में। वास्तव में, यहूदी राज्य के धार्मिक समुदाय ने लंबे समय से अपनी दीवारों पर यीशु की छवि लटका रखी थी, और अपने मुंह से लोग चिल्लाए “प्रभु यीशु मसीह।” उन्हें नहीं पता था कि यीशु ने मनुष्य के बीच वापस आकर अपने कार्य के दूसरे चरण को, जो कि अभी तक पूरा नहीं हुआ था, पूरा करने के अपने पिता के आदेश को बहुत समय पहले ही स्वीकार कर लिया था। परिणामस्वरूप, जब लोगों ने उसे देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए : वह एक ऐसी दुनिया में पैदा हुआ था जिसमें कई युग गुज़र चुके थे, और वह मनुष्य के सामने एक बहुत ही साधारण व्यक्ति का रूप धारण करके प्रकट हुआ। वास्तव में, युगों के गुज़रने के साथ उसके कपड़े और पूरा रूप बदल गया है, मानो उसका पुनर्जन्म हुआ हो। लोग कैसे जान सकते थे कि यह वही प्रभु यीशु मसीह है, जो क्रूस से नीचे आया और पुनर्जीवित हुआ था? उस पर चोट का मामूली-सा भी निशान नहीं है, बिल्कुल वैसे ही जैसे यीशु यहोवा के समान नहीं दिखता था। आज के यीशु पर लंबे समय से गुज़रे हुए समय का कोई असर नहीं है। लोग उसे कैसे जान सकते थे? कपटी “थॉमस” हमेशा संदेह करता है कि वह पुनर्जीवित यीशु है, और हमेशा अपने मस्तिष्क को आराम देने से पहले यीशु के हाथों पर कीलों के निशान देखना चाहता है; बिना उन्हें देखे वह हमेशा संदेह के बादल पर सवार रहता है, और अपने पैर ठोस ज़मीन पर रखने और यीशु का अनुसरण करने में असमर्थ रहता है। बेचारा “थॉमस”—वह कैसे जान सकता है कि यीशु पिता परमेश्वर द्वारा अधिकृत कार्य करने के लिए आया है? यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने के निशान रखने की ज़रूरत क्यों है? क्या क्रूस पर चढ़ाए जाने के निशान यीशु के निशान हैं? वह अपने पिता की इच्छा के लिए कार्य करने आया है; वह हज़ारों साल पहले के यहूदी के पहनावे और रूप में क्यों आएगा? क्या देह में परमेश्वर द्वारा ग्रहण किया गया रूप उसके कार्य में बाधा डाल सकता है? यह किसका सिद्धांत है? जब परमेश्वर कार्य करता है, तो वह मनुष्य की कल्पना के अनुसार क्यों होना चाहिए? परमेश्वर अपने कार्य में केवल इस चीज़ पर ध्यान केंद्रित करता है कि उसका प्रभाव होना चाहिए। वह व्यवस्था का पालन नहीं करता, और उसके कार्य के कोई नियम नहीं हैं—तो मनुष्य कैसे उसे समझ सकता है? मनुष्य कैसे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा करके परमेश्वर के कार्य में पूरी तरह से प्रवेश कर सकता है? इसलिए बेहतर होगा कि तुम लोग ठीक से समझ जाओ : छोटी-छोटी बातों पर हंगामा मत करो, और उन बातों का बतंगड़ मत बनाओ जो तुम्हारे लिए नई हैं—यह तुम्हें अपना मज़ाक बनवाने और लोगों को तुम लोगों पर हँसने से रोकेगा। तुमने इतने वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास किया है और फिर भी तुम परमेश्वर को नहीं जानते। आखिरकार, तुम ताड़ना में डूब जाते हो, तुम्हें, जो कि “श्रेणी में सबसे ऊपर”[9] रखे गए हो, ताड़ना पाने वालों की श्रेणियों में पहुँचा दिया जाता है। बेहतर होता कि तुम अपनी छोटी-छोटी चालें दिखाने के लिए चालाक साधनों का उपयोग नहीं करते; क्या तुम्हारी अदूरदृष्टि वास्तव में परमेश्वर का अनुभव कर सकती है, जो अनंत काल से अनंत काल तक देखता है? क्या तुम्हारे सतही अनुभव तुम्हें परमेश्वर के इरादे समझने दे सकते हैं? अहंकारी न बनो। आखिरकार, परमेश्वर इस दुनिया का नहीं है—तो उसका कार्य तुम्हारी अपेक्षाओं के अनुसार कैसे हो सकता है?

फुटनोट :

1. “समस्त बुराइयों के सरगना” बूढ़े शैतान को संदर्भित करता है। यह वाक्यांश चरम नापसंदगी व्यक्त करता है।

2. “निराधार आरोप लगाते हुए” उन तरीकों को संदर्भित करता है, जिनके द्वारा शैतान लोगों को नुकसान पहुँचाता है।

3. “जबर्दस्त पहरेदारी” दर्शाता है कि वे तरीके, जिनके द्वारा शैतान लोगों को यातना पहुँचाता है, बहुत ही शातिर होते हैं, और लोगों को इतना नियंत्रित करते हैं कि उन्हें हिलने-डुलने की भी जगह नहीं मिलती।

4. “दूरस्थ” का प्रयोग उपहास में किया गया है।

5. “सुव्यवस्थित, सौम्य मार्गदर्शन” का प्रयोग उपहास में किया गया है।

6. “कृपापात्र” शब्द का प्रयोग उन लोगों का उपहास करने के लिए किया गया है, जो काठ जैसे होते हैं और जिन्हें स्वयं के बारे में कोई जानकारी नहीं होती।

7. “एक के बाद एक दुर्घटनाओं का सामना करता है” इस ओर इशारा करता है कि लोग बड़े लाल अजगर के देश में पैदा हुए थे, और वे अपना सिर ऊँचा रखने में असमर्थ हैं।

8. “पूरा जीवन अर्पित करना” अपमानजनक अर्थ में कहा गया है।

9. “श्रेणी में सबसे ऊपर” का प्रयोग उन लोगों का उपहास करने के लिए किया गया है, जो जोर-शोर से परमेश्वर की खोज करते हैं।

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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