950 गरिमामय है सार परमेश्वर का
1
परमेश्वर के सार का है एक हिस्सा प्यार, उसकी दया मिलती है सबको,
भूल जाते हैं लोग मगर, उसका एक हिस्सा गरिमा भी है।
परमेश्वर में प्यार है, मगर ये मायने नहीं इसके
कि ठेस पहुँचाई जा सकती है उसे,
और महसूस न हो उसे या प्रतिक्रिया न हो उसकी।
परमेश्वर को परिभाषित करने की ख़ातिर,
इंसानी कल्पनाओं का सहारा न ले,
न थोप अपनी ख़्वाहिश उस पर,
और जिस तरह पेश आता है वो इंसानों से, इंसानों से,
उसमें इंसानी तौर-तरीके अपनाए वो, इसकी ख़ातिर मजबूर न कर उसको।
2
उसकी दया के ये मायने नहीं कि वो जैसे पेश आता है अपने लोगों से,
उसमें उसके कोई उसूल नहीं।
ज़िंदा है परमेश्वर, हाँ, सचमुच मौजूद है वो।
कोई कठपुतली या कुछ और नहीं है वो।
परमेश्वर को परिभाषित करने की ख़ातिर, इंसानी कल्पनाओं का सहारा न ले,
न थोप अपनी ख़्वाहिश उस पर,
और जिस तरह पेश आता है वो इंसानों से, इंसानों से,
उसमें इंसानी तौर-तरीके अपनाए वो, इसकी ख़ातिर मजबूर न कर उसको।
ऐसा करके परमेश्वर को गुस्सा दिला रहा है तू,
उसके क्रोध को बुलावा दे रहा है तू।
परमेश्वर की गरिमा को चुनौती दे रहा है तू।
3
सुननी चाहिये हमें उसके दिल की आवाज़, चूँकि मौजूद है वो,
उसके मनोभाव पर गौर करना चाहिये हमें,
उसकी भावना को समझना चाहिये हमें।
परमेश्वर को परिभाषित करने की ख़ातिर,
इंसानी कल्पनाओं का सहारा न ले,
न थोप अपनी ख़्वाहिश उस पर,
और जिस तरह पेश आता है वो इंसानों से, इंसानों से,
उसमें इंसानी तौर-तरीके अपनाए वो, इसकी ख़ातिर मजबूर न कर उसको।
ऐसा करके परमेश्वर को गुस्सा दिला रहा है तू,
उसके क्रोध को बुलावा दे रहा है तू।
परमेश्वर की गरिमा को चुनौती दे रहा है तू।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें से रूपांतरित