884 सबसे असल है परमेश्वर का प्रेम
1
ईश्वर के तुम सब में जीत के कार्य, ये कितना महान उद्धार है।
तुम में से हर एक शख़्स, भरा है पाप और अनैतिकता से।
अब तुम हुए रूबरू ईश्वर से, वो ताड़ना देता है और न्याय करता है।
तुम पाते हो उसका महान उद्धार, तुम पाते हो उसका महानतम प्यार।
ईश्वर जो भी करता है वो प्यार है। तुम्हारे पापों का न्याय करता है।
ताकि परखो तुम खुद को। ताकि तुम्हें प्राप्त हो उद्धार।
ईश्वर जो भी करता है वो प्यार है। तुम्हारे पापों का न्याय करता है।
ताकि परखो तुम खुद को। ताकि तुम्हें प्राप्त हो उद्धार।
2
ईश्वर नहीं चाहता कि वो नष्ट करे मानवजाति
को जिसे बनाया उसने अपने हाथों से।
वो बचाने की पूरी कोशिश कर रहा है,
तुम्हारे बीच में वह बोलता और काम करता है।
ईश्वर जो भी करता है वो प्यार है। तुम्हारे पापों का न्याय करता है।
ताकि परखो तुम खुद को। ताकि तुम्हें प्राप्त हो उद्धार।
3
ईश्वर तुमसे नफरत नहीं करता है, उसका प्यार निश्चित ही है सबसे सच्चा।
वो जांचता है क्योंकि मानव नाफ़रमानी करता है,
ये बचाने की केवल एक ही राह है।
क्योंकि तुम नहीं जानते कि कैसे जीना है,
और तुम जीते हो ऐसी जगह में, मैली और पाप से भरी,
उसे न्याय करना ही होगा तुम्हें बचाने को।
4
ईश्वर नहीं चाहता कि तुम नीचे गिरो, ना जीओ इस मैली जगह में।
शैतान द्वारा कुचले या नर्क में गिर जाओ।
मानव को बचाने के लिए है ईश्वर की जीत।
ईश्वर जो भी करता है वो प्यार है। तुम्हारे पापों का न्याय करता है।
ताकि परखो तुम खुद को। ताकि तुम्हें प्राप्त हो उद्धार।
ईश्वर जो भी करता है वो प्यार है। तुम्हारे पापों का न्याय करता है।
ताकि परखो तुम खुद को। ताकि तुम्हें प्राप्त हो उद्धार।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (4) से रूपांतरित