617 मनुष्यों के लिए परमेश्वर का अनुस्मारक
परमेश्वर ज़रूरतमंदों को धूल से उठाता है,
विनीत लोगों को ऊँचा बनाता है।
1
विश्वव्यापी कलीसिया का संचालन करने को,
लोगों और देशों का संचालन करने को,
परमेश्वर अपनी बुद्धि के हर रूप को उपयोग में लायेगा।
जो नहीं थे पहले आज्ञाकारी, उन्हें आज्ञाकारिता अब दिखानी होगी।
सब होंगे उसके भीतर समर्पण में। सब होंगे उसके भीतर समर्पण में।
2
तुम्हें प्रेम और समर्पण करना होगा, जीवन में परस्पर जुड़ना होगा।
एक-दूसरे के गुणों का उपयोग करना होगा,
सामंजस्य में सेवा करनी होगी, धैर्य रखना होगा।
तब शैतान की चालें कामयाब न होंगी, कलीसिया का उत्तम निर्माण होगा।
इस तरह परमेश्वर की योजना पूरी होगी।
परमेश्वर के पास एक अनुस्मारक है मानव के लिए, मानव के लिए।
3
कार्य हों अलग भले ही, देह तो एक ही है।
कर्तव्य निभाते हुए हरएक को देना चाहिए अपना श्रेष्ठ ही।
सभी हों एक चिंगारी, दें जो अपनी रोशनी,
जीवन में परिपक्वता खोजो, होगी परमेश्वर को संतुष्टि।
कोई है फ़लां ढंग का, कोई फ़लां काम करता है,
इस कारण गलतफहमी आने न दो, इस कारण आत्मा में पतित ना बनो,
परमेश्वर की नजरों में ये उचित नहीं है,
परमेश्वर की नजरों में इसका कोई मोल नहीं है।
तुम जिसे मानते हो वो परमेश्वर है, न कि ऐसा वैसा कोई इन्सान।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 21 से रूपांतरित