191 परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को जगा दिया
1 मैंने बरसों परमेश्वर में विश्वास किया, और हालाँकि मैं अकसर सभाओं में भाग लेती और परमेश्वर के वचनों को पढ़ती थी, लेकिन मैंने कभी भी अपना विश्लेषण और जाँच करने के लिए उनका न्याय स्वीकार नहीं किया। अपनी प्रकृति या सार जाने बिना मैंने केवल अपनी भ्रष्टता स्वीकार की। थोड़ा सिद्धांत समझकर मैंने शेखी बघारी और सोचा कि यही वास्तविकता है। मैंने कभी परमेश्वर के वचनों का अनुभव किए बिना ही या उन्हें अभ्यास में लाए बिना ही कार्य और प्रचार किया। पौलुस की तरह ही मुझे केवल प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए प्रयास करना आता था; मुझे खुद को सराहे जाने और अपनी पूजा करवाने में मजा आता था, और अपने दिल की गहराई में मैं कोई भय महसूस नहीं करती थी। मैंने अपने ही रास्ते पर चलने पर जोर दिया, फिर भी मैं आत्म-संतुष्ट थी और होश में नहीं आई।
2 नाकामियों और रुकावटों का अनुभव करके ही मैंने साफ तौर पर अपनी भ्रष्टता की सच्चाई देखी। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से सामना होने पर मैंने हमेशा बहस की और अपने को सही ठहराया। यह तो मुझे अच्छी तरह से पता था कि सत्य लोगों के जीवन के लिए फायदेमंद है, लेकिन मैं न तो उसे स्वीकार कर सकी और न ही उसके प्रति समर्पित हो पाई। मैं अपना कर्तव्य सत्य के किसी भी सिद्धांत का पालन किए बिना निभाती थी, और पूरी तरह से अपनी इच्छाओं के अनुसार कार्य करती थी। जब भी कोई छोटी-मोटी रुकावट आती, तो मैं नकारात्मक और कमजोर हो जाती, और अपने संबंध में निश्चय करने लगती। अब मैं देखती हूँ कि मैं कितनी बेचारी और दयनीय थी : मुझमें सत्य की कोई वास्तविकता नहीं थी। कोई आत्म-ज्ञान न होने के बावजूद मैं दिखावा करती थी, और यह बहुत ही शर्मनाक था। तथ्यों से सामना होने पर मैंने इस हद तक शर्मिंदगी महसूस की कि मेरी अकड़ी हुई गर्दन झुक गई।
3 परमेश्वर के न्याय, परीक्षणों और खुलासे का अनुभव करके अब मैं खुद को जान गई हूँ। मेरा स्वभाव बहुत अहंकारी और दंभी है, और मैं परमेश्वर के प्रति थोड़ी-भी श्रद्धा नहीं रखती, या उसके प्रति बिलकुल भी समर्पित नहीं होती। इसके बजाय, मैं एक पाखंडी हूँ, जो परमेश्वर को धोखा देती है और उसका विरोध करती है। मैं कितनी घृणित हूँ! मैं चाहे कितनी भी दौड़-भाग और काम करूँ, अगर मेरा स्वभाव नहीं बदलता, तो मैं अभी भी शैतान की हूँ। इतने वर्षों के विश्वास के बाद भी सत्य या जीवन प्राप्त न होना बेहद अपमानजनक है। अंतत: मुझे समझ में आ गया है कि अगर मैं सत्य की खोज नहीं करती, तो मैं सिर्फ वक्त बरबाद कर रही हूँ। यह केवल परमेश्वर के न्याय और ताड़ना की ही बदौलत है कि मैं वास्तव में प्रायश्चित कर पाने में सक्षम हूँ। मैं चाहती हूँ कि वह मेरा और अधिक न्याय करे, मुझे और अधिक ताड़ना दे, मेरी और अधिक परीक्षा ले, और मेरा और अधिक शुद्धिकरण करे, ताकि मैं अपने शैतानी स्वभाव से मुक्त हो जाऊँ और परमेश्वर को महिमामंडित करने के लिए एक इंसानी समानता को जी सकूँ।