iii. मसीह विरोधियों को औरों से अलग कैसे पहचानें

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

परमेश्वर मसीह-विरोधियों को कैसे परिभाषित करता है? वे सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर के विरोधी होते हैं। वे परमेश्वर के दुश्मन हैं! सत्य के प्रति शत्रुता रखना, परमेश्वर से घृणा करना, सभी सकारात्मक चीजों से घृणा करना—यह साधारण लोगों की क्षणिक कमजोरी और अज्ञानता नहीं है, न ही यह गलत सोच, गलत विचारों या बेतुकी समझ का अस्थायी मामला है, जो सत्य के साथ असंगत हैं। समस्या यह नहीं है। वे मसीह-विरोधी हैं, परमेश्वर के शत्रु हैं, और उनकी भूमिका सभी सकारात्मक चीजों से घृणा करने की है, सभी सत्यों से घृणा करने की है, परमेश्वर से घृणा करने की है, और परमेश्वर से शत्रुता रखने की है। और परमेश्वर ऐसी भूमिका को किस नज़र से देखता है? परमेश्वर द्वारा कोई उद्धार नहीं होगा! वे लोग सत्य का तिरस्कार करते हैं, वे सत्य से घृणा करते हैं—जो मसीह-विरोधी की प्रकृति है। क्या तुम लोग इसे समझते हो? यहाँ जो उजागर हुआ है, वह बुराई, द्वेष और सत्य से चिढ़ है, ये सभी भ्रष्ट स्वभावों में सबसे गंभीर शैतानी स्वभाव हैं—ऐसी चीजें जो शैतान की छाप हैं और जिनमें शैतान का सबसे अधिक सार है; ये साधारण भ्रष्ट मनुष्यों में प्रकट होने वाले भ्रष्ट स्वभाव नहीं हैं। मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति शत्रुता रखने वाली शक्ति हैं, वे कलीसिया को बाधित और नियंत्रित करने की ओर प्रवृत्त होते हैं, और वे परमेश्वर की प्रबंधन-योजना को कमजोर और बाधित करने के लिए तत्पर रहते हैं। ये भ्रष्ट स्वभाव वाले साधारण लोगों द्वारा की जाने वाली चीजें नहीं हैं, केवल मसीह-विरोधी ही ऐसा करते हैं। तुम लोगों को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद छह

जिस दौरान, परमेश्वर ने देहधारण नहीं किया था, तब कोई इंसान परमेश्वर विरोधी है या नहीं, यह इस बात से तय होता था कि क्या इंसान स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर की आराधना और उसका आदर करता था या नहीं। उस समय परमेश्वर के प्रति विरोध को जिस ढंग से परिभाषित किया गया, वह उतना भी व्यवाहारिक नहीं था क्योंकि तब इंसान परमेश्वर को देख नहीं पाता था, न ही उसे यह पता था कि परमेश्वर की छवि कैसी है, वह कैसे कार्य करता है और कैसे बोलता है। परमेश्वर के बारे में इंसान की कोई धारणा नहीं थी, परमेश्वर के बारे में उसकी एक अस्पष्ट आस्था थी, क्योंकि परमेश्वर अभी तक इंसानों के सामने प्रकट नहीं हुआ था। इसलिए, इंसान ने अपनी कल्पनाओं में कैसे भी परमेश्वर में विश्वास क्यों न किया हो, परमेश्वर ने न तो इंसान की निंदा की, न ही इंसान से अधिक अपेक्षा की, क्योंकि इंसान परमेश्वर को देख नहीं पाता था। परमेश्वर जब देहधारण कर इंसानों के बीच काम करने आता है, तो सभी उसे देखते और उसके वचनों को सुनते हैं, और सभी लोग उन कर्मों को देखते हैं जो परमेश्वर देह रूप में करता है। उस क्षण, इंसान की तमाम धारणाएँ साबुन के झाग बन जाती हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जिन्होंने परमेश्वर को देहधारण करते हुए देखा है, यदि वे अपनी इच्छा से उसके प्रति समर्पण करेंगे, तो उनका तिरस्कार नहीं किया जाएगा, जबकि जो लोग जानबूझकर परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करने वाले माने जाएँगे। ऐसे लोग मसीह-विरोधी और शत्रु हैं जो जानबूझकर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं

जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है, यही नहीं, वह नष्ट किया जाएगा। वे सब जो विश्वास करते हैं, पर सत्य का अभ्यास नहीं करते, वे जो देहधारी परमेश्वर में विश्वास नहीं करते और वे जो परमेश्वर के अस्तित्व पर लेशमात्र भी विश्वास नहीं रखते, वे सब नष्ट होंगे। वे सभी जिन्हें रहने दिया जाएगा, वे लोग हैं, जो शोधन के दुख से गुज़रे हैं और डटे रहे हैं; ये वे लोग हैं, जो वास्तव में परीक्षणों से गुज़रे हैं। जो कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

यदि तुमने वर्षों परमेश्वर में विश्वास रखा है, फिर भी न तो कभी उसके प्रति समर्पण किया है, न ही उसके वचनों की समग्रता को स्वीकार किया है, बल्कि तुमने परमेश्वर को अपने आगे समर्पण करने और तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सबसे अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और गैर-विश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के कार्य और वचनों के प्रति समर्पण कैसे कर सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं है? सबसे अधिक विद्रोही वे लोग होते हैं जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना और उसका विरोध करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु और मसीह विरोधी हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। ऐसे लोग दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो “खज़ाना” होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में इस तरह के कुछ ऐसे लोग हैं। ये कहा जा सकता है कि वे “अदम्य नायक” हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने “पवित्र और अलंघनीय” कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में “राजा” बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ? यहाँ तक कि आधा-अधूरा समर्पण करने वाले लोग भी अंत तक नहीं चल सकते, फिर इन आततायियों की तो बात ही क्या है जिनके हृदय में थोड़ा-सा भी समर्पण नहीं है! इंसान परमेश्वर के कार्य को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकता। इंसान अपनी सारी ताक़त लगाकर भी थोड़ा-बहुत ही पा सकता है जिससे वो आखिरकार पूर्ण बनाया जा सके। फिर प्रधानदूत की संतानों का क्या, जो परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने की कोशिश में लगी रहती हैं? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें ग्रहण करने की आशा और भी कम नहीं है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे

ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे “मज़बूत देह” वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं

प्रत्येक धर्म और संप्रदाय के अगुआओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और बाइबल की उनकी व्याख्या में संदर्भ का अभाव है और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और ज्ञान पर भरोसा करते हैं। यदि वे उपदेश देने में पूरी तरह अक्षम होते, तो क्या लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही और वे धर्म-सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालों का उपयोग कैसे करें। इन चीजों के माध्यम से वे लोगों को धोखा देते हैं और उन्हें अपने सामने ले आते हैं। नाममात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे इन अगुआओं का अनुसरण करते हैं। जब वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, “हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के मामले में हमारे अगुआ से परामर्श करना है।” देखो, परमेश्वर में विश्वास करने और सच्चा मार्ग स्वीकारने की बात आने पर कैसे लोगों को अभी भी दूसरों की सहमति और मंजूरी की जरूरत होती है—क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुआ क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकारने में अवरोध नहीं बन चुके हैं? इस तरह के लोग पौलुस जैसे ही हैं।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

हमने धार्मिक मंडलियों के भीतर अनेक अगुआओं को बार-बार सुसमाचार का उपदेश दिया है, किन्तु हम उनके साथ सत्य पर कैसे भी संगति क्यों न करें, वे इसे स्वीकार नहीं करते। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है कि उनका घमंड उनकी प्रवृत्ति बन गया है और उनके हृदयों में परमेश्वर का अब और स्थान नहीं रह गया है। कुछ लोग कह सकते हैं, “धार्मिक दुनिया में कुछ पादरियों के नेतृत्व में लोगों में वास्तव में बहुत अधिक प्रेरणा होती है; यह ऐसा है मानो उनके बीच में परमेश्‍वर हो।” क्‍या तुम उत्‍साह होने को प्रेरणा होना मानते हो? उन पादरियों के सिद्धांत भले ही कितने भी उच्‍च क्यों न प्रतीत होते हों, क्या वे परमेश्वर को जानते हैं? यदि उनके अंतरतम में परमेश्वर के प्रति सच में भय होता, तो क्या वे लोगों से अपना अनुसरण और प्रशंसा करवाते? क्या वे दूसरों पर नियंत्रण कर पाते? क्या वे अन्य लोगों को सत्य की तलाश करने और सच्चे मार्ग की जाँच करने से रोकने की हिम्मत करते? यदि वे मानते हैं कि परमेश्वर की भेड़ें वास्तव में उनकी हैं और उन सभी को उनकी बात सुननी चाहिए, तो क्या बात ऐसी नहीं है कि वे स्वयं को परमेश्वर मानते हैं? ऐसे लोग फरीसियों से भी बदतर हैं। क्या वे असली मसीह विरोधी नहीं हैं?

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध की जड़ में अहंकारी स्वभाव है

ईसाइयत में वे सभी जो धर्मशास्त्र, पवित्र ग्रंथ और यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य का इतिहास भी पढ़ते हैं—क्या वे सच्चे विश्वासी हैं? क्या वे उन विश्वासियों और अनुयायियों से भिन्न हैं, जिनके बारे में परमेश्वर बात करता है? क्या परमेश्वर की दृष्टि में वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं? (नहीं।) वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, वे परमेश्वर का अध्ययन करते हैं। क्या उनमें कोई अंतर है, जो परमेश्वर का अध्ययन करते हैं और जो अन्य चीजों का अध्ययन करते हैं? कोई अंतर नहीं है। वे बिलकुल उन्हीं लोगों के समान हैं जो इतिहास पढ़ते हैं, जो दर्शन-शास्त्र पढ़ते हैं, जो कानून पढ़ते हैं, जो जीव विज्ञान पढ़ते हैं, जो खगोल विज्ञान पढ़ते हैं—वे बस विज्ञान या जीव विज्ञान या अन्य विषयों को पसंद नहीं करते; वे सिर्फ धर्मशास्त्र पसंद करते हैं। ये लोग परमेश्वर के कार्य में सुरागों और सूत्रों की खोज करते हुए परमेश्वर का अध्ययन करते हैं—और इनकी शोध से क्या निकलता है? क्या वे यह तय कर पाते हैं कि क्या परमेश्वर का अस्तित्व है? वे ऐसा कभी नहीं कर पाएंगे। क्या वे परमेश्वर की इच्छा को तय कर पाते हैं? (नहीं।) क्यों? क्योंकि वे शब्दों और वाक्यांशों में जीते हैं, वे ज्ञान में जीते हैं, वे दर्शन-शास्त्र में जीते हैं, वे मनुष्यों के मस्तिष्कों और विचारों में जीते हैं। वे कभी भी परमेश्वर को नहीं देख पाएंगे, वे कभी भी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता प्राप्त नहीं कर पाएंगे। परमेश्वर उन्हें किस तरह परिभाषित करता है? अविश्वासियों के रूप में, गैर-विश्वासियों के रूप में। ये अविश्वासी और गैर-विश्वासी तथाकथित ईसाई समुदाय में घुलमिल जाते हैं, परमेश्वर में विश्वास करने वालों की तरह व्यवहार करते हुए, ईसाइयों की तरह व्यवहार करते हुए—पर क्या वे सचमुच परमेश्वर की आराधना करते हैं? क्या वे सचमुच उसकी आज्ञा का पालन करते हैं? नहीं। क्यों? एक बात निश्चित है : ऐसा इसलिए है क्योंकि अपने हृदयों में वे यह विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर ने दुनिया बनाई है, कि वह सभी चीजों पर शासन करता है, कि वह देहधारण कर सकता है, और इससे भी कम वे यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर का अस्तित्व है। यह अविश्वास क्या दर्शाता है? संदेह, नकार, और यह उम्मीद करने का रवैया भी कि परमेश्वर की भविष्यवाणियाँ—खासकर आपदाओं के बारे में—सच साबित नहीं होंगी और पूरी नहीं होंगी। यह वह रवैया है जो वे परमेश्वर में विश्वास के प्रति अपनाते हैं और यह उनकी तथाकथित आस्था का सार और असली चेहरा भी है। ये लोग परमेश्वर का अध्ययन करते हैं क्योंकि उनकी विद्वत्ता और धर्मशास्त्र के ज्ञान में विशेष रुचि है और उन्हें परमेश्वर के कार्यों के ऐतिहासिक तथ्यों में भी दिलचस्पी है। वे धर्मशास्त्र पढ़ने वाले बुद्धिजीवियों के एक झुंड से ज्यादा और कुछ भी नहीं हैं। ये “बुद्धजीवी” परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, तो जब परमेश्वर अपने काम पर आता है और उसके वचन साकार होते हैं तो ये लोग क्या करते हैं? जब वे सुनते हैं कि परमेश्वर देहधारी बन गया है और नया कार्य कर रहा है तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती है? “असंभव!” वे परमेश्वर के नए कार्य का उपदेश देने वाले की निंदा करते हैं, और ऐसे लोगों को मार देना तक चाहते है। यह किस चीज की अभिव्यक्ति है? क्या यह इस बात की अभिव्यक्ति नहीं है कि वे पक्के मसीह-विरोधी हैं? वे परमेश्वर के कार्य और उसके वचनों के पूरे होने के प्रति शत्रुता का भाव रखते हैं, उसके देहधारी अस्तित्व की तो बात ही क्या: “अगर तुमने देहधारण नहीं किया था और तुम्हारे वचन पूरे नहीं हुए हैं, तो तुम परमेश्वर हो। अगर तुम्हारे वचन पूरे हुए हैं और तुमने देहधारण किया था, तो तुम नहीं हो।” इसका दूसरा पहलू क्या है? यह कि जब तक उनका अपना अस्तित्व है, वे परमेश्वर के देहधारण की अनुमति नहीं देंगे। क्या यह एक प्रामाणिक मसीह-विरोधी होना नहीं है? यह असली मसीह-विरोध है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन)

मसीह-विरोधियों की परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, वे हमेशा यह महसूस करते हैं कि यह साधारण व्यक्ति, जो परमेश्वर का देहधारी देह है, उनके लिए अनावश्यक है, परमेश्वर को जानने में उनके लिए बाधा है। वे मन में सोचते हैं, “जैसे ही मनुष्य मसीह के संपर्क में आते हैं, वह हमें तुलना में बहुत तुच्छ और भ्रष्ट दिखा देता है। जब तक हम मसीह के संपर्क में नहीं आते, तब तक हम बहुत पवित्र होते हैं, लेकिन जैसे ही हम मसीह के संपर्क में आते हैं, हम अपने में बहुत ही कमी महसूस करते हैं। मसीह से मिलने से पहले, हम बहुत सारी बातें समझते हैं और हमारा आध्यात्मिक कद बड़ा होता है। यह मसीह बहुत बड़ी मुसीबत है।” इस प्रकार वे मानते हैं कि जब उनके पास समय हो, तब सबसे अच्छा यह होगा कि जितना संभव हो, केवल “वचन देह में प्रकट होता है” पढ़ा जाए। चाहे वे कोई भी साधन अपनाएँ, या उनकी स्थिति कैसी भी हो, मसीह-विरोधियों की मुख्य अभिव्यक्ति यह है कि वे परमेश्वर के देहधारण के तथ्य और इस तथ्य को नकारने का प्रयास करते हैं कि मसीह के मुँह से निकले वचन सत्य हैं। ऐसा लगता है मानो देहधारी परमेश्वर के सार और इस तथ्य को नकारने से कि मसीह के मुँह से निकले वचन सत्य हैं, उन्हें उद्धार की आशा मिलती है। अपनी जन्मजात प्रकृति में, मसीह-विरोधी और परमेश्वर का देहधारी देह आग और पानी के समान मूल रूप से बेमेल हैं, जिनका कभी मेल नहीं हो सकता। ये मसीह-विरोधी यह मानते हैं, “जब तक मसीह का अस्तित्व बना रहेगा, तब तक मेरे दिन के आने की कोई आशा नहीं होगी, और मुझे दोषी ठहराए जाने और हटाए जाने, नष्ट और दंडित किए जाने का खतरा रहेगा। लेकिन अगर यह मसीह कथन न कहे या अपना कार्य न करे और लोग उसका सम्मान न करें, यहाँ तक कि उसे भूल जाएँ और इसे अपने मन के पिछले हिस्से में धकेल दें, तो ही मेरे लिए एक मौका होगा।” मसीह-विरोधियों की प्रकृति और सार यह है कि वे मसीह से नफरत किए बिना और उससे घृणा किए बिना नहीं रह सकते; वे अपनी प्रतिभा के आकार और अपने कौशल के स्तर में मसीह के साथ अपनी तुलना करते हैं, और यह देखने के लिए उसके साथ होड़ करते हैं कि किसके शब्द अधिक शक्तिशाली हैं और कौन अधिक सक्षम है। मसीह के समान कार्य करते हुए, वे लोगों को यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि एक मनुष्य होते हुए भी मसीह में एक साधारण मनुष्य की प्रतिभा या विद्या तक नहीं है। हर प्रकार से मसीह-विरोधी स्वयं को मसीह के विरुद्ध खड़ा करते हैं और उससे मुकाबला करते हैं। हर तरह से वे इस तथ्य को नकारने का प्रयास करते हैं कि मसीह परमेश्वर है, परमेश्वर के आत्मा का मूर्त रूप है, और सत्य का देहधारण है। हर तरह से, वे मसीह को भाई-बहनों के बीच अपना प्रभुत्व कायम करने से रोकने, उसके वचनों को उनके बीच फलीभूत होने से रोकने, और इसके अलावा, मसीह द्वारा की जाने वाली चीजों, उसके द्वारा बोले जाने वाले वचनों, और उसके द्वारा लोगों से की जाने वाली माँगों और अपेक्षाओं को उनके बीच साकार होने से रोकने के तरीके खोजने में अपना दिमाग लगाते हैं। ऐसा लगता है, मानो मसीह के मौजूद होने से, ये मसीह-विरोधी दरकिनार कर दिए जाएँगे और कलीसिया के भीतर वे लोगों का वह दल बन जाएँगे, जिनकी निंदा की जाती है, जिन्हें त्याग दिया जाता है और एक अँधेरे कोने में रख दिया जाता है। सभी प्रकार की अभिव्यक्तियों से यह देखा जा सकता है कि मसीह-विरोधी अपने सार में मसीह के इतने प्रतिकूल हैं कि उनका मेल नहीं हो सकता। मसीह-विरोधी स्वयं को मसीह से अलग करने और उसके विरुद्ध खड़े होने, मसीह को हराने और उसे मार डालने की इच्छा के साथ पैदा हुए हैं, ताकि मसीह द्वारा किए गए कार्य का अस्तित्व समाप्त, अरक्षणीय और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच फलीभूत होने में असमर्थ हो जाए; मसीह चाहे कोई भी कार्य कर रहा हो और कहीं भी कर रहा हो, वे उसे पूरी तरह से नष्ट और विफल होते देखना चाहते हैं। लेकिन जब इसमें से कुछ भी वैसा नहीं होता जैसा वे चाहते हैं, तो उनके दिलों में अँधेरा और अवसाद छा जाता है; उन्हें लगता है कि यह अंधकारमय समय है और उनका दिन कभी नहीं आएगा। उन्हें लगता है कि उन्हें दरकिनार कर दिया गया है। क्या मसीह-विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ दर्शाती हैं कि परमेश्वर के विरोध और शत्रुता का उनका सार कोई अर्जित की हुई चीज है? (नहीं।) उस हालत में, यह जन्मजात है। इसलिए, जो लोग मसीह-विरोधी हैं, उनके लिए सत्य को स्वीकार करना, मसीह को सहन करना असंभव है। बाहर से देखने पर ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने कुछ कहा या किया है, और वे भी अपना योगदान करने और एक व्यावहारिक तरीके से कीमत चुकाने में सक्षम हैं। लेकिन जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, जैसे ही काम करने का सही समय आता है, मसीह-विरोधियों की मसीह के साथ मूलभूत असंगति के परिदृश्य प्रकट होने शुरू हो जाएँगे, और मसीह-विरोधियों के परमेश्वर के विरुद्ध युद्ध और परमेश्वर के साथ उनके संबंध-विच्छेद का तथ्य स्पष्ट रूप से दिखाई दे जाएगा। ये सभी चीजें पहले भी उन जगहों पर हुई हैं जहाँ मसीह-विरोधी हैं, और परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य के इन वर्षों के दौरान ये विशेष रूप से असंख्य हो गई हैं। कई लोगों ने इन्हें प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग चार)

मसीह-विरोधियों के व्यवहार का सार अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने, लोगों को धोखा देकर फँसाने और उच्च हैसियत प्राप्त करने के लिए लगातार विभिन्न साधनों और तरीकों का इस्तेमाल करना है, ताकि लोग उनका अनुसरण और आराधना करें। संभव है कि अपने दिल की गहराइयों में वे जानबूझकर मानवजाति को लेकर परमेश्वर से होड़ न कर रहे हों, पर एक बात तो पक्की है : जब वे मनुष्यों को लेकर परमेश्वर के साथ होड़ नहीं भी कर रहे होते, तब भी वे उनके बीच रुतबा और सत्ता पाना चाहते हैं। अगर वह दिन आ भी जाए, जब उन्हें यह एहसास हो जाए कि वे रुतबे के लिए परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं और वे अपने-आप पर थोड़ी-बहुत लगाम लगा लें, तो भी वे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं; उन्हें अपने दिल में स्पष्ट होता है कि वे कुछ लोगों की स्वीकृति और सराहना प्राप्त करके वैध रुतबा प्राप्त कर लेंगे। संक्षेप में, हालाँकि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, उससे वे अपने कर्तव्य निभाते प्रतीत होते हैं, लेकिन उसका परिणाम लोगों को धोखा देना होता है, उनसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना होता है—ऐसे में, इस तरह अपना कर्तव्य निभाना उनके लिए अपना उत्कर्ष करना और अपनी गवाही देना होता है। लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया में रुतबा और सत्ता हासिल करने की उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलती। ऐसे लोग पूरे मसीह-विरोधी होते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे या करे, और चाहे वह लोगों से कुछ भी चाहे, मसीह-विरोधी वह नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए या अपने कर्तव्य उस तरह से नहीं निभाते जो परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुरूप हो, न ही वे किसी सत्य को समझने के नतीजे के तौर पर सत्ता और रुतबे का अपना अनुसरण ही त्यागते हैं। हर समय, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छएँ फिर भी बनी रहती हैं, वे फिर भी उनके दिल पर कब्जा किए रहती हैं और उनके पूरे अस्तित्व को नियंत्रित करती हैं, उनके व्यवहार और विचारों को निर्देशित करती हैं, और उस मार्ग को निर्धारित करती है, जिस पर वे चलते हैं। वे प्रमाणिक मसीह-विरोधी हैं। मसीह-विरोधियों में सबसे ज्यादा क्या दिखाई देता है? कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी लोगों को प्राप्त करने के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते।” ऐसा नहीं है कि वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते; अपने दिल में वे वास्तव में उसके अस्तित्व को स्वीकारते और उस पर विश्वास करते हैं। वे उसका अनुसरण करने के इच्छुक होते हैं और सत्य का अनुसरण करना चाहते हैं, लेकिन उनका खुद पर बस नहीं चलता, इसलिए वे बुराई कर सकते हैं। हालाँकि वे कई अच्छी लगने वाली बातें कह सकते हैं, लेकिन एक चीज कभी नहीं बदलेगी : सत्ता और हैसियत के लिए उनकी आकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी, न ही वे कभी असफलता या बाधा के कारण, या परमेश्वर द्वारा उन्हें दरकिनार कर त्याग दिए जाने के कारण सत्ता और रुतबे का अपना अनुसरण छोड़ेंगे। ऐसी होती है मसीह-विरोधियों की प्रकृति। किसी व्यक्ति ने कितना ही कष्ट क्यों न उठाया हो, उसने सत्य को कितना ही क्यों न समझ लिया हो, उसने कितनी ही सत्य-वास्तविकताओं में प्रवेश क्यों न कर लिया हो, उसे परमेश्वर का कितना ही ज्ञान क्यों न हो, इन बाहरी प्रतिभासों और अभिव्यक्तियों से परे, वह व्यक्ति कभी भी रुतबे और शक्ति के लिए अपनी महत्वाकांक्षा और प्रयासों पर न तो लगाम लगाएगा और न ही इनका परित्याग करेगा, और इससे उसका प्रकृति सार स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाता है। ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित करने में परमेश्वर ने जरा-सी भी गलती नहीं की है, इसे उनके प्रकृति सार ने ही निर्धारित कर दिया है। शायद कुछ लोग मानते थे कि मानवता के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा की कोशिश करने वाला व्यक्ति मसीह-विरोधी है। हालांकि, कई बार यह ज़रूरी नहीं होता कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा ही करें; इतना ही काफ़ी होता है कि उनका ज्ञान, समझ और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की आवश्यकता सामान्य लोगों के विपरीत हो। सामान्य लोग दंभी हो सकते हैं; वे दूसरों की प्रशंसा जीतने की और उन पर धाक जमाने का प्रयास कर सकते हैं, एक अच्छी श्रेणी पाने की होड़ लगाने का प्रयास कर सकते हैं। यह सामान्य लोगों की महत्वाकांक्षा है। जब उन्हें नेताओं के रूप में प्रतिस्थापित किया जाता है, उनके पद उनसे छिन जाते हैं, वे उससे उबर जाते हैं; वातावरण में परिवर्तन से, थोड़े आध्यात्मिक कद के विकास से, सत्य की थोड़ी-बहुत प्राप्ति या सत्य की गहरी समझ आने पर उनकी महत्वाकांक्षा धीरे-धीरे शांत हो जाती है। उनका मार्ग व दिशा बदल जाते हैं और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की उनकी खोज धूमिल होने लगती है। उनकी इच्छाएँ भी धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। हालाँकि मसीह-विरोधी अलग होते हैं : वे प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की अपनी खोज कभी नहीं छोड़ सकते। किसी भी समय, किसी भी वातावरण में, चाहे उनके आसपास कैसे भी लोग हों और वे कितने ही बूढ़े हो जाएँ, उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलेगी। किस बात से यह संकेत मिलता है कि उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलेगी? मान लें कि वे कलीसिया के नेता हैं : वे कलीसिया में सभी को नियंत्रित करना चाहेंगे। फिर शायद वे किसी दूसरे कलीसिया में जाएँ, जहां वे नेता नहीं हैं, फिर भी वे वह प्रतिष्ठा पाने के लिए तरसते हैं। ऐसे लोग जहाँ भी जाते हैं, सामर्थ्य इस्तेमाल करना चाहते हैं। क्या महत्वाकांक्षा उनके हृदयों में कूट-कूटकर नहीं भरी हुई है? वे जो ज़ाहिर करते हैं वह सामान्य मानवता के दायरे से परे है। क्या यह असामान्य नहीं है? इसमें असामान्य क्या है? वे जो ज़ाहिर करते हैं वह सामान्य मानवता द्वारा ज़ाहिर किए जाने योग्य नहीं है। वे क्या ज़ाहिर करते हैं? वह क्या है जिसकी वजह से यह ज़ाहिर होता है? इसका कारण उनकी प्रकृति है। वे बुरे आत्मा हैं। यह साधारण भ्रष्टता नहीं है; यह उससे अलग है। मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की खोज में अनथक प्रयत्न करते रहते हैं; वह पूरी तरह से इनके दिलो-दिमाग पर छाई रहती है। यह उनका प्रकृति-सार है; यह उनका मूल रूप है और उनका असली चेहरा है। प्रतिष्ठा के लिए वे केवल परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करते बल्कि लोगों के साथ भी प्रतिस्पर्धा करते हैं। दूसरे लोग चाहे इच्छुक हों या न हों, राज़ी हों या न हों, मसीह-विरोधी उनकी इच्छाओं की परवाह किए बगैर सक्रिय रूप से उन्हें नियंत्रित करने और उनके नेता बनने की कोशिश करते हैं। मसीह-विरोधी जहाँ भी जाते हैं, प्रभारी बनना चाहते हैं और अपनी बात मनवाना चाहते हैं। क्या यह उनकी प्रकृति है? क्या लोग तुम्हारी बातें सुनना चाहते हैं? क्या उन्होंने तुम्हें चुना है? क्या लोगों ने तुम्हारा चयन किया है? क्या वे सहमत हैं कि अंतिम निर्णय तुम्हारा हो? कोई नहीं चाहता कि अंतिम निर्णय इन लोगों का हो और कोई भी उनकी बात नहीं सुनता, फिर भी वे अपनी कोशिशों से बाज नहीं आते। क्या यह कोई समस्या है? वे निहायत ही बेशर्म और निर्लज्ज होते हैं। जब ऐसे लोग नेता होते हैं, तब वे मसीह-विरोधी होते हैं; जब वे नेता नहीं होते, तब भी वे मसीह-विरोधी होते हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं

मसीह-विरोधी भौतिक संपत्ति, धन और हैसियत में अत्यधिक रुचि रखते हैं, और वे निश्चित रूप से वैसे नहीं होते, जैसे वे तब प्रतीत होते हैं जब वे कहते हैं, “मैं अब परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, और मैंने सांसारिक चीजों के पीछे भागना और पैसे की लालसा करना बंद कर दिया है।” वे निश्चित रूप से उतने सरल नहीं होते, जितने वे लगते हैं। हैसियत के पीछे भागने और उसे बनाए रखने के लिए वे सब-कुछ क्यों करते हैं? क्योंकि वे हर उस चीज को पाना चाहते हैं या उस पर नियंत्रण और प्रभुत्व रखना चाहते हैं, जो हैसियत लाती है। वे प्रधान दूत के प्रामाणिक वंशज हैं, और प्रधान दूत की प्रकृति और सार से जैसा अपेक्षित है, वे वैसे ही जीते हैं। जो कोई भी हैसियत के पीछे भागता है और धन-संपत्ति पर ध्यान केंद्रित करता है, उसके स्वभाव में निश्चित रूप से समस्या होती है। यह केवल एक मसीह-विरोधी स्वभाव होने का मामला नहीं है, तो फिर यह क्या है? सबसे पहले, अगर उन्हें किसी कार्य की जिम्मेदारी लेने दी जाए, तो वे दूसरों को हस्तक्षेप नहीं करने देंगे; इसके अतिरिक्त, किसी भी कार्य का निरीक्षक बनने पर, वे अपना प्रदर्शन करने, अपना बचाव करने और अपने को ऊपर उठाने, हैसियत बनाए रखने और उसके लिए लड़ते हुए खुद को भीड़ से अलग दिखाने और सर्वोच्च बनने के तरीकों की तलाश करेंगे; इतना ही नहीं, संपत्ति दिखते ही उनकी दृष्टि लोलुप हो जाती है और पैसे के लिए सोचते और प्रयास करते हुए उनके दिमाग के घोड़े दौड़ते ही रहते हैं। ये सभी एक मसीह-विरोधी के चिह्न हैं। वे सत्य को संप्रेषित करने के किसी उल्लेख में या भाई-बहनों की स्थितियों के बारे में पूछने में रुचि नहीं रखते, न ही इसमें कि उनमें से कितने कमजोर या नकारात्मक महसूस कर रहे हैं या हर कोई अपने कर्तव्यों का पालन कितनी अच्छी से तरह कर रहा है; लेकिन जब पैसे की बात आती है, या इसकी कि कौन दान कर सकता है, कितनी राशि है, उसे कहाँ रखा जाता है, तो ये ऐसी चीजें हैं जिनकी उन्हें सबसे ज्यादा परवाह होती है। यह एक मसीह-विरोधी का लक्षण और चिह्न है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो)

परमेश्वर द्वारा चयनित लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें चाहिए कि वे उनको पहचानें, उनको बेनकाब करें, उनकी सूचना दें, और उनको बाहर निकालें। मसीह-विरोधी भले ही अगुआ की स्थिति में क्यों न हो, वह सर्वदा परमेश्वर का विरोध करता है। तुम्हें मसीह-विरोधी की अगुवाई स्वीकार नहीं करनी चाहिए, और तुम्हें उसको अपना अगुआ भी नहीं मानना चाहिए, क्योंकि वह जो करता है उससे तुम परमेश्वर के वचनों में प्रवेश नहीं करते; वह तुम्हें नरक में घसीटना चाहता है और तुम्हें मसीह-विरोधियों के रास्ते पर ले जाना चाहता है जिसपर वह ख़ुद चल रहा है। वह परमेश्वर का विरोध करने और परमेश्वर के कार्य को बाधित और नष्ट करने में तुम्हें अपने साथ शामिल करना चाहता है। वह तुम्हें खींचता-घसीटता है ताकि तुम भी उसके साथ दलदल में फँस जाओ। क्या तुम इसकी सहमति दोगे? यदि तुम सहमत होते हो, और उसके साथ समझौता करते हो, उससे दया की भीख माँगते हो, या उसके द्वारा जीत लिए जाते हो, तो तुमने गवाही नहीं दी है, और तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य और परमेश्वर दोनों को धोखा देता है—और ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता है। अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और उसे पूरी तरह से त्यागने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे धोखा खाने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और अभिप्रेत लक्ष्य देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनसे धोखा नहीं खाओगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। यदि तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा धोखा देकर अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। हक़ीक़त में, ये चीज़ें कलीसिया में मौजूद हैं; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। यदि तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों के हाथों धोखा खा चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम उसे छोड़ दोगे, यह कहते हुए, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है; परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई धार्मिकता या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, यदि तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। यदि तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से चिढ़ता है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे रास्ते में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। यदि तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम उनके जाल में फँस सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो। वैसे भी, जो लोग धोखे खाए हुए और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम और उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए वे धोखा खा सकते हैं और मसीह-विरोधी का अनुसरण कर सकते हैं। यह परिणाम अपरिहार्य है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं

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