प्रश्न 2: हम लोग अभी तक तय नहीं कर पाए हैं कि परमेश्वर का राज्य धरती पर है या स्वर्ग में। प्रभु यीशु ने "स्वर्ग का राज्य पास में हैं" और "स्वर्ग का राज्य आता है" के बारे में बात की थी। अगर यह "स्वर्ग का राज्य," है तो यह स्वर्ग में होना चाहिये। यह धरती पर कैसे हो सकता है?

उत्तर: हमें एक बात स्पष्ट होनी चाहिये कि "स्वर्ग" को हमेशा परमेश्वर के रूप में, देखते हैं। "स्वर्ग का राज्य" यानी परमेश्वर का राज्य। प्रकाशित-वाक्य में लिखा है, "परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है।" "जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया।" इसका मतलब है कि परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर स्थापित होगा। अंत में, पृथ्वी का राज्य परमेश्वर का राज्य बनेगा। महाविपदा में पुराने विश्व के तबाह होने के बाद, सहस्राब्दि राज्य प्रकट होगा। पृथ्वी के राज्य हमारे प्रभु और उनके मसीह के राज्य बनेंगे। तब, परमेश्वर की इच्छा पृथ्वी पर, पूरी होगी, जैसी कि यह स्वर्ग में है। इससे भविष्यवाणी पूरी तरह से सच हो जाएगी: नया यरूशलेम पृथ्वी पर आ जाएगा। परमेश्वर देहधारी बन गए हैं और अंधेरी, बुरी पीढ़ी को समाप्त करने के लिए अंत के दिनों में न्याय का कार्य करते हैं। वे सभी जो परमेश्वर की वाणी सुनते हैं और उनके सिंहासन के सामने आरोहित किए जाते हैं, विजेता के रूप में पूर्ण किए जाएंगे। तब महाआपदाएँ शुरू होंगी। केवल वही लोग बचेंगे जो परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य के द्वारा शुद्ध किए और बचा लिए गए हैं। वे परमेश्वर के राज्य के लोग बनेंगे। आज हम, यहां अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने वाले, सबसे भाग्यवान लोग हैं। हम परमेश्वर की वाणी सुनने और उनके सिंहासन के सामने उन्नत होने वाले भाग्यशाली लोग उनके वचनों के न्याय और ताड़ना के ज़रिये शुद्ध किये जाएंगे, और महाआपदाओं से पहले विजेता बनाए जाएंगे और परमेश्वर को प्राप्त होने वाले पहले फल बनाए जाएंगे। तब, परमेश्वर महाआपदाओं, को नीचे भेज देंगे। परमेश्वर का विरोध करने वालों और सभी शैतानी अविश्वासियों को महाआपदाओं में नष्ट कर दिया जाएगा। महाआपदाओं के दौरान परमेश्वर उन सभी की रक्षा करेंगे जो शुद्ध और पूर्ण कर दिए गए हैं; वे जीवित बचेंगे। जब परमेश्वर एक बादल पर उतरेंगे और सबके सामने प्रकट होंगे, तो परमेश्वर पृथ्वी पर अपने राज्य में आ जाएंगे। इसी को परमेश्वर जल्दी पूरा करेंगे। अगर हम विश्वासी इस नज़ारे को भी न देख पाएं तो क्या हमारी आँखों पर पट्टी नहीं बँधी है? जो लोग बस टकटकी लगाए आकाश में देखते रहते हैं और प्रभु के बादलों पर आने का इंतज़ार करते रहते हैं जब वे, सचमुच बादलों पर वापस आएंगे तब वे रोएंगे, और अपने दाँत पीसेंगे। यह प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणी की तरह ही है, "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे। हाँ। आमीन" (प्रकाशितवाक्य 1:7)। जो लोग महाआपदाओं से पहले परमेश्वर की वाणी नहीं सुनते और उनके सिंहासन के सामने आरोहित होने में नाकाम रहते हैं वे महाआपदाओं की गिरफ्त में आ जाएंगे और सज़ा पाएंगे, वे रोएंगे और अपने दांत पीसेंगे।

परमेश्वर ने पहले पृथ्वी पर इंसान बनाया। शैतान इंसान को दूषित भी पृथ्वी पर ही करता है। आखिरकार परमेश्वर इंसान को पृथ्वी पर ही बचाता है। जब तक मसीह का राज्य धरती पर प्रकट नहीं होता, ये सारे काम पृथ्वी पर ही किए जाते हैं। इसलिए, अंत के दिनों में परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर ही बनाया जाएगा। इंसान की आखिरी मंज़िल धरती पर होगी, स्वर्ग में नहीं। यह परमेश्वर ने तय कर दिया है। आइए हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़ें, "परमेश्वर अपने मूल स्थान पर लौट जाएगा और प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने स्थान पर लौट जाएगा। ये वे गंतव्य हैं, जहाँ परमेश्वर का समस्त प्रबंधन पूरा होने पर परमेश्वर और मनुष्य रहेंगे। परमेश्वर के पास परमेश्वर की मंज़िल है, और मानवता के पास मानवता की। विश्राम करते समय, परमेश्वर पृथ्वी पर सभी मनुष्यों के जीवन का मार्गदर्शन करता रहेगा, जबकि वे उसके प्रकाश में, स्वर्ग के एकमात्र सच्चे परमेश्वर की आराधना करेंगे। ... जब मनुष्य विश्राम में प्रवेश करते हैं, तो इसका अर्थ है कि वे सृष्टि की सच्ची वस्तु बन गए हैं; वे पृथ्वी से परमेश्वर की आराधना करेंगे और सामान्य मानवीय जीवन जिएंगे। लोग अब और परमेश्वर की अवज्ञा या प्रतिरोध नहीं करेंगे और वे आदम और हव्वा के मूल जीवन की ओर लौट जाएंगे। विश्राम में प्रवेश करने के बाद ये परमेश्वर और मनुष्य के अपने-अपने जीवन और गंतव्य होंगे। परमेश्वर और शैतान के बीच युद्ध में शैतान की पराजय अपरिहार्य प्रवृत्ति है। इसी तरह, अपना प्रबंधन-कार्य पूरा करने के बाद परमेश्वर का विश्राम में प्रवेश करना और मनुष्य का पूर्ण उद्धार और विश्राम में प्रवेश अपरिहार्य प्रवृत्ति बन गए हैं। मनुष्य के विश्राम का स्थान पृथ्वी है और परमेश्वर के विश्राम का स्थान स्वर्ग में है। जब मनुष्य विश्राम में परमेश्वर की आराधना करते हैं, वे पृथ्वी पर रहेंगे और जब परमेश्वर बाकी मानवता को विश्राम में ले जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें बताया है कि जब उनका प्रबंधन कार्य पूरा हो जाएगा, तो परमेश्वर और इंसान दोनों विश्राम करेंगे। परमेश्वर का विश्राम-स्थल स्वर्ग में है, जबकि इंसानों का विश्राम-स्थल अभी भी धरती पर है। इंसानों के लिये परमेश्वर ने यह सुन्दर मंज़िल बनाई है। यह भी धरती पर पूरा हुआ परमेश्वर का राज्य है। अगर हमें परमेश्वर में सालों से, विश्वास है फिर भी यह देख नहीं पाते, तो क्या इसके मायने, यह नहीं है कि हम सत्य को, या परमेश्वर के वचनों को, नहीं समझते हैं?

"स्वप्न से जागृति" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 1: प्रभु ने काफी पहले हमें वचन दिया है: "क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु ने पहले ही हमारे लिये स्वर्ग में जगह तैयार कर दी है। जब वे वापस आएंगे, तो हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाएँगे। अगर प्रभु वापस आ चुके हैं, तो उनके सारे संत अभी भी धरती पर क्यों हैं? हमें आरोहित क्यों नहीं किया गया है?

अगला: प्रश्न 3: बाइबल कहती है, "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। हम इसकी व्याख्या कैसे करें?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

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