248 परमेश्वर द्वारा लोगों की निंदा का आधार

1

जब ईश्वर देह नहीं बना था,

तब इंसान अदृश्य ईश्वर की आराधना करे या नहीं

तय करता था कि वो ईश-विरोधी है या नहीं।

लेकिन ये पैमाना कभी व्यावहारिक न था,

क्योंकि इंसान ईश्वर को देख न सकता था,

न वो ईश-छवि को जानता था,

न ही उसके काम करने, बोलने के तरीके का उसे पता था।


चूँकि ईश्वर अभी इंसान के सामने प्रकट नहीं हुआ था,

तो ईश्वर में उसका विश्वास धुंधला था।

लेकिन उसने जैसे भी विश्वास किया, मन में ईश्वर को जैसे भी देखा,

ईश्वर ने उसकी निंदा न की, न ज़्यादा उससे माँगा कभी,

क्योंकि इंसान बिलकुल देख न पाता था ईश्वर को।


2

जब ईश्वर देह बन काम करने लोगों के बीच आए,

सभी उसके वचन सुनें, देह में किए गए उसके कर्म देखें,

तो उनकी धारणाएँ झाग बन जाएँ।

जिन्होंने देखा देह में प्रकट ईश्वर को,

अगर वे इच्छा से आज्ञापालन करें, तो वे न होंगे निंदित।

देहधारी ईश्वर के खिलाफ़ हैं जो, वे ईश-विरोधी हैं,

वे मसीह-विरोधी और ईश्वर के खिलाफ़ खड़े शत्रु हैं।


जो धारणाएँ रखें, पर आज्ञापालन भी करें, वे निंदित न होंगे।

ईश्वर इंसान के विचारों के लिए नहीं,

कर्मों, इरादों के लिए उसकी निंदा करे।

अगर ईश्वर इंसान की निंदा करता विचारों, ख़्यालों के लिए,

तो कोई भी ईश्वर के क्रोध से बच न पाता।


3

देहधारी ईश्वर के खिलाफ़ खड़े लोग अवज्ञा के लिए दंड पाएंगे।

उपजे उनका विरोध ईश्वर के बारे में उनकी धारणाओं से।

वे जानबूझकर ईश्वर के किए काम को नष्ट करें।

वे अपनी धारणाओं के कारण ही नहीं

बल्कि बाधा डालने के लिए भी निंदित होंगे।

जो अपनी इच्छा से ईश्वर के काम में बाधा न डालें,

वे न होंगे निंदित पापियों जैसे।

वे आज्ञापालन कर सकें, ख़लल डालने से दूर रहें।

ऐसे लोग न होंगे, ऐसे लोग न होंगे निंदित।


जो धारणाएँ रखें, पर आज्ञापालन भी करें, वे निंदित न होंगे।

ईश्वर इंसान के विचारों के लिए नहीं,

कर्मों, इरादों के लिए उसकी निंदा करे।

अगर ईश्वर इंसान की निंदा करता विचारों, ख़्यालों के लिए,

तो कोई भी ईश्वर के क्रोध से,

तो कोई भी ईश्वर के क्रोध से बच न पाता।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं से रूपांतरित

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