821 अपनी आस्था में परमेश्वर की गवाही कैसे दें
1
ईश-कार्य को देख लेने पर, उसका अनुभव कर लेने पर,
दुखद होगा अंत तक पहुँचना, बिना किए वो काम जो तुम्हें करना चाहिए था।
जब भविष्य में सुसमाचार फैले, तो तुम्हें अपना ज्ञान साझा चाहिए,
दिल में जो पाया उसकी गवाही देनी चाहिए, कोई प्रयास नहीं छोड़ना चाहिए।
किसी सृजित प्राणी को यही हासिल करना चाहिए।
अगर तुम अटल हो ईश्वर का गवाह बनने को,
तो ईश्वर को किससे घृणा, किससे प्रेम है ये तुम्हें समझना होगा।
तुम पर किए उसके काम से तुम्हें उसके स्वभाव को समझना होगा;
उसकी गवाही देने और अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए तुम्हें उसकी इच्छा को,
इंसान से उसकी अपेक्षा को समझना होगा।
2
ईश-कार्य के इस चरण का क्या महत्त्व है?
उसके कार्य के क्या प्रभाव हैं? इसमें से कितना किया जाता इंसान पर?
ईश-कार्य में क्या करना चाहिए इंसान को?
जब तुम लोग साफ़-साफ़ बता पाओगे देहधारी ईश्वर के किए सारे कार्य को,
धरती पर आने से लेकर किए गए उसके हर कार्य को,
तब पूरी होगी गवाही तुम लोगों की।
किसी सृजित प्राणी को यही हासिल करना चाहिए।
अगर तुम अटल हो ईश्वर का गवाह बनने को,
तो ईश्वर को किससे घृणा, किससे प्रेम है ये तुम्हें समझना होगा।
तुम पर किए उसके काम से तुम्हें उसके स्वभाव को समझना होगा;
उसकी गवाही देने और अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए तुम्हें उसकी इच्छा को,
इंसान से उसकी अपेक्षा को समझना होगा।
जब ये पाँच बातें तुम स्पष्ट बता पाओ:
उसके कार्य का महत्त्व और विषय-वस्तु,
उसके कार्य का सार और सिद्धांत, इसके द्वारा निरूपित उसका स्वभाव,
तब साबित होगा इससे, अब तुम
ईश्वर की सच्ची गवाही देने के काबिल हो, और तुम ज्ञानी हो।
बहुत ऊंची नहीं ईश्वर की अपेक्षाएं तुम सबसे,
पूरी कर सकें वो जो सच में उसका अनुसरण करते।
अगर तुम अटल हो ईश्वर का गवाह बनने को,
तो ईश्वर को किससे घृणा, किससे प्रेम है ये तुम्हें समझना होगा।
तुम पर किए उसके काम से तुम्हें उसके स्वभाव को समझना होगा;
उसकी गवाही देने और अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए तुम्हें उसकी इच्छा को,
इंसान से उसकी अपेक्षा को समझना होगा, समझना होगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7) से रूपांतरित