प्रश्न 7: अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार न करें, तो क्या हम वाकई स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा कर सकते हैं? क्या हम वाकई स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं?

उत्तर: यदि हम केवल प्रभु यीशु के अनुग्रह के युग के छुटकारे के कार्य को स्वीकार करें, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय और ताड़ना के कार्य को स्वीकार न करें, तो फिर हम अपने पापों से मुक्त नहीं हो पाएंगे, स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा नहीं कर पाएंगे और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। इसमें कोई शक नहीं है! क्योंकि अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने अपना छुटकारे का कार्य किया था। उस समय लोगों के स्तर को देखते हुए, प्रभु यीशु ने उन्हें केवल पश्चाताप का मार्ग दिया, और लोगों से बस कुछ प्राथमिक सच्चाइयों को समझने और पथ पर चलने के लिये कहा। मिसाल के तौर पर: उन्होंने लोगों से कहा कि वो अपने पापों को स्वीकार करें, पश्चाताप करें और क्रूस धारण करें। उन्होंने लोगों को दीनता, संयम, प्रेम, उपवास और बपतिस्मा वगैरह सिखाया। इन्हीं कुछ सीमित सच्चाइयों को उस ज़माने के लोग समझ और हासिल कर सकते थे। प्रभु यीशु ने उनके सामने कभी भी ऐसी सच्चाई नहीं कही, जिनका संबंध जीवन स्वभाव को बदलने, बचाए जाने, निर्मल होने और पूर्ण होने से था, क्योंकि उस ज़माने में लोगों का स्तर ऐसा नहीं था कि वो उन सच्चाइयों को धारण कर पाते। इंसान को तब तक इंतज़ार करना चाहिये जब तक प्रभु यीशु अंत के दिनों में अपना कार्य करने के लिये लौटकर नहीं आते। वो दूषित इंसान को बचाने और उसे पूर्ण बनाने के लिये वो सारी सच्चाइयां प्रदान करेंगे, जो इंसान को बचाने और दूषित इंसान की ज़रूरतों के लिये परमेश्वर की प्रबंधन योजना के अनुसार हैं। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रभु यीशु के वचन बहुत स्पष्ट हैं। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने दूषित लोगों को उन्हें बचाए जाने के लिये आवश्यक सत्य कभी नहीं बताए। अभी भी बहुत-सी गहरे और ऊंचे सत्य हैं, यानी प्रभु यीशु ने ऐसे बहुत-से सत्य इंसान को नहीं बताए जिनसे इंसान अपने शैतानी स्वभाव से मुक्त हो सकता है और शुद्धता हासिल कर सकता है, और ऐसे सत्य परमेश्वर को जानने के लिये इंसान को जिनका पालन करना ज़रूरी है। इसलिये, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में वो सारे सत्य व्यक्त कर देते हैं, जो इंसान को बचाने के लिये ज़रूरी हैं। जो लोग अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करते हैं, वे उनके न्याय, ताड़ना और निर्मलता के लिये इन सत्य का प्रयोग करते हैं। अंत में इन लोगों को पूर्ण बना दिया जाएगा और परमेश्वर के राज्य में ले जाया जाएगा। और इस तरह से इंसान को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना पूरी हो जाएगी। अगर हम केवल प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को स्वीकार करते हैं, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं करते, तो हम कभी भी न तो सत्य को पा सकेंगे और न ही अपने स्वभाव को बदल पाएंगे। हम कभी भी परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने वाले नहीं बन पाएंगे और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने योग्य नहीं बन पाएंगे।

अंत के दिनों के लोगों को शैतान ने बुरी तरह से दूषित कर दिया है; हम में शैतान का ज़हर भरा है। हमारा नज़रिया, जीने के सिद्धांत, जीवन के प्रति दृष्टिकोण वगैरह, सब सत्य के विरुद्ध और परमेश्वर से बैर रखने वाले हैं। हम सभी बुराई को पूजते हैं और परमेश्वर के दुश्मन बन गए हैं। अगर सभी मनुष्य पूरी तरह से दूषित शैतानी स्वभाव के हैं, और वचनों के ज़रिये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय, ताड़ना, ताप और निर्मलता की अनुभूति नहीं करते है, तो वो शैतान से विद्रोह करके उनके प्रभाव से खुद को आज़ाद कैसे करेंगे? वो परमेश्वर का आदर कैसे कर सकते हैं, बुराई से कैसे दूर रह सकते हैं और परमेश्वर की इच्छा को कैसे पूरा कर सकते हैं? हमने देखा है कि बहुत से लोग प्रभु यीशु में बरसों से भरोसा करते आ रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कि वो लोग पूरी गर्मजोशी से यीशु की गवाही देते हैं वो उद्धारक है और बरसों से मेहनत भी कर रहे हैं, लेकिन वो परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को नहीं जान पाए और न ही उन्हें पूज पाए, जिस कारण वो अभी भी परमेश्वर के कार्य को जाँचते हैं, निंदा करते हैं, नकारते हैं और जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में अपना कार्य करते हैं तो वे परमेश्वर के लौटने को नामंज़ूर कर देते हैं। वे तो अंत के दिनों में मसीह के लौटने पर उन्हें फिर से सूली पर चढ़ा देते हैं। इससे ये पता चलता है कि अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय और ताड़ना के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं तो, हमारे के पापों और शैतानी प्रकृति को कभी भी सुधारा नहीं जा सकेगा। परमेश्वर के प्रति हमारा विरोध हमें बर्बाद कर देगा। इस सच्चाई को कोई नहीं झुठला सकता! हम विश्वासियों में से जो लोग ईमानदारी से अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करेंगे, केवल वे ही लोग जीवन की तरह सत्य को पाएंगे, स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करने वाले बनेंगे, परमेश्वर को जानने वाले बनेंगे और परमेश्वर के साथ उनका तालमेल होगा। वही परमेश्वर की प्रतिज्ञा को साझा करने के काबिल होंगे और उनके राज्य में ले जाए जाएंगे।

"मर्मभेदी यादें" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 6: तुम्हारा कहना है कि अगर लोग पाप-मुक्त और निर्मल होना चाहते हैं, तो उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार करना होगा। वैसे, परमेश्वर अंत के दिनों में लोगों का न्याय और उन्हें निर्मल कैसे करते हैं? इतने सालों से मैं परमेश्वर में विश्वास करता आ रहा हूं, तो मैं सोच रहा था कि कितना अच्छा हो, अगर कभी ऐसा समय आए जब लोग पाप करना ही छोड़ दें। तब मुझे लगा जीवन परेशानियों से मुक्त होगा!

अगला: प्रश्न 8: जो लोग बरसों से प्रभु यीशु में विश्वास करते आए हैं और अपना पूरा जीवन उनके लिये समर्पित कर दिया, अगर वो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वे वाकई स्वर्ग के राज्य में आरोहित नहीं किये जाएंगे?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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