प्रश्न 12: सरकार की प्रचार सामग्री के अनुसार, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को पूर्वोत्तर चीन में किसी झाहो नाम के व्यक्ति ने स्थापित किया था। यह व्यक्ति सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में सबसे बड़ा पादरी है। यह कलीसिया का प्रमुख है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में विश्वास करने वाले दावा करते हैं कि पवित्र आत्मा ने उसे इस काम के लिए चुना है। वे अक्सर पवित्र आत्मा द्वारा चुने गए इस व्यक्ति के उपदेशों को सुनते हैं, और वे कलीसिया के आधिकारिक कार्यों के लिए भी उसका कहा मानते हैं। हालांकि, तुम सभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हो, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम पर प्रार्थना करते हो, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा बताये गए वचन देह में प्रकट होता है को एक प्रामाणिक मत के रूप में मानते हो, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर अपनी सभाओं में संवाद करते हो, किसी भी मामले में, यही एक व्यक्ति है जिसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है। इसलिए हमें इस बात का विश्वास है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया इसी व्यक्ति ने बनाई गयी है। चीनी कम्युनिस्ट सरकार और धार्मिक समुदाय दोनों ही, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को मनुष्य द्वारा बनाये गए एक संगठन के रूप में देखते हैं। और मुझे लगता है यह सच है। क्या तुम्हें यह समझ आ रहा है?

उत्तर: चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का 20 साल से भी ज़्यादा अध्ययन किया है, तो आपका मानना है कि यह उसी अध्ययन का परिणाम है? तो फिर मुझे बताइये, ईसाई धर्म और कैथोलिक धर्म की स्थापना किसने की थी? क्या इनकी स्थापना करने वाले पौलुस या पतरस थे? यहूदी धर्म की स्थापना किसने की? क्या मूसा ने? ये सब बकवास है। आप नास्तिकों ने कभी भी परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है, यहाँ तक कि परमेश्वर के देहधारण करने की सच्चाई को भी नहीं। देहधारी मसीह ने चाहे कितने ही सत्य व्यक्त किये हों, कितना ही कार्य किया हो, और मनुष्य जाति का कितना उद्धार किया हो, क्या आप सभी उन्हें नकारने का प्रयास नहीं करते, उन्हें छिपाते और उनकी निंदा नहीं करते? क्या आपको लगता है कि ईसाई धर्म और कैथोलिक धर्म इंसानों ने बनाए थे? और ये सारे संगठन इंसानों के हैं? यह आपकी बहुत बड़ी बेवकूफी है। अगर प्रभु यीशु कार्य करने के लिए प्रकट नहीं हुए होते, तो प्रभु का कोई भी विश्वासी या अनुयायी पैदा नहीं हुआ होता, और न ही ईसाई धर्म का कोई अस्तित्व होता। क्या यह सब सच नहीं है? एक प्रेरित केवल अपनी प्रतिभा के बल पर कोई कलीसिया कैसे बना सकता है? क्या आप पतरस, यूहन्ना और दूसरे प्रेरितों के नेतृत्व और चरवाही के लिए लोगों की स्वीकृति को मानेंगे और कहेंगे कि ईसाई धर्म प्रेरितों ने बनाया था इसलिए यह एक इंसानी संगठन है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का जन्म पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और उनके कार्यों से हुआ था। क्योंकि लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए कई सत्यों से परमेश्वर की वाणी को सुना और वे परमेश्वर के सामने लौट आए और कलीसिया के रूप में एक होने लगे। कार्य के लिए प्रकट होने पर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने खुद पवित्र आत्मा द्वारा प्रयोग किये गए उस इंसान की गवाही दी, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का मुखिया है। वह व्यवस्था के युग में मूसा और अनुग्रह के युग में प्रेरित की तरह ही वह परमेश्वर द्वारा चुने गए लोगों को सींचने, चरवाही करने और उनकी अगुवाई करने के अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिये परमेश्वर के द्वारा प्रयोग किया गया इंसान है। आपकी कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर के कार्यों और परमेश्वर द्वारा व्यक्त सभी सत्यों को अस्वीकार करती है, यहाँ तक कि इस बात को भी अस्वीकार करती है कि परमेश्वर के चुने गए लोग जिस व्यक्ति पर विश्वास कर रहे हैं वे देहधारी परमेश्वर हैं। क्या यहाँ कोई छुपा उद्देश्य नहीं है? अगर यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रकटन और कार्य नहीं होता, तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया कभी नहीं बनती और कभी भी अस्तित्व में नहीं आती। इस सच को नकारा नहीं जा सकता। चीनी कम्युनिस्ट सरकार अच्छी तरह जानती है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के ईसाई सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम की प्रार्थना करते हैं। वे अपनी सभाओं में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते और उस पर संवाद करते हैं। तो क्यों चीनी कम्युनिस्ट सरकार अब भी इतना सफेद झूठ बोलती है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के परमेश्वर के चुने गए लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में ही विश्वास करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के अनुसार परमेश्वर के चुने गए लोग उस मनुष्य का अनुसरण करते हैं जिसे पवित्र आत्मा ने इस्तेमाल किया है। यह सच्चाई है।

जब मैं आपको सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो अनुच्छेद पढ़ कर सुनाऊंगी तो आप सब कुछ जान जायेंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "जिस कार्य को परमेश्वर द्वारा प्रयुक्त व्यक्ति करता है, वह मसीह या पवित्र आत्मा के कार्य से सहयोग करने के लिए है। परमेश्वर इस मनुष्य को लोगों के बीच से ही तैयार करता है, उसका काम परमेश्वर के चुने हुए लोगों का नेतृत्व करना है। परमेश्वर उसे मानवीय सहयोग का कार्य करने के लिए भी तैयार करता है। ... परमेश्वर द्वारा प्रयुक्त लोग परमेश्वर द्वारा तैयार किए जाते हैं, उनमें एक विशिष्ट योग्यता और मानवता होती है। ऐसे व्यक्ति को पहले ही पवित्र आत्मा द्वारा तैयार और पूर्ण कर दिया जाता है और पूर्णरूप से पवित्र आत्मा द्वारा मार्गदर्शन दिया जाता है, विशेषकर जब उसके कार्य की बात आती है, तो उसे पवित्र आत्मा द्वारा निर्देश और आदेश दिए जाते हैं—परिणामस्वरुप परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई के मार्ग में कोई भटकाव नही आता, क्योंकि परमेश्वर निश्चित रूप से अपने कार्य का उत्तरदायित्व लेता है और हर समय कार्य करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा मनुष्य को इस्तेमाल करने के विषय में)। "दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए" में सातवीं प्रशासनिक आज्ञा स्पष्ट रूप से ये भी कहती है: "कलीसिया के कार्यों और मामलों में, परमेश्वर की आज्ञाकारिता के अलावा, उस व्यक्ति के निर्देशों का पालन करो, जिसे पवित्र आत्मा हर चीज़ में उपयोग करता है। ज़रा-सा भी उल्लंघन अस्वीकार्य है। अपने अनुपालन में एकदम सही रहो और सही या ग़लत का विश्लेषण न करो; क्या सही या ग़लत है, इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं। तुम्हें ख़ुद केवल संपूर्ण आज्ञाकारिता की चिंता करनी चाहिए।" परमेश्वर के चुने हुए लोगों का पवित्र आत्मा द्वारा इस्तेमाल किए गए व्यक्ति के नेतृत्व को स्वीकार करना और उसे सींचना परमेश्वर के वचनों का पालन करना और परमेश्वर का कहना मानना है। जब आपकी चीनी कम्युनिस्ट सरकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का अध्ययन कर रही थी, तो उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के लिए समय क्यों नहीं निकाला? उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दस प्रशासनिक आज्ञाओं को क्यों नहीं देखा? आपने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के परमेश्वर द्वारा चुने हुए व्यक्तियों से यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की ताकि वो आपको सत्य बता देते? आपने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को केवल ऊपरी तौर पर पढ़ा है सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़े बिना और परमेश्वर के कार्यों को समझे बिना, आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को वाकई कैसे समझ सकते हैं?

चीनी कम्युनिस्ट सरकार हमेशा यह क्यों कहती है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया इंसान का बनाया संगठन है? वह देहधारी परमेश्वर के बारे में एक शब्द भी क्यों नहीं बोलती? उसने कभी भी वचन देह में प्रकट होता है किताब के किसी भी वचन का कभी उल्लेख क्यों नहीं किया? दरअसल, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य से चीनी कम्युनिस्ट सरकार सबसे ज्यादा डरती है, क्योंकि कहीं-न-कहीं अन्दर से वो जानती है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सभी विश्वासियों ने वचन देह में प्रकट होता है पुस्तक को पढ़ने के बाद सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया है। तो इसलिए चीनी कम्युनिस्ट सरकार यह कह कर लोगों का ध्यान बंटा रही है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया मनुष्य द्वारा बनाया गया एक संगठन है ताकि अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कार्य करने के लिए प्रकट हुए हैं, इस सच्चाई को दुनिया से छिपाया जा सके, और लोग केवल इस व्यक्ति पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लें। चीनी कम्युनिस्ट सरकार लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने और परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकने के लिए ऐसा कर रही है। यही उसका असल उद्देश्य है। सरकार सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है कि जिस कलीसिया में परमेश्वर कार्य करने के लिए प्रकट हुए हैं वह मनुष्य का एक संगठन है। यह सरकार का परमेश्वर की कलीसिया को दबाने और सताने का एक बहाना है। चीनी कम्युनिस्ट सरकार बहुत चालाक और शातिर है! आपको उनके बीच के अंतर को समझना होगा। आपको अब सरकार की अफवाहों को और नहीं सुनना चाहिए!

"परिवार में रक्तिम पुनर्शिक्षा" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 11: तुम गवाही देते हो कि यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर दोनों ही पहले और अंतिम मसीह हैं। हमारी चीनी कम्युनिस्ट सरकार इस बात को नहीं मानती, "द इंटरनेशनेल" में उसने साफ कहा है, "संसार में कोई उद्धारकर्ता कभी नहीं रहा।" तुम रक्षक मसीह की वापसी की गवाही पर ज़ोर देते हो। तो चीनी कम्युनिस्ट सरकार तुम्हारी निंदा क्यों न करे? हमारे विचार से, यीशु जिनमें ईसाई विश्वास करते हैं, एक आम व्यक्ति थे। यहाँ तक कि उन्हें सूली पर भी चढ़ा दिया गया था। यहूदी तक उन्हें मसीह नहीं मानते हैं। अंत के दिनों के जिन देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की तुम गवाही देते हो वे भी तो एक आम इंसान ही हैं। चीनी कम्युनिस्ट सरकार के दस्तावेज़ों से यह साफ़ पता चलता है कि उनका एक उपनाम और पहला नाम है। यह भी एक सच है। तुम एक आम इंसान के मसीह होने की, परमेश्वर के प्रकटन होने की, गवाही क्यों देते हो? यह सच में अजीब है! इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किसी सत्य और अंत के दिनों में किए गए न्याय के कार्य की गवाही तुम कैसे देते हो, हमारी चीनी कम्युनिस्ट सरकार कभी इस बात को नहीं मानेगी कि यह व्यक्ति परमेश्वर है। मुझे लगता है कि तुम भी ईसाई धर्म, कैथोलिक धर्म, और पूर्वी परंपरावादी के लोगों में से एक हो जो यीशु में विश्वास करते हैं, एक व्यक्ति को परमेश्वर मानना, क्या यह नासमझी नहीं है? परमेश्वर और परमेश्वर का प्रकटन और उनका कार्य दरअसल क्या है? क्या केवल सत्य को व्यक्त करना और परमेश्वर का कार्य करना, सच्चे परमेश्वर का प्रकट होना है? यह हम कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। अगर परमेश्वर चमत्कार और करिश्मा करके चीनी कम्युनिस्ट सरकार और उन सभी को जो उनका विरोध करते है, उनको नष्ट कर दें, तब हम उन्हें एक सच्चे परमेश्वर के रूप में मानेंगे। अगर परमेश्वर बादलों में प्रकट होते हैं, और ऐसे गरजते है कि जो पूरी मनुष्य जाति को भयभीत कर दे, वह परमेश्वर का प्रकटन होता है। तब हमारी चीनी कम्युनिस्ट सरकार उन्हें मानेगी। नहीं तो चीनी कम्युनिस्ट सरकार कभी स्वीकार नहीं करेगी कि परमेश्वर है।

अगला: प्रश्न 13: आप सब परमेश्वर में विश्वास करते हैं; और मैं मार्क्स और लेनिन में। मैंने, तरह-तरह की धार्मिक आस्थाओं पर शोध किया है। अपने कई सालों के शोधकार्य के जरिये, मैंने एक समस्या देखी है। सभी धर्म किसी न किसी, परमेश्वर में विश्वास करते हैं। लेकिन परमेश्वर के तमाम विश्वासियों में से किसी ने भी, परमेश्वर को नहीं देखा है। उनकी आस्था सिर्फ भावनाओं की बुनियाद पर टिकी है। इसलिए, मैं धार्मिक आस्था के बारे में, इस नतीजे पर पहुंचा हूँ: धर्म विशुद्ध रूप से, काल्पनिक और अंधविश्वास है जिसका विज्ञान में, कोई आधार नहीं है। आज के समाज में विज्ञान बहुत विकसित है। गलतियाँ न करें इसके लिए हर चीज़ को, विज्ञान पर आधारित होना चाहिए। कम्युनिस्ट पार्टी इसमें विश्वास करती है। हम परमेश्वर में विश्वास नहीं करते। दी इंटरनेशनेल में लिखा है: "कभी भी दुनिया का उद्धार करनेवाला कोई नहीं हुआ, न देवता, न सम्राट, जिन पर भरोसा किया जा सके। मानवजाति को खुश रहने के लिए, खुद अपने भरोसे रहना होगा!" दी इंटरनेशनेल में साफतौर से लिखा है, "कभी भी दुनिया का उद्धार करनेवाला कोई नहीं हुआ।" हमारे पूर्वज परमेश्वर में जिस वजह से विश्वास करते थे, वह मुख्य रूप से यह है कि उस वक्त वे सूर्य, चंद्रमा और तारे जैसे अजूबों से रूबरू थे, जिनकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं थी। इसलिए उनके दिलो-दिमाग में, अति-प्राकृतिक शक्तियों को लेकर डर और अचरज पैदा हो गया। इस तरह से धर्म की शुरुआती धारणाएं बनीं। यही नहीं, जब इंसान कुदरती तबाहियों और बीमारियों जैसी मुश्किलें हल नहीं कर पाये, तब उन्होंने परमेश्वर को आदर देकर आध्यात्मिक सहूलियत खोजी। यह है धर्म का उद्भव। हम देख सकते हैं कि यह तार्किक, या वैज्ञानिक नहीं था। आजकल हम ज़्यादा विकसित हैं विज्ञान ने बड़ी तरक्की की है। उड़ान और अंतरिक्ष उद्योग, बायोटेक्नॉलॉजी, जेनेटिक इंजिनियरिंग, और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में, मानवजाति ने बहुत तरक्की की है। पहले हम नहीं समझते थे और हमारे पास समस्याएँ हल करने के तरीके नहीं थे। लेकिन अब हम हर चीज़ को विज्ञान के जरिये समझा सकते हैं, और हल के लिए हम विज्ञान पर भरोसा करते हैं। विज्ञान और टेक्नॉलॉजी के इस युग में, परमेश्वर में विश्वास करना, क्या यह अज्ञानी होना, नहीं है? क्या आपको नहीं लगता आप पीछे छूट जाएंगे? हम सिर्फ विज्ञान में विश्वास कर सकते हैं, बस।

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