282 परमेश्वर में आस्था की उक्तियाँ
1
ईश्वर के वचनों को हर रोज़ पढ़ना
ईश्वर में आस्था का आधार है।
ईश्वर से प्रार्थना और आत्म-चिंतन करना
हर रोज़ का ज़रूरी अभ्यास है।
आस्था का केंद्र-बिंदु सत्य का अभ्यास
और तुम्हारे कामों में सिद्धांतों का होना है।
ईश्वर में विश्वास के लिए जो विवेक होना चाहिए,
वो है ईश-आदेश को पूरा करने के कर्तव्य में वफ़ादार होना।
जब तुममें प्रेम है ईश्वर के लिए,
वही सच्ची आस्था है।
प्रेम करना ईश्वर से तुम्हें ईमानदार और नेक बनाता है।
अगर तुम ईश्वर से प्रेम करते रहो,
ईश्वर के लिए जीते रहो,
तो नहीं होगा तुम्हें कभी मलाल।
जो ईश्वर से प्रेम करते हैं
वो गवाही दे के उसकी,
उन्नत कर सकते हैं उसे।
ईश्वर से प्रेम करने से ज़्यादा सार्थक,
और ज़्यादा धन्य कुछ भी नहीं।
यही सच है, यही सच है।
2
ईश्वर के काम का पालन करना,
सत्य पर चलना ही उद्धार पाने का मार्ग है।
उसके व्यवहार और न्याय को स्वीकारना
ईश्वर में आस्था का शुरुआती सबक है।
सत्य पर चलना और ईमानदार होना यही
परम आवश्यक हकीकत है।
सच के पालन को जीवन का लक्ष्य बना लो,
ईश्वर में आस्था के अभ्यास का यही सर्वोच्च सिद्धांत है।
जब तुममें प्रेम है ईश्वर के लिए,
वही सच्ची आस्था है।
प्रेम करना ईश्वर से तुम्हें ईमानदार और नेक बनाता है।
अगर तुम ईश्वर से प्रेम करते रहो,
ईश्वर के लिए जीते रहो,
तो नहीं होगा तुम्हें कभी मलाल।
जो ईश्वर से प्रेम करते हैं
वो गवाही दे के उसकी,
उन्नत कर सकते हैं उसे।
ईश्वर से प्रेम करने से ज़्यादा सार्थक,
और ज़्यादा धन्य कुछ भी नहीं।
यही सच है, यही सच है।
3
इंसानों का अनुसरण या उन्हें पूजना
ईश्वर-आस्था में बड़ी नाकामी है।
ईश्वर में आस्था रखो तो, याद रखो,
उसे धोखा न दो, विरोध न करो।
उसका भय मानो, बुराई से दूर रहो,
आजीवन आस्था ईश्वर में रखने का यही तरीका है।
ईश्वर का ज्ञान लेना, उसकी गवाही देना
ईश्वर में आस्था का परम लक्ष्य है।
जब तुममें प्रेम है ईश्वर के लिए,
वही सच्ची आस्था है।
प्रेम करना ईश्वर से तुम्हें ईमानदार और नेक बनाता है।
अगर तुम ईश्वर से प्रेम करते रहो,
ईश्वर के लिए जीते रहो,
तो नहीं होगा तुम्हें कभी मलाल।
जो ईश्वर से प्रेम करते हैं
वो गवाही दे के उसकी,
उन्नत कर सकते हैं उसे।
ईश्वर से प्रेम करने से ज़्यादा सार्थक,
और ज़्यादा धन्य कुछ भी नहीं।
यही सच है, यही सच है।