मद तेरह : वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं

I. मसीह-विरोधी लोगों के दिलों को नियंत्रित करते हैं

आओ, आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों से संबंधित तेरहवीं मद के बारे में संगति करें—वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं। मसीह-विरोधियों की कई विभिन्न अभिव्यक्तियों को देखते हुए, इनमें से हर एक मद उनके स्वभाव और सार को छूती है, जो सत्य से विमुख, क्रूर और दुष्ट हैं; तेरहवीं मद भी इसका अपवाद नहीं है। “वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं”—इस अभिव्यक्ति के आधार पर तुम देख सकते हो कि मसीह-विरोधी न केवल महत्वाकांक्षी होते हैं, बल्कि लालची भी होते हैं; वे अपने दिलों में बहुत सारी जरूरतें पाले रखते हैं। क्या ये जरूरतें जायज हैं? (नहीं, वे जायज नहीं हैं।) क्या लोगों के दिलों को नियंत्रित करना कोई सकारात्मक चीज है? जाहिर है, “नियंत्रण” शब्द से कोई भी देख सकता है कि यह कोई सकारात्मक चीज नहीं है। यह किस संदर्भ में सकारात्मक नहीं है? किसी पर नियंत्रण रखना गलत क्यों होता है? क्या तुम लोग अन्य लोगों के दिलों को नियंत्रित करना चाहते हो? (नहीं, हम नहीं चाहते।) भले ही तुम ऐसा नहीं करना चाहते, फिर भी ऐसे समय आएँगे जब तुम उस तरह से कार्य करने से खुद को रोक नहीं पाओगे। इसे ही “स्वभाव” कहा जाता है; इसे ही “सार” कहा जाता है। मसीह-विरोधियों का लोगों के दिलों को नियंत्रित करना कोई वैध मानवीय आवश्यकता नहीं है, न ही यह उचित और तर्कसंगत है; यह नकारात्मक चीज है। “लोगों के दिलों को नियंत्रित” करने का क्या अर्थ है? लोगों के दिलों को नियंत्रित करना अमूर्त नहीं है; बल्कि यह ऐसी चीज है जो विशिष्ट तरीकों, आचरण और भाषा के साथ-साथ विशिष्ट विचारों, दृष्टिकोणों, इरादों और उद्देश्यों के साथ काफी ठोस और विशिष्ट होती है। ऐसा होने पर, लोगों के दिलों को नियंत्रित करने वाले मसीह-विरोधियों की ठोस अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं, और इस नियंत्रण को विशेष रूप से कैसे परिभाषित किया जाता है? (दूसरों का अनुमोदन और सम्मान जीतने के लिए, और दूसरों को गुमराह करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बाहरी पीड़ा सहने और कीमत चुकाने जैसे दिखावों का उपयोग करना।) मसीह-विरोधी लोगों का समर्थन जीतने के लिए विशिष्ट प्रकार के आचरण और अभिव्यक्तियों का उपयोग करते हैं, जिससे वे लोगों के दिलों में जगह हासिल करते हैं, और लोगों से अपना सम्मान करवाते हैं। जब मसीह-विरोधी दूसरों का सम्मान पा लेते हैं, तो प्रकृति से ही इसका परिणाम लोगों को गुमराह करने वाला होता है। लेकिन मसीह-विरोधियों के दिलों में, दूसरों को गुमराह करने के लिए इन तरीकों का उपयोग करना सचमुच उनकी व्यक्तिपरक इच्छा नहीं होती; वे जो चाहते हैं वह है सम्मानित होना—यही उनका उद्देश्य होता है। क्या और भी कुछ है? (मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और उन्हें अपने जाल में फँसाने के लिए छोटे-छोटे एहसानों का प्रयोग करते हैं, और वे दूसरों से अपना सम्मान और प्रशंसा करवाने, अपने आदेशों का पालन करवाने, और लोगों को राजी करके उन पर नियंत्रण पाने के अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अपनी क्षमताओं और गुणों का प्रदर्शन करते हैं।) यह एक पहलू है। (मसीह-विरोधी आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं। जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो वे इसे समझने में विफल रहते हैं, फिर भी वे समझने और इसका पालन करने में सक्षम होने का दिखावा करते हैं, ताकि दूसरों को लगे कि वे उत्सुकतापूर्वक सत्य का अनुसरण कर रहे हैं और उन्हें काफी आध्यात्मिक समझ है। वे खुद को ऐसे लोग होने का स्वांग रचते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उसे समझते हैं, ताकि वे दूसरे लोगों से अपना सम्मान करवाने और अपना आदर करवाने का परिणाम हासिल कर सकें।) यह एक और पहलू है। मसीह-विरोधी हमेशा दूसरों को यह दिखाना चाहते हैं कि वे कितने आध्यात्मिक हैं, और वे सत्य का अनुसरण करने और उसके प्रति समर्पित होने में सक्षम हैं। वास्तव में, उन्हें थोड़ी-सी भी समझ नहीं होती, लेकिन फिर भी वे दूसरों से अपना सम्मान और आदर करवाने के लिए एक आध्यात्मिक व्यक्ति का मुखौटा ओढ़े रखते हैं। वे लोगों के दिलों को नियंत्रित करने के लिए ऐसे तरीकों का उपयोग करते हैं। क्या और भी कुछ है? (मसीह-विरोधी दिखावे और खुद को स्थापित करने के लिए शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बोलते हैं, ताकि दूसरे लोग सोचें कि वे सत्य को समझते हैं और उनके पास आध्यात्मिक कद है, और वे उनका सम्मान करें, उनकी आराधना करें और उनकी बात सुनें। इन तरीकों से वे लोगों को नियंत्रित करने लगते हैं।) यह एक ठोस अभिव्यक्ति है, लेकिन यह कहना कि “वे शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बोलते हैं” पूरी तरह से उपयुक्त नहीं है। मसीह-विरोधी इस बात से अनजान होते हैं कि वे शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बोल रहे होते हैं; वे मानते हैं कि वे जिन चीजों के बारे में बात करते हैं वे वास्तविकता हैं, वे उच्च सिद्धांत और उपदेश हैं, और वे इन चीजों का उपयोग लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं। अगर मसीह-विरोधी जानते कि वे शब्द और धर्म-सिद्धांत हैं, तो वे उनके बारे में बोलना बंद कर देते। क्या कुछ और है? (मसीह-विरोधी ढिठाई से सिद्धांतों के खिलाफ जाते हैं, अपने पास मौजूद सत्ता और दिखावटी आध्यात्मिक सिद्धांतों का इस्तेमाल करके धोखे से सभी का भरोसा जीतते हैं और इस तरह लोगों पर नियंत्रण पाने के अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।) (मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों का ऊपरवाले के साथ संपर्क तोड़ देते हैं। वे कार्य व्यवस्थाएँ नहीं करते, वे अपने अधिकार क्षेत्र में सत्ता पर पूरी तरह पकड़ बनाए रखते हैं और वे अपना खुद का राज्य स्थापित करने और लोगों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।) यह भी एक ठोस अभिव्यक्ति है। इसे अधिक उपयुक्त ढंग से कहें, तो वे ऊपरवाले को धोखा देते हैं, अपने से नीचे वालों से चीजें छिपाते हैं और लोगों का समर्थन पाने की कोशिश करते हैं, वे दूसरों को सच्ची स्थिति नहीं देखने देते और लोगों के दिलों को नियंत्रित करने के अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए धोखे से उनका भरोसा हासिल करते हैं। ऊपर वाले को धोखा देने और अपने से नीचे वालों से चीजें छिपाने का उनका उद्देश्य ऊपर वाले और भाई-बहनों को उनके बारे में सच्चाई देखने से रोकना होता है, ताकि ऊपर वाला और भाई-बहन उन पर भरोसा करें, और अंत में भाई-बहन केवल उन्हीं की आराधना करने आएँ; तब वे लोगों के दिलों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल कर चुके होंगे। क्या कुछ और भी है? (मसीह-विरोधी लोगों द्वारा पालन किए जाने के लिए सही प्रतीत होने वाले विनियमों का समूह बनाते हैं, और उनका सत्य को बदलने के लिए उपयोग करते हैं, ताकि लोगों को यह विश्वास हो जाए कि इन नियमों का पालन करना सत्य को व्यवहार में लाने के समान है। इन साधनों से मसीह-विरोधी लोगों के दिलों पर नियंत्रण हासिल करते हैं और उन्हें सामने लाकर उनकी अगुआई करते हैं।) इसे मसीह-विरोधियों द्वारा सत्य-सिद्धांतों की जगह लेने के लिए नियमों और विनियमों का समूह तैयार करने के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए, और खुद को वे आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में, सत्य को समझने वाले व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं, ताकि लोग उनकी बात सुनें, और इस तरह वे लोगों के दिलों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल कर लें। अगर उनके बनाए नियम कलीसियाई जीवन और कर्तव्य-पालन कर रहे लोगों के लिए फायदेमंद होते, और अगर वे सत्य-सिद्धांतों के विपरीत न चलते और परमेश्वर के घर के हितों को कोई नुकसान न पहुँचाते, तो इसमें कुछ भी गलत न होता। कलीसिया में विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ व्यवहार करते समय यह आवश्यक है कि सत्य पर संगति करने के अलावा लोगों को नियंत्रित रखने के लिए कुछ प्रशासनिक नियम स्थापित किए जाएँ। अगर ये प्रशासनिक नियम सत्य-सिद्धांतों के विपरीत न होकर लोगों को लाभ पहुँचाएँ, तो वे सकारात्मक चीजें हैं और यह लोगों के दिलों को नियंत्रित करना नहीं है। अगर इन नियमों को सत्य-सिद्धांतों के रूप में पेश किया जा रहा है, तो समस्या है। तो फिर क्या मसीह-विरोधी ऐसे नियम बनाने में सक्षम हैं, जो लोगों को लाभ पहुँचाएँ और सत्य-सिद्धांतों के अनुरूप हों? (नहीं, वे ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं।) संक्षेप में यह बताने की कोशिश करो कि इसे कैसे कहा जाना चाहिए। (मसीह-विरोधी कुछ ऐसे नियम बनाते हैं जो सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होते और वे आध्यात्मिकता और सत्य की समझ का झूठ गढ़ते हैं ताकि लोग उनकी बात मानें, और लोगों के दिलों को नियंत्रित करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।) यह तुलनात्मक रूप से उपयुक्त है। क्या और भी कुछ है? (मसीह-विरोधियों को अपनी चतुराई और अंतर्दृष्टि दिखाने और लोगों से खुद का सम्मान करवाने के लिए ऊँचे-ऊँचे विचार उगलना पसंद आता है। उदाहरण के लिए, जब सभी लोग किसी मामले पर चर्चा कर चुके होते हैं और तय कर चुके होते हैं कि इसके बारे में क्या करना है, तो मसीह-विरोधी हर किसी के सुझावों का खंडन करने के लिए कुछ सिद्धांत बोलेंगे और हर किसी को अपनी बात सुनने के लिए मजबूर करेंगे, जबकि वास्तव में उनका दृष्टिकोण शायद ही अधिक चतुर हो। फिर जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, चाहे मामला कुछ भी हो, कोई भी सत्य पर संगति करने या सत्य सिद्धांतों को खोजने की हिम्मत नहीं करेगा, और वे महसूस करेंगे कि उन्हें मसीह-विरोधी को ही अंतिम निर्णय सुनाने देना चाहिए, और अंततः मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने के अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएँगे।) मसीह-विरोधी हर मोड़ पर ऊँचे-ऊँचे विचार उगलते रहते हैं, दूसरों के सुझावों का खंडन करते हैं, खुद का दिखावा करते हैं, और दूसरों को विश्वास दिलाते रहते हैं कि वे बहुत चतुर हैं, और इस तरह दूसरे लोगों को गुमराह करने और उन पर नियंत्रण करने के अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं। हमने अतीत में, लोगों को नियंत्रित करने और गुमराह करने वाले मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के बारे में बहुत संगति की है। जब मसीह-विरोधी ऐसा करते हैं, तो इसमें कई तरह की रणनीतियाँ, अभिव्यक्तियाँ और विधियाँ शामिल होती हैं। कभी-कभी वे कार्रवाइयों का उपयोग करते हैं, कभी-कभी वे भाषण का उपयोग करते हैं, और कभी-कभी वे लोगों को गुमराह करने के लिए एक निश्चित प्रकार के दृष्टिकोण का इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर, मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, उसके पीछे लक्ष्य छिपे होते हैं; इनमें से कोई भी कार्रवाई शुद्ध और खुली नहीं होती, और कोई भी सत्य के अनुरूप नहीं होती है। वे जो कुछ भी करते हैं, वह लोगों को गुमराह करने और लोगों से अपना सम्मान करवाने और आराधना करवाने के लिए होता है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह केवल दिखावा होता है—वे सभी अच्छे आचरण और ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें लोग अच्छा मानते हैं—लेकिन वास्तव में, यदि कोई इन चीजों के सार की जाँच करे तो मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोणों के पीछे निहित उद्देश्य और लक्ष्य बिना किसी अपवाद के अकथनीय, सत्य के विपरीत होते हैं और परमेश्वर इनसे अत्यधिक घृणा करता है।

लोगों के दिलों को नियंत्रित करने के उनके दृष्टिकोण को देखें तो मसीह-विरोधियों की मानवता घृणित और स्वार्थी होती है, और उनका स्वभाव सत्य से विमुख, दुष्ट और क्रूर होता है। मसीह-विरोधी अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बिना किसी शर्मिंदगी के सभी प्रकार की घृणित और कपटपूर्ण चालों का उपयोग करते हैं—यह उनकी दुष्ट प्रकृति की विशेषता होती है। इसके अतिरिक्त, इस बात पर ध्यान दिए बिना कि लोग इच्छुक हैं या नहीं, उन्हें बताए बिना या उनकी सहमति प्राप्त किए बिना, वे हमेशा लोगों को नियंत्रित करना, उनके साथ हेरफेर करना और उन पर हावी होना चाहते हैं। लोग अपने दिलों में जो कुछ भी सोचते और चाहते हैं, वे उस सब कुछ को अपनी इस हेरफेर के अधीन लाना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि लोग उनके लिए अपने दिलों में जगह बनाएँ, उनकी आराधना करें और सभी चीजों में उनका आदर करें। वे अपने शब्दों और दृष्टिकोणों से लोगों को घेर लेना और प्रभावित करना चाहते हैं, और अपनी इच्छाओं के आधार पर उनके साथ हेरफेर करना और उन पर नियंत्रण करना चाहते हैं। यह किस तरह का स्वभाव है? क्या यह क्रूरता नहीं है? यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे बाघ तुम्हारी गर्दन को अपने जबड़े में फँसा लेता है—तुम साँस लेने की चाहे जितनी भी कोशिश करो और हिलने-डुलने के लिए संघर्ष करो, तुम अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते, इसके बजाय तुम उसके क्रूर जबड़े की मजबूत, जानलेवा जकड़ में होते हैं। तुम आजाद होने के लिए चाहे जितना छटपटाओ, तुम मुक्त नहीं हो सकते, और भले ही तुम बाघ से उसका जबड़ा ढीला करने की विनती करो, लेकिन यह असंभव है, इस पर चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं होती। मसीह-विरोधियों का स्वभाव बस ऐसा ही होता है। मान लो कि तुम उनसे चर्चा करते हो, और कहते हो, “क्या तुम लोगों को नियंत्रित करने के तरीके ढूँढ़ने की कोशिश बंद नहीं कर सकते? क्या तुम अच्छा व्यवहार नहीं कर सकते और अनुयायी नहीं बन सकते? क्या तुम अच्छा व्यवहार नहीं कर सकते और अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर सकते और अपनी स्थिति पर बने नहीं रह सकते?” क्या वे इस पर सहमत हो पाएँगे? क्या तुम अच्छे आचरण या सत्य के बारे में अपनी समझ का उपयोग करके उन्हें उनके रास्ते पर चलते रहने से रोक पाओगे? क्या कोई ऐसा है जो उनके दृष्टिकोण को बदल सकता है? मसीह-विरोधियों के क्रूर स्वभाव को देखें तो कोई भी उनके विचारों और दृष्टिकोणों को बदलने में सक्षम नहीं होगा, न ही कोई लोगों के दिलों को नियंत्रित करने की उनकी इच्छा को बदल पाएगा। कोई भी उन्हें बदल नहीं सकता, और उनके साथ कोई बातचीत नहीं की जा सकती है—इसे “क्रूरता” कहा जाता है। मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और लोगों को नियंत्रित करने की उनकी इच्छा उनके सार की अभिव्यक्ति होती है। यदि तुमने उन्हें सुधारने के लिए अच्छे आचरण का उपयोग किया, तो क्या इससे काम चलेगा? यदि तुमने उनकी मदद और समर्थन करने के लिए काट-छाँट, न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने के अपने व्यावहारिक अनुभव का उपयोग किया—तो क्या वे बदल पाएँगे? वे जो कर रहे हैं क्या उसे रोक देंगे? (नहीं, वे नहीं रोकेंगे।) क्या तुम लोग पहले इस तरह के व्यक्ति से मिले हो? (हाँ। इस तरह के व्यक्ति के मामले में, चाहे वे कहीं भी अपने कर्तव्य करें, और भले ही वे कभी-कभार असफल हो जाएँ और ठोकर खाएँ, या यहाँ तक कि बीमारी के अनुशासन से भी गुजरें, लेकिन हैसियत का अनुसरण करने की उनकी इच्छा को बदला नहीं जा सकता। वे जहाँ भी जाते हैं, वे हैसियत और सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं।) यदि स्थान या समूह का परिवर्तन उन्हें नहीं बदल पाता, तो उनके बड़े होने तक प्रतीक्षा करने के बारे में क्या खयाल है—क्या तब वे थोड़े बदल जाएँगे? क्या वे सत्ता और अधिकार के अपने अनुसरण को थोड़ा त्याग देंगे, क्या यह थोड़ा कमजोर हो जाएगा? (नहीं। इसका उम्र से कोई लेना-देना नहीं है; उनके इस स्वभाव को नहीं बदला जा सकता।) एक क्रूर स्वभाव मसीह-विरोधियों पर शासन और नियंत्रण करता है, इसलिए वे नहीं बदल सकते। ऐसा लगता है कि मसीह-विरोधियों का क्रूर स्वभाव कुछ ऐसी चीज है जिसे कई लोगों ने खुद एहसास किया है और देखा है। मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों के दिलों को नियंत्रित करना एक वास्तविकता है और तथ्यात्मक साक्ष्य इसका समर्थन करते हैं—यह काफी गंभीर मामला है। इस तरह के लोग, लोगों के दिलों को नियंत्रित करने के मामले को भूलने या उसे अलग रखने में असमर्थ होते हैं। मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार ऐसा ही होता है। व्यक्तिपरक दृष्टिकोण से, वे इसे अलग नहीं कर सकते; वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण से, कोई भी उन्हें बदलने में सक्षम नहीं होता—वे पूरी तरह से मसीह-विरोधी होते हैं। मुझे बताओ, क्या कोई मसीह-विरोधी है जो निष्कासित होने के बाद और भाई-बहनों की संगति में न रहने के बाद दूसरों के दिलों को नियंत्रित करने की इच्छा खो देता है? क्या अपने परिवेश या भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन से मसीह-विरोधी बदल जाएँगे? (नहीं, वे नहीं बदलेंगे।) वे समय और स्थान में परिवर्तन के साथ नहीं बदलते—यह उनके प्रकृति सार द्वारा निर्धारित होता है। लोगों के दिलों को नियंत्रित करने में मसीह-विरोधी वास्तव में लोगों के बीच सत्ता का प्रयोग करने की कोशिश कर रहे होते हैं—अधिकार पाने, निर्णय लेने और लोगों को नियंत्रित करने और लोगों के दिलों में हेरफेर करने की सत्ता—यही वह सत्ता है जिसे वे हासिल करने के इच्छुक हैं। लोगों के दिलों को नियंत्रित करने के लिए, मसीह-विरोधी लोगों से अपना सम्मान करवाने, लोगों को धोखा देने और उन्हें गुमराह करने, लोगों को झूठे दिखावे के साथ पेश करने के लिए सभी तरह के तरीकों और साधनों का उपयोग करेंगे, और यहाँ तक कि अपने भ्रष्ट स्वभावों और चरित्र को ढकने के लिए निश्चित तरीकों और साधनों का उपयोग करेंगे, और लोगों को अपने सार को समझने या देखने से रोकेंगे जो सत्य से विमुख है और मसीह-विरोधियों का है। बाहरी तौर पर, वे खुद को आध्यात्मिक और पूर्ण लोगों के रूप में पेश करते हैं, जिनमें कोई दोष या खोट नहीं है या जिनमें भ्रष्ट स्वभाव का नामो-निशान भी नहीं है, और इस तरह वे दूसरों से अपना सम्मान, आदर, प्रशंसा, आराधना करवाने और यहाँ तक कि अपने ऊपर भरोसा दिलाने के अपने लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं। सार रूप में, उनका इन लक्ष्यों तक पहुँचना, लोगों के दिलों को नियंत्रित करने का ही नतीजा होता है। मसीह-विरोधियों के सभी स्वभावों और अभिव्यक्तियों के बारे में हमारी संगति में, मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों के दिलों को नियंत्रित करना और सत्ता और लाभ के लिए हाथापाई करना इस चर्चा का बड़ा हिस्सा रहा है। चूँकि हम पहले ही इस विषय पर बहुत सारी संगति कर चुके हैं, तो इसे आज के लिए यहीं छोड़ देते हैं।

II. मसीह-विरोधी कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करते हैं

आज हम जिस मुख्य बिंदु पर चर्चा करेंगे, वह यह है कि लोगों के दिलों को नियंत्रित करने की कोशिश करने और सत्ता प्राप्त करने की अपनी महत्वाकांक्षा और इच्छा के अलावा मसीह-विरोधियों की एक और घातक अभिव्यक्ति भी होती है। वे कलीसिया के वित्त से संबंधित मामलों में भी बड़ी इच्छा दिखाते हैं, एक ऐसी इच्छा जिसे लालच भी कहा जा सकता है। अपने रुतबे से प्रेम के अलावा, मसीह-विरोधियों का वित्त से भी विशेष प्रेम होता है। वित्त में उनकी रुचि और आनंद प्रचुर और निरंतर बने रहते हैं; हम इसे कलीसिया के वित्त को मसीह-विरोधियों के द्वारा नियंत्रित किए जाने के रूप में परिभाषित करते हैं। कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने की कोशिश करने वाले मसीह-विरोधी और लोगों के दिलों को नियंत्रित करने की कोशिश करने वाले मसीह-विरोधी एक ही होते हैं—दोनों ही समान रूप से अवैध और अनुचित प्रयत्न हैं। स्पष्ट रूप से यह अपमानजनक बात है। लोगों के दिलों को नियंत्रित करने की महत्वाकांक्षा और इच्छा रखना पहले से ही काफी घृणित बात है, यह पहले से ही बेहद अपमानजनक चीज है, फिर मसीह-विरोधी कलीसिया के वित्त को भी नियंत्रित करना चाहते हैं—यह उनके साथ होने वाली एक और भी घृणित बात है। तो फिर जब मसीह-विरोधी कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं तो इसकी ठोस अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं? क्या यह तब की तुलना में अधिक आसानी से पहचानने लायक होता है जब वे लोगों के दिलों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं? जब मसीह-विरोधी लोगों के दिलों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे होते हैं तो उनके द्वारा अपनाए जाने वाले कुछ दृष्टिकोणों और स्वभावों को लोग पहचान सकते हैं। लेकिन अगर वे बहुत ही गुप्त और धूर्त हैं, और उनके पीछे कुछ कथन, रणनीतियाँ या शैतानी चालें हैं जिन्हें मसीह-विरोधी ऊपर से प्रकट नहीं करते, बल्कि केवल अपने निजी विचारों में सोचते हैं तो ये चीजें आसानी से पहचान में नहीं आएँगी। हालाँकि, कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने की कोशिश में कुछ ठोस अभिव्यक्तियाँ और दृष्टिकोण होने चाहिए। क्या तुम लोगों को इन दृष्टिकोणों को पहचानना आसान लगता है? जब तुम लोगों ने इन चीजों को अपनी आँखों से देखा है और अपने कानों से इनके बारे में सुना है, तो क्या तुम लोग पहचान सकते हो कि ये मसीह-विरोधियों की हरकतें हैं? (हाँ, यदि वे स्पष्ट व्यवहार हैं तो पहचान सकते हैं। उदाहरण के लिए, मसीह-विरोधी इस तरह की चीजों के बारे में पूछताछ करेंगे कि चढ़ावे को सुरक्षित रखने का प्रभारी कौन है।) यह आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि वित्त एक संवेदनशील मामला है, और अधिकांश लोग उसके बारे में पूछताछ नहीं करेंगे, जब तक कि वे वित्त को लेकर साजिश करने वाले लालची लोग न हों, उस स्थिति में वे इस तरह की जानकारी में रुचि लेंगे और पूछताछ करेंगे। तो आओ, हम इस बारे में संगति करते हैं कि कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने की कोशिश करने वाले मसीह-विरोधी लोगों की ठोस अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं।

जब कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने वाले मसीह-विरोधियों के विषय की बात आती है तो अधिकांश लोग इसे अपने मन में कलीसिया की संपत्ति के साथ धोखाधड़ी या संपत्ति के दुरुपयोग के उन उदाहरणों से जोड़ेंगे जो उन्होंने अतीत में देखे हैं, है न? या शायद कुछ लोग होंगे जो युवा होने या कुछ समय से ही परमेश्वर पर विश्वास करने के कारण इन चीजों के बारे में बहुत चिंतित नहीं होंगे और इनके बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचेंगे। तो चलो, हम इस बारे में विस्तार से संगति करते हैं ताकि तुम लोग कलीसिया के वित्त से संबंधित कुछ मुद्दों, नियमों और वर्जनाओं को अच्छी तरह समझ सको। कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं, “मैंने कलीसिया के वित्त के मामलों में कभी रुचि नहीं ली या उनके बारे में पूछताछ नहीं की। मैं उस तरह का लालच नहीं पालता। इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है, और बल्कि यह कलीसिया में एक संवेदनशील विषय होता है, इसलिए मुझे इसके बारे में जानने या न जानने से कोई फर्क नहीं पड़ता।” क्या यह दृष्टिकोण सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) कैसे? चाहे तुम लोग जो भी सोचो, आज हम जिस विषय पर संगति कर रहे हैं, वह मसीह-विरोधियों के स्वभाव के बारे में है, और मसीह-विरोधियों के स्वभाव की छानबीन और गहन-विश्लेषण करने के दृष्टिकोण से, तुम लोगों में से प्रत्येक के लिए यह सब समझना और इसे स्पष्ट रूप से समझना लाभकर होगा। हम इस मामले का उपयोग मसीह-विरोधियों के स्वभाव का गहन-विश्लेषण करने के लिए करेंगे, तो आओ सबसे पहले इस बात पर संगति करें कि मसीह-विरोधी कलीसिया की संपत्ति के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, उनके मन में वास्तव में कलीसिया की संपत्ति का क्या अर्थ होता है और यह किसकी होती है, साथ ही मसीह-विरोधी अपने निजी विचारों में इस संपत्ति को कैसे देखते हैं और इसे कैसे आवंटित करते हैं। सबसे पहले, मसीह-विरोधी कलीसिया के भाई-बहनों द्वारा भेंट किए जाने वाले धन और विभिन्न वस्तुओं को कैसे परिभाषित करते हैं? उनके चरित्र को देखें तो मसीह-विरोधी लालची होते हैं, और उनका लालच बहुत अधिक होता है, इसलिए वे इस संपत्ति के प्रति उदासीन नहीं होंगे। बल्कि वे इसमें बहुत रुचि लेंगे, यह जाँचने और पता लगाने पर सावधानीपूर्वक ध्यान देंगे कि कलीसिया की संपत्ति कितनी है, इसकी देखभाल का प्रभार किसके पास है, इसे कहाँ रखा जा रहा है, और इसके बारे में कितने लोग जानते हैं। जब कलीसिया के वित्त के बारे में मूलभूत जानकारी की बात आती है तो मसीह-विरोधी पहले इसमें सबसे अधिक रुचि दिखाते हैं, इस पर अपना विशेष ध्यान देते हैं, पूछताछ करते हैं, और सबसे पूछते हैं, यह जानकारी हासिल करने की पूरी क्षमता से कोशिश करते हैं। अगर उनमें कोई लालच नहीं होता और अगर उनके मन में कोई साजिश न पल रही होती तो क्या वे इन चीजों में रुचि रखते? (निश्चित रूप से नहीं।) मसीह-विरोधी सामान्य मानवता वाले लोगों से अलग होते हैं, क्योंकि उनकी चिंता के पीछे एक छिपा हुआ मकसद होता है। उनकी चिंता इस संपत्ति को सुरक्षित रखने के बारे में नहीं होती, इसके बजाय वे इस पर कब्जा करना चाहते हैं या इसे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल करने में सक्षम होना चाहते हैं। इसलिए कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने वाले मसीह-विरोधी लोगों की पहली अभिव्यक्ति कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देना होती है।

क. कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देना

एक बार जब मसीह-विरोधी रुतबा पा लेते हैं तो उनके भीतर एक गलत और बेशर्म विचार गहराई से उभरने लगता है : अगुआ बनने से उन्हें न केवल कलीसिया के वित्त के बारे में जानकारी का अधिकार मिलना चाहिए, बल्कि उसे नियंत्रित करने की पूर्ण शक्ति भी मिलनी चाहिए। कलीसिया के वित्त पर नियंत्रण रखने का उनका उद्देश्य क्या होता है? कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने की शक्ति प्राप्त करना। कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि जब तक वे किसी कलीसिया के प्रभारी हैं, तब तक उनकी निगरानी में भाई-बहनों द्वारा चढ़ाए गए धन और वस्तुएँ सभी उनके प्रबंधन, उपयोग और स्वामित्व के अधीन हों। यह विचार सही है या गलत? जाहिर है, यह गलत है, लेकिन मसीह-विरोधी ऐसा ही सोचते हैं। अगुआ बनने के बाद वे सबसे पहले जो काम करते हैं वह है वित्त के बारे में प्रयास करना और योजनाएँ बनाना। पहले, वे पता लगाते हैं कि वित्त का प्रबंधन कौन कर रहा है, कितने लोग वित्त का प्रबंधन कर रहे हैं, खातों में कितना पैसा है, और क्या वित्त का प्रबंधन करने वाले उनके योग्य दाहिने हाथ या भरोसेमंद गुर्गे हैं। यदि नहीं, तो वे किसी न किसी बहाने से उन्हें जल्दी से हटा कर उनकी जगह अपने गुर्गे रख लेते हैं। क्या वित्तीय प्रबंधन के प्रभारी लोगों को बदलने पर उनका काम पूरा हो जाता है? नहीं, यह इतना सरल नहीं होता। उनकी महत्वाकांक्षाएँ इससे कहीं आगे तक फैली होती हैं; उन्हें कलीसिया की संपत्ति के बारे में आँकड़ों की स्पष्ट समझ लेनी होती है। लोगों को चढ़ावा देने के लिए कहने के अलावा मसीह-विरोधी इस संपत्ति को कैसे सँभालते हैं? जब उन्हें पहनने के लिए कुछ खरीदने की जरूरत पड़ती है तो वे कलीसिया से पैसे ले लेते हैं, और फिर जब वे डॉक्टर के पास जा रहे होते हैं और अगर उनके पास कपड़े नहीं होते तो वे भाई-बहनों के दान किए गए कपड़ों में से कुछ बेहतर कपड़े चुन लेते हैं। और उनका चयन करने के बाद भी उनका काम नहीं बनता; उन्हें हर एक कपड़े को पहनकर देखना होता है, सबसे अच्छे कपड़ों को वे अपने लिए रख लेते हैं, और केवल सबसे घटिया कपड़े जो उन्हें नहीं चाहिए वे कलीसिया के लिए छोड़ देते हैं। संक्षेप में, वे कलीसिया के पैसे का इस्तेमाल अपने भोजन और खर्चों को पूरा करने के लिए करेंगे, यहाँ तक कि 0.2 आरएमबी (रेनमिनबी या चीनी युआन) के यात्रा खर्च के लिए भी वे यह करेंगे, और उनमें से कुछ तो कलीसिया के पैसे का इस्तेमाल विलासिता की वस्तुएँ, स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद, सौंदर्य प्रसाधन और अपने निजी इस्तेमाल के लिए सभी तरह की वस्तुएँ खरीदने के लिए भी करेंगे। जैसे ही मसीह-विरोधी अगुआई के पदों पर पहुँचते हैं, थोड़ा-सा कार्य करने से पहले ही वे कलीसिया की संपत्ति का आनंद लेने के मामले में बहुत सक्रिय हो जाते हैं, और इसे प्राथमिकता देने लगते हैं। इस संपत्ति का आनंद लेने के बाद मसीह-विरोधियों के पूरे आध्यात्मिक दृष्टिकोण और जीवन की गुणवत्ता में व्यापक परिवर्तन हो जाता है और वे पहले से पूरी तरह से बदल जाते हैं। जब भी अवसर मिलता है, वे अपने बाल बनवाएँगे, अपने शरीर की मालिश करवाएँगे, बन-ठन कर रहेंगे, अपनी सेहत का ख्याल रखने वाले काम करेंगे, और अपने लिए टॉनिक सूप बनाएँगे—यहाँ तक कि वे जिन विभिन्न बिजली के उपकरणों का उपयोग करते हैं उन्हें भी उन्नत किया जाएगा। जैसे ही मसीह-विरोधी अगुआ बन जाते हैं, वे कलीसिया में अमीर लोगों पर और उन लोगों पर ध्यान देने लगते हैं जो चढ़ावा देने में सक्षम हैं। ये अमीर लोग तब पैसे बहाते हैं, और जो लोग अक्सर चढ़ावा देते हैं वे कलीसिया के बहुमूल्य सदस्य हो जाते हैं, और मसीह-विरोधियों की नजर में पसंदीदा बन जाते हैं। जब मसीह-विरोधी कलीसिया में प्रवेश करते हैं तो यह वैसा ही होता है जैसे कोई लोमड़ी अंगूर के बगीचे में घुस जाती है—अंगूर का बगीचा बर्बादी के कगार पर पहुँच जाता है। लोमड़ी न केवल अच्छे अंगूर खा जाएगी, बल्कि वह पूरे स्थान को भी बर्बाद कर देगी।

मसीह-विरोधियों के मन में, भाई-बहनों द्वारा चढ़ाया गया पैसा और सामान, जिसे सामूहिक रूप से “भेंट” के रूप में जाना जाता है, यह सभी कलीसिया की “सार्वजनिक” संपत्ति होते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि यह सार्वजनिक संपत्ति सामुदायिक उपयोग के लिए है; बल्कि यह इस तथ्य को संदर्भित करता है कि यह एक सामुदायिक भेंट है जो सभी से मिलती तो है लेकिन सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए इसके उपयोग के अधिकार अगुआओं के पास हैं। मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोण से वे कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं, क्योंकि वे अगुआ हैं, वे शीर्ष पर हैं, और कलीसिया में सब कुछ, विशेष रूप से अच्छी चीजें, उनकी होनी चाहिए, और उनके अधिकार में आनी चाहिए। मसीह विरोधियों का मानना होता है : “यह कहना कि भाई-बहन जो पैसा और सामान चढ़ाते हैं वे परमेश्वर को दिए जा रहे हैं, केवल एक सतही अभिव्यक्ति है। इनमें से कितनी चीजों का उपयोग परमेश्वर कर सकता है? क्या परमेश्वर इन भेंटों को लोगों के साथ साझा करने के लिए स्वर्ग से नीचे आ सकता है? और इसलिए क्या यह लोगों पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि वे तय करें कि इन भेंटों को कैसे खर्च किया जाए, कैसे आवंटित किया जाए और कैसे उन्हें उपयोग में लाया जाए?” कलीसिया की संपत्ति के बारे में मसीह-विरोधी इस तरह का बेशर्मी भरा ख्याल पालते हैं। इससे ज्यादा बेशर्मी क्या है? वे कहते हैं : “स्वर्ग में परमेश्वर उन पैसों और वस्तुओं का आनंद लेने में असमर्थ है जो लोगों ने धरती पर चढ़ाई हैं, तो इन चीजों को आवंटित कर उनका इस्तेमाल कैसे किया जाए? क्या कलीसिया के अगुआओं को उनका उपभोग करने, उपयोग करने और आनंद लेने में मदद नहीं करनी चाहिए? यह स्वर्ग में परमेश्वर द्वारा उनका उपयोग करने के बराबर होगा।” और इसलिए, मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से भाई-बहनों के चढ़ावे को अपनी निजी संपत्ति बना लेते हैं। वे इस बारे में पूरी तरह से स्पष्ट होते हैं कि कौन क्या और कब चढ़ाता है—ये चीजें उन्हें बताई जानी चाहिए और उन्हें पता होनी चाहिए। वे अन्य मामलों के बारे में चिंतित नहीं होते। अपनी सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाए रखने के अलावा उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण एक चीज होती है—और वह है कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करना। यही वह चीज है जो उनके अगुआ होने को सार्थक बनाती है। जिस तरह मसीह-विरोधी कलीसिया की संपत्ति को देखते हैं और उसे सँभालते हैं, क्या कोई पहलू ऐसा है जो सत्य या परमेश्वर की माँगों के अनुरूप है? (नहीं, ऐसा कोई पहलू नहीं है।) बिल्कुल शुरुआत से लेकर आज तक, क्या परमेश्वर ने कभी कहा है कि भाई-बहनों द्वारा उसे दिए गए चढ़ावे को कौन व्यक्ति अपने पास रखेगा या उसका उपयोग करेगा? क्या परमेश्वर ने कभी कहा है कि कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं, प्रेरितों और पैगंबरों को कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने का अधिकार होना चाहिए? क्या परमेश्वर ने कहा है कि कलीसिया की संपत्ति का उपयोग और स्वामित्व उसी के पास होता है जो अगुआ बनता है? (नहीं, उसने ऐसा नहीं कहा है।) तो फिर मसीह-विरोधियों को इस तरह की गलतफहमी क्यों होती है? चूँकि परमेश्वर के वचनों में कलीसिया की संपत्ति के बारे में इस तरह का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं, तो मसीह-विरोधी इसके बारे में यह दृष्टिकोण क्यों रखते हैं? (उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता।) क्या यह इतना ही सरल है? इस संदर्भ में यह कहना कि उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है, केवल खोखले शब्द हैं। ये शब्द मसीह-विरोधियों के स्वभाव के बारे में बताने में विफल हैं। जब मसीह-विरोधी अगुआई के पदों पर नहीं होते तो क्या वे कलीसिया की संपत्ति का लालच करते हैं? (हाँ, वे करते हैं।) तो क्या तुम कह सकते हो कि अगुआ बनने के बाद वे अपना परमेश्वर का भय मानने वाला दिल खो देते हैं? निश्चित रूप से ऐसा नहीं होता कि अगुआ बनने से पहले उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है? क्या कोई ऐसा कह सकता है? (नहीं।) इसलिए, यह व्याख्या सही नहीं लगती। मसीह-विरोधी कलीसिया की संपत्ति का लालच करते हैं : ऐसा क्यों होता है? (उनका स्वभाव दुष्ट होता है।) (वे स्वभाव से लालची होते हैं।) (वे प्रकृति से ही लाभ को सर्वोपरि मानते हैं।) क्या मसीह-विरोधियों का स्वभाव सार यही होता है कि वे लाभ को सर्वोपरि मानते हैं? (नहीं।) यह सिर्फ उनके चरित्र की अभिव्यक्ति है। तो चलो, विश्लेषण करते हैं कि मसीह-विरोधियों का आंतरिक स्वभाव क्या होता है। (यह दुष्ट और क्रूर होता है।) सबसे पहले और सबसे ऊपर यह क्रूर होता है, और फिर दुष्ट होता है। क्रूर का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि वे बलपूर्वक उन चीजों को हड़पने जा रहे हैं जो उनके लिए नहीं हैं या उनकी नहीं हैं, भले ही दूसरे लोग इससे सहमत हों या वे कुछ भी सोचते हों : यह एक क्रूर स्वभाव है। मसीह-विरोधियों का, इन राक्षसों और शैतानों का, जन्मजात प्रकृति सार सभी चीजों के लिए परमेश्वर से होड़ करना है। मसीह-विरोधी कलीसिया के भीतर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उससे लड़ने के अलावा, लोगों द्वारा उसे अर्पित किए गए चढ़ावे को भी छीनने की कोशिश करते हैं। ऊपर से ऐसा प्रतीत होता है कि मसीह-विरोधी लालची हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार होता है। उनका लोगों द्वारा परमेश्वर को अर्पित किए गए धन और वस्तुओं को हथियाने और हड़पने की इच्छा करना—यह अपने सार में, क्रूरता है। उदाहरण के लिए, यह वैसा ही है जैसे तुम एक नई गद्देदार जैकेट खरीदते हो, जो स्टाइलिश और अच्छी गुणवत्ता वाली है, और फिर कोई इसे देखकर कहता है, “तुम्हारी यह गद्देदार जैकेट मेरी वाली से बेहतर है। मैंने जो फटी हुई जैकेट पहनी है उसमें छेद हैं और इसका चलन भी नहीं है। तुम्हारी इतनी अच्छी कैसे है?” और जब वह बोलना समाप्त करता है तो वह जबरदस्ती तुम्हारी गद्देदार जैकेट तुमसे खींच लेता है, और फिर अपनी फटी हुई जैकेट तुम्हें दे देता है। तुम उसके साथ इस लेन-देन से इनकार नहीं कर सकते—वह तुम्हें कष्ट देगा, तुम्हें परेशान करेगा, तुम्हें पीटेगा, और वह तुम्हें मार भी सकता है। क्या तुम उसका विरोध करने की हिम्मत करोगे? तुम उसका विरोध करने की हिम्मत नहीं करोगे, और वह तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तुम्हारा सामान ले जाएगा। तो, इस व्यक्ति का स्वभाव क्या है? यह एक क्रूर स्वभाव है। क्या इसमें और कलीसिया की संपत्ति पर कब्जा करके उसका उपयोग करने वाले मसीह-विरोधियों के स्वभाव में कोई अंतर है? (नहीं, कोई अंतर नहीं है।) संपत्ति को लेकर मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोण के अनुसार, जैसे ही वे अगुआ और “अधिकारी” बन जाते हैं, और कलीसिया की संपत्ति उनके हाथ में आ जाती है, कलीसिया की संपत्ति उनकी हो जाती है। चाहे किसी ने भी चढ़ावा दिया हो, या उन्होंने चढ़ावे के रूप में कुछ भी दिया हो, मसीह-विरोधी इसे अपने लिए कब्जा लेंगे। किसी चीज पर कब्जा करने का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि कलीसिया की संपत्ति—जिसका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए और जिसका कलीसिया के विनियमों के अनुसार आवंटन किया जाना चाहिए—मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में आ जाने के बाद इसका इस्तेमाल करने की एकमात्र शक्ति केवल उनके पास ही होती है। यहाँ तक कि जब कलीसिया के काम के लिए या कलीसिया के कार्यकर्ताओं को इस संपत्ति की जरूरत होती है, तब भी मसीह-विरोधी इसका इस्तेमाल नहीं करने देते। केवल उन्हें ही इसका इस्तेमाल करने की अनुमति होती है। कलीसिया की संपत्ति का इस्तेमाल और आवंटन कैसे किया जाएगा, इस पर अंतिम फैसला मसीह-विरोधियों का होता है; अगर वे तुम्हें इसका इस्तेमाल करने देना चाहते हैं तो तुम इसका इस्तेमाल कर सकते हो, और अगर नहीं करने देना चाहते हैं तो तुम इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। अगर कलीसिया के चढ़ावे के पैसे पर्याप्त नहीं होते और मसीह-विरोधियों के कब्जे में आने के बाद वे पूरी तरह उनके निजी खर्चों में इस्तेमाल हो जाते हैं, तो उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि कलीसिया के काम के लिए कोई पैसा नहीं बचा है। वे कलीसिया के काम या कलीसिया के सामान्य खर्चों पर ध्यान नहीं देते। वे बस इतना चाहते हैं कि इन पैसों को लेकर खुद ही खर्च कर लें, उन्हें अपनी कमाई की तरह समझें। क्या इस तरह से काम करना शर्मनाक नहीं है? (हाँ, है।) अपेक्षाकृत समृद्ध क्षेत्रों में स्थित कुछ कलीसियाओं में मसीह-विरोधी सोचते हैं : “यह जगह काफी अच्छी है। जब खर्चों की बात आती है तो मैं अपनी मर्जी से खर्च कर सकता हूँ और कलीसिया के विनियमों और सिद्धांतों से चिपके रहने की कोई जरूरत नहीं है। मैं जैसे चाहूँ वैसे पैसा खर्च कर सकता हूँ। जब से मैं अगुआ बना हूँ, मैं आखिरकार बिना हिसाब-किताब किए पैसे खर्च करने की जिंदगी का आनंद लेने में सक्षम हो गया हूँ। अगर मुझे किसी चीज पर खर्च करना है तो मुझे बस कहना भर होता है, मुझे इसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होती, और मुझे निश्चित रूप से इस बारे में किसी से बात नहीं करनी पड़ती।” जब कलीसिया की संपत्ति खर्च करने की बात आती है तो मसीह-विरोधी खुद ही सारी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं, वे लापरवाही से काम लेते हैं, और वे पानी की तरह पैसा बहाते हैं। कलीसिया के सिद्धांतों या कार्य व्यवस्थाओं की अवहेलना करने के अलावा, मसीह-विरोधी कलीसिया की संपत्ति के साथ भी बिना किसी सिद्धांत के ऐसा ही व्यवहार करते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि वे सिद्धांतों को नहीं समझते? नहीं, वे कलीसिया की संपत्ति के आवंटन और व्यय को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन वे अपने लालच और इच्छाओं को नियंत्रण में नहीं रख पाते। जब वे बिना किसी रुतबे के साधारण लोग होते हैं, तो वे विनम्र होते हैं और साधारण दैनिक जीवन जीते हैं, लेकिन जैसे ही वे अगुआ बनते हैं, वे खुद को बहुत बड़ा समझने लगते हैं। वे इस बारे में विशेष ध्यान रखने लगते हैं कि वे कैसे कपड़े पहनते हैं और क्या खाते हैं—वे अब साधारण भोजन नहीं करते, और वे अपने कपड़े पहनते समय गुणवत्ता और प्रसिद्ध ब्रांडों की तलाश करना सीख जाते हैं। सब कुछ उच्च-स्तरीय होना चाहिए; केवल तभी उन्हें लगता है कि यह उनकी पहचान और रुतबे के अनुकूल है। जैसे ही मसीह-विरोधी अगुआ बनते हैं, ऐसा लगता है जैसे भाई-बहनों ने उनसे कर्ज ले रखा है, और उन्हें उनको उपहार देने चाहिए। अगर कुछ अच्छा होता है तो उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए, और भाई-बहनों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपना पैसा उन पर खर्च करें। मसीह-विरोधी मानते हैं कि अगुआ बनने का मतलब है कि उनके पास कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने की शक्ति होनी चाहिए। न केवल वे इस तरह से सोचते हैं, बल्कि वे इस तरह से व्यवहार भी करते हैं। इसके अलावा वे इसे यहाँ तक ले जाते हैं कि दूसरे लोग घृणा करने लगते हैं। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो मसीह-विरोधियों का चरित्र कैसा है? अगुआ बनने के बाद, और बिना थोड़ा-सा भी कोई काम किए, वे चढ़ावे पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देना चाहते हैं। किस तरह का व्यक्ति ऐसी चीजें करने में सक्षम होता है? केवल एक डाकू, एक तानाशाह, या स्थानीय गुंडा ही ऐसी चीजें कर सकता है।

एक अगुआ है जिसने निम्नलिखित कार्य अंजाम दिया। उसके द्वारा किए गए इस कार्य को समझने का प्रयास करो और उसका गहन-विश्लेषण करो। एक दिन मुझे चीनी हर्बल आहार पूरक का एक पैकेट मिला। मैंने मन ही मन सोचा, “मैंने इसे खरीदने के लिए किसी से नहीं कहा था, तो यह कहाँ से आया है? इसे किसने खरीदा? ऐसा कैसे है कि मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है?” बाद में चारों ओर पूछने के बाद मुझे पता चला कि यह एक अगुआ था, जिसने ऊपरवाले से पूछे बिना इसे खरीदने की जिम्मेदारी ले ली थी। उसने कहा था कि इस वस्तु की ऊपरवाले को आवश्यकता थी। यह सुनकर नीचे के भाई-बहनों ने कहा, “चूँकि ऊपरवाला चाहता है कि इसे खरीदा जाए तो ठीक है, हम इसे खरीदने के लिए कलीसिया के पैसे का उपयोग कर सकते हैं। ऊपरवाला जो भी खरीदना चाहता है वह ठीक है, खासकर जब तक यह परमेश्वर के लिए है—हमें कोई आपत्ति नहीं है।” जहाँ तक खर्च किए गए पैसे की बात है—वह पैसा किसका था? (परमेश्वर का चढ़ावा था।) जब परमेश्वर के चढ़ावे को खर्च करने की बात आई तो वह इतना उदार कैसे हो गया? क्या यह खरीद ऊपरवाले द्वारा अधिकृत की गई थी? मेरी सहमति के बिना उसने चुपके से खुद ही आगे बढ़कर दवा खरीदने का फैसला किया था। और जब वह उसे खरीद रहा था तो वह यह सोचने को भी नहीं रुका, “क्या यह ऊपरवाले के काम आएगा? क्या मैं जो खरीद रहा हूँ वह उपयुक्त भी है? मुझे कितना खरीदना चाहिए? क्या ऊपरवाला मुझे यह पैसा खर्च करने की अनुमति देगा?” क्या उसने ये बातें पूछीं? (नहीं।) बिना कुछ ज्यादा पूछे ही उसने सीधे वह वस्तु खरीद ली। यह उदारता कहाँ से आ रही थी? यह किस तरह की व्यक्तिगत निष्ठा है? उसने परमेश्वर के पैसे का इस्तेमाल परमेश्वर के लिए कुछ खरीदने के लिए किया, इसे अपने लिए परम कर्तव्य मानते हुए उसने जो कुछ भी करना पड़ा वह किया और उस चीज को खरीदने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सभी कठिनाइयों को पार किया। यहाँ परमेश्वर को संतुष्ट करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है : “मैं तुम्हारे माध्यम से गुजरे बिना ही तुम्हें सुखद आश्चर्य दे सकता हूँ। देखो, मेरे पास यह क्षमता है! क्या तुम्हें पता था कि मैं ऐसा करने में सक्षम हूँ? तुम क्या सोचते हो? क्या यह एक सुखद आश्चर्य नहीं है? क्या तुम खुश नहीं हो? क्या तुम्हें सुकून महसूस होता है?” तुमने जो पैसा खर्च किया वह किसका था? क्या वह तुम्हारा था? यदि तुमने जो खर्च किया वह परमेश्वर का पैसा था, तो क्या तुम्हें परमेश्वर की सहमति मिली थी? तुमने परमेश्वर से चुराया हुआ पैसा खर्च किया, और फिर तुमने कहा कि तुम परमेश्वर को एक सुखद आश्चर्य देना चाहते हो : यह किस तरह का तर्क है? और तुम किसके पैसे के साथ इतने उदार हो रहे थे? (जो परमेश्वर के घर का है।) परमेश्वर के घर के पैसे के साथ उदार होना परमेश्वर के चढ़ावे के साथ उदार होना है। क्या यह घृणित नहीं है? (हाँ, है।) तुम लोगों को यह सुनकर घृणा हो सकती है, लेकिन इसमें शामिल व्यक्ति घृणा करना तो दूर, अपने आप से काफी प्रसन्न था। सामान पहुँचाने के बाद उसने खुद ही सोचा : “कोई जवाब क्यों नहीं आया? मैंने तुम्हारे लिए यह अद्भुत कार्य किया है, तो तुमने मुझे धन्यवाद क्यों नहीं दिया? तुम्हें यह सामान कैसा लग रहा है? क्या तुम इससे संतुष्ट हो? क्या तुम चाहते हो कि मैं भविष्य में तुम्हारे लिए कुछ और खरीदूँ? तुम मेरा किस तरह का मूल्यांकन कर रहे हो? अब से, क्या तुम मुझे एक महत्वपूर्ण पद देने जा रहे हो? क्या तुम मेरे किए से संतुष्ट हो? मैंने तुम्हारे पैसे से तुम्हारे लिए कुछ किया—तुम मेरी दयालुता के बारे में क्या सोचते हो? क्या तुम खुश हो? ओह, कृपया कुछ बोलो। कोई जवाब क्यों नहीं आ रहा है?” क्या मुझे उसे जवाब देना चाहिए था? (नहीं।) क्यों नहीं? यह घटना काफी समय पहले हुई थी, लेकिन इस पूरे समय में मुझे इससे घृणा होती रही है—हर बार जब मैं उस चीज को देखता हूँ जो उसने खरीदी थी, तो मुझे घृणा होती है। तुम लोग मुझे बताओ, क्या घृणा होना उचित है? क्या इस घटना का गहन-विश्लेषण करना उचित होगा? (हाँ, होगा।) यह किस तरह का आचरण है? क्या यह वफादारी की अभिव्यक्ति है? दयालुता की? या परमेश्वर का भय मानने वाले दिल की? (यह इनमें से कुछ भी नहीं है।) इसे किसी की चापलूसी करना और उसे चिढ़ाना कहा जाता है, और इसका अर्थ है : “मैं तुम्हारे पैसे से तुम्हारी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ खरीदता हूँ और तुम पर अच्छा प्रभाव छोड़ता हूँ, ताकि तुम मुझे और अनुकूल नजरिए से देखो।” यह अगुआ मेरी खुशी के लिए काम करना चाहता था, मेरी चापलूसी करना चाहता था और मुझे मक्खन लगाना चाहता था, लेकिन अंत में वह असफल हो गया, और उसकी असलियत सामने आ गई। उसने क्या गलतियाँ कीं? सबसे पहले, यह ऐसा कुछ नहीं था जिसे मैंने उसे अपने लिए करने के लिए आदेश दिया था; मैंने उसे ऐसा करने के लिए कोई संदेश नहीं भेजा था। दूसरे, अगर वह अपने दिल में दयालुता के कारण ऐसा करना चाहता था, तो उसे पहले पूछना चाहिए था और आगे बढ़ने से पहले सहमति लेनी चाहिए थी। और, जब वह यह सब कर रहा था, तो क्या उसे उन संबंधित मामलों के बारे में पूछताछ नहीं करनी चाहिए थी जिनके बारे में उसे जानने की जरूरत थी? उदाहरण के लिए, कितनी मात्रा में खरीदना है, कितने पैसे का खरीदना है, किस श्रेणी का सामान खरीदना है, पैसे कैसे खर्च करने हैं—क्या उसे इन चीजों के बारे में पूछताछ नहीं करनी चाहिए थी? इन चीजों के बारे में पूछताछ करना सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना होता। तो, ये पूछताछ करने में उसकी विफलता की प्रकृति क्या है? छोटे स्तर पर, वह खुद को बहुत चतुर समझ रहा था, बड़े स्तर पर, इसे स्वेच्छा से कार्य करना, परमेश्वर के प्रति सम्मान न रखना और लापरवाही से कार्य करना कहा जाता है! मैंने कभी उससे वह वस्तु खरीदने के लिए नहीं कहा, तो वह अच्छे इरादों का दिखावा किसलिए कर रहा था? क्या वह मुसीबत को बुलावा नहीं दे रहा था? इसके अलावा, उसकी सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मसीह-विरोधी संपत्ति को किस तरह देखते हैं, जिस पर हम आज संगति कर रहे हैं और जिसका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं। वह मानता था कि उस कलीसिया के अगुआ के रूप में वह कलीसिया में परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा परमेश्वर को दिए जाने वाले चढ़ावे का आनंद लेने के योग्य था, और उसके पास परमेश्वर को दिए जाने वाले इन चढ़ावों का उपयोग करने और उन्हें अपने पास रखने की शक्ति थी, और उनके संबंध में वह अंतिम निर्णय कर सकता था। उस कलीसिया में उसके पास एक राजा जैसी शक्ति थी और वह स्थानीय तानाशाह बन गया था। उसने सोचा : “मुझे जो चीजें खरीदनी हैं, उनके बारे में तुम्हें सूचित करने या पूछने की आवश्यकता नहीं है, मैं बस तुम्हारी ओर से इसे सँभाल लूँगा। चाहे तुम सहमत हो या नहीं, जब तक मुझे लगता है कि इसे इस तरह से करना अच्छा होगा, और मैं इसे इस तरह से करना चाहता हूँ, तो मैं इसे इसी तरह करूँगा।” वह किस तरह की चीज है? क्या वह मसीह-विरोधी नहीं है? मसीह-विरोधी इतने ही बेशर्म होते हैं। जब इस व्यक्ति को रुतबा दिया गया और वह अगुआ बन गया, तो वह राजा बनना चाहता था, कलीसिया की संपत्ति को जब्त करना चाहता था। उसने सोचा कि वह अकेले ही कलीसिया की संपत्ति के बारे में फैसले लेता है, और उसे अपने कब्जे में लेने और उसका उपयोग करने की शक्ति उसके पास है। उसने यहाँ तक सोचा कि मेरे लिए चीजें खरीदने के बारे में, और कौन-सी चीजें खरीदनी हैं इस बारे में, अंतिम फैसला भी उसका ही है। लेकिन क्या मेरे लिए तुम्हें चीजें खरीदने की जरूरत है? मैं जो भी इस्तेमाल करता हूँ, और जिस तरह से भी इस्तेमाल करता हूँ, क्या मुझे उसमें तुम्हें शामिल करने की जरूरत है? क्या यह तर्क की कमी नहीं है? क्या यह बेशर्म होना नहीं है? क्या तुम भूल गए हो कि तुम कौन हो? क्या यह ठीक वैसा ही नहीं है जैसा कि प्रधान स्वर्गदूत ने पद मिलने के बाद परमेश्वर की बराबरी का दर्जा पाना चाहा था? ऐसा करने वाले व्यक्ति ने कितनी गलतियाँ कीं? पहली यह कि उसने कलीसिया की संपत्ति को इस तरह आवंटित किया जैसे कि वह उसकी अपनी निजी संपत्ति हो; दूसरी यह कि उसने मेरे लिए चीजें खरीदने के बारे में फैसला लेने का काम अपने ऊपर ले लिया; तीसरी यह कि खुद यह फैसला करने के बाद उसने ऊपरवाले को इसकी जानकारी नहीं दी, न ही उससे पूछा और न ही उसे बताया। इनमें से हर एक गलती अपने आप में काफी गंभीर थी। ऐसा लग रहा था कि यह मसीह-विरोधी वहाँ काफी सुचारू रूप से काम कर रहा था। जैसे ही वह आदेश देता, उसके चाकर उसके आदेशों का पालन अच्छी तरह से करते थे। उन्होंने यह पूछने की जहमत भी नहीं उठाई : “हम इस वस्तु को खरीदने के लिए इतना पैसा खर्च कर रहे हैं—क्या परमेश्वर ने इसका आदेश दिया था? क्या इस तरह से पैसे का इस्तेमाल किया जा सकता है? क्या यह उचित होगा? वास्तव में इसका आदेश किसने दिया?” उन चाकरों ने ये बातें भी नहीं पूछीं। क्या उन्होंने कोई जिम्मेदारी ली? क्या उनमें कोई वफादारी थी? नहीं, उनमें कोई वफादारी नहीं थी, और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। यह किसी व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार और बिना किसी सिद्धांत के चढ़ावे का उपयोग करने का एक पुराना उदाहरण है। मेरी स्वीकृति के बिना परमेश्वर के लिए चीजें खरीदने के लिए परमेश्वर के चढ़ावे का इस्तेमाल करना : ऐसा करना एक गंभीर गलती करना है।

यहाँ एक और उदाहरण है, मैं चाहता हूँ कि तुम लोग सुनो कि इन लोगों ने क्या किया और देखो कि क्या यह तुम्हें नागवार लगता है। कलीसिया की सभाओं के दौरान मैं जिस कुर्सी पर बैठा था वह बहुत मुलायम थी, और जब मैं उस पर बैठा तो उसमें काफी धँस गया। मेज भी इतनी ऊँची थी कि मुझे अपनी पीठ सीधी रखनी पड़ती थी, और लंबे समय तक इस तरह बैठने से मैं थक जाता था। इसलिए, मैंने उनसे ऐसी कुर्सी खरीदने के लिए कहा जो थोड़ी ऊँची हो और जिसकी सीट थोड़ी कम मुलायम हो। क्या यह ऐसा काम नहीं है जो करना आसान होना चाहिए? (हाँ, यह आसान है।) यह वास्तव में बहुत ही सरल मामला है। सबसे पहले, उन्हें उस कुर्सी की ऊँचाई मापनी थी जिस पर मैं उस समय बैठा था, और फिर एक ऐसी कुर्सी तलाश करनी थी जो दो इंच या शायद उससे थोड़ी अधिक ऊँची हो, और फिर उन्हें यह जाँचना था कि सीट कितनी मुलायम है, और एक ऐसी कुर्सी तलाश करनी थी जो थोड़ी सख्त हो। सबसे पहले, वे दुकानों में पता कर सकते थे, और अगर उन्हें कुछ उपयुक्त नहीं मिलता तो वे फिर ऑनलाइन खोज सकते थे। क्या यह ऐसी चीज नहीं है जिसका आसानी से समाधान किया जा सकता है? क्या इसमें कोई मुश्किल पेश आती है? किसी चीज को खरीदने के लिए पैसे खर्च करना कोई चुनौती नहीं होती, और इसके अलावा अगर कई लोग एक साथ विचार करते हैं तो उस कार्य का प्रबंधन करना आसान होना चाहिए। तो कुछ समय बाद, मैं उस कलीसिया में एक और सभा में गया, और उनसे पूछा कि क्या वे गए थे और क्या उन्होंने नई कुर्सी खरीदी। उन्होंने कहा, “हमने देखा, लेकिन हमें कुछ भी वास्तव में उपयुक्त नहीं मिला, और हमें नहीं पता था कि तुम्हें किस तरह की कुर्सी चाहिए।” यह सुनकर मुझे झटका लगा। मैंने सोचा, “मुझे तो लगता है, यहाँ कई तरह की दुकानें हैं जिनमें सभी प्रकार की गुणवत्ता वाली चीजें बिकती हैं, इसलिए कुर्सी खरीदना इतना मुश्किल नहीं होना चाहिए। मैं बहुत ज्यादा उम्मीद भी नहीं कर रहा हूँ।” लेकिन खरीद के प्रभारी व्यक्ति ने कहा, “इसे खरीदना आसान नहीं है; तुम जिस ब्योरे के साथ चाहते हो वैसी एक भी कुर्सी बिक्री के लिए नहीं है। हो सके तो तुम पहले से मौजूद किसी कुर्सी से ही काम चला लो।” मैंने मन ही मन सोचा, “ठीक है, अगर तुमने इसे नहीं खरीदा तो कोई बात नहीं, इससे कुछ पैसे ही बचेंगे, तो मैं अभी इसी से काम चला लूँगा।” कुछ समय बीतने के बाद मैं दूसरी जगह गया, जहाँ कई अच्छी कुर्सियाँ थीं, जिन पर बैठना आरामदायक था, और कोई एक नजर में बता सकता था कि वे पुराने जमाने की कुर्सियाँ थीं और अच्छी गुणवत्ता की थीं। इसलिए, मैंने एक तस्वीर ली और उनसे कुर्सी खरीदने के लिए इसे गाइड के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कहा, इसके रंग के बारे में कोई प्राथमिकता नहीं बताई, और मैंने उनसे कहा कि अगर दुकानों में ऐसी कोई कुर्सी नहीं है तो ऑनलाइन देखो। मैंने यह भी बताया कि उन्हें कार्यालयों के लिए सामान आपूर्ति करने वाली जगहों पर जाना चाहिए। बाद में उन्होंने यह उत्तर दिया : “हमने ऑनलाइन खोज की, लेकिन कुछ नहीं मिला। सभी निर्माताओं ने कहा कि यह पुराना मॉडल है, और इन दिनों कोई भी इस शैली की कुर्सियाँ नहीं बनाता, इसलिए हम एक भी नहीं खरीद पाए।” यह सुनकर मुझे एक और झटका लगा और मैंने सोचा, “ये लोग चीजों को सँभालने के मामले में वाकई बहुत खराब हैं, और इन पर वास्तव में भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्हें सिर्फ इतना-सा काम सौंपा गया था, और दो बार उन्होंने कहा कि वे वह नहीं खरीद पाए जो मैं चाहता था, और मुझे मना कर दिया।” मैंने उनसे कहा कि खोजते रहो, और देखो कि क्या किसी अन्य वेबसाइट पर कोई उपलब्ध है। इस बीच प्रतीक्षा करने के दौरान मुझे अचानक कलीसिया के एक भंडार में एक कुर्सी मिल गई। यह कुर्सी जो गुलाबी फूलों की आकृति से ढके फोम के कुशन से सुसज्जित थी, पूरी तरह से तैयार नहीं थी। इसकी पीठ बिल्कुल सीधी थी, हत्थे बिल्कुल सीधे थे, पैर बिल्कुल सीधे थे, और सीट बिल्कुल सीधी थी। कुर्सी का हर हिस्सा सीधा था; इसके सभी कोण समकोण और कोने चौकोर थे। मैंने कहा, “क्या किसी ने यह कुर्सी खुद बनाई है?” एक व्यक्ति ने जल्दी से आगे बढ़कर उत्तर दिया, “क्या तुम्हें कुर्सी की जरूरत नहीं थी? हमने यह तुम्हारे लिए ही बनाई है, और हम तुम्हें इसके बारे में बताने और तुमसे इसे आजमाने के लिए कहने ही वाले थे।” वे बहुत दयालु थे, इसलिए मैंने सोचा : “जरूर, मैं इसे आजमाकर देखूँगा।” मैंने खुद को कुर्सी पर मजबूती से बिठा लिया, मुझे बहुत बेचैनी महसूस हुई, मानो मैं किसी पत्थर पर बैठा हूँ, क्योंकि कुशन में लगा फोम बहुत सख्त था। “कोई बात नहीं,” मेरे बगल में खड़े व्यक्ति ने कहा, “इसे थोड़ा मुलायम बनाया जा सकता है। अभी यह काम पूरा नहीं हुआ है। हम इसे बेहतर बनाएँगे, और तुम इसे फिर से आजमा सकते हो।” इसे फिर से आजमाए मेरी जूती! लकड़ी के छोटे स्टूल पर बैठना उस कुर्सी पर बैठने से बेहतर होता; कम से कम ऐसा तो नहीं लगेगा कि मैं किसी पत्थर पर बैठा हूँ। मैंने कहा, “नहीं, यह नहीं चलेगी। अगर तुम लोग खोज सकते हो तो खोजते रहो। अगर तुम्हें कुछ नहीं मिलता, तो बस इसे भूल जाओ।” इसलिए, मैंने उन्हें खोजते रहने को कहा। कुर्सी बनाने वाले लोगों को शायद समझ नहीं आया। उन्होंने सोचा होगा, “हमने तुम पर बहुत दया दिखाई है, सामग्री, शैली और आकार का चयन किया है, और तुम्हारे लिए तुम्हारे हिसाब से कुर्सी निर्मित की है। तुम इस दयालुता के कार्य की सराहना क्यों नहीं करते? और इसके बजाय तुम कहते हो कि ऐसा लगता है कि तुम पत्थर पर बैठे हो, कि यह सख्त है। तुम इतने नकचढ़े क्यों हो? हम तुम्हारे लिए जो कुछ भी बनाते हैं, तुम्हें बस उसका उपयोग करना चाहिए, कहानी खत्म। लेकिन तुम्हें देखो, इसके बजाय अभी भी कुर्सी खरीदना चाहते हो। हमने तुम्हें कई बार कहा कि तुम जिस शैली की कुर्सी चाहते हो वह कहीं नहीं मिलती, लेकिन तुम आग्रह करते रहते हो कि हम वैसी ही कुर्सी खरीदें। क्या इसमें पैसे खर्च नहीं होंगे? थोड़े पैसे बच जाएँगे तो क्या बुरा है? कुर्सी बनाना बहुत ज्यादा किफायती होता है; सामग्री की ज्यादा कीमत नहीं होती। जो कुछ भी हम खुद बना सकते हैं, उसे खरीदने के बजाय खुद हमें ही बना लेना चाहिए। तुम्हें यह कैसे नहीं पता कि किफायती होने का क्या मतलब है?” तुम लोग मुझे बताओ, क्या मेरे लिए उस कुर्सी का इस्तेमाल करना बेहतर होगा या नहीं? (तुम्हारे लिए इस्तेमाल न करना ही बेहतर होगा।) जब उन्होंने देख लिया कि मैं उनकी बनाई कुर्सी का इस्तेमाल नहीं करूँगा, तो उन्होंने उसे एक तरफ फेंक दिया, और उनमें से किसी ने भी उसका इस्तेमाल नहीं किया। मुझे बताओ, अगर मैंने उसका इस्तेमाल नहीं किया तो क्या मैंने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई? (नहीं, तुमने ऐसा नहीं किया।) अपने इतने वर्षों में मैं कभी भी इतनी सख्त गद्दे वाली कुर्सी पर नहीं बैठा हूँ—यह भी एक अच्छा-खासा अनुभव था। इन लोगों ने मुझ पर ऐसी महान “दया” दिखाई। कुछ समय बाद न जाने किन अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण मेरे लिए असल में एक कुर्सी खरीदी गई, तो लोगों ने आखिरकार मुझ पर कुछ “दया” दिखा ही दी। यह पहली बार था जब मैंने उनसे अपने लिए कुछ खरीदने को कहा था, और उन्होंने सीधे मुझसे यह सुना था, और जिस तरह से उन्होंने इस काम को सँभाला, वह बहुत ही घृणित था। मेरे लिए एक कुर्सी खरीदना बहुत कठिन और कष्टसाध्य रहा, हर चीज उनसे पूछनी पड़ती थी और उनसे चर्चा करनी पड़ती थी, और इसके अलावा मुझे उनके मूड के बारे में भी जागरूक रहना पड़ता था। अगर वे अच्छे मूड में होते तो वे मेरे लिए इसे खरीद पाते, और अगर नहीं होते तो शायद नहीं खरीद पाते, और फिर मैं उसका उपयोग नहीं कर पाता। “तुम आरामदायक कुर्सी का उपयोग करना चाहते हो, लेकिन हमने अभी तक ऐसा नहीं किया है, तो सपने देखते रहो। बस इसे उपयोग कर लो जो बढ़ई ने बनाई है। जब हमारे पास उपयोग करने के लिए आरामदायक कुर्सियाँ होंगी तो तुम भी उसका उपयोग कर पाओगे।” क्या ये लोग बिल्कुल इसी तरह के नहीं हैं? वे किस तरह के लोग हैं? क्या वे नीच चरित्र के लोग नहीं हैं? मैं उनसे कुछ खरीदने के लिए बस कुछ भेंटें खर्च करने को कह रहा था, उन्हें बस अपने हाथ और आँखें हिलानी थीं, लेकिन उनसे यह काम करवाना बहुत मुश्किल था, बहुत तकलीफदेह था। अगर उनसे अपना पैसा खर्च करने के लिए कहा जाता तो क्या होता? शुरुआत में, मैंने यह नहीं कहा था कि किसका पैसा खर्च किया जाएगा—क्या उन्हें लगा था कि मेरा मतलब है कि वे अपना पैसा खर्च करें, और परिणामस्वरूप वे इतने डर गए कि उन्होंने खरीदारी करने से ही इनकार कर दिया? क्या यह एक कारण हो सकता है? जब मैं तुमसे कुछ खरीदने के लिए कह रहा हूँ, तो मैं तुम्हें अपना पैसा खर्च करने के लिए कैसे कह सकता हूँ? अगर कलीसिया के पास पैसे हैं तो जाओ और जाकर खरीदारी करो, और अगर नहीं हैं तो मत करो। किसी भी तरह मैं तुम्हें अपना पैसा खर्च करने के लिए मजबूर नहीं करूँगा। तो फिर उन्हें यह छोटा-सा काम करने के लिए इतना प्रयास क्यों करना पड़ा? इन लोगों में कोई मानवता नहीं है! जब वे कोई काम करने की कोशिश नहीं कर रहे होते और मैं उनसे बातचीत नहीं कर रहा होता हूँ तो ऐसा लगता है कि वे दयालु और समझदार हैं, लेकिन जब वे कोई काम करना शुरू करते हैं तो यह दयालुता और समझ-बूझ गायब हो जाती है। ये लोग भ्रमित हैं! मेरी उनके साथ कैसे बन सकती है?

यहाँ एक और उदाहरण है जो भेंट के विषय से संबंधित है। एक छोटे-से रसोईघर वाली जगह है जिसमें आम इस्तेमाल के लिए खाना पकाने के और खाना खाने के सभी बर्तन रखे हैं, और कभी-कभी सर्दियों में वहाँ के लोगों को फ्लू हो ही जाता है। मैंने उनसे कहा कि वे खाना पकाने के बर्तनों और सभी सार्वजनिक खान-पान के बर्तनों को रोगाणुमुक्त रखने के लिए एक कीटाणुरहित अलमारी या ओजोन कीटाणुनाशक खरीद लो। यह सुरक्षित और स्वच्छ होगा। क्या यह कोई बड़ी माँग थी? (नहीं, यह नहीं थी।) मैंने यह काम किसी को सौंपा और कुछ ही समय बाद मैंने सुना कि एक ओजोन कीटाणुनाशक खरीद लिया गया था। मेरी चिंताएँ दूर हो गईं, और उसके बाद मैंने इस मामले पर और ध्यान नहीं दिया। लेकिन पता चला कि कुछ गड़बड़ हुई थी। इस व्यक्ति ने जो मशीन खरीदी थी, वह आखिरकार ओजोन कीटाणुनाशक नहीं थी, बल्कि पानी सुखाने की मशीन थी। यह एक गलत खरीद थी, और इसके अलावा इसकी गुणवत्ता असाधारण रूप से खराब थी, इसमें रोगाणुमुक्त करने की कोई क्षमता नहीं थी। क्या यह काम सँभालने वाले व्यक्ति को इस बात का पता था? (उसे पता होना चाहिए था।) लेकिन इस बदमाश को शायद पता नहीं था। ऐसा क्यों है? जिस व्यक्ति को मैंने यह काम सौंपा था वह इसे खुद करने नहीं गया था, बल्कि उसने इसे करने के लिए एक बिचौलिया ढूँढ़ लिया था, और इसलिए उसे बिल्कुल पता नहीं था कि कौन-सी वस्तु खरीदी गई थी, या उसकी गुणवत्ता अच्छी थी या खराब। इस मामले को जिस तरह से सँभाला गया, उसके बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या इसे लगन से किया गया था या नहीं? क्या इस व्यक्ति की कोई विश्वसनीयता थी? क्या वह इस योग्य था कि उस पर भरोसा किया जाए? (नहीं, वह नहीं था।) यह किस तरह का व्यक्ति था? क्या इस व्यक्ति में ईमानदारी या मानवता थी? (नहीं।) यह एक भ्रमित व्यक्ति था, एक सरासर बदमाश। और कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इसके तुरंत बाद इस कार्य के प्रभारी व्यक्ति ने विचार करना शुरू किया : “चीजों को रोगाणुमुक्त करने के लिए ओजोन कीटाणुनाशक का उपयोग करना बहुत अच्छा है। चूँकि हमारे भोजन कक्षों का उपयोग बहुत से लोग करते हैं, इसलिए शायद हमें वहाँ के लिए भी ओजोन कीटाणुनाशक खरीदना चाहिए। तुमने एक खरीदा है, इसलिए हम भी कुछ खरीदेंगे। तुमने अपने छोटे रसोईघर के लिए छोटा लिया है, तो हम अपने बड़े भोजन कक्ष के लिए एक बड़ा लेंगे।” एक बार जब उसके मन में यह विचार आया तो उसने कई दूसरे बदमाशों के साथ इस पर चर्चा की, और फिर यह तय कर लिया गया। और पता चला कि जब वे ओजोन कीटाणुनाशक खरीद लिए गए तो उसके बाद भाई-बहनों ने कहा कि चूँकि हर कोई मेज पर अपने स्वयं के बर्तनों का उपयोग करता है और कोई किसी भी बर्तन को साझा नहीं करता, तो उन्हें रोगाणुमुक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है, और रोगाणुमुक्त करना अनावश्यक होगा। अंत में, मशीनें बेकार पड़ी रहीं, और अब भी उनमें से कुछ जैसे आई थी वैसे ही बँधी हुई भंडारगृह में रखी हैं। इस मामले को जिस तरह से सँभाला गया, उसके बारे में तुम लोग क्या सोचते हो? क्या इसे तर्कसंगत तरीके से किया गया था? क्या यह किसी ऐसे व्यक्ति का मामला नहीं था जिसके पास समय बहुत था लेकिन करने के लिए कुछ भी नहीं था, जो पैसे खर्च करने के लिए उल्टे-सीधे तरीके खोज रहा था? कुछ लोगों ने यह सोचकर कि इनकी खरीद करने का आदेश ऊपरवाले से आया था, यहाँ तक कहा, “बड़बड़ाओ मत! हमें इसे परमेश्वर से स्वीकार कर लेना चाहिए। परमेश्वर लोगों से इतना प्यार करता है कि वह हमारे लिए ऐसी चीजें भी खरीद देता है जिनका हमारे लिए कोई उपयोग नहीं है। वह हम पर बहुत बड़ी रकम खर्च करने को तैयार है। परमेश्वर हम पर बहुत मेहरबान है!” लेकिन अब वे जानते हैं कि ये खरीद बदमाशों के एक समूह की गुप्त कारगुजारियों का नतीजा थी। उन्होंने इस तरह से भेंटों को बरबाद कर दिया, किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली, किसी ने चीजों की जाँच नहीं की, और किसी ने भी यह नहीं देखा कि ये खरीद उचित थीं भी या नहीं, या किसी ने भी खरीद के बाद इनकी रिपोर्ट नहीं की। इस व्यक्ति ने ये चीजें किस आधार पर खरीदीं? इस आधार पर कि मैंने उसे छोटे रसोईघर के लिए एक कीटाणुरहित अलमारी खरीदने के लिए कहा था। क्या मैंने उसे सभी भोजन कक्षों के लिए ऐसी मशीनें खरीदने के लिए कहा था? मैंने उसे ऐसा काम कभी नहीं सौंपा। तो फिर, सभी भोजन कक्षों के लिए ऐसी मशीनें खरीदने के पीछे उसका मकसद क्या था? क्या यह उसके द्वारा भेंटों को अपनी निजी संपत्ति मानना और उन्हें अपनी मर्जी से आवंटित करना नहीं है? क्या उसके पास उन्हें आवंटित करने का अधिकार था? (नहीं।) इन मशीनों को खरीदने से पहले उसने मुझसे कभी नहीं पूछा : “चूँकि हमने छोटे रसोईघर के लिए एक मशीन खरीदी है तो क्या हमें बड़े भोजन कक्ष के लिए भी ऐसी मशीनें खरीदनी चाहिए?” और उसने खरीदारी करने के बाद यह नहीं बताया कि उसने कितने ओजोन कीटाणुनाशक खरीदे हैं, और उनकी कुल कीमत कितनी है, न ही उसने यह तथ्य बताया कि भाई-बहनों ने उनको बिल्कुल उपयोगी नहीं पाया। इस मामले को इस घृणित तरीके से सँभाला गया। और जब उसकी, इस तरह की भ्रमित चीज की, काट-छाँट की गई तब भी वह उद्दंड बना रहा। इस तरह के व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? (उसे कलीसिया से निष्कासित कर देना चाहिए।) इस घटना की प्रकृति के मद्देनजर उसे कलीसिया से निष्कासित कर देना काफी नहीं होगा, क्योंकि यह ऐसा मामला है जो भेंटों से जुड़ा है, और भेंटों से जुड़े होने के कारण उसने प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन किया है। यह लापरवाही से काम करना था! क्या उसने सोचा कि यह पैसा खुद का है? क्या उसके पास इसे इस्तेमाल करने और बरबाद करने का अधिकार था? मैंने अपने लिए जिस खरीदारी का जिम्मा लोगों को सौंपा था, उसमें उन्होंने सभी तरह की मुश्किलें खड़ी कर दी थीं, और उनके लिए यह काम पूरा करना बहुत बड़ा संघर्ष बन गया था, और इसके अलावा मुझे उनके साथ इस बारे में हर चीज पर चर्चा करनी पड़ी। लेकिन जब उन चीजों की बात आई जिन्हें करने और खरीदने का काम मैंने लोगों को नहीं सौंपा था, उन्होंने बिना पलक झपकाए ही वे चीजें खरीद लीं, न कभी कोई योजना बनाई, न कभी बहुमत से सलाह ली कि वे वस्तुएँ उपयोगी होंगी भी या नहीं—उन्होंने बस अपनी मर्जी चलाकर पैसे बरबाद कर दिए। कुछ समय पहले, कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ लोगों को छह महीने से लेकर एक साल तक की खाद्य-सामग्री खरीदने के लिए कहा गया था, इस डर से कि खाने के लिए पर्याप्त खाद्य-सामग्री उपलब्ध नहीं होगी। इस मामले को उन्हें संक्षिप्त और सरल तरीके से समझाया गया था, और एक सप्ताह के भीतर उन्होंने यह कहते हुए रिपोर्ट दी कि उन्होंने तीन दिनों में अपनी खरीदारी पूरी कर ली थी, उन्होंने जैविक उत्पाद और जो शीघ्र ही जैविक उत्पाद के रूप में प्रमाणित होने वाले थे, दोनों तरह के उत्पाद खरीद लिए थे। उन्होंने कैसा काम किया था? क्या उन्होंने बहुत बढ़िया काम नहीं किया था? मुझे कुछ और कहने की जरूरत नहीं थी, मामला सँभाला जा चुका था। उन्होंने अपने लिए इस कार्य को प्रसन्नतापूर्वक तत्परता से सँभाला था, और वे विशेष रूप से कुशल, तेज, चतुर और विचारशील निकले। उन्होंने न केवल अपनी जरूरत की खाद्य-सामग्री खरीदी थी, बल्कि दैनिक जरूरत की चीजें भी खरीदी थीं। उन दैनिक आवश्यकताओं में वह सब कुछ शामिल था जो उन्हें चाहिए था, वे वह सब कुछ खरीद सके जिसकी तुम कल्पना कर सकते हो, यहाँ तक कि मिठाई, खरबूजे के बीज और अन्य जलपान की चीजें भी। मैंने सोचा कि ये लोग वास्तव में जीना जानते थे; वे पैसे खर्च करना जानते थे, और वे पैसे खर्च करने की हिम्मत भी रखते थे। वे बहुत सक्षम थे, उनमें जंगली जानवरों से भी अधिक जीवित रहने की बहुत उम्दा क्षमता थी और उन्होंने मेरी उम्मीदों से भी ज्यादा फुर्ती से इस काम को अंजाम दिया। जीवित रहने के लिए वे किसी भी असंभव और कठिन कार्य को करने में सक्षम थे—ऐसा कुछ भी नहीं था जो वे नहीं कर सकते थे। इस घटना से मैंने देखा कि ये लोग पूरी तरह से बुद्धिहीन नहीं थे या काम पूरा करने में पूरी तरह से असमर्थ नहीं थे, लेकिन यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता था कि वे किसके लिए काम सँभाल रहे थे। अगर वे अपने लिए काम सँभाल रहे होते थे, तो वे विशेष रूप से सक्रिय, चतुर, फुर्तीले और कुशल लगते थे—उन्हें किसी के कहने की जरूरत नहीं होती थी, और मुझे उनके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन जब वे परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य निभा रहे होते थे तो उन्हें कोई भी काम सँभालना मुश्किल लगता था, वे कभी भी सिद्धांतों का पता नहीं लगा पाते थे, और हमेशा गड़बड़ कर देते थे। ऐसा लगता है कि इसके पीछे एक कारण था, और उनके द्वारा अपने लिए काम करने और परमेश्वर के घर के लिए काम करने में बहुत बड़ा अंतर था। अभी के लिए, आओ इस बारे में बात नहीं करते कि इन लोगों में किस तरह का स्वभाव या सार था। इन लोगों द्वारा चीजें सँभालने के प्रति दोगले दृष्टिकोण रखने से पता चलता है कि उनका चरित्र सचमुच नीच था। उनका चरित्र ठीक कितना नीच था? मैं इसे तुम लोगों के लिए परिभाषित कर देता हूँ, ये लोग इंसान नहीं थे, वे बस जानवरों का एक झुंड थे! क्या यह परिभाषा उन पर फिट बैठती है? (हाँ, यह फिट बैठती है।) ये शब्द पचाने में कठिन लग सकते हैं, और उन्हें सुनना परेशान करने वाला हो सकता है, लेकिन यह ठीक वही तरीका है जिससे ये लोग कार्यों को सँभालते हैं, और ये लोग इसी तरह की चीज हैं। मैं जो कहता हूँ वह तथ्यों पर आधारित है और यह निराधार बदनामी नहीं है। जब परमेश्वर का घर कुछ लोगों का उपयोग कर रहा होता है, इस तथ्य को देखते हुए कि वे युवा हैं, कुछ हद तक काबिलियत में कमजोर हैं, और उनकी नींव और आध्यात्मिक कद में कमी है, वह लगातार उनकी मदद करेगा और उनके साथ सत्य और सिद्धांतों पर संगति करेगा। लेकिन अंत में, खराब चरित्र सिर्फ खराब चरित्र होता है, जानवर सिर्फ जानवर होता है, और ये लोग कभी नहीं बदलने वाले। न केवल वे सत्य को अभ्यास में नहीं लाएँगे, बल्कि वे बद से बदतर होते चले जाएँगे, उँगली पकड़ाने पर पहुँचा पकड़ लेंगे, और उनमें जरा-सी भी शर्म की भावना नहीं होगी जो सामान्य मानवता का हिस्सा होती है। जब वे कुछ खरीदते हैं या परमेश्वर के घर के लिए कोई कार्य करते हैं तो वे कभी भी इस बारे में सलाह नहीं माँगते कि इन चीजों को सस्ते में कैसे खरीदा जाए और पैसे कैसे बचाए जाएँ और साथ ही कुछ व्यावहारिक भी प्राप्त कर लिया जाए। वे ऐसा कभी नहीं करते। वे बस अंधाधुंध पैसे खर्च कर डालते हैं, लापरवाही से चीजें खरीदते हैं, और बस कुछ बेकार उत्पाद खरीद लेते हैं। लेकिन जब कोई कार्य पूरा करने या व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए कुछ खरीदने का समय आता है तो वे इसे गंभीरता से लेना शुरू कर देते हैं और लागतों में कटौती करने, और अधिक काम करते हुए कम खर्च करने के बारे में सोचना शुरू करते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह से काम करना सिद्धांतों पर टिके रहना और सत्य का अभ्यास करना होता है। क्या इन लोगों में जरा भी समझ है? यह किसका पैसा है, और इसे किस पर खर्च किया जाना चाहिए—ये चीजें उन्हें समझ में ही नहीं आतीं। क्या यह किसी बदमाश की तरह चीजों को सँभालना नहीं है? क्या तुम लोगों के आस-पास भी ऐसे लोग हैं? वे सभी लोग जो कलीसिया के लिए मूल्यवान या महँगी चीजें खरीदते समय वित्त विभाग या अपने साथी भाई-बहनों से चर्चा नहीं करते, जो बस आगे बढ़कर मनमाने ढंग से भेंटों को बरबाद करते हैं, जो जानते हैं कि जब वे अपना पैसा खर्च कर रहे होते हैं तो उन्हें पैसे बचाने चाहिए और अपने खर्चों का बजट बनाना चाहिए, लेकिन जब वे परमेश्वर की भेंटों को खर्च कर रहे होते हैं तो मनमाने ढंग से पैसे बरबाद करते हैं—इस तरह के लोग बहुत ही घृणित होते हैं! वे बहुत ही घिनौने हैं! है ना? (हाँ।) जब भी मैं उनके बारे में सोचता हूँ तो मुझे ऐसी चीजों से घिन आती है। वे जानवर पहरेदार कुत्तों से भी घटिया हैं। क्या वे परमेश्वर के घर में रहने के लायक हैं?

एक समय एक अगुआ था जो अलग-अलग जगहों पर भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को अर्पित की गई सभी वस्तुओं को अपने “सुरक्षा” में ले लेता था, जिसमें कीमती वस्तुएँ, साधारण कपड़े, स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पाद, इत्यादि शामिल थे। उसकी पीठ पर ब्रांड वाले बैग, पैरों में चमड़े के जूते, उंगलियों में अंगूठियाँ, गले में हार, इत्यादि होते थे—वह जो कुछ भी इस्तेमाल कर सकता था, उसे अपने कब्जे में ले लेता था और किसी की सहमति के बिना उसका इस्तेमाल करता था। एक दिन, ऊपरवाले भाई ने उससे पूछा कि अलग-अलग जगहों पर भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को अर्पित की गई सभी वस्तुएँ क्यों नहीं सौंपी गईं। उसने उत्तर दिया : “भाई-बहनों ने कहा कि ये चीजें कलीसिया को दी जा रही हैं, उन्होंने यह नहीं कहा कि उन्हें परमेश्वर को अर्पित किया जा रहा है।” उसने इस बात पर भी विशेष जोर दिया कि वे कलीसिया को दी गई थीं, जिससे उसका अव्यक्त निहितार्थ यह था कि चूँकि वह स्वयं कलीसिया का पूर्ण प्रतिनिधि था, इसलिए परमेश्वर को इन चीजों पर अपना हाथ रखने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, वे परमेश्वर के उपयोग के लिए नहीं बल्कि कलीसिया के उपयोग के लिए हैं। इसे और अधिक ठोस शब्दों में कहें तो, उसका मतलब था : “ये चीजें मेरे इस्तेमाल के लिए हैं, इन्हें परमेश्वर के इस्तेमाल के लिए नहीं चढ़ाया गया है। तुम क्या माँग रहे हो? क्या तुम इसे माँगने के योग्य हो?” क्या यह सुनकर तुम लोगों को गुस्सा आता है? (हाँ, आता है।) यह सुनकर कोई भी गुस्सा हो सकता है। मुझे बताओ, क्या कोई ऐसा है जो मानता है कि भाई-बहन जो चीजें कलीसिया को देते हैं वे कलीसिया के अगुआओं को भेंट की जा रही हैं? क्या कोई ऐसा है जो कहता है कि कलीसिया को चीजें भेंट करते समय वह उन्हें कलीसिया के अमुक अगुआ को दे रहा है? क्या किसी का ऐसा इरादा है? (नहीं।) जब तक वे भेंट देते समय यह नहीं लिखते, “कृपया इसे अमुक को भेजें”—केवल तभी वह वस्तु उस अगुआ के निजी कब्जे में आती है, अन्यथा, जो भी चीजें चढ़ाई जाती हैं, चाहे वे पैसे हों या वस्तुएँ, भाई-बहन परमेश्वर को ही दे रहे होते हैं। परमेश्वर को चढ़ाई गई चीजों को सामूहिक रूप से भेंटें कहा जाता है। एक बार जब उन्हें भेंट के रूप में नामित कर दिया जाता है तो वे परमेश्वर के इस्तेमाल के लिए होती हैं। जब वे परमेश्वर के इस्तेमाल के लिए होती हैं तो परमेश्वर उनका इस्तेमाल कैसे करता है? परमेश्वर इन चीजों को कैसे आवंटित करता है? (वह उन्हें कलीसिया को उसके काम में इस्तेमाल करने के लिए देता है।) यह सही है। कलीसिया के काम में उनके इस्तेमाल के लिए सिद्धांत और विशिष्ट विवरण हैं, जिसमें कलीसिया में सारे समय अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वालों के लिए रहने का खर्च और कलीसिया के काम के विभिन्न खर्च शामिल हैं। परमेश्वर के देहधारण की अवधि के दौरान इस उपयोग में ये दो मदें शामिल होती हैं : मसीह के दैनिक खर्च और कलीसिया के काम की सभी लागतें। अब इन दो मदों में क्या कोई ऐसी मद है जिसमें कहा गया हो कि भेंटों को व्यक्तिगत वेतनों, पुरस्कारों, खर्चों और पारिश्रमिक में बदला जा सकता है? (नहीं, ऐसी कोई मद नहीं है।) भेंटें किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं होतीं। भेंटों के इस्तेमाल और आवंटन की व्यवस्था परमेश्वर के घर द्वारा की जानी चाहिए और उनका इस्तेमाल मुख्य रूप से कलीसिया के काम में किया जाता है : इसमें यह शामिल नहीं है कि जो कोई भी कलीसिया का अगुआ है उसे भेंटों को अपने कब्जे में लेने या उसका इस्तेमाल करने का अधिकार होगा। तो फिर, उनका इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए? इन भेंटों को कलीसिया की संपत्ति के इस्तेमाल को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों के अनुसार आवंटित किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो क्या यह शर्मनाक नहीं है कि मसीह-विरोधी हमेशा भेंटों पर अपने कब्जे और इस्तेमाल को प्राथमिकता देना चाहते हैं? मसीह-विरोधी हमेशा सोचते हैं कि भाई-बहनों द्वारा चढ़ाए गए पैसे और वस्तुएँ अगुआ के पद पर रहने वाले व्यक्ति की हैं। क्या यह सोचने का बेशर्म तरीका नहीं है? (हाँ, है।) यह बेहद बेशर्मी है! न केवल मसीह-विरोधी अपने स्वभाव में दुष्ट और क्रूर होते हैं, बल्कि उनका चरित्र भी नीच और घटिया होता है, जिसमें शर्म की कोई भावना नहीं होती।

इन विषयों पर संगति करने और इन मामलों पर बात करने से वे सत्य स्पष्ट हो जाएँगे जिन्हें लोगों को समझना चाहिए और अभ्यास में लाना चाहिए। लेकिन, अगर हम इन चीजों पर संगति नहीं करते तो कुछ सत्यों के बारे में लोगों की समझ हमेशा शाब्दिक और सैद्धांतिक स्तर पर ही रुकी रहेगी, और अपेक्षाकृत खोखली रहेगी। अगर हम सत्य पर अपनी संगति में कुछ वास्तविक मामलों को शामिल करते हैं तो लोगों के लिए चीजों को समझना बहुत आसान हो जाएगा, और सत्य के बारे में उनकी समझ अधिक ठोस और व्यावहारिक होगी। इसलिए, इन चीजों पर संगति करने का उद्देश्य किसी को बदनाम करना या उनके लिए चीजों को मुश्किल बनाना बिल्कुल नहीं है। ये ऐसी चीजें हैं जो वास्तव में हो चुकी हैं, और इसके अलावा ये उस विषय से जुड़ी हैं जिस पर हम संगति कर रहे हैं। इसलिए, कुछ लोग जीवित शिक्षण सामग्री बन गए हैं, और विशिष्ट उदाहरणों में पात्र और चरित्र बन गए हैं जिन पर हम संगति कर रहे हैं और जिनका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं। यह बहुत सामान्य बात है। परिभाषा के अनुसार, सत्य उन शब्दों, विचारों, दृष्टिकोणों, क्रियाकलापों और स्वभावों से जुड़ा हुआ होता है जो मानव जीवन के दौरान प्रकट होते हैं। अगर हम सत्य को वास्तविक जीवन से अलग करके उसके शाब्दिक अर्थ पर ही संगति और उसकी व्याख्या करते रहे तो लोग सत्य की सच्ची समझ कब प्राप्त करेंगे? इस तरह से काम करने से लोगों के लिए सत्य को समझना और भी मुश्किल हो जाएगा, और लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में कठिनाई होगी। संगति और गहन-विश्लेषण के लिए कुछ विशिष्ट उदाहरण सामने लाने से लोगों को सत्य, वे सिद्धांत जिन्हें उन्हें अभ्यास में लाना चाहिए, परमेश्वर के इरादे और जिस मार्ग का उन्हें अनुसरण करना चाहिए वह मार्ग, समझने में सुभीता होगी। चाहे जो भी हो, इस कारण से यह तरीका लोगों के लिए उपयुक्त और लाभदायक दोनों है। अगर ये मामले सत्य या मसीह-विरोधियों के स्वभाव को नहीं छूते जिनका हम गहन-विश्लेषण कर रहे हैं तो मैं उनके बारे में बात करने के लिए तैयार नहीं होता। लेकिन जिन लोगों ने ये काम किए उनके स्वभाव और सार उस विषय को जरूर छूते हैं जिस पर हम संगति कर रहे हैं, इसलिए हमें जब भी आवश्यक हो उन पर संगति करनी चाहिए। इस पर संगति करने का उद्देश्य लोगों को दबाना या उन्हें कष्ट देना नहीं है, न ही उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित करना है; बल्कि इसका उद्देश्य मनुष्यों के स्वभाव और सार का गहन-विश्लेषण करना है, और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्यों के भीतर मसीह-विरोधियों के स्वभाव का गहन-विश्लेषण करना है। जब भी हमारी संगति इन विषयों पर होती है तो यदि तुम लोगों के दिमाग में बस यही आता है कि फलां-फलां व्यक्ति ने अमुक-अमुक काम किया है, और तुम यह सोचने में विफल रहते हो कि यह सत्य और लोगों के भ्रष्ट स्वभाव से कैसे संबंधित है, तो क्या इससे यह साबित होता है कि तुमने सत्य को समझ लिया है? (नहीं।) यदि तुम लोगों को केवल एक मामला या एक विशेष व्यक्ति याद है, और उस व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन में झुकाव, राय और पूर्वाग्रह उत्पन्न होते हैं तो क्या यह कहा जा सकता है कि तुम सत्य की समझ तक पहुँच गए हो? यह सत्य को समझना नहीं है। तो फिर किन परिस्थितियों में तुम्हें सत्य की समझ तक पहुँचा हुआ माना जा सकता है? लगभग हर बार जब हम मसीह विरोधियों के सार की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करते हैं और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, तो मैं विशिष्ट उदाहरणों के रूप में कई कहानियाँ सामने रखता हूँ, और मैं तुम लोगों के साथ संगति करता हूँ कि इन कहानियों में त्रुटियाँ कहाँ हैं और लोगों को किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम लोग इस तरह की संगति के बाद भी नहीं समझते तो इसका मतलब है कि तुम्हारी समझ में कोई समस्या है, कि तुम्हारी काबिलियत बहुत कम है और तुममें आध्यात्मिक समझ की कमी है। तो फिर, किन परिस्थितियों में तुम्हें समझने की क्षमता रखने वाला, आध्यात्मिक समझ रखने वाला और उन उदाहरणों के भीतर सत्य को समझने वाला माना जा सकता है जिन पर हमने संगति की है? सबसे पहले, तुम्हें उन उदाहरणों से अपने आप की तुलना करने में सक्षम होना चाहिए जिन पर हम संगति कर रहे हैं और खुद को जानना चाहिए, यह देखने के लिए कि क्या तुम्हारे पास भी इस तरह का स्वभाव है, और क्या तुम भी ऐसी चीजें कर सकते थे यदि तुम्हारे पास रुतबा और अधिकार होता, और क्या तुम्हारे भी ऐसे विचार और राय हैं या तुम भी इस तरह का स्वभाव प्रकट करते हो। यह एक पहलू है। इसके अतिरिक्त, जिन उदाहरणों पर हम संगति कर रहे हैं उनमें तुम्हें उन सत्य सिद्धांतों की तलाश करनी चाहिए जिनका तुम्हें सकारात्मक तरीके से समझकर पालन करना चाहिए। इसका मतलब है कि तुम्हें वह मार्ग खोजना चाहिए जिसे तुम्हें अभ्यास में लाना है, और जानना चाहिए कि इन परिस्थितियों में तुम्हें क्या रुख अपनाना चाहिए और किस तरह से अभ्यास करना चाहिए जो सही हो और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हो। इसके अलावा, गहन-विश्लेषण के माध्यम से तुम्हें यह पहचानने में सक्षम होना चाहिए कि तुम्हारा स्वभाव मसीह विरोधियों के समान ही है, उस संबंध को स्थापित करना और यह जानना चाहिए कि इसे हल कैसे किया जाए। इस तरह तुम सत्य की समझ तक पहुँच चुके होगे, तुम एक ऐसे व्यक्ति होगे जिसे आध्यात्मिक समझ है, और जो सत्य को समझने की क्षमता रखता है। अगर कहानी सुनने के बाद तुम्हें सारी बारीकियाँ, सारे कारण और प्रभाव याद रहते हैं और तुम उन पर व्याख्या करने में सक्षम होते हो, लेकिन तुम उन सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते जिनका लोगों को अभ्यास करना चाहिए और जिनमें प्रवेश करना चाहिए, और जब किसी परिस्थिति का सामना करना पड़े तो तुम नहीं जानते कि इन सत्यों को कैसे लागू किया जाए ताकि तुम लोगों और चीजों को समझ सको और खुद को जान सको, तो इसका मतलब है कि तुममें समझने की क्षमता की कमी है। और जिस व्यक्ति में समझने की क्षमता की कमी होती है वह आध्यात्मिक समझ की कमी वाला व्यक्ति होता है।

मैं तुम्हें एक और उदाहरण देता हूँ। एक व्यक्ति था जिसे हाल ही में अगुआ के रूप में चुना गया था। इससे पहले कि वह काम के विभिन्न पहलुओं की वास्तविक स्थिति को सही तरह से समझ पाता और जान पाता, यानी इससे पहले कि वह काम के अलग-अलग पहलुओं में खुद को ठीक से झोंक पाता, उसने निजी पूछताछ करनी शुरू कर दी : “हमारे कलीसिया में परमेश्वर को चढ़ाई जाने वाली भेंटों को सुरक्षित रखने का काम किन लोगों का है? उनके नामों की सूची के साथ मुझे रिपोर्ट करो। साथ ही, मुझे सभी खाता संख्याएँ और पासवर्ड बताओ। मैं जानना चाहता हूँ कि वहाँ कितना पैसा है।” उसने किसी भी काम में कोई दिलचस्पी नहीं ली। एक चीज जिसमें उसे सबसे ज्यादा दिलचस्पी थी और जिसके बारे में वह सबसे अधिक दृढ़ता से महसूस करता था, वह थी भेंटों को सुरक्षित रखने वाले लोगों के नाम, साथ ही खाता संख्याएँ और पासवर्ड। क्या कुछ गलत नहीं होने वाला था? वह भेंटों तक अपनी पहुँच बनाना चाहता था, है न? जब तुम लोग ऐसी किसी स्थिति का सामना करते हो तो तुम्हें क्या करना चाहिए? चूँकि वह अगुआ बन गया है तो क्या इसका मतलब यह है कि कलीसिया की संपत्ति उसे सौंप दी जानी चाहिए, और यह कि उसके पास इसके बारे में जानने का अधिकार और इसे नियंत्रित करने की शक्ति होनी चाहिए? (नहीं, उसे यह जानकारी नहीं दी जानी चाहिए।) क्यों नहीं? यदि तुम उसे यह जानकारी नहीं देते तो क्या तुम अवज्ञाकारिता के दोषी नहीं होगे? (यह तथ्य कि उसने ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित कीं इस बात का प्रमाण है कि उसमें कुछ गड़बड़ है और इसलिए, परमेश्वर को चढ़ाए जाने वाली भेंटों की सुरक्षा के लिए हम उसे यह जानकारी नहीं दे सकते।) यह सही है : चूँकि उसके साथ कुछ गड़बड़ है इसलिए तुम उसे यह जानकारी नहीं दे सकते। तुम लोगों का उत्तर साबित करता है कि मेरी पिछली संगति व्यर्थ नहीं गई है और तुम लोग इसे समझ गए हो। तुम उसे यह जानकारी क्यों नहीं दे सकते? एक अगुआ की जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य भेंटों पर अपना ध्यान केंद्रित करना या भेंटों से संबंधित किसी भी जानकारी को हासिल करने की कोशिश करना नहीं होता। ये एक अगुआ का कर्तव्य या जिम्मेदारियाँ नहीं हैं। हर जगह कलीसियाओं में भेंटों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए लोगों को नियुक्त किया गया है। इसके अलावा, कलीसिया में भेंटों के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम और सिद्धांत होते हैं। किसी के पास भेंटों के उपयोग को प्राथमिकता देने की शक्ति नहीं होती, भेंटों पर अपने कब्जे को प्राथमिकता देने की तो बात ही छोड़ दो। यह बिना किसी अपवाद के सभी पर लागू होता है। क्या यह तथ्य नहीं है? क्या यह सही नहीं है? (हाँ, यह सही है।) जब मसीह-विरोधी भेंटों पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देना चाहते हैं, तो यह अपने आप में ही गलत है। वे सोचते हैं कि अगुआओं के रूप में उन्हें भेंटों के उपयोग का स्वतंत्र रूप से आनंद लेने में सक्षम होना चाहिए : क्या यह सच है? यह धन परमेश्वर का है—वे इसका दुरुपयोग क्यों करते हैं? वे इसका उपयोग अपनी इच्छानुसार क्यों करते हैं? क्या वे ऐसा करने के योग्य हैं? क्या परमेश्वर भेंटों के इस तरह से उपयोग करने को लेकर उनसे सहमत है? क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग इसे स्वीकार करेंगे? मसीह-विरोधियों द्वारा भेंटों को जब्त करना और उन्हें बरबाद कर देना : यह उनके क्रूर स्वभाव से निर्धारित होता है, यह उन चीजों को देखने का एक तरीका है जो उनके लालच से उत्पन्न होती हैं, और यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे परमेश्वर के वचन द्वारा निर्धारित किया गया है। यह मसीह-विरोधी हमेशा से सभी भेंटों पर नियंत्रण पाना चाहता था, साथ ही साथ उनके सुरक्षा प्रभारियों के बारे में सभी जानकारी, और सभी खाता संख्याएँ और पासवर्ड जानना चाहता था। यह एक गंभीर समस्या है, है ना? क्या वह परमेश्वर की भेंटों के बारे में अंतर्निहित तथ्यों को जानना चाहता था, और उन्हें अच्छी तरह से सुरक्षित रखना चाहता था, और फिर उन्हें इस तरह से आवंटित करना चाहता था जो कि उचित हो और जो उन्हें अक्षुण्ण रखे, किसी को मनमर्जी से और लापरवाही से खर्च करने की अनुमति नहीं दे? क्या उसका ऐसा करने का मन था? क्या कोई उसके क्रियाकलापों से बता सकता है कि उसके अच्छे इरादे थे? (नहीं।) तो, अगर कोई व्यक्ति वास्तव में भेंटों की लालसा नहीं रखता तो अगुआ के रूप में चुने जाने पर वह क्या करेगा? (वह सबसे पहले कलीसिया में काम के विभिन्न पहलुओं की प्रभावशीलता के बारे में पता लगाएगा, साथ ही यह पता लगाएगा कि भेंटों को कैसे सुरक्षित रखा जाता है और जिस स्थान पर उन्हें रखा जा रहा है वह सुरक्षित है या नहीं। लेकिन, वह खाता संख्याओं, पासवर्ड या रखी गई राशियों के बारे में पूछताछ नहीं करेगा।) ठीक है, लेकिन एक और बात है। जब किसी ऐसे व्यक्ति को जो वास्तव में भेंट का लालच नहीं करता, अगुआ के रूप में चुना जाता है तो वह जाँच करेगा कि जिस स्थान पर भेंटें रखी जा रही हैं वह सुरक्षित है या नहीं, साथ ही उन्हें सुरक्षित रखने के लिए नियुक्त लोग उपयुक्त और विश्वसनीय हैं या नहीं, कहीं वे भेंटों का दुरुपयोग तो नहीं करेंगे, और क्या वे सिद्धांतों के अनुसार भेंटों को सुरक्षित रख रहे हैं। वह पहले इन बातों पर विचार करेगा। जहाँ तक भेंटों की मात्रा और पासवर्ड जैसी संवेदनशील जानकारियों की बात है, जो लोग लालची नहीं है—सभ्य और सम्माननीय लोग—इससे दूर रहेंगे। लेकिन लालची लोग इससे नहीं कतराएँगे, वे यह आड़ लेंगे : “मैं अगुआ हूँ। क्या मुझे काम के हर पहलू को नहीं सँभालना चाहिए? बाकी सब कुछ मुझे सौंप दिया गया है तो भेंटें क्यों नहीं?” उनके पास जो शक्ति है उसका उपयोग करके वे इस बहाने से कलीसिया के वित्तीय मामलों पर नियंत्रण करना चाहेंगे। यह एक समस्या है। वे अपना काम या अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से नहीं निभाएँगे, न ही वे सामान्य प्रक्रियाओं और सिद्धांतों के अनुसार कलीसिया के वित्तीय मामलों का प्रबंधन करेंगे। इसके बजाय, उनके पास उनके लिए अपनी ही योजनाएँ होंगी। कोई भी व्यक्ति जो सामान्य मनुष्य की तरह सोचने में सक्षम है इसे देख सकता है। जैसे ही इस अगुआ ने ऐसा करना शुरू किया, किसी ने इसकी सूचना दी और उसे रोक दिया गया। बाद में, उस व्यक्ति ने मुझे रिपोर्ट दी, पूछा कि क्या ऐसा करना सही था, और मैंने कहा कि यह सही था। इसे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करना कहते हैं; यह जानकारी ऐसे व्यक्ति को नहीं दी जा सकती। बिना कुछ काम किए पहले परमेश्वर के घर के पैसे को नियंत्रित करने की इच्छा करना—क्या यह कुछ हद तक बड़े लाल अजगर जैसा नहीं है? जब बड़ा लाल अजगर भाई-बहनों को गिरफ्तार करता है तो सबसे पहले वह उन्हें पीटता नहीं है, इस डर से कि वे बुरी तरह पीटे जाने के बाद स्पष्ट रूप से नहीं बोल नहीं पाएँगे—वह सबसे पहले पूछता है कि कलीसिया का पैसा कहाँ रखा जा रहा है, इसे कौन सुरक्षित रख रहा है, और कितना पैसा है। उसके बाद ही वह पूछेगा कि कलीसिया के अगुआ कौन हैं। उसका उद्देश्य केवल धन हड़पना है। इस अगुआ ने जो किया और जो बड़ा लाल अजगर करता है, दोनों की प्रकृति एक जैसी है। उसने किसी भी काम की जाँच नहीं की, या किसी और चीज की चिंता नहीं की, और उसने केवल वित्तीय मामलों पर ध्यान दिया—क्या यह नीच होना नहीं है? इस नीच व्यक्ति के क्रियाकलाप कितने स्पष्ट थे! अपना रुतबा सुरक्षित होने से पहले ही वह धन हड़पना चाहता था। क्या वह बहुत जल्दी में नहीं था? उसे पता ही नहीं था कि दूसरे लोग उसे पहचान चुके हैं, और उसे जल्दी ही बरखास्त कर दिया गया। जब इस तरह के व्यक्ति की बात आती है जो इतने स्पष्ट तरीके से व्यवहार करता है तो तुम लोगों को यह याद रखना चाहिए : उसे जल्दी से जल्दी बरखास्त करो। इस तरह के व्यक्ति के बारे में कुछ और जानने की जरूरत नहीं है, जैसे उसका स्वभाव, मानवता, शिक्षा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, वह कितने समय से परमेश्वर में विश्वास रखता है, उसके पास कोई आधार है या नहीं, उसके जीवन अनुभव कैसे हैं—तुम्हें इनमें से किसी भी चीज को जानने की जरूरत नहीं है, यह एक चीज ही यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त है कि ऐसा व्यक्ति मसीह-विरोधी है। तुम सभी को मिलकर इस व्यक्ति को बरखास्त करके हटा देना चाहिए। तुम्हें अगुआ के रूप में उसकी आवश्यकता नहीं है। क्यों? यदि तुम उसे अपनी अगुआई करने देते हो, तो वह कलीसिया के पास जितना भी पैसा है उसे बरबाद कर देगा और उसका दुरुपयोग करेगा, और फिर कलीसिया का काम रुक जाएगा और उसे पूरा करना असंभव हो जाएगा। यदि तुम इस तरह के व्यक्ति से मिलते हो, जो पैसे हड़पने में लगा है, जिसका ध्यान हमेशा धन पर ही टिका रहता है, और जो लालची है, और यदि उसकी वास्तविक प्रकृति के लक्षण अभी तक सामने नहीं आए हैं, और सभी ने उसे भ्रमित तरीके से चुना है, यह सोचकर कि उसके पास कुछ गुण हैं, कि वह अपने काम में सक्षम है, कि वह सभी को सत्य वास्तविकता में प्रवेश कराने के लिए अगुआई करने में सक्षम है, उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि जैसे ही वह अगुआ बनेगा, वह पैसे को अपनी जेब में भरना शुरू कर देगा, तो तुम्हें जल्दी से उसे उसके पद से हटा देना चाहिए। ऐसा करना बिल्कुल सही है। उसके बाद तुम किसी और को चुन सकते हो। यदि कलीसिया एक दिन के लिए अगुआ के बिना रह भी जाए तो इससे वह बिखर नहीं जाएगी। परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं किसी विशेष अगुआ में नहीं। मुझे बताओ, क्या ऐसे समय होते हैं जब भाई-बहनों के निर्णय में चूक हो जाए? इस व्यक्ति के अगुआ बनने से पहले यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि वह लालची है। दूसरों के साथ अपने व्यवहार में वह फायदा उठाने की कोशिश नहीं करता था, वह चीजें खरीदते समय अपना पैसा खर्च करता था, और यहाँ तक कि वह दान भी देता था। फिर भी, अगुआ बनने के बाद उसने जो पहला काम किया वह था कलीसिया के वित्तीय मामलों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करना। अधिकांश लोग इस तरह की दुष्ट इच्छा को नहीं दबा पाते—यह बिल्कुल अविश्वसनीय है! वह रातों-रात कैसे बदल गया? ऐसा नहीं है कि वह रातों-रात बदल गया, बल्कि वह शुरू से ही उस तरह का प्राणी था, केवल अंतर यह था कि पहले वह ऐसी परिस्थितियों में नहीं था जो उसे प्रकट कर सकें, और अब वह इस स्थिति की वजह से प्रकट हो गया है। चूँकि यह व्यक्ति प्रकट हो चुका है तो तुम अब भी उस पर दया क्यों करोगे? उसे यहाँ से बाहर निकालने के लिए बस एक जोरदार लात लगाओ, जितना दूर हो सके उतना अच्छा है! क्या तुम लोगों में ऐसा करने की हिम्मत है? (हाँ।) जब किसी ऐसे व्यक्ति की बात आए जो कलीसिया की संपत्ति के बारे में मंसूबे बाँधता रहता है तो उसे तब तक मत चुनो जब तक कि तुम उसे पूरी तरह से समझ न लो। अगर कभी अज्ञानता से तुम उसे पूरी तरह से समझे बिना चुन लेते हो, और फिर पाते हो कि वह एक लालची प्राणी और यहूदा है तो तुम्हें उसे बाहर निकालने और उसे हटाने में जल्दी करनी चाहिए। दया मत दिखाओ, और संकोच मत करो। ऐसे लोग हैं जो कहते हैं : “भले ही वह व्यक्ति लालची हो, लेकिन वह अन्य सभी मामलों में ठीक है। वह परमेश्वर के वचन को समझने में लोगों का मार्गदर्शन कर सकता है, और वह लोगों से उनके कर्तव्यों को सामान्य रूप से करवा सकता है।” लेकिन वह केवल कुछ समय के लिए ही ऐसा होता है। जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, वह वैसा नहीं रहेगा। उसका राक्षसी चेहरा सामने आने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे। मसीह-विरोधियों की सभी अभिव्यक्तियाँ और स्वभाव, जिन पर हमने अतीत में संगति की है, धीरे-धीरे उसमें प्रकट होते जाएँगे। क्या तब तक उसे बरखास्त करने में बहुत देर नहीं हो चुकी होगी? कलीसिया का काम पहले ही प्रभावित हो चुका होगा। यदि तुम्हें मेरी कही गई बातों पर विश्वास नहीं है, और तुम हिचकिचाते हो तो पछतावा होने पर सुबकने मत लग जाना। सबसे पहले देखो कि कोई व्यक्ति भेंटों के साथ कैसा व्यवहार करता है : यह देखने के लिए कि किसी व्यक्ति में मसीह-विरोधियों का सार है या नहीं, यह सबसे सरल, साथ ही सबसे सीधा और सच्चा तरीका है। जिन विषयों पर हमने अतीत में संगति की थी, उनसे हमें कुछ अभिव्यक्तियों, खुलासों, दृष्टिकोणों, शब्दों और क्रियाकलापों के माध्यम से मसीह-विरोधियों के स्वभावों की पहचान करनी थी, और यह देखना था कि उन स्वभावों के आधार पर उनमें मसीह-विरोधियों का सार है या नहीं। केवल इस एक मामले में, इन चीजों को करने की कोई आवश्यकता नहीं है : यह सीधा और सच्चा है, सरल है, और इसके लिए कम प्रयास और समय चाहिए। जब तक कोई व्यक्ति इस तरह की अभिव्यक्ति प्रदर्शित करता है—लगातार भेंटों पर अपने कब्जे को प्राथमिकता देने की इच्छा रखता है या बलपूर्वक भेंटों को जब्त करता है—तब तक तुम निश्चित हो सकते हो कि वह सौ प्रतिशत मसीह-विरोधी है। उसे मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, और वह अगुआ के रूप में काम नहीं कर सकता, और उसे भाई-बहनों द्वारा बरखास्त करके ठुकरा दिया जाना चाहिए।

हमने अभी-अभी मसीह-विरोधियों द्वारा भेंटों पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने की अभिव्यक्तियों पर संगति की है, और इसका इस्तेमाल कलीसिया के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने के उनके प्रयास में मसीह-विरोधियों द्वारा व्यक्त किए गए स्वभावों और सार को समझाने और उनका गहन-विश्लेषण करने के लिए किया है। यह पहली मद है। जब कलीसिया की संपत्ति की बात आती है तो मसीह-विरोधियों के सबसे प्रारंभिक और बुनियादी दृष्टिकोण होते हैं—कब्जा और उपयोग। इस मद में, हमने इस बात पर ठोस तरीके से संगति नहीं की कि मसीह-विरोधी कलीसिया की संपत्ति को कैसे कब्जाते हैं और उसका उपयोग कैसे करते हैं। अगली मद में, जो मसीह-विरोधियों द्वारा भेंटें बरबाद करना, उनका गबन करना, उन्हें उधार देना, उनका कपटपूर्ण उपयोग करना और उनकी चोरी करना है, और अधिक ठोस विवरण होंगे।

ख. भेंटें बरबाद करना, उनका गबन करना, उन्हें उधार देना, उनका कपटपूर्ण उपयोग करना और उनकी चोरी करना

1. भेंटें बरबाद करना

मसीह-विरोधी सोचते हैं कि रुतबा और अधिकार होने से उन्हें भेंटों पर अपने कब्जे और इस्तेमाल को प्राथमिकता देने की शक्ति मिल जाती है। तो फिर, एक बार जब उनके पास वह शक्ति आ जाती है तो वे भेंटों का आवंटन और इस्तेमाल कैसे करते हैं? क्या वे कलीसिया के नियमों या कलीसिया के काम की जरूरतों को तय करने वाले सिद्धांतों के अनुसार ऐसा करते हैं? क्या वे ऐसा कर सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते।) यह तथ्य कि वे ऐसा नहीं कर सकते, कई चीजों से संबंधित है। एक बार रुतबा पा लेने के बाद मसीह-विरोधी कुछ ऐसी चीजें करने से नहीं बच सकते जिनमें कलीसिया का काम शामिल होता है और इस काम का एक हिस्सा कलीसिया की संपत्ति के व्यय और आवंटन से जुड़ा होता है। उस स्थिति में, वे कलीसिया की संपत्ति के आवंटन के लिए किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? क्या यह मितव्ययी होना है? क्या यह व्यय की योजना बनाने में अत्यधिक सतर्क होना है, जहाँ भी संभव हो मितव्ययिता बरतना है? क्या यह सभी चीजों में परमेश्वर के घर को ध्यान में रखना है? नहीं। अगर वे किसी जगह साइकिल से पहुँच सकते हैं तो भी बस से जाकर पैसे खर्च करते हैं। और जब उन्हें हमेशा बस या किराए की कार से जाना असुविधाजनक और तकलीफदेह लगता है तो वे कार खरीदने के लिए परमेश्वर के घर के पैसे का उपयोग करने पर विचार करना शुरू कर देते हैं। कार खरीदते समय वे कम कीमत और औसत प्रदर्शन वाले मॉडल को नजरअंदाज कर देते हैं, और सीधे विदेश से आयात की हुई, किसी नामी ब्रांड मॉडल की विशेष रूप से उच्च-प्रदर्शन वाली कार चुनते हैं, जिसकी कीमत 10 लाख आरएमबी (रेनमिनबी या चीनी युआन) से अधिक होती है। वे सोचते हैं, “यह कोई बड़ी बात नहीं है, और वैसे भी इसका भुगतान परमेश्वर का घर कर रहा है, और परमेश्वर के घर का पैसा सभी का पैसा है। सभी के लिए संयुक्त रूप से कार खरीदना कोई मुश्किल नहीं है। परमेश्वर का घर इतना बड़ा है, पूरा ब्रह्मांड परमेश्वर का है, अगर परमेश्वर का घर एक कार खरीद लेता है तो क्या यह इतनी बड़ी बात है? शैतान की दुनिया में लोग जितनी भी कारें चलाते हैं, उनकी कीमत कई दसियों लाख आरएमबी होती है, इसलिए हमारी कलीसिया का केवल एक 10 लाख आरएमबी वाली कार खरीदना बहुत ही किफायती है। इसके अलावा, कार मेरे अकेले के इस्तेमाल के लिए नहीं है, पूरी कलीसिया इसे साझा करेगी।” जैसे ही मसीह-विरोधी अपना मुँह खोलते हैं, पलक झपकाए या हिचकिचाए बिना और बगैर किसी अपराधबोध के दस लाख से अधिक आरएमबी निकल जाते हैं। कार खरीदने के बाद वे इसका आनंद लेना शुरू कर देते हैं। वे अब उन जगहों पर पैदल नहीं जाते जहाँ उन्हें पैदल जाना चाहिए, वे अब उन जगहों पर अपनी बाइक से नहीं जाते जहाँ उन्हें बाइक से जाना चाहिए, और वे अब उन जगहों के लिए कार किराए पर नहीं लेते जहाँ वे किराए की कार से जा सकते हैं; इसके बजाय, वे अपनी खुद की कार का उपयोग करने पर जोर देते हैं। वे वास्तव में दिखावा करते हैं जैसे कि वे महान कार्य करने में सक्षम हों। मसीह-विरोधी बहुत ही अपव्ययिता से पैसा खर्च करते हैं, वे जो कुछ भी खरीदते हैं वह सामान अच्छा, उच्च-स्तरीय और अत्याधुनिक होना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ प्रकार की मशीनरी और उपकरणों के बुनियादी और उच्च-स्तरीय मॉडलों की कीमत में कई दसियों हजार आरएमबी का अंतर हो सकता है। ऐसी स्थितियों में, मसीह-विरोधी उच्च-स्तरीय मॉडल खरीदना चाहेंगे, और जब तक वे अपना पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं तब तक ऐसा करने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। अगर उन्हें अपनी जेब से पैसे देने पड़ते तो वे एक बुनियादी या निचले दर्जे वाला मॉडल भी नहीं खरीद पाते, लेकिन जब तुम कहते हो कि परमेश्वर का घर इसके लिए भुगतान करने जा रहा है तो वे उच्च-स्तरीय मॉडल ही चाहेंगे। क्या वे जानवर नहीं हैं? क्या वे अनुचित नहीं हैं? क्या यह भेंटों को बरबाद करना नहीं है? (हाँ, यह है।) जो लोग भेंटों को बरबाद करते हैं उनकी मानवता खराब होती है, वे स्वार्थी और घृणित होते हैं! एक बार जब मसीह-विरोधी भेंटों का उपयोग करने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं तो वे भेंटों को अपने लिए हड़पना चाहते हैं, सिद्धांतों की पूरी तरह अवहेलना करते हुए उनका उपयोग करते हैं, और हर खरीद के लिए उच्च-स्तरीय वस्तुएँ खरीदने पर जोर देते हैं। जब वे एक जोड़ी चश्मा खरीदते हैं तो वे सबसे स्पष्ट लेंस वाला उच्च-स्तरीय चश्मा चाहते हैं जो नीली रोशनी और पराबैंगनी किरणों को रोकता हो, और जब वे कंप्यूटर खरीदते हैं तो वे उच्चस्तरीय, नवीनतम मॉडल चाहते हैं। जैसे ही विभिन्न औजारों और उपकरणों के खरीदने का विषय सामने आता है, इस बात की परवाह किए बिना कि उनके काम में ऐसी चीजों का उपयोग होगा कि नहीं, वे उच्च-स्तरीय ही खरीदना चाहते हैं। क्या यह भेंटों को बरबाद करना नहीं है? जब बात अपने पैसे की आती है तो वे मितव्ययिता से काम लेना जानते हैं, कोई भी वस्तु चलेगी जब तक वह व्यावहारिक हो, लेकिन जब परमेश्वर के घर के लिए कुछ खरीदने की बात आती है तो व्यावहारिकता और मितव्ययिता पर विचार नहीं किया जाता। वे बस यही सोचते हैं कि प्रसिद्ध ब्रांड होना चाहिए, इससे उनकी प्रतिष्ठा दिखाई देगी, और जो भी सबसे महँगा होता है वे उसे खरीद लेते हैं। क्या यह अपने स्वयं का विनाश चाहना नहीं है? भेंटों को पानी की तरह बहाना—क्या मसीह-विरोधी यही नहीं करते? (हाँ, यही करते है।)

एक व्यक्ति ऊपरवाले भाई के साथ दाँत साफ करने का ब्रुश खरीदने गया था। उसने भाई के लिए एक डॉलर से थोड़ा अधिक कीमत का ब्रुश खरीदा, लेकिन उसने अपने लिए 15 डॉलर से अधिक कीमत का विदेशी ब्रुश खरीदा। अब, क्या तुम लोग नहीं कहोगे कि ऊपरवाले भाई और इस साधारण भाई के बीच उनके रुतबे के लिहाज से कुछ अंतर, कुछ असमानता थी? (हाँ, थी।) तार्किक रूप से—चलो रुतबा, पद या जिस तरह से परमेश्वर आवंटन करता है वैसी चीजों का उल्लेख न करके केवल इस तथ्य पर चर्चा करते हैं कि ऊपरवाला भाई इन सभी वर्षों में कड़ी मेहनत करता रहा है—क्या उसे बेहतर गुणवत्ता वाली चीज का उपयोग नहीं करना चाहिए? लेकिन उसने इस पर ध्यान नहीं दिया। वह किन सिद्धांतों का पालन कर रहा था? जहाँ भी संभव हो, मितव्ययिता बरतो : दाँत साफ करने का ब्रुश कोई हाई-टेक चीज नहीं होती, इसलिए इतनी महँगी वस्तु का उपयोग करना उचित नहीं है, और इस पर इतना पैसा खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो उपयोग करने योग्य हो वही चलेगा। अब जब इन दो लोगों की पहचान, पद और रुतबे की बात आती है तो उनके बीच एक असमानता है, और सबसे औसत गुणवत्ता वाली वस्तु उस व्यक्ति के लिए खरीदी गई थी जिसे अच्छी किस्म की वस्तु का उपयोग करना चाहिए था, और सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तु उस व्यक्ति के लिए खरीदी गई थी जिसे औसत किस्म की वस्तु का उपयोग करना चाहिए था। यहाँ समस्या क्या थी? इन दोनों में से किसको समस्या थी? अच्छी वस्तु का उपयोग करने वाले व्यक्ति को ही समस्या थी। उसे पता नहीं था कि वह कौन है और उसमें शर्म की कोई भावना नहीं थी, और जब तक परमेश्वर का घर भुगतान कर रहा था, वह सबसे अच्छी और सबसे महँगी वस्तु खरीदता रहता। क्या इस व्यक्ति को रत्ती भर भी समझ थी? यदि उसने ऊपरवाले भाई के साथ खरीदारी करते समय ऐसा किया—उसके सामने ही ये चुनाव किए—तो वह तब क्या करता यदि वह अकेले खरीदारी कर रहा होता? उसने कितना खर्च किया होता? वह बहुत आगे चला जाता, और यह बस दस डॉलर का अंतर न होता; उसमें किसी भी कीमत की वस्तु खरीदने, उस के लिए कोई भी राशि खर्च करने की पर्याप्त हिम्मत होती। वह इसी तरह से भेंटों और परमेश्वर के घर के पैसों को खर्च करता; क्या वह अपना विनाश नहीं चाह रहा था? ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं, “मैंने परमेश्वर के घर के लिए इतना बड़ा काम किया है, इतने सारे जोखिम उठाए हैं, इतनी कठिनाइयों को झेला है, और मुझे कई बार जेल में डाला गया है। मुझे अधिकारपूर्वक विशेष सुविधाओं का आनंद लेना चाहिए।” यह तुम्हारा “अधिकारपूर्वक,” क्या यह सत्य है? परमेश्वर ने अपने किस वचन में यह प्रावधान किया कि जिसे भी कैद हुई है, या जिसने कठिनाइयाँ झेली हैं, या जिसने परमेश्वर के लिए कई वर्षों तक भ्रमण किया है, उसे अधिकारपूर्वक विशेष सुविधाओं का आनंद लेना चाहिए, और अधिकारपूर्वक भेंटों का उपयोग करने और उन्हें जब्त करने और अपनी मर्जी से बरबाद करने में उसे पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए, और यह एक प्रशासनिक आदेश है? क्या परमेश्वर ने कभी इस आशय का एक भी वचन कहा है? (नहीं, उसने नहीं कहा है।) तो फिर, परमेश्वर ने इस बारे में क्या कहा कि इस तरह के व्यक्ति और अगुआओं, कार्यकर्ताओं और परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को निभाने वाले सभी लोगों से भेंटों का किस प्रकार उपयोग करने की अपेक्षा की जाती है? उन्हें उनका उपयोग सामान्य लागत और सामान्य खर्चों के लिए करना है; किसी के पास भेंटों का उपयोग करने या उन पर कब्जा करने का कोई विशेष अधिकार नहीं है। परमेश्वर अपनी भेंटों को किसी एक व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं बनाएगा। साथ ही, परमेश्वर ने यह भी नहीं कहा कि लोगों को भेंटों के उपयोग और आवंटन पर पैसे बरबाद करने चाहिए। किस तरह का व्यक्ति पैसे बरबाद करता है? पैसे बरबाद करने वाले व्यक्ति का स्वभाव कैसा होता है? यह कुछ ऐसा है जो जानवर, अत्याचारी, बदमाश, अपराधी और घृणित गुंडे करते हैं, जिनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती, यह कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधी करते हैं। जिस किसी में थोड़ी-सी भी मानवता है और जो थोड़ी-बहुत शर्म करता है, वह ऐसा नहीं करेगा। कुछ लोग हैं जो कलीसिया के अगुआ बन जाने के बाद मानते हैं कि इससे उन्हें कलीसिया की भेंटों और संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार मिल जाता है। वे कुछ भी और सब कुछ खरीदना चाहते हैं और खरीदने की हिम्मत करते हैं, और वे कुछ भी और सब कुछ माँगने की इच्छा रखते हैं। उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी खरीदते हैं, जो कुछ भी उन्हें पसंद आता है, वे उसके पात्र हैं; इसके अलावा, वे कभी भी कीमत पूछने की जहमत नहीं उठाते। और अगर कोई उन्हें कोई सस्ती और साधारण चीज खरीद कर दे दे तो वे नाराज हो जाएँगे और उसके खिलाफ द्वेष रखेंगे। ये मसीह-विरोधी हैं।

2. भेंटों का गबन करना

कलीसिया के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने का प्रयास करने वाले मसीह-विरोधियों की एक और अभिव्यक्ति है गबन। “गबन” शब्द समझने में आसान होना चाहिए। क्या गबन का मतलब कलीसिया की संपत्ति लेकर उसे भाई-बहनों को देना या कलीसिया के काम के लिए आवंटित करना है ताकि उसका उचित उपयोग किया जा सके? (नहीं, ऐसा नहीं है।) तो फिर “गबन” का क्या मतलब होता है? (इसका मतलब है इसे उचित तरीके से खर्च न करना, बल्कि इसे अपनी मर्जी से या चोरी-छिपे इस्तेमाल करना।) हालाँकि “चोरी-छिपे इस्तेमाल करना” कहना सही है, लेकिन यह बहुत विशिष्ट नहीं है। अगर कोई व्यक्ति कलीसिया की संपत्ति का इस्तेमाल उन लोगों के जीवन-यापन के खर्च के लिए चोरी-छिपे करता है जो पूरे समय अपना कर्तव्य निभा रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, और यह गबन नहीं है। गबन को गुनाह माना गया है, और यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होता। उदाहरण के लिए, कलीसिया के कुछ अगुआ कलीसिया के पैसे पर नियंत्रण कर लेते हैं और जब उनके बच्चों के पास कॉलेज जाने के लिए पैसे नहीं होते और उनके पास घर पर भी उतने पैसे नहीं होते तो वे परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने आते हैं और कहते हैं, “हे परमेश्वर, मुझे पहले अपनी गलती स्वीकार करने दो और माफी माँगने दो। अगर तुम्हें सजा देनी ही है तो कृपया मुझे सजा दो, मेरे बच्चे को नहीं। मुझे पता है कि यह सही नहीं है, लेकिन अभी मैं मुश्किल में हूँ और इसलिए मुझे यह करना पड़ा। तुम्हारा हमेशा भरपूर अनुग्रह रहा है, तो मुझे उम्मीद है कि तुम इस बार मुझे छोड़ दोगे और अपना आशीष दोगे। मेरे बच्चे की कॉलेज की ट्यूशन फीस के लिए मेरे पास बीस-तीस हजार आरएमबी कम हैं और सारा पैसा इकट्ठा करने और इधर-उधर से उधार लेने के बाद भी मेरे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। क्या मैं तुम्हारे पैसे से अपने बच्चे की ट्यूशन फीस भर सकता हूँ?” फिर, प्रार्थना समाप्त करके उन्हें काफी शांति महसूस होती है और यह सोचकर कि परमेश्वर ने इस पर सहमति जताई है, वे अपने निजी इस्तेमाल के लिए पैसे ले लेते हैं। यह गबन है, है न? पैसे का उपयोग उस काम के लिए न करना जिसके लिए होना चाहिए, बल्कि उसका उपयोग कहीं और करना, परमेश्वर के घर में भेंटों के उपयोग को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों का उल्लंघन करना : इसे “गबन” कहा जाता है। जब परिवार का कोई सदस्य बीमार पड़ जाता है और उसे पैसे की आवश्यकता होती है, या किसी व्यापारिक लेन-देन में उनके पास पैसे की कमी हो जाती है तो वे भेंटों के बारे में मंसूबे बाँधने लगते हैं, और अपने दिल में वे प्रार्थना करते हैं, कहते हैं : “हे परमेश्वर, कृपया मुझे माफ कर दो, मेरा ऐसा करने का इरादा नहीं था, मेरा परिवार वास्तव में कुछ कठिनाइयों का सामना कर रहा है। तुम्हारा प्रेम समुद्र जितना विशाल और आकाश जितना असीम है और तुम लोगों के अपराधों को याद नहीं रखते। इस नकदी का उपयोग करने के बाद जब पारिवारिक व्यवसाय से कुछ धन आएगा तो मैं तुम्हें इसका दोगुना वापस कर दूँगा, इसलिए कृपया मुझे इसका उपयोग करने दो।” इस तरह से वे परमेश्वर की भेंटों का उपयोग करते हैं। पैसे की जरूरत चाहे किसी रिश्तेदार को हो या दोस्त को हो, जब तक इन अगुआओं के हाथ में पैसे हैं वे उन्हें दे देंगे, वे न तो सिद्धांतों के अनुसार काम करेंगे और न ही दूसरों की सहमति लेंगे, इस बात पर एक पल भी विचार नहीं करेंगे कि ये परमेश्वर की भेंटें हैं। इसके बजाय, वे निर्णय लेने, कलीसिया से पैसे निकालने और उसका इस्तेमाल दूसरे कामों के लिए करने का काम अपने ऊपर ले लेंगे। क्या यह गबन नहीं है? (हाँ, गबन है।) यह गबन है। अब, कुछ लोग चुपके से भेंटों का गबन करने के बाद पूरा पैसा वापस कर देते हैं; तो क्या इसका मतलब यह है कि वे अब भेंटों के गबन के पाप के दोषी नहीं हैं? क्या इसका मतलब यह है कि उन्हें छोड़ा जा सकता है? या, अगर गबन के समय उनके पास अपने कारण, एक निश्चित संदर्भ या कठिनाइयाँ थीं, और उनके पास पैसे का गबन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था तो क्या इस गबन को माफ किया जा सकता है और इसे गुनाह नहीं माना जाएगा? (नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।) उस स्थिति में, भेंटों का गबन करने का पाप गंभीर है! क्या यह यहूदा द्वारा किए गए कार्य से कुछ अलग है? क्या भेंटों का गबन करने वाले लोग यहूदा के समान ही नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) जब उनके बच्चे विश्वविद्यालय जा रहे होते हैं, जब उनके परिवार में कोई व्यवसाय कर रहा होता है, या किसी बुज़ुर्ग को चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है, या उनके पास खेती के लिए खाद नहीं होती, इन सभी स्थितियों में वे कलीसिया के पैसे खर्च करना चाहते हैं। कुछ लोग तो भाई-बहनों द्वारा दी गई भेंटों की रसीदें भी नष्ट कर देते हैं, और फिर पैसे अपनी जेबों में डाल लेते हैं ताकि बिना किसी शर्मिंदगी या दिल में कुछ महसूस किए अपनी मर्जी से उन्हें खर्च कर सकें। कुछ लोग तो सभाओं में भी भाई-बहनों से पैसों की भेंटें ले लेते हैं, और फिर जैसे ही सभा समाप्त होती है वे उससे चीजें खरीदने चले जाते हैं। और फिर कुछ भाई-बहन ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी आँखों से इन लोगों को भेंटों में से पैसे चुराते देखा है, फिर भी उन्होंने उन्हें पैसे रखने दिए, जबकि कोई भी इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता, और कोई भी इसे रोकने को आगे नहीं आता। वे सभी इन अगुआओं को नाराज करने से डरते हैं, इसलिए वे बस उन्हें खर्च करते हुए देखते रहते हैं। तो फिर, क्या तुमने यह पैसा परमेश्वर को भेंट दिया था या नहीं? अगर तुम दूसरों को दान दे रहे हो तो तुम्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि तुम यह पैसा परमेश्वर को नहीं चढ़ा रहे हो, और फिर परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा। फिर, यह पैसा किसका है, कौन इसे खर्च करता है और कैसे खर्च किया जाता है, इन बातों का परमेश्वर के घर से कोई लेना-देना नहीं होता। दूसरी ओर, यदि तुम्हारा यह पैसा वास्तव में परमेश्वर को अर्पित किया गया है, लेकिन कलीसिया को इसका उपयोग करने का मौका मिलने से पहले कोई व्यक्ति इसे इस तरह से खर्च कर देता है, इसे इस तरह से बरबाद कर देता है, और तुम्हें इसकी जरा भी चिंता नहीं है, न तो तुम इसे रोकते हो और न ही इसकी रिपोर्ट करते हो, तो उस स्थिति में तुम्हारे साथ समस्या है, तुम उनके पाप में संलिप्त हो, और जब उन्हें दोषी ठहराया जाएगा तो तुम भी नहीं बच पाओगे।

3. भेंटें उधार देना

वह सब कुछ जिसमें भेटों का मनमाना उपयोग, भेटों का अनुचित उपभोग और व्यय, निरपवाद रूप से प्रशासनिक आदेशों से संबंधित है, और उनका उल्लंघन करने का गुण रखता है। कलीसिया की संपत्ति का प्रबंधन करने वाले कुछ लोग कह सकते हैं, “कलीसिया की संपत्ति यूँ ही तो पड़ी है। आजकल बैंकों के पास सभी प्रकार की निवेश योजनाएँ होती हैं, जैसे अनुबंध पत्र और निधियाँ, ये सभी अच्छी ब्याज दरें देते हैं। अगर हम कलीसिया से पैसा लेकर इनमें निवेश कर दें, थोड़ा-बहुत ब्याज कमाएँ तो क्या इससे परमेश्वर के घर को लाभ नहीं होगा?” फिर इस पर चर्चा किए बिना, कलीसिया में किसी की सहमति लिए बिना, वे पैसे उधार देने का दायित्व अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा करने का क्या उद्देश्य है? इसे अच्छे शब्दों में कहें तो यह परमेश्वर के घर के लिए कुछ ब्याज कमाना है, परमेश्वर के घर के लिए सोचना है; लेकिन सच्चाई यह है कि ये लोग स्वार्थपूर्ण मंशा पाल रहे हैं। वे बिना किसी की जानकारी के पैसे उधार देना चाहते हैं और फिर ब्याज अपने पास रखकर मूलधन परमेश्वर के घर को वापस कर देना चाहते हैं। क्या यह एक निष्ठाहीन इरादे को पनाह देने का मामला नहीं होगा? इसे भेंटें उधार देना कहते हैं। क्या भेंटें उधार देने को भेंटों का उचित उपयोग माना जा सकता है? (नहीं माना जा सकता।) कुछ लोग ऐसा कहते हैं : “परमेश्वर मानवजाति से प्रेम करता है, परमेश्वर के घर में स्नेह होता है। कभी-कभी, जब हमारे भाई-बहनों को पैसे की कमी होती है, तो क्या हम उन्हें परमेश्वर की भेंट उधार नहीं दे सकते?” कुछ लोग तब निर्णय लेने का दायित्व अपने ऊपर ले ले लेते हैं, और कुछ मसीह-विरोधी तो भाई-बहनों से अपील करके उन्हें यह कहकर उकसाते हैं, “परमेश्वर मानवजाति से प्रेम करता है, परमेश्वर ही जीवन देता है, इंसान को सब-कुछ देता है, तो कुछ पैसे उधार देना कौनसी बड़ी बात है, है न? बहुत आवश्यक होने पर पैसे उधार देकर भाई-बहनों की मदद करना, मुसीबत के समय उनकी सहायता करना, क्या यह परमेश्वर का इरादा नहीं है? अगर परमेश्वर इंसान से प्रेम करता है, तो इंसान एक-दूसरे से प्रेम क्यों न करेगा? इसलिए उन्हें कुछ पैसे उधार दे दो!” अधिकांश अज्ञानी लोग इस बात को सुनकर कहते हैं : “बिल्कुल, यदि तुम ऐसा कहते हो तो। वैसे भी, यह पैसा तो सभी का है, तो चलो इसे हम सभी मिलकर किसी की मदद करने के तौर पर देखते हैं।” और इस तरह, जब एक तरफ व्यक्ति बड़े-बड़े विचार उगलता है और चापलूसों का झुंड उसकी वाह-वाही करता है, तो अंत में पैसा चला ही जाता है। तो क्या तुम कहते हो जो “यह पैसा परमेश्वर को अर्पित किया गया है” उसकी गिनती है? यदि इसकी गिनती है तो पैसा पहले ही परमेश्वर का है और अब पवित्र हो चुका है, और इसलिए इसका उपयोग परमेश्वर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार करना ही उचित होगा। यदि इस पैसे की गिनती नहीं है, यदि तुम्हारे द्वारा अर्पित किए गए पैसे की गिनती नहीं होती, तो तुम इस भेंट से किस तरह की कार्रवाई कर रहे हो? यह बस कोई खेल है? क्या तुम परमेश्वर के साथ कोई मजाक कर रहे हो और उसे धोखा दे रहे हो? वेदी पर जो तुम भेंट चढ़ाना चाहते हो, उन्हें रखने के बाद, तुम उनसे ईर्ष्या करने लगते हो, ये चीजें वहाँ पड़ी हुई हैं और फिर भी परमेश्वर उनका उपयोग नहीं कर रहा है, और ऐसा लगता है उसके लिए इन चीजों का कोई उपयोग नहीं है। इसलिए जब तुम्हें उनके उपयोग की जरूरत होती है, तुम उन्हें लेकर उनका इस्तेमाल कर लेते हो। या शायद तुमने बहुत अधिक भेंट दे दी और अब पछता रहे हो, इसलिए तुम उसमें से कुछ वापस ले ली। या शायद जब तुमने भेंट दी थी तब तुमने स्पष्ट रूप से सोचा नहीं था, और अब जब तुम्हें उसके उपयोग का पता चल गया है, तो तुम उसे वापस ले रहे हो। इस व्यवहार की प्रकृति क्या है? यह पैसा और ये चीजें : एक बार कोई व्यक्ति जब इन्हें परमेश्वर को अर्पित कर देता है, तो यह उन्हें वेदी पर अर्पित करने के समान ही है, और वेदी पर अर्पित की गई चीजें क्या हैं? वे भेंटें हैं। चाहे वह कोई पत्थर या रेत के कण से ज्यादा कुछ न हो, पकी हुई रोटी हो या एक कप पानी, अगर तुमने उसे वेदी पर चढ़ा दिया, तो वह वस्तु परमेश्वर की हो जाती है, फिर वह इंसान की नहीं रहती, और अब किसी इंसान को इसे नहीं छूना। चाहे तुम्हें उसका लालच आए या तुम्हें लगे कि तुम उसका सही उपयोग कर सकते हो, उस पर अब किसी इंसान का अधिकार नहीं रहा। कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं, “क्या परमेश्वर इंसान से प्रेम नहीं करता? अगर इंसान उसमें से एक हिस्सा ले लेगा तो उसका क्या जाएगा? इस समय तुम प्यासे नहीं हो और तुम्हें पानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन मैं प्यासा हूँ, तो मैं पानी क्यों नहीं पी सकता?” लेकिन तुम्हें यह देखना होगा कि इसमें परमेश्वर की सहमति है या नहीं। यदि परमेश्वर सहमत है, तो इससे साबित होता है कि उसने तुम्हें अधिकार दे दिया और तुम उसका उपयोग कर सकते हो; लेकिन अगर परमेश्वर सहमत नहीं है, तो तुम्हें उसका इस्तेमाल करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में जहाँ तुम्हारे पास अधिकार नहीं है, जहाँ परमेश्वर ने तुम्हें अधिकार नहीं दिया है, वहाँ परमेश्वर की किसी भी चीज का उपयोग करना उस बड़ी वर्जना का उल्लंघन करना होगा, जिससे परमेश्वर सबसे ज्यादा घृणा करता है। लोग हमेशा कहते हैं कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों को बर्दाश्त नहीं करता है, लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं समझा कि परमेश्वर का स्वभाव वास्तव में है कैसा, या वे जो कुछ भी करते हैं उससे परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचने की सबसे अधिक आशंका रहती है। परमेश्वर की भेंटों के मामले में, बहुत से लोगों के मन में वे चीजें लगातार चलती रहती हैं, वे मनमर्जी से उनका उपयोग या आवंटन करना चाहते हैं, उनका उपयोग करना चाहते हैं, उन्हें अपने कब्जे में रखना चाहते हैं या यहाँ तक कि उन्हें बरबाद कर देना चाहते हैं; लेकिन मैं तुम्हें बता दूँ, तुम समाप्त हो चुके हो, तुम मृत्यु के पात्र हो! ऐसा परमेश्वर का स्वभाव है। परमेश्वर किसी को भी अपनी चीजें छूने नहीं देता। ऐसी है उसकी गरिमा। केवल एक ही स्थिति है जिसमें परमेश्वर लोगों को उन चीजों का उपयोग करने का अधिकार देता है, और वह है कलीसिया के नियमों और उनके उपयोग को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों के अनुसार उनका उचित इस्तेमाल करना। इन सीमाओं के भीतर रहना परमेश्वर को स्वीकार्य है, लेकिन इन सीमाओं से बाहर जाना परमेश्वर के स्वभाव के प्रति अपराध और प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन होगा। यह इतना कठोर होता है, जिसमें सौदेबाजी की कोई गुँजाइश नहीं होती और इसमें कोई वैकल्पिक रास्ता भी नहीं होता। इसलिए, जो लोग भेंटों को बरबाद करते हैं, गबन करते हैं या उन्हें उधार देते हैं, उन्हें परमेश्वर की दृष्टि में मसीह-विरोधी माना जाता है। उनके साथ इतना कठोर व्यवहार क्यों किया जाता है कि उन्हें मसीह-विरोधी समझा जाए? यदि कोई परमेश्वर का विश्वासी इस हद तक चला जाए कि वह परमेश्वर की उन चीजों को जो पवित्र हो चुकी हैं, मनमाने ढंग से स्पर्श करने, उनका दुरुपयोग उपयोग करने या उनका अपव्यय करने का दुस्साहस करता है, तो वह किस प्रकार का व्यक्ति है। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर का शत्रु होता है। केवल परमेश्वर के शत्रु ही उसकी वस्तुओं के प्रति ऐसा रवैया रखेंगे; कोई साधारण भ्रष्ट व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा, ऐसा तो कोई जानवर भी नहीं करेगा, ऐसा काम तो केवल परमेश्वर का शत्रु, शैतान और बड़ा लाल अजगर ही करेगा। क्या ऐसा कहना कठोर शब्दों का प्रयोग करना है? नहीं, यह तथ्य है और पूरी तरह से सही है। शैतान की प्रजाति उन चीजों को कैसे छू सकती है जो परमेश्वर के लिए हैं? ऐसी है परमेश्वर की गरिमा!

4. भेंटों का कपटपूर्ण उपयोग करना

कुछ अन्य लोग होते हैं जो हर तरह के बहाने बनाकर परमेश्वर के परिवार से पैसे और सामान माँगते रहते हैं, और कहते हैं, “हमारी कलीसिया में एक कुर्सी की कमी है तो हमारे लिए कुर्सी खरीद दो। हमारे कलीसिया के कुछ भाई-बहनों के पास अपने कर्तव्यों को करने के लिए कंप्यूटर नहीं है, इसलिए हमारे लिए एक मैक खरीद दो। हम अपने काम के दौरान अक्सर लोगों से संपर्क करते हैं और हमारे पास फोन न होने से काम नहीं चल पाता तो हमारे लिए एक आईफोन खरीद दो। लेकिन सिर्फ एक आईफोन होना किसी काम का नहीं है, यह बहुत असुविधाजनक होगा, क्योंकि कभी-कभी हमें अलग-अलग लोगों से संपर्क करना पड़ता है। और, एक लाइन पर निगरानी बनाए रखने की बहुत अधिक संभावना होती है इसलिए तभी काम चलेगा जब हमें कई लाइनें मिलेंगी।” और इसलिए, इनमें से कुछ लोगों के पास चार-पाँच सेल फोन होते हैं और वे एक ही समय में दो-तीन लैपटॉप साथ लेकर चलते हैं; वे दिखने में तो बहुत प्रभावशाली लगते हैं, लेकिन वे अपना काम बहुत अच्छे से नहीं करते हैं। उन्हें यह सब सामान कहाँ से मिला? उन्हें यह सब कपट से मिला। अतीत में, हमने एक मूर्ख महिला के बारे में बात की थी जो एक विशिष्ट मसीह-विरोधी थी। जब परमेश्वर का घर एक कलीसिया की इमारत का जीर्णोद्धार कर रहा था तो उसने एक आदमी के साथ मिलकर कलीसिया के पैसे का कपटपूर्ण इस्तेमाल किया, जिससे परमेश्वर के घर को काफी नुकसान हुआ। जब इस आदमी ने जीर्णोद्धार का काम किया तो उसने बीच में दलाली खाई, ठीक उसी तरह जैसे कोई अविश्वासी ठेकेदार खाता, उसने हर चीज उच्च-स्तरीय खरीदी, और उसमें बहुत ज्यादा पैसे खर्च किए। जब कुछ लोगों ने देखा कि इसमें समस्या है तो इस मूर्ख महिला ने इसे गुप्त रखने और छिपाने में उसकी मदद की, और साथ मिलकर उन्होंने परमेश्वर के घर से पैसे ठगे। अंत में वे पकड़े गए और उन दोनों को निष्कासित कर दिया गया। इस तरह, उन्होंने खुद अपनी बरबादी का रास्ता तैयार किया और अपना जीवन बरबाद कर लिया। क्या रोने-धोने से उन्हें कोई फायदा हुआ? जब अंत में चीजें ऐसी ही होनी थीं तो उन्होंने शुरू में इस तरह से काम क्यों किया? उस मूर्ख महिला ने कपटपूर्ण ढंग से भेंटों का इस्तेमाल करते समय इसके अंजाम के बारे में ध्यान से क्यों नहीं सोचा? क्या परमेश्वर के घर के लिए उसे निष्कासित करना और उससे पैसे वापस करवाना ज्यादती थी? (नहीं, यह ज्यादती नहीं थी।) उसके लिए यह सही था! इस तरह का व्यक्ति दया का पात्र नहीं होता। उसके साथ दया नहीं की जा सकती। और फिर वह महिला अगुआ है जिसके बारे में हमने पहले बात की थी। उसने चुपके से कलीसिया के पैसे का एक अच्छा-खासा हिस्सा लिया और उसे एक अविश्वासी को उधार दे दिया। बाद में, उससे भी निपटा गया। कुछ लोग सोचते होंगे, “उसने बस थोड़ा-सा पैसा उधार ही तो दिया था? उसे वापस चुकाने दो और बात खत्म करो। उसे क्यों बाहर निकाला जाए? इसका मतलब है कि एक अच्छा-खासा इंसान पलक झपकते ही अविश्वासी बन जाता है, और उसे जीविका के लिए काम पर जाना पड़ता है। वह कितनी दयनीय है!” क्या यह व्यक्ति दयनीय है? तुम क्यों नहीं कहते कि वह घृणित है? तुम यह क्यों नहीं देखते कि उसने क्या किया है? उसने जो किया है वह तुम्हें जीवन भर घृणा करने के लिए पर्याप्त है, और यहाँ तुम उस पर दया कर रहे हो! जो लोग उस पर दया करते हैं—वे किस तरह के लोग हैं? वे सभी मंदबुद्धि हैं और हर किसी के प्रति अविचारपूर्वक दयालुता दिखाने वाले लोग हैं।

5. भेंटों की चोरी करना

कलीसिया के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने वाले मसीह-विरोधियों की अंतिम अभिव्यक्ति होती है भेंटों की चोरी करना। कुछ अज्ञानी लोग, भेंट चढ़ाते समय, “बाएँ हाथ को यह नहीं पता चलने देना कि दायाँ हाथ क्या कर रहा है” के सिद्धांत पर चलते हैं, और फिर वे जो पैसा चढ़ा रहे होते हैं उसे ऐसे व्यक्ति के हाथों में दे देते हैं जिसके बारे में उन्हें भी यकीन नहीं होता कि उस पर भरोसा किया जा सकता है। वे कहते हैं, “इस बार मैं जो भेंट चढ़ा रहा हूँ वह काफी बड़ी रकम है तो किसी और को इसके बारे में पता न चले, और इसे खाता बही में न लिखा जाए। मैं यह परमेश्वर के सामने कर रहा हूँ, दूसरे लोगों के सामने नहीं। जब तक परमेश्वर को इसके बारे में पता है तब तक सब ठीक है। अगर हम भाई-बहनों को बता देंगे तो वे शायद मेरी पूजा करने लगेंगे। तो, मैं यह गुप्त रूप से कर रहा हूँ ताकि वे मेरा सम्मान न करें।” ऐसा करने के बाद वे अपने बारे में काफी अच्छा महसूस करते हैं, सोचते हैं, “मैंने अपनी भेंट एक सैद्धांतिक, चुपचाप और शांतचित्त तरीके से दी, इसे कहीं दर्ज नहीं करवाया, और किसी भी भाई-बहन को इसकी जानकारी नहीं दी।” लेकिन काम करने के इस अज्ञानतापूर्ण तरीके ने लालची लोगों के लिए शोषण करने का रास्ता खोल दिया है। जैसे ही भेंट चढ़ाई जाती है, जिस मसीह-विरोधी को उन्होंने दी थी वह जाकर उसे बैंक में जमा कर देता है और उसे अपनी मान लेता है। और वह भेंट चढ़ाने वाले व्यक्ति से यह भी कहता है, “अगली बार जब तुम भेंट चढ़ाओ तो तुम इसी तरह चढ़ाना। इस तरह से चढ़ाना सही है और सिद्धांतों के अनुरूप है; भेंटें चढ़ाते समय व्यक्ति को कम दिखावा करना चाहिए। परमेश्वर के घर ने कहा है कि लोगों को भेंटें चढ़ाने के लिए न बुलाएँ। इसका मतलब है कि यह लोगों से दिखावा नहीं करने करने के लिए कह रहा है, भेंटें चढ़ाने के बाद उसके बारे में बात मत करो, दी गई राशि का खुलासा मत करो और यह तो बिल्कुल मत बताओ कि ये किसे दी गईं।” क्या भेंटें चढ़ाने वाला व्यक्ति लोगों की असलियत समझ सकता है? वह ऐसा मूर्खतापूर्ण कदम क्यों उठाएगा? बिना यह जाने कि मानव हृदय कितना दुष्ट और पापी हो सकता है, वह इस व्यक्ति में अपनी सारी आस्था झोंक देता है और अंत में उसका पैसा चोरी हो जाता है। यह किसी व्यक्ति द्वारा मसीह-विरोधी को पैसा चुराने के लिए रास्ता प्रदान करने का मामला है। लेकिन क्या ऐसा कोई मामला है जिसमें मसीह-विरोधी रास्ता मिले बिना भी पैसा चुरा सके? क्या ऐसे मामले हैं जिनमें कोई व्यक्ति हिसाब-किताब रखते समय जान-बूझकर गलत राशि दर्ज करता हो या कम राशि दर्ज करता हो, और जब लोग ध्यान नहीं दे रहे होते हैं तो चुपके से थोड़ा-थोड़ा करके पैसा निकाल लेता हो? इस तरह के बहुत लोग हैं। ऐसे लोग धन के लालची होते हैं, वे नीच और द्वेषपूर्ण चरित्र के होते हैं, और जब तक उन्हें अवसर मिलता रहता है वे कुछ भी करने में सक्षम होते हैं। एक कहावत है, “अवसर तैयार लोगों के लिए होते हैं।” जो लोग लालची नहीं हैं वे इन बातों पर ध्यान नहीं देते, लेकिन लालची लोग हमेशा ध्यान देते हैं। जब बात पैसे की आती है तो उनके दिमाग लगातार योजनाएँ बनाते रहते हैं और फायदा उठाने के अवसर तलाशते रहते हैं, हिसाब-किताब करते रहते हैं कि वे कैसे लाभ उठा सकते हैं और चुपके से पैसा खर्च कर सकते हैं।

एक मूर्ख महिला थी। एक बार जब मैं उससे बात कर रहा था तो मैंने कलीसिया द्वारा कुछ किताबें छपवाने की इच्छा का विषय उठाया और पूछा कि क्या उसे किताबों की छपाई के बारे में कुछ पता है। उसने लंबे-चौड़े सिद्धांतों के साथ जवाब दिया और फिर तुरंत कहा, “आमतौर पर जब मुद्रक किताबें छापते हैं तो वे कमीशन देते हैं। अगर हम किसी गैर-विश्वासी से यह काम करवाते हैं तो निश्चित रूप से काफी हद तक संदिग्ध लेनदेन चल रहा होगा, और वे निश्चित रूप से छिपे तौर पर अपने लिए अच्छा खासा मुनाफा कमाएँगे।” बात करते-करते उसका चेहरा खुशी से दमकने लगा। खुशी और उत्साह में उसकी आँखें चमक उठीं, उसकी भौंहें उसके माथे पर ऊँची हो गईं, और उसके गाल लाल हो गए। मैं सोचने लगा, “अगर तुम इस छपाई के काम को सँभाल सकती हो तो इसकी जिम्मेदारी लो, और बस मुझे उतना ही बताओ जितना तुम इसके बारे में जानती हो। किस बात को लेकर तुम इतनी उत्साहित हो रही हो?” लेकिन जब मैंने अपने मन में इस पर विचार करना शुरू किया तो मुझे समझ में आ गया : यहाँ मुनाफा कमाया जा सकता था। उसे इस बात की बिल्कुल भी चिंता नहीं थी कि छपाई कैसे होगी, कौन-सी किताबें छपवानी हैं, उनकी गुणवत्ता कैसी होगी, या मुद्रणालय कैसे खोजा जाएगा—उसे बस इस बात की चिंता थी कि उसे हिस्सा मिल जाए। अभी तक कुछ भी नहीं हुआ था, और वह पहले से ही प्रतिशत लेने की बात कर रही थी। मैंने सोचा, “गरीबी ने तुम्हें पागल कर दिया है। तुम परमेश्वर के घर के लिए किताबें छपवाने पर प्रतिशत पाने की उम्मीद कैसे कर सकती हो? जब किताबें बाँटी जाती हैं तो परमेश्वर का घर एक पैसा भी नहीं कमाता, सब कुछ मुफ्त दिया जाता है, और तुम हिस्सा लेना चाहती हो?” क्या यह महिला मौत को आमंत्रित नहीं कर रही थी? परमेश्वर के घर ने उसे अभी तक यह काम करने की अनुमति नहीं दी थी, मैं केवल पूछताछ कर रहा था, वह पहले से ही हिस्सा लेने की बात कर रही थी। अगर यह काम वाकई उसके हाथ में होता तो वह सिर्फ प्रतिशत पाने पर ही रुकने वाली नहीं थी, और वह बहुत आसानी से सारा पैसा लेकर भाग सकती थी—तुम उसे जितना भी देते, वह तुम्हें उतना ही ठगती, वह उतना ही चुरा लेती। क्या मैं इसे बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा हूँ? यह मूर्ख महिला वाकई बहुत गजब थी, है न? मुझसे पूछो तो वह एक डाकू और गुंडी थी जो जितना भी हो सके उतना पैसा पाने की हिम्मत रखती थी। चलो थोड़ी देर के लिए हम यह पूछना छोड़ देते हैं कि क्या परमेश्वर इस बात से सहमत है, और बस भाई-बहनों से पूछते हैं कि क्या वह इसे ईमानदारी से सँभालती, जिस तरह से वह इसे सँभालती क्या वे उसे स्वीकार कर सकते हैं, और क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग उसे माफ कर सकते हैं।

फिर कुछ ऐसे लोग हैं जिनका जिक्र करना भी घिनौनी बात है। जब वे परमेश्वर के घर के लिए किसी काम की जिम्मेदारी लेते हैं तो वे अविश्वासियों के साथ मिलकर उसकी कीमत बढ़ा देते हैं, जिससे परमेश्वर के घर को बहुत ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं और नुकसान उठाना पड़ता है। अगर तुम कहते हो कि तुम इसे नहीं खरीद रहे हो या तुम उनके प्रस्ताव से सहमत नहीं हो तो वे बहुत गुस्सा हो जाएँगे और तुम्हें मनाने या रोकने की हर कोशिश करेंगे, और कलीसिया से पैसे हासिल करेंगे। जब अविश्वासियों को पैसे दिए जाते हैं और उन्हें फायदा होता है और उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ती है, तो वे इतने खुश हो जाते हैं जैसे कि उन्होंने लॉटरी जीत ली हो। भेंटों को बरबाद करना और परमेश्वर के घर के लिए थोड़ा-सा भी लाभ प्राप्त करने का प्रयास न करना उसी हाथ को काटना है जो उन्हें खिलाता है। उन मूर्ख महिलाओं को क्यों बरखास्त कर दिया गया जिन्होंने किताबों की छपाई का प्रभार लिया था? क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाया और लापरवाही से काम किया। जब उन्होंने अविश्वासियों के साथ बातचीत की तो उन्होंने कीमत को जितना हो सके उतना कम करने की कोशिश की, यहाँ तक कि वह उत्पादन की लागत से भी कम हो गई, यहाँ तक कि यह घृणित था और अविश्वासी अब उनके साथ व्यापार नहीं करना चाहते थे। अंत में, अविश्वासी अनिच्छा से सहमत तो हो गए, लेकिन गुणवत्ता से भारी समझौता करना पड़ा। मुझे बताओ, क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो घाटे में व्यापार करने के लिए तैयार होगा? इस दुनिया में लोगों को जीवित रहना होता है, और व्यापार करते समय उन्हें उत्पादन की लागत के अलावा अपने जीवनयापन के खर्च और श्रम की लागत निकालने के लिए भी पर्याप्त पैसा कमाना होता है। इन महिलाओं ने इन अविश्वासियों को कोई पैसा नहीं कमाने दिया, कीमत को लेकर अनुचित ढंग से बातचीत की और इसे जितना हो सका उतना कम करवाने की कोशिश की, इस दौरान वे सोच रही थीं कि वे परमेश्वर के घर के लिए पैसे बचा रही हैं, और इसका अंत कैसे हुआ? दूसरे पक्ष ने काम और जिल्दबंदी की गुणवत्ता में कटौती कर दी। अगर वे यहाँ घाटे की भरपाई न करते तो क्या उन्हें नुकसान नहीं होता? अगर उन्हें नुकसान उठाना पड़ता तो क्या उन्होंने यह काम किया होता? क्या वे उन महिलाओं को सौदे में बेहतर लाभ देने का खर्च वहन कर सकते थे? नहीं, यह असंभव होता। अगर वे उन महिलाओं को सौदे में बेहतर लाभ लेने देते, तो वे व्यापार नहीं कर रहे होते, वे दान कर रहे होते। वे मूर्ख महिलाएँ इसे नहीं समझ पाईं, उन्होंने परमेश्वर के घर के लिए इस तरह से काम किया, और चीजों को पूरी तरह से गड़बड़ कर दिया। अंत में, वे अभी भी बहानेबाजी कर रही थीं, कह रही थीं : “मैं परमेश्वर के घर के बारे में सोच रही थी। मैं परमेश्वर के घर के लिए पैसे बचा रही थी। एक पैसा बचाने का मतलब एक पैसा बचाना होता है, और दो पैसे बचाने का मतलब एक पैसा कमाना होता है!” वे बकवास कर रही थीं! क्या उन्हें पता था कि उद्योग विनियमों का क्या मतलब होता है? क्या उन्हें पता था कि स्थापित प्रथाओं और उचित होने का क्या मतलब होता है? और इसलिए, अंतिम परिणाम क्या था? कुछ किताबें बहुत खराब गुणवत्ता की थीं, कुछेक बार पलटने के बाद उनसे पन्ने निकलने लगे, और पूरी किताब बिखर गई, जिससे उसे पढ़ना असंभव हो गया, इसलिए सब कुछ फिर से छपवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया था। क्या इससे पैसे की बचत हुई, या अधिक लागत आई? (इसमें अधिक पैसा खर्च हुआ।) यह वह गड़बड़ी थी जो उन मूर्ख महिलाओं ने की थी।

जिस तरह से मसीह-विरोधी भेंटों तक अपनी पहुँच बनाते हैं उसमें सिद्धांत और मानवता की पूरी तरह से कमी होती है, और यह तथ्य उनके दुष्ट और शातिर स्वभाव का सकारात्मक सबूत है। जिस तरह से वे भेंटों तक और परमेश्वर से संबंधित सभी चीजों तक पहुँचते हैं, उस हिसाब से देखें तो मसीह-विरोधी का स्वभाव वास्तव में परमेश्वर के विरुद्ध होता है। वे परमेश्वर से संबंधित भेंटों को अत्यंत तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं, उनके साथ जैसा चाहें वैसा व्यवहार करते हैं, जरा भी सम्मान नहीं दिखाते, और इसकी कोई सीमा नहीं होती। यदि वे परमेश्वर से संबंधित चीजों के साथ अपने व्यवहार में ऐसे हैं तो वे स्वयं परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? या उसके कहे गए वचनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? इसका उत्तर स्वतः स्पष्ट है। यह मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है, मसीह-विरोधी का सार जो दुष्टता और क्रूरता से भरा हुआ है; यह एक असली मसीह-विरोधी है। इसे याद रखो : जब किसी ऐसे व्यक्ति की बात आती है जो भेंटों को बरबाद करने, उनका गबन करने, उन्हें उधार देने, उनका कपटपूर्ण ढंग से उपयोग करने या उनकी चोरी करने में सक्षम है, तो अन्य अभिव्यक्तियों को देखने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब तक इनमें से कोई एक श्रेणी मौजूद है तब तक इस व्यक्ति को मसीह-विरोधी माना जाना पर्याप्त होगा। यह देखने के लिए कि क्या वह इस तरह का व्यक्ति है और क्या वह भविष्य में ऐसी चीजें करने में सक्षम हो सकता है, तुम्हें उसके बारे में पूछताछ करने या पता लगाने की आवश्यकता नहीं है, जाँच करने की आवश्यकता तो बिल्कुल नहीं है। जब तक वे इनमें से किसी एक श्रेणी में भी फिट बैठते हैं तब तक यह उन्हें मसीह-विरोधी, परमेश्वर का दुश्मन होने के लिए अभिशप्त करता रहता है। तुम सभी लोग इस पर गौर करो : वह चाहे कोई ऐसा अगुआ हो जिसे तुम लोगों ने पहले ही चुन लिया है, या कोई ऐसा अगुआ हो जिसे तुमने चुनने का फैसला किया है, या उन लोगों में से कोई हो जिसे तुम लोग काफी अच्छा मानते हो, जो कोई भी इस तरह का आचरण या इस तरह की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है वह मसीह-विरोधी होने से बच नहीं सकता।

आज मैंने जिन चीजों के बारे में संगति की है, क्या उनसे तुम लोगों ने कोई सबक सीखा है? क्या तुमने सत्य की कोई समझ प्राप्त की है? तुम लोग इस बारे में स्पष्ट रूप से नहीं बोल सकते, इसलिए मैं तुम लोगों को बताता हूँ कि तुम्हें किस तरह का सबक सीखना चाहिए। तुम्हें उन चीजों के बारे में कोई योजना नहीं बनानी चाहिए जिन्हें लोग परमेश्वर को चढ़ाते हैं। ये चीजें चाहे जो भी हों, चाहे वे मूल्यवान हों या न हों, चाहे तुम्हारे लिए उनका कोई उपयोग हो या न हो, चाहे वे कीमती हों या न हों—तुम्हें उनके बारे में कोई योजना नहीं बनानी चाहिए। अगर तुममें क्षमता है तो बाहर जाकर पैसा कमाओ—जितना चाहे कमाओ, कोई इसमें दखल नहीं देगा, लेकिन तुम्हें परमेश्वर की भेंटों के बारे में कोई योजना बिल्कुल नहीं बनानी चाहिए। यह सतर्कता ऐसी चीज है जो तुम लोगों के पास होनी चाहिए; यह तार्किकता ऐसी चीज है जो तुम्हारे पास होनी चाहिए। ऊपर बताई गई चीज पहली सीख है। दूसरी सीख यह है कि जो कोई भी भेंटों को बरबाद करने, उनका गबन करने, उन्हें उधार देने, उनका कपटपूर्ण उपयोग करने और उनकी चोरी करने में संलग्न है, उसे यहूदा की किस्म का ही समझा जाना चाहिए। जिन लोगों ने इस तरह के काम और अभ्यास किए हैं, वे पहले ही परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचा चुके हैं, और परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा। तुम्हें इस मामले में कोई भी खयाली पुलाव नहीं पकाना चाहिए। मैंने इसे इस तरह से कहा है और परमेश्वर इन चीजों को पूरा करेगा। यह तय हो चुका है, और सौदेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है। कुछ लोग कहेंगे : “मेरे गबन का एक संदर्भ था : जब मैंने लापरवाही से उस पैसे को खर्च किया तब मैं युवा और अज्ञानी था, लेकिन मैंने परमेश्वर के घर से बहुत ज्यादा पैसे नहीं ठगे थे, मैंने बस 20-30, या 30 या 50 आरएमबी चुराए थे।” लेकिन बात राशि की नहीं है; समस्या यह है कि जब तुम ऐसा करते हो तो तुम्हारे कार्यकलापों का लक्ष्य परमेश्वर होता है। तुमने परमेश्वर की चीजों को छुआ है, और ऐसा करना अस्वीकार्य है। परमेश्वर की चीजें आम संपत्ति नहीं हैं, वे सभी की नहीं हैं, वे कलीसिया की नहीं हैं, वे परमेश्वर के घर की नहीं हैं : वे परमेश्वर की हैं, और तुम्हें इन अवधारणाओं को आपस में नहीं मिलाना चाहिए। परमेश्वर ऐसा नहीं सोचता, न ही उसने तुम लोगों से कहा है कि, “मेरी चीजें और भेंटें कलीसिया की हैं, और उन्हें कलीसिया द्वारा आवंटित किया जाना चाहिए,” यह तो बिल्कुल नहीं कहा कि, “मेरे लिए दी गईं सभी भेंटें कलीसिया की हैं, परमेश्वर के घर की हैं, और भाई-बहनों के प्रभार में हैं, और जो कोई भी उनका उपयोग करना चाहता है उसे बस इसकी सूचना देनी होगी।” परमेश्वर ने ऐसा कुछ नहीं कहा, उसने ऐसा कभी नहीं कहा। तो, परमेश्वर ने क्या कहा? जो कुछ परमेश्वर को चढ़ाया जाता है वह परमेश्वर का है, और एक बार जब वह चीज वेदी पर रख दी जाती है तो वह हमेशा के लिए परमेश्वर की हो जाती है, और किसी भी मनुष्य के पास इसका अनधिकृत उपयोग करने का अधिकार या शक्ति नहीं है। भेंटों के बारे में योजनाएँ बनाना, और गबन करना, उनका कपटपूर्ण उपयोग करना, चोरी करना, उधार देना और उन्हें बरबाद करने का काम करना—इन सभी कार्यकलापों की परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध अपराध के रूप में, मसीह-विरोधियों के कार्यकलापों के रूप में निंदा की जाती है, और ये पवित्र आत्मा के विरुद्ध ईशनिंदा के पाप के समान हैं, जिसके लिए परमेश्वर तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। परमेश्वर की गरिमा ऐसी ही है, और लोगों को इसे कम करके नहीं आँकना चाहिए। जब तुम दूसरों को लूटते हो या चोरी करते हो तो तुम्हें कानून द्वारा एक से दो साल या तीन से पाँच साल तक की सजा हो सकती है, और एक बार जब तुम तीन से पाँच साल की कैद काट लेते हो तो तुम किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं रह जाते। लेकिन जब तुम परमेश्वर की चीजों, परमेश्वर की भेंटों को लेकर उनका उपयोग करते हो तो यह एक ऐसा पाप है जो परमेश्वर की दृष्टि में स्थायी होता है, एक ऐसा पाप जिसे माफ नहीं किया जा सकता। मैंने ये वचन तुम लोगों से कहे हैं, और जो कोई भी इनके खिलाफ जाएगा उसे परिणाम भुगतने होंगे। जब समय आएगा तो बेहतर होगा कि तुम यह शिकायत न करो कि मैंने तुम्हें नहीं बताया था। मैंने आज यहाँ अपने वचनों को तुम लोगों के लिए स्पष्ट कर दिया है, उन्हें बोर्ड पर कीलों की तरह ठोंक दिया है, और यही होगा। यह तुम पर निर्भर है कि तुम इस पर विश्वास करते हो या नहीं। ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि वे डरते नहीं हैं। ठीक है, अगर तुम नहीं डरते तो प्रतीक्षा करो और देखो कि चीजें कैसे होती हैं। तब तक की प्रतीक्षा मत करो जब तक कि तुम्हें दंड न मिल जाए, क्योंकि तब तक रोने, दाँत किटकिटाने और छाती पीटने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी।

24 अक्तूबर 2020

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