871 परमेश्वर की विनम्रता बहुत प्यारी है

1

ईश्वर नम्र कर खुद को, करता है कार्य

अशुद्ध और भ्रष्ट मानव पर, करने को पूर्ण इन्हें।

ईश्वर है बनता मानव।

चरवाही और सेवा है करता, वो आता है बड़े लाल अजगर के दिल में

भ्रष्टों को जीतने और उन्हें बचाने को,

उनको बदलने के कार्य और उन्हें नया करने के लिए।

स्वयं को दीन कर वो मानव है बनता

और इससे जुड़े सभी कष्टों को है सहता।

ये उस पवित्र आत्मा का अत्यधिक निरादर है।

ईश्वर, महान और ऊंचा; मानव, तुच्छ और नीच है।

फिर भी ईश्वर बात करता, चीज़ें देता और उनके बीच रहता है।

वो कितना नम्र है, कितना प्यारा है।


2

ईश्वर जीता है देह में सामान्य जीवन और सामान्य उसकी ज़रूरतें

दर्शाता है कि वो विनम्र है।

उसका आत्मा उच्च और महान, आता है मानव के रूप में

अपने आत्मा के कार्य को करने।

तुम सब उसके कार्य के अयोग्य हो,

हर उस कष्ट के जिनको उसने सहा।

यह तुम्हारे गुणों में दिखता है, अंतर्दृष्टि और समझ में।

तुम सब उसके कार्य के अयोग्य हो,

हर उस कष्ट के जिनको उसने सहा।

ये दिखता है तुम्हारी मानवता में और तुम्हारे जीवन में।

ईश्वर, महान और ऊंचा; मानव, तुच्छ और नीच है।

फिर भी ईश्वर बात करता, चीज़ें देता और उनके बीच रहता है।

वो कितना नम्र है, कितना प्यारा है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं से रूपांतरित

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